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रविवार, 21 अगस्त 2011

एक रचना: काल --संजीव 'सलिल'

एक रचना:                                                                                
काल
--संजीव 'सलिल'

*
काल की यों करते परवाह...
*
काल ना सदय ना निर्दय है.
काल ना भीत ना निर्भय है.
काल ना अमर ना क्षणभंगुर-
काल ना अजर ना अक्षय है.
काल पल-पल का साथी है
काल का सहा न जाए दाह...
*
काल ना शत्रु नहीं है मीत.
काल ना घृणा नहीं है प्रीत.
काल ना संग नहीं निस्संग-
काल की हार न होती जीत.
काल है आह कभी है वाह...
*
काल माने ना राजा-रंक.
एक हैं सूरज गगन मयंक.
काल है दीपक तिमिर उजास-
काल है शंका, काल निश्शंक.
काल अनचाही पलती चाह...
*
काल को नयन मूँदकर देख.
काल है फलक खींच दे रेख.
भाल को छूकर ले तू जान-
काल का अमित लिखा है लेख.
काल ही पग, बाधा है राह...
*
काल का कोई न पारावार.
काल बिन कोई न हो व्यापार.
काल इकरार, काल इसरार-
काल इंकार, काल स्वीकार.
काल की कोई न पाये थाह...
***********

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

बुधवार, 29 जून 2011

गीत: काल तो सदा हमारे साथ... --संजीव 'सलिल'

गीत:
काल तो सदा हमारे साथ...
संजीव 'सलिल'
*
काल तो सदा हमारे साथ,
काल की क्यों करते परवाह?
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
काल दे साथ उठाता शीश, काल विपरीत झुकाता माथ...
काल कर देता लम्बे हस्त, काल ही काटे पल में हाथ..
काल जो चाहे वह हो नित्य, काल विपरीत न करिए चाह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
काल के वश में है हर एक, काल-संग चलिए लाठी टेक.
काल से करिए विनय हमेश, न छूटे किंचित बुद्धि-विवेक..
काल दे स्नेह-प्रेम, सद्भाव, काल हर ले ईर्ष्या औ' डाह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*

काल कल, आज और कल मीत, न आता-जाता हुआ प्रतीत.
काल पल सुखद गये कब बीत?, दुखद पल होते नहीं व्यतीत..
काल की गरिमा नभ विस्तीर्ण, काल की महिमा समुद अथाह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
काल से महाकाल
भी भीत, हुए भू-लुंठित हारे-जीत.
काल संग पढ़ो काल के पाठ, न फिर दुहराओ व्यथित अतीत.
काल की सुनो 'सलिल' लय-ताल, काल की गहो हमेषा छांह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
 
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

शुक्रवार, 14 मई 2010

अंतिम गीत: लिए हाथ में हाथ चलेंगे.... ---संजीव 'सलिल'

अंतिम गीत

संजीव 'सलिल'

*
ओ मेरी सर्वान्गिनी! मुझको याद वचन वह 'साथ रहेंगे'.
तुम जातीं क्यों आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
दो अपूर्ण मिल पूर्ण हुए हम सुमन-सुरभि, दीपक-बाती बन.
अपने अंतर्मन को खोकर क्यों रह जाऊँ मैं केवल तन?
शिवा रहित शिव, शव बन जीना, मुझको अंगीकार नहीं है--
प्राणवर्तिका रहित दीप बन जीवन यह स्वीकार नहीं है.
तुमको खो सुधियों की समिधा संग मेरे मेरे भी प्राण जलेंगे.
तुम क्यों जाओ आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
नियति नटी की कठपुतली हम, उसने हमको सदा नचाया.
सच कहता हूँ साथ तुम्हारा पाने मैंने शीश झुकाया.
तुम्हीं नहीं होगी तो बोलो जीवन क्यों मैं स्वीकारूँगा?-
मौन रहो कुछ मत बोलो मैं पल में खुद को भी वारूँगा.
महाकाल के दो नयनों में तुम-मैं बनकर अश्रु पलेंगे.
तुम क्यों जाओ आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
हमने जीवन की बगिया में मिलकर मुकुलित कुसुम खिलाये.
खाया, फेंका, कुछ उधार दे, कुछ कर्जे भी विहँस चुकाये.
अब न पावना-देना बाकी, मात्र ध्येय है साथ तुम्हारा-
सिया रहित श्री राम न, श्री बिन श्रीपति को मैंने स्वीकारा.
साथ चलें हम, आगे-पीछे होकर हाथ न 'सलिल' मलेंगे.
तुम क्यों जाओ आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com