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सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

समीक्षा - उपन्यास अधूरा मन

उपन्यास समीक्षा 
जीवन के झंझावातों से जूझता "अधूरा मन "

[अधूरा मन, उपन्यास।, प्रथम संस्करण २००७, आकार २२ से.मी. x १४ से.मी., आवरण बहुरंगी, सजिल्द जैकेट सहित, पृष्ठ १७९, मूल्य १५०/-, तिवारी ग्राफिक्स एन्ड पब्लिकेशंस भोपाल]
हिंदी साहित्य की समकालिक सारस्वत कारयित्री प्रतिभाओं में अग्रगण्य डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे रचित औपन्यासिक कृति अधूरा मन जीवन सागर के झंझावातों से निरंतर जूझती उपन्यास नायिका रत्ना की जयकथा है। 

कथाक्रम यह कि वस्त्र व्यवसायी रत्ना दूकान पर दीपक नामक युवक को बिना पूरी जानकारी लिए नौकरी देती है। दीपक अपनी कार्यकुशलता व वाक्चातुर्य से रत्ना के निकट आ जाता है। वह रुग्ण होने पर रत्ना की देखभाल करता है। चिकित्सक से रत्ना को विदित होता है कि दीपक उसके पूर्व प्रेमी प्रदीप का चचेरा भाई और समृद्ध परिवार से है। माता-पिता के न रहने पर रत्ना पिता का व्यवसाय सम्हाल कर छोटी तीन बहिनों में से दो का विवाह करा चुकी है और अब तीसरी बहिन वत्सा के विवाह की चिंता से परेशान है। पूर्व स्मृति
में रत्ना पूर्व अपने पारिवारिक परिचित युवक प्रदीप की मंगेतर थी। सहेली मीरा के सजग करने के बाद भी रत्ना प्रदीप के साथ दैहिक संबंध बनने से रोक नहीं पाती। विवाह पूर्व ही प्रदीप अमेरिका चला जाता है। वह गर्भवती रत्ना को गर्भ गिराने की सलाह देता है, फिर संपर्क भंग हो जाता है। असहमत रत्ना को पिता अपनी परिचिता के पास ले जाकर प्रसव कराते हैं। नवजात शिशु को वहीं छोड़ दोनों लौट आए थे।

पिता के न रहने पर रत्ना ने साहस के साथ वस्त्र व्यवसाय सँभाला जिसे दीपक मंदी से निकालकर कुशलतापूर्वक बढ़ा रहा था। न चाहते हुए भी रत्ना दीपक को अपने निकट आने से रोक नहीं पा रही थी जबकि दीपक को चाहनेवाली अाशा उसे पाने के लिए अंधाधुंध खरीदी कर रही थी। रत्ना अपनी दूकान के कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान करती रही। अपर्णा उन्हीं में से एक है जो प्राणप्रण से दूकान को सँभालती और रत्ना को परामर्श देती है। दीपक के आज और प्रदीप के कल के मध्य भटकती रत्ना क्षणे रुष्टा क्षणे तुष्टा की मनस्थिति में डूबती-उतराती अपने बच्चे से मिलने पासी आंटी (उसके पिता की पारसी प्रेमिका जिनसे जाति वैविध्य के कारण विवाह न हो सका और वे आजीवन अविवाहित रहीं।) के पास जाती है। वत्सा के विवाह पर आया छोटा बहनोई द्वारा रत्ना-दीपक के संबंध में लांछन लगाने से दुखी रत्ना को दीपक से ग्यात होता है कि प्रदीप दुर्घटना में पंगु होने के कारण रत्ना के जीवन से निकल गया था। रत्ना प्रदीप से विवाह करने और बेटे को साथ रखने का निर्णय कर दीपक को आशा से विवाह करने के लिए कहती है।
उपन्यास के पात्र आदर्श और यथार्थ के बीच भूल-भुलैंया में फँसे प्रतीत होते हैं। वे कोई एक दिशा ग्राहण नहीं कर पाते। नायिका रत्ना प्रेम प्रसंग में दुर्बल होकर प्रेमी से संबंध बना बैठती है, फिर पुत्र को जन्म देकर भी दूर रखती है। पिता के न रहने पर परिवार को सँभाल कर पिता के कर्तव्य निभाती है पर दीपक के प्रति अनुराग भाव उसके चरित्र की कमजोरी है। दीपक के कथाप्रवेश का उद्देश्य अस्पष्ट है। यदि वह रत्ना की मदद करने आया तो प्रेम पथ पर पग रखना भटकाव है, यदि वह रत्ना से विवाह करने आया तो असफल रहा। रत्ना के पिता पारिवारिक दबाव में अपनी प्रेमिका से विवाह नहीं करते पर जीवन के सबसे बड़ी संकट में उसी की शरण में जाते हैं। रत्ना का बहनोई तथा प्रतिस्पर्धी व्यापारी मिलानी समाज के दुर्बल चेहरे हैं जो मलिनता के पर्याय हैं। अपर्णा की कर्मठता, मीरा का सत्परामर्श पासी आंटी का निस्वार्थ प्रेम अनुकरणीय है।
मनुष्य के जीवन में आदर्श-यथार्थ, सुख-दुख की गंगो-जमुनी धारा सतत प्रवाहित होती है, उपन्यास अधूरा मन के मुख्य पात्र और घटनाएँ यही प्रतिपादित करती हैं। कृतिकार ने चरित्रों और घटनाओं का नियामक नहीं, सहभागी बनकर उन्हें विकसित होने दिया है। इससे कथा शैथिल्य तथा विभ्रम की प्रतीति होती है पर रोचक संवादों व आकस्मिक घटनाओं में पाठक मन बँधा रहता है। डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे वरिष्ठ और समग्र जीवनदृष्टि में विश्वास रखनेवाली लेखिका हैं। वे वैचारिक प्रतिबद्धता, स्त्री-दलित विमर्शादि राजनैतिक दिशाहीन एकांगी लेखन की पक्षधर नहीं हैं। अपने वैयक्तिक जीवन में परोपकार वृत्ति को जी रही लेखिका के पात्र पासी आंटी, मीरा, अपर्णा, रत्ना, प्रदीप, दीपक आदि के क्रिया कलाप बहुधा परोपकार भावना से संचालित होते हैं। सतसाहित्य वही है जो समाज में असत्-अशिव-असुंदर के सरोवर में सत्-शिव-सुंदर कमल पुष्प खिलाते रहे। अधूरा मन इसी दिशा में उठाया गया रचनात्मक कदम है जो समीक्षकों को कम, पाठक को अधिक पसंद आयेगा।
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