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सोमवार, 6 जुलाई 2020

मुक्तक

मुक्तक:
*
भारती की आरती है शुभ प्रभात
स्वच्छता ही तारती है शुभ प्रभात
हरियाली चूनर भू माँ को दो-
मैया मनुहारती है शुभ प्रभात
*
झुक बुजुर्ग से आशिष लेना शुभ प्रभात है
छंदों में नव भाव पिरोना शुभ प्रभात है
आशा की नव फसलें बोना शुभ प्रभात है
कोशिश कर अवसर ना खोना शुभ प्रभात है
*
गरज-बरसकर मेघ, कह रहे शुभ प्रभात है
योग भगाए रोग करें, कह शुभ प्रभात है
लगा-बचाकर पौध, कहें हँस शुभ प्रभात है
स्वाध्याय कर, रचें नया कुछ शुभ प्रभात है
***
६-७-२०१७ 

शनिवार, 13 मई 2017

madhumalti chhand

रसानंद दे छंद नर्मदा ८१:  
 


दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक (चौबोला), रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​, गीतिका, ​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन/सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका , शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रव
ज्रा
, इंद्रव
​​
ज्रा, 
सखी
​, 
विधाता/शुद्धगा, 
वासव
​, 
अचल धृति
​,  
अचल
​, अनुगीत, अहीर, अरुण, 
अवतार, 
​​उपमान / दृढ़पद,  
एकावली,  
अमृतध्वनि, नित, आर्द्रा, ककुभ/कुकभ, कज्जल, कमंद, कामरूप, कामिनी मोहन (मदनावतार), 
काव्य, 
वार्णिक कीर्ति, 
कुंडल, गीता, गंग, 
चण्डिका, चंद्रायण, छवि (मधुभार), जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिग्पाल / दिक्पाल / मृदुगति, दीप, दीपकी, दोधक, निधि, निश्चल
प्लवंगम, प्रतिभा, प्रदोषप्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनाग छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए मधुमालती छंद से 
  

Rose    मधुमालती 
छंद
*
छंद-लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ७-७, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण) होता है.  

लक्षण छंद:मधुमालती आनंद दे 
ऋषि साध सुर नव छंद दे 
चरणांत गुरु लघु गुरु रहे 
हर छंद नवउत्कर्ष दे।    

उदाहरण:
१. 
माँ भारती वरदान दो 
   सत्-शिव-सरस हर गान दो
   मन में नहीं अभिमान हो
   
घर-अग्र 'सलिल' मधु गान हो।


२. सोते बहुत अब तो जगो
   खुद को नहीं खुद ही ठगो 
   कानून को तोड़ो नहीं-    
   अधिकार भी छोडो नहीं 

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शारदे माँ 
कल्पना भट्ट 
*
माँ शारदे! वरदान दो
सदबुद्धि दो, सँग ज्ञान दो
मन में नहीं अभिमान हो
शुभ-अशुभ की पहचान दो।
वाणी मधुर रसवान दो
'मैं' का नहीं गुण गान हो
बच्चे अभी नादान हैं
निर्मल मधुर मुस्कान दो
किसको पता हम कौन हैं
अपनी हमें पहचान दो
हम अल्प ज्ञानी माँ! हमें
निज चरण में तुम स्थान दो ।।
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बुधवार, 27 मई 2009

भाषा वैभव: मगही

भाषा वैभव स्तम्भ के अर्न्तगत आप पड़ेंगे भारत की अपेक्षाकृत कम प्रचलित बोलियों की रचनाएँ। मगही किसी समय भारत से बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अंतर्राष्ट्रीय माध्यम भाषा के रूप में भूमिका निभा चुकी है। पाली , प्राकृत, मागधी, कैथी, अंगिका, बज्जिका, मैथिली आदि बिहार में समय-समय पर प्रचलित रही हैं। नयी पीढी को विरासत से परिचित कराने के लिए यह साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ किया जा रहा है। इस सत्र में प्रस्तुत है डॉ. मणि शंकर प्रसाद रचित मगही गीत

गुंजन जय-जय भारती

गाँव-गाँव में, नगर-डगर में
गुन्जय जय-जय भारती....

हिंया न राजा, हिंया न रानी
सबके देश पियारा है।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
सब में भाईचारा है।

झूम-झूम के भारत-जनता
गावय गाँधी आरती।
गाँव-गाँव में, नगर-डगर में
गुन्जय जय-जय भारती....

मरघट से पनघट तक कैसन
रूप-गंध अलसात है।
बंजर भुइंयाँ विहँस रहल आउ
सगरो सुख अलसात है।

गूंगा गावय गीत सोहावन
मरिया बन गेल मालती।
गाँव-गाँव में, नगर-डगर में
गुन्जय जय-जय भारती....


मड़िया के झाँकय इंजोरिया
मधु रस से मातल हर कोर।
गदरैयल जन-जन के भाषा
उतर पड़ल है सुख के भोर।

सुघड़ गोरिया झूम रहल कि
बुढियन ओढे बरसाती।
गाँव-गाँव में, नगर-डगर में
गुन्जय जय-जय भारती...

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