कुल पेज दृश्य

navgeet ug rahe लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
navgeet ug rahe लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 23 जनवरी 2019

navgeet ug rahe

नवगीत: 
संजीव 

उग रहे या ढल रहे तुम 
कान्त प्रतिपल रहे सूरज 
.
हम मनुज हैं अंश तेरे
तिमिर रहता सदा घेरे
आस दीपक जला कर हम
पूजते हैं उठ सवेरे
पालते या पल रहे तुम
भ्रांत होते नहीं सूरज
.
अनवरत विस्फोट होता
गगन-सागर चरण धोता
कैंसर झेलो ग्रहण का
कीमियो नव आस बोता
रश्मियों की कलम ले
नवगीत रचते मिले सूरज
.
कै मरे कब गिने तुमने?
बिम्ब के प्रतिबिम्ब गढ़ने
कैमरे में कैद होते
हास का मधुमास वरने
हौसले तुमने दिये शत
ऊगने फिर ढले सूरज
.