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बुधवार, 31 जुलाई 2019

आनंद पाठक

अभियंता, हाइकुकार, व्यंग्यकार, ग़ज़लकार 
आनंद पाठक को 
जन्म दिवस की 
*
अनंत शुभ कामनायें 
आनंद परमानंद पा रच माहिया हरते जिया 
लिख व्यंग्य दें जिस पर उसी का हिला देते हैं हिया
लिख दें ग़ज़ल तो हो फसल भावों की बिन बरसात भी 
कृपा है इन पर उसी की हुए ये जिसके ये पिया

मंगलवार, 21 अगस्त 2018

vyangya geet anand pathak

" छुट-भईए" नेताओं को समर्पित ----"

एक व्यंग्य गीत :-
नेता बन जाओगे प्यारे-----😀😀😀😀😀
आनंद पाठक
*
पढ़-लिख कर भी गदहों जैसा व्यस्त रहोगे
नेता बन जाओगे ,प्यारे ! मस्त रहोगे

कौए ,हंस,बटेर आ गए हैं कोटर में
भगवत रूप दिखाई देगा अब ’वोटर’ में
जब तक नहीं चुनाव खतम हो जाता प्यारे
’मतदाता’ को घुमा-फिरा अपनी मोटर में

सच बोलोगे आजीवन अभिशप्त रहोगे
नेता बन जाओगे ,प्यारे ! मस्त रहोगे

गिरगिट देखो , रंग बदलते कैसे कैसे
तुम भी अपना चोला बदलो वैसे वैसे
दल बदलो बस सुबह-शाम,कैसी नैतिकता?
अन्दर का परिधान बदलते हो तुम जैसे

’कुर्सी,’पद’ मिल जायेगा आश्वस्त रहोगे
नेता बन जाओगे ,प्यारे ! मस्त रहोगे

अपना सिक्का सही कहो ,औरों का खोटा
थाली के हो बैगन ,बेपेंदी का लोटा
बिना रीढ़ की हड्डी लेकिन टोपी ऊँची
सत्ता में है नाम बड़ा ,पर दर्शन छोटा

’आदर्शों’ की गठरी ढो ढो ,त्रस्त रहोगे
नेता बन जाओगे ,प्यारे ! मस्त रहोगे

नेता जी की ’चरण-वन्दना’ में हो जब तक
हाथ जोड़ कर खड़े रहो बस तुम नतमस्तक
’मख्खन-लेपन’ सुबह-शाम तुम करते रहना
छू न सकेगा ,प्यारे ! तुमको कोई तब तक

तिकड़मबाजी,जुमलों में सिद्ध हस्त रहोगे
नेता बन जाओगे ,प्यारे ! मस्त रहोगे

जनता की क्या ,जनता तो माटी का माधो
सपने दिखा दिखा के चाहो जितना बाँधो
राम नाम की ,सदाचार की ओढ़ चदरिया
करना जितना ’कदाचार’ हो कर लो ,साधो !

सत्ता की मधुबाला पर आसक्त रहोगे
नेता बन जाओगे ,प्यारे !

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

mahiya: anand pathak

चन्द माहिया सावन के
आनंद पाठक 
*
सावन की घटा काली
याद दिलाती है
वो शाम जो मतवाली
*
सावन के वो झूले
झूले थे हम तुम 
कैसे कोई भूले
*
सावन की फुहारों से
जलता है तन-मन
जैसे अंगारों से
*
आएगी कब गोरी?
पूछ रही मुझ से
मन्दिर की बँधी डोरी
*
क्या जानू किस कारन?
सावन भी बीता 
आए न अभी साजन
*

रविवार, 11 जनवरी 2015

laghukatha: anand pathak

लघुकथा:
गोली
आनंद पाठक
.
" तुम ’राम’ को मानते हो ?-एक सिरफिरे ने पूछा
-"नहीं"- मैने कहा
उसने मुझे गोली मार दी क्योकि मै उसकी सोच का हमसफ़ीर नहीं था और उसे स्वर्ग चाहिए था
"तुम ’रहीम’  को मानते हो ?"-दूसरे सिरफिरे ने पूछा
-"नही"- मैने कहा
उसने मुझे गोली मार दी क्योंकि मैं काफ़िर था और उसे जन्नत चाहिए थी।
" तुम ’इन्सान’ को मानते हो"- दोनो सिरफिरों ने पूछा
-हाँ- मैने कहा
फिर दोनों ने बारी बारी से मुझे गोली मार दी क्योंकि उन्हें ख़तरा था कि यह इन्सानियत का बन्दा कहीं  जन्नत या स्वर्ग न हासिल कर ले
 xx                       xxx                           xxx                      xxx

बाहर गोलियाँ चल रही हैं। मैं घर में दुबका बैठा हूँ ।घर से बाहर नहीं निकलता ।
 अब मेरी ’अन्तरात्मा’ ने मुझे गोली मार दी
मैं घर में ही मर गया ।

-आनन्द.पाठक-
09413395592

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

एक ग़ज़ल : वो आम आदमी है.... आनंद पाठक


एक ग़ज़ल
 वो आम आदमी है....
  आनंद पाठक 
 
वो आम आदमी है , ज़ेर--नज़र नहीं है
उसको भी सब पता है ,वो बेख़बर नहीं है
 
सपने दिखाने वाले ,वादे हज़ार कर ले  
कैसे यकीन कर लूं , तू मोतबर नहीं है
 
तू मीर--कारवां है ,ग़ैरों से क्यों मिला है?  
 अब तेरी रहनुमाई, उम्मीदबर नहीं है
 
की सरफ़रोशी तूने जिस रोशनी की ख़ातिर  
गो सुब्ह हुई तो लेकिन ये वो सहर नहीं है
 
तेरी रगों में अब भी वो ही इन्कलाबी ख़ूं हैं  
फिर क्या हुआ कि उसमें अब वो शरर नहीं है
 
यां धूप चढ़ गई है तू ख़्वाबीदा है अब भी  
दुनिया किधर चली है तुझको ख़बर नहीं है
 
मर कर रहा हूँ ज़िन्दा हर रोज़ मुफ़लिसी में  
ये मोजिज़ा है शायद ,मेरा हुनर नहीं है
 
पलकें बिछा दिया हूं वादे पे तेरे आकर 
 मैं जानता हूँ तेरी ये रहगुज़र नहीं है
 
किसकी उमीद में तू बैठा हुआ है आनन 
इस सच के रास्ते का यां हम सफ़र नहीं है
 
-आनन्द.पाठक
 
ज़े--नज़र = सामने ,focus में
मोतबर=विश्वसनीय,
मीर--कारवां = यात्रा का नायक
शरर= चिंगारी
ख्वाविंदा= सुसुप्त ,सोया हुआ
मुफ़लिसी= गरीबी ,अभाव,तंगी
मोजिज़ा=दैविक चमत्कार
यां=यहाँ