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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

वाक्यांश हेतु शब्द, गीत, नवगीत, लघुकथा, सानेट, नव वर्ष

सॉनेट 
अलविदा
*
अलविदा उसको जो जाना चाहता है, तुरत जाए।
काम दुनिया का किसी के बिन कभी रुकता नहीं है?
साथ देना चाहता जो वो कभी थकता नहीं है।।
रुके बेमन से नहीं, अहसान मत नाहक जताए।।
कौन किसका साथ देगा?, कौन कब मुँह मोड़ लेगा?
बिना जाने भी निरंतर कर्म करते जो न हारें।
काम कर निष्काम,खुद को लक्ष्य पर वे सदा वारें।।
काम अपना कर चुका, आगे नहीं वह काम देगा।।
व्यर्थ माया, मोह मत कर, राह अपनी तू चला चल।
कोशिशों के नयन में सपने सदृश गुप-चुप पला चल।
ऊगना यदि भोर में तो साँझ में हँसकर ढला चल।
आज से कर बात, था क्या कल?, रहेगा क्या कहो कल?
कर्म जैसा जो करेगा, मिले वैसा ही उसे फल।।
मुश्किलों की छातियों पर मूँग तू बिन रुक सतत दल।।
३१-१२-२०२१
*
वाक्यांश हेतु शब्द
• जिसका उदय हुआ हो - नवोदित
• जो सौ वर्ष जिया हो - शतायु
• जो हिलता-डुलता हो - अस्थिर
• यहाँ-वहाँ भटकने वाला -यायावर
• जिसे शब्दों में व्यक्त न किया जा सके - शब्दातीत
• जो मृत्यु के समीप हो - मरणासन्न
• हाथी हाँकने का छोटा भाला— अंकुश
• जिसका पिता/पालक न हो - अनाथ
• जिसका मन स्थिर न हो - चंचल
• जो बहुत तेज चले - द्रुतगामी
• जो काल से परे हो - कालातीत
• जो कहा न जा सके— अकथनीय
• जो खाया ना जा सके - अभक्ष्य
• जो सत्य बोले सत्यभाषी
• जो मधुर बोले - मृदुभाषी,
• जो कम बोले - मितभाषी,
• जो अच्छा बोले सुभाषी
• जो अन्य भाषा में बोले - विभाषी
• जो अपनी भाषा में बोले - स्वभाषी
• जो कठिनाई से मिले - अलभ्य, दुष्प्राप्य
• जो बहुत कम मिलता हो - दुर्लभ
• जो आसानी से मिलता हो - सुलभ
• जिसे क्षमा न किया जा सके— अक्षम्य
• जिस स्थान पर कोई न जा सके— अगम्य
• जो कभी बूढ़ा न हो— अजर
• जिसका कोई शत्रु न हो— अजातशत्रु
• जो जीता न जा सके— अजेय
• जो दिखाई न पड़े— अदृश्य
• जिसके समान कोई न हो— अद्वितीय
• हृदय की बातेँ जानने वाला— अन्तर्यामी
• पृथ्वी, ग्रहोँ और तारोँ आदि का स्थान— अन्तरिक्ष
• दोपहर बाद का समय— अपराह्न
• जो सामान्य नियम के विरुद्ध हो— अपवाद
• जिस पर मुकदमा चल रहा हो/अपराध करने का आरोप हो/अभियोग लगाया गया हो— अभियुक्त
• जो पहले कभी नहीँ हुआ— अभूतपूर्व
• फेँक कर चलाया जाने वाला हथियार— अस्त्र
• जिसकी गिनती न हो सके— अगणित/अगणनीय
• जो पहले पढ़ा हुआ न हो— अपठित
• जिसके आने की तिथि निश्चित न हो— अतिथि
• कमर के नीचे पहने जाने वाला वस्त्र— अधोवस्त्र
• जिसके बारे मेँ कोई निश्चय न हो— अनिश्चित
• जिसका भाषा द्वारा वर्णन असंभव हो— अनिर्वचनीय
• अत्यधिक बढ़ा–चढ़ा कर कही गई बात— अतिशयोक्ति
• सबसे आगे रहने वाला— अग्रणी
• जो पहले जन्मा हो— अग्रज
• जो बाद मेँ जन्मा हो— अनुज
• जो इंद्रियोँ द्वारा न जाना जा सके— अगोचर
• जिसका पता न हो— अज्ञात
• आगे आने वाला— आगामी
• अण्डे से जन्म लेने वाला— अण्डज
• जो छूने योग्य न हो— अछूत
• जो छुआ न गया हो— अछूता
• जो अपने स्थान या स्थिति से अलग न किया जा सके— अच्युत
• जो अपनी बात से टले नहीँ— अटल
• जिस पुस्तक मेँ आठ अध्याय होँ— अष्टाध्यायी
• आवश्यकता से अधिक बरसात— अतिवृष्टि
• बरसात बिल्कुल न होना— अनावृष्टि
• बहुत कम बरसात होना— अल्पवृष्टि
• इंद्रियोँ की पहुँच से बाहर— अतीन्द्रिय/इंद्रयातीत
• सीमा का अनुचित उल्लंघन— अतिक्रमण
• जो बीत गया हो— अतीत
• जिसकी गहराई का पता न लग सके— अथाह
• आगे का विचार न कर सकने वाला— अदूरदर्शी
• जो आज तक से सम्बन्ध रखता है— अद्यतन
• आदेश जो निश्चित अवधि तक लागू हो— अध्यादेश
• जिस पर किसी ने अधिकार कर लिया हो— अधिकृत
• वह सूचना जो सरकार की ओर से जारी हो— अधिसूचना
• विधायिका द्वारा स्वीकृत नियम— अधिनियम
• अविवाहित महिला— अनूढ़ा
• वह स्त्री जिसके पति ने दूसरी शादी कर ली हो— अध्यूढ़ा
• दूसरे की विवाहित स्त्री— अन्योढ़ा
• गुरु के पास रहकर पढ़ने वाला— अन्तेवासी
• पहाड़ के ऊपर की समतल जमीन— अधित्यका
• जिसके हस्ताक्षर नीचे अंकित हैँ— अधोहस्ताक्षरकर्त्ता
• एक भाषा के विचारोँ को दूसरी भाषा मेँ व्यक्त करना— अनुवाद
• किसी सम्प्रदाय का समर्थन करने वाला— अनुयायी
• किसी प्रस्ताव का समर्थन करने की क्रिया— अनुमोदन
• जिसके माता–पिता न होँ— अनाथ
• जिसका जन्म निम्न वर्ण मेँ हुआ हो— अंत्यज
• परम्परा से चली आई कथा— अनुश्रुति
• जिसका कोई दूसरा उपाय न हो— अनन्योपाय
• वह भाई जो अन्य माता से उत्पन्न हुआ हो— अन्योदर
• पलक को बिना झपकाए— अनिमेष/निर्निमेष
• जो बुलाया न गया हो— अनाहूत
• जो ढका हुआ न हो— अनावृत
• जो दोहराया न गया हो— अनावर्त
• पहले लिखे गए पत्र का स्मरण— अनुस्मारक
• पीछे–पीछे चलने वाला/अनुसरण करने वाला— अनुगामी
• महल का वह भाग जहाँ रानियाँ निवास करती हैँ— अंतःपुर/रनिवास
• जिसे किसी बात का पता न हो— अनभिज्ञ/अज्ञ
• जिसका आदर न किया गया हो— अनादृत
• जिसका मन कहीँ अन्यत्र लगा हो— अन्यमनस्क
• जो धन को व्यर्थ ही खर्च करता हो— अपव्ययी
• आवश्यकता से अधिक धन का संचय न करना— अपरिग्रह
• जो किसी पर अभियोग लगाए— अभियोगी
• जो भोजन रोगी के लिए निषिद्ध है— अपथ्य
• जिस वस्त्र को पहना न गया हो— अप्रहत
• न जोता गया खेत— अप्रहत
• जो बिन माँगे मिल जाए— अयाचित
• जो कम बोलता हो— अल्पभाषी/मितभाषी
• आदेश की अवहेलना— अवज्ञा
• जो बिना वेतन के कार्य करता हो— अवैतनिक
• जो व्यक्ति विदेश मेँ रहता हो— अप्रवासी
• जो सहनशील न हो— असहिष्णु
• जिसका कभी अन्त न हो— अनन्त
• जिसका दमन न किया जा सके— अदम्य
• जिसका स्पर्श करना वर्जित हो— अस्पृश्य
• जिसका विश्वास न किया जा सके— अविश्वस्त
• जो कभी नष्ट न होने वाला हो— अनश्वर
• जो रचना अन्य भाषा की अनुवाद हो— अनूदित
• जिसके पास कुछ न हो अर्थात् दरिद्र— अकिँचन
• जो कभी मरता न हो— अमर
• जो सुना हुआ न हो— अश्रव्य
• जिसको भेदा न जा सके— अभेद्य
• जो साधा न जा सके— असाध्य
• जो चीज इस संसार मेँ न हो— अलौकिक
• जो बाह्य संसार के ज्ञान से अनभिज्ञ हो— अलोकज्ञ
• जिसे लाँघा न जा सके— अलंघनीय
• जिसकी तुलना न हो सके— अतुलनीय
• जिसके आदि (प्रारम्भ) का पता न हो— अनादि
• जिसकी सबसे पहले गणना की जाये— अग्रगण
• सभी जातियोँ से सम्बन्ध रखने वाला— अन्तर्जातीय
• जिसकी कोई उपमा न हो— अनुपम
• जिसका वर्णन न हो सके— अवर्णनीय
• जिसका खंडन न किया जा सके— अखंडनीय
• जिसे जाना न जा सके— अज्ञेय
• जो बहुत गहरा हो— अगाध
• जिसका चिँतन न किया जा सके— अचिँत्य
• जिसको काटा न जा सके— अकाट्य
• जिसको त्यागा न जा सके— अत्याज्य
• वास्तविक मूल्य से अधिक लिया जाने वाला मूल्य— अधिमूल्य
• अन्य से संबंध न रखने वाला/किसी एक मेँ ही आस्था रखने वाला— अनन्य
• जो बिना अन्तर के घटित हो— अनन्तर
• जिसका कोई घर (निकेत) न हो— अनिकेत
• कनिष्ठा (सबसे छोटी) और मध्यमा के बीच की उँगली— अनामिका
• मूलकथा मेँ आने वाला प्रसंग, लघु कथा— अंतःकथा
• जिसका निवारण न किया जा सके/जिसे करना आवश्यक हो— अनिवार्य
• जिसका विरोध न हुआ हो या न हो सके— अनिरुद्ध/अविरोधी
• जिसका किसी मेँ लगाव या प्रेम हो— अनुरक्त
• जो अनुग्रह (कृपा) से युक्त हो— अनुगृहीत
• जिस पर आक्रमण न किया गया हो— अनाक्रांत
• जिसका उत्तर न दिया गया हो— अनुत्तरित
• अनुकरण करने योग्य— अनुकरणीय
• जो कभी न आया हो (भविष्य)— अनागत
• जो श्रेष्ठ गुणोँ से युक्त न हो— अनार्य
• जिसकी अपेक्षा हो— अपेक्षित
• जो मापा न जा सके— अपरिमेय
• नीचे की ओर लाना या खीँचना— अपकर्ष
• जो सामने न हो— अप्रत्यक्ष/परोक्ष
• जिसकी आशा न की गई हो— अप्रत्याशित
• जो प्रमाण से सिद्ध न हो सके— अप्रमेय
• किसी काम के बार–बार करने के अनुभव वाला— अभ्यस्त
• किसी वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा— अभीप्सा
• जो साहित्य कला आदि मेँ रस न ले— अरसिक
• जिसको प्राप्त न किया जा सके
• जो कम जानता हो— अल्पज्ञ
• जो वध करने योग्य न हो— अवध्य
• जो विधि या कानून के विरुद्ध हो— अवैध
• जो भला–बुरा न समझता हो अथवा सोच–समझकर काम न करता हो— अविवेकी
• जिसका विभाजन न किया जा सके— अविभाज्य/अभाज्य
• जिसका विभाजन न किया गया हो— अविभक्त
• जिस पर विचार न किया गया हो— अविचारित
• जो कार्य अवश्य होने वाला हो— अवश्यंभावी
• जिसको व्यवहार मेँ न लाया गया हो— अव्यवहृत
• जो स्त्री सूर्य भी नहीँ देख पाती— असूर्यपश्या
• न हो सकने वाला कार्य आदि— अशक्य
• जो शोक करने योग्य नहीँ हो— अशोक्य
• जो कहने, सुनने, देखने मेँ लज्जापूर्ण, घिनौना हो— अश्लील
• जिस रोग का इलाज न किया जा सके— असाध्य रोग/लाइलाज
• जिससे पार न पाई जा सके— अपार
• बूढ़ा–सा दिखने वाला व्यक्ति— अधेड़
• जिसका कोई मूल्य न हो— अमूल्य
• जो मृत्यु के समीप हो— आसन्नमृत्यु
• किसी बात पर बार–बार जोर देना— आग्रह
• वह स्त्री जिसका पति परदेश से लौटा हो— आगतपतिका
• जिसकी भुजाएँ घुटनोँ तक लम्बी होँ— आजानुबाहु
• मृत्युपर्यन्त— आमरण
• जो अपने ऊपर निर्भर हो— आत्मनिर्भर/स्वावलंबी
• व्यर्थ का प्रदर्शन— आडम्बर
• पूरे जीवन तक— आजीवन
• अपनी हत्या स्वयं करना— आत्महत्या
• अपनी प्रशंसा स्वयं करने वाला— आत्मश्लाघी
• कोई ऐसी वस्तु बनाना जिसको पहले कोई न जानता हो— आविष्कार
• ईश्वर मेँ विश्वास रखने वाला— आस्तिक
• शीघ्र प्रसन्न होने वाला— आशुतोष
• विदेश से देश मेँ माल मँगाना— आयात
• सिर से पाँव तक— आपादमस्तक
• प्रारम्भ से लेकर अंत तक— आद्योपान्त
• अपनी हत्या स्वयं करने वाला— आत्मघाती
• जो अतिथि का सत्कार करता है— आतिथेय/मेजबान
• दूसरे के हित मेँ अपना जीवन त्याग देना— आत्मोत्सर्ग
• जो बहुत क्रूर व्यवहार करता हो— आततायी
• जिसका सम्बन्ध आत्मा से हो— आध्यात्मिक
• जिस पर हमला किया गया हो— आक्रांत
• जिसने हमला किया हो— आक्रांता
• जिसे सूँघा न जा सके— आघ्रेय
• जिसकी कोई आशा न की गई हो— आशातीत
• जो कभी निराश होना न जाने— आशावादी
• किसी नई चीज की खोज करने वाला— आविष्कारक
• जो गुण–दोष का विवेचन करता हो— आलोचक
• जो जन्म लेते ही गिर या मर गया हो— आजन्मपात
• वह कवि जो तत्काल कविता कर सके— आशुकवि
• पवित्र आचरण वाला— आचारपूत
• लेखक द्वारा स्वयं की लिखी गई जीवनी— आत्मकथा
• वह चीज जिसकी चाह हो— इच्छित
• किन्हीँ घटनाओँ का कालक्रम से किया गया वर्णन— इतिवृत्त
• इस लोक से संबंधित— इहलौकिक
• जो इन्द्र पर विजय प्राप्त कर चुका हो— इंद्रजीत
• माँ–बाप का अकेला लड़का— इकलौता
• जो इन्द्रियोँ से परे हो/जो इन्द्रियोँ के द्वारा ज्ञात न हो— इन्द्रियातीत
• दूसरे की उन्नति से जलना— ईर्ष्या
• उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा— ईशान/ईशान्य
• पर्वत की निचली समतल भूमि— उपत्यका
• दूसरे के खाने से बची वस्तु— उच्छिष्ट
• किसी भी नियम का पालन नहीँ करने वाला— उच्छृंखल
• वह पर्वत जहाँ से सूर्य और चन्द्रमा उदित होते माने जाते हैँ— उदयाचल
• जिसके ऊपर किसी का उपकार हो— उपकृत
• ऐसी जमीन जो अच्छी उत्पादक हो— उर्वरा
• जो छाती के बल चलता हो (साँप आदि)— उरग
• जिसने अपना ऋण पूरा चुका दिया हो— उऋण
• जिसका मन जगत से उचट गया हो— उदासीन
• जिसकी दोनोँ मेँ निष्ठा हो— उभयनिष्ठ
• ऊपर की ओर जाने वाला— उर्ध्वगामी
• नदी के निकलने का स्थान— उद्गम
• किसी वस्तु के निर्माण मेँ सहायक साधन— उपकरण
• जो उपासना के योग्य हो— उपास्य
• मरने के बाद सम्पत्ति का मालिक— उत्तराधिकारी/वारिस
• सूर्योदय की लालिमा— उषा
• जिसका ऊपर कथन किया गया हो— उपर्युक्त
• कुँए के पास का वह जल कुंड जिसमेँ पशु पानी पीते हैँ— उबारा
• छोटी–बड़ी वस्तुओँ को उठा ले जाने वाला— उठाईगिरा
• जिस भूमि मेँ कुछ भी पैदा न होता हो— ऊसर
• सूर्यास्त के समय दिखने वाली लालिमा— ऊषा
• विचारोँ का ऐसा प्रवाह जिससे कोई निष्कर्ष न निकले— ऊहापोह
• कई जगह से मिलाकर इकट्ठा किया हुआ— एकीकृत
• सांसारिक वस्तुओँ को प्राप्त करने की इच्छा— एषणा
• वह स्थिति जो अंतिक निर्णायक हो, निश्चित— एकांतिक
• जो व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर हो— ऐच्छिक
• इंद्रियोँ को भ्रमित करने वाला— ऐँद्रजालिक
• लकड़ी या पत्थर का बना पात्र जिसमेँ अन्न कूटा जाता है— ओखली
• साँप–बिच्छू के जहर या भूत–प्रेत के भय को मंत्रोँ से झाड़ने वाला— ओझा
• जो उपनिषदोँ से संबंधित हो— औपनिषदिक
• जो मात्र शिष्टाचार, व्यावहारिकता के लिए हो— औपचारिक
• विवाहिता पत्नी से उत्पन्न संतान— औरस
• हड्डियोँ का ढाँचा— कंकाल
• दो व्यक्तियोँ के बीच परस्पर होने वाली बातचीत— कथोपकथन
• बर्तन बेचने वाला— कसेरा
• जिसे अपने मत या विश्वास का अधिक आग्रह हो— कट्टर
• जिसकी कल्पना न की जा सके— कल्पनातीत
• ऐसा अन्न जो खाने योग्य न हो— कदन्न
• हाथी का बच्चा— कलभ
• कर्म मेँ तत्पर रहने वाला— कर्मठ
• एक के बाद एक— क्रम
• कान मेँ कही जाने वाली बात— कानाबाती/कानाफूसी
• सरकार का वह अंग जो कानून का पालन करता है— कार्यपालिका
• शृंगारिक वासनाओँ के प्रति आकर्षित— कामुक
• जो दुःख या भय से पीड़ित हो— कातर
• अपनी गलती स्वीकार करने वाला— कायल
• दूसरे की हत्या करने वाला— कातिल
• बाल्यावस्था और युवावस्था के बीच की अवस्था— किशोरावस्था
• जो बात पूर्वकाल से लोगोँ मेँ सुनकर प्रचलित हो— किँवदन्ती/जनश्रुति
• अपने काम के बारे मेँ कुछ निश्चय न करने वाला— किँकर्तव्यविमूढ़
• वृक्ष लता आदि से ढका स्थान— कुञ्ज
• जिस लड़के का विवाह न हुआ हो— कुमार
• ऐसी लड़की जिसका विवाह न हुआ हो— कुमारी
• बुरे कार्य करने वाला— कुकर्मी
• बुरे मार्ग पर चलने वाला— कुमार्गी
• जिसकी बुद्धि बहुत तेज हो— कुशाग्रबुद्धि
• जो अच्छे कुल मेँ उत्पन्न हुआ हो— कुलीन
• वह व्यक्ति जिसका ज्ञान अपने ही स्थान तक सीमित हो— कूपमंडूक
• किए गए उपकार को मानने वाला— कृतज्ञ
• किए गए उपकार को न मानने वाला— कृतघ्न
• जो धन को अत्यधिक कंजूसी से खर्च करता हो— कृपण
• जिसने संकल्प कर रखा है— कृतसंकल्प
• जो केन्द्र से हटकर दूर जाता हो— केन्द्रापसारी
• जो केन्द्र की ओर उन्मुख हो— केन्द्राभिसारी/केन्द्राभिमुख
• सर्प के शरीर से निकली हुई खोली— केँचुली
• जो क्षमा किया जा सके— क्षम्य
• जिसका कुछ ही समय मेँ नाश हो जाए— क्षणभंगुर
• जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए दिखाई देते हैँ— क्षितिज
• जो भूख मिटाने के लिए बेचैन हो— क्षुधातुर
• भूख से पीड़ित— क्षुधार्त
• वह स्त्री जिसका पति अन्य स्त्री के साथ रात को रहकर प्रातः लौटे— खंडिता
• आकाशीय पिँडोँ का विवेचन करने वाला— खगोलशास्त्री
• जो व्यक्ति अपने हाथ मेँ तलवार लिए रहता है— खड्गहस्त
• नायक का प्रतिद्वन्द्वी— खलनायक
• जहाँ से गंगा नदी का उद्गम होता है— गंगोत्री
• शरीर का व्यापार करने वाली स्त्री— गणिका
• जो आकाश को छू रहा हो— गगनस्पर्शी
• पहले से चली आ रही परम्परा का अनुपालन करने वाला— गतानुगतिक
• ग्रहण करने योग्य— ग्राह्य
• गीत गाने वाला/वाली— गायक/गायिका
• गीत रचने वाला— गीतकार
• हर पदार्थ को अपनी ओर आकृष्ट करने वाली शक्ति— गुरुत्वाकर्षण
• जो बात गूढ़ (रहस्यपूर्ण) हो— गूढ़ोक्ति
• जीवन का द्वितीय आश्रम— गृहस्थाश्रम
• गायोँ के खुरोँ से उड़ी धूल— गोधूलि
• जब गायेँ जंगल से लौटती हैँ और उनके चलने की धूल आसमान मेँ उड़ती है (दिन और रात्रि के बीच का समय)— गोधूलि बेला
• गायोँ के रहने का स्थान— गौशाला
• घास खोदकर जीवन–निर्वाह करने वाला— घसियारा
• शरीर की हानि करने वाला— घातक
• जो घृणा का पात्र हो— घृणित/घृणास्पद
• जिसके सिर पर चंद्रकला हो (शिव)— चंद्रचूड़/चंद्रशेखर
• वह कृति जिसमेँ गद्य और पद्य दोनोँ होँ— चंपू
• चक्र के रूप मेँ घूमती हुई चलने वाली हवा— चक्रवात
• ब्याज का वह प्रकार जिसमेँ मूल ब्याज पर भी ब्याज लगता है— चक्रवृद्धि ब्याज
• जिसके हाथ मेँ चक्र हो— चक्रपाणि
• चार भुजाओँ वाला— चतुर्भुज
• कार्य करने की इच्छा— चिक्कीर्षा
• लंबे समय तक जीने वाला— चिरंजीवी
• जो चिरकाल से चला आया है— चिरंतन
• जो बहुत समय तक ठहर सके— चिरस्थायी
• चिँता (चिँतन) करने योग्य बात— चिँतनीय/चिँत्य
• जिस पर चिह्न लगाया गया हो— चिह्नित
• चार पैरोँ वाला— चौपाया/चतुष्पद
• जो गुप्त रूप से निवास कर रहा हो— छद्मवासी
• दूसरोँ के केवल दोषोँ को खोजने वाला— छिद्रान्वेषी
• पत्थर को गढ़ने वाला औजार— छैनी
• एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलने वाला— जंगम
• पेट की अग्नि— जठराग्नि
• बारात ठहरने का स्थान— जनवासा
• जो जल बरसाता हो— जलद
• जो जल से उत्पन्न हो— जलज
• वह पहाड़ जिसके मुख से आग निकले— ज्वालामुखी
• जल मेँ रहने वाला जीव— जलचर
• जनता द्वारा चलाया जाने वाला तंत्र— जनतंत्र
• उम्र मेँ बड़ा— ज्येष्ठ
• जो चमत्कारी क्रियाओँ का प्रदर्शन करता हो— जादूगर
• जिसने आत्मा को जीत लिया हो— जितात्मा
• जानने की इच्छा रखने वाला— जिज्ञासु
• इन्द्रियोँ को वश मेँ करने वाला— जितेन्द्रिय
• किसी के जीवन–भर के कार्योँ का विवरण— जीवन–चरित्र
• जो जीतने के योग्य हो— जेय
• जेठ (पति का बड़ा भाई) का पुत्र— जेठोत
• स्त्रियोँ द्वारा अपनी इज्जत बचाने के लिए किया गया सामूहिक अग्नि-प्रवेश— जौहर
• ज्ञान देने वाली— ज्ञानदा
• जो ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखता हो— ज्ञानपिपासु
• बहुत गहरा तथा बहुत बड़ा प्राकृतिक जलाशय— झील
• जहाँ सिक्कोँ की ढलाई होती है— टकसाल
• बर्तन बनाने वाला— ठठेरा
• जनता को सूचना देने हेतु बजाया जाने वाला वाद्य— ढिँढोरा
• जो किसी भी गुट मेँ न हो— तटस्थ/निर्गुट
• हल्की नीँद— तन्द्रा
• जो किसी कार्य या चिन्तन मेँ डूबा हो— तल्लीन
• ऋषियोँ के तप करने की भूमि— तपोभूमि
• उसी समय का— तत्कालीन
• वह राजकीय धन जो किसानोँ की सहायता हेतु दिया जाता है— तक़ाबी
• जिसमेँ बाण रखे जाते हैँ— तरकश/तूणीर
• जो चोरी–छिपे माल लाता ले जाता हो— तस्कर
• किसी को पद छोड़ने के लिए लिखा गया पत्र— त्यागपत्र
• तर्क करने वाला व्यक्ति— तार्किक
• दैहिक, दैविक और भौतिक सुख— तापत्रय
• तैर कर पार जाने की इच्छा— तितीर्षा
• ज्ञान मेँ प्रवेश का मार्गदर्शक— तीर्थँकर
• वह व्यक्ति जो छुटकारा दिलाता है/रक्षा करता है— त्राता
• दुखान्त नाटक— त्रासदी
• भूत, वर्तमान और भविष्य को जानने/देखने वाला— त्रिकालज्ञ/त्रिकालदर्शी
• गंगा, जमुना और सरस्वती नदी का संगम— त्रिवेणी
• जिसके तीन आँखे हैँ— त्रिनेत्र
• वह स्थान जो दोनोँ भृकुटिओँ के बीच होता है— त्रिकुटी
• तीन महीने मेँ एक बार— त्रैमासिक
• जो धरती पर निवास करता हो— थलचर
• पति और पत्नी का जोड़ा— दंपती
• दस वर्षोँ की समयावधि— दशक
• गोद लिया हुआ पुत्र— दत्तक
• संकुचित विचार रखने वाला— दक़ियानूस
• धन जो विवाह के समय पुत्री के पिता से प्राप्त हो— दहेज
• जंगल मेँ फैलने वाली आग— दावानल
• दिन भर का कार्यक्रम— दिनचर्या
• दिखने मात्र को अच्छा लगने वाल— दिखावटी
• जो सपना दिन (दिवा) मेँ देखा जाता है— दिवास्वप्न
• दो बार जन्म लेने वाला (ब्राह्मण, पक्षी, दाँत)— द्विज
• जिसने दीक्षा ली हो— दीक्षित
• अनुचित बात के लिए आग्रह— दुराग्रह
• बुरे भाव से की गई संधि— दुरभिसंधि
• वह कार्य जिसको करना कठिन हो— दुष्कर
• दो विभिन्न भाषाएँ जानने वाले व्यक्तियोँ को एक–दूसरे की बात समझाने वाला— दुभाषिया
• जो शीघ्रता से चलता हो— द्रुतगामी
• जिसे कठिनाई से जाना जा सके— दुर्ज्ञेय
• जिसको पकड़ने मेँ कठिनाई हो— दुरभिग्रह/दुग्राह्य
• पति के स्नेह से वंचित स्त्री— दुर्भगा
• जिसे कठिनता से साधा/सिद्ध किया जा सके— दुस्साध्य
• जो कठिनाई से समझ मेँ आता है— दुर्बोध
• वह मार्ग जो चलने मेँ कठिनाई पैदा करता है— दुर्गम
• जिसमेँ खराब आदतेँ होँ— दुर्व्यसनी
• जिसको मापना कठिन हो— दुष्परिमेय
• जिसको जीतना बहुत कठिन हो— दुर्जेय
• वह बच्चा जो अभी माँ के दूध पर निर्भर है— दुधमुँहा
• बुरे भाग्य वाला— दुर्भाग्यशाली
• जिसमेँ दया भावना हो— दयालु
• जिसका आचरण बुरा हो— दुराचारी
• दूध पर आधारित रहने वाला— दुग्धाहारी
• जिसकी प्राप्ति कठिन हो— दुर्लभ
• जिसका दमन करना कठिन हो— दुर्दमनीय
• आगे की बात सोचने वाला व्यक्ति— दूरदर्शी
• देश से द्रोह करने वाला— देशद्रोही
• देह से सम्बन्धित— दैहिक
• देव के द्वारा किया हुआ— दैविक
• प्रतिदिन होने वाला— दैनिक
• धन से सम्पन्न— धनी
• जो धनुष को धारण करता हो— धनुर्धर
• धन की इच्छा रखने वाला— धनेच्छु
• गरीबोँ के लिए दान के रूप मेँ दिया जाने वाला अन्न–धन आदि— धर्मादा
• जिसकी धर्म मेँ निष्ठा हो— धर्मनिष्ठा
• किसी के पास रखी हुई दूसरे की वस्तु— धरोहर/थाती
• मछली पकड़कर आजीविका चलाने वाला— धीवर
• जो धीरज रखता हो— धीर
• धुरी को धारण करने वाला अर्थात् आधारभूत कार्योँ मेँ प्रवीण— धुरंधर
• अपने स्थान पर अटल रहने वाला— ध्रुव
• ध्यान करने योग्य अथवा लक्ष्य— ध्येय
• ध्यान करने वाला— ध्याता/ध्यानी
• जिसका जन्म अभी–अभी हुआ हो— नवजात
• गाय को दुहते समय बछड़े का गला बाँधने की रस्सी जो गाय के पैरोँ मेँ बाँधी जाती है— नवि
• जो नया–नया आया है— नवागंतुक
• जिसका उदय हाल ही मेँ हुआ है— नवोदित
• जो आकाश मेँ विचरण करता है— नभचर
• सम्मान मेँ दी जाने वाली भेँट— नजराना
• जिस स्त्री का विवाह अभी हुआ हो— नवोढ़ा
• ईश्वर मेँ विश्वास न रखने वाला— नास्तिक
• पुराना घाव जो रिसता रहता हो— नासूर
• जो नष्ट होने वाला हो— नाशवान/नश्वर
• नरक के योग्य— नारकीय
• वह स्थान या दुकान जहाँ हजामत बनाई जाती है— नापितशाला
• किसी से भी न डरने वाला— निडर/निर्भीक
• जो कपट से रहित है— निष्कपट
• जो पढ़ना–लिखना न जानता हो— निरक्षर
• जिसका कोई अर्थ न हो— निरर्थक
• जिसे कोई इच्छा न हो— निस्पृह
• रात मेँ विचरण करने वाला— निशाचर
• जिसका आकार न हो— निराकार
• केवल शाक, फल एवं फूल खाने वाला या जो मांस न खाता हो— निरामिष
• जिससे किसी प्रकार की हानि न हो— निरापद
• जिसके अवयव न हो— निरवयव
• बिना भोजन (आहार) के— निराहार
• जो यह मानता है कि संसार मेँ कुछ भी अच्छा होने की आशा नहीँ है— निराशावादी
• जो उत्तर न दे सके— निरुत्तर
• जिसके कोई दाग/कलंक न हो— निष्कलंक
• जिसमेँ कोई कंटक/अड़चन न हो— निष्कंटक
• जिसका अपना कोई शुल्क न हो— निःशुल्क
• जिसके संतान न हो— निःसंतान
• जिसका अपना कोई स्वार्थ न हो— निस्स्वार्थ
• व्यापारिक वस्तुओँ को किसी दूसरे देश मेँ भेजने का कार्य— निर्यात
• जिसको देश से निकाल दिया गया हो— निर्वासित
• बिना किसी बाधा के— निर्बाध
• जो ममत्व से रहित हो— निर्मम
• जिसकी किसी से उपमा/तुलना न दी जा सके— निरुपम
• जो निर्णय करने वाला हो— निर्णायक
• जिसे किसी चीज की लालसा न हो— निष्काम
• जिसमेँ किसी बात का विवाद न हो— निर्विवाद
• जो निन्दा करने योग्य हो— निन्दनीय
• जिसमेँ किसी प्रकार का विकार उत्पन्न न हो— निर्विकार
• जो लज्जा से रहित हो— निर्लज्ज
• जिसको भय न हो— निर्भय
• जो नीति जानता हो— नीतिज्ञ
• रंगमंच पर पर्दे के पीछे का स्थान— नेपथ्य
• आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत करने वाला— नैष्ठिक
• जो नीति के अनुकूल हो— नैतिक
• जो न्यायशास्त्र की बात जानता हो— नैयायिक
• घृत, दुग्ध, दधि, शहद व शक्कर से बनने वाला पदार्थ— पंचामृत
• पक्षपात करने वाला— पक्षपाती
• पदार्थ का सबसे छोटा कण— परमाणु
• जितने की आवश्यकता हो उतना— पर्याप्त
• महीने के दो पक्षोँ मेँ से एक— पखवाड़ा
• नाटक का पर्दा गिरना— पटाक्षेप/यवनिकापतन
• अपनी गलती के लिए किया हुआ दुःख— पश्चाताप
• केवल अपने पति मेँ अनुराग रखने वाली स्त्री— पतिव्रता
• पति को चुनने की इच्छा वाली कन्या— पतिम्वरा
• उपाय/मार्ग बताने वाला— पथ-प्रदर्शक/मार्गदर्शक
• अपने मार्ग से च्युत/भटका हुआ— पथभ्रष्ट
• अपने पद से हटाया हुआ— पदच्युत
• जो भोजन रोगी के लिए उचित है— पथ्य
• घूमने–फिरने/देश–देशान्तर भ्रमण करने वाला यात्री— पर्यटक
• केवल दूध पर निर्भर रहने वाला— पयोहारी
• दूसरोँ पर निर्भर रहने वाला— पराश्रित/पराश्रयी
• परपुरुष से प्रेम करने वाली स्त्री— परकीया
• पति द्वारा छोड़ दी गई पत्नी— परित्यका
• दूसरे का मुँह ताकने वाला— परमुखापेक्षी
• जो पहनने लायक हो— परिधेय
• जो मापा जा सके— परिमेय
• जो सदा बदलता रहे— परिवर्तनशील
• जो आँखोँ के सामने न हो— परोक्ष/अप्रत्यक्ष
• दूसरे पर उपकार करने वाला— परोपकारी/परमार्थी
• जो पूरी तरह से पक चुका हो/पारंगत हो चुका हो— परिपक्व
• पर्दे के अंदर रहने वाली— पर्दानशीन
• प्रशंसा करने योग्य— प्रशंसनीय
• किसी प्रश्न का तत्काल उत्तर दे सकने वाली मति— प्रत्युत्पन्नमति
• किसी वाद का विरोध करने वाला— प्रतिवादी
• शरणागत की रक्षा करने वाला— प्रणतपाल
• वह ध्वनि जो कहीँ से टकराकर आए— प्रतिध्वनि
• जो किसी मत को सर्वप्रथम चलाता है— प्रवर्तक
• वह स्त्री जिसके हाल ही मेँ शिशु उत्पन्न हुआ हो— प्रसूता
• वह आकृति जो किसी शीशे, जल आदि मेँ दिखाई दे— प्रतिबिम्ब
• हास्य रस से परिपूर्ण नाटिका— प्रहसन
• प्रमाण द्वारा सिद्ध करने योग्य— प्रमेय
• संध्या के बाद व रात्रि होने के पूर्व का समय— प्रदोष/पूर्वरात्र
• ज्ञान नेत्र से देखने वाला अंधा व्यक्ति— प्रज्ञाचक्षु
• सभा मेँ विचारार्थ प्रस्तुत बात— प्रस्ताव
• हाथ से लिखी गई पुस्तक— पाण्डुलिपि
• किसी परिश्रम के बदले मिलने वाली राशि— पारिश्रमिक
• जिसका स्वभाव पशुओँ के समान हो— पाशविक
• महीने के प्रत्येक पक्ष से संबंधित— पाक्षिक
• किसी विषय का पूर्ण ज्ञाता— पारंगत
• जिसमेँ से आर–पार देखा जा सकता हो— पारदर्शी
• जो परलोक से संबंधित हो— पारलौकिक
• मार्ग मेँ खाने के लिए भोजन— पाथेय
• जिसका संबंध पृथ्वी से हो— पार्थिव
• ज्ञात इतिहास के पूर्व समय का— प्रागैतिहासिक
• स्थल का वह भाग जिसके तीन ओर पानी हो— प्रायद्वीप
• जिसको देखकर अच्छा लगे— प्रियदर्शी
• पीने की इच्छा रखने वाला— पिपासु
• बार–बार कही गई बात— पुनरुक्ति
• जिसका पुनः जन्म हुआ हो— पुनर्जन्म
• पहले किया गया कथन— पूर्वोक्त
• दोपहर से पहले का समय— पूर्वाह्न
• प्राचीन इतिहास का ज्ञाता— पुरातत्त्ववेत्ता
• पीने योग्य पदार्थ— पेय
• पिता एवं प्रपिताओँ से संबंधित— पैतृक
• जो सम्पत्ति पिता से प्राप्त हो— पैतृक सम्पत्ति
• फटे–पुराने कपड़े पहनने वाला— फटीचर
• केवल फलोँ पर निर्वाह करने वाला— फलाहारी
• फल की इच्छा रखने वाला— फलेच्छु
• बुरी किस्मत वाला— बदकिस्मत
• बुरे मिजाज (आचरण) वाला— बदमिजाज
• सूर्योदय से पहले दो घड़ी तक का समय— ब्रह्ममुहूर्त
• जीवन का प्रथम आश्रम— ब्रह्मचर्याश्रम
• बहुत विषयोँ का जानकार— बहुज्ञ
• जिसने सुनकर अनेक विषयोँ का ज्ञान प्राप्त किया हो— बहुश्रुत
• समुद्र मेँ लगने वाली आग— बड़वानल
• जो अनेक रूप धारण करता हो— बहुरूपिया
• बहुत से देवताओँ के अस्तित्व मेँ विश्वास करने वाला मत— बहुदेववाद
• काफी अधिक कीमत का— बहुमूल्य
• अनेक भाषाओँ को जानने वाला— बहुभाषाविद्
• रात का भोजन— ब्यालू/रात्रिभोज
• जिस स्त्री के कोई संतान नहीँ हुई हो— बाँझ
• खाने का इच्छुक— बुबुक्षु
• किसी भवनादि के खंडित होने के बाद बचे भाग— भग्नावशेष
• भय के कारण बेचैन— भयाकुल
• भाग्य पर भरोसा रखने वाला— भाग्यवादी
• जो भाग्य का धनी हो— भाग्यवान
• दीवारोँ पर बने हुए चित्र— भित्तिचित्र
• जो पृथ्वी के भीतर का ज्ञान रखता हो— भूगर्भवेता
• धरती पर चलने वाला जन्तु— भूचर
• जो पहले था या हुआ— भूतपूर्व
• धरती को धारण करने वाला पर्वत— भूधर
• औषधियोँ का जानकार— भेषज
• प्रातःकाल गाया जाने वाला राग— भैरवी
• सूर्योदय के पहले का समय— भोर
• भूगोल से संबंधित— भौगोलिक
• फूलोँ का रस— मकरंद
• दोपहर का समय— मध्याह्न
• सर्दी मेँ होने वाली वर्षा— महावट/मावठ
• हाथी को हाँकने वाला— महावत
• सुख एवं दुःख मेँ एक समान रहने वाला— मनस्वी
• जिसकी आँखेँ मगर जैसी हो— मकराक्ष
• किसी मत का अनुसरण करने वाला— मतानुयायी
• दो पक्षोँ के बीच मेँ पड़कर फैसला कराने वाला— मखत्राता/यज्ञरक्षक
• जो बहुत ऊँची अकांक्षा/इच्छा रखता हो— महत्वाकांक्षी
• जिसकी बुद्धि कमजोर है— मन्दबुद्धि/मतिमान्द्य
• जिसकी आत्मा महान हो— महात्मा
• किसी चीज के मर्म का ज्ञाता— मर्मज्ञ
• मध्यरात्रि का समय— मध्यरात्र
• मन का असीम दुःख— मनस्ताप
• जहाँ केवल रेत ही रेत हो— मरुस्थल
• माँस आदि खाने वाला— माँसाहारी
• माह मेँ होने वाला— मासिक
• माता की हत्या करने वाला— मातृहंता
• कम खाने वाला— मिताहारी
• कम खर्च करने वाला— मितव्ययी
• जो असत्य बोलता हो— मिथ्यावादी
• जिस स्त्री की आँखेँ मछली के समान होँ— मीनाक्षी
• थोड़ा खिला हुआ फूल— मुकुल
• शुभ कार्य हेतु निकाला गया समय— मुहूर्त
• दिल खोलकर कहना— मुक्तकंठ
• मुद्रा का अधिक चलन/प्रसार— मुद्रास्फीति
• मरणासन्न अवस्थावाला/शक्ति के अनुसार— मुमूषु
• मरने की इच्छा— मुमूर्षा
• मोक्ष की इच्छा रखने वाला— मुमुक्षु
• चुपचाप देखने वाला— मूकदर्शक
• हरिण के नेत्रोँ जैसी आँखोँ वाली— मृगनयनी
• जो मीठी वाणी बोलता हो— मृदुभाषी
• जिसने मृत्यु को जीत लिया हो— मृत्युंजय
• कमल की डंडी— मृणाल
• जो रचना किसी व्यक्ति की अपनी स्वयं की हो एवं नई हो— मौलिक
• जुड़वाँ भाई या बहन— यमल/यमला
• रंगमंच का परदा— यवनिका
• शक्ति के अनुसार करना— यथाशक्ति
• जैसा चाहिए, उचित हो वैसा— यथोचित
• जो यंत्र से संबंधित हो— यांत्रिक
• जब तक जीवन रहे— यावज्जीवन/जीवनपर्यँत
• घूम–घूमकर जीवन बिताने वाला— यायावर
• समाज को नई दिशा देकर नए युग की शुरुआत करने वाला— युगप्रवर्तक
• अपने युग का ज्ञान रखने वाला— युगद्रष्टा
• यज्ञ–स्थान पर स्थापित किया जाने वाला खंभा— यूप
• रात को कुछ भी दिखाई नहीँ देने वाला रोग— रतौँधी
• किसानोँ से भूमि कर लेने वाला सरकारी विभाग— राजस्व विभाग
• राज्य द्वारा आधिकारिक रूप से प्रकाशित होने वाला पत्र— राजपत्र(गजट)
• जिसके नीचे रेखाएँ लगाई गई होँ— रेखांकित
• प्रेम, आनन्द, भय आदि से रोँगटे खड़े होने की दशा— रोमांच
• प्रसन्नता से जिसके रोँगटे खड़े हो गए होँ— रोमांचित
• जो लकड़ी काटकर जीवन बिताता हो— लकड़हारा
• जिसका वंश लुप्त हो गया हो— लुप्तवंश
• लोभी स्वभाव वाला— लुब्ध/लोभी
• जिसे देखकर रोँगटे खड़े होँ जाएँ— लोमहर्षक
• वंश परम्परा के अनुसार— वंशानुगत
• जिसके हाथ मेँ वज्र हो— वज्रपाणि
• बहुत ही कठोर और बड़ा आघात— वज्राघात
• बचपन और यौवन के मध्य की उम्र— वयसंधि
• जिसका वर्णन न किया जा सके— वर्णनातीत
• अधिक बोलने वाला— वाचाल
• सन्तान के प्रति प्रेम— वात्सल्य
• मुकदमा दायर करने वाला— वादी
• भाषण देने मेँ चतुर— वाग्मी
• जिसका वाणी पर पूर्ण अधिकार हो— वाचस्पति
• सामाजिक मानमर्यादा के विपरीत कार्य करने वाला— वामाचारी
• गृह–निर्माण संबंधी विज्ञान— वास्तुविज्ञान
• बाहर के तापमान का असर रोकने हेतु की जाने वाली व्यवस्था— वातानुकूलन
• वह कन्या जिसके विवाह करने का वचन दे दिया गया हो— वाग्दता
• जिसमेँ विष मिला हुआ हो— विषाक्त
• जिस पर विश्वास किया जा सके— विश्वस्त
• जिस विषय मेँ निश्चित मत न हो— विवादास्पद
• जिसकी पत्नी मर चुकी हो— विधुर
• स्त्री जिसका पति मर गया हो— विधवा
• सौतेली माँ— विमाता
• जो दूसरी जाति का हो— विजातीय
• जिस पर अभी विचार चल रहा हो— विचाराधीन
• वह स्त्री जो पढ़ी–लिखी व ज्ञानी हो— विदुषी
• अपना हित–अहित सोचने मेँ समर्थ— विवेकी
• अपनी जगह से अलग किया हुआ— विस्थापित
• जिसके अंदर कोई विकार आ गया हो— विकृत
• जो अपने धर्म के विरुद्ध कार्य करने वाला हो— विधर्मी
• जो विधि/कानून के अनुसार सही हो— विधिवत्/वैध
• किसी विषय का विशेष ज्ञान रखने वाला— विशेषज्ञ
• विनाश करने वाला— विध्वंसक
• जिसके शरीर के भाग मेँ कमी हो— विकलांग
• जिसे व्याकरण का पूरा ज्ञान हो— वैयाकरण
• सौ वर्षोँ का समूह— शताब्दी
• जो शरण मेँ आ गया हो— शरणागत
• शरण की इच्छा रखने वाला— शरणार्थी
• हाथ मेँ पकड़कर चलाया जाने वाला हथियार जैसे तलवार— शस्त्र
• सौ वस्तुओँ का संग्रह— शतक
• जो सौ बातेँ एक साथ याद रख सकता है— शतावधानी
• जिसके स्मरण मात्र से ही शत्रु का नाश हो/शत्रु का नाश करने वाला— शत्रुघ्न
• जिसका कोई आदि और अंत न हो— शाश्वत
• शाक, फल और फूल खाने वाला— शाकाहारी/निरामिष
• जिस शब्द के दो अर्थ होँ— शिलष्ट
• शिव का आलय (स्थान)— शिवालय
• शुभ चाहने वाला— शुभेच्छु/शुभाकांक्षी
• अनुसंधान के लिए दिया जाने वाला अनुदान— शोधवृत्ति
• जो सुनने योग्य हो— श्रव्य/श्रवणीय
• जिसमेँ श्रद्धा भावना हो— श्रद्धालु
• पति/पत्नी का पिता— श्वसुर
• पति/पत्नी की माता— श्वश्रू (सास)
• पति/पत्नी का भाई— श्वशुर्य (साला)
• जिसके छह कोण होँ— षट्कोण
• जिसके छह पद होँ (भौँरा)— षट्पद
• छह–छह माह मेँ होने वाला— षण्मासिक
• सोलह वर्ष की अवस्था वाली स्त्री— षोडशी
• दो नदियोँ के मिलने का स्थान— संगम
• इन्द्रियोँ को वश मेँ रखने वाला— संयमी
• जो समाचार भेजता है— संवाददाता
• एक ही माँ से उत्पन्न भाई/बहन— सहोदर/सहोदरा
• सात सौ दोहोँ का समूह— सतसई
• जो गुण–दोषोँ का विवेचन करता हो— समालोचक
• सब कुछ जानने वाला— सर्वज्ञ
• जो समान आयु का हो— समवयस्क
• जो सभी को समान दृष्टि से देखता हो— समदर्शी
• साहित्यिक गुण–दोषोँ की विवेचना करने वाला— समीक्षक
• वह स्त्री जिसका पति जीवित हो— सधवा
• जो सदा से चला आ रहा हो— सनातन
• अन्य लोगोँ के साथ गाया जाने वाला गीत— सहगान
• उसी समय मेँ होने वाला/रहने वाला— समकालीन
• साथ पढ़ने वाला— सहपाठी
• जो दूसरोँ की बात सहन कर सकता हो— सहिष्णु
• छूत या संसर्ग से फैलने वाला रोग— संक्रामक
• जो एक ही जाति के होँ— सजातीय
• गीतोँ की धुन बनाने वाला— संगीतकार
• रस पूर्ण— सरस
• साथ काम करने वाला— सहकर्मी
• सबको प्रिय लगने वाला— सर्वप्रिय
• सद् आचरण रखने वाला— सदाचारी
• ज्ञान देने वाली देवी— सरस्वती
• जो अपनी पत्नी के साथ हो— सपत्नीक
• सत्य के लिए आग्रह— सत्याग्रह
• शर्तोँ के साथ काम करने का समझौता— संविदा
• जो सत्य बोलता हो— सत्यवादी/सत्यभाषी
• संहार करने वाला/मारने वाला— संहारक
• जिसका चरित्र अच्छा हो— सच्चरित्र
• न बहुत ठण्डा न बहुत गर्म— समशीतोष्ण
• जो सब कुछ खाता हो— सर्वभक्षी
• सब कुछ पाने वाला— सर्वलब्ध
• जो समस्त देशोँ/स्थानोँ से संबंधित हो— सार्वभौमिक
• रथ हाँकने वाला— सारथि
• जो पढ़ना–लिखना जानता है— साक्षर
• सप्ताह मेँ एक बार होने वाला— साप्ताहिक
• सभी लोगोँ के लिए— सार्वजनिक
• आकार से युक्त (मूर्तिमान)— साकार
• जो सब जगह विद्यमान हो— सर्वव्यापी
• जिसकी ग्रीवा सुंदर हो— सुग्रीव
• जो सोया हुआ हो— सुषुप्त
• सधवा रहने की दशा या अवस्था— सुहाग
• पसीने से उत्पन्न जीव (जैसे जूँ आदि)— स्वेदज
• किसी संस्था या व्यक्ति के पचास वर्ष पूरे करने के उपलक्ष्य मेँ होने वाला उत्सव— स्वर्ण जयंती
• स्त्री के स्वभाव जैसा— स्त्रैण
• गतिहीन रहने वाला— स्थावर
• जिसको सिद्ध करने के लिए अन्य प्रमाणोँ की जरूरत न हो— स्वयंसिद्ध/स्वतः प्रमाण
• अपनी ही इच्छानुसार पति का वरण करने वाली— स्वयंवरा
• जो स्वयं भोजन बनाकर खाता हो— स्वयंपाकी
• जो अपने ही अधीन हो— स्वाधीन
• जो अपना ही हित सोचता हो— स्वार्थी
• सौ वस्तुओँ का संग्रह— सैँकड़ा/शतक
• हमला करने वाला— हमलावर
• सेना का वह भाग जो सबसे आगे हो— हरावल
• हवन से संबंधित सामग्री— हवि
• ऐसा बयान जो शपथ सहित दिया गया हो— हलफनामा
• दूसरे के काम मेँ दखल देना— हस्तक्षेप
• ऐसा दुःख जो हृदय को चीर डाले— हृदय विदारक
• हृदय से संबंधित— हार्दिक
• जिस पर हँसी आती हो/जो हँसी का पात्र हो— हास्यास्पद
• किसी संस्था या व्यक्ति के साठ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य मेँ होने वाला उत्सव— हीरक जयंती
• जो बात हृदय मेँ अच्छी तरह बैठ गई हो— हृदयंगम
• दूसरोँ का हित चाहने वाला— हितैषी
• न टलने वाली घटना/अवश्यंभावी घटना/भाग्याधीन— होनहार
• यज्ञ मेँ आहुति देने वाला— होमाग्नि
विभिन्न प्रकार की इच्छाएँ:
• किसी वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा— अभीप्सा
• सांसारिक वस्तुओँ को प्राप्त करने की इच्छा— एषणा
• कार्य करने की इच्छा— चिकीर्षा
• जानने की इच्छा— जिज्ञासा
• जीतने, दमन करने की इच्छा— जिगीषा
• किसी को जीत लेने की इच्छा रखने वाला— जिगीषु
• किसी को मारने की इच्छा— जिघांसा
• भोजन करने की इच्छा— जिघत्सा
• ग्रहण करने, पकड़ने की इच्छा— जिघृक्षा
• जिँदा रहने की इच्छा— जिजीविषा
• ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा— ज्ञानपिपासा
• तैर कर पार जाने की इच्छा— तितीर्षा
• धन की इच्छा रखने वाला— धनेच्छु
• पीने की इच्छा रखने वाला— पिपासु
• फल की इच्छा रखने वाला— फलेच्छु
• खाने की इच्छा— बुभुक्षा
• खाने का इच्छुक— बुभुक्षु
• जो अत्यधिक भूखा हो— बुभुक्षित
• मोक्ष की इच्छा रखने वाला— मुमुक्षु
• मरने की इच्छा— मुमुर्षा
• मरणासन्न अवस्था वाला/मरने को इच्छुक— मुमूर्षू
• युद्ध की इच्छा रखने वाला— युयुत्सु
• युद्ध करने की इच्छा— युयुत्सा
• शुभ चाहने वाला— शुभेच्छु
• हित चाहने वाला— हितैषी
***
गीत
सूरज उगायें
*
चलो! हम सूरज उगायें...
सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरितिमा मिल हम उगायें....
विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुंदर रचें हम-
सभी सब के काम आयें...
लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?
सोच यह जीवन जियें हम।
हाथ-हाथों से मिलायें...
आत्म में विश्वात्म देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवायें...
तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सुनेंगे।
नाद अनहद गूँजता जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...
***
***
नवगीत:
नए साल
मत हिचक
बता दे क्या होगा?
.
सियासती गुटबाजी
क्या रंग लाएगी?
'देश एक' की नीति
कभी फल पायेगी?
धारा तीन सौ सत्तर
बनी रहेगी क्या?
गयी हटायी
तो क्या
घटनाक्रम होगा?
.
काशी, मथुरा, अवध
विवाद मिटेंगे क्या?
नक्सलवादी
तज विद्रोह
हटेंगे क्या?
पूर्वांचल में
अमन-चैन का
क्या होगा?
.
धर्म भाव
कर्तव्य कभी
बन पायेगा?
मानवता की
मानव जय
गुंजायेगा?
मंगल छू
भू के मंगल
का क्या होगा?
***
नव वर्ष हाइकु
*
हो नया हर्ष
हर नए दिन में
नया उत्कर्ष
.
प्राची के गाल
रवि करता लाल
है नया साल
.
हाइकु लिखो
हर दिवस् एक
इरादा नेक
३१-१२-२०१७
***

नवगीत
*
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
चलो बैठ पल दो पल कर लें
मीत! प्रीत की बात।
*
गौरैयों ने खोल लिए पर
नापें गगन विशाल।
बिजली गिरी बाज पर
उसका जीना हुआ मुहाल।
हमलावर हो लगा रहा है
लुक-छिपकर नित घात
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
आ बुहार लें मन की बाखर
कहें न ऊँचे मोल।
तनिक झाँक लें अंतर्मन में
निज करनी लें तोल।
दोष दूसरों के मत देखें
खुद उजले हों तात!
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
स्वेद-'सलिल' में करें स्नान नित
पूजें श्रम का दैव।
निर्माणों से ध्वंसों को दें
मिलकर मात सदैव।
भूखे को दें पहले,फिर हम
खाएं रोटी-भात।
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
साक्षी समय न हमने मानी
आतंकों से हार।
जैसे को तैसा लौटाएँ
सरहद पर इस बार।
नहीं बात कर बात मानता
जो खाये वह लात।
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
लोकतंत्र में लोभतंत्र क्यों
खुद से करें सवाल?
कोशिश कर उत्तर भी खोजें
दें न हँसी में टाल।
रात रहे कितनी भी काली
उसके बाद प्रभात।
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*****
२४-९-२०१६
गीत
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
नियम व्यवस्था का
पालन हम नहीं करें,
दोष गैर पर-
निज, दोषों का नहीं धरें।
खुद क्या बेहतर
कर सकते हैं, वही करें।
सोचें त्रुटियाँ कितनी
कहाँ सुधारी हैं?
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
भाँग कुएँ में
घोल, हुए मदहोश सभी,
किसके मन में
किसके प्रति आक्रोश नहीं?
खोज-थके, हारे
पाया सन्तोष नहीं।
फ़र्ज़ भुला, हक़ चाहें
मति गई मारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
एक अँगुली जब
तुम को मैंने दिखलाई।
तीन अंगुलियाँ उठीं
आप पर, शरमाईं
मति न दोष खुद के देखे
थी भरमाई।
सोचें क्या-कब
हमने दशा सुधारी है?
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
जैसा भी है
तन्त्र, हमारा अपना है।
यह भी सच है
बेमानी हर नपना है।
अँधा न्याय-प्रशासन,
सत्य न तकना है।
कद्र न उसकी
जिसमें कुछ खुद्दारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
कौन सुधारे किसको?
आप सुधर जाएँ।
देखें अपनी कमी,
न केवल दिखलायें।
स्वार्थ भुला,
सर्वार्थों की जय-जय गायें।
अपनी माटी
सारे जग से न्यारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
११-८-२०१६
***
गीत
कौन?
*
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
खुशियों की खेती अनसिंचित,
सिंचित खरपतवार व्यथाएँ।
*
खेत
कारखाने-कॉलोनी
बनकर, बिना मौत मरते हैं।
असुर हुए इंसान,
न दाना-पानी खा,
दौलत चरते हैं।
वन भेजी जाती सीताएँ,
मन्दिर पुजतीं शूर्पणखाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
गौरैयों की देखभाल कर
मिली बाज को जिम्मेदारी।
अय्यारी का पाठ रटाती,
पैठ मदरसों में बटमारी।
एसिड की शिकार राधाएँ
कंस जाँच आयोग बिठाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
रिद्धि-सिद्धि, हरि करें न शिक़वा,
लछमी पूजती है गणेश सँग।
'ऑनर किलिंग' कर रहे दद्दू
मूँछ ऐंठकर, जमा रहे रंग।
ठगते मोह-मान-मायाएँ
घर-घर कुरुक्षेत्र-गाथाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
हर कर्तव्य तुझे करना है,
हर अधिकार मुझे वरना है।
माँग भरो, हर माँग पूर्ण कर
वरना रपट मुझे करना है।
देह मात्र होतीं वनिताएँ
घर को होटल मात्र बनाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
दोष न देखें दल के अंदर,
और न गुण दिखते दल-बाहर।
तोड़ रहे कानून बना, सांसद,
संसद मंडी-जलसा घर।
बस में हो तो साँसों पर भी
सरकारें अब टैक्स लगाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*****
९-८-२०१६
गोरखपुर दंत चिकित्सालय जबलपुर
***
गीत
कौन हैं हम?
**
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
स्नेह सलिला नर्मदा हैं।
सत्य-रक्षक वर्मदा हैं।
कोई माने या न माने
श्वास सारी धर्मदा हैं।
जान या
मत जान लेकिन
मित्र है साहस-प्रभंजन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
सभ्यता के सिंधु हैं हम,
भले लघुतम बिंदु हैं हम।
गरल धारे कण्ठ में पर
शीश अमृत-बिंदु हैं हम।
अमरकंटक-
सतपुड़ा हम,
विंध्य हैं सह हर विखण्डन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
ब्रम्हपुत्रा की लहर हैं,
गंग-यमुना की भँवर हैं।
गोमती-सरयू-सरस्वति
अवध-ब्रज की रज-डगर हैं।
बेतवा, शिव-
नाथ, ताप्ती,
हमीं क्षिप्रा, शिव निरंजन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
तुंगभद्रा पतित पावन,
कृष्णा-कावेरी सुहावन।
सुनो साबरमती हैं हम,
सोन-कोसी-हिरन भावन।
व्यास-झेलम,
लूनी-सतलज
हमीं हैं गण्डक सुपावन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
मेघ बरसे भरी गागर,
करी खाली पहुँच सागर।
शारदा, चितवन किनारे-
नागरी लिखते सुनागर।
हमीं पेनर
चारु चंबल
घाटियाँ हम, शिखर- गिरिवन
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
१०-९-२०१६
***
नवगीत
*
सिया हरण को देख रहे हैं
आँखें फाड़ लोग अनगिन।
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*
'गिरि गोपाद्रि' न नाम रहा क्यों?
'सुलेमान टापू' क्यों है?
'हरि पर्वत' का 'कोह महाजन'
नाम किया किसने क्यों है?
नाम 'अनंतनाग' को क्यों हम
अब 'इस्लामाबाद' कहें?
घर में घुस परदेसी मारें
हम ज़िल्लत सह आप दहें?
बजा रहे हैं बीन सपेरे
राजनीति नाचे तिक-धिन
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*
हम सबका 'श्रीनगर' दुलारा
क्यों हो शहरे-ख़ास कहो?
'मुख्य चौक' को 'चौक मदीना'
कहने से सब दूर रहो
नाम 'उमा नगरी' है जिसका
क्यों हो 'शेखपुरा' वह अब?
'नदी किशन गंगा' को 'दरिया-
नीलम' कह मत करो जिबह
प्यार न जिनको है भारत से
पकड़ो-मारो अब गईं-गईं
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*
पण्डित वापिस जाएँ बसाए
स्वर्ग बनें फिर से कश्मीर
दहशतगर्द नहीं बच पाएं
कायम कर दो नई नज़ीर
सेना को आज़ादी दे दो
आज नया इतिहास बने
बंगला देश जाए दोहराया
रावलपिंडी समर ठने
हँस बलूच-पख्तून संग
सिंधी आज़ाद रहें हर दिन
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*
(कश्मीर में हिन्दू नामों को बदलकर योजनाबद्ध तरीके से मुस्लिम नाम रखे जानेके विरोध में)
***
गीत
*
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
देश दिनों से खड़ा हुआ है,
जो जैसा है अड़ा हुआ है,
किसे फ़िक्र जनहित का पेड़ा-
बसा रहा है, सड़ा हुआ है।
चचा-भतीजा ताल ठोंकते,
पिता-पुत्र ज्यों श्वान भौंकते,
कोई काट न ले तुझको भी-
इसीलिए
कहता हूँ-
रुक जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
वादे जुमले बन जाते हैं,
घपले सारे धुल जाते हैं,
लोकतंत्र के मूल्य स्वार्थ की-
दीमक खाती, घुन जाते हैं।
मौनी बाबा बोल रहे हैं
पप्पू जहँ-तहँ डोल रहे हैं
गाल बजाते जब-तब लालू
मत टकराना
बच जा झुक जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
एक आदमी एक न पाता,
दूजा लाख-करोड़ जुटाता,
मार रही मरते को दुनिया-
पिटता रोये, नहीं सुहाता।
हुई देर, अंधेर यहाँ है,
रही अनसुनी टेर यहाँ है,
शुद्ध दलाली, न्याय कहाँ है?
जलने से
पहले मत
बुझ जा।
नए साल!
आजा कतार में
***
नवगीत
समय वृक्ष है
*
समय वृक्ष है
सूखा पत्ता एक झरेगा
आँखें मूँदे.
नव पल्लव तब
एक उगेगा
आँखे खोले.
*
कहो अशुभ या
शुभ बोलो
कुछ फर्क नहीं है.
चिरजीवी होने का
कोई अर्क नहीं है.
कितने हुए?
होएँगे कितने?
कौन बताये?
किसका कितना वजन?
तराजू कोई न तोले.
ठोस दिख रहे
लेकिन हैं
भीतर से पोले.
नव पल्लव
किस तरह उगेगा
आँखें खोले?
*
वाम-अवाम
न एक साथ
मिल रह सकते हैं.
काम-अकाम
न एक साथ
खिल-दह सकते हैं.
पूरब-पश्चिम
उत्तर-दक्षिण
ऊपर-नीचे
कर परिक्रमा
नव संकल्प
अमिय नित घोले.
श्रेष्ठ वही जो
श्रम-सीकर की
जय-जय बोले.
बिन प्रयास
किस तरह कर्मफल
आँखें खोले?
*
जाग,
छेड़ दे, राग नया
चुप से क्या हासिल?
आग
न बुझने देना
तू मत होना गाफिल.
आते-जाते रहें
साल-दर-साल
नए कुछ.
कौन जानता
समय-चक्र
दे हिम या शोले ?
नोट बंद हों या जारी
नव आशा बो ले.
उसे दिखेगी उषा
जाग जो
आँखें खोले
३१-१२-२०१६
***
गीत
साल निराला हो
*
बहुत हो चुके
होएंगे भी
पर यह साल निराला हो
*
सुख पीड़ा के आँसू पोंछे
हर्ष दर्द से गले मिले
जिनसे शिकवे रहे उम्र भर
उन्हें न तिल भर रहें गिले
मुखर हो सकें वही वैखरी
जिसके लब थे रहे सिले
जिनके पद तल
सत्ता उनके
उर में कंठी माला हो
बहुत हो चुके
होएंगे भी
पर यह साल निराला हो
*
पग-ठोकर में रहे मित्रता
काँटा साझा साखी हो
शाख-गगन के बीच सेतु बन
भोर-साँझ नव पाखी हो
शासक और विपक्षी के कर
संसद में अब राखी हो
अबला सबला बने
अनय जब मिले
आँख में ज्वाला हो
बहुत हो चुके
होएंगे भी
पर यह साल निराला हो
*
मानक तोड़ पुराने नव रच
जो कह चुके, न वह कह कवि बच
बाँध न रचना को नियमों में
दिल की, मन की बातें कह सच
नचा समय को हँस छिन्गुली पर
रे सत्ता! जनमत सुन कर नच
समता-सुरा
पिलानेवाली
बाला हो, मधुशाला हो
बहुत हो चुके
होएंगे भी
पर यह साल निराला हो
***
काम न काज
*
काम न काज
जुबानी खर्चा
नये वर्ष का कोरा पर्चा
*
कल सा सूरज उगे आज भी
झूठा सच को ठगे आज भी
सरहद पर गोलीबारी है
वक्ष रक्त से सने आज भी
किन्तु सियासत कहे करेंगे
अब हम प्रेम
भाव की अर्चा
*
अपना खून खून है भैया
औरों का पानी रे दैया!
दल दलबंदी के मारे हैं
डूबे लोकतंत्र की नैया
लिये ले रहा जान प्रशासन
संसद करती
केवल चर्चा
*
मत रोओ, तस्वीर बदल दो
पैर तले दुःख-पीर मसल दो
कृत्रिम संवेदन नेता के
लौटा, थोड़ी सीख असल दो
सरकारों पर निर्भर मत हो
पायें आम से
खास अनर्चा
***
लघु कथा -
आदमी जिंदा है
*
साहित्यिक आयोजन में वक्ता गण साहित्य की प्रासंगिकता पर चिंतन कम और चिंता अधिक व्यक्त कर रहे थे। अधिकांश चाहते थे कि सरकार साहित्यकारों को आर्थिक सहयोग दे क्योंकि साहित्य बिकता नहीं, उसका असर नहीं होता।
भोजन काल में मैं एक वरिष्ठ साहित्यकार से भेंट करने उनके निवास पर जा ही रहा था कि हरयाणा से पधारे अन्य साहित्यकार भी साथ हो लिये। राह में उन्हें आप बीती बताई- 'कई वर्ष पहले व्यापार में लगातार घाटे से परेशं होकर मैंने आत्महत्या का निर्णय लिया और रेल स्टेशन पहुँच गया, रेलगाड़ी एक घंटे विलंब से थी। मरता क्या न करता प्लेटफ़ॉर्म पर टहलने लगा। वहां गीताप्रेस गोरखपुर का पुस्तक विक्रय केंद्र खुला देख तो समय बिताने के लिये एक किताब खरीद कर पढ़ने लगा। किताब में एक दृष्टान्त को पढ़कर न जाने क्या हुआ, वापिस घर आ गया। फिर कोशिश की और सफलता की सीढ़ियाँ चढ़कर आज सुखी हूँ। व्यापार बेटों को सौंप कर साहित्य रचता हूँ। शायद इसे पढ़कर कल कोई और मौत के दरवाजे से लौट सके। भोजन छोड़कर आपको आते देख रुक न सका, आप जिनसे मिलाने जा रहे हैं, उन्हीं की पुस्तक ने मुझे नवजीवन दिया।
साहित्यिक सत्र की चर्चा से हो रही खिन्नता यह सुनते ही दूर हो गयी। प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता? सत्य सामने था कि साहित्य का असर आज भी बरकरार है, इसीलिये आदमी जिंदा है।
***
नवगीत
काम न काज
*
काम न काज
जुबानी खर्चा
नये वर्ष का कोरा पर्चा
*
कल सा सूरज उगे आज भी
झूठा सच को ठगे आज भी
सरहद पर गोलीबारी है
वक्ष रक्त से सने आज भी
किन्तु सियासत कहे करेंगे
अब हम प्रेम
भाव की अर्चा
*
अपना खून खून है भैया
औरों का पानी रे दैया!
दल दलबंदी के मारे हैं
डूबे लोकतंत्र की नैया
लिये ले रहा जान प्रशासन
संसद करती
केवल चर्चा
*
मत रोओ, तस्वीर बदल दो
पैर तले दुःख-पीर मसल दो
कृत्रिम संवेदन नेता के
लौटा, थोड़ी सीख असल दो
सरकारों पर निर्भर मत हो
पायें आम से
खास अनर्चा
३१-१२-२०१५
***
गीत
चलो हम सूरज उगायें
आचार्य संजीव 'सलिल'
चलो! हम सूरज उगायें...
सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरितिमा मिल हम उगायें....
विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुंदर रचें हम-
सभी सब के काम आयें...
लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?
सोच यह जीवन जियें हम।
हाथ-हाथों से मिलायें...
आत्म में विश्वात्म देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवायें...
तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सुनेंगे।
नाद अनहद गूँजता जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...
***
नवगीत:
संजीव
.
कुण्डी खटकी
उठ खोल द्वार
है नया साल
कर द्वारचार
.
छोडो खटिया
कोशिश बिटिया
थोड़ा तो खुद को
लो सँवार
.
श्रम साला
करता अगवानी
मुस्का चहरे पर
ला निखार
.
पग द्वय बाबुल
मंज़िल मैया
देते आशिष
पल-पल हजार
***
***
नवगीत:
नए साल
मत हिचक
बता दे क्या होगा?
.
सियासती गुटबाजी
क्या रंग लाएगी?
'देश एक' की नीति
कभी फल पायेगी?
धारा तीन सौ सत्तर
बनी रहेगी क्या?
गयी हटायी
तो क्या
घटनाक्रम होगा?
.
काशी, मथुरा, अवध
विवाद मिटेंगे क्या?
नक्सलवादी
तज विद्रोह
हटेंगे क्या?
पूर्वांचल में
अमन-चैन का
क्या होगा?
.
धर्म भाव
कर्तव्य कभी
बन पायेगा?
मानवता की
मानव जय
गुंजायेगा?
मंगल छू
भू के मंगल
का क्या होगा?
*
***
दोहा सलिला :
भवन माहात्म्य
*
[इंस्टिट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, लोकल सेंटर जबलपुर द्वारा गगनचुम्बी भवन (हाई राइज बिल्डिंग) पर १०-११ अगस्त २०१३ को आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी की स्मारिका में प्रकाशित कुछ दोहे।]
*
भवन मनुज की सभ्यता, ईश्वर का वरदान।
रहना चाहें भवन में, भू पर आ भगवान।१।
*
भवन बिना हो जिंदगी, आवारा-असहाय।
अपने सपने ज्यों 'सलिल', हों अनाथ-निरुपाय।२।
*
मन से मन जोड़े भवन, दो हों मिलकर एक।
सब सपने साकार हों, खुशियाँ मिलें अनेक।३।
*
भवन बचाते ज़िन्दगी, सड़क जोड़ती देश।
पुल बिछुडों को मिलाते, तरु दें वायु हमेश।४।
*
राष्ट्रीय संपत्ति पुल, सड़क इमारत वृक्ष।
बना करें रक्षा सदा, अभियंतागण दक्ष।५।
*
भवन सड़क पुल रच बना, आदम जब इंसान।
करें देव-दानव तभी, मानव का गुणगान।६।
*
कंकर को शंकर करें, अभियंता दिन-रात।
तभी तिमिर का अंत हो, उगे नवल प्रभात७।
*
भवन सड़क पुल से बने, देश सुखी संपन्न।
भवन सेतु पथ के बिना, होता देश विपन्न।८।
*
इमारतों की सुदृढ़ता, फूंके उनमें जान।
देश सुखी-संपन्न हो, बढ़े विश्व में शान।९।
*
भारत का नव तीर्थ है, हर सुदृढ़ निर्माण।
स्वेद परिश्रम फूँकता, निर्माणों में प्राण।१०।
*
अभियंता तकनीक से, करते नव निर्माण।
होता है जीवंत तब, बिना प्राण पाषाण।११।
*
भवन सड़क पुल ही रखें, राष्ट्र-प्रगति की नींव।
सेतु बना- तब पा सके, सीता करुणासींव।१२।
*
करे इमारत को सुदृढ़, शिल्प-ज्ञान-तकनीक।
लगन-परिश्रम से बने, बीहड़ में भी लीक।१३।
*
करें कल्पना शून्य में, पहले फिर साकार।
आंकें रूप अरूप में, यंत्री दे आकार।१४।
*
सिर्फ लक्ष्य पर ही रखें, हर पल अपनी दृष्टि।
अभियंता-मजदूर मिल, रचें नयी नित सृष्टि।१५।
*
सडक देश की धड़कनें, भवन ह्रदय पुल पैर।
वृक्ष श्वास-प्रश्वास दें, कर जीवन निर्वैर।१६।
*
भवन सेतु पथ से मिले, जीवन में सुख-चैन।
इनकी रक्षा कीजिए, सब मिलकर दिन-रैन।१७।
*
काँच न तोड़ें भवन के, मत खुरचें दीवार।
याद रखें हैं भवन ही, जीवन के आगार।१८।
*
भवन न गन्दा हो 'सलिल', सब मिल रखें खयाल।
कचरा तुरत हटाइए, गर दे कोई डाल।१९।
*
भवनों के चहुँ और हों, ऊँची वृक्ष-कतार।
शुद्ध वायु आरोग्य दे, पायें ख़ुशी अपार।२०।
*
कंकर से शंकर गढ़े, शिल्प ज्ञान तकनीक।
भवन गगनचुम्बी बनें, गढ़ सुखप्रद नव लीक।२१।
*
वहीं गढ़ें अट्टालिका जहाँ भूमि मजबूत।
जन-जीवन हो सुरक्षित, खुशियाँ मिलें अकूत।२२।
*
ऊँचे भवनों में रखें, ऊँचा 'सलिल' चरित्र।
रहें प्रकृति के मित्र बन, जीवन रहे पवित्र।२३।
*
रूपांकन हो भवन का, प्रकृति के अनुसार।
अनुकूलन हो ताप का, मौसम के अनुसार।२४।
*
वायु-प्रवाह बना रहे, ऊर्जा पायें प्राण।
भवन-वास्तु शुभ कर सके, मानव को सम्प्राण।२५।
***
चित्रगुप्त वंदना:
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
हे चित्रगुप्त भगवन आपकी जय-जय
हे परमेश्वर मतिमान आपकी जय-जय
हे अक्षर अजर अमर अविनाशी अक्षय
हे अजित अमित गुणवान आपकी जय-जय
हे तमहर शुभकर विधि-हरि-हर के स्वामी
हे आत्मा-प्राण निधान आपकी जय-जय
हे चारु ललित शालीन सौम्य शुचि सुंदर
हे अविकारी संप्राण आपकी जय-जय
हे चिंतन मनन सृजन रचना वरदानी
हे सृजनधर्मिता-खान आपकी जय-जय
बेटे को कहती बाप बाप का दुनिया
विधि-पिता ब्रम्ह संतान आपकी जय-जय
विधि-हरि-हर को प्रगटाकर, विधि से प्रगटे
दिन संध्या निशा विहान आपकी जय-जय
सत-शिव-सुंदर सत-चित-आनंद हो देवा
श्री क्ली ह्री कीर्तिवितान आपकी जय-जय
तुम कारण-कार्य तुम्हीं परिणाम अनामी
हे शून्य सनातन गान आपकी जय-जय
सब कुछ तुमसे सब कुछ तुममें अविनाशी
हे कण-कण के भगवान आपकी जय-जय
हे काया-माया-छाया-पति परमेश्वर
हे सृष्टि-सृजन अभियान आपकी जय-जय
३१-१२-२०१४
***
नवगीत:
संजीव
.
बहुत-बहुत आभार तुम्हारा
ओ जाते मेहमान!
.
पल-पल तुमने
साथ निभाया
कभी रुलाया
कभी हँसाया
फिसल गिरे, आ तुरत उठाया
पीठ ठोंक
उत्साह बढ़ाया
दूर किया हँस कष्ट हमारा
मुरझाते मेहमान
.
भूल न तुमको
पायेंगे हम
गीत तुम्हारे
गायेंगे हम
सच्ची बोलो कभी तुम्हें भी
याद तनिक क्या
आयेंगे हम?
याद मधुर बन, बनो सहारा
मुस्काते मेहमान
.
तुम समिधा हो
काल यज्ञ की
तुम ही थाती
हो भविष्य की
तुमसे लेकर सतत प्रेरणा
मन:स्थिति गढ़
हम हविष्य की
'सलिल' करेंगे नहीं किनारा
मनभाते मेहमान
३१-१२-२०१४
***
हाइकु गीत:
रूप अपना
*
रूप अपना / सराहती रही है / रूपसी आप
किसे बताये / प्रिय के नयनों में / गयी है व्याप...
*
है विधु लता / सी चंचल-चपल / अल्हड कौन
बोले अबोले / दे निशा निमंत्रण / प्रिय को मौन
नेह नर्मदा / ले रही हिलोरें ज्यों / मन्त्र का जाप...
*
कुसुम कली / किरण की कोर सी / है मुस्कुराई
आशा-आकांक्षा / मन में बसी पर / हाथ न आई
धर अधर / अधर में, अधर / अंकित छाप...
*
जीभ चिढ़ाये / नवोढ़ा सी लजाये / ठेंगा दिखाये
हरेक पल / समुद से सलिला / दूरी मिटाये
अरूणाभित / सिन्दूरी कपोलों को / छिपाये काँप...
*
अमराई में / कूकती कोकिला सी / देती आनंद
मठा-महेरी / पुरवैया-पछुआ / साँसों के छंद
समय देव ! / मनौती, नहीं देना / विरह शाप...
*
राग-रागिनी / सुर-सरगम सा / अटूट नाता
कभी न टूटे / हे सत्य नारायण! / भाग्य विधाता!!
हे नये वर्ष! / मिले अनंत हर्ष / रहें निष्पाप...

३१-१२-२०१३
***
व्यंग्य रचना:
हो गया इंसां कमीना...
संजीव 'सलिल'
*
गली थी सुनसान, कुतिया एक थी जाती अकेली.
दिखे कुछ कुत्ते, सहम संकुचा गठी थी वह नवेली..
कहा कुत्तों ने: 'न डरिए, श्वान हैं इंसां नहीं हम.
आंच इज्जत पर न आयेगी, भरोसा रखें मैडम..
जाइए चाहे जहाँ सर उठा, है खतरा न कोई.
आदमी से दूर रहिए, शराफत उसने है खोई..'
कहा कुतिया ने:'करें हडताल लेकर एक नारा.
आदमी खुद को कहे कुत्ता नहीं हमको गवारा..'
'ठीक कहती हो बहिन तुम, जानवर कुछ तुरत बोले.
मांग हो अब जानवर खुद को नहीं इंसां बोले.
थे सभी सहमत, न अब इन्सान को मुंह लगायेंगे.
हो गया लुच्चा कमीना, आदमी को बताएँगे..
***
***
नए वर्ष का गीत:
झाँक रही है...
संजीव 'सलिल'
*
झाँक रही है
खोल झरोखा
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
चुन-चुन करती चिड़ियों के संग
कमरे में आ.
बिन बोले बोले मुझसे
उठ! गीत गुनगुना.
सपने देखे बहुत, करे
साकार न क्यों तू?
मुश्किल से मत डर, ले
उनको बना झुनझुना.
आँक रही
अल्पना कल्पना
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
कॉफ़ी का प्याला थामे
अखबार आज का.
अधिक मूल से मोह पीला
क्यों कहो ब्याज का?
लिए बांह में बांह
डाह तज, छह पल रही-
कशिश न कोशिश की कम हो
है सबक आज का.
टाँक रही है
अपने सपने
नए वर्ष में धूप सुबह की...
***
नया वर्ष
हम नया वर्ष जरूर मनाएंगे
दामिनी के आंसुओं, चीखों और कराहों को
याद करने के लिए
और यह संकल्प करने के लिए
कि हम अपनी ज़िंदगी में
किसी नारी का अपमान नहीं करेंगे
अपने बच्चों को ऐसे संस्कार देंगे
कि वह नारी को सिर्फ भोग्या न माने।
हम अपने शहर के हर थाने में
नारी का सम्मान करने और
तत्काल ऍफ़. आई. आर.दर्ज करने
सम्ब्नाधी पोस्टर चिपकाएँ।
सरकार से मांग करें कि
पुलिस विभाग को
अपराध-संख्या बढ़ने पर
दण्डित न किया जाए क्योंकि
संख्या घटने के लिए ही
अपराध दर्ज नहीं किये जाते।
हम एक दिन ही नहीं हर दिन
दामिनी वर्ष मनाएं।
नारी सम्मान की अलख जलाएं
३१-१२-२०१२
***
नव वर्ष पर नवगीत:
महाकाल के महाग्रंथ का
महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
*
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है.
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो.
निज मन का
छायांकन कर लो.
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
*
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
*
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब.
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
*
खाली हाथ?
न रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
***
नये साल का गीत
*
कुछ ऐसा हो साल नया,
जैसा अब तक नहीं हुआ.
अमराई में मैना संग
झूमे-गाये फाग सुआ...
*
बम्बुलिया की छेड़े तान.
रात-रातभर जाग किसान.
कोई खेत न उजड़ा हो-
सूना मिले न कोई मचान.
प्यासा खुसरो रहे नहीं
गैल-गैल में मिले कुआ...
*
पनघट पर पैंजनी बजे,
बीर दिखे, भौजाई लजे.
चौपालों पर झाँझ बजा-
दास कबीरा राम भजे.
तजें सियासत राम-रहीम
देख न देखें कोई खुआ...

स्वर्ग करे भू का गुणगान.
मनुज देव से अधिक महान.
रसनिधि पा रसलीन 'सलिल'
हो अपना यह हिंदुस्तान.
हर दिल हो रसखान रहे
हरेक हाथ में मालपुआ...
३१-१२-२०१०
***
भर्तृहरि का कथन है --
'को लाभो गुणिसंगमः' अर्थात् ( लाभ क्या है? गुणियों का साथ) ।
अंतर्जाल ने मुझे इस लाभ से परिचित करवाया है।
आशा करता हूँ नये साल में मैं इससे और भी ज्यादा लाभांवित हो सकूँगा।
नये साल में हम सभी एक दूसरे के विचारों लाभ प्राप्त कर सके इसी आशा के साथ इस पुराने साल को हार्दिक विदाई । डा. डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार "
'सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहाँ तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो?'
अपने रचे को इस कसौटी पर परखें और लिखें, लिखते रहें।
नव वर्ष मंगलमय हो ।