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रविवार, 27 सितंबर 2020

बुंदेली मुक्तिका

 मुक्तिका बुंदेली में

*
पाक न तन्नक रहो पाक है?
बाकी बची न कहूँ धाक है।।
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सूपनखा सें चाल-चलन कर
काटी अपनें हाथ नाक है।।
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कीचड़ रहो उछाल हंस पर
मैला-बैठो दुष्ट काक है।।
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अँधरा दहशतगर्द पाल खें
आँखन पे मल रओ आक है।।
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कल अँधियारो पक्का जानो
बदी भाग में सिर्फ ख़ाक है।।
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पख्तूनों खों कुचल-मार खें
दिल बलूच का करे चाक है।।
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२६-९-२०१६

रविवार, 19 जुलाई 2020

बुन्देली मुक्तिका

बुन्देली मुक्तिका:
मंजिल की सौं...
संजीव
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मंजिल की सौं, जी भर खेल
ऊँच-नीच, सुख-दुःख. हँस झेल
रूठें तो सें यार अगर
करो खुसामद मल कहें तेल
यादों की बारात चली
नाते भए हैं नाक-नकेल
आस-प्यास के दो कैदी
कार रए साँसों की जेल
मेहनतकश खों सोभा दें
बहा पसीना रेलमपेल
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२४-५-२०१३