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बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

laghukatha kalash

लघुकथा कलश:






















कीर्ति ध्वज
फहरा रहा है
लघुकथा कलश...
*
कर रहा है योग राज, सकल हिंद पर
नमन प्रभाकर बिखेर, प्रभा हिंद पर
कल्पना की अल्पना से लघुकथा आँगन
हुआ शोभित, ताज हिंदी सजा हिंद पर
मेघा सा
घहरा रहा है
लघुकथा कलश...
*
कमल पुष्पा, श्री गणेश यज्ञ का हुआ
हो न सीमा सृजन की, है विज्ञ की दुआ
चंद्रेश राधेश्याम लता लघुकथा की देख
'हो अशोक' कह रहे हैं, बाँटकर पुआ
था, न अब
ठहरा रहा है
लघुकथा कलश
*
मिथिलेश-अवध संग करें भगीरथ प्रयास
आदित्य का आशीष है, गुरमीत का हुलास
बलराम-राम को न भूल आच्छा-मुकेश
पीयूष उदयवीर का संजीव सह प्रवास
संदीप हो
मुस्का रहा है
लघुकथा कलश
***
मेघा हो गंभीर तो, बिजली गिरती खूब
चंचल हो तो जल बरस, कहता जाओ डूब.
जाएँ तो जाएँ कहाँ हम?
कल्पना से निकले दम

कोइ इते आओ री!, कोइ उते जाओ री!
नोनी दुलनिया हे समझाओ री!
*
साँझा परे से जा सोबे खों जुटी
काम-धंधा छोर दैया! खाबे खों जुटी
तन्नाक तो कोई आके देख जाओ री!
*
जैसे-तैसे तो

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

manav aur lahar

एक रचना : मानव और लहर संजीव * लहरें आतीं लेकर ममता, मानव करता मोह क्षुब्ध लौट जाती झट तट से, डुबा करें विद्रोह * मानव मन ही मन में माने, खुद को सबका भूप लहर बने दर्पण कह देती, भिक्षुक! लख निज रूप * मानव लहर-लहर को करता, छूकर सिर्फ मलीन लहर मलिनता मिटा बजाती कलकल-ध्वनि की बीन * मानव संचय करे, लहर ने नहीं जोड़ना जाना मानव देता गँवा, लहर ने सीखा नहीं गँवाना * मानव बहुत सयाना कौआ छीन-झपट में ख्यात लहर लुटाती खुद को हँसकर माने पाँत न जात * मानव डूबे या उतराये रहता खाली हाथ लहर किनारे-पार लगाती उठा-गिराकर माथ * मानव घाट-बाट पर पण्डे- झण्डे रखता खूब लहर बहाती पल में लेकिन बच जाती है दूब * 'नानक नन्हे यूँ रहो' मानव कह, जा भूल लहर कहे चंदन सम धर ले मातृभूमि की धूल * 'माटी कहे कुम्हार से' मनुज भुलाये सत्य अनहद नाद करे लहर मिथ्या जगत अनित्य * 'कर्म प्रधान बिस्व' कहता पर बिसराता है मर्म मानव, लहर न भूले पल भर करे निरंतर कर्म * 'हुईहै वही जो राम' कह रहा खुद को कर्ता मान मानव, लहर न तनिक कर रही है मन में अभिमान * 'कर्म करो फल की चिंता तज' कहता मनुज सदैव लेकिन फल की आस न तजता त्यागे लहर कुटैव * 'पानी केरा बुदबुदा' कह लेता धन जोड़ मानव, छीने लहर तो डूबे, सके न छोड़ * आतीं-जातीं हो निर्मोही, सम कह मिलन-विछोह लहर, न मानव बिछुड़े हँसकर पाले विभ्रम -विमोह *

मुक्तिका

दोहा मुक्तिका
*
खुद से खुद मिलते नहीं, जो वे हैं मशहूर।
हुए अकेले मर गए, थे कमजोर हुजूर।।
*
जिनको समझा था निकट, वे ही निकले दूर।
देख रहा जग बदन की, सुंदरता भरपूर।
*
मन सुंदर हो, सबल हो, लिए खुदाई नूर।
शैफाली सा महकता, पल-पल लिए सुरूर।।
*
नेह नर्मदा 'सलिल' है, निर्मल विमल अथाह।
शिला संग पर रह गई, श्यामल हो मगरूर।।
*
कल न गंवाएं व्यर्थ कर, कल की चिंता आप।
किलकिल तज कलकल करें, रहें न खुद से दूर।।
***

geet

गीत-
आ! दुख को तकिया कर,
यादों को बिस्तर कर,
खुशियों के हो लें हम।
*
जब-जब खाई ठोकर,
तब-तब भूलें रोकर।
उठें-बढ़ें, मंजिल पा-
सपने नव बोलें हम।
*
मौज, मजा, मस्ती ही
ज़िंदगी नहीं होती।
चलो! श्रम, प्रयासों की-
राहें हँस खोलें हम।
*
तू-मैं को बिसराकर,
आजा हम हो जाएँ।
तू-तू-मैं-मैं भूलें-
स्नेह-प्रेम घोलें हम।
*
बीजे शत उगने दें,
अंकुर हर बढ़ने दें।
पल्लव हों कली-पुष्प-
फल पाएँ तौलें हम।
*
गुल सूखे थामे तू,
खत पीला बाँचूं मैं 
फिर जी लें यादो को-
चिर निद्रा हो लें हम।
***
२७.२.२०१८

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

muktika

एक व्यंग्य मुक्तिका
*
छप्पन इंची छाती की जय
वादा कर, जुमला कह निर्भय
*
आम आदमी पर कर लादो
सेठों को कर्जे दो अक्षय
*
उन्हें सिर्फ सत्ता से मतलब
मौन रहो मत पूछो आशय
*
शाकाहारी बीफ, एग खा
तिलक लगा कह बाकी निर्दय
*
नूराकुश्ती हो संसद में
स्वार्थ करें पहले मिलकर तय
*
न्यायालय बैठे भुजंग भी
गरल पिलाते कहते हैं पय
*
कविता सँग मत रेप करो रे!
सीखो छंद, जान गति-यति, लय
***

doha

दोहा सलिला
*
कालीपद में मुक्ति है, मत होना मन दूर
श्वास-श्वास बजता रहे, आसों का संतूर
*
लता-कुञ्ज में बैठकर, दोहा रच ले एक
हों प्रसन्न माँ शारदा, जाग्रत करें विवेक
*
इन्द्रप्रस्थ में आ बसे, सुरपुर छोड़ सुरेश
खोज रहे सुर हैं कहाँ, छिपे भाग देवेश?
*
ट्रस्टीशिप सिद्धांत लें, पूँजीपति यदि सीख
सबसे आगे सकेगा, देश हमारा दीख
*
लोकतंत्र में जब न हो, आपस में संवाद
तब बरबस आते हमें, गाँधी जी ही याद
*
क्या गाँधी के पूर्व था, क्या गाँधी के बाद?
आओ! हम आलकन करें, समय न कर बर्बाद
*
आम आदमी सम जिए, पर छू पाए व्योम
हम भी गांधी को समझ, अब हो पाएं ओम
*
कहें अतिथि की शान में, जब मन से कुछ बात
दोहा बनता तुरत ही, बिना बात हो बात
*
समय नहीं रुकता कभी, चले समय के साथ
दोहा साक्षी समय का, रखे उठाकर माथ
*
दोहा दुनिया का सतत, होता है विस्तार
जितना गहरे उतरते, पाते थाह अपार
*

रविवार, 25 फ़रवरी 2018

dr. rohitashva asthana

लेख:
हिंदी ग़ज़ल के शलाका पुरुष डॉ. रोहिताश्व अस्थाना 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
डॉ. रोहिताश्व अस्थाना के लिए इमेज परिणामविश्व वाणी हिंदी ने सुरवाणी संस्कृत से शब्द-भण्डार, व्याकरण और पिंगल ग्रहण कर उसे अपने रंग में ढाल लिया है। फलत:, हिंदी को छंदों का विराट कोष मिल गया है। संस्कृत के अनुष्टुप छंदों में कम-अधिक ध्वनि-खण्डों के श्लोकों को सस्वर पढ़ने की जो वादिक परंपरा है वैसी विश्व की किसी अन्य भाषा में नहीं है। द्विपदिक श्लोकों में लघु-गुरु उच्चार के आधार को सामान वर्ण के तुकांत में परिवर्तित कर गीति-काव्य की जिस विधा ने लोकप्रियता पाई उसे फारसी में ग़ज़ल कहा गया। संस्कृत के छंदों को उच्चार के अनुसार फारसी शब्द-ध्वनियों में ढालकर रुक्न और बह्र का विकास हुआ। कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है। देश के पराभव काल में आक्रान्ता मुग़ल सैनिकों और पराजित भारतीय सैनिकों, श्रमिकों, किसानों के मध्य बात-चीत से क्रमश: लश्करी (सैन्य शिविर में बोले जाने वाली भाषा), रेख्ता ( फारसी प्रधान मिश्रित भाषा) और उर्दू (छावनी में बोली जानेवाली भारतीय शब्द प्रधान भाषा) का विकास हुआ। मुग़ल सत्ता का प्रिय बनने के लिए उनकी भाषा सीखने का दौर आया तो फ़ारसी की अन्य काव्य विधाओं की तुलना में सरल होने के कारण ग़ज़ल का भारतीयकरण हुआ किंतु उर्दू विद्वानों ने इसे पसंद नहीं किया। ग़ालिब ग़ज़ल को 'कोल्हू का बैल' और 'तंग गली' जैसे विशेषणों से नवाज़ते रहे। विधि कि विडम्बना यह कि ग़ालिब ने जो गज़लें हलके-फुल्के मनोरंजन के लिए लिखीं उनसे वे जाने जा रहे हैं जबकि उनके द्वारा किये गए गंभीर कार्य की चर्चा नहीं होती।  

भारतीय ग़ज़ल अरबी-फारसी के प्रभाव से धीरे-धीरे मुक्त होकर उर्दू ग़ज़ल के रूप में विकसित हुई जिसका विधान (रुक्न, बह्र, काफिया-रदीफ़ आदि संबंधी नियम और शब्दावली) आज भी मूल से प्रेरित है। स्वतंत्रता के आन्दोलन में हिंदी द्वारा निभाई गयी भूमिका ने उसे देश की सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा बना दिया। फलत: साहित्य की अन्य विधाओं की तरह ग़ज़ल ने भी हिंदी को आत्मसात कर लिया। हिंदी ग़ज़ल को हाशिए से पुख्य पृष्ठ पर लाने में  महती भूमिका निभानेवाले डॉ. रोहिताश्व अस्थाना समर्पण की अद्भुत मिसाल हैं। १ दिसंबर १९४९ को अटवाअली मरदानपुर जिला हरदोई उ. पर. में जन्में रोहिताश्व जी ने एम. ए. हिंदी, बी. एड. करने के पश्चात्अवध की सरजमीं पर लखनऊ के समीप हरदोई जैसे कसबे में रहते हुए भी बाल साहित्य के साथ-साथ हिंदी ग़ज़ल में महत्वपूर्ण रचनाओं का प्रणयन तथा शोध परक कार्य किया। उनके शोधकार्य 'हिंदी ग़ज़ल: उद्भव और विकास' १९८५ में पूर्ण तथा १९८७ में सुनील साहित्य सदन, दरियागंज नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुआ। 

शोध ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में काव्य में ग़ज़ल के स्थान, ग़ज़ल की व्युत्पत्ति, परिभाषा, व्यापकता, प्रकृति, स्वरूप, प्रेमाभिव्यक्ति, तीवारानुभुती, संप्रेशानीयता, मैद्रिगाल तथा सोंनेट छंदों से सामीप्य, नव नामकरण आदि बिन्दुओं पर बिना किसी पूरवाग्रह के विचार किया गया है। अध्याय २ में हिंदी ग़ज़ल की पृष्ठ भूमि में उर्दू-फारसी ग़ज़लों की बुनावट, भाषा, शिल्प-विधान, संक्षिप्त इतिहास, अन्य काव्य शैलियों से अंतर आदि महत्वपूर्ण विषयों पर सुस्पष्ट जानकारी हैं। तृतीय अध्याय में हिंदी में ग़ज़ल विधा के औचित्य, उर्दू ग़ज़ल के प्रभाव, हिंदी ग़ज़ल के जन्मदाताओं (खुसरो, कबीर) व काल का निर्धारण जैसे प्रसंगों पर प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध कराई की गई है। चौथे अध्याय में हिंदी ग़ज़ल के वर्ण्य विषय, हिंदी ग़ज़ल में जीवन-दर्शन, विकास-यात्रा तथा काल विभाजन जैसे महत्वपूर्ण बिंदु समाहित हैं। पाँचवे अध्याय में आलोचना के निकष पर हिंदी ग़ज़लकारों डॉ. बशीर बद्र, अमीक हनफी, बेकल उत्साही, शमशेर बहादुर सिंह,  दुष्यंत कुमार, सूर्यभानु गुप्त, चंद्रसेन विराट, शेरजंग गर्ग, रामावतार त्यागी, बालस्वरूप रही, रूद्र काशिकेय, आदि के ग़ज़ल साहित्य का सम्यक-समीचीन विश्लेषण करने के साथ उस समय हिंदी ग़ज़ल के नव हस्ताक्षरों अजय प्रसून, अंजना संधीर, अवधनारायण मुद्गल, डॉ. उर्मिलेश, ओंकार गुलशन, केदारनाथ कोमल, डॉ, गिरिराजशरण अग्रवाल, ज़हीर कुरैशी, तारादत्त निर्विरोध, धंनजय सिंह, डॉ. नरेंद्र वशिष्ठ, डॉ. नरेश, पुरषोत्तम मिश्र मधुप, नीर शबनम, बालकृष्ण गर्ग,  माहेश्वर तिवारी, योगेन्द्र दत्त शर्मा, रऊफ परवेज़, रमेश राज, राजकुमारी रश्मि, राजेश मेहरोत्रा, रामकुमार कृषक, रामगोपाल परदेशी, रामबहादुर सिंह भदौरिया, रामावतार चेतन, प्रो. राम स्वरुप सिन्दूर, रोहिराश्व अस्थाना, विकल सामंती, विजयकिशोर मानव, प्रो विद्यासागर वर्मा, शिव ॐ अम्बर, श्याम बेबस, सरोजिनी अग्रवाल, रामसिंह शलभ, ज्ञानवती सक्सेना आदि के अवदान का उल्लेख किया है। यह अस्थाना जी के औदार्य और दूरदृष्टि का प्रमाण है कि इनमें से अनेक हस्ताक्षर अब तक हिंदी ग़ज़ल के विकास हेती सक्रिय हैं। छठवा अध्याय हिंदी ग़ज़ल के शिल्प-विधान, तथा उर्दू-फारसी ग़ज़ल से साम्य और वैषम्य (भाषा, छंद, अलंकार, रस-परिपाक, काव्य-दोष, तुलनात्मक अध्ययन) से समृद्ध है।  सातवें अध्याय में हिंदी ग़ज़ल की संभावनाएं व भविष्य, उन्नयन में पात्र-अत्रिकाओं क योगदान का उल्लेख है। परिशिष्ट के अंतर्गत हिंदी चलचित्रों में ग़ज़ल, तथा सन्दर्भ ग्रंथों का समावेशन है। सारत: यह शोध ग्रन्थ औपचारिकता का निर्वहन न होकर गहन अध्ययन,  गवेषणापूर्ण तुलनात्मक मनन-चिंतन से प्राप्त निष्कर्षों से समृद्ध है। हिंदी ग़ज़ल के नए हस्ताक्षर यदि इस ग्रन्थ का अध्ययन करने के बाद कलम चलायें तो न केवल उनके लेखन का स्तर उन्नत होगा अपितु दोषमुक्त भी होगा।   

डॉ.रोहिताश्व अस्थाना जी महाविद्यालयीन शिक्षण कार्य के सम्नातर सतत साहित्य सृजन करते रहे हैं। उनके शताधिक शोध परक लेख उस समय की प्रतिनिधि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। उनकी प्रकाशित पुस्तकें बाँसुरी विस्मित है (हिंदी ग़ज़ल संग्रह), जलतरण बजते हैं (प्रणयगीत), माटी की गंध तथा चाँदी की चूड़ियाँ उपन्यास तथा जय इंदिरा खंडकाव्य हैं। रोहिताश्व जी ने अपने लेखन पर नवोदितों के मार्गदर्शन को वरीयता दी। नई पीढ़ी को हिंदी ग़ज़ल ही नहीं हिंदी भाषा और साहित्य के उन्नयन के प्रति प्रेरित करने में आपका सानी नहीं है। चार दशकों तक हरदोई का नाम डॉ. अस्थाना के महत्वपूर्ण अवदान एक कारण समूचे साहित्य जगत में समादृत होता रहा। हिंदी ग़ज़ल पर सर्व प्रथम शोध करने के अतिरिक्त हिंदी ग़ज़लकारों की नई पीढ़ी तैयार करने के उद्देश्य से उनहोंने हिंदी ग़ज़ल पंचदशी के पाँच भाग सम्पादित प्रकाशित किए। इस श्रृंखला के अंतर्गत १९९७ में भाग १ में आसी पुरनावी, उषा यादव, डॉ. जयश्री शर्मा, जितेन्द्र धीर, डॉ, दयाशंकर शुक्ल 'सजग', दिनेश शुक्ल, डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, डॉ. योग्रन्द्र नक्षी, डॉ. रविन्द्र उपाध्याय, डॉ. राकेश सक्सेना, डॉ, रामसनेही लाल शर्मा, वीरेंद्र हमदम, शिवकुमार पराग, सागर मीरजापुरी तथा सूर्यदेव पाठक 'पराग' जोसे हस्ताक्षर है। इनमें से सागर मीराजुरी ने बाद में गज़लपुर, नव गज़लपुर, तथा गीतिकायनम नाम से हिंदी ग़ज़ल पर तीन शोधपरक ग्रन्थ प्रकाशित किए हैं।  वर्ष १९९ में प्रकाशित भाग २ में अकिलेश श्रीवास्तव 'चमन;, डॉ. अजरा खान 'नूर', डॉ. अपर्णा चतुर्वेदी 'प्रीता', डॉ. आदर्श मिश्र, उमाशंकर शुक्ल 'आलोक', डॉ. ऋषिपाल धीमान 'ऋषि', कपिलदेव कल्याणी, डॉ. कमर खां 'वहम', कमल प्रसाद 'कमल', चंद्रपाल शर्मा 'शीलेश', डॉ. रेनू चन्द्र, शिवनंदन सिंह, डॉ. श्याम सनेही लाल शर्मा, श्रीपति विषपायी तथा सूरज 'मृदुल' हैं। इस कड़ी का भाग ३ वर्ष २००० में अब्बास खान 'संगदिल', डॉ. अशोक गुलशन, उपेन्द्र प्रसाद सिंह, डॉ. ओमप्रकाश सिंह, डॉ. कमलेश शर्मा, डॉ. गणेश दत्त सारस्वत, डॉ. टेकचंद गुलाटी, बद्री विशाल तिवारी, मयंक अवस्थी, रमेश माहेश्वरी, रवीन्द्र प्रभात, राजेंद्र कुमार, राजेश मिश्र 'सूरज', विनोद उइके' दीप' तथा शशि जोशी हैं। भाग चार वर्ष २००१ में आया जिसमें अशोक गीते (बाद में ज्ञानपीठ पुरस्कृत), आचार्य भगवत दुबे, आनंद सिंह आनंद, गोपीनाथ कालभोर, दिलीप सिंह 'दीपक', पवन शर्मा, पूर्णेंदु कुमार सिंह, बृजकिशोर पटेल, मनमोहन शील, राजा चौरसिया, रामशंकर मिश्र 'पंकज;, शिव उदयभान सिंह चंदेल 'सार्थ', डॉ. शंकर मोहन झा, डॉ. सुनील अग्रवाल तथा सुभाष चंद्र वर्मा 'सुभाष' हैं। इस क्रम के अंतिम पाँचवे भाग २००३ में डॉ. दिनेश यादव, भानुमित्र, डॉ. ममता आशुतोष शर्मा, डॉ. राजकुमारी शर्मा 'राज', राजनारायण चौधरी, रामसनेही कनौजिया 'स्नेही', रंजना श्रीवास्तव 'रंजू', लक्ष्मी खन्ना 'सुमन', लक्ष्मी नारायण शर्मा 'साधक', डॉ. सादिका नवाब 'सहर', डॉ. साधना शुक्ल, सुरेशचन्द्र वर्मा 'मधुप', डॉ. सूर्यप्रकाश अष्ठाना 'सूरज', सोहन लाल 'सुबुद्ध' तथा ज्ञानेंद्र मोहन 'ज्ञान' सम्मिलित हुए। इन संकलनों के महत्त्व का अनुमान पद्म श्री नीरज द्वारा आशीष वचन दिए जाने तथा क्रमश: डॉ कुंवर बेचैन, माधव मधुकर, डॉ. उर्मिलेश, डॉ. अनंतराम मिश्र 'अनंत' व डॉ. शिव ॐ 'अम्बर' द्वारा विस्तृत भूमिकाएं लिखे जाने व देश के जाने-माने साहित्यिक हस्ताक्षरों डॉ. रामप्रसाद मिश्र, चंद्रसेन विराट, डॉ. उर्मिलेश, कृष्णानंद चौबे, अशोक अंजुम, मधुकर गौड़, शशि जोशी, ज़हीर कुरेशी, जानकी वल्लभ शास्त्री, डॉ. तारादत्त निर्विरोध, डॉ. महर्न्द्र कुमार अग्रवाल, डॉ. आकुल, डॉ. गिरिजा शंकर त्रिवेदी, डॉ. जगदीश प्रसाद श्रीवास्तव, जीवन मेहता, डॉ. यतीन्द्र तिवारी, डॉ. वर्डप्रकाश अमिताभ, शिव ॐ अम्बर, सुरेन्द्र चतुर्वेदी, कमलेश्वर, पद्मश्री चिरंजीत, सुरेश नीरव, सुलेखा पाण्डेय, दीक्षित दिन्कौरी व रसूल अहमद सागर  द्वारा प्रेषित समीक्षाओं व प्रतिक्रियाओं से जाना जा सकता है।

वर्ष २००७-०८ में पुनः 'हिंदी ग़ज़ल के कुशल चितेरे भाग १ में डॉ. अस्थाना ने २२ हिंदी ग़ज़लकारों डॉ. अजय जन्मेजय, उपेन्द्र प्रसाद सिंह, उषा यादव 'उषा', कपिल देव कल्याणी, गोपाल कृष्णा सक्सेना 'पंकज', दिनेश कुमार मिश्र 'स्नेही', डॉ. मधु भारतीय, मधुकर शैदाई, मधुकर अष्ठाना, डॉ. योगेन्द्र बक्शी, रमेश चंद्र श्रीवास्तव, रमेश माहेश्वरी, राजेंद्र व्यथित, लक्ष्मीनारण शर्मा 'साधक', विज्ञानव्रत, वीरेंद्र मृदु, वीरेन्द्र हमदम, डॉ. शंकर मोहन झा, डॉ. स्वदेश कुमार भटनागर, सागर मीरजापुरी, डॉ. सादिक नवाब 'सहर तथा सूर्यदेव पाठक 'पराग' की प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन सम्पादित-प्रकाशित किया। वर्ष २०१६ में डॉ. अस्थाना ने डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल के सहयोग से ७१ सरस्वती वन्दनाओं का संकलन सम्पादित-प्रकाशित किया जसमें देश के कोने-कोने से श्रेष्ठ कवियों की रचनाएँ हैं। वर्ष २०१७ में पुन: हिंदी ग़ज़लों का संग्रहणीय संकलन 'चुनी हुई हिंदी गज़लें' शीर्षक से डॉ. अस्थाना के संपादन में प्रकाशित हुआ. इसमें ४० रचनाकारों की प्रतिनिधि हिंदी गज़लें सम्मिलित हैं। इस महत्वपूर्ण कृति में भूमिका आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' व चंद्रसेन विराट द्वारा लिखी गयी है। डॉ. रोहिताश्व अस्थाना के बाल साहित्य पर अगर के डॉ. शेषपाल सिंह 'शेष; द्वारा शोध कार्य किया जा चुका है किंतु हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में किये गए कालजयी अवदान पर शोध किया जाना शेष है। 

डॉ. अस्थाना को वर्ष १९८४ में महीयसी महादेवी वर्मा द्वारा  पुरस्कृत किया गया। वे उ.प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान से अलंकृत किए गए। उन्हें दर्जनों अन्य पुरस्कार एवं सम्मान समय-समय पर प्राप्त होते रहे हैं।  ऐकान्तिका, निकट बावन चुंगी चौराहा, हरदोई-241001 (उ.प्र.) मोबाइल: 07607983984 में वार्धक्य तथा रोगों से जीर्ण-शीर्ण हो चुके शरीर तथा दोनों पुत्रों के अन्यत्र पदस्थ होने से उपजे एकाकीपन से जूझते-लड़ते डॉ, रोहिताश्व अस्थाना का घर साहित्य के मंदिर की तरह है। उनके पास महत्वपूर्ण पुस्तकों का महत संकलन है। उनकी चिंता पुस्तकों को किसी ऐसे स्थान पर पहुँचाने की है जहाँ शोध छात्र इनका उपयोग कर सकें। डॉ. रोहिताश्व अस्थाना हिंदी ग़ज़लों तथा हिंदी बाल साहित्य के ऐसे हस्ताक्षर हैं जिन्हें प्रदेश और राष्ट्रीय सरकारों द्वारा उनके महत्वपूर्ण अवदान को देखते हुए सम्मानित-पुरस्कृत किया जाना चाहिए। लखनऊ विश्ववद्यालय को उनके ऊपर अधिक से अधिक शोध कार्य करे जाने जाना चाहिए। हिन्दी ग़ज़ल को वर्तमान  मुकाम पर पहुँचाने वाले हस्ताक्षरों में डॉ. रोहिताश्व अस्थाना का स्थान  अनन्य है। वे शतायु हों और हिंदी के सारस्वत कोष की श्रीवृद्धि करते रहें।     
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संपर्क: विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, 
salil.sanjiv@gmailcom, ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४, www.divyanarmada.in  

doha

दोहा
धरती मैया निरुपमा, धरती रूप अनूप
कभी किसी की कब हुई?, मरे जीत कर भूप
*
दोहे की महिमा अमित, कहते युग का सत्य
जो रचता संतुष्ट हो, मंगलकारी कृत्य
*
जीवन जी वन में कभी, देख जानवर मीत
कभी न माँगे जान वर, कोशिश करना रीत
*
होली हो ली, हो रही, होगी मानो मीत 
उन्मन तन-मन शांत हों, फागुन में कर प्रीत 
*
  

doha kanta roy

दोहे- कांता रॉय 1. सुरा-पान ने कर दिया, कैसा तन का हाल हड्डी का ढाँचा बचा, पिचके सुन्दर गाल 2. दीन भटकता फिर रहा, अस्पताल में रीस खाने को रोटी नहीं, डॉक्टर माँगे फीस 3. सिगरेट फूँकी, सुरा पी, करता खुद से द्वेष अपनों का बैरी बना, करता नित्य कलेश 4. वायु सोखती प्रदूषण, पानी सोखे कीच मानव दुर्गुण सोखता, जीवन खींचमखींच 5. देख रूपैया मनुज भी, मन बिहुँसाये आप ज्यों कुत्ते के दिन फिरे, बने बाप के बाप
6.मृगतृष्णा जीवन-तृषा, कब पूरी हो आस?
जब तक तन में प्राण है, कब मिटती है प्यास?? 7.पानी तन की चाह है, पानी जीवन-राह पानी जीवन-सखा है, कौन गह सका थाह? 8. सूखी धरती राम की, सूखा हरि का गाँव पानी को मनु छल रहा, शेष न तरु की छाँव 9. गली-गली में लग गई, हैंडपम्प -तस्वीर बाहर कब तस्वीर से, आएगी तकदीर 10. बोतल-पानी पिलाती, नदी पाट सरकार आटा गीला हो रहा, मचता हाहाकार 11. खोज रहे हर दिशा में, बूँद-बूँद हम नीर टाल-तलैया पूरकर, बढ़ा रहे खुद पीर 12. जीव-जीव में प्रभु बसे, मानव का है धर्म दो अनाथ को आसरा, कर लो कुछ सत्कर्म
13. देव पधारे महल में, करें आरती भक्त देख दक्षिणा पुजारी, हुए अधिक अनुरक्त 14. प्याला पीकर प्रेम का, मधुशाला हो देह देख रही सुख नशे में, बिसरा मन का नेह 15. करे आचरण दोगला, बन पाखंडी संत मुँह में राम बगल रखे, छुरी बचाए कंत 16. होली पर्व अबीर का, खेलें सब चहुँ ओर काला रंग कलेश का, मत डालो बल-जोर 17. फागुन मौसम प्रीत का, बहे बसंत बयार पिचकारी ले हाथ में, प्रीतम है तैयार 18. फागुन गाए ताल दे, नाचे मन का मोर आया प्रियतम पाहुना, जिया धड़कता जोर 19. लड़ जीवन-संग्राम नित, बिन भला बिन तीर लड़ते-लड़ते जो जयी, वही सिकंदर वीर
२०.
मधुरम-मधुरम प्रेम है, जग-जीवन का सार
चख ले बंदे प्रेम रस, शेष सभी निस्सार
२१.
कौआ-कोयल श्याम हैं, श्यामल प्रीतम मौन
श्याम नयन कर चार चुप, बातें मन का काला चोर
नैनों से करें कन्हैया प्रीत की बतियाँ चार चार-चार में सोलह गुन-गुन काला जादू डार सुध-बुध खोकर राधा रोई लोक लाज सब त्याग यमुना तट पर पनघट पिघली सुन विरहा की राग राधा रोई पीपल रोया, रोया पेड़ कदम्ब वृंदावन में गैया रोयेे छूटे सब अवलम्ब


- : समकालिक दोहा संकलन- "दोहा दुनिया" : -


विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में समकालिक दोहकारों का प्रतिनिधि संकलन 'दोहा दुनिया १' शीघ्र ही प्रकाशित किया जा रहा है। संकलन में सम्मिलित प्रत्येक दोहाकार के १०० दोहे चित्र, संक्षिप्त परिचय (नाम, जन्म तिथि व स्थान, माता-पिता, जीवनसाथी के नाम, शिक्षा, लेखन विधा, प्रकाशित कृतियाँ, उपलब्धि, पूरा पता, चलभाष, ईमेल आदि) १० पृष्ठों में प्रकाशित किया जाएगा। हर सहभागी के दोहों की संक्षिप्त समीक्षा तथा दोहा पर आलेख भूमिका में होगा। संपादन वरिष्ठ दोहाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा किया जा रहा है। दोहे स्वीकृत होने पर प्रत्येक सहभागी को ३०००/- सहयोग राशि अग्रिम देना होगी। संकलन प्रकाशित होने पर विमोचन कार्यक्रम में हर सहभागी को सम्मान पत्र तथा ११ प्रतियाँ निशुल्क भेंट की जाएँगी। प्राप्त दोहों में आवश्यकतानुसार संशोधन का अधिकार संपादक को होगा। दोहे unicode में भेजने हेतु ईमेल- salil.sanjiv@gmail.com . चलभाष ७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४.
अब तक सम्मिलित किए गए सहभागियों के वर्ण क्रमानुसार नाम -
१. अनिल मिश्र २.अरुण अर्णव खरे ३. अरुण शर्मा ४. ओमप्रकाश शुक्ल ५. उदयभानु तिवारी मधुकर, ६.
४. छाया सक्सेना
५. जयप्रकाश श्रीवास्तव
६. बसंत शर्मा
७. मिथलेश बड़गैया
८. विजय बागरी
९. सुनीता सिंह
१०. सुरेश तन्मय, ११. छगनलाल गर्ग, १२. सरस्वती कुमारी, १२. लता यादव, १३. श्यामल सिन्हा, १४. प्रो. विशम्भर शुक्ला, १५. कांति शुक्ल. १६. उदयभानु तिवारी 'मधुकर', १७. आत्मप्रकाश
*



दोहे- कांता रॉय 1. सुरा-पान ने कर दिया, कैसा तन का हाल हड्डी का ढाँचा बचा, पिचके सुन्दर गाल 2. दीन भटकता फिर रहा, अस्पताल में रीस खाने को रोटी नहीं, डॉक्टर माँगे फीस 3. सिगरेट फूँकी, सुरा पी, करता खुद से द्वेष अपनों का बैरी बना, करता नित्य कलेश 4. वायु सोखती प्रदूषण, पानी सोखे कीच मानव दुर्गुण सोखता, जीवन खींचमखींच 5. देख रूपैया मनुज भी, मन बिहुँसाये आप ज्यों कुत्ते के दिन फिरे, बने बाप के बाप
6.मृगतृष्णा जीवन-तृषा, कब पूरी हो आस?
जब तक तन में प्राण है, कब मिटती है प्यास?? 7.पानी तन की चाह है, पानी जीवन-राह पानी जीवन-सखा है, कौन गह सका थाह? 8. सूखी धरती राम की, सूखा हरि का गाँव पानी को मनु छल रहा, शेष न तरु की छाँव 9. गली-गली में लग गई, हैंडपम्प -तस्वीर बाहर कब तस्वीर से, आएगी तकदीर 10. बोतल-पानी पिलाती, नदी पाट सरकार आटा गीला हो रहा, मचता हाहाकार 11. खोज रहे हर दिशा में, बूँद-बूँद हम नीर टाल-तलैया पूरकर, बढ़ा रहे खुद पीर 12. जीव-जीव में प्रभु बसे, मानव का है धर्म दो अनाथ को आसरा, कर लो कुछ सत्कर्म
13. देव पधारे महल में, करें आरती भक्त देख दक्षिणा पुजारी, हुए अधिक अनुरक्त 14. प्याला पीकर प्रेम का, मधुशाला हो देह देख रही सुख नशे में, बिसरा मन का नेह 15. करे आचरण दोगला, बन पाखंडी संत मुँह में राम बगल रखे, छुरी बचाए कंत 16. होली पर्व अबीर का, खेलें सब चहुँ ओर काला रंग कलेश का, मत डालो बल-जोर 17. फागुन मौसम प्रीत का, बहे बसंत बयार पिचकारी ले हाथ में, प्रीतम है तैयार 18. फागुन गाए ताल दे, नाचे मन का मोर आया प्रियतम पाहुना, जिया धड़कता जोर 19. लड़ जीवन-संग्राम नित, बिन भला बिन तीर लड़ते-लड़ते जो जयी, वही सिकंदर वीर २०. मधुरम-मधुरम प्रेम है, जग-जीवन का सार चख ले बंदे प्रेम रस, शेष सभी निस्सार २१. कौआ-कोयल श्याम हैं, श्यामल प्रीतम हाय! श्याम नयन से कर रहा, बातें मन का काला चोर
नैनों से करें कन्हैया प्रीत की बतियाँ चार चार-चार में सोलह गुन-गुन काला जादू डार सुध-बुध खोकर राधा रोई लोक लाज सब त्याग यमुना तट पर पनघट पिघली सुन विरहा की राग राधा रोई पीपल रोया, रोया पेड़ कदम्ब वृंदावन में गैया रोयेे छूटे सब अवलम्ब


मात्रा गणना नियम-
१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।
२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएं गिनी जाती हैंं।
३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।
४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि।
५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, क्षमा = १२ =३आदि।
६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, प्रिया १+२, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि।
८. हिंदी दोहाकार हिंदी व्याकरण नियमों का पालन करें।
९. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५आदि।
१०. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि।
११. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि।
हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है।
दोहा लिखना सीखिए;१. दोहा द्विपदिक छंद है। दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं।
२. हर पद में दो चरण होते हैं।
३. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
४. तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है।
५. विषम चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु हो तो लय भंग होने की संभावना कम हो जाती है।
६. सम चरणों के अंत में गुरु लघु मात्राएँ आवश्यक हैं।
७. हिंदी में खाय, मुस्काय, आत, भात, डारि जैसे देशज क्रिया रूपों का उपयोग न करें।
८. दोहा मुक्तक छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूर्ण हो जाना चाहिए।
९. श्रेष्ठ दोहे में लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता (मर्मबेधकता), आलंकारिकता, स्पष्टता, पूर्णता तथा सरसता होना चाहिए।
१०. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग न करें।
११. दोहे में कोई भी शब्द अनावश्यक न हो। हर शब्द ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा न कहा जा सके।
१२. दोहे में कारक का प्रयोग कम से कम हो।
१३. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें।
१४. दोहा सम तुकान्ती छंद है। सम चरण के अंत में समान तुक आवश्यक है।
१५. दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता।
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- : समकालिक दोहा संकलन- "दोहा दुनिया" : -

विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में समकालिक दोहकारों का प्रतिनिधि संकलन 'दोहा दिनकर १' शीघ्र ही प्रकाशित किया जा रहा है। संकलन में सम्मिलित प्रत्येक दोहाकार के १०० दोहे चित्र, संक्षिप्त परिचय (नाम, जन्म तिथि व स्थान, माता-पिता, जीवनसाथी के नाम, शिक्षा, लेखन विधा, प्रकाशित कृतियाँ, उपलब्धि, पूरा पता, चलभाष, ईमेल आदि) १० पृष्ठों में प्रकाशित किया जाएगा। हर सहभागी के दोहों की संक्षिप्त समीक्षा तथा दोहा पर आलेख भूमिका में होगा। संपादन वरिष्ठ दोहाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा किया जा रहा है। दोहे स्वीकृत होने पर प्रत्येक सहभागी को ३०००/- सहयोग राशि अग्रिम देना होगी। संकलन प्रकाशित होने पर विमोचन कार्यक्रम में हर सहभागी को सम्मान पत्र तथा ११ प्रतियाँ निशुल्क भेंट की जाएँगी। प्राप्त दोहों में आवश्यकतानुसार संशोधन का अधिकार संपादक को होगा। दोहे unicode में भेजने हेतु ईमेल- salil.sanjiv@gmail.com . चलभाष ७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४.
अब तक सम्मिलित किए गए सहभागियों के वर्ण क्रमानुसार नाम -
१. अनिल मिश्र
२.अरुण अर्णव खरे
३. अरुण शर्मा
४. छाया सक्सेना
५. जयप्रकाश श्रीवास्तव
६. बसंत शर्मा
७. मिथलेश बड़गैया
८. विजय बागरी
९. सुनीता सिंह
१०. सुरेश तन्मय, ११. छगनलाल गर्ग, १२. सरस्वती कुमारी, १२. लता यादव, १३. श्यामल सिन्हा, १४. प्रो. विशम्भर शुक्ला, १५. कांति शुक्ल. १६. उदयभानु तिवारी 'मधुकर', १७. आत्मप्रकाश
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मात्रा गणना नियम-
१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।
२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएं गिनी जाती हैंं।
३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।
४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि।
५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, क्षमा = १२ =३आदि।
६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, प्रिया १+२, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि।
८. हिंदी दोहाकार हिंदी व्याकरण नियमों का पालन करें।
९. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५आदि।
१०. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि।
११. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि।
हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है।


शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

shiv dohavalee

शिव-दोहावली
*
हर शंका को दूर कर, रख शंकर से आस.
श्रृद्धा-शिवा सदय रहें, यदि मन में विश्वास.
*
शिव नीला आकाश हैं, सविता रक्त सरोज
रश्मि-उमा नित नमन कर, देतीं जीवन-ओज
*
शिव जीवों में प्राण है, विष्णु जीव की देह
ब्रम्हा मति को जानिए, जीवन जिएँ विदेह
*
उमा प्राण की चेतना, रमा देह का रूप
शारद मति की तीक्ष्णता, जो पाए हो भूप
*
चिंतन-लेखन ब्रम्ह है, पठन विष्णु को जान
मनन-कहाँ शिव तत्व है, नमन करें मतिमान
*
अक्षर-अक्षर ब्रम्ह है, शब्द विष्णु अवतार
शिव समर्थ दें अर्थ तब, लिख-पढ़ता संसार
*
अक्षर की लिपि शारदा, रमा शब्द का भाव
उमा कथ्य निहितार्थ हैं, मेटें सकल अभाव
*
कलम ब्रम्ह, स्याही हरी, शिव कागज विस्तार
शारद-रमा-उमा बनें, लिपि कथ्यार्थ अपार
*
नव लेखन से नित्य कर, तीन-देव-अभिषेक
तीन देवियाँ हों सदय, जागे बुद्धि-विवेक
*
जो न करे रचना नई, वह जीवित निर्जीव
नया सृजन कर जड़ बने, संचेतन-संजीव
*
सविता से ऊर्जा मिले, ऊषा करे प्रकाश
वसुधा हो आधार तो, कर थामें आकाश
*
साथ सुनीता मति रहे, तभी मिले साफल्य
करे विनीता कोशिशें, भुला नहीं सारल्य
२३-२-२०१८

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

kruti charcha

कृति चर्चा:
'उम्र जैसे नदी हो गई' हिंदी गजल का सरस प्रवाह
- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
. [कृति विवरण: उम्र जैसे नदी हो गई, हिंदी ग़ज़ल / गीतिका संग्रह,  प्रो. विश्वंभर शुक्ल, प्रथम संस्करण, २०१७, आई एस बी एन  ९७८.९३.८६४९८.३७.३, पृष्ठ ११८, मूल्य २२५/-,  आवरण बहुरंगी, सजिल्द जैकेट सहित, अनुराधा प्रकाशन, जनकपुरी, नई दिल्ली, रचनाकार संपर्क ८४ ट्रांस गोमतीए त्रिवेणी नगर, प्रथम, डालीगंज रेलवे क्रोसिंग, लखनऊ २२६०२०, चलभाष ९४१५३२५२४६]
*  
. विश्ववाणी हिंदी का गीति काव्य विश्व की किसी भी अन्य भाषा की तुलना में अधिक व्यापक, गहन, उर्वर, तथा श्रेष्ठ है। इस कथन की सत्यता हेतु मात्र यह इंगित करना पर्याप्त है कि हिंदी में ३२ मात्रा तक के मात्रिक छंदों की संख्या ९२, २७, ७६३ तथा २६ वर्णों तक के वर्णिक छंदों की संख्या ६,७१,०८,८६४ है।  दंडक छंद, मिश्रित छंद, संकर छंद, लोक भाषाओँ के छंद असंख्य हैं जिनकी गणना ही नहीं की जा सकी है।  यह छंद संख्या गणित तथा ध्वनि-विज्ञान सम्मत है।  संस्कृत से छान्दस विरासत ग्रहण कर हिंदी ने उसे सतत समृद्ध किया है। माँ शारदा के छंद कोष को संस्कृत अनुष्टुप छंद के विशिष्ट शिल्प के अंतर्गत समतुकांती  द्विपदी में लिखने की परंपरा के श्लोक सहज उपलब्ध हैं।  संस्कृत से अरबी-फारसी ने यह परंपरा ग्रहण की और मुग़ल आक्रान्ताओं के साथ इसने भारत में प्रवेश किया।  सैन्य छावनियों व बाज़ार में लश्करी, रेख्ता और उर्दू के जन्म और विकास के साथ ग़ज़ल नाम की यह विधा भारत में विकसित हुई किंतु सामान्य जन अरबी-फारसी के व्याकरण-नियम और ध्वनि व्यवस्था से अपरिचित होने के कारण यह उच्च शिक्षितों या जानकारों तक सीमित रह गई।  उर्दू के तीन गढ़ों में से एक लखनऊ से ग़ज़ल के भारतीयकरण का सूत्रपात हुआ। 
.
. हरदोई निवासी डॉ. रोहिताश्व अस्थाना ने हिंदी ग़ज़ल पर प्रथम शोध ग्रन्थ 'हिंदी ग़ज़ल उद्भव और विकास' प्रस्तुत किया।  सागर मीराजपुरी ने गज़लपुर, नवग़ज़लपुर तथा गीतिकायनम के नाम से तीन शोधपरक कृतियों में हिंदी ग़ज़ल के सम्यक विश्लेषण का कार्य किया।  हिंदी ग़ज़ल को स्वतंत्र विधा के रूप में पहचान देने की भावना से प्रेरित रचनाकारों ने इसे मुक्तिका, गीतिका, तेवरी, अनुगीत, लघुगीत जैसे नाम दिए किंतु नाम मात्र बदलने से किसी विधा का इतिहास नहीं बदला करता। 

. हिंदी ग़ज़ल को महाप्राण निराला द्वारा प्रदत्त 'गीतिका' नाम से स्थापित करने के लिए प्रो . विश्वंभर शुक्ल ने अपने अभिन्न मित्र ओम नीरव के साथ मिलकर अंतरजाल पर निरंतर प्रयत्न कर नव पीढ़ी को जोड़ा।  फलत: 'गीतिका है मनोरम सभी के लिए' तथा 'गीतिकालोक' शीर्षक से दो महत्वपूर्ण कृतियाँ प्रकाशित हुईं जिनसे नई कलमों को प्रोत्साहन मिला। 
.
. विवेच्य कृति 'उम्र जैसे नदी हो गयी' इस पृष्ठभूमि में हिंदी छंदाधारित हिंदी ग़ज़ल की परिपक्वता की झलक प्रस्तुत करती पठनीय-मननीय कृति है।  गीतिका, रोला, वाचिक भुजंगप्रयात, विजात, वीर/आल्ह, सिंधु, मंगलवत्थु, दोहा, आनंदवर्धक, वाचिक महालक्ष्मी, वाचिक स्रग्विणी, जयकरी चौपाई, वर्णिक घनाक्षरी, राधाश्यामी चौपाई, हरिगीतिका, सरसी, वाचिक चामर, समानिका, लौकिक अनाम, वर्णिक दुर्मिल सवैया, सारए लावणी, गंगोदक, सोरठा, मधुकरी चौपाई, रारायगा, विजात, विधाता, द्वियशोदा, सुखदा, ताटंक, बाला, शक्ति, द्विमनोरम, तोटक, वर्णिक विमोहाए आदि छंदाधारित सरस रचनाओं से समृद्ध यह काव्य-कृति रचनाकार की छंद पर पकड़, भाषिक सामर्थ्य तथा नवप्रयोगोंमुखता की बानगी है।  शुभाशंसान्तर्गत प्रो . सूर्यप्रकाश दीक्षित ने ठीक ही कहा है: 'इस कृति में वस्तु-शिल्पगत यथेष्ट वैविध्यपूर्ण काव्य भाषा का प्रयोग किया गया है, जो प्रौढ़ एवं प्रांजल है....  कृति में विषयगत वैविध्य दिखाई देता है।  कवि ने प्रेम, सौन्दर्य, विरह-मिलन एवं उदात्त चेतना को स्वर दिया है।  डॉ. उमाशंकर शुक्ल 'शितिकंठ' के अनुसार इन रचनाओं में विषय वैविध्य, प्राकृतिक एवं मानवीय प्रेम-सौन्दर्य के रूप-प्रसंग, भक्ति-आस्था की दीप्ति, उदात्त मानवीय मूल्यों का बोध, राष्ट्रीय गौरव की दृढ़ भावनाएँ विडंबनाओं पर अन्वेषी दृष्टि, व्यंग्यात्मक कशाघात से तिलमिला देनेवाले सांकेतिक चित्र तथा सुधारात्मक दृष्टिकोण समाहित हैं।'
.
. 'गीतिका है मनोरम सभी के लिए' में ९० रचनाकारों की १८० रचनाओं के अतिरिक्त, दृगों में इक समंदर है तथा मृग कस्तूरी हो जाना दो गीतिका शतकों के माध्यम से इस विधा के विकास हेतु निरंतर सचेष्ट प्रो. विश्वंभर शुक्ल आयु के सात दशकीय पड़ाव पार करने के बाद भी युवकोचित उत्साह और ऊर्जा से छलकते हुए उम्र के नद-प्रवाह को इस घाट से घाट तक तैरकर पराजित करते रहते हैं।  भाव-संतरण की महायात्रा में गीतिका की नाव और मुक्तकों के चप्पू उनका साथ निभाते हैं।  प्रो. शुक्ल  के सृजन का वैशिष्ट्य देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप भाषा- शैली और शब्दों का चयन करना है।  वे भाषिक शुद्धता के प्रति सजग तो हैं किंतु रूढ़-संकीर्ण दृष्टि से मुक्त हैं।  वे भारत की उदात्त परंपरानुसार परिवर्तन को जीवन की पहचान मानते हुए कथ्य को शिल्प पर वरीयता देते हैं।  'कर्म प्रधान बिस्व करि राखा' और 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' की सनातन परंपरा के क्रम में वे कहते हैं- 
. 'कर्म के खग पंख खोलें व्योम तक विचरण करें  
. शिथिल हैं यदि चरण तब यह जीवनी कारा हुई 
. काटकर पत्थर मनुज अब खोजता है नीर को 
. दग्ध धरती कुपित यह अभिशप्तए अंगारा हुई
. पर्वतों को सींचता है देवता जब स्वेद से
. भूमि पर तब एक सलिला पुण्य की धारा हुई '
.
. जीवन में सर्वाधिक महत्व स्नेह का हैण् तुलसीदास कहते है-
. 'आवत ही हरसे नहींए नैनन नहीं सनेह 
. तुलसी तहाँ न जाइए कंचन बरसे नेह'

. शुक्ल जी इस सत्य को अपने ही अंदाज़ में कहते हैं. 
. 'आदमी यद्यपि कभी होता नहीं भगवान है 
. किंतु प्रिय सबको वही जिसके अधर मुस्कान है 
. सूख जाते हैं समंदर जिस ह्रदय में स्नेह के
. जानिए वह देवता भी सिर्फ रेगिस्तान है
. पाहनों को पूज लेताए मोड़ता मुँह दीन से 
. प्यार.ममता के बिना मानव सदा निष्प्राण हैण्
. प्रेम करुणा की सलिल सरिता जहाँ बहती नहीं
. जीव ऐसा जगत में बस स्वार्थ की दूकान है'

. प्रकृति के मानवीकरण ओर रूपक के माध्यम से जीवन-व्यापार को शब्दांकित करने में शुक्ल जी का सानी नहीं है. भोर में उदित होते भास्कर पर आल्हाध्वीर छंद में रचित यह मुक्तिका देखिए- 
. 'सोई हुई नींद में बेसुध, रजनी बाला कर श्रृंगार
. रवि ने चुपके से आकर के, रखे अधर पर ऊष्ण अंगार
. अवगुंठन जब हटा अचानक, अरुणिम उसके हुए कपोल
. प्रकृति वधूटी ले अँगड़ाई, उठी लाज से वस्त्र सँवार 
. सकुचाई श्यामा ने हँसकर, इक उपहार दिया अनमोल
. प्रखर रश्मियों ने दिखलाए, जी भर उसके रंग हजार
. हुआ तिरोहित घने तिमिर का, फैला हुआ प्रबल संजाल
. उषा लालिमा के संग निखरी, गई बिखेर स्वर्ण उपहार 
. प्रणय समर्पण मोह अनूठे, इनसे खिलती भोर अनूप 
. हमें जीवनी दे देता है, रिश्तों का यह कारोबार'  
.  
. पंचवटी में मैथिलीशरण जी गुप्त भोर के दृश्य का शब्दांकन देखें-
. 'है बिखेर देती वसुंधरा मोती सबके सोने पर 
. रवि बटोर लेता है उनको सदा सवेरा होनेपर 
. और विरामदायिनी अपनी संध्या को दे जाता है
. शून्य श्याम तनु जिससे उसका नया रूप झलकाता है'

दो कवियों में एक ही दृश्य को देखकर उपजे विचार में भिन्नता स्वाभाविक है किंतु शुक्ल जी द्वारा किए गए वर्णन में अपेक्षाकृत अधिक सटीकता और बारीकी उल्लेखनीय है। 

उर्दू ग़ज़ल के चुलबुलेपन से प्रभावित रचना का रंग अन्य से बिलकुल भिन्न है-
'हमारे प्यार का किस्सा पुराना है 
कहो क्या और इसको आजमाना है 
गज़ब इस ज़िंदगी के ढंग हैं प्यारे 
पता चलता नहीं किस पर निशाना है।' 
एक और नमूना देखें -
'फिर से चर्चा में आज है साहिब 
दफन जिसमें मुमताज है साहिब
याद में उनके लगे हैं मेले
जिनके घर में रिवाज़ है साहिब'  

भारतीय आंचलिक भाषाओँ को हिंदी की सहोदरी मानते हुए शुक्ल जी ने बृज भाषा की एक रचना को स्थान दिया है।  वर्णिक दुर्मिल सवैया छंद का माधुर्य आनंदित करता है-
करि गोरि चिरौरि छकी दुखियाए छलिया पिय टेर सुनाय नहीं 
अँखियाँ दुइ पंथ निहारि थकींए हिय व्याकुल हैए पिय आय नहीं 
तब बोलि सयानि कहैं सखियाँ ए तनि कान लगाय के बात सुनो 
जब लौं अँसुआ टपकें ण कहूँए सजना तोहि अंग लगाय नहीं 

ग्रामीण लोक मानस ऐसी छेड़-छाड़ भरी रचनाओं में ही जीवन की कठिनाइयों को भुलाकर जी पाता है। 

राष्ट्रीयता के स्वर बापू और  अटल जी को समर्पित रचनाओं के अलावा यत्र-तत्र भी मुखर हुए हैं-
'तोड़ सभी देते दीवारें बंधन सीमाओं के 
जन्मभूमि जिनको प्यारी वे करते नहीं बहाना 
कब-कब मृत्यु डरा पाई है पथ के दीवानों को 
करते प्राणोत्सर्ग राष्ट्र-हित गाते हुए तराना 
धवल कीर्ति हो अखिल विश्व में, नवोन्मेष का सूरज 
शस्य श्यामला नमन देश को वन्दे मातरम गाना' 

यदा-कदा मात्रा गिराने, आयें और आएँ दोनों क्रिया रूपों का प्रयोग, छुपे, मुसकाय जैसे देशज क्रियारूप खड़ी हिंदी में प्रयोग करना आदि से बचा जा सकता तो आधुनिक हिंदी के मानक नियमानुरूप रचनाएँ नव रचनाकारों को भ्रमित न करतीं। 

शुक्ल जी का शब्द भण्डार समृद्ध है।  वे हिंदीए संस्कृत, अंगरेजी, देशज और उर्दू के शब्दों को अपना मानते हुए यथावश्यक निस्संकोच प्रयोग करते हैं , कथ्य के अनुसार छंद चयन करते हुए वे अपनी बात कहने में समर्थ हैं-
'अब हथेली पर चलो सूरज उगाएँ
बंद आँखों में अमित संभावनाएँ
मनुज के भीतर अनोखी रश्मियाँ है 
खो गयी हैंए आज मिलकर ढूँढ लाएँ 
 एक सूखी झील जैसे हो गए मन
है जरूरी नेह की सरिता बहाएँ
आज का चिंतन मनन अब तो यही है
पेट भर के ग्रास भूखों को खिलाएँ 
तोड़ करके व्योम से लायें न तारे 
जो दबे कुचले उन्हें ऊपर उठाएँ' 

सारत: 'उम्र जैसे नदी हो गयी' काव्य-पुस्तकों की भीड़ में अपनी अलग पहचान स्थापित करने में समर्थ कृति है। नव रचनाकारों को छांदस वैविध्य के अतिरिक्त भाषिक संस्कार देने में भी यह कृति  समर्थ है।  शुक्ल जी का जिजीविषाजयी व्यक्तित्व इन रचनाओं में जहाँ-तहाँ झलक दिखाकर पाठक को मोहने में कोई कसर नहीं छोड़ता। 
==============
संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ७९९९५५९६१८, ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com, वेब: www.divyanarmada.in