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शनिवार, 31 दिसंबर 2016

गीत

एक रचना
*
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
देश दिनों से खड़ा हुआ है,
जो जैसा है अड़ा हुआ है,
किसे फ़िक्र जनहित का पेड़ा-
बसा रहा है, सड़ा हुआ है।
चचा-भतीजा ताल ठोंकते,
पिता-पुत्र ज्यों श्वान भौंकते,
कोई काट न ले तुझको भी-
इसीलिए
कहता हूँ-
रुक जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
वादे जुमले बन जाते हैं,
घपले सारे धुल जाते हैं,
लोकतंत्र के मूल्य स्वार्थ की-
दीमक खाती, घुन जाते हैं।
मौनी बाबा बोल रहे हैं
पप्पू जहँ-तहँ डोल रहे हैं
गाल बजाते जब-तब लालू
मत टकराना
बच जा झुक जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
एक आदमी एक न पाता,
दूजा लाख-करोड़ जुटाता,
मार रही मरते को दुनिया-
पिटता रोये, नहीं सुहाता।
हुई देर, अंधेर यहाँ है,
रही अनसुनी टेर यहाँ है,
शुद्ध दलाली, न्याय कहाँ है?
जलने से
पहले मत
बुझ जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*****

navgeet

नवगीत
समय वृक्ष है
*
समय वृक्ष है
सूखा पत्ता एक झरेगा
आँखें मूँदे.
नव पल्लव तब
एक उगेगा
आँखे खोले.
*
कहो अशुभ या
शुभ बोलो
कुछ फर्क नहीं है.
चिरजीवी होने का
कोई अर्क नहीं है.
कितने हुए?
होएँगे कितने?
कौन बताये?
किसका कितना वजन?
तराजू कोई न तोले.
ठोस दिख रहे
लेकिन हैं
भीतर से पोले.
नव पल्लव
किस तरह उगेगा
आँखें खोले?
*
वाम-अवाम
न एक साथ
मिल रह सकते हैं.
काम-अकाम
न एक साथ
खिल-दह सकते हैं.
पूरब-पश्चिम
उत्तर-दक्षिण
ऊपर-नीचे
कर परिक्रमा
नव संकल्प
अमिय नित घोले.
श्रेष्ठ वही जो
श्रम-सीकर की
जय-जय बोले.
बिन प्रयास
किस तरह कर्मफल
आँखें खोले?
*
जाग,
छेड़ दे, राग नया
चुप से क्या हासिल?
आग
न बुझने देना
तू मत होना गाफिल.
आते-जाते रहें
साल-दर-साल
नए कुछ.
कौन जानता
समय-चक्र
दे हिम या शोले ?
नोट बंद हों या जारी
नव आशा बो ले.
उसे दिखेगी उषा
जाग जो
आँखें खोले
***