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शनिवार, 27 जुलाई 2019

क्षणिका

क्षणिकायें:
१. आभार
*
आभार
अर्थात आ भार.
तभी कहें
जब सकें स्वीकार
*
२. वरदान
*
ज़िन्दगी भरा चाहा
किन्तु न पाया.
अवसर मिला
तो नाहक गँवाया.
मन से किया
कन्यादान.
पर भूल गए
करना वरदान.
*
३. कविता
भाव सलिला से
दर्द की उषा किरण
जब करती है अठखेली
तब जिंदगी
उसे बनाकर सहेली
कर देती है कविता.
*
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

क्षणिका

क्षणिकाएँ...
*
१. वंदना
*
कर पाता दिल 
अगर वंदना
तो न टूटता
यह तय है.
*
२. समाधान
*
निंदा करना
बहुत सरल है.
समाधान ही
मुश्किल है.
*
३. सियासत -१
*
असंतोष-कुंठा
कब उपजे?
बूझे कारण कौन?
'सलिल' सियासत
स्वार्थ साधती
जनगण रहता मौन.
*
४. सियासत -२
तुम्हारा हर झूठ
सच है
हमारा हर सच
झूठ है
यही है आज की
सियासत
दोस्त ही
करता अदावत.
*
५.. शब्द सिपाही
*
मैं हूँ अदना
शब्द-सिपाही.
अर्थ सहित दें
शब्द गवाही..
*
अंतिम दो देवी नागरानी जी ने सिंधी में अनुवादित कर आमने-सामने काव्य संग्रह में मूल सहित प्रकाशित कीं.
सियासत
तुंहिजो हर हिकु झूठ
सचु आहे
मुंहिंजो हर हिकु सचु
झूठ आहे
इहाई आहे
अजु जी सियासत
दोस्त ई
कन दुश्मनी
*
लफ्ज़न जो सिपाही
*
मां आहियाँ अदनो
लफ्जन जो सिपाही.
अर्थ साणु डियन
लफ्ज़ गवाही.
*
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#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

क्षणिका

क्षणिका 
१. त्यागपत्र 
*
पद से त्यागपत्र
पद की प्राप्ति हित 
अभूतपूर्व अनुष्ठान।
*
२. जाँच
*
सत्तासीन का
हर झूठ सच।
सताहीन का
हर झूठ सच।
किसी पर न आये आँच
होती है,
हो जाने दो जाँच।
*
३. जय-जय
*
तुम अपना
हम अपना
साधें स्वार्थ।
होकर अभय
साथ-साथ करें
एक-दूसरे की
जय-जय।
४. फिर क्यों?
*
दोनों एक साथ
करें एक सा काम
पायें एक सा अंजाम
फिर क्यों
एक शहीद
दूसरा मारा गया?
*
५. गोष्ठी
श्रोता हैं तो
मित्र को पढ़ाओ
बिन सुने ताली बजाओ।
श्रोता नहीं तो
पढ़ा दो किसी को भी
सफल हो गयी गोष्ठी।
*
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

बुधवार, 26 जून 2019

समीक्षा 'अंधी पीसे कुत्ते खाएँ'




पुस्तक सलिला: 
'अंधी पीसे कुत्ते खाएँ' खोट दिखाती हैं क्षणिकाएँ
समीक्षक: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
(पुस्तक विवरण: 'अंधी पीसे कुत्ते खाएँ' क्षणिका संग्रह, अविनाश ब्यौहार, प्रथम संस्करण २०१७, आकार डिमाई, आवरण पेपरबैक बहुरंगी, पृष्ठ १३७, मूल्य १००/-, प्रज्ञा प्रकाशन २४ जगदीशपुरम्, रायबरेली, कवि संपर्क: ८६,रॉयल एस्टेट कॉलोनी, माढ़ोताल, जबलपुर, चलभाष: ९८२६७९५३७२, ९५८४०५२३४१।)
*
चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या अधिक लोग
सुरवाणी संस्कृत से विरासत में काव्य-परंपरा ग्रहण कर विश्ववाणी हिंदी उसे सतत समृद्ध कर रही है। हिंदी व्यंग्य काव्य विधा की जड़ें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा लोक-भाषाओं के लोक-काव्य में हैं। व्यंग्य चुटकी काटने से लेकर तिलमिला देने तक का कार्य कुछ शब्दों में कर देता है। गागर में सागर भरने की तरह दुष्कर क्षणिका विधा में पाठक-मन को बाँध लेने की सामर्थ्य है। नवोदित कवि अविनाश ब्यौहार की यह कृति 'पूत के पाँव पालने में दिखते हैं' कहावत को चरितार्थ करती है। कृति का शीर्षक उन सामाजिक कुरीतियों को लक्ष्य करता है जो नेत्रहीना द्वारा पीसे गए को कुत्ते द्वारा खाए जाने की तरह निष्फल और व्यर्थ हैं।
बुद्धिजीवी कायस्थ परिवार में जन्मे और उच्च न्यायालय में कार्यरत कवि में औचित्य-विचार सामर्थ्य होना स्वाभाविक है। अविनाश पारिस्थितिक वैषम्य को 'सर्वजनहिताय' के निकष पर कसते हैं, भले ही 'सर्वजनसुखाय' से उन्हें परहेज नहीं है किंतु निज-हित या वर्ग-हित उनका इष्ट नहीं है। उनकी क्षणिकाएँ व्यवस्था के नाराज होने का खतरा उठाकर भी; अनुभूति को अभिव्यक्त करती हैं। भ्रष्टाचार, आरक्षण, मँहगाई, राजनीति, अंग प्रदर्शन, दहेज, सामाजिक कुरीतियाँ, चुनाव, न्याय प्रणाली, चिकित्सा, पत्रकारिता, बिजली, आदि का आम आदमी के दैनंदिन जीवन पर पड़ता दुष्प्रभाव अविनाश की चिंता का कारण है। उनके अनुसार 'आजकल/लोगों की / दिमागी हालत / कमजोर पड़ / गई है / शायद इसीलिए / क्षणिकाओं की / माँग बढ़ / गई है।' विनम्र असहमति व्यक्त करना है कि क्षणिका रचना, पढ़ना और समझना कमजोर नहीं सजग दिमाग से संभव होता है। क्षणिका, दोहा, हाइकु, माहिया, लघुकथा जैसी लघ्वाकारी लेखन-विधाओं की लोकप्रियता का कारण पाठक का समयाभाव हो सकता है।अविनाश की क्षणिकाएँ सामयिक, सटीक, प्रभावी तथा पठनीय-मननीय हैं। उनकी भाषा प्रवाहपूर्ण, प्रसाद गुण संपन्न, सहज तथा सटीक है किंतु अनुर्वर और अनुनासिक की गल्तियाँ खीर में कंकर की तरह खटकती हैं। 'हँस' क्रिया और 'हंस' पक्षी में उच्चारण भेद और एक के स्थान पर दूसरे के प्रयोग से अर्थ का अनर्थ होने के प्रति सजगता आवश्यक है चूँकि पुस्तक में प्रकाशित को पाठक सही मानकर प्रयोग करता है।
इन क्षणिकाओं का वैशिष्ट्य मुहावरे का सटीक प्रयोग है। इससे भाषा जीवंत, प्रवाहपूर्ण, सहज ग्राह्य तथा 'कम में अधिक' कह सकी है। 'पक्ष हो /या विपक्ष / दोनों एक / थैली के / चट्टे-बट्टे हैं। / जीते तो / आँधी के आम / हारे तो / अंगूर खट्टे हैं।' यहाँ कवि दो प्रचलित मुहावरे का प्रयोग करने के साथ 'आँधी के आम' एक नए मुहावरे की रचना करता है। इस कृति में कुछ और नए मुहावरे रच-प्रयोगकर कवि ने भाषा की श्रीवृद्धि की है। यह प्रवृत्ति स्वागतेय है। 
'चित्रगुप्त ने यम-सभा से / दे दिया स्तीफा / क्योंकि उन्हें मुँह / चिढ़ा रहा था / आतंक का खलीफा।' पंगु सिद्ध हो रही व्यवस्था पर कटाक्ष है। 'मैं अदालत / गया तो / मैंने ऐसा / किया फील / कि / झूठे मुकदमों / की पैरवी / बड़ी ईमानदारी / से करते / हैं वकील।' यहाँ तीखा व्यंग्य दृष्टव्य है। अंग्रेजी शब्द 'फील' का प्रयोग सहज है, खटकता नहीं किंतु 'ईमानदारी' के साथ 'बड़ी' विशेषण खटकता है। ईमानदारी कम-अधिक तो हो सकती है, छोटी-बड़ी नहीं। 
अविनाश ने अपनी पहली कृति से अपनी पैठ की अनुभूति कराई है, इसलिए उनसे 'और अच्छे' की आशा है। 
*
समीक्षक संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, 401 विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर 482001, 
चलभाष: 7999559618/ 9425183244, ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com


मंगलवार, 26 मार्च 2019

हाइकू, माहिया, क्षणिका

विधा विविधा:
हाइकु:
(त्रिपदिक वाचिक जापानी छंद ५-७-५ ध्वनि) 
.
गुलाब खिले 
तुम्हारे गालों पर
निगाह मिले.
*
माहिया:
(त्रिपदिक मात्रिक पंजाबी छंद, १३-१०-१३ मात्रा)
.
मत माँगने मत आना
जुमला वादों को
कह चाहते बिसराना.
*
क्षणिका:
( नियम मुक्त)
.
मन-पंछी
उड़ा नीलाभ नभ में
सिंदूरी प्राची से आँख मिलाने,
झटपट भागा
सूरज ने आँख तरेरी
लगा धरती को जलाने.
***
चित्र अलंकार: समकोण त्रिभुज
(वर्ण पिरामिड: ७ पंक्ति, वर्ण क्रमश: १ से ७)
मैं
भीरु
कायर
डरपोंक,
हूँ भयभीत
वर्ण पिरामिड
लिखना नहीं आता.
*
हो
तुम
साहसी
पराक्रमी
बहादुर भी
मुझ असाहसी
को झेलते रहे हो.
*
२५.३.२०१८

मंगलवार, 12 मार्च 2019

सवैया अठ सलल क्षणिका

क्षणिका
*
जानेमन
अब तक रही
क्यों दुश्मने-जां हो गई?
चैन उसके बिन न था
बेचैनियाँ क्यों बो रही?
आस मेरी
प्यास मेरी
श्वास की दुश्मन बनी
हास को छोड़ा नहीं
संत्रास फिर-फिर बो गई।
*
अठ सलल सवैया
११२-११२-११२-११२-११२-११२-११२-११२-११
*
जय हिंद कहें, सब संग रहें, हँस हाथ गहें, मिल जीत वरें हम
अरि जूझ थकें, हथियार धरें, अरमान यही, कबहूँ न डरें हम
मत-भेद भले, मन-भेद नहीं, हम एक रहे, सच नेक रहें हम
अरि मार सकें, रण जीत तरें, हँस स्वर्ग वरें, मर न मरें हम
*

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

क्षणिका

एक क्षणिका
*
पहले दिखी 
फिर मिली-जुली
हँस कली खिली
झट साँझ ढली
कर बंद गली
'मी टू' बोली अगली।
***


रविवार, 2 सितंबर 2018

kshanika

क्षणिका: कृपा
😃
"कृपा चाहता हूँ"
न कहना कभी भी,
वरना नहीं तुम
रिहा हो सकोगे।
बहिन है 'कृपा'
इन जज साहिबा की
माँगा जो,
मुश्किल में
ज्यादा फँसोगे।
***
२.९.२०१८

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

kshanika

क्षणिका 
१. त्यागपत्र 
*
पद से त्यागपत्र
पद की प्राप्ति हित 
अभूतपूर्व अनुष्ठान।
*
२. जाँच
*
सत्तासीन का
हर झूठ सच।
सताहीन का
हर झूठ सच।
किसी पर न आये आँच
होती है,
हो जाने दो जाँच।
*
३. जय-जय
*
तुम अपना
हम अपना
साधें स्वार्थ।
होकर अभय
साथ-साथ करें
एक-दूसरे की
जय-जय।
४. फिर क्यों?
*
दोनों एक साथ
करें एक सा काम
पायें एक सा अंजाम
फिर क्यों
एक शहीद
दूसरा मारा गया?
*
५. गोष्ठी
श्रोता हैं तो
मित्र को पढ़ाओ
बिन सुने ताली बजाओ।
श्रोता नहीं तो
पढ़ा दो किसी को भी
सफल हो गयी गोष्ठी।
*

२७.७.२०१७
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

kshanika

क्षणिकाएँ...
*
१. वंदना
*
कर पाता दिल 
अगर वंदना
तो न टूटता
यह तय है.
*
२. समाधान
*
निंदा करना
बहुत सरल है.
समाधान ही
मुश्किल है.
*
३. सियासत -१
*
असंतोष-कुंठा
कब उपजे?
बूझे कारण कौन?
'सलिल' सियासत
स्वार्थ साधती
जनगण रहता मौन.
*
४. सियासत -२
तुम्हारा हर झूठ
सच है
हमारा हर सच
झूठ है
यही है आज की
सियासत
दोस्त ही
करता अदावत.
*
५.. शब्द सिपाही
*
मैं हूँ अदना
शब्द-सिपाही.
अर्थ सहित दें
शब्द गवाही..
*
अंतिम दो देवी नागरानी जी ने सिंधी में अनुवादित कर आमने-सामने काव्य संग्रह में मूल सहित प्रकाशित कीं.
सियासत
तुंहिजो हर हिकु झूठ
सचु आहे
मुंहिंजो हर हिकु सचु
झूठ आहे
इहाई आहे
अजु जी सियासत
दोस्त ई
कन दुश्मनी
*
लफ्ज़न जो सिपाही
*
मां आहियाँ अदनो
लफ्जन जो सिपाही.
अर्थ साणु डियन
लफ्ज़ गवाही.
*
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kshanika

क्षणिकायें:
१. आभार
*
आभार
अर्थात आ भार.
तभी कहें
जब सकें स्वीकार
*
२. वरदान
*
ज़िन्दगी भरा चाहा
किन्तु न पाया.
अवसर मिला
तो नाहक गँवाया.
मन से किया
कन्यादान.
पर भूल गए
करना वरदान.
*
३. कविता
भाव सलिला से
दर्द की उषा किरण
जब करती है अठखेली
तब जिंदगी
उसे बनाकर सहेली
कर देती है कविता.
*
salil.sanjiv@gmail.com
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शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

क्षणिका सलिला

क्षणिका सलिला
अविनाश ब्योहार 
*
चारा

जब कोई चारा
नहीं रहा तो
देना पड़ा प्रलोभन!
नैतिकता से
कार्य करवाना
सिद्ध हुआ
अरण्य रोदन!!

रस्म

पैसा खाना
दफ्तर की
हो गई
है रस्म!
लोग हो
गये हैं
चार चश्म!!

पस्त

लगता है
सूर्य हो गया
है अस्त!
प्रजातंत्र की
हालत पस्त!!

***
रायल एस्टेट
कटंगी रोड जबलपुर।

बुधवार, 4 अप्रैल 2018

kshanika

क्षणिका सलिला *१.
जिनको जाना है,
न रुकेंगे,
वे चले जाएँगे
बाद जाने के मगर
याद बहुत आएँगे
*
२.
कौन हैं हम?
कहें कैसे कि
'नहीं मालुम है?'
साथ बेगम,
कहें कैसे? कि
यही तो गम है.
*





शनिवार, 9 दिसंबर 2017

kshanika

क्षणिका 
*
बहुत सुनी औरों की 
अब तो 
मनमानी कुछ की जाए.
दुनिया ने परखा अब तक
अब दुनिया भी परखी जाए
*

मंगलवार, 21 नवंबर 2017

kshanika

क्षणिकाएँ
१. क्षितिज
.
क्षितिज
यदि  हाथ आता तो
बनाते हम तवा उसको
जला सूरज का नित चूल्हा
बनाते समय की रोटी
मिटाते भूख दुनिया की,
क्षितिज
यदि  हाथ आता तो
*
२. हुकुम
.
हुकुम
देना अगर होता
विधाता को हुकुम देते
मिटा दे भूख दुनिया से,
न बाकी स्वार्थ ही छोड़े.
भले पूजे न कोई भी
उसे तब,
हम तभी पूजें.
*
३.

बुधवार, 13 सितंबर 2017

kshanika

क्षणिका 
*
मैं 
न खुद को जान पाया
आज तक। 
अजाना भी हूँ नहीं
मैं
सत्य कहता।
***

गुरुवार, 27 जुलाई 2017

kshanika


क्षणिका
१. सही-गलत
*
साथ हो?
तो सही।
साथ नहीं
तो गलत।
*
२. हम
तू तू
मैं मैं
तू-तू, मैं-मैं
तू मैं
मैं तू
हैं हम।
*
३. आँख
*
पीर तुम्हें तो  सूखी है
पीर मुझे तो गीली है
आँख।
*
४. मोल
*
किसान की फसल?
बेमोल।
सेठ का माल?
अनमोल।
*
५. पोशाक
*
दरिद्र की मज़बूरी
अधनंगा।
रईस का फैशन
अधनंगा।
*
६. आधुनिक
*
वसंतोत्सव मनाया
पिछड़े हो।
वैलेंटाइन सेलिब्रेट करो
आधुनिक बनो।
*
७. बेक़सूर
*
सालों से सम्बन्ध
अब नहीं करता शादी
वह धोखेबाज,
मैं बेक़सूर।
*
८. अबला
*
ये माताजी, वो ससुरी
ये पिताश्री, वे बुढ़ऊ
भाई बेचारा, देवर निखट्टू
बहिन लाडली, ननद दुष्टा
पुरुष शोषक
नारी अबला।
९. लोकतंत्र
*
लोक पर
हावी तंत्र
सच्चा लोकतंत्र।
१०. व्यवस्था
*
शिक्षक अस्थाई
अभियंता अस्थाई
चिकित्सक अस्थाई
अफसर स्थाई
आदर्श व्यवस्था।
११. पेंशन
कर्मचारी
कई साल बाद
पेंशन ले तो भार।
विधायक
एक दिन भी रहे
पेंशन अधिकार।
***
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क्षणिका
१. त्यागपत्र
*
पद से त्यागपत्र
पद की प्राप्ति हित
अभूतपूर्व अनुष्ठान।
*
२.  जाँच
*
सत्तासीन का
हर झूठ सच।
सताहीन का
हर झूठ सच।
किसी पर न आये आँच
होती है,
हो जाने दो जाँच।
*
३. जय-जय
*
तुम अपना
हम अपना
साधें स्वार्थ।
होकर अभय
साथ-साथ करें
एक-दूसरे की
जय-जय।
४. फिर क्यों?
*
दोनों एक साथ
करें एक सा काम
पायें एक सा अंजाम
फिर क्यों
एक शहीद
दूसरा मारा गया?
*
५. गोष्ठी
श्रोता हैं तो
मित्र को पढ़ाओ
बिन सुने ताली बजाओ।
श्रोता नहीं तो
पढ़ा दो किसी को भी
सफल हो गयी गोष्ठी।
*
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#हिंदी_ब्लॉगर

kshanika

क्षणिकायें:
१. आभार
*
आभार
अर्थात आ भार.
तभी कहें
जब सकें स्वीकार
*
२. वरदान
*
ज़िन्दगी भरा चाहा
किन्तु न पाया.
अवसर मिला
तो नाहक गँवाया.
मन से किया
कन्यादान.
पर भूल गए
करना वरदान.
*
३. कविता
भाव सलिला से
दर्द की उषा किरण
जब करती है अठखेली
तब जिंदगी
उसे बनाकर सहेली
कर देती है कविता.
*
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मंगलवार, 4 जुलाई 2017

kshanika

क्षणिका:
आभार
अर्थात आ भार.
तभी कहें
जब सकें स्वीकार
*
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