कुल पेज दृश्य

acharya sanjiv verma 'salil; लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
acharya sanjiv verma 'salil; लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 29 अगस्त 2013

samvaa dkatha: andekhi -sanjiv

संवाद कथा
अनदेखी
संजीव
*
'आजकल कुछ परेशान दिख रहे हैं, क्या बात है?' मैंने मित्र से पूछा.
''क्या बताऊँ? कुछ दिनों से पोत विद्यालय जाने से मना करता है."
'क्यों?'
"कहता है रास्ते में कुछ बदतमीज बच्चे गाली-गलौज करते हैं. इससे उसे भय लगता है.''
'अच्छा, मैं कल उससे बात करूँगा, शायद उसकी समस्या सुलझ सके.'
अगले दिन मैं मित्र और उसके पोते के साथ स्थानीय भँवरताल उद्यान गया. मार्ग में एक हाथी जा रहा था जिसके पीछे कुछ कुत्ते भौंक रहे थे.
'क्यों बेटे? क्या देख रहे हो?'
बाबा जी! हाथी के पीछे कुत्ते भौंक रहे हैं.
'हाथी कितने हैं?'
बाबाजी ! एक.
'और कुत्ते?'
कई
'अच्छा, हाथी क्या कर रहा है?'
कुत्तों की ओर बिना देखे अपने रास्ते जा रहा है.
हम उद्यान पहुँच गए तो ओशो वृक्ष के नीचे जा बैठे. बच्चे से मैंने पूछा: ' इस वृक्ष के बारे में कुछ जानते हो?'
जी, बाबा जी! इसके नीचे आचार्य रजनीश को ज्ञान प्राप्त हुआ था जिसके बाद उन्हें ओशो कहा गया.
मैंने बच्चे को बताया कि किस प्रकार ओशो को पहले स्थानीय विरोध और बाद में अमरीकी सरकार का विरोध झेलना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी राह नहीं बदली और अंत में महान चिन्तक के रूप में इतिहास में अमर हुए.
वापिस लौटते हुई मैंने बच्चे से पूछा: 'बेटे! यदि हाथी या ओशो राह रोकनेवालों पर ध्यान देकर रुक जाते तो क्या अपनी मंजिल पा लेते?'
नहीं बाबा जी! कोई कितना भी रास्ता रोके, मंजिल आगे बढ़ने से ही मिलती है.
''यार! आज तो गज़ब हो गया, पोटा अपने आप विद्यालय जाने को तैयार हो गया. कुछ देर बाद उसके पीछे-पीछे मैं भी गया लेकिन वह रास्ते में भौकते कुत्तों से न डरा, न उन पर ध्यान दिया, सीधे विद्यालय जाकर ही रुका.'' मित्र ने प्रसन्नता से बताया.
=========


Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

शनिवार, 12 जनवरी 2013

बाल गीत : रोज सुबह चूँ-चूँ चिड़िया संजीव 'सलिल'



> बाल गीत :
> रोज सुबह चूँ-चूँ चिड़िया
> संजीव 'सलिल'
> *
> रोज सुबह चूँ-चूँ चिड़िया, आती है हँस नमन करो.
> जो कुछ अच्छा दिखे तुम्हें, वह जीवन-पाथेय वरो..
>
> जल्दी उठ व्यायाम करो, स्नान करो फिर ध्यान धरो.
शीश झुका, आशीष मिले, पा जीवन को चमन करो..
>
> सीखो मुश्किल से लड़ना, फूल-फलो हो विनत झरो.
> सरहद पर दुश्मन आए, पाठ पढ़ाओ नहीं डरो..
>
> भेद-भाव को दूर करो, सबमें समता भाव भरो.
> निर्बल का बल बनना है,
>
> अच्छा दिखे न जो- छोड़ो, पीर किसी की 'सलिल' हरो.
> मलिन न हो धरती माता, पर्यावरण सफाई करो..
>
> ****
>
>
> Sanjiv verma 'Salil'
> salil.sanjiv@gmail.com
> http://divyanarmada.blogspot.com