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शनिवार, 3 जुलाई 2021

संस्मरण पवन जैन

संस्मरण : 
पहली मुलाकात।
मैं बैंक का सेवानिवृत्त प्रबंधक साहित्य पाठन से तो जुडा़ था, पर लेखन और साहित्यकारों से दूर था। बैंक सेवा के दौरान आपा- धापी में समय द्रुत गति से दौड़ता जा रहा था। सेवा निवृत्ति के बाद फेसबुक समूहों से जुड़ा और लघुकथाएँ लिखने लगा। फेसबुक पर 'लघुकथा के परिंदे' समूह की संचालिका सुश्री कांता राय ने बताया कि साहित्य की दुनिया में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का बड़ा नाम है और वे जबलपुर में रहते हैं, उन्होंने मुझे उनसे मिलने की सलाह दी। यह तीन वर्ष पुरानी बात है।
जबलपुर में होमसाईंस कालेज रोड़ जाना पहचाना स्थान है, बिना किसी परेशानी के पहुँच गया एक दिन उनके निवास पर।
दरवाजा खुलते ही देखा पूरा कमरा चारों तरफ से पुस्तकों से भरा हुआ है, कुर्सी पर विराजमान थे आचार्य जी सामने टेबिल, टेबिल पर कम्प्यूटर, उन्होंने गर्मजोशी से स्वागत किया। मेरे दिमाग में एक छवि थी कि गंवई तकिया लगाए तख्त पर अधलेटे विचार मुद्रा में किसी व्यक्ति से परिचय होगा। परंतु आचार्य जी तो वर्तमान युग के साहित्यकार है जिनके पास बुजुर्गों के संस्कार भी हैं और कम्प्यूटर युग की तकनीक भी। वे लगातार परिचयात्मक बात करते रहे, और अंगुलियाँ कम्प्यूटर पर चलती रही। उन्होंने कहा बस दो मिनट यह लेख पूरा कर लूँ। मेरी नजर कमरे में रखी पुस्तकों को टटोल रही थी, मेरी पसंद की पुस्तकों का खजाना देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। नये कवर की कई पुस्तकों, लेखकों से मैं अन्जान था।
उन्होंने नजर उठाई और बातों का सिलसिला चल पड़ा, पाँच मिनिट बाद ही ऐसा महसूस होने लगा कि हम तो बरसों से एक दूसरे से परिचित हैं, जबलपुर और उसके विकास से जुडी़ बातों पर सहभागिता होना लाजिमी है। तभी मालूम हुआ कि आप पेशे से इंजीनियर हैं।
साहित्य है ही इतना विशाल उससे हर वर्ग, जाति, समुदाय और पेशे के लोग जुडे़ हैं। साहित्य पर चर्चा होने लगी, लघुकथा विधा पर इसके इतिहास और वर्तमान पर उन्होंने भरपूर जानकारी दी।
तीन घंटे कब निकल गये मालूम ही नहीं पड़ा।
तब से विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान की गोष्ठियाँ में मेरी पत्नी मधु जैन के साथ सहभागिता होने लगी। अब उनका सान्निध्य और स्नेह हम दोनों को प्राप्त है।
पवन जैन,
593 संजीवनी नगर, जबलपुर।
jainpawan9954@gmail.com

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

संस्मरण : पहली मुलाकात

संस्मरण : पहली मुलाकात।
मैं बैंक का सेवानिवृत्त प्रबंधक साहित्य पाठन से तो जुडा़ था, पर लेखन और साहित्यकारों से दूर था। बैंक सेवा के दौरान आपा- धापी में समय द्रुत गति से दौड़ता जा रहा था। सेवा निवृत्ति के बाद फेसबुक समूहों से जुड़ा और लघुकथाएँ लिखने लगा। फेसबुक पर 'लघुकथा के परिंदे' समूह की संचालिका सुश्री कांता राय ने बताया कि साहित्य की दुनिया में आचार्य संजीव वर्मा सलिल का बडा़ नाम है और वे जबलपुर में रहते हैं, उन्होंने मुझे उनसे मिलने की सलाह दी।यह तीन वर्ष पुरानी बात है
जबलपुर में होमसाईंस कालेज रोड़ जाना पहचाना स्थान है, बिना किसी परेशानी के पहुँच गया एक दिन उनके निवास पर।
दरवाजा खुलते ही देखा पूरा कमरा चारों तरफ से पुस्तकों से भरा हुआ है, कुर्सी पर विराजमान थे आचार्य जी सामने टेबिल, टेबिल पर कम्प्यूटर, उन्होंने गर्मजोशी से स्वागत किया। मेरे दिमाग में एक छवि थी कि गंवई तकिया लगाए तख्त पर अधलेटे विचार मुद्रा में किसी व्यक्ति से परिचय होगा। परंतु आचार्य जी तो वर्तमान युग के साहित्य कार है जिनके पास बुजुर्गों के संस्कार भी हैं और कम्प्यूटर युग की तकनीक भी। वे लगातार परिचयात्मक बात करते रहे, और अंगुलियाँ कम्प्यूटर पर चलती रही। उन्होंने कहा बस दो मिनट यह लेख पूरा कर लूँ। मेरी नजर कमरे में रखी पुस्तकों को टटोल रही थी, मेरी पसंद की पुस्तकों का खजाना देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। नये कवर की कई पुस्तकों, लेखकों से मैं अन्जान था।
उन्होंने नजर उठाई और बातों का सिलसिला चल पडा़, पाँच मिनिट बाद ही ऐसा महसूस होने लगा कि हम तो बरसों से एक दूसरे से परिचित हैं, जबलपुर और उसके विकास से जुडी़ बातों पर सहभागिता होना लाजिमी है। तभी मालूम हुआ कि आप पेशे से इंजीनियर हैं।
साहित्य है ही इतना विशाल उससे हर वर्ग, जाति, समुदाय और पेशे के लोग जुडे़ हैं। साहित्य पर चर्चा होने लगी, लघुकथा विधा पर इसके इतिहास और वर्तमान पर उन्होंने भरपूर जानकारी दी।
तीन घंटे कब निकल गये मालूम ही नहीं पडा़।
तब से विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान की गोष्ठियाँ में मेरी पत्नी मधु जैन के साथ सहभागिता होने लगी। अब उनका सान्निध्य और स्नेह हम दोनों को प्राप्त है।

पवन जैन,
593 संजीवनी नगर, जबलपुर।
jainpawan9954@gmail.com

मंगलवार, 31 मार्च 2020

विमर्श : लघुकथा

विमर्श :
लघुकथा
पवन जैन, जबलपुर
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सामान्यतः कुछ रचनाकार एक छोटी रचना को लघुकथा मानते हैं, जबकि हर छोटी रचना लघुकथा नहीं होती है। लघुकथा गद्य साहित्य की लोकप्रिय एवं प्रतिष्ठित विधा है।इस संबंध में डाॅ अशोक भाटिया के आलेख लघुकथा: लघुता में प्रभुता के कुछ अंश प्रस्तुत हैं :

लघुकथा कथा परिवार की सबसे छोटी इकाई है।लघुकथा का आकार उसके विषय की जरूरत के हिसाब से तय होता है। लघुकथा में आमतौर पर यथार्थ के किसी एक पल, एक स्थिति, एक सूक्ष्म पहलू को लेकर रचना में ढाला जाता है, इसलिए उसका स्वरूप संरचना भी उसी प्रकार बनती है। घटनाओं, स्थितियों, पात्रों की संख्या लघुकथा में आमतौर पर अधिक नहीं होती।
विष्णु प्रभाकर ने कहा है: "लघुकथा मानव -जीवन के यथार्थ के किसी पक्ष की, छोटे आकार में कही कथा-रचना है।"
लघुकथा ने दृष्टांत, रूपक, लोक कथा, बोध कथा, नीति कथा, व्यंग्य, चुटकुले , संस्मरण जैसी अनेक मंजिलें पार करते हुए वर्तमान रूप पाया है। वह अब किसी तत्व को समझाने, उपदेश देने, स्तब्ध करने, गुदगुदाने और चौंकाने का काम नहीं करती, बल्कि आज के यथार्थ से जुड़ कर हमारे चिंतन को धार देती है।

भगीरथ परिहार ने कहा है "घटना या सत्य कथा लघुकथा नहीं है, सुने सुनाए किस्से और संस्मरण भी लघुकथा नहीं है। लघुकथा एक लघु विधा है लेकिन इसके लिए इतनी ही घनीभूत एकाग्र, जीवंत तथा गहरी संवेदना की आवश्यकता है।"

बलराम अग्रवाल ने परिंदों के दरमियां मे बताया है किः "लघुकथा में 'क्षण' सिर्फ समय की इकाई को ही नहीं कहते, संवेदना की एकान्विति को भी 'क्षण' कहते हैं। उस एकान्विति को आप यों समझ लीजिए कि पात्र को उसकी तत्समय की चिंता से, भावभूमि से दूसरी चिंता में, दूसरी भावभूमि में प्रविष्ट नहीं करना चाहिए।"

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