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गुरुवार, 2 जनवरी 2025

जनवरी २, डहलिया, राम सेंगर, डहलिया, शाला छंद, त्रिपदियाँ, जनवरी : कब क्या?, दोहा

सलिल सृजन जनवरी २
जनवरी : कब क्या?
*
१. ईसाई नव वर्ष।
३.सावित्री बाई फुले जयंती।
४. लुई ब्रेक जयंती।
५. परमहंस योगानंद जयंती।
१०. विश्व हिंदी दिवस।
१२. विवेकानंद / महेश योगी जयन्ती, युवा दिवस।
१३. गुरु गोबिंद सिंह जयंती।
१४. मकर संक्रांति, बीहू, पोंगल, ओणम।
१५. थल सेना दिवस, कुंभ शाही स्नान।
१९. ओशो महोत्सव।
२०. शाकंभरी पूर्णिमा।
23. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती.
२६. गणतंत्र दिवस।
२७. स्वामी रामानंदाचार्य जयंती।
२८. लाला लाजपत राय जयंती।
३०. म. गाँधी शहीद दिवस, कुष्ठ निवारण दिवस।
३१. मैहर बाबा दिवस।
***
साहित्यकार / कलाकार:
सर्व श्री / सुश्री / श्रीमती
१. अर्चना निगम ९४२५८७६२३१
त्रिभवन कौल स्व.
राकेश भ्रमर ९४२५३२३१९५
विनोद शलभ ९२२९४३९९००
सुरेश कुशवाह 'तन्मय'
डॉ. जगन्नाथ प्रसाद बघेल ९८६९०७८४८५
२. राम सेंगर ९८९३२४९३५६
राजकुमार महोबिआ ७९७४८५१८४४
राजेंद्र साहू ९८२६५०६०२५
४. शिब्बू दादा ८९८९००१३५५
८. पुष्पलता ब्योहार ०७६१ २४४८१५२
१२. आदर्श मुनि त्रिवेदी
संतोष सरगम ८८१५०१५१३१
१५. अशोक झरिया ९४२५४४६०३०
१६. हिमकर श्याम ८६०३१७१७१०
२३. अशोक मिजाज ९९२६३४६७८५
२६. उमा सोनी 'कोशिश' ९८२६१९१८७१
***
राम सेंगर
जन्म २-१-१९४५, नगला आल, सिकन्दराऊ, हाथरस उत्तर प्रदेश।
प्रकाशित कृतियाँ:
१. शेष रहने के लिए, नवगीत, १९८६, पराग प्रकाशन दिल्ली।
२. जिरह फिर कभी होगी, २००१, अभिरुचि प्रकाशन दिल्ली।
३.एक गैल अपनी भी, २००९, अनामिका प्रकाशन, इलाहाबाद।
४. ऊँट चल रहा है, २००९, नवगीत, उद्भावना प्रकाशन, दिल्ली।
५. रेत की व्यथा कथा, २०१३, नवगीत, उद्भावना प्रकाशन, दिल्ली।
नवगीत शतक २ तथा नवगीत अर्धशती के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर।
संपर्क: चलभाष ९८९३२४९३५६।
*
शुभांजलि
*
'शेष रहने के लिए',
लिखते नहीं तुम।
रहे लिखना शेष यदि
थकते नहीं तुम।
नहीं कहते गीत 'जिरह
फिर कभी होगी'
मान्यता की चाह कर
बिकते नहीं तुम।
'एक गैल अपनी भी'
हो न जहाँ पर क्रंदन
नवगीतों के राम
तुम्हारा वंदन
*
'ऊँट चल रहा है'
नवगीत का निरंतर।
है 'रेत की व्यथा-कथा'
समय की धरोहर।
कथ्य-कथन-कहन की
अभिनव बहा त्रिवेणी
नवगीत नर्मदा का
सुनवा रहे सहज-स्वर।
सज रहे शब्द-पिंगल
मिल माथ सलिल-चंदन
***
डहलिया
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मूलत: मेक्सिको में समुद्र तट से ५००० फुट ऊँचे रेतीले घास मैदानों में ऊगनेवाला डहलिया ब्यूट की मार्चियोनेस द्वारा १७८९ में मैड्रिड के रास्ते इंग्लैंड लाया गया। इनके खो जाने पर १८०४ में लेडी हालैन्ड द्वारा अन्य पौधे लाए गए। ये भी नष्ट हो गए। वर्ष १८१४ में शांति होने तथा महाद्वीप को खोले जाने पर फ्रांस से नए पौधे मँगवाए गए। लिनियस के शिष्य डॉ. डाहल के नाम पर इसे डहलिया कहा गया। महाद्वीप में इसे 'जॉर्जिना' भी कहा जाता है। १८०० के अंत तक डहलिया फूल की पंखुड़ियों से प्राप्त डहलिया एक्सट्रैक्ट प्राचीन दक्षिण अमेरिका से लेकर मध्य मेक्सिको, युकाटन और ग्वाटेमाला की पूर्व-कोलंबियाई संस्कृतियों में एक महत्वपूर्ण जड़वाला औषधीय गुणों के लिए जाना जात था। इसके कंद या जड़ें, उनके अंदर संग्रहीत पौष्टिक इनुलिन और कंद की त्वचा में केंद्रित एंटीबायोटिक यौगिकों दोनों के लिए मूल्यवान थीं। फूल का एज़्टेक नाम एकोकोटली या कोकोक्सोचिटल अर्थात 'पानी का पाइप' है। यह नाम डहलिया के औषधिक प्रभाव (शरीर प्रणाली में पानी की अनुपस्थिति व प्रवाह) को देखते हुए उपयुक्त है।
प्रकार
बगीचे में रंगों और आकृतियों की विविधता के लिए डहलिया लोकप्रिय पुष्प है। ये आसानी से उगने वाले बहुरंगी फूल क्रीमी सफ़ेद, हल्के गुलाबी, चमकीले पीले, लेकर शाही बैंगनी, गहरे लाल आदि अनेक रंगों में खिलते हैं। इस लोकप्रिय उद्यान फूल की ६०,००० से अधिक नामित किस्में हैं। डहलिया बहु आकारी पुष्प है। एकल-फूल वाले ऑर्किड डहलिया से लेकर फूले हुए पोम पोम डहलिया तक, सजावटी डहलिया के फूल आकार, रूप और रंग की विविधता में होते हैं। देर से गर्मियों में खिलनेवाले अपने खूबसूरत फूलों के साथ, डहलिया बगीचे में शानदार पतझड़ का रंग भर देते हैं। बॉल डाहलिया का ऊपरी भाग चपटा होता है, तथा पंखुड़ियाँ सर्पिल आकार में बढ़ती हैं। कैक्टस डहेलिया की पंखुड़ियाँ तारे के आकार में बढ़ती हैं। मिग्नॉन डहलिया में गोल किरण पुष्प होते हैं। आर्किड डाहलिया का केंद्र खुला होता है तथा एक डिस्क के चारों ओर पुष्पों की किरणें होती हैं। पोम्पोम डहलिया गोल आकार में उगते हैं और उनकी पंखुड़ियाँ घुमावदार होती हैं। सजावटी डहलिया को १५ अलग-अलग रंगों और संयोजनों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

लाल डहलिया: 'अरेबियन नाइट': गहरे बरगंडी रंग के फूल लगभग ३.५ इंच चौड़े होते हैं। 'बेबीलोन रेड': लंबे समय तक चलने वाली, 8 इंच की डिनर प्लेट एक आकर्षक रंग में खिलती है। 'बिशप लैंडैफ़': मधुमक्खियों और बागवानों दोनों द्वारा पसंद किया जाने वाला यह छोटा लाल डाहलिया लाल पंखुड़ियों और गहरे रंग के पत्तों से सजा हुआ है। 'क्रेव कुएर': ११ इंच के डिनर प्लेट के आकार के ये फूल मजबूत तने के ऊपर खिलते हैं, ये जीवंत लाल फूल ४ फीट से अधिक ऊंचे होते हैं। 'रेड कैप': ४ इंच चौड़े फूल चमकीले लाल रंग में खिलते हैं। 'रेड फॉक्स': सघन पौधे जो गहरे लाल, ४ इंच के फूलों के साथ खिलते हैं।

सफेद डहलिया: 'बूम बूम व्हाइट': ५ इंच के खूबसूरत फूलों वाला एक सफ़ेद बॉल डाहलिया। 'सेंटर कोर्ट': यह सफेद डहलिया मजबूत तने के ऊपर ६ इंच के सफेद फूलों का प्रचुर उत्पादक है। 'लांक्रेसी': ४ इंच का, मलाईदार सफेद गेंद जैसा डाहलिया जो छोटे कंदों से उगता है। 'पेटा की शादी': शानदार, मलाईदार ३ इंच के फूलों की प्रचुरता पैदा करती है। 'स्नोकैप': बीच में हरे रंग के विचित्र स्पर्श के साथ सपाट सफेद पंखुड़ियाँ। 'व्हाइट डिनर प्लेट': ये शानदार, शुद्ध सफेद डहलिया फूल १० इंच तक चौड़े होते हैं। 'व्हाइट ओनेस्टा': यह बहुत अधिक फूलने वाला, सपाट सफेद रंग का डहलिया ३.५ इंच चौड़ा होता है।

गुलाबी डहलिया: 'कैफे औ लेट': सुंदर मलाईदार गुलाबी फूल ९ इंच तक चौड़े होते हैं और शादियों और समारोहों में अपनी खूबसूरती से सबको चौंका देते हैं। 'चिल्सन्स प्राइड': 4 इंच की ये सफेद और गुलाबी सुंदरियां गर्मी में लाल हो जाती हैं। 'एसली': ३ इंच के गुलाबी डहलिया में फूलों की भरमार होती है। 'हर्बर्ट स्मिथ': कंद भले ही छोटे हों, लेकिन ये चमकीले गुलाबी रंग के डहलिया 6 इंच तक चौड़े होते हैं। 'रेबेका लिन': प्रचुर मात्रा में, छोटे गुलाबी फूल बबल गम की याद दिलाते हैं। 'सैंड्रा': गेंद के आकार में गुलाबी पंखुड़ियों के साथ किसी भी परिदृश्य में नाटकीयता जोड़ती है। 'मधुर प्रेम': मलाईदार सफेद किनारों वाले हल्के गुलाबी फूल समय के साथ हल्के लाल रंग में बदल जाते हैं। 'ट्रिपल ली ​​डी': कॉम्पैक्ट पौधों के ऊपर असामान्य गुलाबी-सैल्मन रंग।

पीला डहलिया: 'गोल्डन टॉर्च': गोल, पीले रंग की गेंदें जो कटे हुए फूलों की सजावट के लिए उपयुक्त हैं। 'केल्विन फ्लडलाइट': विशाल, लंबे समय तक टिकने वाले पीले फूल जो 10 इंच तक चौड़े होते हैं। 'पोल्वेंटन सुप्रीम': लंबी शाखाओं के ऊपर गेंदों के रूप में खिलने वाला कोमल पीला डाहलिया। 'सन किस्ड': मजबूत तने, जिसके ऊपर चमकीली पीली पंखुड़ियां होती हैं। 'येलो परसेप्शन': आकर्षक 4 इंच के फूलों में पीले रंग की पंखुड़ियां होती हैं, जिनके सिरे सफेद होते हैं।

बैंगनी डहलिया: 'बेबीलोन पर्पल': विशाल डिनर प्लेट बैंगनी रंग की शाही छटा में खिलती है। 'ब्लू बॉय डाहलिया': शायद नीले डाहलिया का सबसे करीबी विकल्प, यह बकाइन डाहलिया तितलियों को आकर्षित करता है। 'दिवा': गहरे, शाही बैंगनी रंग का डाहलिया मजबूत तने पर खिलता है। 'फ़र्नक्लिफ़ इल्यूज़न': हल्के बकाइन फूल 8 इंच तक चौड़े होते हैं। 'प्रेशियस': एक बैंगनी-लैवेंडर फूल जो धीरे-धीरे सफेद हो जाता है।
औषधिक महत्व
डंडेलियन और चिकोरी में पाया जाने वाला १५ से २० प्रतिशत इनुलिन (शरीर की इंसुलिन आवश्यकता पूरी करने में सहायक प्राकृतिक उच्च फाइबर खाद्य), 'डहलिन' अर्थात डहलिया कंद में होता है। इनुलिन निकालने के लिए, जड़ों या कंदों को काट और चूने के दूध से उपचारित कर भाप में पकाया जाता है। फिर रस को निचोड़-छान-साफ कर तरल को एक घूमने वाले कूलर में गुच्छे बनने तक चलाया जाता है। इन गुच्छों को एक केन्द्रापसारक मशीन द्वारा अलगकर, धो और रंगहीन कर प्राप्त शुद्ध उत्पाद अंत में तनु अम्ल से उपचारित कर लेवुलोज में परिवर्तित किया जाता है। लेवुलोज के इस घोल को बेअसर कर वैक्यूम पैन में सिरप में वाष्पित किया जाता है। प्राप्त पूर्ण शुद्ध उत्पाद का मीठा और सुखद स्वाद मधुमेह रोगियों,कन्फेक्शनरी बनाने और चीनी उत्पादों के क्रिस्टलीकरण को धीमा करने के लिए भी उपयोगी बनाता है। इसे शराब बनाने और मिनरल वाटर उद्योगों में भी आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। एक स्कॉटिश विश्वविद्यालय ने डहेलिया कंद से सेना के लिए एक मूल्यवान और अत्यंत आवश्यक औषधि निकालने की प्रक्रिया विकसित की।विशेष उपचार से गुजरने के बाद, डाहलिया कंद और चिकोरी से शुद्ध लेवुलोज (अटलांटा स्टार्च या डायबिटिक शुगर) से मधुमेह और तपेदिक तथा बच्चों की दुर्बलता का इलाज किया जाता है। १९०८ में पेरिस में आयोजित चीनी उद्योग की दूसरी अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में पढ़े गए एक शोधपत्र के अनुसार शुद्ध लेवुलोज इनुलिन को तनु अम्लों के साथ उलट कर बनाया जाता है। सेलुलर क्षतिरोधक एंटीऑक्सीडेंट गुणों, सूजनरोधी प्रभाव, रक्त शर्करा विनियमन, कार्डियोवैस्कुलर सपोर्ट तथा प्रतिरक्षा प्रणाली सहायक के रूप में डहलिया अर्क की महत्वपूर्ण भूमिका पर शोध जारी है।
***
कुछ त्रिपदियाँ
*
नोटा मन भाया है,
क्यों कमल चुनें बोलो?
अब नाथ सुहाया है।
*
तुम मंदिर का पत्ता
हो बार-बार चलते
प्रभु को भी तुम छलते।
*
छप्पन इंची छाती
बिन आमंत्रण जाकर
बेइज्जत हो आती।
*
राफेल खरीदोगे,
बिन कीमत बतलाये
करनी भी भोगोगे।
*
पंद्रह लखिया किस्सा
भूले हो कह जुमला
अब तो न चले घिस्सा।
*
वादे मत बिसराना,
तुम हारो या जीतो-
ठेंगा मत दिखलाना।
*
जनता भी सयानी है,
नेता यदि चतुर तो
यान उनकी नानी है।
*
कर सेवा का वादा,
सत्ता-खातिर लड़ते-
झूठा है हर दावा।
*
पप्पू का था ठप्पा,
कोशिश रंग लाई है-
निकला सबका बप्पा।
*
औंधे मुँह गर्व गिरा,
जुमला कह वादों को
नज़रों से आज गिरा।
*
रचना न चुराएँ हम,
लिखकर मौलिक रचना
आइए हम अपना नाम कमाएं.
*
गागर में सागर सी,
क्षणिक लघु, जिसका अर्थ है बड़ा-
ब्रज के नटनागर सी।
*
मन ने मन से मिलकर
उन्मन हो कुछ न कहा-
धीरज का बाँध ढहा।
*
है किसका कौन सगा,
खुद से खुद ने पूछा?
उत्तर जो नेह-पगा।
*
तन से तन जब रूठा,
मन, मन ही मन रोया-
सुनकर झूठी-झूठा।
*
तन्मय होकर तन ने,
मन-मृण्मय जान कहा-
क्षण भंगुर है दुनिया।
***
शिव वंदना : एक दोहा अनुप्रास का
*
शिशु शशि शीश शशीश पर, शुभ शशिवदनी-साथ
शोभित शशि सी शशिमुखी, मोहित शिव शशिनाथ
*
शशीश अर्थात चन्द्रमा के स्वामी शिव जी के मस्तक पर बाल चन्द्र शोभायमान है, चन्द्रवदनी चन्द्रमुखी पावती जी उनके साथ हैं जिन्हें निहारकर शिव जी मुग्ध हो रहे हैं.
***
शुभ रजनी शशि से कहा, तारे हैं नाराज.
किसकी शामत आ गई, करे हमारा काज.
२.१.२०१८
***
गीत :
घोंसला
*
सुनो मुझे भी
कहते-कहते थका
न लेकिन सुनते हो.
सिर पर धूप
आँख में सपने
ताने-बाने बुनते हो.
*
मोह रही मन बंजारों का
खुशबू सीली गलियों की
बचे रहेंगे शब्द अगरचे
साँझी साँझ न कलियों की
झील अनबुझी
प्यास लिये तुम
तट बैठे सिर धुनते हो
*
थोड़ा लिखा समझना ज्यादा
अनुभव की सीढ़ी चढ़ना
क्यों कागज की नाव खे रहे?
चुप न रहो, सच ही कहना
खेतों ने खत लिखा
चार दिन फागुन के
क्यों तनते हो?
*
कुछ भी सहज नहीं होता है
ठहरा हुआ समय कहता
मिला चाँदनी को समेटते हुए
त्रिवर्णी शशि दहता
चंदन वन सँवरें
तम भाने लगा
विषमता सनते हो
*
खींच लिये हाशिये समय के
एक गिलास दुपहरी ले
सुना प्रखर संवाद न चेता
जन-मन सो, कनबहरी दे
निषिद्धों की गली
का नागरिक हुए
क्यों घुनते हो?
*
व्योम के उस पार जाके
छुआ मैंने आग को जब
हँस पड़े पलाश सारे
बिखर पगडंडी-सड़क पर
मूँदकर आँखें
समीक्षा-सूत्र
मिथ्या गुनते हो
*
घोंसले में
परिंदे ही नहीं
आशाएँ बसी हैं
*
आँधियाँ आएँ न डरना
भीत हो,जीकर न मरना
काँपती हों डालियाँ तो
नीड तजकर नहीं उड़ना
मंज़िलें तो
फासलों को नापते
पग को मिली हैं
घोंसले में
परिंदे ही नहीं
आशाएँ बसी हैं
*
संकटों से जूझना है
हर पहेली को सुलझाना है
कोशिशें करते रहे जो
उन्हें राहें सूझना है
ऊगती उषा
तभी जब साँझ
खुद हंसकर ढली है
घोंसले में
परिंदे ही नहीं
आशाएँ बसी हैं
११-१०-२०१६
***
छंद सलिला:
शाला छंद
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: आगरा, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्र वज्र, उपेन्द्र वज्र, कीर्ति, घनाक्षरी, प्रेमा, वाणी, शक्तिपूजा, सार, माला)
शाला छंद में 2 छंद, 4 छंद, 44 अक्षर और 71 अक्षर होते हैं। पहले, दूसरे और चौथे चरण में 2 तगण 1 जगण 2 गुरु होते हैं और तीसरे चरण में जगण तगण जगण 2 गुरु होते हैं।
शाला दे आनंद, इंद्रा तीसरे चरण में
हो उपेन्द्र शुभ छंद, चरण एक दो तीन में
उदाहरण:
१. जा पाठशाला कर लो पढ़ाई, भूलो न सीखा तब हो बड़ाई
पढ़ो-लिखो जो वह आजमाओ, छोडो अधूरा मत पाठ भाई
२. बोलो, न बोलो मत राज खोलो, चाहो न चाहो पर साथ हो लो
करो न कोई रुसवा किसी को, सच्चा कहो या मत झूठ बोलो
३. बाती मिलाओ मन साथ पाओ, वादा निभाओ फिर मुस्कुराओ
बसा दिलों में दिल आप दोनों, सदा दिवाली मिल के मनाओ
२.१.२०१४
*** 

रविवार, 13 जून 2021

सामयिक त्रिपदियाँ

सामयिक त्रिपदियाँ :
संजीव 'सलिल'
*
खोज कहाँ उनकी कमर,
कमरा ही आता नज़र,
लेकिन हैं वे बिफिकर..
*
विस्मय होता देखकर.
अमृत घट समझा जिसे
विषमय है वह सियासत..
*
दुर्घटना में कै मरे?
गैस रिसी भोपाल में-
बतलाते हैं कैमरे..
*
एंडरसन को छोड़कर
की गद्दारी देश से
नेताओं ने स्वार्थ वश..
*
भाग गया भोपाल से
दूर कैरवां जा छिपा
अर्जुन दोषी देश का..
*

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

त्रिपदियाँ

अभिनव प्रयोग
त्रिपदियाँ
(सोलह मात्रिक संस्कारी जातीय छंद, पदांत गुरु)
*
तन्मय जिसमें रहें आप वो
मूरत मन-मंदिर में भी हो
तीन तलाक न दे पाएंगे।
*
नहीं एक के अगर हुए तो
दूजी-तीजी के क्या होंगे?
खाली हाथ सदा पाएंगे।
*
बीत गए हैं दिन फतवों के
साथ समय के नहीं चले तो
आप अकेले पड़ जाएंगे।
*
२२-४-२०१७ 

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

त्रिपदियाँ / माहिया

त्रिपदियाँ / माहिया
*
हर मंच अखाडा है
लड़ने की कला गायब
माहौल बिगाड़ा है.
*
सपनों की होली में
हैं रंग अनूठे ही
सांसों की झोली में.
*
भावी जीवन के ख्वाब
बिटिया ने देखे हैं
महके हैं सुर्ख गुलाब
*
चूनर ओढ़ी है लाल
सपने साकार हुए
फिर गाल गुलाल हुए
*
मासूम हँसी प्यारी
बिखरी यमुना तट पर
सँग राधा-बनवारी
*
पत्तों ने पतझड़ से
बरबस सच बोल दिया
अब जाने की बारी
*
चुभने वाली यादें
पूँजी हैं जीवन की
ज्यों घर की बुनियादें
*
देखे बिटिया सपने
घर-आँगन छूट रहा
हैं कौन-कहाँअपने?
*
है कैसी अनहोनी?
सँग फूल लिये काँटे
ज्यों गूंगे की बोली
***
३-४-२०१६

शनिवार, 28 नवंबर 2020

त्रिपदियाँ

त्रिपदियाँ

*
प्राण फूँक निष्प्राण में, गुंजित करता नाद
जो- उससे करिये 'सलिल', आजीवन संवाद
सुख-दुःख जी वह दे गहें, हँस- न करें फ़रियाद।
*
शर्मा मत गलती हुई, कर सुधार फिर झूम
चल गिर उठ फिर पग बढ़ा, अपनी मंज़िल चूम
फल की आस किये बिना, काम करे हो धूम।
*
करी देश की तिजोरी, हमने अब तक साफ़
लें अब भूल सुधार तो, खुदा करेगा माफ़?
भष्टाचार न कर- रहें, साफ़ यही इन्साफ।
*

सोमवार, 7 सितंबर 2020

त्रिपदियाँ

त्रिपदियाँ
जीवन सलिला
*
जीवन जी जिंदा नहीं
जिंदा है वही जीवन
जो करे न पर निंदा।
*
जीवन तो बहाना है
असली नकली परहित
कर हमको जाना है।
*
जीवन है चलना
गिर रुक उठकर बढ़ना
बिन चुक पर्वत चढ़ना।
*
जीवन जी वन में तू
महसूस तभी होगा
क्या मिला न शहरों में?
*
जीवन सलिला बहती
प्रयासों को दे पानी
कुछ साथ नहीं तहती।
*
जीवन में सहारा हो
जब तक न किसी का तू
तब तक न जिया जीवन।
*
संजीव
७९९९५५९६१८

शनिवार, 13 जून 2020

त्रिपदियाँ

सामयिक त्रिपदियाँ :
संजीव 'सलिल'
*
खोज कहाँ उनकी कमर,
कमरा ही आता नज़र,
लेकिन हैं वे बेफिकर..
*
विस्मय होता देखकर.
अमृतघट समझा जिसे
विषमय है वह सियासत..
*
दुर्घटना में कै मरे?
गैस रिसी भोपाल में-
बतलाते हैं कैमरे..
*
एंडरसन को छोड़कर
की गद्दारी देश से
नेताओं ने स्वार्थ वश..
*
भाग गया भोपाल से
दूर कैरवां जा छिपा
अर्जुन दोषी देश का..
*

जनक छंद / त्रिपदियाँ

जनक छंद / त्रिपदियाँ  
*
ब्यूटी पार्लर में गयी
वृद्धा बाहर निकलकर
युवा रूपसी लग रही..
*
नश्वर है यह देह रे!
बता रहे जो भक्त को
रीझे भक्तिन-देह पे..
*
संत न करते परिश्रम
भोग लगाते रात-दिन
सर्वाधिक वे ही अधम..
*
गिद्ध भोज बारात में
टूटो भूखें की तरह
अब न मान-मनुहार है..
*
पितृ-देहरी छीन गयी
विदा होटलों से हुईं
हाय! हमारी बेटियाँ..
*
करते कन्या-दान जो
पाते हैं वर-दान वे
दे दहेज़ वर-पिता को..
*
१३-६-२०१० 

मंगलवार, 26 मई 2020

त्रिपदियाँ

त्रिपदियाँ
*
सलीबें भी जब करें,
मन रंजना तब जानिए
विपक्षी हैं सामने
*
सलीबें थर्रा रहीं हैं
देख सत को सामने
काश हम होते नहीं
*
सलीबें बन रही हैं
आजकल इतिहास
कैसा समय है?
*
सलीबों की वंदना
कर कहें मन रंजना
वाह रे! इंसान
*
सलीबों को चूमकर
अदीबों ने कह दिया
है यही जम्हूरियत
*
सलीबें कब
देवताओं को मिलीं
सौ खून उनके माफ हैं।
*

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

त्रिपदियाँ

अभिनव प्रयोग
त्रिपदियाँ
(सोलह मात्रिक संस्कारी जातीय छंद, पदांत गुरु)
*
तन्मय जिसमें रहें आप वो
मूरत मन-मंदिर में भी हो
तीन तलाक न दे पाएंगे।
*
नहीं एक के अगर हुए तो
दूजी-तीजी के क्या होंगे?
खाली हाथ सदा पाएंगे।
*
बीत गए हैं दिन फतवों के
साथ समय के नहीं चले तो
आप अकेले पड़ जाएंगे।
*

शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

त्रिपदियाँ

त्रिपदियाँ
प्राण फूँक निष्प्राण में, गुंजित करता नाद
जो- उससे करिये 'सलिल', आजीवन संवाद
सुख-दुःख जी वह दे गहें, हँस- न करें फ़रियाद।
*
शर्मा मत गलती हुई, कर सुधार फिर झूम
चल गिर उठ फिर पग बढ़ा, अपनी मंज़िल चूम
फल की आस किये बिना, काम करे हो धूम।
*
करी देश की तिजोरी, हमने अब तक साफ़
लें अब भूल सुधार तो, खुदा करेगा माफ़?
भष्टाचार न कर- रहें, साफ़ यही इन्साफ।
*

बुधवार, 3 अप्रैल 2019

त्रिपदियाँ



त्रिपदियाँ 
*
हर मंच अखाडा है 
लड़ने की कला गायब 
माहौल बिगाड़ा है. 
*
सपनों की होली में 
हैं रंग अनूठे ही 
सांसों की झोली में.
*
भावी जीवन के ख्वाब 
बिटिया ने देखे हैं 
महके हैं सुर्ख गुलाब 
*
चूनर ओढ़ी है लाल
सपने साकार हुए 
फिर गाल गुलाल हुए
*
मासूम हँसी प्यारी 
बिखरी यमुना तट पर
सँग राधा-बनवारी
*
पत्तों ने पतझड़ से 
बरबस सच बोल दिया 
अब जाने की बारी 
*
चुभने वाली यादें 
पूँजी हैं जीवन की 
ज्यों घर की बुनियादें 
*
देखे बिटिया सपने 
घर-आँगन छूट रहा
हैं कौन-कहाँअपने? 
* 
है कैसी अनहोनी?
सँग फूल लिये काँटे 
ज्यों गूंगे की बोली 
३.४.२०१६
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रविवार, 3 अप्रैल 2016

त्रिपदियाँ

त्रिपदियाँ
*
हर मंच अखाडा है
लड़ने की कला गायब
माहौल बिगाड़ा है.
*
सपनों की होली में
हैं रंग अनूठे ही
सांसों की झोली में.
*
भावी जीवन के ख्वाब
बिटिया ने देखे हैं
महके हैं सुर्ख गुलाब
*
चूनर ओढ़ी है लाल
सपने साकार हुए
फिर गाल गुलाल हुए
*
मासूम हँसी प्यारी
बिखरी यमुना तट पर
सँग राधा-बनवारी
*
पत्तों ने पतझड़ से
बरबस सच बोल दिया
अब जाने की बारी
*
चुभने वाली यादें
पूँजी हैं जीवन की
ज्यों घर की बुनियादें
*
देखे बिटिया सपने
घर-आँगन छूट रहा
हैं कौन-कहाँअपने?
*
है कैसी अनहोनी?
सँग फूल लिये काँटे
ज्यों गूंगे की बोली
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बुधवार, 11 जुलाई 2012

त्रिपदियाँ /तसलीस : सूरज संजीव 'सलिल'

त्रिपदियाँ /तसलीस :
सूरज

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संजीव 'सलिल'



बिना नागा निकलता है सूरज।
कभी आलस नहीं करते देखा
तभी पाता सफलता है सूरज।
 

सुबह खिड़की से झाँकता सूरज।
कह रहा तम को जीत लूँगा मैं
कम नहीं खुद को आँकता सूरज।
 

भोर पूरब में सुहाता सूरज।
दोपहर देखना भी मुश्किल हो
शाम पश्चिम को सजाता सूरज।
 

जाल किरणों का बिछाता सूरज।
कोई अपना न पराया कोई
सभी सोयों को जगाता सूरज।
 

उजाला सबको दे रहा सूरज।
अँधेरे को रहा भगा भू से
दुआएँ  सबकी ले रहा सूरज।



आँख रजनी से चुराता सूरज।
बाँह में एक चाह में दूजी 
आँख ऊषा से लड़ाता सूरज।





काम निष्काम ही करता सूरज।
नाम के लिये न मरता सूरज
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज।