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शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

सितंबर १३, कुण्डलिया, मुक्तक, क्षणिका, ग़ज़ल, मात्रा, दोहा विधान, सवैया

सलिल सृजन सितंबर १३ 

*

सुंदरी सवैया,
प्रियदर्शिनि के प्रिय दर्शन पा गति-यति-लय-रस नव धार बहेगी।
कर काव्य कामिनी का थामा, वामा गुण गा तब जान बचेगी।।
विधि-हरि-हर त्रय है मुश्किल में, नारद जिह्वा क्या कथा कहेगी।
रस हरष बरस जस कथा कहे या अपजस सुन निज दृष्टि झुकेगी।।
१३-९-२०२३
***
गीत सम्राट राकेश खंडेलवाल की दौहित्री आहना के स्वागत में-
गीत
*
एक नन्हीं परी का धरा अवतरण
पर्व उल्लास का ऐ परिंदो! उड़ो
कलरवों से गुँजा दो दिशाएँ सभी
लक्ष्य पाए बिना तुम न पीछे मुड़ो
ऐ सलिल धार कलकल सुनाओ मधुर
हो लहर का लहर से मिलन रात-दिन
झूम गाओ पवन गीत सोहर अथक
पर्ण दो ताल, कलियाँ नचें ताक धिन
ऐ घटाओं गगन से उतर आओ री!
छाँह पल-पल करो, वृष्टि कर स्नेह की
रश्मि ऊषा लिए भाल पर कर तिलक
दुपहरी से कहे आज जी जिंदगी
साँझ हो पुरनमी, हो नशीली निशा
आहना के कोपलों का चुंबन करे
आह ना एक भी भाग्य में हो लिखी
कहकहों की कहकशा निछावर करे
चाँदनी कज्जरी दे डिठौना लगा
धूप नजरें उतारे विहँस रूप की
नाच राकेश रवि को लिए साथ में
ईश को शत नमन पूर्ण आकांक्षा की
देख मुखड़ा नया नित्य मुखड़ा बने
अंतरा अंतरा गीत सलिला बहे
आहना मुस्कुरा नव ऋचाएँ रचे
खिलखिला मन हरे, नव कहानी कहे
१३.९.२०२१
***
हिंदी ग़ज़ल (मुक्तिका)
*
परदेशी भाषा रुचे, जिनको वे जन सूर.
जनवाणी पर छा रहा, कैसा अद्भुत नूर
*
जन आकांक्षा गीत है, जनगण-हित संतूर
अंग्रेजी-प्रेमी कुढ़ें, देख रहे हैं घूर
*
हिंदी जग-भाषा बने, विधि को है मंजूर
उन्नत पिंगल व्याकरण, छंद निहित भरपूर
*
अंग्रेजी-उर्दू नशा, करते मिले हुजूर
हिंदी-रोटी खा रहे, सत्य नहीं मंजूर
*
हिंदी-प्रेमी हो रहे, 'सलिल' हर्ष से चूर
कल्प वृक्ष पिंगल रहे, नित्य कलम ले झूर
*
छंद - दोहा
१३-९-२०१९
***
हिंदी ग़ज़ल (मुक्तिका)
*
परदेशी भाषा रुचे, जिनको वे जन सूर.
जनवाणी पर छा रहा, कैसा अद्भुत नूर
*
जन आकांक्षा गीत है, जनगण-हित संतूर
अंग्रेजी-प्रेमी कुढ़ें, देख रहे हैं घूर
*
हिंदी जग-भाषा बने, विधि को है मंजूर
उन्नत पिंगल व्याकरण, छंद निहित भरपूर
*
अंग्रेजी-उर्दू नशा, करते मिले हुजूर
हिंदी-रोटी खा रहे, सत्य नहीं मंजूर
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हिंदी-प्रेमी हो रहे, 'सलिल' हर्ष से चूर
कल्प वृक्ष पिंगल रहे, नित्य कलम ले झूर
*
छंद - दोहा
१३-९-२०१९
***
दोहा लेखन विधान
१. दोहा के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व हैं कथ्य व लय। कथ्य को सर्वोत्तम रूप में प्रस्तुत करने के लिए ही विधा (गद्य-पद्य, छंद आदि) का चयन किया जाता है। कथ्य को 'लय' में प्रस्तुत किया जाने पर 'लय' के अनुसार छंद-निर्धारण होता है। छंद-लेखन हेतु विधान से सहायता मिलती है। रस, अलंकार, बिंब, प्रतीक, मिथक आदि लालित्यवर्धन हेतु है। कथ्य, लय व विधान से न्याय जरूरी है।
२. दोहा द्विपदिक छंद है। दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं। हर पद में दो चरण होते हैं।
३. दोहा मुक्तक छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूर्ण हो जाना चाहिए। सामान्यत: प्रथम चरण में कथ्य का उद्भव, द्वितीय-तृतीय चरण में विस्तार तथा चतुर्थ चरण में उत्कर्ष या समाहार होता है।
४. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
५. तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है। पदारंभ में 'इसीलिए' वर्जित, 'इसी लिए' मान्य।
६. विषम चरणांत में 'सरन' तथा सम चरणांत में 'जात' से लय साधना सरल होता है है किंतु अन्य गण-संयोग वर्जित नहीं हैं।
७. विषम कला से आरंभ दोहे के विषम चरण मेंकल-बाँट ३ ३ २ ३ २ तथा सम कला से आरंभ दोहे के विषम चरण में में कल बाँट ४ ४ ३ २ तथा सम चरणों की कल-बाँट ४ ४.३ या ३३ ३ २ ३ होने पर लय सहजता से सध सकती है। अन्य कल बाँट वर्जित नहीं है।
८. हिंदी दोहाकार हिंदी के व्याकरण तथा मात्रा गणना नियमों का पालन करें। दोहा में वर्णिक छंद की तरह लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट नहीं होती।
९. आधुनिक हिंदी / खड़ी बोली में खाय, मुस्काय, आत, भात, आब, जाब, डारि, मुस्कानि, हओ, भओ जैसे देशज / आंचलिक क्रिया-रूपों का उपयोग न करें किन्तु अन्य उपयुक्त आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। बोलियों में दोहा रचना करते समय उस बोली का यथासंभव शुद्ध-सरल रूप व्यवहार में लाएँ।
१०. श्रेष्ठ दोहे में अर्थवत्ता, लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता (मर्मबेधकता), आलंकारिकता, स्पष्टता, पूर्णता, सरलता व सरसता हो।
११. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग यथासंभव न करें। औ', ना, इक वर्जित, अरु, न, एक सही।
१२. दोहे में यथासंभव अनावश्यक शब्द का प्रयोग न हो। शब्द-चयन ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा अधूरा सा लगे।
१३. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें।
१४. दोहे में कारक (ने, को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि) का प्रयोग कम से कम हो।
१५. दोहा सम तुकांती छंद है। सम चरण के अंत में सामान्यत: वार्णिक समान तुक आवश्यक है। संगीत की बंदिशों, श्लोकों आदि में मात्रिक समान्त्तता भी राखी जाती रही है।
१६. दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता। लयभिन्नता स्वीकार्य है लयभंगता नहीं।
*
मात्रा गणना नियम:
१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।
२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं। तीन मात्रा के शब्द ॐ, ग्वं आदि संस्कृत में हैं, हिंदी में नहीं।
३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।
४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि।
५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, प्रिया = १२ =३ आदि।
६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि।
८. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५आदि।
९. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि।
१०. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है। इस सारस्वत अनुष्ठान में आपका स्वागत है। कोई शंका होने पर संपर्क करें।
१३-९-२०१७
***
समस्या पूर्ति
किसी अधर पर नहीं
*
किसी अधर पर नहीं शिवा -शिव की महिमा है
हरिश्चन्द्र की शेष न किंचित भी गरिमा है
विश्वनाथ सुनते अजान नित मन को मारे
सीढ़ी , सांड़, रांड़ काशी में, नहीं क्षमा है
*
किसी अधर पर नहीं शेष है राम नाम अब
राजनीति हैं खूब, नहीं मन में प्रणाम अब
अवध सत्य का वध कर सीता को भेजे वन
जान न पाया नेताजी को, हैं अनाम अब
*
किसी अधर पर नहीं मिले मुस्कान सुहानी
किसी डगर पर नहीं किशन या राधा रानी
नन्द-यशोदा, विदुर-सुदामा कहीं न मिलते
कंस हर जगह मुश्किल उनसे जान बचानी
*
किसी अधर पर नहीं प्रशंसा शेष की
इसकी, उसकी निंदा ही हो रही न किसकी
दलदल मचा रहे हैं दल, संसद में जब-तब
हुआ उपेक्षित सुनता कोई न सिसकी
*
किसी अधर पर नहीं सोहती हिंदी भाषा
गलत बोलते अंग्रेजी, खुद बने तमाशा
माँ को भूले। पैर पत्नी के दबा रहे हैं
जिनके सर पर है उधार उनसे क्या आशा?
*
किसी अधर पर नहीं परिश्रम-प्रति लगाव है
आसमान पर मँहगाई सँग चढ़े भाव हैं
टैक्स बढ़ा सरकारें लूट रहीं जनता को
दुष्कर होता जाता अब करना निभाव है
*
किसी अधर पर नहीं शेष अब जन-गण-मन है
स्त्री हो या पुरुष रह गया केवल तन है
माध्यम जन को कठिन हुआ है जीना-मरना
नेता-अभिनेता-अफसर का हुआ वतन है
*
क्षणिका
*
इसने दी
ईद की बधाई।
भाग, जिबह कर देगा
बकरे की आवाज़ आई।
***
मैं
न खुद को जान पाया
आज तक।
अजाना भी हूँ नहीं
मैं
सत्य कहता।
***
मुक्तक
*
काश! कभी हम भी सुधीर हो पाते
संघर्षों में जीवन-जय गुंजाते
गगन नापते, बूझ दिशा अनबूझी
लौट नीड पर ग़ज़लें-नगमे गाते
*
माँ मरती ही नही, जिया करती है संतानों में
श्वास-आस अपने -सपने कब उसे भूल पाते हैं
हो विदेह वह साथ सदा, संकट में संबल देती-
धन्य वही सुत जो मैया के गुण आजीवन गाते
*
सुर जीत रहे तो अ-सुर हार कर खुद बाहर हो जायेंगे
गीत-गुहा में स-सुर साधना कर नवगीत सुनाएँगे
हर दिन होता जन्म दिवस है, नींद मरण जो मान रहे
वे सूरज सँग जाग, करें श्रम, अपनी मन्ज़िल पाएँगे
*
सुर जीत रहे तो अ-सुर हार कर खुद बाहर हो जायेंगे
गीत-गुहा में स-सुर साधना कर नवगीत सुनाएँगे
हर दिन होता जन्म दिवस है, नींद मरण जो मान रहे
वे सूरज सँग जाग, करें श्रम, अपनी मन्ज़िल पाएँगे
***
कुण्डलिया
निर्झर -
नदी न एक से, बिलकुल भिन्न स्वभाव
इसमें चंचलता अधिक, उसमें है ठहराव
उसमें है ठहराव, तभी पूजी जाती है
चंचलता जीवन में, नए रंग लाती है
कहे 'सलिल' बहते चल,हो न किसी पर निर्भर
रुके न कविता-क्रम, नदिया हो या हो निर्झर
*
परमपिता ने जो रचा, कहें नहीं बेकार
ज़र्रे-ज़र्रे में हुआ, ईश्वर ही साकार
ईश्वर ही साकार, मूलतः: निराकार है
व्यक्त हुआ अव्यक्त, दैव ही गुणागार है
आता है हर जीव, जगत में समय बिताने
जाता अपने आप, कहा जब परमपिता ने
१३-९-२०१६
***
भावांजलि-
मनोवेदना:
ओ ऊपरवाले! नीचे आ
क्या-क्यों करता है तनिक बता?
असमय ले जाता उम्मीदें
क्यों करता है अक्षम्य खता?
कितने ही सपने टूट गये
तुम माली बगिया लूट गये.
क्यों करूँ तुम्हारा आराधन
जब नव आशा घट फूट गये?
मुस्कान मृदुल, मीठी बोली
रससिक्त हृदय की थी खोली
कर ट्रस्ट बनाया ट्रस्ट मगर
संत्रस्त किया, खाली ओली.
मैं जाऊँ कहाँ? निष्ठुर! बोलो,
तज धरा न अंबर में डोलो.
क्या छिपा तुम्हारी करनी में
कुछ तो रहस्य हम पर खोलो.
उल्लास-आसमय युवा रक्त
हिंदी का सुत, नवगीत-भक्त
खो गया कहाँ?, कैसे पायें
वापिस?, क्यों इतने हम अशक्त?
ऐ निर्मम! ह्रदय नहीं काँपा?
क्यों शोक नहीं तुमने भाँपा.
हम सब रोयेंगे सिसक-सिसक
दस दिश में व्यापेगा स्यापा.
संपूर्ण क्रांति का सेनानी,
वह जनगणमन का अभिमानी.
माटी का बेटा पतझड़ बिन
झड़ गया मौन ही बलिदानी.
कितने निर्दय हो जगत्पिता?
क्या पाते हो तुम हमें सता?
असमय अवसान हुआ है क्यों?
क्यों सके नहीं तुम हमें जता?
क्यों कर्क रोग दे बुला लिया?
नव आशा दीपक बुझा दिया.
चीत्कार कर रहे मन लेकिन
गीतों ने बेबस अधर सिया.
बोले थे: 'आनेवाले हो',
कब जाना, जानेवाले हो?
मन कलप रहा तुमको खोकर
यादों में रहनेवाले हो.
श्रीकांत! हुआ श्रीहीन गीत
तुम बिन व्याकुल हम हुए मीत.
जीवन तो जीना ही होगा-
पर रह न सकेंगे हम अभीत।
***
(जे. पी. की संपूर्ण क्रांति के एक सिपाही, नवगीतकार भाई श्रीकांत का कर्क रोग से असमय निधन हो गया. लगभग एक वर्ष से उनकी चिकित्सा चल रही थी. हिन्द युग्म पर २००९ में हिंदी छंद लेखन सम्बन्धी कक्षाओं में उनसे परिचय हुआ था. गत वर्ष नवगीत उत्सव लखनऊ में उच्च ज्वर तथा कंठ पीड़ा के बावजूद में समर्पित भावना से अतिथियों को अपने वाहन से लाने-छोड़ने का कार्य करते रहे. न वरिष्ठता का भान, न कष्ट का बखान। मेरे बहुत जोर देने पर कुछ औषधि ली और फिर काम पर. तुरंत बाद वे स्थांनांतरित होकर बड़ोदरा गये , जहाँ जांच होने पर कर्क रोग की पुष्टि हुई. टाटा मेमोरियल अस्पताल मुम्बई में चिकित्सा पश्चात निर्धारित थिरैपी पूर्ण होने के पूर्व ही वे बीड़ा हो गये. इस स्थिति में भी उन्होंने अपनी जमीन और धन का दान कर हिंदी के उन्नयन हेतु एक न्यास (ट्रस्ट) की स्थापना की. स्वस्थ होकर वे हिंदी के लिये समर्पित होकर कार्य करना चाहते थे किन्तु???)
***
विमर्श:
मेरे विचार में दो पैमाने हैं... जिन पर रचनाकार को खुद को परखना चाहिए। पहला क्या वह खराब लिख रहा है और ईमानदार प्रयास करने पर भी सुधार नहीं हो रहा है? यदि ऐसा है तो कोई कितनी भी तारीफ करे, उसकी प्रतिभा किसी अन्य क्षेत्र के लिए है उसे वह क्षेत्र तलाशना चाहिए।
दूसरा यदि वह खराब नहीं लिख रहा है और लेखन में निखार आ रहा है तो कितनी भी आलोचना करे उसे लिखते रहना चाहिए।
१३-९-२०१५

गुरुवार, 12 सितंबर 2024

सितंबर १२, विसर्जन, मुक्तक, सॉनेट, तुम, दोहा

सलिल सृजन सितंबर १२
सॉनेट
तुम
तुमको शत-शत, साभार नमन
तुमको अर्पित निज अंतर्मन
तुम ही फागुन, तुम ही सावन
तुम ही श्वासों में पली लगन
तुम बिन मरुथल होता जीवन
तुम संग रहीं तो है मधुवन
तुम बनीं नयन, तुम बनीं वचन
तुमको पा जीवन है जीवन
तुम कहो, कौन है तुम सा धन
तुम साध्य, तुम्हीं तो हो साधन
तुम ही वादन, तुम ही गायन
तुम बिन हो पाता नहीं सृजन
तुम-मैं हम हैं कर विविध जतन
शत वर्ष हँसो, महकाओ चमन
१२-९-२०२२
●●●
मुक्तक
गीत पूर्णिमा जगमग तब हो जब राकेश प्रकाशित हो। 
शब्द भाव रस लय मय ध्वनि से त्रिभुवन सकल निनादित हो।।
कलकल कलरव सुनकर श्रोता झूमे, करतल ध्वनि गूँजे-
मन से मन मिल सके, प्राण संप्राणित मुदित।।  
***
एक विमर्श
विसर्जन क्यों और कैसे?
*
अनंत चतुर्दशी गणेश विसर्जन और पुनरागमन प्रार्थना का पर्व।
चतुर्थी पर स्थापना, दस दिन पूजन और फिर विसर्जन के नाम पर प्रतिभाओं की दुर्दशा और अकल्पनीय प्रदूषण।
यह त्रासदी नव दुर्गा महोत्सव पर दोहराई जाएगी।
शोचनीय है कि जिन्हें विघ्नेश कहकर उनसे विघ्न निवारण हेतु प्रार्थना की, उन्हीं को विघ्नेश में डाल दिया। मूर्तियों की दुर्दशा करने से बेहतर है परंपरा का पालन करते हुए हल्दी और सुपारी में दैवीय शक्तियों का आव्हान-पूजन कर विसर्जन हो। इससे न तो प्रदूषण फैलेगा, न मूर्तियों की दुर्दशा होगी।
पुष्प तथा अन्य पूजन सामग्री महानगरों में नगर निगम वालों को दें तथा गाँवों में एक गड्ढा खोदकर उसमें दबा दें।
प्लास्टिक, रसायनों, एस्बेस्टस, प्लास्टर अॉफ पेरिस आदि का प्रयोग कतई न करें।
मूर्ति पूजन में श्रद्धा हो तो धातु (सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल, अष्टधातु, पत्थर या एल्यूमीनियम) की मूर्ति का पूजन करें। इसे पूरे वर्ष भी पूज सकते हैं और विसर्जन के बाद अगले वर्ष के लिए सुरक्षित भी रखते सकते हैं। इससे घर वर्ष मूर्ति पर और उसे लाने-ले जाने में होने वाला खर्च भी बचेगी जो मँहगाई का मार कुछ कम करेगा।
अन्य उपाय मिट्टी की ६ इंच तक की मूर्ति को विसर्जन पश्चात घर में ही स्वच्छ जल में विसर्जित कर उसे पेड़-पौधों का जड़ में डाल देना है।
चित्र का पूजन भी समान फल देता है। इसे विसर्जित न करें।
सनातन धर्म की मूल परंपरा प्रतीक पूजन है। वैष्णव देवी जैसे पुरातन स्थलों पर अनगढ़ पाषाण पिंड ही पूजे जाते हैं। यह सर्वमान्य है कि ईश्वर निराकार हैं। 'जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी' के अनुसार भक्त अपने इष्ट को रूपाकार देकर पूजते हैं। कई बार माताएँ पुत्र को पुत्री के रूप में अथवा पुत्री को पुत्री के रूप में सज्जित कर अपनी मनस्तुष्टि करती हैं । यही भाव भक्त से प्रतिमा बनाता है। इसीलिए कहा जाता है 'भगत के बस में हैं भगवान। भगवान सौजन्यता वश भक्त के 'बस' में होने पर भी 'बेबस' नहीं है। भक्त अपने इष्ट की प्रतिमा की दुर्दशा का निमित्त बनकर अपने ही कष्ट को आमंत्रित करता है।
आवश्यक है कि हम दैवीय शक्तियों का आह्वान अपने अंतर्मन में करें। प्रतिमा पूजन कम और लघ्वाकारी विग्रहों का हो। शिवलिंग पूजन प्रतीक पूजन का कालजयी उदाहरण है।
सनातन धर्म की परंपरानुसार बुद्ध ने भी मूर्ति का निषेध किया, भक्तों ने सबसे अधिक मूर्तियाँ बुद्ध की बनाकर समझा कि महान कार्य किया पर काल साक्षी है कि वे मूर्तियाँ तोड़ा गईं, बौद्ध धर्म का पराभव हुआ। पुरातात्त्विक अवशेषों में बड़ी संख्या में मूर्तियों के ध्वंसावशेषों को देखकर भी हम उनकी निस्सारता न समझें तो हमारी समझ का ही दोष है।
मूर्तियों के निर्माण में लगने वाला श्रम और सामग्री किसी जीवनोपयोगी निर्माण में लगे तो सबका भला होगा। 'मंदिर मंदिर मूरत तेरी, कहुँ न देखी सूरत तेरी' का अर्थ समझ मम मंदिर में देव स्थापना कर सकें तो विसर्जन करने का मन ही न होगा।
क्या हम प्रतिमा के स्थान पर देव और दिव्यता को पूजकर दैवीय गुणों से युक्त हो सकेंगे?
अनंत चौदस
१२-९-२०१९
७९९९५५९६१८
***
दोहा दुनिया 
जो अच्छा उसको दिखे, अच्छा सब संसार
धन्य भाग्य जो पा रहा, 'सलिल' स्नेह उपहार
*
शरण मिली कमलेश की, 'सलिल' हुआ है धन्य
दिव्या कविता सा नहीं, दूज मीत अनन्य
*
शब्दों के संसार में, मिल जाते हैं मीत
पता न चलता समय का, कब जाता दिन बीत
*

हिंदी दिवस,

आलेख:
तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्रीय भाषा में
*
राष्ट्र गौरव की प्रतीक राष्ट्र भाषा:
किसी राष्ट्र की संप्रभुता के प्रतीक संविधान, ध्वज, राष्ट्रगान, राज भाषा, तथा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह (पशु, पक्षी आदि) होते हैं. संविधान के अनुसार भारत लोक कल्याणकारी गणराज्य है, तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज है, 'जन गण मन' राष्ट्रीय गान है, हिंदी राज भाषा है, सिंह राष्ट्रीय पशु तथा मयूर राष्ट्रीय पक्षी है. राज भाषा में सकल रज-काज किया जाना राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है. दुर्भाग्य से भारत से अंग्रेजी राज्य समाप्त होने के बाद भी अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व समाप्त न हो सका. दलीय चुनावों पर आधारित राजनीति ने भाषाई विवादों को बढ़ावा दिया और अंग्रेजी को सीमित समय के लिये शिक्षा माध्यम के रूप में स्वीकारा गया. यह अवधि कभी समाप्त न हो सकी.
हिंदी का महत्त्व:
आज भारत-भाषा हिन्दी भविष्य में विश्व-वाणी बनने के पथ पर अग्रसर है. विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा एकाधिक अवसरों पर अमरीकियों को हिंदी सीखने के लिये सचेत करते हुए कह चुके हैं कि हिंदी सीखे बिना भविष्य में काम नहीं चलेगा. यह सलाह अकारण नहीं है. भारत को उभरती हुई विश्व-शक्ति के रूप में सकल विश्व में जाना जा रहा है. संस्कृत तथा उस पर आधारित हिंदी को ध्वनि-विज्ञान और दूर संचारी तरंगों के माध्यम से अंतरिक्ष में अन्य सभ्यताओं को सन्देश भेजे जाने की दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया है.
भारत में हिंदी सर्वाधिक उपयुक्त भाषा:
भारत में भले ही अंग्रेजी बोलना सम्मान की बात हो पर विश्व के बहुसंख्यक देशों में अंग्रेजी का इतना महत्त्व नहीं है. हिंदी बोलने में हिचक का एकमात्र कारण पूर्व प्राथमिक शिक्षा के समय अंग्रेजी माध्यम का चयन किया जाना है. मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिशु सर्वाधिक आसानी से अपनी मात्र-भाषा को ग्रहण करता है. अंग्रेजी भारतीयों की मातृभाषा नहीं है. अतः भारत में बच्चों की शिक्षा का सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम हिंदी ही है.
प्रत्येक भाषा के विकास के कई सोपान होते हैं. कोई भाषा शैशवावस्था से शनैः- शनैः विकसित होती हुई, हर पल प्रौढता और परिपक्वता की ओर अग्रसर होती है. पूर्ण विकसित और परिपक्व भाषा की जीवन्तता और प्राणवत्ता उसके दैनंदिन व्यवहार या प्रयोग पर निर्भर होती है. भाषा की व्यवहारिकता का मानदण्ड जनता होती है क्योंकि आम जन ही किसी भाषा का प्रयोग करते हैं. जो भाषा लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में समा जाती है, वह चिरायु हो जाती है. जिस भाषा में समयानुसार अपने को ढालने, विचारों व भावों को सरलता और सहजता से अभिव्यक्त करने, आम लोगों की भावनाओं तथा ज्ञान-विज्ञानं की समस्त शाखाओं व विभागों की विषय वस्तु को अभिव्यक्त करने की क्षमता होती है, वह जन-व्यवहार का अभिन्न अंग बन जाती है. इस दृष्टि से हिन्दी सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में सदा से छाई रही है.
आज से ६४ वर्ष पूर्व, १४ सितम्बर, सन् १९४७ को जब हमारे तत्कालीन नेताओं, बुध्दिजीवियों ने जब बहुत सोच-विचार के बाद सबकी सहमति से हिन्दी को आज़ाद हिन्दुस्तान की राजकाज और राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया तो उस निर्णय के ठोस आधार थे –
१) हिंदी भारत के बहुसंख्यक वर्ग की भाषा है, जो विन्ध्याचल के उत्तर में बसे सात राज्यों में बोली जाती है
२) अन्य प्रान्तों की भाषाओं और हिन्दी के शब्द भण्डार में इतनी अधिक समानता है कि वह सरलता से सीखी जा सकती है,
३) वह विज्ञान और तकनीकी जगत की भी एक सशक्त और समर्थ भाषा बनने की क्षमता रखती है, (आज तकनीकि सूचना व संचार तंत्र की समर्थ भाषा है)
४) यह अन्य भाषाओं की अपेक्षा सर्वाधिक व्यवहार में प्रयुक्त होने के कारण जीवंत भाषा है,
५) व्याकरण भी जटिल नहीं है,
६) लिपि भी सुगम व वैज्ञानिक है,
७) लिपि मुद्रण सुलभ है,
८) सबसे महत्वपूर्ण बात - भारतीय संस्कृति, विचारों और भावनाओं की संवाहक है.
हिंदी भाषा उपेक्षित होने का कारण:
भारत की वर्तमान शिक्षा पद्धति में शिशु को पूर्व प्राथमिक से ही अंग्रेजी के शिशु गीत रटाये जाते हैं. वह बिना अर्थ जाने अतिथियों को सुना दे तो माँ-बाप का मस्तक गर्व से ऊँचा हो जाता है. हिन्दी की कविता केवल २ दिन १५ अगस्त और २६ जनवरी पर पढ़ी जाती है, बाद में हिन्दी बोलना कोई नहीं चाहता. अंग्रेजी भाषी विद्यालयों में तो हिन्दी बोलने पर 'मैं गधा हूँ' की तख्ती लगाना पड़ती है. अतः बच्चों को समझने के स्थान पर रटना होता है जो अवैज्ञानिक है. ऐसे अधिकांश बच्चे उच्च शिक्षा में माध्यम बदलते हैं तथा भाषिक कमजोरी के कारण खुद को समुचित तरीके अभिव्यक्त नहीं कर पाते और पिछड़ जाते हैं. इस मानसिकता में शिक्षित बच्चा माध्यमिक और उच्च्तर माध्यमिक में मजबूरी में हिन्दी यत्किंचित पढ़ता है... फिर विषयों का चुनाव कर लेने पर व्यावसायिक शिक्षा का दबाव हिन्दी छुटा ही देता है.
हिंदी की सामर्थ्य:
हिन्दी की शब्द सामर्थ्य पर प्रायः अकारण तथा जानकारी के अभाव में प्रश्न चिन्ह लगाये जाते हैं. वैज्ञानिक विषयों, प्रक्रियाओं, नियमों तथा घटनाओं की अभिव्यक्ति हिंदी में करना कठिन माना जाता है किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है. हिंदी की शब्द सम्पदा अपार है. हिंदी सदानीरा सलिला की तरह सतत प्रवाहिनी है. उसमें से लगातार कुछ शब्द काल-बाह्य होकर बाहर हो जाते हैं तो अनेक शब्द उसमें प्रविष्ट भी होते हैं. हिंदी के अनेक रूप देश में आंचलिक/स्थानीय भाषाओँ और बोलिओं के रूप में प्रचलित हैं. इस कारण भाषिक नियमों, क्रिया-कारक के रूपों, कहीं-कहीं शब्दों के अर्थों में अंतर स्वाभाविक है किन्तु हिन्दी को वैज्ञानिक विषयों की अभिव्यक्ति में सक्षम विश्व भाषा बनने के लिये इस अंतर को पाटकर क्रमशः मानक रूप लेना होगा. अनेक क्षेत्रों में हिन्दी की मानक शब्दावली है, जहाँ नहीं है वहाँ क्रमशः आकार ले रही है.
सामान्य तथा तकनीकी भाषा:
जन सामान्य भाषा के जिस देशज रूप का प्रयोग करता है वह कही गयी बात का आशय संप्रेषित करता है किन्तु वह पूरी तरह शुद्ध नहीं होता. ज्ञान-विज्ञान में भाषा का उपयोग तभी संभव है जब शब्द से एक सुनिश्चित अर्थ की प्रतीति हो. इस दिशा में हिंदी का प्रयोग न होने को दो कारण इच्छाशक्ति की कमी तथा भाषिक एवं शाब्दिक नियमों और उनके अर्थ की स्पष्टता न होना है. आज तकनीकि विकास के युग में, कुछ भी दायरों में नहीं बंधा हुआ है. जो भी जानदार है, शानदार है, अनूठापन लिये है, जिसमें जनसमाज को अपनी ओर खींचने का दम है वह सहज ही और शीघ्र ही भूमंडलीकृत और वैश्विक हो जाता है. इस प्रक्रिया के तहत आज हिन्दी वैश्विक भाषा है. कोई भी सक्रिय भाषा, रचनात्मक प्रक्रिया – चाहे वह लेखन हो, चित्रकला हो,संगीत हो, नृत्यकला हो या चित्रपट हो – सभी युग-परिवेश से प्रभावित होते हैं. भूमंडलीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें दुनिया तेज़ी से सिमटती जा रही है. विश्व के देश परस्पर निकट आते जा रहे हैं. इसलिए ही आज दुनिया को ‘विश्वग्राम’ कहा जा रहा है. इस सबके पीछे ‘सूचना और संचार’ क्रान्ति की शक्ति है, जिसमें ‘इंटरनेट’ की भूमिका बड़ी अहम है. इसमे कोई दो राय नहीं कि इस जगत में हिन्दी अपना सिक्का जमा चुकी है.
हिंदी संबंधी मूल अवधारणाएं:
इस विमर्श का श्री गणेश करते हुए हम कुछ मूल बातों भाषा, लिपि, वर्ण या अक्षर, शब्द, ध्वनि, लिपि, व्याकरण, स्वर, व्यंजन, शब्द-भेद, बिम्ब, प्रतीक, मुहावरे जैसी मूल अवधारणाओं को जानें.
भाषा(लैंग्वेज) :
अनुभूतियों से उत्पन्न भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भंगिमाओं या ध्वनियों की आवश्यकता होती है. भंगिमाओं से नृत्य, नाट्य, चित्र आदि कलाओं का विकास हुआ. ध्वनि से भाषा, वादन एवं गायन कलाओं का जन्म हुआ. आदि मानव को प्राकृतिक घटनाओं (वर्षा, तूफ़ान, जल या वायु का प्रवाह), पशु-पक्षियों की बोली आदि को सुनकर हर्ष, भय, शांति आदि की अनुभूति हुई. इन ध्वनियों की नकलकर उसने बोलना, एक-दूसरे को पुकारना, भगाना, स्नेह-क्रोध आदि की अभिव्यक्ति करना सदियों में सीखा.
लिपि (स्क्रिप्ट):
कहे हुए को अंकित कर स्मरण रखने अथवा अनुपस्थित साथी को बताने के लिये हर ध्वनि हेतु अलग-अलग संकेत निश्चित कर अंकित करने की कला सीखकर मनुष्य शेष सभी जीवों से अधिक उन्नत हो सका. इन संकेतों की संख्या बढ़ने व व्यवस्थित रूप ग्रहण करने ने लिपि को जन्म दिया. एक ही अनुभूति के लिये अलग- अलग मानव समूहों में अलग-अलग ध्वनि तथा संकेत बनने तथा आपस में संपर्क न होने से विविध भाषाओँ और लिपियों का जन्म हुआ.
चित्रगुप्त ज्यों चित्त का, बसा आप में आप.
भाषा-सलिला निरंतर, करे अनाहद जाप.
भाषा वह साधन है जिससे हम अपने भाव एवं विचार अन्य लोगों तक पहुँचा पाते हैं अथवा अन्यों के भाव और विचार ग्रहण कर पाते हैं. यह आदान-प्रदान वाणी के माध्यम से (मौखिक), तूलिका के माध्यम से अंकित, लेखनी के द्वारा लिखित तथा आजकल टंकण यंत्र या संगणक द्वारा टंकित होता है. हिंदी लेखन हेतु प्रयुक्त देवनागरी लिपि में संयुक्त अक्षरों व मात्राओं का संतुलित प्रयोग कर कम से कम स्थान में अंकित किया जा सकता है जबकि मात्रा न होने पर रोमन लिपि में वही शब्द लिखते समय मात्रा के स्थान पर वर्ण का प्रयोग करने पर अधिक स्थान, समय व श्रम लगता है. अरबी मूल की लिपियों में अनेक ध्वनियों के लेकहं हेतु अक्षर नहीं हैं.
निर्विकार अक्षर रहे मौन, शांत निः शब्द
भाषा वाहक भाव की, माध्यम हैं लिपि-शब्द.
व्याकरण (ग्रामर ):
व्याकरण (वि+आ+करण) का अर्थ भली-भाँति समझना है. व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं परिष्कृत रूप सम्बन्धी नियमोपनियमों का संग्रह है. भाषा के समुचित ज्ञान हेतु वर्ण विचार (ओर्थोग्राफी) अर्थात वर्णों (अक्षरों) के आकार, उच्चारण, भेद, संधि आदि , शब्द विचार (एटीमोलोजी) याने शब्दों के भेद, उनकी व्युत्पत्ति एवं रूप परिवर्तन आदि तथा वाक्य विचार (सिंटेक्स) अर्थात वाक्यों के भेद, रचना और वाक्य विश्लेषण को जानना आवश्यक है.
वर्ण शब्द संग वाक्य का, कविगण करें विचार.
तभी पा सकें वे 'सलिल', भाषा पर अधिकार.
वर्ण / अक्षर(वर्ड) :
हिंदी में वर्ण के दो प्रकार स्वर (वोवेल्स) तथा व्यंजन (कोंसोनेंट्स) हैं. स्वरों तथा व्यंजनों का निर्धारण ध्वनि विज्ञान के अनुकूल उनके उच्चारण के स्थान से किया जाना हिंदी का वैशिष्ट्य है जो अन्य भाषाओँ में नहीं है.
अजर अमर अक्षर अजित, ध्वनि कहलाती वर्ण.
स्वर-व्यंजन दो रूप बिन, हो अभिव्यक्ति विवर्ण.
स्वर ( वोवेल्स ) :
स्वर वह मूल ध्वनि है जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता. वह अक्षर है जिसका अधिक क्षरण, विभाजन या ह्रास नहीं हो सकता. स्वर के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता की आवश्यकता नहीं होती. यथा - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:, ऋ.
स्वर के दो प्रकार:
१. हृस्व : लघु या छोटा ( अ, इ, उ, ऋ, ऌ ) तथा
२. दीर्घ : गुरु या बड़ा ( आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: ) हैं.
अ, इ, उ, ऋ हृस्व स्वर, शेष दीर्घ पहचान
मिलें हृस्व से हृस्व स्वर, उन्हें दीर्घ ले मान.
व्यंजन (कांसोनेंट्स) :
व्यंजन वे वर्ण हैं जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते. व्यंजनों के चार प्रकार हैं.
१. स्पर्श व्यंजन (क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ्), (च वर्ग - च, छ, ज, झ, ञ्.), (ट वर्ग - ट, ठ, ड, ढ, ण्), (त वर्ग त, थ, द, ढ, न), (प वर्ग - प,फ, ब, भ, म).
२. अन्तस्थ व्यंजन (य वर्ग - य, र, ल, व्, श).
३. ऊष्म व्यंजन ( श, ष, स ह) तथा
४. संयुक्त व्यंजन ( क्ष, त्र, ज्ञ) हैं.
अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (अ:) भी व्यंजन हैं.
भाषा में रस घोलते, व्यंजन भरते भाव.
कर अपूर्ण को पूर्ण वे मेटें सकल अभाव.
शब्द :
अक्षर मिलकर शब्द बन, हमें बताते अर्थ.
मिलकर रहें न जो 'सलिल', उनका जीवन व्यर्थ.
अक्षरों का ऐसा समूह जिससे किसी अर्थ की प्रतीति हो शब्द कहलाता है. शब्द भाषा का मूल तत्व है. जिस भाषा में जितने अधिक शब्द हों वह उतनी ही अधिक समृद्ध कहलाती है तथा वह मानवीय अनुभूतियों और ज्ञान-विज्ञानं के तथ्यों का वर्णन इस तरह करने में समर्थ होती है कि कहने-लिखनेवाले की बात का बिलकुल वही अर्थ सुनने-पढ़नेवाला ग्रहण करे. ऐसा न हो तो अर्थ का अनर्थ होने की पूरी-पूरी संभावना है. किसी भाषा में शब्दों का भण्डारण कई तरीकों से होता है.
१. मूल शब्द:
भाषा के लगातार प्रयोग में आने से समय के विकसित होते गए ऐसे शब्दों का निर्माण जन जीवन, लोक संस्कृति, परिस्थितियों, परिवेश और प्रकृति के अनुसार होता है. विश्व के विविध अंचलों में उपलब्ध भौगोलिक परिस्थितियों, जीवन शैलियों, खान-पान की विविधताओं, लोकाचारों,धर्मों तथा विज्ञानं के विकास के साथ अपने आप होता जाता है.
२. विकसित शब्द:
आवश्यकता आविष्कार की जननी है. लगातार बदलती परिस्थितियों, परिवेश, सामाजिक वातावरण, वैज्ञानिक प्रगति आदि के कारण जन सामान्य अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिये नये-नये शब्दों का प्रयोग करता है. इस तरह विकसित शब्द भाषा को संपन्न बनाते हैं. व्यापार-व्यवसाय में उपभोक्ता के साथ धोखा होने पर उन्हें विधि सम्मत संरक्षण देने के लिये कानून बना तो अनेक नये शब्द सामने आये.संगणक के अविष्कार के बाद संबंधित तकनालाजी को अभिव्यक्त करने के नये शब्द बनाये गये.
३. आयातित शब्द:
किन्हीं भौगोलिक, राजनैतिक या सामाजिक कारणों से जब किसी एक भाषा बोलनेवाले समुदाय को अन्य भाषा बोलने वाले समुदाय से घुलना-मिलना पड़ता है तो एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्द भी मिलते जाते हैं. ऐसी स्थिति में कुछ शब्द आपने मूल रूप में प्रचलित रहे आते हैं तथा मूल भाषा में अन्य भाषा के शब्द यथावत (जैसे के तैसे) अपना लिये जाते हैं. हिन्दी ने पूर्व प्रचलित भाषाओँ संस्कृत, अपभ्रंश, पाली, प्राकृत तथा नया भाषाओं-बोलिओं से बहुत से शब्द ग्रहण किये हैं. भारत पर यवनों के हमलों के समय फारस तथा अरब से आये सिपाहियों तथा भारतीय जन समुदायों के बीच शब्दों के आदान-प्रदान से उर्दू का जन्म हुआ. आज हम इन शब्दों को हिन्दी का ही मानते हैं, वे किस भाषा से आये नहीं जानते.
हिन्दी में आयातित शब्दों का उपयोग ४ तरह से हुआ है.
१.यथावत:
मूल भाषा में प्रयुक्त शब्द के उच्चारण को जैसे का तैसा उसी अर्थ में देवनागरी लिपि में लिखा जाए ताकि पढ़ते/बोले जाते समय हिन्दी भाषी तथा अन्य भाषा भाषी उस शब्द को समान अर्थ में समझ सकें. जैसे अंग्रेजी का शब्द स्टेशन, यहाँ अंगरेजी में स्टेशन (station) लिखते समय उपयोग हुए अंगरेजी अक्षरों को पूरी तरह भुला दिया गया है.
२.परिवर्तित:
मूल शब्द के उच्चारण में प्रयुक्त ध्वनि हिन्दी में न हो अथवा अत्यंत क्लिष्ट या सुविधाजनक हो तो उसे हिन्दी की प्रकृति के अनुसार परिवर्तित कर लिया जाए. जैसे अंगरेजी के शब्द हॉस्पिटल को सुविधानुसार बदलकर अस्पताल कर लिया गया है. .
३. पर्यायवाची:
जिन शब्दों के अर्थ को व्यक्त करने के लिये हिंदी में हिन्दी में समुचित पर्यायवाची शब्द हैं या बनाये जा सकते हैं वहाँ ऐसे नये शब्द ही लिये जाएँ. जैसे: बस स्टैंड के स्थान पर बस अड्डा, रोड के स्थान पर सड़क या मार्ग. यह भी कि जिन शब्दों को गलत अर्थों में प्रयोग किया जा रहा है उनके सही अर्थ स्पष्ट कर सम्मिलित किये जाएँ ताकि भ्रम का निवारण हो. जैसे: प्लान्टेशन के लिये वृक्षारोपण के स्थान पर पौधारोपण, ट्रेन के लिये रेलगाड़ी, रेल के लिये पटरी.
४. नये शब्द:
ज्ञान-विज्ञान की प्रगति, अन्य भाषा-भाषियों से मेल-जोल, परिस्थितियों में बदलाव आदि के कारण हिन्दी में कुछ सर्वथा नये शब्दों का प्रयोग होना अनिवार्य है. इन्हें बिना हिचक अपनाया जाना चाहिए. जैसे सैटेलाईट, मिसाइल, सीमेंट आदि.
हिन्दी के समक्ष सबसे बड़ी समस्या विश्व की अन्य भाषाओँ के साहित्य को आत्मसात कर हिन्दी में अभिव्यक्त करने की तथा ज्ञान-विज्ञान की हर शाखा की विषय-वस्तु को हिन्दी में अभिव्यक्त करने की है. हिन्दी के शब्द कोष का पुनर्निर्माण परमावश्यक है. इसमें पारंपरिक शब्दों के साथ विविध बोलियों, भारतीय भाषाओँ, विदेशी भाषाओँ, विविध विषयों और विज्ञान की शाखाओं के परिभाषिक शब्दों को जोड़ा जाना जरूरी है.
अंग्रेजी के नये शब्दकोशों में हिन्दी के हजारों शब्द समाहित किये गये हैं किन्तु कई जगह उनके अर्थ/भावार्थ गलत हैं... हिन्दी में अन्यत्र से शब्द ग्रहण करते समय शब्द का लिंग, वचन, क्रियारूप, अर्थ, भावार्थ तथा प्रयोग शब्द कोष में हो तो उपयोगिता में वृद्धि होगी. यह महान कार्य सैंकड़ों हिन्दी प्रेमियों को मिलकर करना होगा. विविध विषयों के निष्णात जन अपने विषयों के शब्द-अर्थ दें जिन्हें हिन्दी शब्द कोष में जोड़ा जा सके.
शब्दों के विशिष्ट अर्थ:
तकनीकी विषयों व गतिविधियों को हिंदी भाषा के माध्यम से संचालित करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उनकी पहुँच असंख्य लोगों तक हो सकेगी. हिंदी में तकनीकी क्षेत्र में शब्दों के विशिष अर्थ सुनिश्चित किये जने की महती आवश्यकता है. उदाहरण के लिये अंग्रेजी के दो शब्दों 'शेप' और 'साइज़' का अर्थ हिंदी में सामन्यतः 'आकार' किया जाता है किन्तु विज्ञान में दोनों मूल शब्द अलग-अलग अर्थों में प्रयोग होते हैं. 'शेप' से आकृति और साइज़ से बड़े-छोटे होने का बोध होता है. हिंदी शब्दकोष में आकार और आकृति समानार्थी हैं. अतः साइज़ के लिये एक विशेष शब्द 'परिमाप' निर्धारित किया गया.
निर्माण सामग्री के छन्नी परीक्षण में अंग्रेजी में 'रिटेंड ऑन सीव' तथा 'पास्ड फ्रॉम सीव' का प्रयोग होता है. हिंदी में इस क्रिया से जुड़ा शब्द 'छानन' उपयोगी पदार्थ के लिये है. अतः उक्त दोनों शब्दों के लिये उपयुक्त शब्द खोजे जाने चाहिए. रसायन शास्त्र में प्रयुक्त 'कंसंट्रेटेड' के लिये हिंदी में गाढ़ा, सान्द्र, तेज, तीव्र आदि तथा 'डाईल्यूट' के लिये तनु, पतला, मंद, हल्का, मृदु आदि शब्दों का प्रयोग विविध लेखकों द्वारा किया जाना भ्रमित करता है.
'इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स' का दायित्व:
तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्र भाषा में सम्पादित करने के साथ-साथ अर्थ विशेष में प्रयोग किये जानेवाले शब्दों के लिये विशेष पर्याय निर्धारित करने का कार्य उस तकनीक की प्रतिनिधि संस्था को करना चाहिए. अभियांत्रिकी के क्षेत्र में निस्संदेह 'इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स' अग्रणी संस्था है. इसलिए अभियांत्रकी शब्द कोष तैयार करने का दायित्व इसी का है. सरकार द्वारा शब्द कोष बनाये जाने की प्रक्रिया का हश्र किताबी तथा अव्यवहारिक शब्दों की भरमार के रूप में होता है. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये साहित्यिक समझ, रूचि, ज्ञान और समर्पण के धनी अभियंताओं को विविध शाखाओं / क्षेत्रों से चुना जाये तथा पत्रिका के हर अंक में तकनीकी पारिभाषिक शब्दावली और शब्द कोष प्रकाशित किया जाना अनिवार्य है. पत्रिका के हर अंक में तकनीकी विषयों पर हिंदी में लेखन की प्रतियोगिता भी होना चाहिए. विविध अभियांत्रिकी शाखाओं के शब्दकोशों तथा हिंदी पुस्तकों का प्रकाशन करने की दिशा में भी 'इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स' को आगे आना होगा.
अभियंताओं का दायित्व:
हम अभियंताओं को हिन्दी का प्रामाणिक शब्द कोष, व्याकरण तथा पिंगल की पुस्तकें अपने साथ रखकर जब जैसे समय मिले पढ़ने की आदत डालनी होगी. हिन्दी की शुद्धता से आशय उर्दू, अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा/बोली के शब्दों का बहिष्कार नहीं अपितु हिंदी भाषा के संस्कार, प्रवृत्ति, रवानगी, प्रवाह तथा अर्थवत्ता को बनाये रखना है चूँकि इनके बिना कोई भाषा जीवंत नहीं होती.
भारतीय अंतरजाल उपभोक्ताओं के हाल ही में हुए गए एक सर्वे के अनुसार ४५% लोग हिन्दी वेबसाईट देखते हैं, २५% अन्य भारतीय भाषाओं में वैब सामग्री पढना पसंद करते हैं और मात्र ३०% अंगरेजी की वेबसाईट देखते हैं. यह तथ्य उन लोगों की आँख खोलने के लिए पर्याप्त है जो वर्ल्ड वाइड वेब / डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू को राजसी अंगरेजी का पर्यायवाची माने बैठे हैं. गूगल के प्रमुख कार्यकारी एरिक श्मिडट के अनुसार अब से ५-६ वर्ष के अंदर भारत विश्व का सबसे बड़ा आई. टी. बाज़ार होगा, न कि चीन. यही कारण है कि हिन्दी आज विश्व की तीन प्रथम भाषाओं में से- तीसरे से दूसरे स्थान पर आ गयी है. गूगल ने सर्च इंजिन के लिए हिंदी इंटरफेस जारी किया है. माइक्रो सोफ्ट ने भी हिन्दी और अन्य प्रांतीय भाषाओं की महत्ता को स्वीकारा है. विकीपीडिया के अनुसार चीनी विकीपीडिया यदि २.५० करोड परिणाम देता है तो हिन्दी विकिपीडिया ६ करोड परिणाम देता है.
अतः हिंदी की सामर्थ्य उसे विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करा रही है. प्रश्न यह है की हम एक भारतीय, एक हिंदीभाषी और एक अभियंता के रूप में अपने दायित्व का निर्वहन कितना, कैसे और कब करते हैं.
***
हिंदी दिवस पर विशेष गीत:
सारा का सारा हिंदी है
*
जो कुछ भी इस देश में है, सारा का सारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, कुचपुडी, गरबा अपना है.
लेजिम, भंगड़ा, राई, डांडिया हर नूपुर का सपना है.
गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, चनाब, सोन, चम्बल,
ब्रम्हपुत्र, झेलम, रावी अठखेली करती हैं प्रति पल.
लहर-लहर जयगान गुंजाये, हिंद में है और हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा सबमें प्रभु एक समान.
प्यार लुटाओ जितना, उतना पाओ औरों से सम्मान.
स्नेह-सलिल में नित्य नहाकर, निर्माणों के दीप जलाकर.
बाधा, संकट, संघर्षों को गले लगाओ नित मुस्काकर.
पवन, वन्हि, जल, थल, नभ पावन, कण-कण तीरथ, हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
जै-जैवन्ती, भीमपलासी, मालकौंस, ठुमरी, गांधार.
गजल, गीत, कविता, छंदों से छलक रहा है प्यार अपार.
अरावली, सतपुडा, हिमालय, मैकल, विन्ध्य, उत्तुंग शिखर.
ठहरे-ठहरे गाँव हमारे, आपाधापी लिए शहर.
कुटी, महल, अँगना, चौबारा, हर घर-द्वारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
सरसों, मका, बाजरा, चाँवल, गेहूँ, अरहर, मूँग, चना.
झुका किसी का मस्तक नीचे, 'सलिल' किसी का शीश तना.
कीर्तन, प्रेयर, सबद, प्रार्थना, बाईबिल, गीता, ग्रंथ, कुरान.
गौतम, गाँधी, नानक, अकबर, महावीर, शिव, राम महान.
रास कृष्ण का, तांडव शिव का, लास्य-हास्य सब हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
ट्राम्बे, भाखरा, भेल, भिलाई, हरिकोटा, पोकरण रतन.
आर्यभट्ट, एपल, रोहिणी के पीछे अगणित छिपे जतन.
शिवा, प्रताप, सुभाष, भगत, रैदास कबीरा, मीरा, सूर.
तुलसी. चिश्ती, नामदेव, रामानुज लाये खुदाई नूर.
रमण, रवींद्र, विनोबा, नेहरु, जयप्रकाश भी हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
***
दोहा सलिला:
हिंदी वंदना
*
हिंदी भारत भूमि की आशाओं का द्वार.
कभी पुष्प का हार है, कभी प्रचंड प्रहार..
*
हिन्दीभाषी पालते, भारत माँ से प्रीत.
गले मौसियों से मिलें, गायें माँ के गीत..
*
हृदय संस्कृत- रुधिर है, हिंदी- उर्दू भाल.
हाथ मराठी-बांग्ला, कन्नड़ आधार रसाल..
*
कश्मीरी है नासिका, तमिल-तेलुगु कान.
असमी-गुजराती भुजा, उडिया भौंह-कमान..
*
सिंधी-पंजाबी नयन, मलयालम है कंठ.
भोजपुरी-अवधी जिव्हा, बृज रसधार अकुंठ..
*
सरस बुंदेली-मालवी, हल्बी-मगधी मीत.
ठुमक बघेली-मैथली, नाच निभातीं प्रीत..
*
मेवाड़ी है वीरता, हाडौती असि-धार,
'सलिल'अंगिका-बज्जिका, प्रेम सहित उच्चार ..
*
बोल डोंगरी-कोंकड़ी, छत्तिसगढ़िया नित्य.
बुला रही हरियाणवी, ले-दे नेह अनित्य..
*
शेखावाटी-निमाड़ी, गोंडी-कैथी सीख.
पाली, प्राकृत, रेख्ता, से भी परिचित दीख..
*
डिंगल अरु अपभ्रंश की, मिली विरासत दिव्य.
भारत का भाषा भावन, सकल सृष्टि में भव्य..
*
हिंदी हर दिल में बसी, है हर दिल की शान.
सबको देती स्नेह यह, सबसे पाती मान..
***
नवगीत:
हिंदी की जय हो...
*
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
जनगण-मन की
अभिलाषा है.
हिंदी भावी
जगभाषा है.
शत-शत रूप
देश में प्रचलित.
बोल हो रहा
जन-जन प्रमुदित.
ईर्ष्या, डाह, बैर
मत बोलो.
गर्व सहित
बोलो निर्भय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
ध्वनि विज्ञानं
समाहित इसमें.
जन-अनुभूति
प्रवाहित इसमें.
श्रुति-स्मृति की
गहे विरासत.
अलंकार, रस,
छंद, सुभाषित.
नेह-प्रेम का
अमृत घोलो.
शब्द-शक्तिमय
वाक् अजय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
शब्द-सम्पदा
तत्सम-तद्भव.
भाव-व्यंजना
अद्भुत-अभिनव.
कारक-कर्तामय
जनवाणी.
कर्म-क्रिया कर
हो कल्याणी.
जो भी बोलो
पहले तौलो.
जगवाणी बोलो
रसमय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
***
नवगीत:
अपना हर पल है हिन्दीमय....
*
अपना हर पल है हिन्दीमय
एक दिवस क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें नित्य अंग्रेजी
जो वे एक दिवस जय गाएँ...
*
निज भाषा को कहते पिछडी.
पर भाषा उन्नत बतलाते.
घरवाली से आँख फेरकर
देख पडोसन को ललचाते.
ऐसों की जमात में बोलो,
हम कैसे शामिल हो जाएँ?...
*
हिंदी है दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक की भाषा.
जिसकी ऐसी गलत सोच है,
उससे क्या पालें हम आशा?
इन जयचंदों की खातिर
हिंदीसुत पृथ्वीराज बन जाएँ...
*
ध्वनिविज्ञान-नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में माने जाते.
कुछ लिख, कुछ का कुछ पढने की
रीत न हम हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि, उच्चारण भी
शब्द-अर्थ में साम्य बताएँ...
*
अलंकार, रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी भाषा में मिलते,
दावे करलें चाहे झूठे.
देश-विदेशों में हिन्दीभाषी
दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएँ...
*
अन्तरिक्ष में संप्रेषण की
भाषा हिंदी सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन में
हिंदी है सर्वाधिक सक्षम.
हिंदी भावी जग-वाणी है
निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ...
१२-९-२०१६
***
नवगीत:
*
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
शानदार सम्मेलन होता
किन्तु न इसमें जान है.
बुंदेली को जगह नहीं है
न ही मालवी-मान है.
रुद्ध प्रवेश निमाड़ी का है
छत्तीसगढ़ी न श्लाघ्य है
बृज, अवधी, मैथिली न पूछो
हल्बी का न निशान है.
भोजपुरी को भूल
नहीं क्या
घिरते हैं हम भूल में?
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
महीयसी को बिठलाया है
प्रेस गैलरी द्वार पर.
भारतेंदु क्या छोड़ गये हैं
सम्मेलन ही हारकर?
मातृशक्ति की अनदेखी
क्यों संतानें ही करती हैं?
घाघ-भड्डरी को बिसराया
देशजता से रार कर?
बिंधी हुई है
हिंदी कलिका
अंग्रेजी के शूल में
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
रास, राई, बंबुलिया रोये
जगनिक-आल्हा यहाँ नहीं.
भगतें, जस, कजरी गायब हैं
गीत बटोही मिला नहीं.
सुआ गीत, पंथी या फागें
बिन हिंदी है कहाँ कहो?
जड़ बिसराकर पत्ते गिनते
माटी का संग मिला नहीं।
ताल-मेल बिन
सपने सारे
मिल जाएंगे धूल में.
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
(१०-९-१५ को विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल में उद्घाटन के पूर्व लिखा गया)
***
दोहा सलिला:
करना है साहित्य बिन, भाषा का व्यापार
भाषा का करती 'सलिल', सत्ता बंटाधार
*
मनमानी करते सदा, सत्ताधारी लोग
अब भाषा के भोग का, इन्हें लगा है रोग
*
करता है मन-प्राण जब, अर्पित रचनाकार
तब भाषा की मृदा से, रचना ले आकार
*
भाषा तन साहित्य की, आत्मा बिन निष्प्राण
शिवा रहित शिव शव सदृश, धनुष बिना ज्यों बाण
*
भाषा रथ को हाँकता, सत्ता सूत अजान
दिशा-दशा साहित्य दे, कैसे? दूर सुजान
*
अवगुंठन ही ज़िन्दगी, अनावृत्त है ईश
प्रणव नाद में लीन हो, पाते सत्य मनीष
*
पढ़ ली मन की बात पर, ममता साधे मौन
अपनापन जैसा भला, नाहक तोड़े कौन
*
जीव किरायेदार है, मालिक है भगवान
हुआ किरायेदार के, वश में दयानिधान
*
रचना रचनाकार से, रच ना कहे न आप
रचना रचनाकार में, रच जाती है व्याप
*
जल-बुझकर वंदन करे, जुगनू रजनी मग्न
चाँद-चाँदनी का हुआ, जब पूनम को लग्न
*
तिमिर-उजाले में रही, सत्य संतान प्रीति
चोली-दामन के सदृश, संग निभाते रीति
*
जिसे हुआ संतोष वह, रंक अमीर समान
असंतोषमय धनिक सम, दीन न कोई जान
*
अवगुंठन ही ज़िन्दगी, अनावृत्त है ईश
प्रणव नाद में लीन हो, पाते सत्य मनीष
*
पढ़ ली मन की बात पर, ममता साधे मौन
अपनापन जैसा भला, नाहक तोड़े कौन
*
जीव किरायेदार है, मालिक है भगवान
हुआ किरायेदार के, वश में दयानिधान
*
रचना रचनाकार से, रच ना कहे न आप
रचना रचनाकार में, रच जाती है व्याप
*
जल-बुझकर वंदन करे, जुगनू रजनी मग्न
चाँद-चाँदनी का हुआ, जब पूनम को लग्न
*
तिमिर-उजाले में रही, सत्य संतान प्रीति
चोली-दामन के सदृश, संग निभाते रीति
*
जिसे हुआ संतोष वह, रंक अमीर समान
असंतोषमय धनिक सम, दीन न कोई जान
१२-९-२०१५
*

बुधवार, 11 सितंबर 2024

चंद्र विजय अभियान, काव्य संकलन (अंतिम रूप)

 विश्ववाणी हिंदी अभियान संस्थान जबलपुर

काव्य संकलन - चंद्र विजय अभियान
(देवनागरी वर्ण क्रम अनुसार)
*
* अखिलेश चंद्र गौड़, कासगंज २०-१०-१९५६/९४१२३ ०५१२५  
- अजय कुलश्रेष्ठ, एटा ०७.०६.१९६५/८८८१२ ०७८५३ 
- अनिल जैन, दमोह २०.०६.१९६१/९६३०६ ३११५८           अंग्रेजी 
* - अनुराधा गर्ग, जबलपुर २९.०४.१९६०/८१०९९ ७७१९९ 
* अनुराधा सुनील पारे, जबलपुर  
- अभिनंदन गुप्ता अभि 'रसमय', हरिद्वार १४.०४.१९५६/९५५७३ ७२००८ 
* - अमरेन्द्र नारायण, जबलपुर २१.११.१९४५/९४२५८ ०७२००   भोजपुरी
- अमित मिश्र, हरदोई १७.१०.१९७८/७८००३ ९१९६३  
- अरविंद श्रीवास्तव 'असीम', दतिया, २९.६.१९५९/९४२५७ २६९०७ 
* - अरुणा पाण्डे, जबलपुर ०१.०९.१९५८/९४२५३ ६३३६४ 
0 अरुणिमा सक्सेना डॉ., 
0 अल्पना श्रीवास्तव, जबलपुर, २५-४-१९७२/९६९१३ २९९७०   
- अवधेश सक्सेना, शिवपुरी २९-६-१९५९ /९८२७८३ २९१०२ 
* - अविनाश ब्योहार, जबलपुर, २८.१०.१९६६/९८२६७ ९५३७२ 
* अस्मिता शैली, जबलपुर ११.१०.१९७७/८३०५० ९९७५५    
आशा जैन, सिहोरा २४.०९.१९५२/९७५४९ ७९८९९ 
- इंद्र बहादुर श्रीवास्तव, जबलपुर १४,०५.१९४७/९३२९६ ६४२७२  
- उदयभानु तिवारी 'मधुकर', १८.०८.१९४६/९४२४३ २३२९७ 
* उमा जोशी, कुमायूँ ०९.०६.१९७३/९५३६३ १६२५६            कुमायूनी 
* - उषा वर्मा 'वेदना', जयपुर १२.३.१९४५/९९२८० ३०३७९  
- ओंकार साहू, दिल्ली १३.१२.१९७९/८८१७२ ४५८८० 
- कनक लता जैन, गुवाहाटी ०७.०३.१९७७/८४७२९ २०७३०  
- कनक लता तिवारी, मुंबई ०६.०६.१९५९/९०८२१ ६९५०४ 
- कमलेश शुक्ला, दमोह ०९.०८.१९६२/९८२६४ ८०५६४
* - कृष्णकांत चतुर्वेदी, जबलपुर १९.१२.१९३७/९४२५१५७८७३ 
* कालिदास ताम्रकार, जबलपुर १२.११.१९६०/९८२६७ ९५२३६ 
* किरन सिंह, हैदराबाद १५.०८.१९५८/९४४०५ ७०४०८ 
- किरण सिंह 'शिल्पी', शहडोल १८.०८.१९६५/८८२७२ ११०२३ 
- कीर्ति मेहता 'कोमल', इंदौर १९.१२.१९७५/९१०९३ ३३३३४ 
* - कैलाश कौशल, जोधपुर २८.०९.१९६०/९९२८२ ९४३३३ 
- गीता चौबे 'गूँज', बेंगलुरु ११.१०.१९६७/८८८०९ ६५००६ 
- गीता शर्मा, कांकेर २४.१०.१९५२/७९७४० ३२७२२   
* - गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल', कोटा १८-६-१९५५/७७२८८ २४८१७  
* - चारु श्रोत्रिय, जावरा रतलाम ०४.०२.१९६७/९८२७३ ४२०६७   मालवी 
- चेतना अग्रवाल, अहमदाबाद २७.११.१९७१/९०३३० ५९०१४
- चोवा राम वर्मा 'बादल', उड़ेला, भाटापारा २१.०५.१९६१/९९२६१ ९५७४७
- छगन लाल गर्ग, जीरावल सिरोही १३.०४.१९५४/७०७३८ २४९६९ 
- जयप्रकाश श्रीवास्तव, जबलपुर ०९.०५.१९५१/७८६९२ ९३९२५ 
* ज्योति जैन, कोलकाता २८.१.१९७४ /८१६७८ ८४४२७  
- ज्वाला प्रसाद शांडिल्य 'दिव्य', हरिद्वार २६.०३.१९४३/९९२७६ १४६२?
* तनुजा श्रीवास्तव, रायगढ़ २३.८.१९८६ /९१०९६ ५९६४   
* तृप्ति मिश्रा, हैदराबाद ०७.०७.१९७०/९४९० ९३२७२४
* - दिनेश चंद्र प्रसाद 'दीनेश', कोलकाता ०५.११.१९५९/९४३४७ ५८०९३ 
* - दिनेश दत्त शर्मा 'वत्स', गाजियाबाद १५.८.१९३९/९३११५ ०२७६९   
* दुर्गा नागले, जबलपुर २९.०३.१९६८/९७७०४ ०६०१० 
* देवकांत मिश्र ;दिव्य', भागलपुर १२.१२.१९७५/८२९८७ २०२५४  
* देवकी नंदन 'शांत इं.,  उर्दू  
* नवनीता चौरसिया, जावरा रतलाम २४.०९.१९७२/९४०६६ ३६१३१ 
* नारायण श्रीवास्तव, करेली, नरसिंहपुर, ०१.०८.१९५१/९४२५८ १५९३३ 
* निर्मला कर्ण, राँची ०४.०३.१९६०/९४३१७ ८५८६०
- नीता नय्यर 'निष्ठा', रानीपुर हरिद्वार  ३०.०१.१९५७/९८९७२ ०६५४५  अंग्रेजी 
- नीता शेखर 'विषिका', राँची ९५०७५ ५४५६८
- नीलम कुलश्रेष्ठ, गुना ०३.०८.१९७१/९४०७२ २८३१४   
* - नूतन गर्ग, दिल्ली ०३.१०.१९६८/८७००६ ९४५३५ 
- पाण्डे चिदानंद 'चिद्रूप', वाराणसी ०९.०४.१९७७/७५२५० ९९३९९          भोजपुरी 
* पुष्पा जमुआर, पटना ०५.०१.१९५६/९८०११ ९८४३३ 
- पुष्पा पांडे, राँची ०४.०२.१९६०/९४३१७ ०८७५०
- पुष्पा वर्मा, हैदराबाद ०४.०३.१९४६/९३९४८ ८३८९९ 
- पूनम चौहान, बिजनौर १५.०४.१९६७/९२५८७ ५६२२१ 
* प्रणति ठाकुर, कोलकाता २३.०४.१९७४/९८७४८ ६४१६९
* प्रताप सिंह राहुल, सतना २०.०१.१९८९/८१२१४ ८७२३२  
- प्रियदर्शिनी पुष्पा, धनबाद ०५.०९.१९७९/७९०३६ ४४८५७
0 प्रेम बिहारी मिश्र, नई दिल्ली १३.१२.१९४५ / ९७११८ ६०५१९ निधि अप्राप्त
- बसंत शर्मा, बिलासपुर ०५.०३.१९६६/९४७९३ ५६७०२ 
- बहादुर सिंह बिष्ट 'दीपक', २२.०५.१९८२/                           कुमायूनी 
= ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र इं. जमशेदपुर निधि अप्राप्त 
- बाबा कल्पनेश, १८.१०.१९५८/८७६५१ ९४७७३ 
* भावना पुरोहित, अहमदाबाद २२.११.१९६०/९७०१८ ०८५१७  गुजराती 
- मगन सिंह जोधा, आबूरोड सिरोही, १५.०३.१९६८    राजस्थानी  
- मदन श्रीवास्तव, जबलपुर ०३.११.१९५१/९२२९४ ३६०१० 
* - मधु प्रधान, मुंबई २६.१२.१९५०/९९६९२ १२३४४ 
- मनीषा सहाय, जबलपुर १९.०२.१९७५/७७६२९ ३९६५७
- मनोज शुक्ल 'मनोज', जबलपुर १६.०८.१९५१/९४२५८ ६२५५० 
* मनोहर चौबे 'आकाश', जबलपुर २०.०८.१९५०/९८९३० २३१०८ 
* महेंद्र नाथ तिवारी 'अलंकार', वाराणसी  ०१.०६.१९५६/९४५४७ २९८९३
- मीना घुमे 'निराली', लातूर ०५.०९.१९७८/९६८९१ ९०७२९     मराठी 
* - मीना भट्ट, जबलपुर ३०.०४.१९५३/७९७४१ ६०२६८
* - मीना श्रीवास्तव, ग्वालियर १५.०६.१९६५/७०४९ ०३५५५५
- मीनाक्षी गंगवार, लखनऊ १४.११.१९७८/९४५०४ ६८९४१
- मीनू पाण्डेय 'नयन', भोपाल १८-०३.१९७३/७९८७१ ४१०७३
* मुकुल तिवारी, जबलपुर ०१.०७.१९६१/९१३११ ०९४१४
- रजनी शर्मा, रायपुर १४.०३.१९६७/९३०१८ ३६८११    हलबी 
* - राजलक्ष्मी शिवहरे, जबलपुर२२.०२.१९४९/९९२६८ ७०१०३
* राधेश्याम साहू, जमनीपाली कोरबा  ०३.०६.१९७६/८३१९७ ४५८९८
- रानी दाधीच, जयपुर २५.०४.१९८०/८३६७८ ८४२०० 
- रामस्वरूप साहू, कल्याण ०१.०६.१९४९/९३२३५ ३८०१० 
*  रीना प्रताप सिंह, बिजनौर 
*  रेखा श्रीवास्तव, अमेठी ११.०९.१९६०/९४५०७ ७४२०२
- रोशनी पोखरियाल, चमोली १३.०२.१९७७/७३०२६ ०६९३२ 
* वरुण तिवारी, गुना २०.०९.२००१/८८७१८ ३९८१८
- वसुधा वर्मा, ठाणे ०५.०९.१९५७/९८३३२ ३२३९६ 
- विजय लक्ष्मी 'विभा', प्रयागराज  २५.०८.१९४६/७३५५६ ४८७६७
* - विजय शंकर 'विशाल', बसना महासमुंद २३.०५.१९७४/९६६९४ ७१२७४   संबलपुरी 
* विनोद जैन 'वाग्वर' सागवाड़ा १७.०९.१९६८/९६४९९ ७८९८१
- विपिन श्रीवास्तव, दिल्ली ०२.०९.१९८०/९८२६२ ७६३६४     बुन्देली 
- विष्णु शास्त्री 'सरल', चंपावत उत्तराखंड ०८.०५.१९५७/९४११३ ४७९३४ 
- वीणा कुमारी नंदिनी, जमशेदपुर  
- वैष्णो खत्री 'वेदिका', जबलपुर १९.०३.१९५८/७९९९९ ६१८६०  
- वृंदावन राय 'सरल', सागर ०३.०६.१९५१/७८६९२ १८५२५ 
* - शन्नो अग्रवाल, लंदन ०९.१२.१९४७/८१६७८ ८४४२७
* शशि त्यागी, अमरोहा २८.०३.१९५६/९०४५१ ७२४०२
- शालिनी त्रिपाठी 'शालू', फरीदपुर १६.०९.१९९५/७९८५१ १७८७८
- शिखा सेन, इंदौर १४.०९.१९६५/९८२६३ २०९५५ 
- शिप्रा मिश्रा, बेतिया चंपारण १६.०६.१९६९/९४७२५ ०९०५६ 
- शिप्रा सेन, जबलपुर१४.०७.१९६१/ ७७४८९ ८०५३३ बांग्ला, हिंदी, अंग्रेजी 
* शिव कुमार पाटकार, तेंदूखेड़ा, नरसिंहपुर १७.०७.१९८२/९४०७३ ०५७४६ 
* - शिव नारायण जौहरी, भोपाल ०३.०१.१९२६/९९८१५ ०७०१२
* - शुचि भवि, भिलाई २४-११-१९७१/९८२६८ ०३३९४
- शैलजा दुबे, बिलखड़ एटा ०१.०१.१९७६/९७१९१ ९५४८२ 
- संगीता नाथ, धनबाद ९४३१११६८९८
- संगीता भारद्वाज, भोपाल २०.०८.१९६७/८८८९५ ५८८८५
* - संजीव वर्मा 'सलिल',जबलपुर २०.०८.१९५२/९४२५१ ८३२४४ 
- संतोष नेमा, जबलपुर १५.०७.१९६१/९३००१ ०१७९९ 
- संतोष शुक्ला, सूरत १५.०८.१९४२/९८७४१ ४२१०० 
- संदीप धीमान, हरिद्वार ०१.०३.१९७६/९७५९८ ३८९७१ 
* - सरला वर्मा, भोपाल ०२.०६.१९५७/९७७०६ ७७४५३
* सरिता सुराणा, हैदराबाद ०५.०७.१९६६/९१७७६ १९१८१  
- सरोज गुप्ता, सागर २०.०७.१९६३/९४२५६ ९३५७० बुन्देली 
* - सिम्मी नाथ, राँची १७.०६.१९७२/९९३९६ ७३००४
* - सुनीता परसाई, हैदराबाद २०.०३.१९५६/९६१९४ ५५६११ भुआणी 
* - सुभाष सिंह, कटनी २५.०६.१९६५/९९८१७ ८११९५
* - सुमन झा 'माहे' लक्ष्मीपुर पश्चिम चंपारण ०८.०३.१९६५/८८४०७ ७६४५९    मैथिली
- सुमन श्रीवास्तव, लखनऊ २५.०३.१९४८/९८९७० ३५२४२   
- सुरेन्द्र सिंह पँवार, जबलपुर २५.०६.१९५७/९३००१ ०४२९६ 
* सुषमा खरे,सिहोरा २३.१२.१९६५/९४२५१ ५४३६१
- सुषमा शर्मा 'श्रुति', इंदौर १०.१०.१९६०/९३००८ ३२९०४    मालवी 
- सुषमा सिंह करचुली, सिहोरा ०२.०१.१९६९/९७०२७ १२९९९   बघेली 
- सोमपाल सिंह, मुरादाबाद ०४.०७.१९७३/९४११४ ८५२५२ 
- स्वाति पाठक, दिल्ली २३.१२.१९९३/९५९९७ ९९७७३ 
- हरि श्रीवास्तव 'अवधी हरि', लखनऊ १७.०७.१९६५/९४५०४८९७८९
- हरि सहाय पांडे 'हरि', जबलपुर १०.०६.१९६६/९७५२४ १३०९६
- हरिहर झा, मेलबोर्न आस्ट्रेलिया ०७.१०.१९४६/६१ ४३२१ १`७९३० 
* डॉ. ऋषिका वर्मा, श्री नगर, पौड़ी गढ़वाल 
***
१२७  

काव्य संकलन - चंद्र विजय अभियान  (वर्ण क्रमानुसार) 
*
(देवनागरी वर्ण क्रम अनुसार)
*
अखिलेश चंद्र गौड़, कासगंज २०-१०-१९५६/९४१२३ ०५१२५  

डा० अखिलेश चन्द्र गौड़



जन्म-२०-१०-१९५६, कासगंज उ.प्र.। 
माताजी- श्रीमती रतन कुमारी गौड़। 
पिताजी- श्री कैलाश चन्द्र गौड़।
जीवन संगिनी- डा. रंजना गौड़।
शिक्षा- एम.बी.बी.एस., डी.और्थ., डी.एन.बी.,एम.सी.एच. (और्थो.), एफ.सी.जी.पी., एफ.आई.ए.एम.एस.(और्थो.)। 
सम्प्रति- आर्थोपेडिक सर्जन, अखिलेश हास्पीटल, कासगंज।
संपर्क- डा०अखिलेश चन्द्र गौड़, 
मालगोदाम चौराहा,नदरई गेट, कासगंज २०७१२३ । 
चलभाष:९४१२३०५१२५,  ह्वाट्सएप:९४१२३०५१२५ । 
ई-मेल: drakhileshchandragaur@gmail.com
*

ढूँढें उलझे प्रश्नों के हल।
चल रे मन अब चन्दा पर चल।।

जय चन्द्रयान के गगनपथी।
विज्ञान जगत के महारथी।।

है नमन तुम्हें, शत् शत् वन्दन।
कण कण करता है अभिनन्दन।।

नव परिवर्तन की हवा चली।
हो गया शोर हर गली गली।।

सागर में कैसा नाद उठा ?
लगता है भारत जाग उठा।। 

वे अद्भुत क्षण,वे अभिनव पल।
विधु पर भारत की ध्वजा अटल।।

है आज रचा इतिहास नवल।
भूगोल बदल जायेगा कल।।

जन जन उत्कंठित, है विह्वल।
चल रे!मन अब चन्दा पर चल।।

क्या खनिज,गैस ,जल ,जीव वहां ?
हिमगिरि से अचल सजीव वहां ?

गंगा -यमुना की धारा है ?
कैसा संसार,तुम्हारा है ?

दिन रात काम करते रहते।
तुम शान्त, सौम्य हँसतेरहते।।

क्यों घटते बढ़ते रहते हो ?
क्या मौन व्यथायें सहते हो?

क्या बुढ़िया चर्खा कात रही ?
या फिर यह झूंठी बात रही।।

सच सच सब कुछ बतला देना।
कुल सोलह कला सिखा देना ।।

दे दो शुचि ज्ञान- सम्पदा बल।
चल रे!मन अब चन्दा पर चल।।

माना पथ में अवरोध खड़े।
पर अपने भी संकल्प बड़े।।

आरक्त चरण पंकज छू कर।
हो गये  धन्य प्रज्ञान प्रवर।।

आये हैं निज मामा के घर।
विज्ञान  कुशल, विक्रम -रोवर।।

लाये धरती मां की राखी।
रक्षा करना भारत मां की।।

भेजो गोपन विद्या लेकर।
आशीष इन्हें दो करुणाकर।।

निशिनाथ, सुधाकर ,चन्द्राकर।
बरसा दो सोम सुधा झर झर।।

हो सकल चन्द्र अभियान सफल।।
चल रे!मन अब चन्दा पर चल।।
***

* अजय कुमार कुलश्रेष्ठ, एटा, उत्तर प्रदेश   ८८८१२ ०७८५३ 

जन्म- ७ जून १९६५, एटा। 
आत्मज- स्व. भुवनेश्वरी देवी स्व. जगेंद्र कुमार कुलश्रेष्ठ, प्राचार्य इंटरकॉलेज, एटा, उ. प्र.।  
जीवन साथी- स्व. प्रीति कुलश्रेष्ठ।
संप्रति- लेखाकार प्रा. लिमिटेड कंपनी में । 
चलभाष- ८८८१२ ०७८५३ 
संपर्क- शांति नगर, एटा। / ए ९० शास्त्रीपुरम, आगरा,  उत्तर प्रदेश। 
*

कविता
 
हमें भी था भारत की जीत का पक्का भान।
चन्द्र के दक्षिण ध्रुव पर भारत का पहुँचेगा चन्द्रयान।
भारत की शान बढ़ाकर जग में ऊँचा कर दिया मान।। 

वैज्ञानिकों ने हर भारतवासी का बढ़ाया ज्ञान।
जिससे थी सारी दुनिया अनजान। 
विक्रम का तो पराक्रम देखा ही 
चन्द्रमा का ज्ञान बटोरेगा प्रज्ञान।। 

चंद्रयान की सॉफ्ट लैंडिंग से पहले
 वैज्ञानिकों और हर इंसान की अटकी थी जान।
जैसे ही हुई सॉफ्ट लैंडिंग पहुँचा विक्रम संग प्रज्ञान।
तालियों से गूँfज उठा पूरा प्यारा हिंदुस्तान। 
एक सूत्र में बाँध दिया पूरा प्यारा हिंदुस्तान।। 

अब अब भारतीय जन मानस का जग में गूँजा नारा है। 
विश्व गुरु बनकर रहेंगे अब सूरज  संग चाँद हमारा है। 
अब इसरो आदित्य एल १  द्वारा सूर्य पर 
झंडा गाड़ेगा हमारा प्यारा हिंदुस्तान 
पूरी दुनिया में हमारा भारत देश  न्यारा है।
"जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान" ने देश सँवारा है।

***

* अनिल जैन डॉ., दमोह २०.०६.१९६१/९६३०६ ३११५८           अंग्रेजी


*** 

अनुराधा गर्ग 'दीप्ति', जबलपुर २९.०४.१९६०/८१०९९ ७७१९९ 

जन्म- २९ अप्रैल १९६०, जबलपुर। 
शिक्षा- एम.ए., बी.एड.। 
आत्मजा- श्रीमती प्रेमवती पान्डे - श्री रामदुलारे पान्डे। 
जीवन साथी - श्री दुर्गा दास गर्ग। 
संप्रति - उ. श्रे. शिक्षक (से.नि.)। 
संपर्क- चलभाष ८१०९९७७१९९ 
ईमेल- garganuradha29@gmail.com
*

संकल्पों से मिली सफलता
*
भारत माता के बेटों का,
श्रम आज सफल हो पाया है ।
चंद्रयान ने दक्षिण ध्रुव पर,
अंगद सा  पैर जमाया है ।।
पूर्ण हुआ है मिशन हमारा,                
अनुसंधानों में सफल हुए हैं।
दूर गगन में गगन यान ने,
चाँद सतह पर कदम धरे हैं।।
दक्षिण ध्रुव को जाकर चूमा, 
चंद्रयान जो तीन गया है।।
संकल्पों से मिली सफलता ,
भारत का झंडा फहर गया है।। 
मिशन तीसरा सफल रहा है, 
अब साफ्ट-लैंडिंग हो गई है ।।
इसरो संग भारतीयों की, 
चौड़ी छाती हो गई है।।
विश्व विजय की गाथा पूरी,                           
अभिलाषाओं की लड़ियाँ  है।।
जय जवान औ' जय किसान सँग,                        
जय जय विज्ञान की कड़ियाँ है।।
विक्रम संग प्रज्ञान रचाए,  
कीर्ति मान नवभारत का है।
चंद्रारोहण ने सिद्ध किया,
हर दिन विश्व विजेता का है।।
***

अनुराधा सुनील पारे 'अवि', जबलपुर

जन्म- 
आत्मजा- माता जी - पिताजी 
जीवन साथी - श्रीमान सुनील पारे (सिविल इंजीनियर)
शिक्षा-  स्नातकोत्तर बायोसाइंस, पी. जी. डी. सी. ए.आइसेक्ट। 
रुचि- छंद,लघुकथा लेखन, कहानी, संस्मरण, कविता लेखन आदि।
संपर्क- ५/६१२ विजय नगर, एम आर ४ रोड, स्टेट बैंक रीजनल ब्रांच ऑफिस के पास, जबलपुर ( म. प्र.)
चलभाष- 9399559519 
ईमेल-  
*

गीत 

पावन दिवस बधाई सबको, हिंद राष्ट्र भारत प्यारा।
चन्द्र धरा का ताज तिरंगा, विश्व मंच जय जयकारा।।

चन्द्रयान 'त्रय' ने की सारी, आशाएँ देखो पूरी।
ध्रुव दक्षिणी पर जा उतरा, विश्व पटल की बन धूरी।।
विजय तिलक माँ भाल सजा है, जग में बहती सुख धारा।
चन्द्र धरा का ताज तिरंगा, विश्व मंच जय जयकारा।।

आज तपस्या पूर्ण हुई है, पहुँचा यान चन्द्र कक्षा।
इसरो ने परचम फहराया, सतत् प्रयोगों से रक्षा।
विश्व पताका  बन लहराया, चमका है बनकर तारा।
चन्द्र धरा का ताज तिरंगा, विश्व मंच जय जयकारा।।

जश्न मनाएँ सब नरनारी, मिली सफलता अब भारी।
आभारी विक्रम के सारे, सकल जगत खुश हृद वारी।।
दुनिया भर के हिंदुस्तानी, पकड़ तिरंगे दे नारा।
चन्द्र धरा का ताज तिरंगा, विश्व मंच जय जयकारा।।

तीन मिशन पूरे करने को, चन्द्र धरा पर उतरा है।
नवल चेतना जागृत करने, वहाँ तिरंगा फहरा है।।
नवल कथाएँ नव गाथाएँ, नवल बना यह सत सारा।
चन्द्र धरा का ताज तिरंगा, विश्व मंच जय जयकारा।।

दृढ़ निश्चय यदि पक्का होता, सभी सफलता शुभ आए।
चाँद गगन मुट्ठी में आए, साथ धरा नभ सब गाए।।
नमन ऐतिहासिक इन पल को, कभी नहीं भारत हारा।
चन्द्र धरा का ताज तिरंगा, विश्व मंच जय जयकारा।।
(कुकुभ छंद,मात्रा ३०, यति १६-१४, पदांत -- दो गुरु)
***
* अपराजिता  रंजना, पटना (बिहार) 


 

आत्मज- श्रीमती सुनीता सिन्हा - श्री सुरेन्द्र बिहारी लाल। 
शिक्षा- विधि स्नातक।
संप्रति- परामर्शी। 


पटना (बिहार)
चलभाष- ९१५५० २४६६१ 
साँसें रुकी-रुकी सी थीं।
ईश्वर के आगे आँखे झुकी-झुकी सी थीं।
दिल धौकनी की तरह चल रहा था।
जब विक्रम चाँद पर उतर रहा था।
दृढ़ निश्चय से सब अड़े थे।
इतिहास बनाने को हम सब खड़े थे।
तालियों की
गड़गड़ाहट से इतिहास लिखा गया।
देश मेरा सबसे महान 
विक्रम लैंडर सफल होकर पूरे विश्व को ये दिखा दिया।
रोवर चाँद पर अशोक चिन्ह बनाएगा।
उसे कभी कोई मिटा ना पाएगा ।
दो बार की असफलता नें ही जीत हमें दिलायी है।
दो कदम आगे जो थे, हमसे
उन्होनें भी बधाईयाँ भिजवायी हैं।
चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर ही जाना था।
भारत ही है,भाग्य विधाता 
यह विश्व को बताना था।
कुशल वैज्ञानिकों नें
किया सफल अभियान।
चाँद पर तिरंगा लहरा 
दिया भारत को अव्वल सम्मान। 
***

* अभिनंदन गुप्ता अभि 'रसमय', हरिद्वार १४.०४.१९५६/९५५७३ ७२००८ 


***

* अमरेन्द्र नारायण इं., जबलपुर मध्य प्रदेश, भोजपुरी




जन्म-२१ नवम्बर १९४५, मटुकपुर, भोजपुर,बिहार।
आत्मज- स्व.तारा देवी-स्व.श्री विनोद नारायण। 
जीवनसंगिनी- श्रीमती आशा नारायण।    
शिक्षा-बी.एस-सी. इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग। 
कार्य- सेवा निवृत्त भारतीय दूर संचार सेवा और एशिया फैसिफिक टेलीकॉम्युनिटी। 
संप्रति- महासचिव एशिया फैसिफिक टेलीकॉम्युनिटी।  
उपलब्धि- संयुक्त राष्ट्र संघ से स्वर्णपदक। 
प्रकाशित कृतियाँ-  उपन्यास-संघर्ष,एकता और शक्ति, Unity and Strength,The Smile of Jasmine, Fragrance Beyond Borders 
काव्य- श्री हनुमत् श्रद्धा सुमन, सिर्फ एक लालटेन जलती है, अनुभूति,थोड़ी बारिश दो;तुम्हारा भी,मेरा भी; उत्साह,तुम्हारा अभिनंदन। 
जीवन चरित:पावन चरित-डाॅ.राजेन्द्र प्रसाद।  
संपर्क- शुभा आशीर्वाद , १०५५ होशियार सिंह मार्ग, साऊथ सिविल  लाइन्स,जबलपुर मध्य प्रदेश ४८२००१ ।  
चलभाष- ९४२५८०७२००, ईमेल,amarnar@gmail,com . 
*
उड़न खटोलवा
(भोजपुरी)
*
हमनीं के भेजले बानीं उड़न खटोलवा
चम-चम चमकेला खटोला अनमोलवा

देसवा के बेटा बेटी देस में बनवले
भूख पिआस निंदिया भुलाईके खटोलवा

प्रेम के संदेसा लेके  भारत के लोगवा के 
सज के उड़ल मनमोहना खटोलवा 

अँखियाँ टिकवले रहले देसवा के लोगवा  
देखले उड़ान जब लिहलस  खटोलवा

जिअरा जुड़वलस आ मुखड़ा हंसवलस 
मान बढ़वलस दुलरूआ खटोलवा

आन-बान से उड़ल, अरमान से उड़ल
स्वाभिमान से उड़ल प्यारा प्यारा ई खटोलवा

पिया के संदेसा चंदा तूं ही  पहुंचावेलऽ
प्यार के संदेसा पहुंचावता  खटोलवा 

ओनहूं से तनी मीठ बतिया पठावऽ
हमनीं के आगे भी त  भेजब  खटोलवा 

तोहरे के ताकेला नू धरती  के लोगवा
हाल  बताई जाके उड़न खटोलवा

आस टिकवले निहारीं असमनवां के
तुहूं तनी भेजऽ आपन प्यार से खटोलवा 

आदमी के बाटे इहां झुलसल हियरा 
भेजऽ तूं संदेसा तनी मीठा मीठा बोलवा

जलन अगिन तूं बुझादऽ हर मनवां से
चैन तनी पावे इहां आदमी के चोलवा

उड़न खटोला के दुलार  से तू रखिहऽ
हमनीं के प्रेम निसानी बा खटोलवा

नजर गुजर से बचइहऽ काली मईया
 सजल धजल बा सलोना बा खटोलवा

***

- अमिता मिश्रा, हरदोई १७.१०.१९७८/७८००३ ९१९६३ 


***
 
अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' (डॉ.), दतिया, मध्य प्रदेश /

जन्म- २९.६.१९५९ ग्राम अमरा, जिला झाँसी उ.प्र. । 
आत्मज- श्रीमती बृजकिशोरी - स्व. नाथूराम श्रीवास्तव। 
जीवन साथी- श्रीमती सुषमा कांति। 
शिक्षा- एम.ए.(हिंदी, अंग्रेजी, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र), डी.आर.जे.एम.सी.(पत्रकारिता), जे.ए.आई.आई.बी. (हिंदी),न्यूट्रिशन काउंसिलर, सी.एच. (सी. पी. आर एवं फर्स्ट एड), पी. एच-डी., डी.लिट.। 
प्रकाशित पुस्तकें- हिंदी २६,  अंग्रेजी ८ कुल १०० से अधिक। हिंदी सॉनेट सलिला में सहभागी। 
संपादन-३  पत्रिकाएँ, अनेक पुस्तकें। अनुवाद- आधुनिक भारत के विकास में संत कबीर का योगदान बुंदेली में अनुवाद (२७ भाषाओं में अनुवादित)। संपादन- भारत में राम-हनुमान मंदिर ३।
संपर्क-१५० छोटा बाजार, दतिया, मध्यप्रदेश ४७५६६१। 
चलभाष- ९४२५७ २६९०७, ६२६५८६२३०२,  ईमेल- arvinda290659@gmail.com
*


विश्व अचंभित
*
ज्ञान और विज्ञान में 
इसरो ने परचम है लहराया।
विश्व अचंभित, दक्षिण ध्रुव पर
चंद्रयान को पहुँचाया ।
       
 कुछ असफलता मिली पूर्व में
पर इसरो ने हार न मानी।
चंद्रयान प्रक्षेपण करके
कुछ अद्भुत करने की ठानी।
         
विक्रम संग प्रज्ञान पठाया 
सकल विश्व यशगान हुआ। 
अनुपम अनुसंधान जगत हित
इसरो का अति मान हुआ। 
         
इसरो के कारण दुनिया में
भारत का सम्मानबढ़।
धन्य-धन्य इसरो वैज्ञानिक 
तुमने नव आयाम गढ़ा।
         
रुकना नहीं सफलता पाकर
नवयुग का अब बिगुल बजाना।
मंगल, बुध और सूर्य जीतकर
भारत के सिर मुकुट सजाना।
***

-अरुणा पाण्डे डॉ. (प्रो.), जबलपुर ०१.०९.१९५८/९४२५३ ६३३६४ 

जन्म- १ सितंबर १९५८। 
आत्मजा- स्व. हृदयेश्वरी पाण्डे - स्व. सुशील पाण्डे। 
शिक्षा- एम. एस सी., पी-एच. डी.।  
संप्रति- सेवा निवृत्त प्राध्यापक प्राणी शास्त्र, 
           कोषाध्यक्ष, विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर।  
प्रकाशित पुस्तक- मन तो रोया होगा (कहानी संग्रह)।
संपर्क - वार्ड क्रमांक १५ खितौला बाजार, सिहोरा ४८३२२५ 
            जिला- जबलपुर मध्य प्रदेश। 
व्हाट्स एप- ७७७२८५३६०१ 
ई मेल- dr.arunapande@gmail.com
*



गीत 
*
प्रकृति रहस्य परत खोलने, जब मानव मेधा आतुर हो। 
रोक नहीं पायेगा कोई, बहता ज्ञान सरित निर्झर हो।।

व्योम पिण्ड, भू जीवन धर, नदी, समुंदर, कानन, जन-जन।
सूक्ष्मदर्शी सी परा दृष्टि से, भेदे चेतन के नव कन कन।। 
कण के भीतर तक की रचना और असर विद्युत चुंबक सा।
स्वयं इड़ा तत्पर होकर नित, करे तुष्ट  सब ज्ञान पिपासा।।
आर्यभट्ट, वाराहमिहिर औ, भास्कर, ब्रम्हगुप्त फिर लाला। 
भोज, बटेश्वर से इसरो तक, सबने रच ली कितनी शाला।। 
उसी प्रस्फुटित ज्ञान पुंज ने, अंतरिक्ष का भान कराया। |
चाल, कोण, गति, दूरी अंकण, कर पंचांग सही बन पाया।। 
सूर्य, चंद्र, ग्रह, उपग्रह तारे, नखत, राशि अज्ञात न कण हो। 

आर्यभट्ट ने निज गणना से, सबको था अचरज में डाला। 
दूरी वसुधा से कितनी है, किस ग्रह की माप बता डाला।। 
भास्कराचार्य विलक्षण प्रज्ञा, गणना कर भेद समझ आया। 
पृथ्वी कैसे घूमा करती,प्रति चक्कर का समय बताया।। 
सन उन्नीस सौ बासठ तक , नव भारत ने भी ठाना जब |
अंतरिक्ष रहस्य जानने को, इंकॉस्पार बना डाला तब |
सन उन्नीस सौ उनहत्तर में, नाम गया था इसका बदला |
इंकॉस्पार हुआ था इसरो, काम बहुत सारे थे करना |
अलग अलग संस्थान बनाये, आपस में भी थे निर्भर जो |

तिरवंतपुर प्रमोचक यान, आकार उपग्रह बेंगलुरु पाते |
श्री हरिकोटा धवन केंद्र है, यान समेकन करने होते |
अप्रैल उन्नीस सौ पचहत्तर, रूस संग आर्यभट्ट चला |
सन उन्नीस सौ उन्यासी में, भास्कर वसुधा कक्ष पहुंचा |
उन्नीस सौ अस्सी देश में, रोहिणी प्रक्षेपण यान खड़ा |
दो शताब्दी आठ चंद्रयान, चंद्र परिक्रमा के हेतु बढ़ा |
दो हजार चौदह में स्वदेशी, क्रायोजैनिक इंजन आया |
विक्रम लैंडर संग उन्नीस, असफलता राज समझ आया |
फिर प्रज्ञान लैंडर लिए साथ, हुआ लक्ष्य लिए अग्रसर वो |

नियत चाल से नियत समय पर नियत जगह पर ही वह उतरा |
असफलताओं से डरे नहीं, उनसे सीखें टालें खतरा |
आर्यभट्ट की बढ़ती जिज्ञासा, भारत के लिए वरदान बनी |
भास्कराचार्य की गणना भी, है हम सबका अभिमान बनी |
आशा सभी को चंद्रयान से, यह तय है सफल रहेगा वो |
सतत् रहे सक्रिय विकास पथ, भारत का मान बढ़ाता वो |
पहले भी भारत सक्रिय था, सदा रहेगा अग्रिम  ही वो|
राष्ट्र प्रेम का सागर लहरे, स्वाभिमान मन आसन हो |
ऊर्जित हो तन रेशा रेशा, मति ज्ञान प्रवाह निरंतर हो |
***

* अरुणिमा सक्सेना डॉ., प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश  

जन्म- १३ अगस्त १९४२, प्रतापगढ़  राजस्थान। 
आत्मजा- स्व. विमला देवी सक्सेना - स्व.  माधो प्रसाद सक्सेना। 
जीवन साथी- श्री राधेश्याम महेंद्र।
शिक्षा-  एम. ए. (संस्कृत, हिंदी), एल. टी., संगीत प्रभाकर। शोध- 'रामवृक्ष बेनीपुरी' 
संप्रति- अवकाश प्राप्त प्राचार्या।  संबद्ध- नारी सेवा संस्थान चिराग प्रतापगढ़।   
प्रकाशित पुस्तकें- काव्य संकलन: यादों के गीत, आशा, ग़ज़ल संकलन: तश्नगी, अरुणिमा की ग़ज़लें, मोहब्बतें, उपन्यास: मजबूर किनारे।  
संपर्क- ग्राम रूपापुर,   विकास भवन के पीछे,  पोस्ट सदर, जिला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश। 
चलभाष- ९३६९६९८६२१, ९८८९८५०५९८ 
*         
ग़ज़ल
वज़्न- २२१ २१२१ १२१२ २१२  

अपने वतन का नाम सजाया है चाँद पर
झंडा तिरंगा जाके लगाया है चाँद  पर।।

कर के नया मुकाम दिखाया है चाँद पर
करतब महान कर के बताया है चाँद पर।।

पद चिन्ह चंद्र भू पे बनाता चला गया
कितना हसीन जश्न मनाया है चाँद पर।।

जागा हुआ वो स्वप्न हकीकत में ढल गया 
प्रज्ञान यान जब कि  चलाया है चाँद  पर।।

सारे जहान में वो तहलका मचा कि बस
बरपा हुआ तूफान  उठाया है चाँद पर।।

इसरो ने कर दिया ये  सफल इक प्रयास यूँ
उत्सव खुशी से सबने मनाया है चाँद पर ।।

दुश्मन के चेहरे दुःख से उतरे  जब सुना
भारत ने चंद्र यान उतारा है  चाँद पर।।
***

* डॉ. अल्पना श्रीवास्तव

जन्म- २४ मई १९७२, भेड़ाघाट, जबलपुर मध्यप्रदेश।  
आत्मजा- स्व.कृष्णा सिन्हा - स्व.श्री मदन प्रसाद सिन्हा (राज्य स्तरीय सम्मान प्राप्त मूर्तिकार)।  
जीवन साथी- श्री अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव CEO इंफिनिटी हार्ट सेंटर।  
शिक्षा- एम.ए., एम.फिल.,पी-एच.डी. (हिंदी साहित्य)। 
संप्रति- शिक्षिका महर्षि विद्या मंदिर, रेडियो उद्घोषक।
संपर्क- ६२ ए  शिवाला, नर्मदा नगर, गौरीघाट, जबलपुर, मध्यप्रदेश।
चलभाष- ९६९१३२९९७० 
ई-मेल :dralpanashrivastava@gmail.com
*


 
कविता 

चंद्रमा अंतरिक्ष का, चमकता नक्षत्र है।
मानव के आकर्षण का,
केंद्र है।
हमारे सपने और कल्पनाएँ,
नित नवता से, जगमगाएँगे,
और हौसलों की साध का,
साथ पाकर,हम सब वहाँ,
घर बनाएँगे दुनिया बसाएँगे।
विज्ञान और वैज्ञानिकों के,
श्रम से चाँद पर कदम पड़े हैं हमारे।
यह प्रतीक है उन्नति का,
प्रेरणा है आदर्श है,
विकास की गति का।
हम आगे बढ़ रहे हैं,
नए-नए कीर्तिमान,
गढ़ रहे हैं।
जुझारु प्रवृत्ति साथ है,
अंतरिक्ष अनुसंधान सफ़ल होंगे।
साहसी वैज्ञानिक साथ हैं,
जय हो, विजय हो भारत की।
ऊर्जा अलख जलती रहे,
स्वर्ण-चिरैया पुनः चहके।
आशीष प्रकृति देती रहे।।
***

* अवधी हरि डॉ., लखनऊ उत्तर प्रदेश  

जन्म- १७-७-१९६५
आत्मज- स्व. विमल देवी - स्व। वीरेंद्र बहादुर श्रीवास्तव, पूर्व मुख्तार, हनुमान गढ़ी आऊओधया। 
जीवन साथी- श्रीमती अंजू श्रीवास्तव। 
शिक्षा- एम. कॉम., बी. एड., एम. ए. (उर्दू), पी-एच. डी.(उर्दू)।  
संप्रति- अध्यापन वाणिज्य कालीचरण इंटर कॉलेज, लखनऊ-२२६००३। 
प्रकाशित पुस्तकें- आध्यात्मिक २१, साहित्यिक ५।  
संपर्क-  सी ३३८ निराला नगर,लखनऊ २२६०२०।              
चलभाष-९४५०४८९७८९, ०७९८५३५०३२८। 
ई मेल- 
*
 

दोहे
**
चंद्रयान थ्री ने किया, स्वप्न सुखद साकार।
भारत को भी अन्ततः, मिला चाँद का प्यार।।

लगा तिरंगा चाँद पर, विस्मय में संसार।
विकसित भारत का प्रथम, चरण हो गया पार।

चंद्रयान की सफलता, देती यह पैग़ाम।
सतत परिश्रम का सदा, होता शुभ परिणाम।।

यूँ तो पाए चाँद का, और देश भी ज्ञान।
किंतु दक्षिणी ध्रुव वहाँ, बस भारत की शान।।

किया यान ने चाँद पर, अपना जहाँ क़याम।
गूँजेगा 'शिवशक्ति' अब, जग में उसका नाम।।

चंद्रयान के साथ जो, था 'रोवर प्रज्ञान'।
बढ़ा रहा अब चाँद पर,भारत का अभियान।।

भारत की यह सफलता, देती है विश्वास।
अंतरिक्ष विज्ञान का, होगा और विकास।
***

* अवधेश सक्सेना इं. , शिवपुरी  

जन्म- २९ जून १९५९ शिवपुरी मध्य प्रदेश। 
आत्मज- स्व. प्रेमदेवी सक्सेना- स्व. मुरारी लाल सक्सेना। 
जीवन साथी-  श्रीमती अर्चना सक्सेना, वरिष्ठ व्याख्याता अंग्रेजी। 
शिक्षा– डिप्लोमा सिविल (ऑनर्स), बी. ई., एम. ए. (समाज शास्त्र), विधि स्नातक, स्नातकोत्तर  डिप्लोमा ग्रामीण विकास। 
संप्रति- से. नि. अभियंता जल संसधान विभाग म. प्र. ।  
प्रकाशित कार्य- साहित्य की ३१ विधाओं में लेखन, ११ पुस्तकें, ३ ई पुस्तक। 
संपर्क– ६५ इंदिरा नगर, शिवपुरी म. प्र.। 
चलभाष- ९८२७८३ २९१०२
ई मेल- awadheshsaxena29@gmail.com 
*
चंद्रयान ३

सबके मामा चंद्र, धरा के काटें चक्कर।
खनिज भरे क्या, खोज, करेगा  इसरो अपना।
लैंडिंग थी आसान, सभी के मुंह घी शक्कर।
सफल रोवर प्रज्ञान, हुआ अब पूरा सपना।

अमरीका के साथ, चीन रशिया पहुंचे थे।
अब भारत का नाम, जुड़ा चौथे नंबर पर।
वैज्ञानिक भी खूब, खुशी से झूम उठे थे।
देखे सारा विश्व, चमक अपनी अंबर पर।

एल वी एम तीन, एम चार उड़ा रॉकिट।
लेंडर विक्रम प्रज्ञान, नाम का है जो रोवर।
फोटो भेजे खास, चांद पर दिखते पॉकिट ।
बड़ा देश का मान, मिशन भारत का ओवर।

कोई भी अवरोध, नहीं आया अब आड़े।
इसरो ने इस बार, चंद्र पर झंडे गाड़े।
(छंद: सॉनेट)  
***

अविनाश ब्यौहार

जन्मतिथि- २८ अक्टूबर १९६६, उमरियापान कटनी। 
आत्मज- श्रीमती मीरा ब्यौहार - स्व.श्री लक्ष्मण ब्यौहार।  
जीवन संगिनी- श्रीमती रचना ब्योहार। 
शिक्षा- बी.एस-सी., आशुलेखन अंग्रेजी।  
प्रकाशित कृति- हास्य कविता संग्रह: आंधी पीसे कुत्ते खाएँ, नवगीत संग्रह: कोयल करे मुनादी, पोखर ठोंके दावा, मौसम अंगार है।  
पता- ८६ रायल एस्टेट, कटंगी रोड, माढ़ोताल,जबलपुर,मप्र।
चलभाष- ९८२६७९५३७२ 
  
नवगीत - 
चंद्रयान है
*
भारत की ऊँची उड़ान है।
ये इसरो का चंद्रयान है।।

उठा रहा
रहस्य से पर्दा।
उड़ाता है
शत्रु की गर्दा।।

विश्वगुरु सच में महान है।

कितनी तो
कर डालीं खोजें।
नदिया मिली
न उसकी मौजें।।

चाँद पर न खेत-खलिहान है।

जासूस है
प्रज्ञान रोवर।
बना लिया है
चंदा को घर।।

मानो सच्चाई विज्ञान है।
***
  
अस्मिता शैली, जबलपुर 

जन्म- ११. अक्टूबर १९७७, जबलपुर। 
आत्मजा- श्रीमती हेमलता - स्मृतिशेष जवाहरलाल चौरसिया 'तरुण' प्रो. डॉ.।    
शिक्षा- एम.ए., एम.एड., डिप्लोमा इन इंटीरियर डेकोरेशन एंड होम क्राफ्ट, एक वर्षीय आर्ट एप्रिसिएशन (पेंटिंग) डिप्लोमा कोर्स, संगीतविद् , वाणी सर्टिफिकेट कोर्स आकाशवाणी, जबलपुर।
संप्रति- कलासाधिका, लेखिका, उद्यमी (स्वनिर्मित हस्त शिल्प सामग्री व्यवसाय)।  
संचालिका - कलाभिव्यक्ति : A Vibrant Gallery, हुनर वीथिका शॉप, जबलपुर, म.प्र.।
प्रकाशित पुस्तकें- सृजन के सोपान,एक कलात्मक/ रचनात्मक यात्रा (२००१ से २०२२)। 
संपर्क- 963/64 'नीराजन', जवाहरगंज, लॉर्डगंज थाने के पास,जबलपुर (म.प्र.)। 
चलभाष- ८३०५०९९७५५  
ई-मेल asmi.chourasia6@gmail.com
*

कविता - 
चंद्रविजय यशगान 
*
भारत की गौरवगाथा में,जुड़ गया पृष्ठ नव आज,
चंद्रारोहण में इसरो का गूँजा शंखनाद। 
शशि के दक्षिणी ध्रुव पर,उतारा हमने यान,
जहाँ न पहुँचा देश कोई, पहुँच गया रोवर प्रज्ञान,
सुधांशु की भूमि पर फहरा, बढ़ा तिरंगे का मान-सम्मान,
लैंडर विक्रम छेड़ चुका है, चंद्रमा पर विजय की तान,
देश का उन्नत माथ किया,
 करते हम उन वैज्ञानिकों का यशोगान,
उनके अथक परिश्रम पर 
हर भारतीय करता है नाज़,
भारत की गौरवगाथा में, जुड़ गया पृष्ठ नव आज, 
चंद्रारोहण में इसरो का गूंजा शंखनाद!!!
प्राचीन से अधुनातन भारत की, 
है विश्व में पृथक पहचान,
संस्कृति, इतिहास,कला, शिक्षा,
अग्रणी है हमारा विज्ञान,
सोम धरा पर विचरता प्रज्ञान,
प्रमाणित करता है ये बात,
भारत की गौरवगाथा में जुड़ गया पृष्ठ नव आज,
चंद्रारोहण में इसरो का गूँजा शंखनाद। 
बचपन में सुनते थे अक्सर, चंदा में रहती इक दादी,
बरसों से चरखा कातती,
ये कल्पना हमें गुदगुदाती,
सुदूर चाँद में हम खोजते,
दादी की वो आकृति,
धवल पृष्ठभूमि पर स्लेटी-सी वो नज़र आती,
बालमन की ये कल्पना, विज्ञान से एकदम परे है आज,
चंद्र मिट्टी का विश्लेषण, परीक्षण,
मिशन में हैं, ये अब नये काम-काज,
भारत की गौरवगाथा में जुड़ गया पृष्ठ नव आज,
चंद्रारोहण में इसरो का गूँजा शंखनाद। 

***
* आशा निर्मल जैन, सिहोरा, जिला जबलपुर, मध्यप्रदेश। 

जन्म- २४ सितम्बर १९५२, सागर मध्यप्रदेश 
आत्मजा- श्रीमती नत्थीबाई जैन - श्री पूरनचंद जैन। 
जीवन साथी - चौधरी निर्मल कुमार जैन, सेवानिवृत्त प्राचार्य। 
शिक्षा- बी.ए.। 
संप्रति- गृह स्वामिनी।  
संपर्क-चौपड़ा गली, झण्डा बाजार, सिहोरा, जिला जबलपुर, मध्यप्रदेश। 
चलभाष- ९७५४९ ७९८९९ 
ईमेल- 7846nkjain@gmail.com 
*


जय विज्ञान लगे नारा 

पड़े कदम है दक्षिण ध्रुव पर, किया सभी ने जयकारा। 
मिली उपलब्धि  भारत को नव, जय विज्ञान लगे नारा। । 

पन्द्रह दिन विक्रम लैंडिंग का, स्वप्न पूर्ण  यह हो पाया। 
सफल परीक्षण  बन प्रज्ञानी , रोवर साथी बन आया।। 
चन्द्रयान जब शुभ संध्या में, इसरो ने नवल उतारा। 
मिली उपलब्धि  भारत को नव, जय विज्ञान लगे नारा।। 

श्री हरिकोटा माह जुलाई, चौदह तिथि लांचिंग ठाना। 
रूस चीन अरु अमेरिका भी, जिसे चाहता था पाना।। 
वैज्ञानिक भारत के गौरव,, कार्य विलक्षण जग न्यारा। 
मिली उपलब्धि भारत को नव, जय विज्ञान लगे नारा।। 

सफल हुआ इसरो का सपना, सबने मिल मंगल गाया। 
चन्द्रयान पहुँचा मंजिल तक, मन सबके हर्ष समाया।। 
शुभ्र चन्द्रमा आनंदित है, आसमान भी झूमें सारा । 
मिली उपलब्धि भारत को नव, जय विज्ञान लगे नारा।। 

कर्तव्यों से जीत सदा ही, अटल इरादों दिन आया। 
हुई भारती प्रसन्न सुरम्य, क्षेम कुशल पग धर पाया।। 
अनुपम यह इतिहास रचा है, सकल विश्व‌ने स्वीकारा। 
मिली उपलब्धि भारत को नव, जय विज्ञान लगे नारा।। 

साज तिरंगा शौर्य अनोखा, करते सब जय- जयकारा। 
गर्वित धरणी कहती मानों, उन्नत मस्तक शुभ प्यारा।।
चन्द्रयान पहुँचा चंदा पर, देख चमत्कृत   जग सारा  । 
मिली उपलब्धि भारत को नव, जय विज्ञान लगे नारा।। 
***

- इंद्र बहादुर श्रीवास्तव, जबलपुर १४,०५.१९४७/९३२९६ ६४२७२ 

जन्म- १४ मई १९४७, ग्राम डेलहा, तहसील मैहर, जिला सतना। 
आत्मज- स्व. जानकी बाई - स्व. अवधेश प्रसाद श्रीवास्तव। 
शिक्षा- डिप्लोमा यांत्रिकी। 
संप्रति- से.नि. राजपत्रित अधिकारी व्हीकल फैक्ट्री, जबलपुर। 
प्रकाशित पुस्तकें- अल्फ़ाज़-ए-गजल, दोहा संग्रह: आया सूरज द्वार। 
संपर्क- स्वागतम चौक, जय प्रकाश नगर, अधारताल, जबलपुर । 
चलभाष- ९३२९६६४२७२ । 
***









***
 
* उदयभानु तिवारी 'मधुकर' इं., जबलपुर 

जन्म- १८ अगस्त १९४६, बरही, कटनी, म. प्र।
आत्मज- स्व. गिरिजा बाई - स्व। लखन लाल तिवारी। 
जीवन साथी- स्व.  वंदना तिवारी। 
शिक्षा- डिप्लोमा सिविल, डी.एच.एम.एस., आयुर्वेद रत्न। 
संप्रति- से.नि. उप अभियंता जल संसाधन विभाग म.प्र., होमिओपैथिक चिकित्सक। 
प्रकाशित पुस्तकें- गीता मानस, महारानी दुर्गावती, मधुकर के काव्य कुसुम। 
संपर्क- ५०१ दत्त एवेन्यू, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१। 
चलभाष- ८८२३८९६१९४ / ८८१८८१८६६६ //९४२४३ २३२९७  
ईमेल- dr.u.b.tiwari1946@gmail.com 
*
चंद्रमा की  की खोज

लगा विश्व है चंद्र खोज में, 
गति दे रहे उड़ानों को। 
सबसे पहले भारत पहुँचा, 
अपना ध्वज फहराने को।। 

चंद्रयान तीन को इसरो , 
सफल हुआ ले जाने में। 
उतर यान लग गया प्रथम, 
भारत का ध्वज फहराने में ।। 

रूस, अमेरिका, चीन देखते, 
ही रह गये अचंभे में। 
गर्वित भारत हुआ हमारा, 
मन रम गया तिरंगे में।। 

खोज रहा है यान अभी क्या , 
चंद्र लोक में जीवन है। 
वहाँ वजन हो जाता हल्का, 
और नहीं आक्सीजन है।। 

नदियाँ ,सागर, पर्वत, झीलें, 
जो जो वहाँ नजर आता। 
सबकी फोटो खींच रहा है, 
यान ये इसरो दर्शाता ।। 

अगर वहाँ जीवन है संभव
भारत नगर बसायेगा
 मधुकर जन गण मन अधिनायक
गान श्रवण में आयेगा। 


***

उमा जोशी, कुमायूँ ०९.०६.१९७३/९५३६३ १६२५६            कुमायूनी 

जन्म- ९  जून १९७३।  
आत्मजा- स्व.  चंन्द्रकला बिष्ट - स्व.  दया किशन बिष्ट। 
पति- श्री मुन्ना जोशी।  
शिक्षा- एम. ए. (समाजशास्त्र)। 
संप्रति- आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता।  
डाक पता- ग्राम बधांण, पो० आ०- चिलियानौला, रानीखेत, अल्मोड़ा २६३६४५।
वाट्स एप/चलभाष- ९५३६३१६२५६  
ईमेल- umaaajoshi73@gmail.com
*

विक्रम साराभाई ने इसरो की नीव रखी थी,
और इसरो का सफर अपनी पहली satellite आर्यभट्ट से लेकर हाल ही में हुआ सफल आदित्य L 1 तक रहा है.)

(NASA, European Space Agency, Russian Space Agency
इन संस्थानों के पास धन, ताकत, टेक्नोलॉजी, और सबल वैज्ञानको की भरमार थी,
और इन्हीं का स्पेस एक्सप्लोरेशन में दबदबा था)

(हमारे पास भर भर कर परेशानियां थी, 
जो भी देखता कुछ ना कुछ निंदा कर देता,
इसके बावजूद हमने अपना स्थान बनाया,
सूक्ष्म से शीर्ष तक का रास्ता तय किया)

(इसरो ने चंद्रयान 1 भेजा,
नवीनतम टेक्नोलॉजी से लेस,
और उसने चांद पर पानी खोज निकाला,
और देश ख्याति से भर गया)

(दूसरा चंद्रयान चांद पर उतरने को तैयार था, 
हम सभी लाइव देखने बैठे थे,
आशाएं लगाए, स्क्रीन पर आखें गढ़ाए,
स्वादिष्ट चाय पकोड़े लिए)

(उतर जाता अगर विक्रम, तो चांद के दक्षिण ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश होता हमारा, 
सबकी तारीफों का जवाब धन्यवाद से देते,
पर विघ्न हुआ, उत्पात मचा
और विक्रम लैंडर को गिरता देख कुछ ना कर सके बचाने को)

(देश भर में दुख की कोई सीमा न थी,
पर हमारे वैज्ञानिकों को यह हार मंजूर न थी,
फिर उठे ये बलवीर महान और जुट गए बुद्धि लगाने में अगले चंद्रयान मिशन के लिए)

(चंद्रयान 3 भेजने को हम तैयार थे,
रसिया ने भी चांद के दक्षिण ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने को,
अपना moon मिशन Luna तैयार कर लिया था,
पहले कौन पहुंच पाएगा इसकी उत्सुकता थी,
पर सोचा जो भी होगा देखा जाएगा)

दोनो ही मिशन अपने रास्ते चले,
और हम फिर फोन पकड़ अपडेट लेने बैठे,
Luna के रास्ते में परेशानी आई,
और वो चांद पर चढ़ाई न कर सका)

(अपना चंद्रयान 3 धीरे धीरे चांद पर पहुंचा,
और इस बार विक्रम लैंडर दूसरा था, बेहतर था,
इस बार आराम से लैंडिंग धरती पर, चांद के दक्षिण ध्रुव पर पहला कदम उसने रखा)
***

* उषा वर्मा  "वेदना", जयपुर  

जन्म-१२-३-१९४५ मुंबई। 
आत्मजा- स्व. श्रीमती वीणा देवी वर्मा-स्व. श्री इंद्रचंद जी वर्मा। 
जीवनसाथी- कनल सी. पी. वर्मा  (रिटायर्ड)। 
शिक्षा- कला स्नातक। 
संपर्क- ९५, नेमीसागर कॉलोनी, क्वींस रोड,
वैशाली नगर, जयपुर ३०२०२१ (राजस्थान)। 
चलभाष- ९९२८० ३०३७८ । 
Email : ushavarma12345@Gmai


*

चाँद हमारी बाहों में
*
चाँद आ गया  आज हमारी बाँहों में,
खौफ छा गया दुनिया की निगाहों में,
यह गरीब देश कैसे जा पहुँचा चाँद पर,
जो साधन संपन्न थे, हुए होड़ से बाहर। 

देने को तो दी हर देश ने हमको बधाई,
पर बात यह उनके समझ में जरा न आई,
होता जो कार्य सहमति से एकजुट होकर,
'मैं' से हटकर 'हम' की भावना को लेकर। 

हम भारतीय करते हर कार्य जोश से,
आलस्य, ईर्ष्या नहीं हमारे शब्दकोश में,
यही लगन और दिल से होता है जो काज,
उसी से हम पहुँचे दोस्तों! चाँद पर आज। 

दुनिया करती है अब हम पर नाज,
वैज्ञानिकों ने पहनाया भारत को ताज। 
अब्दुल कलाम का स्वप्न हुआ साकार,
बीस वर्षों से था इस क्षण का उन्हें इंतजार। 

चंद्रयान-३ ने यह कमाल कर दिखलाया,
चाँद के करीब अपनी धरती को वह लाया,
विक्रम ने किया कमाल, प्रज्ञान है चाँद पर, 
आदित्य भी लगाएगा तिलक, सूर्य के भाल पर। 

हो रहा गर्व, चाँद पर तिरंगा लहराया,
शान से कहो, चाँद को हमने ही पाया,
यह ऐतिहासिक क्षण कभी न भूल पाएँगे,
अब शुक्र, शनि पर भी विजय हम पाएँगे। 

दुनिया ने मानी आज भारत की ताकत,
जय हो, जय हो,  बधाई  हो भारत।। 
***  
- ओंकार साहू, दिल्ली १३.१२.१९७९/८८१७२ ४५८८० 
* ओमकार साहू 'मृदुल' डॉ., सूरजपुर, छत्तीसगढ़

जन्म- १३ दिसंबर १९७९। 
आत्मज- श्रीमती एम.डी. साहू - श्री पी. एल. साहू।
शिक्षा- बी.ई.एम.एस., बी.एस-सी, डी.एम.आर.टी.।  
सम्प्रति- रेडियोटेक्नोलॉजिस्ट, छंदज्ञ। 
प्रकाशित पुस्तक- काव्यपथ। 
संपर्क-सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रेमनगर ४९७३३३, जिला-सूरजपुर, छत्तीसगढ़। 
चलभाष- ८८१७२४५८८० 
Email-2oksahu@gmai.com
*
चंद्रयान ३ 

चंद्रयान का मिशन तीन जो, प्रक्षेपण अद्भुत पाया। 
प्रथम सफलता दक्षिण ध्रुव पर, जयी तिरंगा लहराया।। 

तिथि चौदह थी माह जुलाई, अंतरिक्ष में जब छोड़े ।
दिन अगस्त तेईस सुनहरा, इतिहासों में जब जोड़े ।।
प्रमुख वीरमुथुवेल  हटाए, असफलता के हर रोड़े। 
भारत चौथा देश बना अब, मिथक असक्षमता तोड़े।।
कमीं योग्यता नहीं देश में, सिद्ध किया जग दिखलाया। 
प्रथम सफलता दक्षिण ध्रुव पर, जयी तिरंगा लहराया।। 

लागत छः सौ करोड़ पंद्रह, लाख मात्र के खर्चे में।
लगभग चलचित्रों की कीमत, से आए जग चर्चे में।।
जीत चंद्रमा  सौर ग्रहों में, सूरज के घर जाना है।
तैयारी आदित्य-एल हो, इसरो ने यह ठाना है।।
भारत ने संभव कर डाला, विश्व देख गति चकराया।  
प्रथम सफलता दक्षिण ध्रुव पर, जयी तिरंगा लहराया।। 

सोमनाथ जी इसरो मुखिया, कृष्णन सह कालाहस्ती।
शुभ प्रज्ञान उतर पाया है, देखे विक्रम हर मस्ती।।
साक्ष्य बने हम सुखद क्षणों के, तिथि तेईस सुहानी थी।
भारतीय वैज्ञानिक दल में, विदुषी भी विज्ञानी थी।।
अतुल सफलता अंतरिक्ष पर, नाम भारती चमकाया। 
प्रथम सफलता दक्षिण ध्रुव पर, जयी तिरंगा लहराया।। 
***

* कनक लता जैन डॉ., गुवाहाटी, असम।

जन्म- ७ मार्च १९७७, राजस्थान। 
शिक्षा- स्नातक (अंग्रेजी माध्यम)। योग थेरेपी में दो साल का डिप्लोमा। 
प्रकाशित पुस्तकें- मुग्ध कामिनी पर्व त्यौहार। 
संपर्क- मकान क्र. ११, बाय लेन २, आठ गाँव, पुखरी पार ७८१००१ 
           जिला कामरूप मेट्रो, गुवाहाटी, असम। 
चलभाष- ८४७२९ २०७३०
ई मेल- kanaklatajain7@gmail.com
*

*चंद्रयान तीन *

शुभ शुक्रवार  दिन है आया ।
भारत ने परचम लहराया ।।
चरम शिखर पर बढ़ता भारत।
विश्व जगत मिल करता आरत।।

शुभ चंद्रयान तीन हमारा।
करता गौरव भारत सारा।।
चंद्रयान ने मान  बढ़ाया।
सकल विश्व में नाम कमाया ।।

बादल चीर बढ़ा जब आगे ।
जन -गण के मन गौरव जागे।।
दक्षिण ध्रुव पर यह उतरेगा।
छाया चित्र हमें भेजेगा।।

जल, रत्नों की खोज करेगा ।।
भारत अब इतिहास रचेगा ।।
रिपु! मत समझो भारत छोटा ।
इसरो स्थित है श्री हरिकोटा ।।

चंद्रयान ये फलित हुआ है ।
विक्रम लैंडर चांद छुआ है।
था संकल्प अटूट हमारा ।
गौरव गाथा गढ़ी दुबारा।।
***

* कनक लता तिवारी डॉ., मुंबई ०६.०६.१९५९/९०८२१ ६९५०४ 


जन्म- ६ जून १९५९ ।  
आत्मजा- स्वर्गीय कमला त्रिवेदी - स्वर्गीय वैकुण्ठ नाथ त्रिवेदी। 
जीवन साथी- श्री सुधीर तिवारी। 
शिक्षा-  एम. ए., पी-एच. डी.। 
सम्प्रति- सेवा निवृत्त। 
प्रकाशित पुस्तकें- हिंदी व अंग्रेजी भाषा में कहानी संग्रह व उपन्यास।
संपर्क-बालाजी गार्डन्स, ४०२ बिल्डिंग नं. २, सेक्ट ११  कॉपर खैरने,  नवी मुंबई ४००७०९ । 
चलभाष- ९०८२१६९५०४ 
ई मेल- Kanaklatatiwari@yahoo.co.in
*

बदल गया इतिहास 

चंद्र यान उतरा चंदा पर दिन था कितना खास 
उसी समय से इस दुनिया का बदल गया इतिहास

शुक्रवार दिन समय दोपहर शुरू हुआ अभियान 
दक्षिण ध्रुव पर उतरा पहला भारत का ये यान

इससे पहले चांद हमारा आसमान पर ही रहता 
बचपन से हर नन्हा उसको चंदा मामा कहता

ज्यों ज्यों उन्नत विज्ञान हुआ भारत का 
नयी खोज  तकनीक साथ हुआ भारत का

लगे सोचने सब विज्ञानी कैसे ग्रहों को जाने 
अखिर सूर्य और चांद कब तक होंगे अनजाने

2019 से जो उद्देश्य चला चंदा को जाना 
2023 में हमने प्राप्त किया जो चाहा पाना

अब तो आगे और बढ़ी है सोच हमारी 
चंद्र यान के बाद सूर्य यान की है बारी
***

* कमलेश शुक्ला, दमोह 

जन्म- ९  अगस्त १९६२, कटनी, मध्य प्रदेश। 
आत्मजा- स्व. आशा देवी पटेरिया - स्व. जमुना प्रसाद पटेरिया। 
जीवनसाथी- श्री शिवराम प्रसाद शुक्ला। 
शिक्षा- एम. एस-सी. (रसायन शास्त्र), बी. एड. ।   
संप्रति- से. नि. प्राचार्य हाई स्कूल।  
संपर्क- एम. आई. जी. १७१ आर्शीवाद भवन, विवेकानंद नगर, दमोह ४७०६६१ म. प्र।। 
चलभाष- ९८२६४ ८०५६४ ईमेल- kshukla9826@gmail.com 
*


जय इसरो 

कितना अधिक हम गर्व करें,
इसरो के वैज्ञानिकों पर,
चंद्रयान-३ की सफल लैंडिंग की खबरें,
पहुँच गए चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर।

२०१९ की असफलता से ना तनिक घबराए,
उद्यमशील कर्म पथ पर बढ़ता ही जाए,
कल होंगे सफल अवश्य नाकामयाबी गई गुजर,
इस विश्वास पर इसरो गया खरा उतर। 

२३ अगस्त २०१३ का  विशिष्ट अमर वह दिन,
प्रत्येक मिनट में लैंडर की चंद्रतल से दूरी गिन गि
कितना रोमांचित क्षण था विक्रम के उतरे पंजर,
हर नजर देख रही थी वो अप्रतिम अद्भुत मंजर।

जहाँ न पहुँचा राष्ट्र कोई ,भारत पहुँचा वहाँ शान से,
रोवर प्रज्ञान चंद्रतल पर घूम-घूम कर देख ध्यान से,
बतलाए हैं कई रहस्य है वहाँ ऑक्सीजन सल्फर, 
और कई  खनिजों के हैं भंडार प्रचुर।

विश्व देख रहा भारत की ऊँची उड़ान को,
बोलो जय भारत, जय विज्ञान, जय इसरो को।
***

किरन सिंह, हैदराबाद

जन्म--१५ जुलाई १९५८। 
आत्मजा- श्रीमती कली कुमारी - स्व० श्री लल्लू सिंह चौहान। 
जीवनसाथी-श्री ओम कुमार सिंह।  
शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी), बी. एड.। 
संप्रति- हिन्दी शिक्षिका (सेवा निवृत्त)। 
रुचि- लेखन-गीत, ग़ज़ल, छंद, मुक्त छंद आदि।  
संपर्क-२१०-धातु नगर, कंचनबाग, हैदराबाद  ५०००५८
चलभाष-९४४०५७०४०८
ईमेल- kiransingh15@gmail.com
*

मुक्तक-
चंदा मामा तुम हो प्यारे दुनिया में सबसे हो न्यारे।
अम्मा कहतीं दूर बड़े हो और प्यार हम पर हो वारे।
पापाजी की उम्र बढ़ाते माँ से करवाचौथ कराते -
देश हमारा पहुँचा तुम तक,अब तुम हारे-अब तुम हारे।
दोहे 
जय भारत जय भारती -

भारत माँ ने लिख दिया,अपना शुभ पैग़ाम।
चंद्रयान  लेकर गया , जिसे चंद्र  के धाम ॥

चंदा ने स्वागत किया,और बुलाया पास ।
प्यारे विक्रम बैठिए, आए हो किस आस ॥

मिली सफलता यान को,विश्व हुआ हैरान ।
भारतवासी  झूमते, बढ़ती 'इसरो'   शान ॥

विक्रम को मंज़िल मिली,हुआ देश का नाम ।
चाँद तिरंगा झूमता,काम नहीं ये आम ॥

विक्रम-दो ने किया था,सबको बड़ा उदास ।
तीन मिला जब चंद्र से , चारों ओर उजास ॥

चंद्रयान विक्रम तुम्हें, आया वो पल याद ।
जब तुम उतरे चाँद पर, भारत में आह्लाद ॥

वैज्ञानिक  सब  व्यस्त थे , बैठे  चिंता  मग्न ।
विश्व टकटकी पर तुम्हीं,स्वयं कर्म संलग्न ॥

भारत  का जो  स्वप्न था, सच वो  हुआ  तुरंत ।
पल-पल देखा था यही,ख़ुशियाँ मिली अनंत ॥
*** 

* किरण सिंह 'शिल्पी' शहडोल, मध्य प्रदेश, बघेली 
 


जन्म- १९ अगस्त १९६५, सीधी मध्य प्रदेश । 
आत्मजा- स्वर्गीय श्रीमती कमला सिंह चौहान - स्वर्गीय मधुसूदन सिंह चौहान। 
जीवन साथी- श्री शरणजीत सिंह बघेल जिला शहडोल मध्य- प्रदेश। 
शिक्षा- बी.ए.(स्नातक),  संगीत प्रभाकर।  
सम्प्रति- गृह स्वामिनी ,साहित्यकार, समाजसेवी,  अध्यक्ष बढ़ते कदम शहडोल इकाई।
प्रकाशित पुस्तक- पड़ी-गजल संग्रह एक किरण मुस्काई । 
विमोचन--- मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन भोपाल से
संपर्क- सरस्वती स्कूल के पास, पांडव नगर,  शहडोल, मध्य प्रदेश। 
चलभाष-  ८८२७२ ११०२३  
ई मेल- kiransingh.baghel19@gmail.com
*
जिताहुर भारत बघेली 

सन दुई हजार तेइस
मा चंद्रमा म  उतरा
तारीख रही तेइस 
अगस्त के महीना
त चंद्रयान विक्रम 
ओखर है नाम परिगा।
भारत के नाम कई गा 
सगली सदी विरासत
राखी ऊ धरती मइया
के नाम से है लइगा ।
दक्खिन दिसा का हेरिस
अऊ लच्छ साधि  डारिस 
चउआन जग रहा ई
आपन ऊ काम कइगा 
फहराय गा तिरंगा अब
चंद्रमा के ऊपर
माथे पे मुकुट भारत के
नाम अपने सजिगा।
अब चंद्रमा के  दुनिया
सब कोऊ  देखि लेइहीं
का का करत है मामा ।
जग का गियान होइगा 
इसरो के  सब गुनी जन
विज्ञान का बताइन 
आकास के पटल मा 
भारत के नाम  लिखिगा।
बुढ़िया जो तकली काटी
सब सूत हेरि  लाउब 
आपस म मिलि के बांटी 
गाना खुसी के गाउब 
बचपन के ई कहानी
अदभो  ई सत्त होइगा ।
चउआन -चकित
अदभो - अद्भुत
*
चंद्र यान है सपन सुनहरा
विक्रम लैंडर चाँद  पे उतरा
गगन ताकता रहा दूर से
पल  पल था आँखों  का पहरा
कोई कहे धरा की  राखी
ले विक्रम उड़ चला न बिखरा
भाई बना मयंक धरा का
शोभित उजला रूप है निखरा
भारत पहला देश बना है
जिसने  मिशन का बाँधा  सेहरा
 चाँद के दक्षिण के हिस्से पर
 भारत ने ही लिखा  ककहरा।
शिव - शक्ति का नाम दिया है
भला कहां फिर कोई खतरा। 
***

* कीरत सिंह यादव,  

जन्म- 
आत्मज- श्रीमती रामश्री यादव -श्री चंदन सिंह यादव। 
जीवन संगनी- श्रीमती संगीता यादव। 
संप्रति- शिक्षक, सचिव म. प्र. प्रबुद्ध साहित्य मंच लहार। 
प्रकाशित पुस्तक- संगीतौषा पूर्णिका संग्रह। 
विधा - पूर्णिका गीत मुक्तक आदि
संपर्क - 
चलभाष: ७५९७९२८१४७ 
*


चंद्रयान
        
चांद पर पहुंचा आज यह चंद्रयान हमारा है।
सारे जगत में देखो यह सुंदरतम नजारा है।

चंदा मामा दूर नहीं अब उनके पास खेलेंगे।
धरती मां के साथ नभ में चांद भी हमारा है।

सारे जग से पहले चांद पर पहुंचे हिन्दुस्तानी।
रूस अमेरिका जापान ताकता रहा विचारा है।

कड़ी मेहनत रंग लाई आज चंद्रयान चांद पर।
इसरो को सदा नमन शत् शत् वार हमारा है।

कामयाबी विश्व स्तर पर मिली हमें है कीरत।
सारे जहां में शान से ऊंचा मस्तक हमारा है।
***
* कृष्णकांत चतुर्वेदी (स्मृति शेष) * संस्कृत, पाली, प्राकृत, ब्रज, 

जन्म- १९ दिसंबर १९३७, जबलपुर मध्य प्रदेश।
आत्मज- स्व. । 
जीवनसंगिनी- डॉ. चंद्रा चतुर्वेदी। 
शिक्षा - 
संप्रति- पूर्व निदेशक कालिदास अकादमी मध्य प्रदेश, पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष संस्कृत-पाली-प्राकृत विभाग रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय जबलपुर
प्रकाशित कृति - अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, द्वैत वेदान्त तत्व समीक्षा, भारतीय परंपरा एवं अनुशीलन, आवेदान्त दर्शन की पीठिका, मध्य प्रदेश में बुद्ध दर्शन, क्रस्न-विलास, राधाभाव सूत्र, अनुवाक्, आगत का स्वागत तथा क्षण के साथ चलाचल। 
संपर्क-   
जबलपुर । 
चलभाष-   । 
* 

इसरो अष्टकम्
जयतु इसरोगाथा
(संस्कृत भाषा)
*
इसरो तु संस्था$स्माकं राष्ट्रस्य गौरवप्रदा।
अंतरिक्षविज्ञाने निरता शोधकर्मणि।

भारतसर्वकारेण स्थापनास्य कृता शुभा।
विक्रमसाराभाई वै प्रधानत्वे नियोजितः।

अन्तरिक्षविज्ञानतन्त्रभागे व्यवस्थितः।
बंगलूराख्यनगरे मुख्यकेन्द्रास्य वर्तते।

कृतं पूर्वाननेनैव बहवः कर्मसंग्रहाः।
आसन्सर्वे विकासाय मंगलायाभिवृद्धये।

 नैके यन्त्रविमानाश्च प्रक्षिप्ताः गगनाङ्गणे।
सूचनातन्त्रलाभायसम्पर्कविधिवृद्धये।

सर्वत्रोपयोगित्वादन्यदेशादयो$पि च ।
सर्वदा सविनयेन याचन्ते $स्मत्सहायताम्।६। 

योजना आर्यभट्टेति पूर्वमेव प्रवर्तिता।
आदित्य एलवनएकस्प्रेषितं तन्मण्डले।

 विज्ञः सोमनाथेति  विजयी प्रमुखो$धुना।
 जयतु जयतु  शश्वत् सुप्रतिष्ठां  भजस्व।

 इति इसरो अष्टकं सम्पूर्णम्
***

चंदजान जात्रा
(पाली भाषा) 
*
वंदनं पठमं बुद्धं दुतिअं धम्मसंम्पदं।
तितियं संघसंथानं नमो बुद्धस्स सासनं।

चंदजानं तु उड्डत्ति गअने तिब्ब गइना।
मेघंप्पि पिट्ठतो दिट्ठं अनुकअणं कत्तुं गइं।

झंझाबिट्ठिप्पहाएण मग्गं तस्स रुद्धिअं।
तथापिअणवरुद्धं तस्स जात्रा पवत्तते।

तस्मिंस्तु एकैअं आर्बिटरं रोवरं  लैंडरं
तितिअं चंदजानस्स् पक्खेपस्स काअणं किं।
चंदमंडलपूण्णस्स कइतोत्त्थि परिक्कमा।

पूब्बतोपि मंगलस्स पक्खेपस्स हि काअणं।
कक्खांं.कक्खांअतिक्कम्म निभ्भअं वज्जांग इव।५।

विग्गाणिऐ सावहिऐ जानस्स निम्मिती जाआ।
पतिभासामत्थजोएण  सिट्ठिर्णव सुसृज्जिआ।६।

जदा अंतिमा कक्खां जानं तत्तुंसमुद्दतं।
तदा भारतवर्सस्स जनाःसव्वे सुचिंतिआ।। 

अंतओ संकअंं निबुत्तं जानस्स जात्राप्पि पुण्णा।
अउना तिट्ठइ जानं चंदस्स कोअले अंगे।८।

चंद जान जात्रा अट्टकं संपुण्णं
***
महत्त्व
(प्राकृत भाषा)
*    

जयदु महाबीरोसुट्ठुजस्स पवत्ति 
जयदु णम्मदा पुण्णतोया णदीसु।
जयदु चंदमा लख्खभूओ णराणां.
जयदु भारदिज्जौ जिदं चंदमा जेण अज्ज।१।

ण्णादिजणसणिद्धद्थि।भवंदि णिराबाधं द।
जयदु उत्साह हेतुअ गव्वभूओ णराणां।२।

चंदमा मज्झगओ जानं देण लक्खिदा सा धआ।
अम्हाणम्पिअ साअस्सं आसीअ हइअम्बआ।

भारदस्स धुजं भब्बं तिलंगं थापिअं तआ।
जाणस्स पअचिंहाणं तद्द सम्मअ लक्खिदंः।

एकब्ब सुअ संथाणं गज्जिदं भूइ मंडए।
भारथेण जिदं सब्बं जैदु जैदु जैदु मुआ।४।

सब्बे वैग्गाणिआ तद्द आल्लाहेण विप्फूइआ।
अणंदरं दु  दुज्जणा मूईभूओ पितित्ठरे।

अम्हाणं नु जणा सच्चं उच्छाह रसमज्जिअं।
गाअंति नत्तंति सब्बे मंगअद्धुणि संजुदा।

अण्णे द्द्यु छ्रुदं सुक्खं अण्णदेइ घटाघटं।
लैण्डअं उड्डअं सुअं उद्दरद्छान्तछन्दणि।७।

आस्सा जाग्आ जाआ माणुसं तद्द गमिसस्सि।
 एखा विषइणी वात्ता सिद्धंम्पि भइस्ससि।

 इति प्राकृत अष्टकं सम्पूर्णम्।
***
यश अर्चन
(ब्रज भाषा)
भरी जयकार विश्व मंडल में भारत की बड़ौ जाने काम कियो कहा कह्यो जाय है,
सारे देश जग के जतन करि हार गये सीता के स्वयम्बर सी मची हाय हाय है।
चन्द्रमा की भूमि में गड़ी है दृष्टि लोभिन की चाहैं सबै भूमि बस हमे मिल जाय है,
तासें दौरि दौरि सब भाजि रहे वाही ओर चंद की कृपा ते बात मेरी बन जाय है।

जानें सभी सन्त वृन्द ब्रह्म चित्त सों है  जन्म, तातै  कान्त सुन्दर मनोज्ञ छबि धारे है,
जाय देखि  कविता में खूब तेज धार चढ़ी, उपमा के बन्ध खोजि खोजि यहाँ डारे हैं।
अंतरिक्ष ज्ञानी देखें जाय भिन्न भावन ते , ग्रह एक बड़्यौ चन्द शोध के सहारे हैं;
देव चन्द्र  बहुत पुराने  हैं हमारे मित्र, प्राणन के प्राण जैसे सबके दुलारे हैं।२।

चारि अर्थ, विक्रम, प्रचंड वेग शक्तिन कौ, बल तेज भारत कौ सहज  सुभाव है;
लक्ष भेदिबे की कला साहस प्रताप गुण, आदि महावीरन मे भरे बड़े भाव हैं।
निश्चय कियौ है  चन्द्र मंडल में जावेंगे, जानेंगे वंहा पै काकौ कैसै का प्रभाव है;
हमारौ शुभ गौरव तिरंगा ताहि आगे करि प्रकट करेंगे बाको शुद्ध अनुभाव है।
***
मित्र मेरे चन्द्र
(हिंदी भाषा)
*
मित्र मेरे चन्द्र! तुम हो दूर इतने,
बात भी तो हो नहीं सकती वहाँ से।
चाहता हूँ, भुजा भर मैं भेंट कर लूँ, 
किन्तु यह भी तो नहीं सम्भव यहाँ से।१।

हृदय गद् गद् प्राण उद्वेलित-प्रफुल्लित,
विगत सदियों की बड़ी घटना यही है।
विज्ञान विद्या पुंज, इनके सामने
विश्व बोना हुआ अब तो यह सही है।२।

खो गई थी विश्वव्यापी जो प्रतिष्ठा 
दीप्त, वह स्वर्णाक्षरों में भरत जन में।
सोमनाथी शक्ति जाग्रत राष्ट्र-वैभव
ध्वनित है ब्रह्मांड के उज्ज्वल गगन में ।३।

 कालिमा का अंश तुमको दिया विधि ने
 हो  रही चर्चा यही संसार में।
 किन्तु हमने प्रणति पूर्वक मान मय
 गौरव तिरंगा दिया प्रिय उपहार में।४।

 शर-धनुष श्रीराम वंंशी कृष्ण की
 बुद्ध शंकर वसन गैरिक पुण्यमय।
जो सभी था प्राप्त इस पावन धरा पर 
दिया सविनय प्रणय विह्वल नेह तन्मय।।५।।

कर रहे वन्दन सदा से हम सभी
शरद रजनी के सुकोमल ज्योतिधर!
पूर्ववतस्मरणकरना आत्म जन  का 
होम परस्पर अनवरत हम प्रीति निर्भर।।६।।
***

कालिदास ताम्रकार, जबलपुर १२.११.१९६०/९८२६७ ९५२३६ 

जन्म- १२ नवंबर १९६०, जबलपुर।
आत्मज- स्व.सरस्वती ताम्रकार - -स्व. सूरज प्रसाद ताम्रकार। 
संप्रति- से. नि. प्राचार्य, आई. आई. टी.।    
प्रकाशित पुस्तकें- काव्य संगह: प्यार की तरंग, उजाले की सैर, सूरज की कविता, तीसरी आँख। 
संपर्क- ४६१/४० अ एकता चौक, विजय नगर, जबलपुर म.प्र.। 
         - ८३३  कालिका भवन, शाही नाका, गढ़ा, जबलपुर म.प्र.।
चलभाष- ९८२६७ ९५२३६   
*


चन्द्रयान पर  तिरंगा

आज भारत ने चाँद पर तिरंगा फहराया
आसमां में वन्दे मातरम् का गीत गुंजाया।।

विश्व में आन-बयान-शान बनाई भारत ने
विज्ञान ने  कौशल सभी को दिखलाया।।

चाँद पर आज तिरंगा है मेरे भारत का
गर्व से सीना चौड़ा करके दिखलाया।।

अब कदम बढ़ते दिखेंगे सभी को भारत के
कोई भी मुल्क आँख अब दिखा न पाएगा ।।

धन्य है माटी के लाल वीर सपूत भारत के
जग में राम भोले माँ भारती के गीत गाएगा।।

हिन्दी को मान सम्मान मिलेगा जग में अब
काली की प्रेरणा दिन-रात तिरंगा लहराएगा।।
***

- किरण सिंह, हैदराबाद १५.०८.१९५८/९४४०५ ७०४०८ 
- किरण सिंह 'शिल्पी', शहडोल १८.०८.१९६५/८८२७२ ११०२३ 
- कीर्ति मेहता 'कोमल', इंदौर १९.१२.१९७५/९१०९३ ३३३३४ 


***

- कैलाश कौशल डॉ., जोधपुर 

जन्म- २८.०९.१९६०। 
आत्मजा- श्रीमती कृष्णा कौशल - श्री ब्रह्मानंद कौशल।  
जीवनसाथी-  श्री सुभाष शर्मा।  
शिक्षा  : एम ए, पी -एच. डी .
संप्रति- साहित्यकार, आलोचक, पूर्व अध्यक्ष,  हिन्दी विभाग, जयनारायण व्यास विश्व विद्यालय , जोधपुर। 
 प्रकाशित पुस्तकें-  प्रेमचन्द एवं प्रसाद के कहानी साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन, हिन्दी कथा साहित्य: समय के स्वर, नीलकंठी मैं  (हाइकु संग्रह_ 
संपर्क- 
चलभाष- ९९२८२ ९४३३३ । 
ई मेल- kailash.kaushaljnvu@gmail.com
*
कविता 
चंद्रयान 

दक्षिणी ध्रुव पर पहुँच गया है हमारा चंद्र यान 
यह है हर भारतवासी का अभिमान

हम सबकी उम्मीदों के लगाकर पंख
इसने खगोलीय ज्ञान का फूँक दिया है शंख

अपनी शीतल किरणों के मिस चाँद भेजता था संदेश 
कि आओ! उठो ऊपर और छू लो मेरा देश

अब रोवर प्रज्ञान कर रहा है परिक्रमा 
और बढ़ा रहा है पूरे राष्ट्र की गरिमा

इसरो के वैज्ञानिकों का है यह सफल उद्यम 
अपने दृढ़ संकल्पों से साधा है यह पराक्रम

नए पथ पर नया शोध है, नया बोध है
चंद्रयान तीन में अब न कोई अवरोध है 

चाँद की मिट्टी,  पानी और खनिज को जानेंगे हम
फहराएँगे नित्य प्रति अनुसंधान का परचम

वैज्ञानिकों की सतत साधना का यह सुखद परिणाम 
चाँद पर कदम के साथ भारत की साख बढ़े अविराम

गति नियंत्रण से हुआ चंद्रयान का सफल प्रक्षेपण 
अंतरिक्ष के रहस्यों का अब करें उन्मीलन

भारतीयों की भावना और स्वप्न हुए साकार
खुलें प्रगति के नए द्वार,  हर बार
***

- गीता चौबे 'गूँज', बेंगलुरु ११.१०.१९६७/८८८०९ ६५००६ 


***

- गीता शर्मा, कांकेर २४.१०.१९५२/७९७४० ३२७२२   


 

देख विश्व हैरान

वेग सुदर्शन-चक्र सा, पहुॅंचा यान महान।
विजय-तिरंगा चाॅंद में, देख विश्व हैरान।।

यान हमारा दक्षिण में, बढ़े देश की शान।
ऊॅंचा भारत-भाल हो, रहे विश्व में मान।।
  
लक्ष्य हमें है मिल गया, खुले चाॅंद के राज।
देश का सम्मान बढ़ा, शुभ होंगे सब काज।।

आज देश ने रच दिया, स्वर्णिम सा इतिहास।
हैरत में अब विश्व है, करते थे परिहास।।

कोटि-कोटि वंदन करें, सिद्ध होवे संकल्प।
चीन-रूस भी ढूँढते, मिलता नहीं विकल्प।।

चंद्रयान ने गढ़ दिये, कीर्तिमान सोपान।
नारी शक्ति साथ रही, करती है आव्हान।।
***

- गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल', कोटा १८-६-१९५५/७७२८८ २४८१७



जन्म- १८ जून १९५५, जयपुर।
आत्मज- स्व. कृष्णप्रिया जी - श्री बलभद्र शर्मा जी।
जीवन साथी- श्रीमती ब्रजप्रिया।
शिक्षा- एम.कॉम.।
संप्रति- से.नि. अनुभाग अधिकारी। 
प्रकाशित पुस्तकें- 
संपर्क- ‘सान्निध्य’ ८१७  महावीर नगर २, कोटा ३२४००५ (राजस्थान) ;
चलभाष- ७७२८८२४८१७ ।
ई मेल- aakulgkb@gmail.com
*



गीत : जय हो


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन जय हो।  

भारत हुआ गौरवान्वित इसके हर जन की जय हो।


कलियुग में संगठित हुआ जो विजय उसी ने पाई।  

लगन सफलता की कुंजी है असफलता नहिं भाई।

उतरा सकुशल चंद्रयान  फहराया वहाँ तिरंगा,

इसरो श्रेष्‍ठ सिद्ध हुआ ऐतिहासिक कीर्ति लिखाई।


विश्‍व चकित हो देख रहा था उस पल क्षण की जय हो।  

 

गीता, वेद, पुराण, उपनिषद् ग्रन्थ सिद्ध भारत में।

मंत्र शक्ति से साक्षी है ब्रह्मास्‍त्र बना भारत में।

शून्‍य दिया भारत ने वैदिकगणित सिद्ध भारत में।

उसी गणित से चंद्रारोहण सिद्ध हुआ भारत में।  

 

योग शान्ति के नायक की तकनीक चिरंतन जय हो।  

***


* चिदानन्द पाण्डेय "चिद्रूप", गाज़ीपुर, भोजपुरी




जन्म- ९ अप्रैल १९७७। 

आत्मज- श्रीमती धर्मवती पाण्डेय - श्री सूर्य नाथ पाण्डेय 'अकवि'। 

जीवनसाथी- श्रीमती किरण पाण्डेय। 

शिक्षा- स्नातक (कला संकाय)। 

संप्रति:- रिटायर्ड सैन्यकर्मी (भारतीय सेना)। लेखक (गद्य-पद्य), संशोधक 

संपर्क- गाज़ीपुर उत्तरप्रदेश २३२३२८ । 

चलभाष- ७५२५०९९३९९ 

चंद्रयान-3  भाषा- भोजपुरी 


अम्मा बचपन मे कहत रहली, कि चंदा हम्मर हैं मामा जी।

सोचत रहनी हम तब कईसे, घरे इनकर होई जाना जी।।


उहाँ सुनहरी बालन वाली, नानी बईठेंले चरखा लेकर।

लाड़ लड़ाई ऊ हमके, बहुते खेल खिलऊँना देकर।।


पर चंद्रयान-थ्री घुसपैठिया, सतह चाँद की छू बईठल।

पोल खुलल सारा उनकर, सुंदरता पर रहे जे ऐईठल।।


दिखल स्वेत मखमली मटिया, पर गढ़ई से भरल पड़ल।

बर्फीला टीला के बीच में नाही, लउके कउनो पेड़ बढ़ल।।


कलुषित मन होई ओकर, महबूबा जे इनके जनलस।

चाँद सी सूरत वाली कईसे, खुद इनकर बहीना बनलस।।


सहज सुलभ होई आवल- जाईल, घर अंगना एकसार भईल।

चाँद छूवे की कल्पना देख, अब केतना साकार भईल।।


प्रेमी प्यारे कमर के कस ल, रहे चाँद के जे तोड़े वाला।

न जाने कब लेई माँग प्रेमिका, साथे ऐकर गिन- गिन तारा।।


कविजन की उपमा हेराईल, प्रीत के गीत बदल जाई।

चन्द्रमुखी जब कहब तब, मेहरी लेकर बेलन दऊड़ाई।।


खैर चल ईहो अच्छा भईल, जो नींद से सबके जगा देलस।

भारत नईखे केहू से पीछे, ई दुनिया वालन के बता देलस।।


आज हमार धरती माई, चन्दा मामा के राखी भेजवईली।

दूर नईखे अब ऊहो दिनवा, जे मामा घर होइ अईली- गईली।।


विजयी विश्व तिरंगा सुघड़, अब चंदो पर भी लहराई।

एक साथ मिल एक स्वरन में, जन गण मन जग गाई।।

***


* चारु श्रोत्रिय, जावरा रतलाम, मालवी 

जन्म- ४ फरवरी १९६७।  
आत्मजा- श्रीमती प्रभा श्रोत्रिय - श्री सतीश श्रोत्रिय (साहित्यकार)।  
शिक्षा-  एम. ए. (हिन्दी, अर्थशास्त्र), बी. एड., एल-एल.बी. । 
अभिरुचि- नृत्य, नाटक,पेंटिंग, सामाजिक गतिविधियां। 
संप्रति- शिक्षिका। 
संपर्क- मुगलपुरा, जावरा, रतलाम (म.प्र.)।  
चलभाष- ९८२७३ ४२०६७
ई मेल -charushrotriya1@gmail.com
*
सारा जहां ती न्यारो 
मालवी रचना

यो इसरो भी कई कई करतब देखाड़े
भारत को परचम दुनिया में फ़ेहरावे
चाँद पर जावा रा सपना घणा देखता
माँ की लोरी में चंदा मामा रोज आवता
कन्हैया री जिद आगे यशोदा माता हारी, 
थाली में पाणी भरी चंदा मामा देखायो
इसरो वारा भी विक्रम 3 चाँद पर भेजायो
रात दन कई वे हमझ्या कोनी जुटीया 
करवा चाँद ती आमना सामना 
हगरा देश वासी साथ खड़ा था 
सफलता की  करता मंगल कामना
मायते मेलयों प्रज्ञान चाँद रा फोटू खिचवा, 
वठे रा समाचार जाणवा
सारा जहाँ ती न्यारो महारो भारत 
या वात चाँद पर ती प्रज्ञान वताड़े 
हगरा री या भावना।  
***

* चेतना अग्रवाल, अहमदाबाद २७.११.१९७१/९०३३० ५९०१४


***

चोवा राम वर्मा 'बादल', उड़ेला, भाटापारा छत्तीसगढ़ी




जन्म- २१ मई १९६१ । 
आत्मज- स्व०सोनकुँवर वर्मा - स्व० श्री देवसिंग वर्मा। 
शिक्षा-  एम. ए. (हिंदी साहित्य, अर्थशास्त्र, संस्कृत, अंग्रेजी)। 
संप्रति-  व्याख्याता (सेवानिवृत्त) । 
प्रकाशित पुस्तकें- कविता संग्रह: रौनिया जड़काला के, छंद बिरवा, कुण्डलिया किल्लोल, कहानी संग्रह: जुड़वा बेटी, बहुरिया,  महाकाव्य श्रीसीताराम चरित, बाल कविता: माटी के चुकिया।
संपर्क- उड़ेला, शिव नगर, पोस्ट-हथबंद ४९३११३, विकासखंड-सिमगा, जिला बलौदा बाजार, भाटापारा, छत्तीसगढ़।   
चलभाष- ९९२६१९५७४७ ई मेल- chowaramverma2@gmail.com
*
चंद्रयान भाँचा आगे
चंदा मामा घर घूमे बर, चंद्रयान भाँचा आगे।
बने- बने हँव खबर पठोइच, सुन इसरो झूमन लागे।

गली-गली ला घूम-घूम के, ठिहा ममा के पालिच वो।
चूम डेहरी माथ नवाइच, गीत मया के गालिच वो।
चंद्रयान के सुग्घर आदत, चंदा ला अब्बड़ भागे।
 चंदा मामा घर घूमे बर, चंद्रयान भाँचा आगे।

पूछिस चंदा बता ग भाँचा, दीदी धरती कइसे हे।
घर दुवार अउ तबियत वोकर, का सब पहिली जइसे हे ।
मया मोर बर करथे वोहा, धन भाई ले दुरिहागे।
चंदा मामा घर घूमे बर, चंद्रयान भाँचा आगे।

चंद्रयान हा बोलिस मामा, सुखी हवै  धरती दाई।
रोटी-पीठा भेजे हावै, झोला भर मुर्रा लाई।
खाके पपची अउ सोंहारी, मामा के पेट अघागे।
चंदा मामा घर घूमे बर, चंद्रयान भाँचा आगे।

चंदा मामा बोलिस भाँचा, एती वोती झन जाबे।
गहिरा अबडे गड्ढा हावैं, भसरँग ले भोसा जाबे।
कथरी कमरा ओढ़े सुतबे, झन रहिबे जादा जागे।
चंदा मामा घर घूमे बर, चंद्रयान भाँचा आगे।
***

*छगन लाल गर्ग, जीरावल सिरोही १३.०४.१९५४/७०७३८ २४९६९


*** 
* जयप्रकाश श्रीवास्तव, जबलपुर ०९.०५.१९५१/७८६९२ ९३९२५ 

***
ज्योति जैन, कोलकाता  /८१६७८ ८४४२७  

जन्म- २८.१.१९७४ बाली (हावड़ा) पश्चिम बंगाल। 
आत्मजा- श्रीमती मालती देवी जैन - श्री मानिकचंद जैन।  
जीवनसाथी - श्री अरुण कुमार जैन।  
शिक्षा - बी.ए.(C.U.)। 
 प्रकाशित कृति - महावीर दोहा चालीसा, मेरे मन के सारथी। 
संपर्क - ज्योति जैन,द्वारा चिराग वस्त्रालय, पुराना बाजार,जैन मंदिर के पास, कोलाघाट, पूर्व मेदिनीपुर ७२११३४ प.  बंगाल। 
चलभाष- ८१६७८८४४२७  
ईमेल. jyotijain 2223@gmail.com
*
नव्य एक इतिहास गढ़ा

चकित हुए सब और हमारा, दुनिया में सम्मान बढ़ा।
भारत पहुँचा चंद्रलोक में, नव्य एक इतिहास गढ़ा।

श्रम की होती जीत सदा ही, लगन सफलता पग चूमे,
इसरो का उत्थान देखकर, हर्षित सबका मन झूमे,
दक्षिण ध्रुव पर हम पहुंँचे हैं, मुंँह मांँगा वरदान मिला,
हमें प्रथम का मान मिला है, हमें प्रथम स्थान मिला।।। 

ग्रह नक्षत्र की गणना भी की, और शून्य को पहचाना,
दक्षिण ध्रुव का पथ दिखलाया, अब तक था जो अंजाना,
नवल भोर की स्वर्णिम किरणें, नव्य पंथ का मुस्काना,
हमने ही तो दिया विश्व को, इन ज्ञानों का ताना-बाना...  

सफ़र शून्य से शुरू किया था, आज शिखर पर पहुंँच गए,
उत्तम से अति उत्तम बनकर, हम विधु के घर पहुंँच गए,
दक्षिण ध्रुव की चित्र सूचना, घर लाने की तैयारी ,
दुनिया बैठी स्वागत करने, सभी हृदय से आभारी... 

धैर्य-हौसले के संगम से चंद्रयान को जीत मिली,
छप्पन अन्वेषक के हाथों गौरव रूपी रीत खिली,
धन्य हुआ विज्ञान हमारा विश्व समूचा नतमस्तक,
चंद्रयान सरताज हुआ है नवल कीर्ति को दे दस्तक... 

भारत चंद्रलोक में पहुँचा नव्य एक इतिहास गढ़ा।
***

- ज्वाला प्रसाद शांडिल्य 'दिव्य', हरिद्वार २६.०३.१९४३/९९२७६ १४६२?

***
तनुजा श्रीवास्तव, रायगढ़, छत्तीसगढ़ (छत्तीसगढ़ी )

जन्म- २३ अगस्त १९८६, रायगढ़ (छत्तीसगढ़)। 
आत्मजा- श्रीमती राधा देवांगन - श्री नरेंद्र देवांगन। 
जीवनसाथी- श्री असीम श्रीवास्तव। 
शिक्षा- समाज कार्य एवम् मनोविज्ञान में स्नाकोत्तर। 
संपर्क- ९ / २४०० केलो विहार कॉलोनी, रायगढ़ ४९६००१ । 
चलभाष- ९१०९६०५९६४ 
ईमेल- tanujaa.dewangan@gmail.com
*

बड़ सुघघर अभियान हावे
(छत्तीसगढ़ी कविता)

बड़ सुघघर अभियान हावे,
चंद्रयान तीन एकर नाम हावे।  
गाड़ा-गाड़ा बधाई हौ, इसरो टीम ला, 
बढ़ाइस देश के शान हावे।। 

हमर देश हा बनिस हे,
कहिथे विश्व गुरु। 
रिकॉर्ड बनाबो सूरज पे भी जाबो,
होगिस उल्टी गिनती शुरू।। 

दुनिया भर में बाज़त हे,
हमर वैज्ञानिक मन के डंका। 
दक्षिण चंदा में फहरा देहे,
भारत के तिरंगा झंडा।।  

मोर देश हा रेंगत हे, चंदा में,
रोवर अऊ प्रज्ञान के संग। 
उसने हमर नाम घलो दुनिया में घूमत हे ,
सब्बो झिन रंगे हावे हमरेच रंग।।

सुन संगवारी, इ मिशन हा चिन्हा हे,
नी हवे, निपट चंदा में घूमे बर। 
देखबे होही, विज्ञान और तकनीक म,
आघु, युवा पीढ़ी के कदम चूमे बर।। 

कतको बताहां, किसे समझाहां,
मोर रोम -रोम फुलगेहे। 
नवा लहर दौड़ गिस लइका मन मा,
अंतस मा, देश प्रेम सुलगेहे।। 

मेहां सब्बो झिन के सेती,
पां पड़थो अऊ करथो नमन। 
देश के खातिर सपनाइन अऊ, 
करके दिखायिन जोमन।। 

हमर देश के वैज्ञानिक मनके, 
किसे करों में गुणगान। 
अब्बड सधईया हावे ऐमन,
राष्ट्र के हावे गौरव अभिमान।। 
***
  
तृप्ति मिश्रा, हैदराबाद  

जन्म- ७ जुलाई १९७०, सागर, मध्य प्रदेश। 
आत्मजा- श्रीमती प्रेम बाई मिश्रा - श्री सूरज प्रसाद मिश्रा। 
जीवन साथी- श्री जयंत कुमार मिश्रा। 
शिक्षा- स्नातकोत्तर  (राजनीति विज्ञान, हिन्दी)। 
संप्रति- पूर्व शिक्षक। 
अभिरुचि- भ्रमण ,बाग़वानी,  पठन-पाठन ,लेखन। 
साहित्यिक उपलब्धि-  सह रचनाकार हिन्दी सॉनेट  सलिला ( हिन्दी सॉनेट का प्रथम साझा संकलन)। 
संपर्क- प्लॉट २२४, स्ट्रीट ११, धातु नगर, कंचन बाग, हैदराबाद ५०००५८ । 
फ़ोन- ९४९० ९३२७२४, ९४४१२४२४१२  
ई मेल- tripti.mishra999@gmail.com
*

कविता 

चंद्रयान की सफलता 

चन्द्रयान २ की असफलता से
जब वैज्ञानिक हुए उदास
हार ना मानी तब भी किसी ने 
मन में जगा नया विश्वास ।

मन में सबने  ठान लिया  
अब पूरा करना है काम
उसी के लिए सबको जीना है
उसी के लिए देना है जान।
 
वक्त पड़े तो भारतवासी
मिलकर हो जाते है एक
काम करें दृढ़निश्चय से 
जब बने इरादे नेक   ।

आसमान में उड़ना है 
और चाँद सितारे लाना है
ये सब बातें सपना थी तब
अब चाँद पर महल बनाना है ।

चन्द्रयान तो पहुँच गया  अब
दक्षिणी ध्रुव पर लेकर प्रज्ञान
भारत का  परचम लहराया 
विश्व को हो अब ये संज्ञान। 

सपनों को मिला सुंदर आकार
सब के सपने अब हुए साकार 
वैज्ञानिक हमारे हुए है सफल
देश की हुई  जय जयकार ।
***

* दिनेश चंद्र प्रसाद 'दीनेश',
कोलकाता, 

जन्म- ०५.११.१९५९/ 
शिक्षा- स्नातक,विद्यावाचस्पति,विद्या सागर (डी.लिट्.)।
आत्मज- श्रीमती बच्ची देवी - स्मृतिशेष स्व.जगदेव प्रसाद। 
लेखन विधा- कविता, लघुकथा, लघुकियॉं एवं चुभकियॉं, कहानी, लेख, आलेख, हाइकु इत्यादि।
रुचि- लेखन,भ्रमण,फोटोग्राफी, कविसम्मेलन एवं सामाजिक कार्य।
प्रकाशित कृति- काव्य संग्रह: अगर इजाजत हो, काव्य सुधा।
संपर्क- डी.सी.११९/४ स्ट्रीट न. ३१० ऊषांजली हाउसिंग कोआॉपरेटिव सोसायटी, न्यूटाऊन,कलकत्ता ७००१५६ (प.बं.)।
चलभाष- ९४३४७ ५८०९३
ईमेल-dcprasad1959@gmail.com
*

बाल गीत 
चंदामामा

चंदा मामा हो गया हमारा,
हम मामा के घर जायेंगे।

मॉं तो गई है राखी बाँधने,
हम मामा देखने  जायेंगे।

देखेंगे हम जाके वहॉं पर,
मामा के घर क्या-क्या है।

हमको सब वो बतलायेंगे,
अपना खनिज दिखलायेंगे।

पीने का पानी है कि पत्थर,
मॉं व मामा में क्या अंतर।

जगह-जगह का फोटो लेंगे,
सबको हम तो दिखलायेंगे।

खुश होंगे मामा से हिलमिल,
मामा खुश होंगे हमसे मिल।

मामा ठंड हैं ना कि वे गरम हैं,
कड़े है कि  बिलकुल नरम हैं।

बहुत कुछ जान लेंगे हम तो,
दुनिया लोहा मानेंगी अब तो।

देश चन्द्र विजय कहलायेगा,
भारत का गौरव बढ़ जायेगा।
***

- दिनेश दत्त शर्मा 'वत्स', 

* दिनेश दत्त शर्मा 'वत्स' इं., गाजियाबाद     

जन्म - १५ अगस्त १९३९ गाज़ियाबाद।  
आत्मज - स्व. विद्यावती शर्मा-स्व. जगत प्रकाश शर्मा । 
शिक्षा - विग्यान स्नातक, रासायनिक अभियंत्री स्नातक।
संप्रति - औद्योगिक परामर्शदाता , सर्वेक्षक और हानि निर्धारक बीमा निगम।
संपर्क - ५६ छत्ता मोहल्ला, देहली गेट, गाज़ियाबाद २०१००१ ।  
चलभाष - ९८९१५८७१००   ।   
*




चंद्र विजय प्रतिक्रिया
(बतर्ज वॉयसकोप) 

हिंद, सारा भाईयों का विक्रम तो देखिए। 
चातुर्वर्षीय व्रत का पारण भी देखिए।।

विज्ञान कौशल का प्रदर्शन तो देखिए।
चंद्रतल पर यान का अवतरण भी देखिए।।

विजय के क्षणों का आनंद तो देखिए।
सोमनाथ के गणों का नर्तन भी देखिए।

चंद्र तल पर इसरो का लोगो तो देखिए।
चंद्र-जय पर राष्ट्र का उन्नत सिर देखिए।

विदेशी विधर्मियों का रोदन तो देखिए। 
सनातन सभ्यता का, शोभन भी देखिए।।
*
क्या कहा?
बहुत सुंदर दीखती है,
पृथ्वी चंद्र तल से।
चंद्रमा भी तो बहुत सुंदर
दीखता है धरा तल से।
निकट जाकर देखते हैं
तो भरा मुख चेचकी विवरों से।
चंद्र तल पर पहुँच कर
मत भूलना तुम ,
है भरा मुख , इस धरा का
दैन्य दुर्बलता अभावों से।
मत भूलना हो प्रभावित ,
अल्प गुरुत्वाकर्षण जनित
चंद्र तल भारहीनता से।
इस धरा पर भार है
गगन की ऊँचाई में
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन जनित
प्रदूषित वायु से।
*
------------------------------------  
दुर्गा नागले 'पाखी', जबलपुर २९.०३.१९६८/९७७०४ ०६०१० 

शिक्षा- १२ वीं। 
जन्म- २९ मार्च १९६८। 
आत्मजा- श्रीमतीसोना बाई गुजरकर - श्री गिरधारी लाल गुजरकर। 
जीवन साथी- प्रकाश नागले। 
शिक्षा- १२ वीं। 
साहित्य गुरु- श्री अमरनाथ अग्रवाल जी, लखनऊ।  
रुचि- दोहा,छंद , कविता,हायकु, कहानी,लेख।
प्रकाशित कृतियाँ- दुर्गा सुमन (डिजिटल)।
संपर्क- 
चलभाष- ९७७०४०६०१०। 
*
 
गीत 
इसरो को है नमन हमारा ।
चमका है बन गगन सितारा।।
पूरा किया सभी का सपना ।
चंँद्रयान पहुँचाया अपना।।

पहले नंबर पर हम पहुँचे ।
ख्वाब हमारे  सारे ऊँचे ।।
हार नहीं मानें वैज्ञानिक।
काम किया सारा वैधानिक ।।

सीखा हमने आगे बढ़ना ।
गिरकर फिर पर्वत पर चढ़ना।।
हार कभी ना हमने मानी ।
पिला दिया है सबको पानी।।

चाँद धरा  लहराया झंडा।
दिखा दिया है सबको डंडा।।
दुनिया ने माना है हमको।
अब जाकर जाना है हमको।।
***

देवकांत मिश्र ;दिव्य', भागलपुर १२.१२.१९७५/८२९८७ २०२५४  

जन्म- १२.१२.१९७५, धवलपुरा, सुलतानगंज,भागलपुर।
आत्मज- श्रीमती नंदनी देवी - स्व. नागेश्वर मिश्र ।  
पत्नी का नाम - श्रीमती शांति देवी।   
शिक्षा- स्नातक (भूगोल प्रतिष्ठा) डी.पी.ई प्रशिक्षित। 
संप्रति- शिक्षक।  
रुचि- दोहा, कुंडलिया, सोरठा, घनाक्षरी, मुक्तक, सानेट तथा छंद आधारित गीत लिखना, गायन। 
संपर्क- मध्य विद्यालय धवलपुरा, पत्रालय- कैथा, थाना - बाथ, भाया- शंभूगंज, जिला - भागलपुर, बिहार, पिनकोड-८१३२११
चलभाष- ८२९८७२०२५४
ई मेल-  dkm8298720@gmail.com


द्विपदियाँ  
चंद्रयान है चाँद पर, हर्षित भारत देश।
वैज्ञानिक सब धन्य हैं, देख सुखद परिवेश।।

जय जय भारत देश में, जय जय है विज्ञान।
चंद्रयान अभियान से, बढ़ा जगत् में मान।।

नेह-निमंत्रण भेजकर, प्रमुदित आज मयंक।
जैसे लगता यान को, वरण किया निज अंक।।

प्रबल चाह से हो गया, सफल मिशन अभियान।
गूँज रहा है चाँद पर, रोवर का यशगान।।

सपनों के संसार में, रचा-बसा अरमान।
दृढ़ संकल्पित भाव से, चमक रहा विज्ञान।।

मन-अनुप्राणित कर्म ही, देता ज्ञान-वितान।
सोमनाथ की चाह ने, भेजा शशि-प्रज्ञान।।

अनुपम भारत देश है, अनुपम है विज्ञान।
चंद्र मिशन की कल्पना, सचमुच सुखद महान।।

मिशन चंद्र अभियान में, चिंतन है अभिराम।
गौरव गाथा से जुड़ी, नई सुहानी शाम।।
***


देवकी नंदन 'शांत', लखनऊ ०१.०३.१९४५/८८४०५ ४९२९६      

जन्म- १ मार्च १९०५, मऊरानीपुर, झाँसी, उत्तर प्रदेश। 
आत्मज- स्मृतिशेष भगवान चंद। 
शिक्षा-  बी.एस-सी.,बी. ई.  मेकेनिकल इंजीनियरिंग। 
काव्य गुरु- शायरे आजम जनाब कृष्ण बिहारी 'नूर'। 
प्रकाशित पुस्तकें- गजलें: तलाश जारी है (तीन भाग), नवगीत: नवता ( संग्रह), बुंदेली गीत:  हमाए पास का है । 
चलभाष- ८८४०५ ४९२९६
*
इसरो की चंद्र विजय 
मुक्तक 
१.
सूर्य कभी ठहरा नहीं सदा रहा गतिमान।  
इसका प्रबल प्रमाण है चंद्र विजय अभियान।। 
हतप्रभ सारा विश्व है देख ज्ञान-विज्ञान- 
सारी दुनिया में बढ़ा 'इसरो' का सम्मान।। 
२.
चंद्र की धरती पर पहुँचे भारतीय वैज्ञानिक दक्ष।  
रूस अमेरिका चीन या जापान नहीं किसी का पक्ष।।  
सिद्ध कर दिया है इसरो ने कर पूरा अभियान-
सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक अपने कोई नहीं समकक्ष।। 
***
* नरेन्द्र भूषण, लखनऊ 



जन्म- १ अक्टूबर १९५०, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। 
आत्मज- स्मृतिशेष लक्ष्मी देवी- स्मृतिशेष राम सुंदरलाल।  
जीवन साथी-  श्रीमती नीलिमा श्रीवास्तव।  
शिक्षा- एम. एस-सी.,एल-एल. बी.। 
प्रकाशित पुस्तकें- दोहा, ग़ज़ल, गीत, कविता संग्रह प्रकाशित।  
संप्रति- उ.प्र.पी.सी.एस. (वित्त) सेवानिवृत्त। अध्यक्ष, सुंदरम,साहित्य संस्थान लखनऊ।
संपर्क- सी-२/१८२ सेक्टर एफ,जानकीपुरम, लखनऊ २२६०२१ । 
व्हाट्सएप  - ९४१५१ ०४८२७ 9415104 827 
ईमेल : bhushan.narendra1950@gmail.com
*
हमारी शान है 'इसरो'
 
हमारा मान है 'इसरो' हमारी शान है 'इसरो'
हमारे देश की अब बन गई पहचान है 'इसरो'।

हुई थी सॉफ्ट लैंडिंग चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर,
बताया नाम नंबर तीन चंदर यान है 'इसरो'।

विफल तो रूस का 'लूना' भी आखिर में हुआ जाकर,
सभी देशों को यह दुख है प्रथम श्रीमान है 'इसरो'।

किया भारत का ऊँचा नाम पूरे विश्व ने देखा,
सभी हैं पूछते क्या था व क्या अब प्लान  है 'इसरो'?

हमारे देश के आकाश में सुंदर चमकता सा,
सितारा सा उगा होकर बहुत द्युतिमान है 'इसरो'।

सभी वैज्ञानिकों के  त्याग तप से हो सका संभव,
दिला सम्मान; सम्मानित हुआ वरदान है 'इसरो'।

जो हैं स्पेस साइंटिस्ट 'भूषण' का नमन उनको ,
उऋण हो जाँय तुमसे क्या बहुत आसान है 'इसरो'?
***
* नवनीता चौरसिया 'नवनीत', जावरा रतलाम २४.०९.१९७२/९४०६६ ३६१३१ 

जन्म- २४/०९/७२, जबलपुर (म.प्र.)। 
आत्मजा- श्रीमती हेमलता चौरसिया - स्व. जवाहरलाल चौरसिया 'तरुण' प्रो. डॉ.।  
जीवन साथी- श्री विनोद चौरसिया। 
शिक्षा- एम. ए. (समाजशास्त्र, इतिहास स्वर्ण पदक), बी. एड., एम. एड.। 
प्रकाशित पुस्तकें- काव्य संग्रह-  मन नवनीत।
संपर्क- द्वारा श्री विनोद चौरसिया, २७ गाँधी कॉलोनी, जावरा, रतलाम ४५६२२७ मध्य प्रदेश। 
चलभाष-९४०६६ ३६१३१
ईमेल- navneeta.chourasia@gmail.com

चंद्रयान अभियान: बधाई हिंदुस्तान

जब मिला ये शुभ समाचार इसरो ने दिया हमें उपहार 
देश पहुँचा विधु तल पर  चहुँ ओर है जय जयकार।

दो हजार तेईस जब आया अरु अगस्त तेईस मन भाया
चंद्रयान पहुँचा निशानाथ पर  हमने तिरंगा अपना लहराया।

जय जय जय हो विज्ञान जय जय हो भारतीय ज्ञान
विक्रम संग पहुंचा चंद्र पर हमारा विकसित प्रज्ञान।

था अज्ञात चंद्र भाग वाम बड़ा दुर्गम था यह धाम
सब देखते ही रह गए हमने खोजा नवीन आयाम।

अंतरिक्ष में हमारी ऊँची उड़ान सफल हुआ वृहद अभियान
गर्व है हमें अपने आप पर  अब नवीन है हमारी पहचान।

देश को यह सम्मान मिला  हर भारतीय का मन खिला
हिंदुस्तान है सपेरों का देश  बोलने वालों का मुँह सिला।

तिरंगा अपना जब फहराया  भारत का जन मन है हर्षाया
हम अब विश्व गुरु बन रहे हैं  संदेश यह विश्व में पहुँचाया।

देश में आया अमृत काल गर्व से उन्नत हुआ हर भाल
हम हैं भारत के नागरिक सोच सोच हो रहे निहाल।
*** 

नारायण श्रीवास्तव, करेली, नरसिंहपुर।  ०१.०८.१९५१ 

जन्म- ०१ अगस्त  १९५२,  कनवास, नरसिंहपुर (म.प्र.)
आत्मज- स्व. हरी बाई - स्व. दशरथ प्रसाद श्रीवास्तव।
शिक्षा - एम.ए. अर्थशास्त्र। 
संप्रति - से. नि. उप मंडल अधिकारी भारत संचार निगम लिमिटेड।
प्रकाशित कृतियाँ- जिज्ञासा शेष नहीं, कविताएँ तुम्हारी जरूरत है, सब कुछ है कविता, कविता की सरलतम इबारत, कविता की चार पंक्तियों से। 
संपर्क - २२२, 'सृजन' साकेत नगर, करेली, नरसिंहपुर मध्य प्रदेश 
चलभाष - ९४२५८ १५९३३ । 
*

भारत महान

सोलह कलाओं को
छोड़कर पीछे
वह चंद्र यान तीसरा
बैठ गया शशि के
दक्षिणी भाग पर
लहराता तिरंगा लेकर
सूरज के आते ही। 
उसके कान सुनते हैं
भारत की सांकेतिक भाषा,
वह देखता है
भारत की चमकती ऑंखों से
चन्द्रमा के आर-पार। 
करता है स्पर्श
भारत की ॲंगुलियों से
हौले-हौले चलकर सजग 
शिव शक्ति स्थल से,
सभी दिशाओं को
ताकता है तत्पर,
वाकई भारत की
टकटकी लगाए
कोटि कोटि नेत्रों की
उत्साही भावनाओं से। 
हमारा अभिमान
नूतन अभियान
कल्पनाऍं करता
साकार लगातार। 
सफल तीसरा चन्द्रयान 
भारत महान सदा गतिमान.
***

चंदा मामा की राखी




चल पड़ी है धरती माँ
चंद्रयान के रुप में 
मनाने को इस वर्ष की राखी
साथ अपने भाई के 
माँ धरती है पहुंची 
नगरी चंदा मामा के
बाँध रही है धरती माँ
राखी अपने भाई चाँद को
लहराया तिरंगा भारत का 
चन्द्रमा की सतह पर 
भारत का यह गौरव क्षण
देख रहा है विश्व सारा 
और चंद्रयान के
 इस सफल सफर पर 
नाज कर रहा हिंदुस्तान हमारा
जुड़ गया एक नया पन्ना
हमारे इतिहास के किताबों में
जिसमें पढ़ेंगे और सुनेंगे हम 
तीसरे चंद्रयान की गाथा को
सफलता मिली है भारत को
और पल है यह जश्न मनाने का
जय हो हमारे भारत का
जय हो हमारे तिरंगे का।



* निधि कुमारी सिंह, उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल

आत्मजा- इंदु सिंह - जलंधर सिंह। 
जन्म- १ जनवरी १९९९, पचहत्तर गांव (सिवान जिला, बिहार)। 
संप्रति :  एम. ए. (हिंदी )।  
पता : पाठागर रोड बाई लेन पनिहाटी सोदपुर,  
उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल, कोलकाता ७००११४ । 
ईमेल आईडी : ns510334@gmail.Com
*
चंदा मामा की राखी

चल पड़ी है धरती माँ
चंद्रयान के रूप में 
मनाने को इस वर्ष की राखी
साथ अपने भाई के 
माँ धरती है पहुंची 
नगरी चंदा मामा के
बाँध रही है धरती माँ
राखी अपने भाई चाँद को
लहराया तिरंगा भारत का 
चन्द्रमा की सतह पर 
भारत का यह गौरव क्षण
देख रहा है विश्व सारा 
और चंद्रयान के
 इस सफल सफर पर 
नाज कर रहा हिंदुस्तान हमारा
जुड़ गया एक नया पन्ना
हमारे इतिहास के किताबों में
जिसमें पढ़ेंगे और सुनेंगे हम 
तीसरे चंद्रयान की गाथा को
सफलता मिली है भारत को
और पल है यह जश्न मनाने का
जय हो हमारे भारत का
जय हो हमारे तिरंगे का।
***

निर्मला कर्ण, राँची  

जन्मतिथि-  ४ मार्च १९६०, दरभंगा,बिहार।  
आत्मजा-   स्व. गीता देवी - स्व. काशी बल्लभ दत्त।
जीवन साथी- जीतेंद्र कुमार कर्ण।   
शिक्षा- एम.ए. । 
संप्रति- सेवा निवृत्त बाल विकास परियोजना पदाधिकारी झारखंड। 
प्रकाशित पुस्तकें- कथा एक मासूम की, निर्मला की रचनाएँ, दुःख का क्रेता, बित्ता भाई, उसका दोष क्या था?
संयोजन एवम संपादन- अग्नि कुण्ड, अग्नि शिखा।
संपर्क- द्वारा निशांत आलोक, डी १२ ब्राउन स्टोन अपार्टमेंट, लोयोला कॉलेज बैक गेट, महालिंगपुरम् मेन रोड, नुरुगम्बक्कम्, चेन्नई ६०००३४ ।  
चलभाष ९४३१७ ८५८६०। 
*   
सूर्य पर जाने की तैयारी है

नासा है आश्चर्यचकित, रूस भी हो रहा भ्रमित,
जहाँ न कोई जा सका रूस और अमेरिका सहित,
उस दक्षिण ध्रुव की सीमा पर पहुँचा चंद्रयान तीन,
आगे है वह देश बजाता था जो नागों को देख बीन।

तुमने ज्ञान-विज्ञान की संपत्ति को लूट लिया,
वेद-पुराण-उपनिषद को भी था हमने समेट लिया,
सबको आपस में लड़वाने की कर दी थी तैयारी,
समृद्ध इतिहास गौरव मिटाकर मनोशक्ति तोड़ दिया।

 जिस अंग्रेजी सल्तनत में सूर्यास्त नहीं होती थी,
 उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम जिसकी सत्ता चलती थी,
 उसने भारत का ज्ञान छीनकर अँधियारा फैलाया था,
 भ्रामक शिक्षा तंत्र चला हमारी ज्ञान ज्योति क्षरण किया था।

 वह भी भ्रमित चकित हो बैठा भारत के विज्ञान पर,
 उठाकर गर्व से उन्नत सिर भारत देख रहा आसमान पर,
 चाँद का दक्षिणी ध्रुव जो अब तक दुर्भेद्य रहा है,
वहीं तिरंगा लहराया भारत ने ले जाकर चंद्रयान पर।

इसरो ने सम्मान बढ़ाया चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर जाकर,
वहाँ की मिट्टी पानी मौसम जाँचेंगे थोड़े समय बिता कर,
विक्रम और प्रज्ञान वहाँ की तस्वीरें हमको भेजा करेंगे,
 इसरो फिर प्रतिमान नया गढ़ देंगे जिसकी जाँचकर।

देश हमारा बढ़ता जाए इसमें शान हमारी है,
रुकें नहीं थके नहीं नए प्रतिमान गढ़ने की अब तैयारी है,
विश्व गुरु बनना ही है अब एकल लक्ष्य हमारा,
चाँद मंगल को जीता अब सूर्य पर जाने की तैयारी है ।
***


- नीता नय्यर 'निष्ठा', रानीपुर हरिद्वार  ३०.०१.१९५७/९८९७२ ०६५४५  अंग्रेजी 

***

* नीता शेखर 'विषिका', राँची, झारखंड ९५०७५ ५४५६८

जन्म- 
आत्मजा- 
शिक्षा- स्नातकोत्तर भौतिकी। 
जीवन साथी- अखौरी इन्दु शेखर। 
 संप्रति- 
प्रकाशित पुस्तकें- 
संपर्क- १०१  शरजनी अपार्टमेंट, टी. वी. टॉवर के सामने,  रातू मार्ग, राँची ८३४००१ झारखंड।  
वाट्स ऐप- 
ई मेल- 
*

कथा चंद्रयान
****
चंदा मामा की धरती पर पहुँचा चंद्रयान
सफल हुआ इसरो का यह चंद्र अभियान
शान से अब बच्चों को हम तो सुनाएँगे
भारत ज्ञान विज्ञान की जय-जय गाएँगे।

आन बान शान बढ़ा जग में अपना मान
पूरा विश्व को हुआ हम पर  तो अभिमान
इसरो के वैज्ञानिकों ने पाई नव पहचान
भारत देश को मिला फिर से नया सम्मान।

बचपन में चंदा को मामा कह बुलाते थे
दूर बहुत चंदा का घर यह भी बतलाते थे
पहुँच चाँद धरा पर प्रज्ञान ले नया सवेरा
मामा की धरती पर मिला प्यार से हमे डेरा।

भारत के विज्ञों ने  किया नव अनुसंधान
बन गया विश्व गुरु भारत का अब विज्ञान 
सूर्य की धरती पर अब तो कदम रखना 
इसरो का यान पहुँचे अब आदित्य अँगना।
***

- नीलम कुलश्रेष्ठ, गुना ०३.०८.१९७१/  

जन्म- ०३ अगस्त १९७१, हाथरस, उ. प्र.।
आत्मजा- श्रीमती मंजू रानी कुलश्रेष्ठ - स्व. श्री हरी मोहन कुलश्रेष्ठ।  
जीवन साथी- श्री मधुर कुलश्रेष्ठ।  
शिक्षा - एम. ए. (संस्कृत व अंग्रेज़ी), बी.एड.।
प्रकाशित पुस्तकें- गीत संग्रह: बालगीत सोपान, माँ के आँचल में, मुक्तक-मंजूषा: भोर सुहानी जाग उठी जब।
संपर्क - द्वारा- श्री मधुर कुलश्रेष्ठ, नीड़, गली नंबर , आदर्श , गुना ४७३००१ मध्य प्रदेश।
चलभाष- ९४०७२ २८३१४ , ईमेल पता - kulsneelam@gmail.com
*

सॉनेट 

बहे चाँद पर उल्टी गंगा,
यदि जा पहुँचे मनुज चाँद पर।
दिखें ताकते चंद्र-माँद पर,
धरती माँ से लेकर पंगा।

चंदा पर जो करते दंगा,
बँधे रहें ज्यों ढोर नाद पर
"लेरो" स्थापित अगर चाँद पर
वैज्ञानिक-अन्वेषण चंगा।

धरा-यान धरती पर आएँ,
भारत से रिश्ता चंदा का
"माँ-मामा का" पुन: दिखेगा।

शादी में शामिल हो जाएँ,
पूजन भी होगा नंदा का
भात नेग में नाम लिखेगा।।

पाद-टिप्पणी - लेरो LERO (Lunar Earth Research Organisation)
***

- नूतन गर्ग, दिल्ली ०३.१०.१९६८/८७००६ ९४५३५ 

* नूतन गर्ग

जन्म- 
आत्मजाश्रीमती कौशल रानी - श्री विद्यासागर आर्य। 
जीवन साथी- श्री मुदित गर्ग। 
शिक्षा- एम. ए. (अर्थशास्त्र), ‌बी. एड.। 
विधा- लघुकथा, कविता, गीत, मुक्तक, दोहा, हाइकु, कहानी, संस्मरण।
प्रकाशित पुस्तक- लघुकथा संग्रह: अध्यवसाय । 
संपर्क- ई ७०८ नरवाना अपार्टमेंट, ८९आई०पी०एक्सटैंशन, देहली ११००९२ ।  
मोबाइल/व्हाट्सएप-  ८७००६९४५३   
ई-मेल: ngarg.mvp@gmail.com
अविस्मरणीय पल

अब समय मुट्ठी बंद करने का है,
अब समय अपने पर गर्व करने का है,
अब समय चंदा मामा को नज़दीक से देखने का है,
अब समय बिगुल बजाने का है।

देखो कितना मनोहर दृश्य है,
चंद्रपथ पर चल पड़ा है मानव,
हर पल को सँजोकर चल पड़ा है मानव,
सफल भारत से गुंजायमान है पृथ्वी।

यह समय भारत के लिए युनीक है,
यह समय सफल भारत की पहचान का है,
नित-प्रतिदिन आगे बढ़ते कदम,
न कभी रुकते, न कभी थमते।

युगों-युगों तक भारत की पहचान रहेगी,
सफलता जिसके हरदम कदम चूमेगी,
वैज्ञानिकों सा न कोई समझदार यहाँ,
जिन्होंने चंद्रयान की सफलता का दायित्व है निभाया।

सोच ऊपर रखो, कर्म बलवान करो,
न हो निराश कभी, आशा का हो संचार,
द्रणता से बढ़ते कदम, चल पड़ते निडर हो,
अपने मन के गृह को समेटते हुए हमेशा अग्रसर रहो।

चंद्रयान की सफलता देती बल हमें,
जो था दूर बहुत, पाने की थी अभिलाषा,
आज़ बनी विश्वगाथा,न कोई दूर न कोई पास, 
आज़ हिम्मत की है पढ़ी परिभाषा।
जय हिन्द जय भारत 
***

नेहा हेम्ब्रम, गोड्डा झारखंड, संथाली 

जन्म - ७ अक्टूबर २००५।  
आत्मजा- संझली मुर्मू - स्व. गोपाल हेम्ब्रम।  
शिक्षा - बी. ए (संताली)। 
संप्रति-  गायिका, डिजिटल क्रिएटर। 
संपर्क- आतु- डोका बाँध, गोड्डा, झारखण्ड। 
चलभाष - ७६४५८२९४४४ ।  
*
चंद्रयान 3 नावा उपरूम 

चंद्रयान रेन टीम कु
हहरावनाक कु कमी केदा
जुग-जुग लगीक 
दिसोम  नुतूम कु लाहा केदा

अंतरिक्ष रे गुंजावेना 
चंद्रयान 3 रेयाक कथा ईदी काते
चाँद रे पहरायेना तिरंगा झंडा 
नवा पहचान बेनाव काते 

आबू भारत दिसोम रेन 
वैज्ञानिक कु हुदिस लेदा 
आबुवाक भारत दिसोम 
कु लाहा केदा 

अडी गर्व तेन मेनेदा
तिनक झल बुन हुदिस लेदा 
उनक झल बुन तियक केदा 

चाँद रे ओड़ाक बुन  बेनावा
जोतो पोरोब हसी ख़ुशी बुन मनावा
इसरो ओकोय एमा दीना
कभी बन हिरीना 

२०२३ चौदह जुलाई
चंद्रयान ३ कु बुझव-सुझव केत
डंडा कु केटेच केत 
चन्द्रमा दक्षिणी ध्रुव ते कु कुलकेत 

केटेच मोने थोड़ा बोतोर
जोतो होड़ाक विश्वास ताहेकान  
चाँद रे हुयेन सॉफ्ट लैंडिंग 
जोतो कु मेन केत जितवनाय हिंदुस्तान
***

* पलाडुगु करुणाकर बाबू इं., हैदराबाद, तेलगू 
जन्म- १९ फरवरी १९७० । 
आत्मज- पी.निर्मला - पी.पुरुषोत्तम। 
जीवन साथी - पी.भावना। 
संप्रति- सिविल इंजीनियर। 
संपर्क- फ्लैट क्र। २८०६, ब्लॉक २, माय होम अवतार, नरसिंगी, राजेन्द्र नगर रेवेन्यू मण्डल, हैदराबाद, जिला रंगा रेड्डी ५०००७५ तेलंगाना। 
व्हाट्सएप- ९४९०७९६००९ 
ईमेल- karun1970@gmail.com
*

कविता तेलगू

१.
चँद्रुनि मील झंडा एगुर वेयटं भारत कु गर्व कारणम्.
मुदुंगा दक्षिण द्रुवान्नि चेरूकुन्नारू.
ई रोजु त्रिवर्ण पताकान्नि चूचि अंदरू कीर्तिचालचिंदे.
चंद्र कक्षलो तिरूगुतुन्नाडु माकु गर्वंगा वुंदि.
२.
चंद्रुनि की पद्नालुगु पगलू,
पद्नालुगु रात्रुलु उन्नई .ऐडु
शतकालु मरियू  एनिमिदि  गंटलू वुन्नाई.
प्रकृति लो चँद्रुडु भिन्नंगा वुंटाडु .
चँद्रुडु तन चुट्टू ननु तिरूगुताडु माकु गर्वंगा वुंदि.
३.
इसरो कू दन्यवादालु.इदि
अत्थुत्रमंगा पवि चेस्तुंदि.
मिषन् आदित्या कोत्तदि इदि लोहालू ,सिलिकान्
गुरिंची परिशोदन् चेस्तुंदि.
चंद्र तन कक्षालो
तिरुगुतिंदि.इति मनकु गर्वकारणम्.
४.
सोमनाथ इसरो की मुख्यडु.
वारि परिशोदन्, प्रचारम्,विजयवंत 
अइनदि.वारिकि दन्यवादालु.
चंँद्रयान तन कक्षलो तनु तिरूगुतुन्नाडु.
इदि मनकु गर्व कारणमु.
*
हिंदी काव्यनुवाद -
१.  
स्वर्ण अक्षरों में लिखा, तेइस दिवस अगस्त।
इसरो का अभियान था, हुआ सफल वह मस्त।।
दो हज़ार सन आठ में, भेजा पहला यान।
शशि कक्षा में घूमता, हमको है अभिमान।।
२.
उसने घोषित था किया, दिखा चंद्र पर नीर।
सही निशाने पर लगा, भारत का यह तीर।।
घूम-घूम कर आज भी, देता है वह ज्ञान ।
शशि कक्षा में घूमता, हमको है अभिमान।।
३.
चंद्र यान दो भेजकर, भारत सीखे  सीख।
छोटी सी ही चूक थी, खोज सुधारी मीख।।
इसरो का संकल्प था, पुनः लिया संज्ञान।
शशि कक्षा में घूमता, हमको है अभिमान।।
४.
चंद्र यान ये तीन ने, सपन किया साकार।
चांँद सतह पर वह चले, सफल किया व्यवहार।।
इसरो का संकल्प था, तीजा यह अभियान।
शशि कक्षा में घूमता, हमको है अभिमान।।
***

पाण्डे चिदानंद 'चिद्रूप', वाराणसी, ०९.०४.१९७७/७५२५० ९९३९९ भोजपुरी 



***

पुष्पा जमुआर डॉ., पटना  

जन्म- ५ जनवरी १९५६, कदमकुंआ, पटना (बिहार)। 
आत्मजा- स्व. दयमंती देवी - स्व. अवध किशोर प्रसाद। 
जीवन साथी- श्री शम्भु कुमार सिन्हा।
शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी ) मगध विश्वविद्यालय, बोधगया। 
संप्रति- लोक भाषा मंत्री, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना।
प्रकाशित कृतियाँ- और नदी बह चली (काव्य संग्रह ),वक़्त के साथ-साथ  (हाइकु संग्रह), मेरे हिस्से का सूर्य  (ताँका संग्रह), टेढ़े-मेढ़े रास्ते (लघुकथा संग्रह), हिन्दी लघुकथा : समीक्षात्मक अध्ययन। संपादि -  लघुकथा संकलन आस-पास की बातें तथा शब्द मुखर हो उठे काव्य संग्रह।  'रजाई 'लघुकथा पर यूट्यूब वीडियो में लघु फिल्म का निर्माण। 
संपर्क- नीलकंठ रेसीडेंसी, डी फ्लैट ३०५, आनन्द बिहार काॅलोनी, रूपसपुरा, पथ ४, पटना८०००१४ ।
चलभाष- ७४८८७८८२०१ / ९८०११ ९८४३३   
*
चंद्रयान -३ का  शंखनाद 

चंद्रयान-३ की शंखनाद से
 गूंज उठे धरती -आकाश 
नये भारत का शंखनाद
चाॅंद पर पहुंच तिरंगा लहराया।
नये भारत का जयघोष
चंद्र पथ पर विजय पताका फहराकर
आजादी की अमृत काल में 
चांद मनाया अमृत महोत्सव 
नयी चेतना नया विश्वास
 नये भारत  का कीर्तिमान
हुआ स्थापित है वेमिशाल 
इसरो के वैज्ञानिकों ने कर दिया कमाल।
है नाज़ आप  पर इसरो के बैज्ञानिकों 
 भारत को चंद्र विजयता बनाए ।
हृदय से आभारी हुए हैं हम सभी भारतीय
 है इसरो को बधाई ।
चंद्रयान -३का सफल लैंडिंग  दक्षिणी ध्रवीय क्षेत्र में हुआ 
तो भारत बना  प्रथम देश 
हर्ष और उमंग में झूम रहा है सारा संसार ।
चॉंद का दक्षिणी ध्रवीय क्षेत्र 
हुआ है भारत का अपना
देखो रे धरती वालों 
सदियों की तमन्ना अब 
तेईस अगस्त दो हज़ार तेईस में हुआ है पूर।
 चाॅंद भी गले लगा कर प्रज्ञान संग विक्रम को सहर्ष स्वागत किया
भारत  रचा है अनोखा इतिहास करके  चाॅंद्रयान-3 का सफल लैंडिंग 
इतिहास रचे हैं इसरो  के वैज्ञानिकों ने 
भेजें है प्रज्ञान को  विक्रम के साथ
चंद्रयान होरहा निहाल 
अपने चॅंदा मामा के घर में घूम-घूम कर मस्ती में मचा रहा है मौज ख़ोज रहा है
क्या -क्या है खनीज़ पदार्थ 
चाॅंद भी अब ख़ुशी में जोर जोर से गाने लगा है
ना मैं हिंदु हूं ना मुसलमान हूॅं ना सिख हूॅं ना  ईसाई हूॅं
 मैं किसी एक  धर्म का नहीं हूॅं- मैं सर्वधर्म -सर्वमान्य हूॅं 
मुझे धर्म ने नहीं विज्ञान ने पाया है।
इसरो के वैज्ञानिकों 
आभारी हूॅं इसरो का
भारत को बनाया 'चंद्र विजयता '।
चाॅंदा मामा ने भी किया है वादा
विक्रम -प्रज्ञान 
तुम्हारे सभी कामनाएं 
मैं करूंगा पूरा ।
अब है लक्ष्य आदित्य का
सफल होंगे ये भी अभियान
भारत माता की जय घोष से गूंज रहा है सारा संसार है आज खुशी का त्योहार
भारत बना गया है चंद्र विजयता।

***

* पुष्पा पाण्डेय, राँची ०४.०२.१९६०/९४३१७ ०८७५०

जन्म- ४ फरवरी १९६०. 
संप्रति- गृह स्वामिनी।  
शैक्षणिक योग्यता- स्नातकोत्तर, बी.एड. पटना विश्वविद्यालय, पटना।
स्थायी निवास स्थान- राँची, झारखंड।
चलभाष- ९४३१७०८७५० 


चंद्रारोहण    भोजपुरी 

हरि-हरि इसरो के वैज्ञानिक युग- युग जीअस ए हरि-२ 

चन्दा पर भेजले बिकरम यानवा हो रामा,बिकरम यानावा हो रामा-२
हरि-हरि दुनिया देख भइल बा आचाम्भा ए हरि-२।

तेइस अगस्त बड़ी शुभ दिन भइले हो रामा, शुभ दिन भइले हो रामा।
हरि- हरि इसरो के बधाई सभे देला ए हरि....

सावन महीनवा शिव के महीनवा हो रामा-२
हरि-हरि मिली गइले उनुको अशीषवा ए हरि-२

इनकर कारनामा देख, चन्दा मामा बिहसे हो रामा-२
हरि-हरि बिकरम भगीनवा बड़ी हुलसे ए हरि-२ 

हरि- हरि चंदा पर  गइल भारत से संदेशवा ए हरि। 

दुनिया के लोगवा चिहाईल सब बाड़े हो रामा, चिहाईल  सब बाड़े हो रामा।
हरि-हरि सभके नजरिया हिन्दवा पर बाड़े ए हरि...

लोग- बाग देत बाड़े, इसरो के अशीषवा हो रामा-२, 
हरि-हरि युग- युग जीअ हामार बबुआ ए हरि।

चन्दा मामा धाम भइले, शिव- शक्ति ओहिजा हो रामा, शिव-शक्ति ओहिजा हो रामा।
हरि- हरि ओहिजो जाइब तीरथ करे हमहूँ  ए हरि-२

सुन-सुन पिया मोरो, टिकठ कटा द हो रामा, टिकठ कटा द हो रामा-
हरि-हरि दुनो मिलि चलल जाई चन्द्रलोकवा ए हरि-२।
(बतर्ज- लोकगीत कजरी)
***

पुष्पा प्रियदर्शिनी , धनबाद ०५.०९.१९७९/७९०३६ ४४८५७




दोहे , चंद्रयान से संबंधित 

इसरो के वैज्ञानिकों, आर्यभट्ट संतान ।
निश्चय भारत भाल का, आप मनस्वी मान।।

आप भास्कराचार्य के , गौरव सौर विधान।
गणकचक्र के आप मणि , ब्रह्मगुप्त प्रतिमान।।

दृग्गणितैक्याधार का , बने आप आधार।
 नित नवीन संधान से, पाना जयन अपार।।

विस्तृत होगी योजना, लेकर नव आकार।
सौर कक्ष में नित्य ही, जाना हो साकार।।

विक्रम की गणना अगम, होगा शत के पार।
बेशक करना एक दिन, पावन चंद्र विहार।।
***

- पुष्पा वर्मा, हैदराबाद ०४.०३.१९४६/९३९४८ ८३८९९ 

***

- पूनम चौहान डॉ., बिजनौर १५.०४.१९६७/

जन्म- १५ अप्रैल १९६७, मेरठ।
आत्मजा- श्रीमती लक्ष्मी देवी - श्री तोरण सिंह राणा।  
जीवनसाथी- श्री भूपेंद्र सिंह। 
शिक्षा- एम. ए., एम. फिल., पी-एच. डी.। 
संप्रति- एसो. प्रोफेसर, एस. बी. डी. महिला महाविद्यालय धामपुर, बिजनौर, उत्तर प्रदेश । 
प्रकाशित कृतियाँ- ३। १ संपादित। 
संपर्क- दुर्गा बिहार कॉलोनी, नगीना रोड, धामपुर, बिजनौर, उत्तर प्रदेश २४६७६१ । 
चलभाष- ९२५८७ ५६२२१ 
ई मेल- poonam2dpr@gmail,com
*

चंद्रयान ३   

कर रहे थे प्रार्थना और,दे रहे शुभ कामना।
स्वप्न अब पूरा हुआ, हुई पूर्ण अब मनोकामना।।

रख दिया जब चाँद पर हमने कदम, चमकी धरा।
हर्ष और उल्लास भारत वासियों में था भरा।
इतिहास रचकर देश अब, श्रेणी में पहली है खड़ा।
स्वप्न अब पूरा हुआ, हुई पूर्ण अब मनोकामना।।

धन्य धन्य आज है, विज्ञान  के वीरों का श्रम।
लिख दिया अध्याय स्वर्णिम तोड़ के सारे भरम।
इसरो है गौरव हमारा, इसरो की जय जय हो सदा।
स्वप्न अब पूरा हुआ हुई पूर्ण अब मनोकामना।।

धीरे-धीरे वीर विक्रम चाँद से जब जा मिला।
रोम रोम हर्षित हुआ, पुष्प मन का था खिला।
तालियों के बीच था, आंखों से आँसू भी झरा।
स्वप्न अब पूरा हुआ हुई पूर्ण अब मनोकामना।।

अब सफलता विश्व में गूँजेगी अपने यान की।
लहराएगा अपना तिरंगा, बात है सम्मान की।
चाँद  है अब पास अपने, सच्चे बन्धन में बँधा।
स्वप्न अब पूरा हुआ हुई पूर्ण अब मनोकामना।।
***

* प्रणति ठाकुर, कोलकाता  

जन्म- २३.०४.१९७४, मधुबनी,बिहार। 
आत्मजा- श्रीमती वीणा - श्री सुशील कुमार ठाकुर।  
जीवनसाथी - श्री विश्वजीत कुमार।  
रुचि- हिंदी का प्रचार-प्रसार। 
संपादन- काव्य  एवं समीक्षा-संग्रह आसावरी। 
संपर्क- कोलकाता।  
चलभाष- ९८७४८ ६४१६९ 
*

गीत 
चाँद की तन्हाइयाँ                 

चाँद की तन्हाइयों का दर्द थोड़ा कम हुआ है...

दर्द की खामोश चादर में लिपटकर था चमकता
योग - मुद्रा में गगन पर मौन योगी सा दमकता
भारती का पा संदेशा नेत्र उसका नम हुआ है
चाँद की तन्हाइयों का दर्द थोड़ा कम हुआ है....

बचपने में माँ की लोरी में ये मिस्री सा घुला था
नित नवीन कहानियों में जादू के दर सा खुला था
पैर विक्रम के पड़े हैं, चाँद अब हमदम हुआ है...
चाँद की तन्हाइयों का दर्द थोड़ा कम हुआ है....

था ज़माना भर रहा दम चाँद पर हम ही रहेंगे
चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर पहले पग हम ही धरेंगे
भारती के घाव का प्रज्ञान अब मरहम हुआ है 
चाँद की तन्हाइयों का दर्द थोड़ा कम हुआ है.....
***

- प्रताप सिंह राहुल, सतना २०.०१.१९८९/८१२१४ ८७२३२  

***
* प्रेम बिहारी मिश्र

जन्म- १३ दिसम्बर १९४५  ग्वालियर. म.प्र.। 
आत्मज- स्व. नन्हीं मिश्र - स्व. कैलाश बिहारी मिश्र।
जीवन संगिनी- श्रीमती सुलेखा मिश्र।  
शिक्षा- स्नातक। 
संप्रति- सहायक निदेशक, सीमा सुरक्षा बल (सेवा-निवृत्त), अध्यक्ष दिल्ली कविता मंडल। 
प्रकाशित पुस्तकें- मुक्तक संग्रह झालर मोतियों की, ग़ज़ल संग्रह  शाख़ पर बेचैन पत्ते। 
संपर्क- सी ५०१, चित्रकूट अपार्टमेंट्स, प्लाट नं.-९ , सेक्टर-२२, द्वारका, नई दिल्ली ११००७७ ।  
वाट्स एप : ९७११८ ६०५१९  
ईमेल : pbmishra.bsf@gmail.com
गीतिका

हर मुसीबत से लड़ा है चाँद पर
शान से भारत खड़ा है चाँद पर

स्वप्न जिसका देखती दुनिया रही
पग वहीं अपना पड़ा है चाँद पर

हो गया ज्यों एक जादू सा कहीं
नाम अपना यों जड़ा है चाँद पर

तान कर सीना खड़े हम शान से 
नाम अपना ही बड़ा है चाँद पर

शीश सब के झुक गए सम्मान से
यूँ तिरंगा अब गड़ा है चाँद पर

पूत मेरा हर खिलौना छोड़ कर  
बेतहाशा अब अड़ा है चाँद पर

चाँदनी उससे लिपटती ‘प्रेम’ से
यान अपना नग जड़ा है चाँद पर
 (छंद : पीयूष वर्ष)
***

* बसंत शर्मा, प्रयागराज  ०५.०३.१९६६/९४७९३ ५६७०२ 


संप्रति-  IRTS 
चलभाष- ९४७९३ ५६७०२
ईमेल- basant5366@gmail.com

चंद्रयान 

नेह-निमंत्रण भेजकर, बुला रहा था चाँद।
हम भी जा पहुँचे वहाँ, आसमान को फाँद।।

सपनों के संसार में, पहुँच गया विज्ञान।
टहल रहा है चाँद पर, रोवर सीना तान।।

देख रहा है गौर से, अंतरिक्ष समुदाय।
दिखता कहीं न विश्व में, भारत का पर्याय।।

क्यों न मिलाये चंद्रमा, उनसे अपने हाथ।।
खड़े वीर मुथुवेल हों, सोमनाथ के साथ।।

भले चंद्र का खूब था, ठंडा ‘साउथ पोल’।
रोवर की हिम्मत मगर, हुई न डाँवाडोल।।

सफल हुआ इसरो मिशन, बढ़ा देश का मान।
सोमनाथ ने सोम पर, भेज दिया प्रज्ञान।। 

चंदा मामा दूर के, हुई पुरानी बात। 
भारत के प्रज्ञान ने, बदल दिए हालात।।
***

* बहादुर सिंह बिष्ट 'दीपक',   कुमायूनी 

जन्म- २२ मई १९८२
आत्मज- श्रीमती सीता देवी - श्री चंद्र सिंह बिष्ट
जीवन साथी- श्रीमती पूजा देवी। 
शिक्षा-  स्नातक, स्वामी विवेकानंद स्नातकोत्तर महाविद्यालय, लोहाघाट। 
प्रकाशित पुस्तक- खंड काव्य: महारानी धना अस्कोट की शेरनी।
संपर्क- ग्राम चामी, पोस्ट चौमेल २६२५२५ , जिला चंपावत, उत्तराखंड। 
चलभाष- 9643969610
*

कुमाउनी मुक्तक 

साल तेईस, तेईस ही तारीख, माह अगस्त यो शुभ दिन एरो।
दुनिया सुजारे भारत के और भारत आज अगास के चैरो।
हैरेछ जैजैकार सबै जाग, 'इसरो' को नाम सबै जाग छैरो। 
भारत झंड लिबेरे यो विक्रम, पैली बेरे आज ज्यूनी में जैरो।
साल २०२३, और २३ ही तारीख  है, अगस्त माह में यह शुभ दिन आया है। दुनिया आज भारत की और देख रही है और भारतीय आसमान की ओर टकटकी लगाए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन  'इसरो' की जय जयकार हो रही है। भारत का झंडा लेकर पहली बार चंद्रयान विक्रम चाँद पर पहुँचा है।

आज बधै छ उनू सबके, जिन वैज्ञानिकों ले सुदिन यो देखारा।
ज्यूनी में जॉ तक क्वे ले ना पुजि रया , दैना ध्रुव में यान पुजारा।
झंड में ज्यूनी लगूछ कोई,  याँ ज्यूनी में आज तिरंग फेरारा।
भारत का विज्ञानी सपूतों ले, दुनिया में भारत मान बढ़ारा।
आज उन सभी वैज्ञानिकों को बधाई है जिन्होंने हमें यह शुभ दिन दिखाया है। चाँद पर जहाँ आज तक कोई नहीं पहुँचा था, उस दक्षिणी ध्रुव पर हमारे वैज्ञानिकों ने चंद्रयान उतारा है। बाकी दुनिया सिर्फ अपने झंडे पर चांद लगाकर ही खुश है जबकि आज हमने चांद पर तिरंगा फहराया है। भारत के इन विज्ञानी सपूतों ने दुनिया में भारत सम्मान बढ़ाया है।


करछ सफर जो शुरू साइकिल बे, 'इसरो' आज अगास के छ्यूनों।
पेली मंगल फिरि ज्यूनी में, आब सूरज के हाथ बढूनों।
होमी, कलाम, सतीश औ विक्रम, रामचंद्र झा ज्ञानी हमारा,
इनकी बदौलत देश हमारो, दिन-दिन दुनिया में नाम कमूनों।
एक साइकिल से सफर को शुरू कर इसरो आज आसमान की बुलंदियों को छू रहा है। पहले मंगल, फिर चांद पर फतह करने के बाद भारत अब सूर्य की और बढ़ रहा है। भारत ने विश्व को होमी जहांगीर भाभा, अब्दुल कलाम आजाद, सतीश धवन, विक्रम साराभाई और रामचंद्र राव जैसे अनेक वैज्ञानिक दिए है, जिनकी बदौलत आज हमारा देश दिनों-दिन विश्व पटल पर विज्ञान के क्षेत्र में अपना नाम कमा रहा है।
***

* ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र इं., जमशेदपुर 

जन्म- २२ दिसंबर १९५२, गया, बिहार।  
आत्मज- स्व. देशरानी देवी - स्व. नरसिंह मिश्र।  
शिक्षा- एम.एस-सी. इंजीनियरिंग (धातुकी, आई.आई. एम., कोलकता)। 
संप्रति- से.नि. अधिकारी, टाटा स्टील लिमिटेड, जमशेदपुर। 
प्रकाशित पुस्तकें- कहानी संग्रह: छाँव का सुख,  तुम्हारे झूठ से प्यार है, उपन्यास डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन। अमेज़न किंडल पर कविता संग्रह कौंध, कहानी संग्रह आई लव योर लाइज, लघु उपन्यास ताज होटल गेटवे ऑफ इंडिया, उपन्यास छूटता छोर अंतिम मोड़, कोरोना कनेक्शन। वेबसाइट हिंदी प्रतिलिपि पर कहानियाँ और धारावाहिक उपन्यास प्रकाशित।
ब्लॉग- marmagyanet.blogspot.com
संपर्क- ३A, सुन्दर गार्डन, संजय पथ, डिमना रोड, मानगो, जमशेदपुर ८३१०१२। 
चलभाष- ७५४१०८२३५४  
ई मेल - brajendra.nath.mishra@gmail.com.
*

चंद्र धरा पर हमने अपने प्रतीक डाले है.
हम भारत वाले हैं, हम भारत वाले हैं.

मेघ कहाँ रोक पाया, हमारी उड़ान की गति को.
अंतरिक्ष में बढ़कर हमने अंकित किया प्रगति को.

चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर हमने विक्रम उतारा है.
अज्ञात क्षेत्र में सफल अकेला प्रयास हमारा है.

प्रज्ञान रोवर खोज रहा वहाँ जीवन की सम्भावना,
फलित हुआ हमारा संकल्प, शोध और साधना.

आकाश गंगा के तारे हमारी जद में आने वाले है.
हम भारत...

आज चंद्र यान, कल मंगल यान,  परसो  सूर्ययान.
आंतरिक्ष के ग्रह तारों का भ्रमण करेगा हमारा यान.

चाँद पर बनायेंगें हम अपना अंतरिक्ष पड़ाव स्थल.
वहाँ से आगे अभियान शुरू शुक्र, शनि और मंगल.

हमारे भी चाँद पर होंगे शहर, कस्बे और बस्तियाँ 
पर्यटन के लिए जाया करेंगे खूब करेंगे मस्तियाँ.

चंदा मामा महल सजालो आनेवाले हैं.
हम भारत वाले हैं, हम भारत वाले हैं..
***

ब्रह्मदेव कुमार डाॅ., ।





जन्म- ग्राम नौखिल ८१४१३३, गोड्डा, झारखंड।
आत्मज- बड़ी माता- लक्ष्मी देवी, माता - उत्तमा देवी, पिता स्व. विश्वनाथ रामदास। 
शिक्षा- एम.ए.(अंगिका एवं हिंदी) स्वर्ण पदक, पी-एच. डी.। 
सम्प्रति- सेवानिवृत्त शिक्षक, प्राथमिक शिक्षा, झारखंड।
प्रकाशित पुस्तक- डा.अमरेन्द्र के काव्य में समकालीन यथार्थ। 
संपर्क- शिप्रा फिल्म्स, आदर्श नगर, सरकंडा, गोड्डा, झारखंड।
चलभाष : ९९३४५३१२४५ / ७५४९८९७१५१  
*
कविता
चन्द्र मिशन: गौरव के क्षण

सदियों से... युग -युगांतर से...
भारत की सामाजिक संचेतना में, / सांस्कृतिक संवेदना में
नील गगन पर रजत रश्मियाँ बिखेरता /  हॅंसता- मुस्कराता
श्वे -श्याम अब्र से आँख मिचौली करता / शुभ्र-स्निग्ध -शीतल चाॅंद
कभी बहनों की करुण पुकार पर / अपने भांजे को भरमाता है
रक्षाबंधन और भैया दूज में  / भैया को याद दिलाता है
तो कभी सुहागिनों के सुहाग की रक्षा हेतु
आसमान में उग आता है,
और भारत की पावन परंपरा में
चार चांद लगा जाता है।

... और आज इक्कीसवीं शताब्दी में 
भारतीय चन्द्रयान ३ ने / व्योम के विस्तृत वितान को लाँघकर
झिलमिलाते सितारों की छाँव में
अपने सुदृढ़ संकल्प से अभिप्रेरित
प्रबल - प्रखर अभीप्सा से अभिसिंचित
चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर / सफलता पूर्वक दस्तक देकर
सम्पूर्ण विश्व में पीट दिया है / भारत का डंका
फहरा दिया है शान से / विश्व विजयी तिरंगा
और अब विक्रम -प्रज्ञान / चहल कदमी करता है चंद्र तल पर
लोटता है उसके रज -कणों में
स्वयं होता है गौरवान्वित और करता है गर्वोन्नत
भारत के भव्य भाल को
देता है शुभ संदेश / भारत की गरिमा की पुनर्स्थापना का
भारत की विश्वगुरु के शीर्ष शिखर पर/  पुनर्प्रतिष्ठापना का।
***

बाबा कल्पनेश, १८.१०.१९५८/८७६५१ ९४७७३ 

***
* भारती सिंह डॉ.,  ग्रेटर नोयडा वेस्ट



जन्म-  २५ फरवरी १९६०, शिवरात्रि, कोलकाता। 
आत्मजा- स्व. इंदिरा सिंह, शिक्षिका, आजमगढ़ - स्व. अभय नारायण सिंह प्रधानाचार्य इण्टरमीडिएट काॅलेज,आजमगढ़ । 
जीवन साथी- डाॅ. इन्द्रसेन सिंह (सिविल इंजीनियर) निदेशक, NIC MAR हैदराबाद।  
शिक्षा- एम. ए., बी.एड., पी-एच.डी.। 
संप्रति- सेवानिवृत्त शिक्षिका। 
प्रकाशित पुस्तकेँ- नयी कहानी : संदर्भ शिल्प का, काव्य: पृथ्वी के हिस्से का सन्नाटा।  
संपर्क- ग्रेटर नोयडा वेस्ट, सिंह ओंकार रॉयल नेस्ट सोसायटी, टॉवर एन ४, फ्लैट ११०३, टेफ जोन ४, ग्रेटर नोएडा वेस्ट २०१३०६  उत्तर प्रदेश 
संपर्क- ९८१०९६२२०४  
ई मेल- dr.bharti_singh@yahoo.com
*
चाँद हमारी मुट्ठी में

युगों-युगों से बच्चों को उनकी माताओं  ने 
लोरी सुना-सुना कर चुप कराया और 
थाली में पानी रख-रख कर चाँद पकड़ना सिखाया।  
चाँद के सपने दिखलाए,  
चंदा को मामा बताया 
सचमुच चाँद से यह हमारा नाता पुराना था 
हर माँ  ने कल्पना से जो नाता जोड़ा 
उसको हमारे इसरो के वैज्ञानिकों ने साकार कर दिया  
सपना देखते-देखते इतिहास रच दिया 
चाँद को मुट्ठी में पकड़ ही लिया  
इसके पीछे कितना अथक परिश्रम है वैज्ञानिकों का
इस सुख को पाने के लिए उन्होंने 
बहुत से सुखों का परित्याग किया  
हमें उन पर गर्व है 
वैज्ञानिकों की टीम ने पूरी दुनिया में 
भारत का डंका बजाया 
भारत विश्व गुरु कहलाया 
यह आजादी के बाद की सबसे बड़ी एतिहासिक उपलब्धि है 
युगांतरकारी परिवर्तन है।  
एक-एक बच्चे की आँखों में जीत की चमक 
यही हमारी एकता है, यही हमारा विश्वास है 
यही हमारी स्वतंतत्रा है 
सचमुच भारत महान है 
भारतीय बच्चे जन्म से ही 
चाँद और सूरज के सपने देखते हैं।  
जय हिन्द! वंदे मातरम्!! 
अब चाँद हमारी मुट्ठी में 
***

* भावना मयूर पुरोहित, अहमदाबाद, गुजराती

जन्म- २२.११.१९६, मुंबई। 
आत्मजा- जयश्री बेन कांतिलाल जानी- कांतिलाल  देवशंकर जानी। 
जीवन साथी - मयूर मणिलाल पुरोहित। 
शिक्षा- बी. एस-सी. होम साइंस। 
प्रकाशित पुस्तकें- ज्ञान दीप हिन्दी, ज्ञान दीप गुजराती। 
चलभाष- ९७०१८ ०८५१७
संपर्क- आर. के. एस. अपार्टमेंट, (बी) बी ब्लॉक, फ्लैट ६०७, फ्लोर ६, सी. डी. आर. अस्पताल के पीछे,   उर्दू गली, स्ट्रीट ४, हैदरगुड़ा, हैदराड, तेलंगाना ५०००२९  
R. K. S. APPRAT. (B) B BLOCK.  FLAT NO. 607 6 FLOOR. BEHIND C.D.R. HOSPITALS. URDU GALLI. STREET NO. 4 HYDERGUDA. HYDERAAD 500029 TELANGANA  चलभाष- ९७०१८ ०८५१७ / ९८४८७ ६५६१९ 
9848765619

BHAVANA 
9701808517


इसरो चंद्रयान 3

सर्व भारतीयों ना प्यारा चंदामामा।  
कविओ ज्योतिषीओ वैज्ञानिको सौनो मानितो चंद्रमा 
मन ना तरंगों अनेक भरती-ओट नो कारक  चंद्रमा  
पुराणों मां  चंद्रमा नुं अनेरु 
महत्व, सोमनाथ नु प्राकट्य 
महादेवे चंद्र ने मस्तक पर स्थान आप्युं, श्री रामे पोताना
नाम साथे जोड्युं 
चारेय युगों थी  मानव चंद्र पर जवा माटे लालायित  
१९६९ मां मनुष्य सौ प्रथम चंद्रमा पर प्रथम वार पदार्पण कर्यु  
त्यार पछी विभिन्न देशों वच्चे 
जाणे , पोतानां यान ने चंद्र पर
मोकलवा नी होड लागी।  
विक्रम चंद्रयान 3 ए विक्रम 
सर्जो, विक्रम संवत २०७९
श्रावण सुदी सातम - शितला सातम ना, 
भारत नो स्वातंत्रय महिनो ओगस्ट, 
महादेव नो प्रिय महिनो  
तारीख २३ मई ओगस्ट २०२३ ना रोज। 
 श्री राम जन्मभूमि अयोध्या मां, राम मंदिर तैयार थई रह्युं 
छे... अने... अने... अने...  
सौना हर्षोल्लास अने आश्चर्य वच्चे 
भारत नुं विक्रम चंद्र  यान 3  प्होंच्यु चंद्रमा ना
दक्षिण भाग मां...  
चंद्र यान 3 विक्रमे भारतनो
विक्रम सर्जो पूरा विश्व मां!!! 
भारतीय चिन्ह स्थापित चंद्रमा पर, भारतीय  राष्ट्रीयध्वज 
फरक्यो - लहेरायो  सर्व प्रथम चंद्र पर  
धन्य इसरो, धन्य भारतमाता, 
धन्य चंद्र यान ३। 


सर्व भारतीयों ना प्यारा चंदामामा।   
कविओ ज्योतिषीओ वैज्ञानिको सौनो मानितो चंद्रमा  
मन ना तरंगों अनेक भरती-ओट नो कारक  चंद्रमा 
पुराणों मां  चंद्रमा नुं अनेरु 
महत्व, सोमनाथ नु प्राकट्य( 
महादेवे चंद्र ने मस्तक पर स्थान आप्युं, श्री रामे पोताना
नाम साथे जोड्युं 
चारेय युगों थी  मानव चंद्र पर जवा माटे लालायित  

१९६९ मां मनुष्य सौ प्रथम चंद्रमा पर प्रथम वार पदार्पण कर्यु 

त्यार पछी विभिन्न देशों वच्चे 
जाणे , पोतानां यान ने चंद्र पर
मोकलवा नी होड लागी 

विक्रम चंद्रयान 3 ए विक्रम 
सर्जो, विक्रम संवत २०७९
श्रावण सुदी सातम - शितला सातम ना,  
भारत नो स्वातंत्रय महिनो ओगस्ट, महादेव नो प्रिय महिनो  तारीख २३ मई ओगस्ट  २०२३. ना रोज, 
 श्री राम जन्मभूमि अयोध्या मां, राम मंदिर तैयार थई रह्युं 
छे... अने... अने... अने... 
 सौना हर्षोल्लास अने आश्चर्य वच्चे भारत नुं विक्रम चंद्र  यान 3  प्होंच्यु चंद्रमा ना
दक्षिण भाग मां... 
चंद्र यान 3 विक्रमे भारतनो
विक्रम सर्जो पूरा विश्व मां!!! 

***

प्रताप सिंह 'राहुल' आचार्य  

जन्म - २० जनवरी १९८९, कोटर, सतना मध्य प्रदेश। 
आत्मज- श्रीमती प्रतिभा सिंह - श्री नरेंद्र सिंह। 
जीवन साथी- श्रीमती शीतल सिंह। 
शिक्षा- एम. ए., बी. एड., एम. एड., डिप्लोमा फ्रेंच-जर्मन।  
संप्रति- संपादक अक्षर वाणी संस्कृत समाचार पत्र। 
प्रकाशित पुस्तक- काव्य संग्रह मेरी बगिया के फूल। 
संपर्क- जयशूर निकेतन, संस्कृत भवनम्, १०४६ ए लाल बहादुर शास्त्री नगर, वार्ड १५ सतना ४८५२२७ म. प्र.।  
चलभाष- ८१२१४८७२३२ / ८६३९१ ३७३५५। 
ईमेल- acharypratap@outlook.com 

विषय - चंद्रयान -३
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नित कदम बढ़ाए थे 
ईश्वर पूजन कर,
शशि-यान उड़ाए थे।

शशियान तीसरा था 
श्रीहरिकोटा के
सतीश से निकला था।

दक्षिण ध्रुव पर जाकर 
विक्रम रोवर ने,
फहराया तिरंगा था।

देशी से प्यार किया 
लिया विदेशी कम
तकनीक सुधार किया।

चंदा अपना मामा 
जा आँगन उतरा 
विक्रम ने पहचाना।

ढप-ढोल बजाया था 
बाँटा गुड़ धानी
सुख हर्ष मनाया था।

इसरो ने लाँच किया 
मिशन तीसरा यह,
लैंडिंग सॉफ्ट किया।

(मात्रिक छंद- माहिया, पदभार- १२-१०-१२)
*** 

डॉ. मंजू भार्गवी बी. आर

जन्म- २८ फरवरी १९८१ । 
संप्रति- सह प्राध्यापिका, हिंदी विभाग, आर. पी. ए. महाविद्यालय, राजाजीनगर बेंगलुरु ५६००१० ।   
प्रकाशित पुस्तकें- १ खुद की, संपादित ५। 
*
नमो इसरो 
मैं सुंदर, सुशील, शीतल चांद 
मुझसे मिलने, मुझ में बसने कोई नहीं आता, मैं ही तुमसे मिलने, तुम्हारे साथ बसने सोचा,  पर एक्स मुझे यहां आकाशगंगा पार करने नहीं हो रहा, सदियों से मैं अकेला था ।

भावनाओं की डोर , अपनों से मिलने की इच्छा मन में ही रखा, तुम्हें देने के लिए अमूल्य खजाना, मुझ में बसने के लिए हवा, व्यापार के लिए खनिज मेरे गर्भ में अभी भी है अभिरक्षित, बहुत सारी अन कही बातें मन में ही रह गए, सदियों से मैं अकेला था।

बच्चों के सपने मैं आने वाला, लोरी की धुन में गवानेवाला, निंदिया रानी के साथ सरकने वाला,  प्रेमिका को दिए हुए वादे में बसने वाला, तुम्हारे कल्पना लोक में भी विराजने वाला सदियों से मैं अकेला था।

देवों का भाई, वसुंधरा के संतानों के लिए मैं मामा, दूर से ही तुम्हारे प्यार का,  सपनों का आनंद बना, विराहियो के दर्द को पिया हुआ मैं,  क्या पता तुम्हें कि कितना टूटा जब मुझसे मिलकर लौटते समय हुई  दुर्घटना पर? क्या पता तुम्हें कि कितना रोया जब मुझ तक आने के प्रयास विफल होने से? सभी जीवाश्म का असहायक गवाह, सदियों से मैं अकेला था।

भारत की शान हो तुम सोमनाथ, पहुंचा मुझ तक तुम्हारा दूत विक्रम नाथ, परिश्रम के पुल बनाया इसरो के वैज्ञानिकों ने, हमेशा के लिए मिटा दिया हमारी दूरी को , अंकुरित हुए मेरे सपने,  मन की बातें, साबित कर दिया तुमने भाई बहन का रिश्ता और एक बार, मिठाया हमेशा के लिए अकेलापन, आज से में अकेला नहीं हू।

***

* मगन सिंह जोधा, आबूरोड सिरोही, १५.०३.१९६८    राजस्थानी

***
  
मदन श्रीवास्तव, जबलपुर ०३.११.१९५१/९२२९४ ३६०१० 



जन्म- ३ नवंबर १९५१ 
आत्मज- स्व. चंद्र प्रभा जी - स्व. अंबिका प्रसाद। 
जीवन साथी- श्रीमती शैल पूनम श्रीवास्तव। 
शिक्षा-  डी. एम. ई., बी. ए. मेरिट होल्डर, एम. ए. (अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाज शास्त्र), एल-एल. बी. ऑनर्स, सी. ए. आई. आई. बी.। 
संप्रति- वरिष्ठ प्रबन्धक सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से. नि.।  
प्रकाशित पुस्तकें- कविता संग्रह: टुकड़ा टुकड़ा आकाश। 
संपर्क- १४ जमनोत्तरी, जानकीनगर,  जबलपुर। 
चलभाष- ९२२९४३६०१०, ८१२०२८४१८५ 
*
चन्द्रयान

अनुपम प्रयास था,
सबको ये आभास था,
सफल  है चन्द्रयान,
खुशियाँ मनाइये।

अभियान सफल है,
पुरुषार्थ का फल है,
अपने वैज्ञानिकों का,
यश गान गाइये।

लक्ष्य अभी और भी हैं,
नित्य नये दौर भी हैं,
शिखर चढ़ेंगे नये,
आशाएँ जगाइये।

चंद्र विजय झाँकी है,
सूर्य विजय बाकी है,
आगे हैं लक्ष्य विविध,
विश्व को बताइये।।
(मनहरण घनाक्षरी)
***

* मधु प्रधान' मधुर', मुंबई २६.१२.१९५०/९९६९२ १२३४४ 



जन्म- मैनपुरी 
आत्मजा- स्व. श्री शिवनारायण जौहरी विमल सेवानिवृत्त प्रमुख विधि सचिव न्यायधीश स्वतंत्रता सेनानी साहित्यकार।  
शिक्षा-एम.ए., बी.एड.।
संप्रति- सेवानिवृत्त  शिक्षिका, के. वी. मुंबई।   
प्रकाशित पुस्तक-  काव्य संग्रह-बिखरे मोती। 
संपर्क- ३०६ सनफ्लावर, नीलकंठ गार्डन, गोवंडी  पूर्व, मुंबई  ८८ 
*


****

* मनीषा सहाय 'सुमन', रांची, झारखंड 

जन्म- १९.०९.१९७५ पटना, बिहार।     
आत्मजा- श्रीमती सुमन सक्सेना - स्व. कवि सुरेन्द्र नाथ (बिहार/झारखंड)।    
जीवन साथी- मनीष सहाय इं.। 
शिक्षा- स्नातकोत्त र(राजनीति शास्त्र, हिंदी साहित्य), एम. बी. ए. (मानव संसाधन)। 
प्रकाशित पुस्तकें- 
संपर्क-
चलभाष- ७७६२९ ३९६५७, ८६५१७१८९९२ 
ई मेल-  mani09sahay@gmail.com 
*

जय जय चंद्र अभियान 
*****
जय जय चंद्र अभियान, उतरा चंदा पर इसरो का यान रे....
धरती माई का लेकर प्यार,अंबर बाबा  का संग दुलार
उड़ा- उड़ा देखो चंद्रयान, जय जय चंद्र अभियान के 
माई दूध पुआ पकाले,दूर से ही मामा को खिलावे
सफल हो सब संधान रे, उड़ा- उड़ा देखो चंद्रयान रे.....

महिला शक्ति बनी मिसाल रे, राकेट वुमन ने  कमाल रे।
मोमिता नंदनी से पाया संबल,महिला वैज्ञानिको का बल।
रितु कंठाल पर अभिमान रे,चाँद की धरती पर जय विज्ञान रे.....
उड़ा -उड़ा देखो चंद्रयान रे ,उतरा चंदा पर इसरो का यान रे......

अनुराधावलारमथी बनी गौरव,फैलाया अनुसंधान का सौरभ।
अभियंता मीनल ने थामी पतवार, कीर्ति ने बताया संगणक सार ।
टेसी थामस का तकनीकि ज्ञान,जियोसेट रडार बना समाधान रे....
बढ़ा जग में भारत का मान,जय जय चंद्र अभियान रे .....
***
चंद्रयान 

नए भारत की विजयी हम, नई पहचान लिखते हैं ,
तिरंगा चाँद को कर हम, विजय के गान लिखते हैं,
सफल हो साधना मन की,यही विश्वास  मन रखते -
दक्षिणी चंद्र ध्रुव की हम, नई पहचान अब लिखते।।

न हारे हैं कभी हम तो,  न अब  हम हार मानेंगे, 
रहस्यों को सभी खोलें  , विज्ञान प्रज्ञान जानेंगे,
विज्ञों का सफल अभियान, सुखद दिन आज लाया है-
नए इस रूप में अब हम,  नए संकल्प साधेंगें ।।


हमारा लक्ष्य पूरा हो, यही ध्यये अब   ठाना है,
डगर चाहे कठिन हो अब,हमे चलते ही जाना है,
करे उजियार दुनिया में , सुखद हर साधना होगी-
शिखर अंबर सदा चढ़कर ,नया इतिहास लिखना है ।।

सजा मन भाव गीतों को , नया सुर ताल ,नव लय हो,
नई नित हो सफलताएँ  ,हमारे देश की जय हो,
सभी मिलजुल बढ़े आगे, सफलताएँ कदम चूमे-
सभी  चैनो अमन में हो,  नही कोई कभी भय हो।।
(विधाता छंद)
***

* मनोज शुक्ल 'मनोज', जबलपुर १६.०८.१९५१/९४२५८ ६२५५० 




***

मनोहर चौबे 'आकाश', जबलपुर २०.०८.१९५०/९८९३० २३१०८ 

जन्म-२० अगस्त १९५०, होशंगाबाद।        
आत्मज- श्रीमती इन्दु चौबे - पं. रजनीकांत चौबे।  
जीवन साथी- प्रो. डाॅ. शीला चौबे। 
शिक्षा- ‌एम.ए., बी.एड., एल-एल.बी.,
संप्रति- सेवा निवृत्त जिला कोषालय अधिकारी।
प्रकाशित पुस्तकें- काव्य संग्रह: झरते मेघ, संभावना के पाश, ग़ज़ल संग्रह: उतर कर आसमानों से, गीत संग्रह:  सपनों ‌की कश्ती, चलो आज आजादी को हम घर ले आऍं । 
संपर्क- ८२३/८३,  पावन भूमि, श्री दरबार मन्दिर के पास, शक्ति नगर, जबलपुर ४८२ ००१ (म.प्र.)
चलभाष -       ८७७ ०३९ ६२११, वाट्सएप- ९८९ ३०२ ३१०८
ई मेल- 
*
ग़ज़ल  
चन्द्र-विजय-अभियान

आदिकाल से  मानवता  को, मिले  ज्ञान विज्ञान!
भारत ने इसलिए जगत में, पाया  गुरुतर  मान !!

संधारित हैअब इस भू का,गगन विजयअभियान 
चन्द्रलोक के दक्षिणध्रुव पर,गूॅंज रहा यश-गान !!

इस संस्कृति की वैज्ञानिकता,स्वयं प्रमाण बनी है 
पहुॅंच चन्द्रमा उतर चुका है,अब इसरो का यान !!

सभी चंद्र संभावनाओं की,खोज कर रहा विक्रम
निर्देशित कर रहा है जिनको,इसरो काआव्हान !!

देख रही यह  गौरव गाथा, हुई चमत्कृत  दुनिया 
उत्सुक मानवताअब करती,आगत काअनुमान !!

अर्थऔर साधन सीमित थे,पर संकल्पअसीमित 
भारत ने विकसित देशों का,तोड़ा हरअभिमान !!

यह उपलब्धि देखकर वे सब,देश खड़े हैं हतप्रभ
अपने ही  हाथों  जो अपना ,करते  थे  सम्मान !!

चन्द्रयान के  मिस से  सूरज, से कहता है  चन्दा
भारत अब तुमको भी छूने, का रखता अरमान !!

निकल चुकाआदित्य एल-वन,अगले क्रममेंआगे
कर लेने "आकाश"में बढ़कर,सूरज का संधान !!
***

महेंद्र नाथ तिवारी 'अलंकार', वाराणसी   

जन्म- ०१ जून १९५६ वाराणसी। 
आत्मज- यशोशेष प्रभावती देवी - कीर्तिशेष पं. कमला कांत तिवारी।   
जीवन साथी- श्रीमती शैल तिवारी।  
शिक्षा- बी. एस-सी., संगीत प्रभाकर (सितार एवं गायन)।
संप्रति- भूतपूर्व उप प्रधानाचार्य। 
साधना- विगत ४५ वर्षो से काव्य साधना, रेडियो दूरदर्शन, मंचों पर अनेकानेक प्रस्तुतियाँ।
कृति प्रकाशन- ग़ज़ल संग्रह सदफ़, गीत संग्रह गीत रसाल ।
संपर्क -एम एल ३/४० आनंद नगर कालोनी, चितईपुर वाराणसी २२११०६ उत्तर प्रदेश। 
ई-मेल- mahendranathtiwari910@gmail.com 
चलभाष- ९४५४७२९८५३  
*
मुक्तिका
इसरो का अभियान चला
चन्द्रारोहण करने जब भारत का चन्द्र विमान चला 
उसके पीछे पीछे देखो सारा हिन्दुस्तान चला।।

चाँद पे काली रात है तो क्या क़दम नहीं रुकने वाले 
अंँधियारे से लड़ने देखो नूतन सबल विहान चला।।

नवल दृष्टि में टँकी हुई है नवल क्षितिज की रेखा 
गरुड़ वेग से गगन नापने तब विक्रम-प्रज्ञान चला।।

नवल प्रात है नवल बात है नवल सृजन ले अँगड़ाई
नवल कामना नवल साधना ले अमृत संतान चला।।

वेद मंत्र से नवल ज्ञान का नव विधान अलबेला है 
इसरो की ताकत से सज्जित इसरो का अभियान चला।।

भारत की मेधा ना भूलो जग से विक्रम कहता है 
भरत सपूतों की मेधा ले माता का अभिमान चला।।
***

* डा. महेश 'दिवाकर'



जन्म- १ जनवरी १९५२। 
शिक्षा- पी-एच.डी.; डी.लिट. (हिंदी )।  
आत्मज- स्व. विद्या देवी - स्व. ठाकुर कृपाल सिंह पंवार। 
जीवन साथी- डा. चंद्रा पंवार।  
प्रकाशित कृतियाँ-  मौलिक- ७५ और संपादित- ७०। साहित्य भूषण उ.प्र. शासन।  
संप्रति- से.नि.आचार्य, हिंदी एवं शोध निदेशक। 
संपर्क- सरस्वती भवन, १२ मिलन विहार, दिल्ली रोड, मुरादाबाद २४४००१ । 
चलभाष- ९९२७३८३७७७. .
ईमेल :  mcdiwakar@gmail.com
*
इसरो का गुणगान

महा गर्व से झूम रहा है, 
सारा हिंदुस्थान! 
चंदा मामा के घर पहुँचा, 
भारत का विज्ञान!! 

दृढ़ इच्छा,संकल्प-शक्ति से,
निश्चित मिलता लक्ष्य! 
धरा-गगन के पार क्षितिज पर, 
पहुंची चंद्र-उड़ान!! 

सफल साधना हुई हमारी, 
राम-कृष्ण-कृपा से! 
सकल विश्व दे रहा बधाई, 
भारत देश महान!! 

आजादी का अमृत महोत्सव, 
अद्भुत है उत्कर्ष! 
गूँज रहा सारी दुनिया में, 
भारत का उत्थान!! 

चंद्रयान को मिली सफलता, 
कर्म-धर्म की जीत! 
ध्येय हमारा जन-मंगल है, 
मानवता कल्याण!! 

देख रही हैं महाशक्तियाँ, 
भारत की उपलब्धि! 
असमंजस में हुए निशाचर, 
विफल हुआ अनुमान!! 

सोमदेव से मंगल तक का, 
सफल विजय संकल्प! 
सूर्यदेव के चरण-कमल तक, 
नहीं रुके अभियान!! 

भारत जग का मुकुट बनेगा, 
समय नहीं फिर दूर! 
दुनिया भर के देश करेंगे, 
इसरो का गुणगान!! 
***

- मीना घुमे 'निराली' डॉ., लातूर मराठी 

जन्म- ५ सितम्बर १९७८, डोंगरज (ग्राम) तहसील चाकूर, जिला लातूर , महाराष्ट्र। 
आत्मजा- तारामती घुमे - भाऊराव घुमे। 
शिक्षा- एम. फिल.  (हिंदी), एम. एड., पी-एच.डी., भारतीय नारीवाद में डिप्लोमा, अनुवाद में अध्ययनरत।
संप्रति : सहायक आचार्य, दयानंद कला महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र। 
प्रकाशित पुस्तकें- महिला आत्मकथाओं में नारी संवेदना, हरिशंकर परसाई के निबंधों में व्यंग्य की विविधता। संपादन- मुक्ति : स्त्री मुक्ति के आधुनिक संदर्भ, श्रावणधारा, पहल : एक कदम कामयाबी की ओर, मेरे अपने राम। 
संपर्क-  हिंदी विभाग, दयानंद कला महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र ४१३५१२। 
वॉट्स ऐप- ९६८९१९०७२९, ई मेल- meenaghume@gmail.com
*

आगळा वेगळा चंद्र नभातला  मराठी 

मामाच्या गावाला जाता जाता भरली उड्डाने अंतराळी ।
किर्ती ची शिखरे ओलांडित घेतली की हो गगन भरारी ॥

भासत होता आगळा वेगळा तो चंद्र नभातला मजला ।
लुकलुकणारे तारे भवती चकोरीसह चंद्र चिंब भिजला ॥

कधी भासला तो जिवलग अन् कधी वाटला तो ईश्वर ।
कलेकलेतून छोटा मोठा होणारा चंद्र तो आहे नश्वर ॥

कधी वाटला तो मामा अन् कधी भासला तो भाऊ ।
चला चंद्राच्या छटा बघुया नात्यांच्या पलिकडे जाऊ ॥

ध्वज रोविला आज आम्ही उतरूनी त्याच्या डोक्यावर ।
छाप सोडिली तिरंग्यासह आज त्याच्या दक्षिण ध्रुवावर ॥
*
 हिंदी अनुवाद -अनोखा चाँद गगन का

हम अक्सर चाँद को कई रूपों में देखते रहे हैं। यह कभी किसी का प्रियतम रहा है तो कभी चकोर के साथ चाँदनी में भीगता है। कभी यह हमारे लिए आराध्य है। यही आराध्य हमें कभी छोटा तो कभी बड़ा दिखाई देता है जो मूलतः नश्वर है। कभी यह भाई बन जाता है और बहुत बार मामा बन जाता है। इसी मामा के गाँव जाने का सपना सँजोने वाले हम भारतीय अंतरिक्ष में पहुँचते हैंऔर कीर्तिमान स्थापित करते हैं। चंदा के ऊपर हम जाते हैं और अपना तिरंगा उसके दक्षिण ध्रुव पर फहरा कर अंतरिक्ष में अपना परचम लहराते हैं।  
***

* मीना भट्ट 'सिद्धार्थ', जबलपुर

जन्म- ३० अप्रैल १९५३।  
आत्मजा- स्वः सुमित्रा पाठक - स्वः हरि मोहन पाठक।
जीवन साथी- श्री पुरुषोत्तम भट्ट( से. नि. न्यायाधीश)।  
संप्रति- सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, पूर्व चेअर पर्सन डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर।
प्रकाशित पुस्तकें- पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी,निहिरा (गीत संग्रह), एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना(ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह)नैनिका (कुण्डलिया संग्रह), सुधियों में सिद्धार्थ (दोहा संग्रह)। 
संपर्क- १३०८ कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट मार्ग, जबलपुर ४८२००८ (म.प्र.)। 
चलभाष- ९४२४६६ ९७२२, वाट्स ऐप ७९७४१६०२६८ 
ई मेल नं- meena bhatt 18547 @ gmail .com / mbhatt.judge@gmail.com
*
ग़ज़ल 
चन्द्रयान 

नवयुग का बजता बिगुल,धन्य हुआ विज्ञान।
चन्द्रयान है चाँद पर,करते हम अभिमान।।

सारा देश कृतज्ञ है, अद्भुत था अभियान।
विक्रम सँग प्रज्ञान ने,रचा है कीर्तिमान।।

उड़न खटोला बन गया,आविष्कार विशाल।
वैज्ञानिक इसरो सदन,तुमने किया कमाल।।

चन्द्रयान को देख कर,चकित चंद्र परिवेश।
उतरा ध्रुव है दक्षिणी,मंगलमय संदेश।।

घूमें  रोवर चाँद पर,बढ़े हमारी शान।
चूमें नभ के चाँद को,धरा का चन्द्रयान।। 

पाती पहुँची है गगन,देख धरा की आज।
चन्द्रयान है झूमता,पूर्ण हुआ है काज।।

सफल हुआ अभियान है,मिला नया उपहार।
चन्द्रयान पर गर्व भी,करे सकल संसार।।

स्वप्न हुआ साकार है,रचा नया इतिहास।
पौराणिक विज्ञान का ,हुआ लोक आभास।।

हुआ विश्व में नाम है, वैज्ञानिक उत्थान।
नवल नाम की कामना,करे चंद्र परिधान।।

जय-जय है विज्ञान की,अपना देश महान।
लहराया है चाँद पर,आज तिरंगा जान।।
***

* मीना श्रीवास्तव 'पुष्पांशी' प्रो. (डॉ.),  ग्वालियर, मध्य प्रदेश 

जन्म- एनो - १५ जून १९६५, ग्राम एनो, जिला भिण्ड, मध्यप्रदेश।
आत्मजा- माता-पिता  
जीवन साथी- अनिल श्रीवास्तव। 
शिक्षा-एम.ए., पी-एच. डी.।  
संप्रति- प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष (इतिहास) शा.के.आर.जी.पी.जी.स्वशासी (नैक A ग्रेड) महाविद्यालय, ग्वालियर।  
रुचि : भारतीय इतिहास, साहित्य, संगीत। 
डाक्ट्रेट की उपाधि हेतु मार्गदर्शन- १६ ।
प्रकाशित पुस्तकें- तोमर राजवंश का इतिहास, तोमर, सिंधिया एवं राष्ट्रवादी इतिहास, मोहना के तोमर राजपूत जागीरदारों का इतिहास, भारतीय नारियों का इतिहास, सिंधिया राजवंश का इतिहास एवं सर्वांगीण विकास, काव्य पुष्पांजलि, दोहा कलश, मीना की ग़ज़लें, मीना का काव्योद्यान। 
सम्पर्क- M.I.G. ८८४ दर्पण कॉलोनी, निकट मॉडल हाई स्कूल, थाटीपुर, ग्वालियर। 
व्हाट्सएप्प नंबर : ७०४९०३५५५५, ९४२५३०७७४५। 
Mail ID : meena.shrivastava0@gmail.com
Shrivastava.anilkumar59@gmail.com

ग़ज़ल
बह्र - बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212    2212

दीदार करने को गया ‌।
विक्रम अमर यूॅं हो गया।।

है नाम चन्द्रयान थ्री।
वह आसमां में खो गया।।

जो चॉंद पर रखने क़दम।
चौदह जुलाई को गया।।

लैंडिंग हुई जब चॉंद पर।
हर भारती ख़ुश हो गया।।

तारीख़ है तेईसवीं।
ख़ुशियॉं हज़ारों वो गया।।

धीरे बढ़ा कर के क़दम। 
झंडा तिरंगा पो गया।।

चक्कर लगाए थे बहुत।
इसरो ख़ुशी में खो गया।।

सावन महीने में ग़ज़ब।
दक्षिण दिशा में वो गया।।

मीना मनाओ जश्न अब।
तेईसवें सन् जो गया।।
***
* मीनाक्षी गंगवार, उन्नाव 





१४.११.१९७८
संप्रति- प्रधानाचार्या, राजकीय बालिका हाई स्कूल सोहरामऊ, उन्नाव, 
चलभाष- ९४५०४ ६८९४१

गीत 

ज्ञान-भूमि विज्ञान-भूमि यह अपना हिंदुस्तान है
यूँ ही नहीं कहा जाता है भारत देश महान है 

शान तिरंगे की रखने में कितनों ने दी है क़ुर्बानी
हार न मानेंगे हम रण में अपने मन में सबने ठानी
वीर शिवा, राणा प्रताप का देखो यह बलिदान है
यूँ ही नहीं कहा जाता है  भारत देश महान है । 

जन-जन में उत्साह भरा है मन में नव उल्लास है,
चूम चाँद को भारत ने अब रचा नया इतिहास है, 
बलि-बलि जाए जिस पर दुनिया विक्रम सह प्रज्ञान है
यूँ ही नहीं कहा जाता है भारत देश महान है। 

आर्यभट्ट की संतानें हम अपनी यह पहचान है ,
ब्रह्मगुप्त वाराहमिहिर का यही गणित विज्ञान है,
सफल हुआ अभियान हमारा विश्व करे गुणगान है, 
यूंँ ही नहीं कहा जाता है  भारत देश महान है। 

एक हैं हम सब एक रहेंगे यही हमारा नारा है
वंदे मातरम वंदे मातरम एक ही मंत्र हमारा है
अब जानेंगे राज़ सूर्य का अगला यह अभियान है, 
यूंँ ही नहीं कहा जाता है भारत देश महान है। 
***

* मीनू पाण्डेय 'नयन', भोपाल  
जन्म- १९ फरवरी १९७३, ललितपुर, उत्तर प्रदेश। 
आत्मजा- श्रीमती विद्या देवी मिश्रा - श्री रमेश चंद्र मिश्रा। 
जीवनसाथी- डॉ प्रभात पांडेय। 
शिक्षा- दो विषयों में पी-एच. डी.। 
प्रकाशित पुस्तकें- कविता संग्रह थोड़ा सा रुमानी हुआ जाए, आयाम जिंदगी के, बुंदेली बतरस। अंग्रेजी भाषा शिक्षण, शोध, पुस्तकालय विज्ञान, आइ पी आर की बीस पुस्तकें प्रकाशित, राज्य शिक्षा केंद्र मध्यप्रदेश की कक्षा आठवीं, नवमीं व दसवीं की अंग्रेजी की पुस्तकों में सहलेखिका।  
संपादन- आरिणी काव्य संग्रह, उन्मेष लघुकथा संग्रह, बुंदेली रामायन, साहित्य वारिधि, मीठी निंबौरी। 

संपर्क- ३९ सुरभि परिसर, अयोध्या बाय पास रोड, भोपाल ४६२०४१ , मध्य प्रदेश। 
चलभाष- ७९८७१ ४१०७३  ईमेल :meenunayan2019@gmail.com 
*

दिग्जयी इतिहास की गाया अनूठी, आज स्वर्णिम आखरों से लिख गयी है। 
है तिरंगे की विजय अब चाँद पर भी आज सारे विश्व को दे दिख गयी है...  

है तपस्या वरद पुत्र पुत्रियों की, दक्षिणी धन पर जो प्रज्ञान पहुँचा। 
गर्व करने भारतीय मेधाओं पर अब, इसरो से देखो चंद्रयान पहुँचा। 
२३ अगस्त २३ को शाम ६ पर, विक्रम से अपनी गौरवगाथा लिख गयी है...

विज्ञान, अनुसंधान से गहरा है नाता, नाप लीधी दूरी हमने वेद में ही। 
नवयुग के ऋषियों की सतत ये साधना है, जीत छिपी थी सिवान के उस खेद में ही। 
जय घोष विक्रम साराभाई का करें हम, सायकिल से ही चली वो विकास गाथा लिख गयी है...

अब तक तो विरले ही पहुँच पाये जहाँ तक, भारत के हिस्से में अब वो  इतिहास आया। 
अमेरिका, रूस और चायना से काफी आगे,  बड़के हमने ये स्वर्णिम पल है पाया। 
हारा जहाँ स्पूतनिक हम चल पडे हैं, जीत देखो कछुए की ही दिख गयी है.... 

दुनिया ने माखौल संस्कृति का खूब उड़ाया, ऊँचाई को अब तक कोई समझ न पाया। 
बाधाओं को बौना बना, कर्तव्य रत रह, अपने दमखम से महाअभियान पाया। 
 पवनपुत्र ने निगला या सूरज उस धरा पर, भविष्य की स्वर्णिम श्रृंखलाएँ दिख गयी है... 
***

मुकुल तिवारी डॉ., जबलपुर  

जन्म- ०१ जुलाई १९६१, जबलपुर। 
शिक्षा- एम.एस-सी., एम.एड., एम.ए., पीएच.डी., एल-एल.बी.। 
संप्रति- पूर्वप्राचार्य /विभगाध्यक्ष रसायन शास्त्र। 
प्रभारी एवं अवैतनिक अध्यापन कार्य तेरह वर्ष प्रयोजनमूलक हिंदी। 
प्रकाशित पुस्तकें- अतीत से आज प्रयोजन मूलक हिंदी, अवशिष्ट रसायन प्रदूषणऔर पर्यावरण, अनुसंधान चिंतन। 
आकाशवाणी जबलपुर से १९८३ से वार्ता, चिंतन, परिचर्चा,  जीवनी,कहानी लघु कथा का प्रसारण । 
संपर्क- पण्डित बालमुकुंद त्रिपाठी मार्ग , राम मन्दिर के पास, दीक्षितपुरा, जबलपुर, म.प्र.।  
चलभाष- ९१३११०९४१४ / व्हाट्स एप- .९४२४८३७५८५    
ई मेल- drmukultiwari7@ gmail.Com
*

चंद्रयान की गाथा

कभी सोचा था कि चाँद पर जाएँगे 
चाँद पर अपना भी बसेरा बनाएँगे 
यह सब पहले सपना ही तो था कि 
बसेरे में रह कर दूध मलाई खाएँगे 

चंद्रयान की  गाथा को हम सुनाएँगे 
चाँद पर भारत के वैज्ञानिक जाएँगे
चाँद की जानकारी भी मिल पाएगी
चाँद के बारे में हम भी बता पाएँगे

महिला वैज्ञानिक भी आगे आएँगी
चंद्रयान में अपनी कला दिखाएँगी
महिलाओं संग मिलती है सफलता
महिलायें भी आगे सफलता पाएँगीं 

चंद्रयान एक ने तीव्रआशा जगाई थी
चंद्रयान दो नें अपनी राह दिखाई थी
भारत का चंद्रयान तीन भी आगे रहा
चन्द्रयान की कलायें गुत्थी सूलझाएँगी 

सब मिलकर चंद्रयान की गाथा गाएँगे
भारत के सपनें को हम सफल बनाएँगे
चाँद की सब खबरें  चंद्रयान ले आ रहा
विश्व में चंद्रयान की गाथा को  सुनाएँगे
***

* मुहम्मद अदील मंसूरी



जन्म- १ जनवरी १९६५. 
आत्मज- मुहम्मद अमीन मंसूरी। 
शिक्षा- एम. ए. (उर्दू), बी. टी. सी.।
संप्रति- प्रधानाध्यापक उच्च प्राथमिक विद्यालय उत्तरधौना, चिनहट, लखनऊ, उत्तर प्रदेश। 
संपर्क- रशीदा अमीन मंज़िल, बंकी टाउन, बाराबंकी २२५००१ 
चलभाष- ९४१५१८९११९ 
चन्द्रयान भारत की शान

जलवा तो देखो चाँद पे है चन्द्रयान का
सर ऊँचा कर दिया मेरे हिंदोस्तान का

हिम्मत ना हारी तीसरी कोशिश का है सिला
डंका बजा है दुनिया में हिंदोस्तान का

कुछ वर्षों में दिखा दिया भारत ने ये कमाल
लोहा सभी ने मान लिया साइंसदान का

कम खर्च में बना दिया भारत ने चंद्रयान 
स्वागत किया है चाँद ने इस मेहमान का

अज़मत सदा ही बाक़ी रहे देश में अदील
मजरुह ना वक़ार हो हिनदोस्तान का


* रचना उनियाल ”अरविंद”, बेंगलुरु, कर्नाटक  


शिक्षा- स्नातकोत्तर (रसायन विज्ञा), बी.एड.। 
संप्रति- भूतपूर्व अध्यापिका। 
रुचि- गीत, घनाक्षरी। 
प्रकाशित कृतियाँ- गीत: प्रस्तुति एक प्रयास, अभिव्यक्ति अंकुरण, कल्पना मनोरथ, लाल- लाल मख़मल का थैला, संकल्प की धूप। ग़ज़ल: नोराइज़, क़दम दर क़दम। काव्य: भगीरथ की रचना, काव्यमेघ।  
घनाक्षरी: दमकते बदरवा, घनन - घनन घन। 
संपर्क- फ़्लैट नम्बर ४१०,  साई चरिता ग्रीन ओक्स अपार्टमेंट, होरामवु मेन रोड, होरामवु, बेंगलूरु,  कर्नाटका । 
मोबाइल-९९८६९२६७४५ ।   
*

गीत 
चन्द्रयान ने चूम लिया दक्षिण ध्रुव

भारत का परचम लहराया, चंद्र पटल के छोर ।
चंद्रयान ने  चूम लिया तब, दक्षिण ध्रुव का पोर।।

 उत्कंठाओं में वैज्ञानिक,खिल अन्वेषण- बौर।
धरती रहकर उत्सुक रहता,अंतरिक्ष का ठौर।।
अनुसंधानों की शाला में, कर्म क्षेत्र की डोर।
चंद्रयान ने  चूम लिया तब, दक्षिण ध्रुव का पोर।।

शशि उत्तर ध्रुव के प्रांगण में, अमेरिका वह रूस।
चीनी पांडा ने भी भेजा,चाँद सतह -फानूस।।
भारतीय वैज्ञानिक श्रम की,क्षमताओं की भोर।
चंद्रयान ने  चूम लिया तब, दक्षिण ध्रुव का पोर।।

 विक्रम ने पृथ्वी कक्षा को, किया घूम कर पार।
गया तीव्र गति से दिवपति पर ,उतरा दक्षिण द्वार।।
नव इतिहास रचा मंडल में ,मुदित विश्व मनमोर।
चंद्रयान ने  चूम लिया तब, दक्षिण ध्रुव का पोर।।

सीमित साधन सीमित सुविधा, में इसरो संस्थान।
कर्मठता से बुद्धिमता से, भेज दिया प्रज्ञान।।
झूम रहा हर भारत वासी,झूम तिरंगा घोर।
चंद्रयान ने  चूम लिया तब, दक्षिण ध्रुव का पोर।।

देश एकता अंकित करता , चंद्रयान यह तीन।
पूर्ण जगत में बजी हुई है, अब भारत की बीन।।
वेद शोधशाला से अर्जित ,ज्ञान करे नभ -शोर।
चंद्रयान ने  चूम लिया तब, दक्षिण ध्रुव का पोर।।

सफल हुये हम प्रथम बने हम, है चंदा से प्यार।
चाँद पहेली सुलझायेगा, इसरो का संसार।।
सभी ग्रहों को विजित  करेंगे, है संकल्पित जोर।
चंद्रयान ने  चूम लिया तब, दक्षिण ध्रुव का पोर।।
***

- रजनी शर्मा, रायपुर १४.०३.१९६७/९३०१८ ३६८११    हलबी 

* रश्मि मोयदे 'दीप्ति' 'रागिनी', उज्जैन, मध्यप्रदेश, निमाड़ी

जन्म- २४ मार्च १९५७, धमनौद, धार, मध्य प्रदेश। 
आत्मजा- स्व. राधिका शर्मा - स्व. एस. एल. शर्मा। 
जीवन साथी- श्री मनोहर जी मोयदे, रिटायर्ड EDP आफीसर, म. प्र. विद्युत मण्डल जबलपुर। 
शिक्षा- स्नातक (योग)।
संप्रति- छंदाचार्य,  योगाचार्य। 
प्रकाशित पुस्तक- श्री सत्यनारायण कथा (दोहा रूपान्तरण)। 
संपर्क- 
चलभाष- ९१३१८३३२९४ 
ई मेल- rashmi.moide@gmail.com 
 
*
चन्द्र यान का हम गुण गावां
निमाड़ी लोक भाषा
*
चन्द्र यान का हम गुण गावां।
आवो बइण न ढोल बजावां।।
चंदा मामो केतरो प्यारो।
यो तो अपणो राज दुलारो।।

भारत को प्रज्ञान निराळ्यों।
देख उना इतिहास बदलळ्यों।।
खूब सबइ को मान बढायों।
दुनिया भर अब नाव कमायों।।

भारत गर्वित उच्चो माथों।
अंतरिक्ष झंडो  लै  हाथों।।
यो अशोक को चिन्ह लगायो।
वैज्ञानिक सब मिली बणायो।।

रोवर की छाप सुहाणी।
अंकित हुई गया गुण गाणी।।
हाथ आरती दियों सजायो।
धरती कंकू टीको लगायो।।

केतरा बरस न को थो सपणो।
हुयी गयों पूरो अब अपणो।।
मिलो खास जस भारत माय ख।
खुस छै आसा पोर्या पाय ख।। 
(छंद- चौपाई)
***

* राजलक्ष्मी शिवहरे (डॉ.)

जन्म- २२ फरवरी १९४९, गोंदिया, महाराष्ट्र।  
आत्मजा- स्व.चन्द्रकला गुप्ता - स्व. शशिकुमार गुप्ता। 
जीवनसाथी- डॉ.आर.एल.शिवहरे। 
शिक्षा- एम.ए., पी-एच.डी.।
सम्प्रति -पूर्व शिक्षिका, पूर्व सदस्य हिंदी सलाहकार समिति संस्कृति मंत्रालय । 
प्रकाशित कृतियाँ-  २५। 
पत्रिका शब्द साधन द्वारा विशेषांक।
‌विदेश यात्रा- अमेरिका, लंदन, दुबई, श्रीलंका।
संपर्क- धन्वन्तरी नगर, जबलपुर, मध्य प्रदेश। 
चलभाष- ९९२६८ ७०१०३
*

चन्द्रयान - ३
 
इसरो ने इतिहास रच दिया,
चन्द्रमा पर यान उतार दिया।
विक्रम पर नजर टिकी थी 
किसी सुंदरी की तरह
धीमे-धीमे उतर रहा था
जब चन्द्रयान।
इसरो के वैज्ञानिक उछल पड़े
जब उनकी साधना‌ सफल हुई।
विश्व भारत की सफलता पर
बधाइयाँ दे रहा था।
रोवर ने पूछा विक्रम ‌से
क्या मैं घूमने जाऊँ?
और विक्रम ने कहा--
जाओ पर सम्पर्क में रहना।
यह सुन चमत्कृत हुआ संसार।
धन्य धन्य इसरो कहकर
हम शीश झुकाते हैं।
सफलता हमेशा साथ हो आपके
यह शुभकामनाएँ  देते हैं।
***

* राधेश्याम साहू  'शाम', जमनीपाली कोरबा छत्तीसगढ़ी

जन्म- ०३ जून १९७६, कोरबा (छत्तीसगढ़)। 
आत्मज- स्व. कमला देवी साहू - स्व. एस. एल. साहू। 
पत्नी- श्रीमती अन्नपूर्णा साहू। 
शिक्षा- एम. ए. (हिंदी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य)। 
संप्रति- शिक्षक। 
प्रकाशित पुस्तकें- उपन्यास: हमसाया, कहानी संग्रह: इलेवन शेड्स ऑफ लव। 
संपर्क- ४३ हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी सेमीपाली, पोस्ट जमनीपाली, कोरबा ४९५४५० छत्तीसगढ़। 
व्हाट्सएप- 8319745898
ईमेल- rssahu898@gmail.com
*
 
 कविता

चांद ममा दूरिहा के संगी, अब ये गोठ नंदागे

चंद्रयान चंदा म उतरिस, सब के मन हरसागे।
चांद ममा दूरिहा के संगी, अब ये गोठ नंदागे।

हमर विज्ञानी सबले आघू, रुकैं न ककरो रोके।
कम पैसा म बादर छूइन, कोन सकही अब टोके।
सपना सिरतोन होही जम्मो, भाग हमर हे जागे।
चांद ममा दूरिहा के संगी, अब ये गोठ नंदागे।।

प्रज्ञान देखाही चांद के माटी, पानी बूंदी के हाल।
दुनिया ल अब पाठ पढ़ाहीं, हमर विज्ञानी लाल।
बात होही जब चांद सुरुज के, हमर गोठ रही आगे।
चांद ममा दूरिहा के संगी, अब ये गोठ नंदागे।।

पाकिस्तान के छाती टूटगे, चीन के मन बगियाइस।
यूरोप के मन के मुँह फरागे, त जीव हमर जुड़ाइस।
जमो देश हर देखत रइगे, रूस के रॉकेट चिथागे।
चांद ममा दूरिहा के संगी, अब ये गोठ नंदागे।।

चंदा ले अब सुरुज ती जाबो, फिकर करो झन भैया।
बादर म अब हमर राज हे, नई हे कोनो रोकैया।
हमर इसरो के उदिम देख के, बैरी के आँखी मुंदागे।
चांद ममा दूरिहा के संगी, अब ये गोठ नंदागे।।

चंद्रयान चंदा म उतरिस, सब के मन हरसागे।
चांद ममा दूरिहा के संगी, अब ये गोठ नंदागे।।
***

* रानी दाधीच, जयपुर २५.०४.१९८०/८३६७८ ८४२०० 



***

* रामबली मिश्र डॉ. वाराणसी उत्तर प्रदेश   

जन्म- ३  जुलाई १९४९, वाराणसी।  
आत्मज- श्रीमती सूर्यकली देवी - श्री लक्ष्मी नारायण मिश्र।  
शिक्षा-  पी-एच. डी.। 
संप्रति- एसोसिएट प्रोफेसर (नि0)। 
संपर्क- ग्राम पोस्ट हरिहरपुर, वाराणसी-221405
वाट्स ऐप- ९८३८४५३८०१ 
ईमेल- rsmbalimishra664@gmaildotcom
*
 चंद्र विजय अभियान

चन्द्र विजय अभियान निराला।
भारतीय वैज्ञानिक ज्वाला।।
देख लिया चंदा की रचना।
अति अद्भुत विचित्र संरचना।।

अंधेरा है उजियारा भी।
कौतुहल सा अति न्यारा भी।।
उपजाऊ यह भूमि नहीं है।
जीवन सम्भव शोध यहीं है।।

यह वैज्ञानिक की जिज्ञासा।
'इसरो' की य़ह बुद्धि पिपासा।।
मिला ज्ञान भंडार यहाँ से।
है सम्भाव्य अपार यहाँ से।।

वैज्ञानिक को धन्यवाद दो।
भारतीय को साधुवाद दो।।
सकल विश्व नतमस्तक अब है।
शोध -मूल्य का दस्तक अब है।।
***

- रामस्वरूप साहू, कल्याण ०१.०६.१९४९/९३२३५ ३८०१० 
- रीना प्रताप सिंह, बिजनौर २६.०३.१९७८/९४१०४ ३२५७४ 

* रीना प्रताप सिंह डॉ., बिजनौर, उत्तर प्रदेश  

जन्म- २६.०३.१९७८। 
शिक्षा- एम. ए. हिंदी, पी-एच. डी. महात्मा ज्योति बा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय। 
प्रकाशित पुस्तकें- डॉ। अंबा शंकर नागर का हिंदी भाषा और साहित्य में योगदान,  भारतीय शिक्षा प्रणाली, हिंदी साहित्य का उद्भव एवंविकास, सामान्य हिंदी (पाठ्य पुस्तक)। 
चलभाष- ९४१०४ ३२५७४
*




चंद्रयान-३ की सफलता पर
*
स्वाभिमान से झूम रहा है, प्यारा हिंदुस्तान। 
चंदा मामा के घर पहुँचा, नन्हा शिशु प्रज्ञान।। 

दृढ़ इच्छा, सकंल्प-शक्ति से, पाया दुष्कर लक्ष्य। 
धरा-गगन के पार चंद्र पर, उतरा सकुशल यान।। 

सफल साधना हुई हमारी, राम-कृष्ण-अनुकंपा 
सकल विश्व दे रहा बधाई, भारत देश महान।। 

आजादी का अमृत महोत्सव, अद्भतु हैउत्कर्ष। 
गँजू रहा सारी दनिुनिया में, भारत का जयगान।। 

चंद्रयान को मिली सफलता, है कोशिश की जीत!
ध्येय हमारा जन-मंगल है, मानवता कल्याण।। 

देख रही चुप महाशक्तियाँ, भारत की उपलब्धि। 
असमजं स में हुए निशाचर, विफल द्वेष की तान।। 

सोमदेव से मंगल तक का, किया  विजय सकंल्प। 
सूर्यदेव के चरण-कमल तक, नहीं रुके अभियान।। 

भारत जग का मकुुट बनेगा, तनिक नहीं अब देर। 
अखिल विश्व मिल विहँस करेगा, भारत का गुण गान!!
***

* रेखा श्रीवास्तव प्रो., अमेठी 

जन्म- ११-९-१९६०, सुल्तानपुर उ.प्र.
शिक्षा- एम.ए. (हिंदी), बी.एड., डी.फिल.
संप्रति- पूर्व प्राचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय।
प्रकाशित कृति- माखन लाल चतुर्वेदी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, दिनकर व्यक्तित्व एवं कृतित्व।
हिंदी सॉनेट सलिला में सहभागी।  
संयोजक विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान अमेठी ईकाई। 
संपर्क- कटरा, लालगंज थाने के सामने, 
वार्ड १ , गौरीगंज, अमेठी २२९४०९ ।  
चलभाष- ९४५०७७४२०२ । 
ईमेल- igpgamethi9@gmail.com।   
*

चंद्रारोहण

धरा देखो झूम रही,
चांद कैसा चूम रही,
शुभ घड़ी आई अब,
खुशियां मनाइए ।।

विक्रम प्रज्ञान दोनों,
दक्षिण के चारों कोनों,
घूम-घूम चित्र भेजें,
सच जान जाइए ।।

जल वायु ढूंढ रहे,
खनिज भी खोज रहे,
इसरो की मेहनत,
झंडा फहराइए ।।

ऊँची है उड़ान भरी,
देख-देख धरा हरा,
हमनें भी ठान लिया,
सब जान जाइए।।

चारों ओर धूम मची,
भारत लकीर खिंची,
रोवर टहल रहा,
गीत नया गाइए ।।
***

चंद्रारोहण

अरे रामा सावन चूमे चांद
घड़ी शुभ आई रे हरी ।।
कई बरस की साधना रामा
इसरो टीम त्याग अभिरामा
अरे रामा तीन लोक सुखदाई
शुभ घड़ी आई रे हरी।।

चीन रूस की हवा है निकली,
पाकिस्तान को  मिचली रामा
अरे रामा हैरत में सब लोग
घड़ी शुभ आई रे हरी।।

ढफली ढोल नगाड़े बाजे
वैज्ञानिकों ने इसरो  रामा
अरे रामा देश में खुशियां छाई
घड़ी शुभ आई रे हरी।।

सबसे पहले भारत पहुंचा
दक्षिण ध्रुव का खाका खींचा
अरे रामा थर-थर कांपे चंदा
ओढ़ाया तिरंगा रे हरी।।
(तर्ज: लोकगीत कजरी)
*

कुंडलिया 

पहला खोजी विश्व का, अनुपम भारत देश।
सतत चल रही साधना, शांत सुखद परिवेश।।
शांत सुखद परिवेश, चांद को भू ने  चूमा।
देख सफल तकनीक, गर्व से जन गण  झूमा।।
दक्षिण ध्रुव पर देख, तिरंगा दुश्मन दहला।
इसरो करे कमाल, गाड़ कार झण्डा पहला।।

चाँद पर भारत

चंद्र लोक भारत का डंका। मन में अब कछु रही न शंका।।
 स‌तत प्रयास सफलता पाई। अमर हो गए साराभाई ।।

कमाल किया है तकनीकी ने। सतीश धवन की रणनीति ने।।
चाँद धरा परचम लहराया। जन-गण-मन फिर सबने गाया।।

भारत ने चंदा को चूमा। सारा देश खुशी से झूमा।।
चीन रूस ने लोहा माना। पाकिस्तान हकीकत जाना।।

दक्षिण ध्रुव पहुँचा है पहले। विश्व चकित चाहे कुछ कह ले ।।
हमें चित्र प्रज्ञान भेजता।‌ पल-पल विस्मय को सहेजता ।।

इसरो को है खूब बधाई। उनकी मेहनत नव रंग लाई।।
निष्ठा लगन और चतुराई। जग भारत की महिमा गाई।।

बहनों की थी भूमिका अहम। टूट गया दुश्मनों का वहम।।

भारत की यह सफलता, हमको दे संकेत ।।
सूरज से भी हम मिले, रेखा यह अभिप्रेत ।।
(छंद: चौपाई, दोहा)
***

* रेणु श्रीवास्तव डॉ. , भोपाल  बुंदेली

जन्म - १ अगस्त १९६३, जिला निवाड़ी ।  
आत्मजा- श्रीमती  सावित्री देवी श्रीवास्तव - श्री महेश्वरी प्रसाद श्रीवास्तव।  
जीवन साथी -श्री सतगुरु दयाल खरे।  
शिक्षा- एम. ए., पी-एच. डी., बी. एड. (बुन्देली बोली में विशेष योग्यता)।  
संप्रति- शिक्षिका।   
प्रकाशित पुस्तकें- ठाकुर नवलसिंह प्रधान कृत रामचंद्र विलास में रामरास, बुन्देली बायनों, बाल मनुहार।  
संपर्क- ८५ कृष्णा कैम्पस, अशोका गार्डन, निकट संगम टेंट हाउस, हिनौतिया, ८० फीट रोड,  भोपाल म. प्र.। 
चलभाष- ८९८९०९८०१५  ई मेल- renukhare8@gmail.com
*

चन्दा मम्मा      (बुंदेली) 

भारत माता आज जीत गईं सुनकें नोनो लग रओ
चन्दा मम्मा पे जो प्यारो चन्द्रयान उतर गओ

धन्नवाद उन ईसुर खों दें जिनने सफल बनाओ
इसरो के जे जनी मांस की मेनत ने रंग लाओ

अब ना चंदा मम्मा खों कोपरा  में कोउ देखिओ
उते घूमबे अब  लड़ेर दद्दा, कक्का संग जइओ

आज तिरंगा झंडा जो अंतरिक्ष में  लहरा रओ है
लहर लहर की शान सबई देशन खों बगरा रओ है

एस  सोमनाथ जू ने जो विक्रम उतारो प्यारो
ओइ सोम में विक्रम से निकरो प्रज्ञान दुलारो

ऐसी कृपा करी सोमेश्वर सोम भूमि पे आज
सोमनाथ अध्यक्ष बने फिर सोम पे बांधो ताज

विक्रम जो हल्को  सो  प्यारो  हरां हरां से आओ
चंदा मम्मा खों वो भानेज  मन में नोनो भाओ

चंदा मम्मा पूनो में जब पूरे गोल देखात
उनकी धरती पे होली , राखी जल्दी आत

विक्रम और प्रज्ञान खेलहैं मम्मा तोरे अंगना
धरती बेन खों राखी बंधवावे में दइयो कंगना 

देख सफलता चंद्रयान की मोदी जू हर्षा रये, 
आज देश के सबरे वैज्ञानिक भज्जा खुश हो रये।             

प्यारा रोबर
*
चंदामामा राह ताकते बैठे थे बरसों से
धरती बहना की राखी ना बांधी थी अरसों से

जब बिक्रम सा प्यारा प्यारा भांजा आया
चंदामामा का ह्रदय तभी तो बर्षों में हर्षाया

हुई सोम पर विजय सोमेश्वर की कृपा पाई
सोमनाथ जी को भारत माँ देती आज बधाई
  
सुन मयंक मामा जी दोगे अच्छा दाना पानी
यहीं बसेंगे आकर के फिर सारे हिन्दुस्तानी
  
बहन चकोरी को लाकर के मामा से मिलवाऊं
कुमुद कुमुदिनी की सुवास से चंद्रलोक महकाऊं
  
पूनम फिर तो रोज रहेगी चंद्र लोक पर मामा
होली और  रक्षाबंधन फिर जल्दी जल्दी आना
   
बिक्रम और प्रज्ञान सदा खेलेंगे तेरे अंगना
धरा बहन को देना राखी बंधवाने में कंगना
   
धरा रह गया  सब देशों का चन्द्र विजय का नारा
जब शिव-शक्ति बिन्दु पर उतरा विक्रम प्यारा प्यारा
   
समाचार अब भेजेगा धरती पर रोबर मानो
सारी धरती चन्द्रलोक की पल पल में पहचानो
   
सफल हुआ है मिशन देख मोदी जी भी हर्षाये
'रेणु' कहे भारत के वैज्ञानिक सब आगे आए। 
***
                              
* रौशनी पोखरियाल, चमोली, उत्तराखंड, गढ़वाली  

जन्म- १३ फरवरी १९७७, ग्राम कमेड़ा (गौचर), जिला-चमोली । 
आत्मजा- -श्रीमती माधुरी देवी - स्व०श्री भवानी दत्त मैठाणी। 
जीवन साथी- श्री अनिल पोखरियाल। 
शिक्षा- एम. ए.  हिंदी। 
अभिरुचि- हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु जन-जागरूकता अभियान, नुक्कड़ नाटक। 
प्रकाशित पुस्तकें- छंदकाव्य: पृथ्वी सगंधा, कहानी संग्रह: जीवन की पगडंडियाँ। 
संपर्क- द्वारा- श्री अनिल पोखरियाल, बद्रीश ट्रेडिंग कंपनी, मेन मार्केट, बद्रीनाथ मार्ग, चमोली, उत्तराखंड २४६४२१४ । 
- ग्राम बेडुला,पो.आ.पलेठी, जिला -चमोली उत्तराखंड। 
चलभाष- ७३०२६ ०६९३२

वंदन-अभिनंदन हम करदा  
गढ़वाली 
वंदन-अभिनंदन हम करदा, इसरो का अभियान तें।
सेवा स्वीकारा भै -बैण्यों, भ्येजी चन्द्रयान तें।।

शुभ दिन-घड़ि व्याखुली बगत तब, वार भि बुद्धवार छौ।
दिन तेईस अर् मास अगस्त, यख मिशन तैयार छौ।
टक्क- लगे  तें, सारी  दुनिया, हमूं पर छै  द्येखणी।
द्येखी  के सब दंग रै गैन, हम तें छै  परेखणी।

वंदन-अभिनंदन हम करदा, देश की  पछ्याण तें।
अंतरिक्ष मा गाढ़ि तिरंगा, भ्येजी चन्द्रयान तें।।

अब तक नी पोछीं छौ क्वी भी, पोंछ्या,हम ध्रुव दक्षिणी ।
शिव-शक्ति यख नाम धैर्याली, दिशा भली सुलक्षिणी।
विक्रम,रोवर-प्रज्ञान जुट्यां छा, यख ता खोजबीन मां।
रंभा,चास्टे,इल्सा लेजर, छां ज्वोन की जमीन मां।

वंदन-अभिनंदन हम करदा, इसरो की ये शान तें।
अमिट छाप इतिहास रचायी, भ्येजी चन्द्रयान तें।।

ज्वोन-जुन्याली,जीवन-पाणी, ख्वोजों की तलाश छै।
वैज्ञानिक भागीरथियों की, सदियों बटिने आस छै।
भ्येजणू च प्रज्ञान धरती मा, चन्द्रलोक का चित्र तें।
खूब जुटोणा छन जानकारी, खिचणा छाया चित्र तें।

वंदन-अभिनंदन हम करदा, इसरो काअभियान तें।
सेवा - स्वीकारा भै-बैण्यों,  भ्येजी चन्द्रयान  तें।।
***

वरुण तिवारी, गुना २०.०९.२००१/८८७१८ ३९८१८ 


जन्म- २२ सितंबर २००१, कैलारस ,जिला मुरैना (म. प्र.)।  
आत्मज- श्रीमती सुषमा तिवारी - श्री विजय कुमार तिवारी।  
शिक्षा- बी. ए. अंग्रेजी, बी. एड.। 
अभिरुचि- साहित्य सृजन। 
संपर्क- श्री विजय कुमार तिवारी, खिन्नी वाली दरगाह के पीछे, राधा कॉलोनी, गुना ४७३००१ (म. प्र.)।  
चलभाष- ८८७१८३९८१८, ९३९९५२११२२  
ई-मेल- varuntiwari5004@gmail.com

परचम अब फहराया है 

सारा भाई के सपने को, सच करके दिखलाया है। 
भारत ने भी विश्व में अपना, परचम अब फहराया है।। 

सल्फर आयरन क्रोमियम ढूँढके, चाँद पर लोहा मनवाया है। 
एल्युमीनियम सिलिकॉन ओ-टू ने, संघर्ष सफल बनाया है।। 

सन् बासठ में युद्ध के बाद जब, विपदा गहरी आन पड़ी थी। 
तब भी सर ऊँचा था और, नज़रें ब्रह्मांड में गड़ी थीं।।

तिरेसठ में "अपाचे", पिचहत्तर में "आर्यभट्ट", उद सफल हुए। 
अस्सी में "रोहिणी", चौदह में "मंगल"नव कीर्ति छुए।। 

वैज्ञानिक गण सारा भाई, मेनन, धवन, राव अरु  रंगन। 
मिले बाद में  नैयर, कृष्णन्  किरण, सोमनाथ औ' सिवन।। 

दूर दृष्टि और सघन परिश्रम, इनके बल प्रतिफल पाया है। 
इसरो ने भारत से अपना, चंद्रयान भिजवाया है।। 

चंद्रयान तीन नाम है जिसका, चंद्रमा ने भी अपनाया है। 
तभी अछूते दक्षिण क्षेत्र पर, चंद्र ने उसे बैठाया है।।

चंद्रयान दो ने भी तीन के, आगमन का जश्न मनाया है। 
छाप रहेगी सदा हिंद की, यह संदेश पहुँचाया है।।
***

* वसुधा वर्मा, ठाणे ०५.०९.१९५७/९८३३२ ३२३९६


*** 

विक्रम जीत सचदेव, पंजाबी  

 

छोटे होंदयां सानूँ  चन्न, मामे वर्गा प्यारा सी
मम्मी सानू प्यार सी करदी, मामा लाड लडादा सी
चाँदी वर्गा सोहणा चेहरा, मामेदा सानू लगदा सी
मामा वी ते चंदा वी, रोज कहानियाँ विच मिलदा सी
उमरां लगिं गिया वड्डे होए, पर याद चन्न दी ओहि सी
गोल गोल दधू वर्गा चिट्टा, हसदा सानू ताकदा सी
सफु नेवगंर मिट्ठा लग्दा, जदों वी उह दि सदा सी
मिलके उसनु करिए प्यार, गलवकड़ी नू दिल करदा सी
चदं न वरगे चन्न न, लाड़ू, करन नूजी साडा बड़ा करदा सी
पर उह साढ़े हाथ न आदाँ, बस दूरों दूरों तक देसी
सालां मगरों फेर चन्न ला, असी प्यार दा हाथ वधाया है
यादा दी अज खोल के बक्कुल, इक मेल गजब दा होया है
देश साढ़े ने आगे वध के, जाके चन्न नूजफ़्फ़ी पाई है
चन्दर्या न नेजाके उथे, अज्ज प्यार दी गलवकड़ी पाई है
युगांदी मिट्टी झाड़ के, विज्ञान दा इक कीर्तिमान बनाया है
देश मेरे ने दुनिया विच इक नाम है कीता, परचम इक लहराया है
बचपन साडा वापस आया, दिल विच खूशियाँ छाइयाँ ने
साला मगरों फेर चन्न नाल, प्यार दा झुट्टा लाया है
चंद्रयान ने दुनिया विच सिर साडा फखर नाल उठाया है

***

विजय लक्ष्मी 'विभा', प्रयागराज  बुंदेली 



जन्म- २५ अगस्त १९४६, 
संपर्क- साहित्य सदन, १४९ जी/२ , चकिया, प्रयागराज २११०१६ । 
चलभाष- ७३५५६ ४८७६७
ईमेल: vijailakshmivibha@gmail.com
*
पद  बुंदेली
"मैया मैं तो चंद खिलौना लैहों ।"
बालक समझ छिपाई नभ में, सोची, कैसे जैहों ।।
समझ न पाई तू कान्हा क , लीला अब समझैहों।                                                                                                                                        देख धरा से ऊपर जब मैं, चन्द्रयान उड़ैहों ।।
पल में अपना खेल खिलौना, वापस लैकें अइहों । 
दुर्लभ वस्तु माँग कें मैया, तोकों अब न लजैहों ।।  
हुआ सयाना तोरा कान्हा, अब न तोय सतैहों । 
मैया माँग कन्हैया से तू , सब कछु लाकें दैहों।।
*
तुमने तो कल्पना भी साकार कर दिखाई,
इसरो तुम्हें बधाई, इसरो तुम्हें बधाई।
जिस चाँद को पाने का हठ कान्ह दिखाते थे,
हम थाल में पानी भर, प्रतिबिम्ब बनाते थे,
झूठी कथा कहानी पर सत्य की दुहाई ।
साकार हुआ सपना, वह चाँद हुआ अपना,
अब घर वहाँ बसाओ,कहने में क्या झिझकना,
तारे भी मनुज बन कर इक दिन करें पहुनाई।
हम गर्व करें तुम पर, पर व्यक्त न कर पायें,
सब शब्द पड़ें छोटे, वे चाँद में दिप जायें,
जीती है तुमने भव की सबसे कठिन लड़ाई।
जब चन्द्रयान तुमने, है चांद पर उतारा,
तो सूर्ययान ने भी, इक आस  को सँवारा 
तुमने बड़े जतन से भारत की भू बढ़ाई।
गायेंगे हम यहाँ भी, गायेंगे हम वहाँ भी
नित हमसे स्वर मिला कर, गायेगा ये जहां भी,
भारत की यश पताका हमने कहान फहराई।
***

विजय शंकर विशाल 'विशेष', बसना, महासमुंद छत्तीसगढ़संबलपुरी 

जन्म- २३ मई १९७४। 
आत्मज- श्रीमती सिंधुलता विशाल - श्री रविशंकर विशाल , सेवानिवृत्त प्रधान पाठक।
जीवन संगिनी- श्रीमती निरुपमा विशाल, शासकीय शिक्षिका।
शिक्षा- एम. ए. हिंदी, संस्कृत साहित्य, बी.टी.आई.। 
संप्रति- - सेवानिवृत्त प्रधान पाठक, भूकेल, बसना, छतीसगढ़।
प्रकाशित पुस्तक- खंड काव्य सदासुहागन के फूल। 
संपर्क- ए. एच. एस. १६४, साई विहार,  वार्ड क्र. ११, सरस्वती शिशु मंदिर के पीछे, बसना, जिला  महासमुंद ४९३५५४ छत्तीसगढ़। 
चलभाष- ९६६९४ ७१२७४ ई मेल- vijayvishal23@gmail.com
 *

"सफल हेला चंद्रयान ३" 
(संबलपुरी)
*
सफल हेला चंद्रयान , संसार करुच्छे चर्चा।
जह ने लागीं पैसा पतर , जह ने हई खर्चा ।।१।।
2019 थीं , फेल हेलूं  बली ,केते हंसी उड़ाले।
2023 थीं लेदा मारला भलिया सभे जबाब पाएले ।।२।।
भाऊंर भाउंर किंदराई करी फीकी देले बिक्रम लैंडर।
जन्ह मामू र दक्षिण द्वारें उतरिला प्रज्ञान रोवर।।३।।
के सिवान जेन सपना देखि थीले पूरा करले सोमनाथ।
सतीश धवन स्टेशन र कमाल देख , इसरो विज्ञानिक मानकर हांथ।।४।।
चउद दिनर जेनअ दिन हेसी चऊद दिनर राएत।
केते खनिज धातु खुजी आनबे , धन्य हेबा मुनुस जाएत।।५।।
अजणा थिला केते चंद्र रहस्य , अजणा केते घात।
केड़े सुंदर पुहुंची गले, दक्षिण द्वारें  कले साक्षात ।।६।।
केते शत्रु देश जली उठुछन , आमर टेक्निक देखी आजी।
दुनिया जाक देखअ, आमर डंका गला न बाजी।।७।।
आगके आगके आमे थीमा , संसार थीबा पछके।
केते ग्रह नक्षत्र जानीपारमा , जुबा माने  आसअ आग्के।।८।।
देख पीले उन्नति देख , आमर भारत देसर।
आंखी चीरी चमत्कार देखअ , आमर केडे कसर ।।९।।
सफल हेला सबु तपस्या , चंद्ररोहण अभियान।
विज्ञानीक माने जस बढ़ाले, भारतर मान सम्मान।।१०।। 

***

                चंद्रयान - ३ 

एक अप्रकाशित प्रकाश पुंज चंद्र , 
जो सारे जग की शान है ।
धरित्री का भरत सा भाई मानो , 
सुंदरता का अद्भुत प्रतिमान है ।।१।।

जिसके दक्षिण आनन में कभी ,
न कोई आता न जाता था ।
इसरो के वैज्ञानिकों ने दी दस्तक ,
जिसे विश्व दुर्लभ मानता था ।।२।।

चला विक्रम बजरंगी प्रज्ञान लेकर, 
ज्यों माता सीता खोजने चला हो।
खनिज ऑक्सीजन नवजीवन ढूंढने ,
जैसे इसरो के अनुकूल ढला हो ।।३।। 

वह भी दिन आया जब हमने , 
शशि के दक्षिण द्वार को चूमा था।
केवल भारत वर्ष नही वरन ,
वसुधा का कण कण झूमा था।।४।।

शत बार नमन ! हे इसरो के चंद्रजयी, 
अनुसंधान नीत ग्रह नक्षत्रों पर हो।
मां भारती का वैभव रहे अमर ,
और अखंड भारत हो कालजयी।।५।।

***

* विनोद जैन 'वाग्वर' सागवाड़ा, डूंगरपुर, राजस्थान  १७.०९.१९६८/९६४९९ ७८९८१

जन्म-१७ सितंबर १९६८, ठाकरवाड़ा, डूंगरपुर राजस्थान। 
आत्मज- श्रीमती सावित्री जैन - स्व.  शांति लाल जैन। 
जीवन साथी- श्रीमती माया जैन 'वाग्वर'। 
शिक्षा- एम. ए. , बी. एड.।   
संप्रति- सहायक विकास अधिकारी, पंचायती राज, राजस्थान। 
           संयोजक विश्ववाणी हिंदी संस्थान ईकाई सागवाड़ा। 
प्रकाशित कृति- वाग्वर दोहा सतसई, दोहा दोहा नर्मदा व हिंदी सॉनेट सलिला में सहभागी।   
संपर्क- ए ३७०, पुनर्वास कोलोनी,.सागवाड़ा ,  जिला डूंगरपुर राजस्थान
चलभाष- ९६४९९७८९८१ । 
ई मेल- vinodkumar1976vinod@gmail.com
*

आप ढूँढ रहे शहर में,  मेरी नजर चन्द्रयान पर,
कुछ तो बात है जहर में, जो काटता विषपान गर ।।

पहले जो खोदी खाई, अब उसे ही भर रहा हूँँ, 
मै नफरत की भरपाई, अब प्यार से कर रहा हूँ ।।

आसमान से जमीन तक, परचम अब लहराया है,
माँ के लाल ने छोर तक, झण्डे को फहराया है ।।

गुणगान हो रहा जग में ।
धन, विज्ञान, मद, यौवन में ।।
*
जश्न है ये विश्व विजय का, चन्दा पर फहराया परचम,
चन्द्रमा पर चन्द्रयान का, चमत्कृत हुआ देख दमखम ।।

इसरो  का करते  बहुमान, गुणगान है ये निष्ठा की, 
जगत दे रहा है सम्मान  भारत की शर्मिष्ठा की ।।

मेहनत सबकी रंग लाई,, सफल हुआ शशांक अभियान। 
ज्ञान की पताका फहराई, देखी जग ने अपनी  शान।

गौरवान्वित राष्ट्र  हमारा।
विजयी भव तिरंगा प्यारा।।
*
माँ के सिर पर बैठा बच्चा, सोच रहा मै जाऊँ चन्दा, 
और कोई नहीं वह बच्चा, राका ही निकला वह बन्दा ।।

सदियों से जो सोच चल रही, हम सब भी ऊपर जायेंगे,
साकार हुई सोच चल रही, अब घर चाँद पर बनायेंगे ।।

तिरंगे का जगत में परचम, अपने ज्ञान से बढायेंगे,
जगत गुरु सा समाया दमखम, धरती पर शुचिता लायेंगे ।।

आओ हम मिल मान बढाये ।
 जगद् गुरु बन जगत मे छाये ।।
***

* विपिन श्रीवास्तव इं., दिल्ली    बुन्देली 



जन्म- २ सितंबर १९८० जबलपुर, मध्य प्रदेश। 
आत्मज- स्व. शांति देवी - स्व.  नरेन्द्र श्रीवास्तव। 
जीवनसाथी- श्रीमती शिवांगी श्रीवास्तव। 
शिक्षा : बी. ई.  यांत्रिकी। 
संपर्क- सी. ओ. डी. कॉलोनी, सुहागी, जबलपुर,मध्य प्रदेश ४८२००४ । 
चलभाष- ९८२६२ ७६३६४
ईमेल :nipivshrivastava@gmail.com 
*
मात धरा की राखी लेकर, चला यान मामा के घर 
स्वप्न अधूरे, करने पूरे, उतरा है चंद्र यान शशि पर
कठिन तपस्या, मेहनत से, ये मुकाम हमने पाया 
मां की लोरी, मामा का घर, देश गीत हमने गाया 
ताक रहे सदियों से हम, अब देखेंगे तुमको छूकर 
मात धरा की राखी लेकर....
इक सपना साकार हुआ, दक्षिण ध्रुव पर लैंड किया
लक्ष्यों का विस्तार हुआ, जब लैंडर, रोवर ट्रेंड किया
इसरो चमक रहा चंदा सा, दुनिया की पहली रो पर
मात धरा की राखी लेकर....
चंदा पर पहचान बना ली, अब सूरज पर जाना है 
ना रुकना है, ना थकना है, बस मन में ये ठाना है
भारत का यशगान रहे, इस धरती पर उस अंबर पर
मात धरा की राखी लेकर....
***

विष्णु शास्त्री 'सरल' डॉ., चंपावत उत्तराखंड ०८.०५.१९५७/

जन्मतिथि - ०८ मई  १९५७। 
आत्मज- स्मृतिशेष मनु देवी- स्मृतिशेष जीवानंद भट्ट। 
जीवन साथी-  स्मृतिशेष पुष्पा भट्ट। 
शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी, संस्कृत), एल.टी., पी- एच.डी. (हिन्दी), साहित्याचार्य, साहित्यरत्न, हिन्दी प्रभाकर।      संप्रति - सेवानिवृत्त प्रवक्ता (हिन्दी) उत्तराखण्ड राज्य शिक्षा विभाग।  
प्रकाशित पुस्तकें- बाल काव्य: बच्चों का संसार, कोमल किसलय, खंड काव्य: सपने, बाल कहानी: सुनो कहानी, हाइकु मंजरी, कुमाऊँनी बालकाव्य: चेलि।   
संपर्क- सिद्धायन, भैरवाँ, चम्पावत २६२५२३  उत्तराखण्ड 
चलभाष- ९४११३ ४७९३४ 
ई- मेल : vsaral2018@gmail.com
*



              चंद्रयान इस तीन से

सफल हुआ अभियान है, जन - मानस में हर्ष।
उन्नति करता जा रहा, अपना भारतवर्ष।।

पहुँच गया है चाँद पर, जब से विक्रम यान।
तब से बनी स्वदेश की, एक अलग पहचान।।

बढ़ा विदेशों में स्वत:, भारत का सम्मान।
मान रहे सब लोग हैं, मन से इसे महान।।

याद रखेगा विश्व अब, ' इसरो ' का यह काम।
जिसके अथक प्रयास से, सुखद रहा परिणाम।।

बना सहायक खोज में, भारत का ' प्रज्ञान '।
सतह चाँद की है दिखी, पुष्ट हुआ अनुमान।।

दक्षिण के ध्रुव पर गया, जब चंदा के यान।
लहक उठी है देश की, तब निश्चित ही शान।।

चंद्रयान इस तीन से, भारत हुआ निहाल।
किया वस्तुत: यान ने, है इस बार कमाल।।

भूलेगा ' शिवशक्ति ' का, कभी न कोई नाम।
बन जाएगा तीर्थ सा, पावनतम वह धाम।।

कदम बढ़ें विज्ञान के, ऐसे ही दिन - रात।
नहीं प्रकृति को लग सके, लेशमात्र आघात।।

वैज्ञानिक समुदाय का, है हार्दिक आभार।
सादर नतमस्तक नमन, हो मेरा स्वीकार।।
(छंद: दोहा) 
***

* वीणा कुमारी नंदिनी, जमशेदपुर  



***

* वैष्णो खत्री 'वेदिका', जबलपुर १९.०३.१९५८



जन्म- १९ मार्च १९५८ जबलपुर।
आत्मजा- स्व. श्रीमती ईश्वरी देवी - स्व. श्री रामचंद्र शर्मा। 
शिक्षा- एम. ए. (हिंदी साहित्य, समाज शास्त्र),  बी. एड.। 
संप्रति- सेवा निवृत शिक्षिका केन्द्रीय विद्यालय।
प्रकाशित पुस्तकें- काव्य-संग्रह: अनछुई पंखुड़ियाँ, आत्म ध्वनि, प्रखर अनुभूति, अविरल प्रवाह, आराध्या, अभिव्यंजना, वनज मंजुषा , नगरों के झरोखे से, भारत की अनुगूँज , काव्य लोक, छन्द सागर, नन्हीं किरणें।
कहानी संग्रह- कल्पनाओं के गलियारे से, जीवन के रंग ।
संपर्क- द्वारा: धीरज मिनोचा, अशोक नगर, जैन मंदिर के पीछे, अधारताल, जबलपुर ४८२००४ मध्य प्रदेश। 
चलभाष- /७९९९९ ६१८६० 
ईमेल- Khatrivaishno@gmail.com 
* 
जय चंद्रयान और विज्ञान

चंद्रयान तीन लॉन्च होगा, पता चला है आज। 
भारत की गरिमा पर हमको, आज बड़ा है नाज।

चंद्रयान के अंतरिक्ष में, जाने की है आस।
युक्ति अनूठी का है संग्रह, इस प्रबन्ध के पास। 

आज नया इतिहास बनेगा, उन्नत होगा भाल।
उपलब्धि एक और जुड़ेगी, भारत में इस साल।

वायु रसायन मृदा नीर का, जानेंगे हम राज।
श्रीहरिकोटा सेंटर वाले, यही करेंगे काज।

इसरो के सारे वैज्ञानिक, अभियंता भी साथ।
रोवर चँदा पर है होगा, यह भी उनके हाथ।

मर्म प्रकाशित करना नभ का, यही हमारी चाह।
हिमकर पर जब कदम पड़ेंगे, विश्व करेगा वाह।

सॉफ्ट लैंडिंग यहाँ सुरक्षित, सब का यही प्रयास।
चाँद तक पहुँचेंगे हम तो, पूरा है विश्वास।

चन्द्रयान के सँग-सँग हम भी, उड़ने को हैं धीर।
चाँद सतह पर पहुँच तिरंगा, लहरेगा प्राचीर।।
(सरसी छन्द)
***

- वृंदावन राय 'सरल' इं., सागर मध्य प्रदेश  ०३.०६.१९५१/७८६९२ १८५२५




सफल हुआ अभियान हमारा 
*
भारत जग का बना सहारा।
सफल हुआ अभियान हमारा।।
चंद्रयान से शान बढ़ी है।
भारत माँ की आन बढ़ी है।। 
दक्षिण ध्रुव परजा पहुँचे हम ।
लहर तिरंगा दिखले दम।।
जग में चमका नाम हमारा।
भारत जग का बना सहारा।। 
पिक्चर आने लगी चाँद से।
दूर हुई हर कमी चाँद से।।
पानी का होना कैसा है।
हाल वहाँ का क्या कैसा है।। 
सूरज को समझेंगे अब हम।
अन्य हाल जानेंगे अब हम।।
***
महा भुजंग प्रयात सवैया छंद
पड़ा पाद है आज प्रज्ञान का तो, बना चन्द्रमा बंधु कुटुम्ब प्यारा। 
रहा श्रेष्ठ संबंध मामा हमारे, धरा भेज दी सूत्र रक्षा सितारा। ।
इसी माह में सूत्र का पर्व होता, धरित्री चली बाँधने सूत्र न्यारा। 
प्रतीक्षा सदा स्वाद मिष्ठान होता, रहा भेज प्रज्ञान संदेश द्वारा। ।
सुन्दरी सवैया छंद 
नभ लाँघन को अस चाल चला, बल विक्रम ले प्रगयान सितारा। 
अब दूर नहीं अब दूर नहीं, रटता रटता पहुँचा नभ प्यारा। ।
शशि पे उतरा तब है दिशि दक्षिण विश्व जयी यह यान हमारा। 
बल बुद्धि भरा पृथिवी सुत ये, ननिहाल चला प्रगयान दुलारा।। 
***
 
शन्नो अग्रवाल, लंदन 

जन्म- ०९.१२.१९४७, पूरनपुर, जिला पीलीभीत, उत्तरप्रदेश। 




चलभाष- ८१६७८ ८४४२७
ई मेल- Shannoaggarwal1@hotmail.com


चाँद और चंद्रयान

मेरे प्यारे से चंदामामा!
आज धरती का
 एक सपना पूरा हुआ 
तेरे भांजे ने गले लग 
तेरे पैरों को छुआ 
अभी अरमान बहुत हैं, 
फरमान बहुत हैं
आ न पाईं पर राखी भेज
खुश है धरती बुआ
हम सबके सपने हों पूरे, 
मेरे दिल से है यही दुआ।

इसरो ने काम किया महान, 
दुनिया है उससे हैरान 
उन्नति के पथ पर बढ़ रहा, 
नित भारत का विज्ञान
खोजबीन कर चाँद से 
अब मिलेगा नया ज्ञान
जय, जय भारत माता
जय-जय हिंदुस्तान
ये नाम हमेशा याद रहेंगें
विक्रम और प्रज्ञान।

आज बरसों का सपना
सच हो ही गया
आज धरती माँ की राखी
लेकर भांजा भली-भाँति 
अपने मामा के यहाँ पहुँच गया
और पहुँचते ही उसे 
भारत का उपहार दिया
छोड़ अपने पैरों के निशां
एक नया इतिहास रचा 
भारत का मस्तक ऊँचा किया।
*** 

* शशि त्यागी, अमरोहा उत्तर प्रदेश 

जन्म- २८ मार्च १९५६। 
आत्मजा-स्मृति शेष जयवती-उमराव सिंह त्यागी। 
जीवनसाथी- गिरीश त्यागी। 
शिक्षा- बी. ए. (ऑनर्स), एम. ए. हिंदी, बी.एड., प्रभाकर (गायन)।  
सहभागी - दोहा दीप्त दिनेश । 
संप्रति- से.नि. शिक्षिका ।
संपर्क - ३८ अमरोहा ग्रीन, जोया रोड, 
अमरोहा चलभाष - ९०४५१ ७२४०२ । 
*


बाल गीत
चाँद हाथ में
*
साथ-साथ भागता था चाँद रात में,
पकड़ में  न आता था  चाँद हाथ में... 

कहानियों में एक दिन बात एक चली,
आकाश नापने की एक योजना बनी,
हो गए एकत्र सभी विज्ञ-ज्ञानवान,
और फिर बना लिया मिलकर प्रज्ञान,
ठाना चाँद पर चरण रखेंगे एक दिन,
किन्तु पहुँचना कठिन है रोवर के बिन,
होते हैं सफल  सभी  जब हों साथ में... 

मास था अगस्त सूर्य घर को था चला,
साध अपना लक्ष्य चंद्रयान उड़ चला,
दक्षिण के छोर यान सोच में पड़ा,
बोला चाँद,"आजा! क्यों दूर तू खड़ा?"
एक-एक पल लगी थी नभ में टकटकी,
सारी दुनिया ताक रही थी खड़ी-खड़ी,
इसरो की आस अटकी श्वास-श्वास में... 

साध गति चंद्रयान हो गया खड़ा। 
विकास का पग नवीन एक यूँ बढ़ा,
असंख्य तालियों से विश्व गूँजता मिला,
गर्व से विक्रम हृदय खोलकर मिला,
धीरे-धीरे दाएँ-बाएँ झाँकता चला,
अशोक चक्र चरण चिह्न छापता चला,
मंगल हो! शशि "शिव-शक्ति" साथ में... 
***

- शालिनी त्रिपाठी 'शालू', फरीदपुर १६.०९.१९९५/७९८५१ १७८७८


***

- शिखा सेन, इंदौर १४.०९.१९६५/९८२६३ २०९५५ 

***
शिप्रा मिश्रा डॉ., बेतिया चंपारण १६.०६.१९६९/९४७२५ ०९०५६ 



गजल 
ऐ चाँद!
                           
मुझ परवानों को क्या हिदायत दोगे
हमें तो खतरों से टकराने की आदत है

ऐ चांद! तू तो अपनी सोच ले
मेरे कदमों में तेरी जमानत है

बरसों से गुजरता रहा तेरी गलियों से
तू तो जाने कब से मेरी अमानत है

कब तक छुपेगा मेरे गिरेहबान से
तुझे न पाया तो मुझ पे लानत है

कभी चंदा मामा, कभी चाँद हो गए
तू पास है जब तक सब सलामत है

सदियों से तुझे छूने की तमन्ना थी
तेरी गोद का सुकून मेरी चाहत है

सोचा न था यूँ कभी ज़िंदगी में 
के इक तू मेरी आख़िरी शरारत है

ओ मेरे ख्वाहिशों के बेदाग़ नूर!
मुहल्ले में मेरा नाम अब शराफ़त है
***

- शिप्रा सेन, जबलपुर१४.०७.१९६१/ ७७४८९ ८०५३३ बांग्ला, हिंदी, अंग्रेजी 

* शिव कुमार पाटकार, तेंदूखेड़ा, नरसिंहपुर मध्य प्रदेश    

 
जन्म- १७.०७.१९८२
आत्मज- श्रीमती सरोज-श्री श्याम लाल पाटकार।
पत्नी - श्रीमती अमीता पाटकार। 
शिक्षा - एम.काम , डी.एड., पी.जी.डी.सी.ए.। 
संप्रति - प्राथमिक शिक्षक (म.प्र. शिक्षा विभाग)। 
मोबाइल नंबर - ९४०७३ ०५७४६
ई मेल आईडी - Shivkumar patkar5011@gmail.com
*
विक्रम से आज देश में, मधुमास दोस्तो!
इसरो ने रच दिया है नव, इतिहास दोस्तो!!

विज्ञान की तकनीक ने,कमाल कर दिया। 
अब देश में है चाॅंद यह, अहसास 
दोस्तो!!

दुनिया की प्रार्थनाओं से, ईश्वर ने बल दिया। 
है ज्ञान में भगवान का, आभास 
दोस्तो!!

सारे जहां के लोग तो, हँसते रहे सदा। 
लैंडिंग के साथ बंद है, परिहास 
दोस्तो!!

पहुँचे जो साउथ पोल पे, बन गए हम प्रथम। 
अपना भी चाँद पे मुकाम, खास 
दोस्तो!!

***

* स्मृति शेष शिवनारायण जौहरी 'विमल'* 

जन्म- ३ जनवरी १९२६, शाजापुर, मध्य प्रदेश।
आत्मज- स्व. हरनारायण जौहरी । 
शिक्षा - बी.एस-सी., बी.ए., एल-एल.एम., साहित्य रत्न, 
विशेष- कारावास प्राप्त स्वतंत्रता सत्याग्रही। 
संप्रति- सेवानिवृत प्रमुख विधि सचिव, न्यायाधीश।
प्रकाशित कृति - रूपा खंड काव्य, काव्य संग्रह: अंतर्मन के साथ, जिजीविषा, त्रिपथगा, क्षितिज से, प्रपात। 
पूर्व संपर्क- २४/ डी के देवस्थली फेज टू, बाबडिया कला रोड, 
दाना पानी रेस्टोरेंट के पास, भोपाल। 
पूर्व चलभाष- ९९८१५ ०७०१२ । 
*

चंदा मामा

धरती माँ अपने लाल को
आधुनिक यान में बैठाकर
ले आई चाँद मामा के घर
जिसको पकड़ने के लिए
जब गोद में था,
मचलता रहता था।
जब मैं पानी में हाथ डालकर
चाँद मामा को पकड़ना चाहता था
पानी बुलबुले होकर मुझे
चंदा की पकड़ से
मिलने नहीं देते थे,
माँ की सभी तरकीबें 
असफल हो जाती।
बालक को दिखाया
ये तुम्हारा चाँद मामा है
उसने आश्चर्य से देखा
न वहाँ चाँदनी थी, न कोई घर
न जल था, न जीवन
न पेड़-पौधे, न घास
न फल, न फूल, न रंगीनियाँ।
केवल पत्थर थे, धूल थी,
पहाड़ थे, गड्ढे थे
सोचने लगा मैं, न सुगंध है
न कोई हरित आभा,
हर चीज से विद्रोह
न प्यार, न आश्वासन, न अपनापन
मिट्टी से खेले, क्या करें
जब पानी ही नहीं तो
किस उम्मीद पर
जीवन के जो बचे घंटे है
उन्हे कैसे काटें थोड़े समय में
इस तरह यही मर जाने से
तो अच्छा है
घर लौट चले अब।
माँ! अब मुझे चंदा नहीं पकड़ना
ले चलो वापस वहीं
जहाँ से तुम ले आई हो
इस चंद्रमा के पास।
***


* शुचि 'भवि', भिलाई, छतीसगढ़ 

जन्म- २४ नवंबर १९७१।  
आत्मजा- श्रीमती सुदेश क्षत्रिय - डॉ.त्रिलोकी नाथ क्षत्रिय। 
शिक्षा- एम.एस-सी.(इलेक्ट्रॉनिक्स, गोल्डमेडलिस्ट), एम. ए. ( हिंदी), बी.एड.।
सम्प्रति- अध्यापन, विभागाध्यक्ष (भौतिकी)।
प्रकाशित कृतियाँ-  मेरे मन का गीत, बाँहों में आकाश (दोहा सतसई), सबसे अच्छा काल (बाल दोहा शतक), ख़्वाबों की ख़ुश्बू" (काव्य संग्रह), आर्यकुलम् की नींव"(महर्षि दयानंद दोहा शतक), मसाफ़त-ए-ख़्वाहिशात" (ग़ज़ल संग्रह), सबमें हैं जगदीश" ( नानक चालीसा), ज़र्द पत्ते और हवा" (लघुकथा संग्रह), हेतवी"  (उपन्यास), छंद फ़ुलवारी (छंद संग्रह)। 
संपर्क- बी-५१२,सड़क-४,स्मृति नगर,भिलाई नगर ४९००२०,छत्तीसगढ़ 
चलभाष- ९८२६८०३३९४, ई-मेल shuchileekha@gmail.com       
*


     
माहिया
****
चंदा तो मामा है
इसरो ने सोचा
मामा घर जाना है। 

भारत माँ का परचम
हम लहरायेंगे
सूरज तक जायेंगे। 

इसरो का यह श्रम है
दक्षिण ध्रुव पर जो
चंदा के भारत है। 

ऊँची उड़ान भर ली
नासा भी हतप्रभ
उड़कर चंदा पँहुची। 

वो मान बढ़ाते हैं
बन वैज्ञानिक जो
इसरो में आते हैं। 

जब-जब हमने ठाना
अव्वल आए हम
दुनिया ने यह जाना। 

विक्रम जब चलता है
ठुमक-ठुमक देखो
कितना सुख मिलता है। 

प्रथमम ही प्रथमम
सब जान गए देखो
भारत में कितना दम। 

गर्वित है आज सदी
जिसने यह देखा 
चंदा पहुँची धरती। 

जब हाथ मिलें ऐसे
इसरो जीतेगा
जब साथ मिलें ऐसे. 

वैज्ञानिक भारत के
शोभा नासा की
इसरो के भी मनके। 
*
ग़ज़ल  
शान  मेरी और आन बान, चँद्रयान सँग
देश लिख रहा नया विधान, चँद्रयान सँग
 
बात गर्व की बहुत है पहुँचे हम भी चाँद पर 
अब वहीं बने नया मकान,चँद्रयान सँग
 
अंतरिक्ष में भी बन रहे हैं  हिन्द के निशां
आप देखें अब हमारी शान ,चँद्रयान सँग
 
 तुम छुपाओ लाख किंतु, हमको चाँद है यकीं
राज़ सारे हम भी लेंगे जान , चँद्रयान सँग
 
 खोज अब करेंगे हम, नई नई जो चाँद पर
भूल ‘भवि’ न पाएगा जहान, चँद्रयान सँग
***


शैलजा दुबे डॉ., बिलखड़, एटा, उत्तर प्रदेश, कनौजिया

जन्म-  १ जनवरी १९७६।  
आत्मजा- श्रीमती रानी देवी - श्री मुनीश्वर दयाल मिश्र। 
जीवन साथी- डॉ. विनय प्रकाश दुबे। 
शिक्षा- एम. ए., बी. एड., पी-एच. डी.।  
संपर्क-  ग्राम-पोस्ट  बिलसड़, जिला एटा।  
वाट्स एप/चलभाष- ९७१९१९५४८२  
ईमेल- shailja dubey 1176@ gmail. com
*

चलो मेरो बिकरम
(कनौजिया बोली) 

चलो चलो मेरो बिकरम चंदरमा दुआर।
निकरो अमरीका झूटो लबार।। 

आंधर प्रदेश में श्री हरि कोटा।
तीजो मिशन नहिं रहे कछु खोटा।। 
सिगरे बिज्ञानिक चाहत उद्धार। 
चलो चलो मेरो........

इसरो की मेहनत खूब रंग लाई।
तारीख राखी थी चौदह जुलाई।।
चौअन चिरइयन की हियरा पुकार। 
चलो चलो .......

प्रज्ञान रोवर बिक्रम है लैंडर।
सतीश धवन अंतरिक्ष जाको सेंटर।।
ऋतु करधल करि रहीं बेड़ा पार।
चलो चलो  .....

तेइस अगस्त कौ भूल नहिं पइएं।
सोनें के आखर तें इतिहास रचइएं।। 
मोदी ने जाई दिन कौ लियो अउतार।
चलो चलो .......
***
* श्रीधर 


चन्दा मामा अश्व बना मैं,
चढ़ा आपकी पीठ पर।
बहुत दिनों से गड़े हुए थे,
आप हमारी दीठ पर।।
कहाँ दूध की रखी कटोरी,
शीघ्र बताओ खोज कर।
कहाँ खजाना छिपा रखा है,
जल्दी लाओ  ढूँढ कर।।
चंद्रयान का रोवर हूँ मैं,
भारत माँ का शिशु छोटा।
तुम पर स्नेह लुटाया हर क्षण,
रहा कहो कब मन खोटा।।
धरा गगन को एक कार दिया,
आया तेरे द्वार पर।
जन्म दिवस इसरो का आया 
दक्षिण ध्रुव उपहार कर।।
*
विक्रम की चन्द्र लोक यात्रा
                         *   
विधु आनन को विक्रम देखा,
                              मुग्ध हुआ शोभा पर।
टेक लिए घुटने कुछ पल जा,  
                           मूँद पलक ली क्षण भर।।

कर्तव्य सोच फिर सजग हुआ,
                             ऑर्बिटर सम्मुख आया।
तन मन का अपनी हालत का,
                               उसको कथा सुनाया।।

देखो  घुटने  लचक  गए  हैं,  
                                कदम नहीं बढ़ पाते।
भेज  नहीं  संकेत  पा  रहे,
                            छवि नहीं खिंचे जाते।।

वसुधे पर बैठे साथी जो, 
                              मदद करें कुछ मेरी।
उठ कर बैठूँ सजग बनूँ फिर,
                                  देखो मेरी फेरी।।

अभी नहीं असफल तुम समझो,
                             जब तक दम में दम है।
ऑर्बिटर जो संकेत दे रहा,  
                       बन्धु कहो कुछ कम है?।।

खोज लिया जो कठिन मार्ग था,
                                  मिटा दिए सब दूरी।
देश वासियों चन्द्र विजय की,
                               समझो इच्छा पूरी।।
                   ।।श्रीधर।।
***

संगीता नाथ डॉ. , धनबाद 

जन्म- ३ फरवरी १९६३, औरंगाबाद, (बिहार)। 
शिक्षा- एम.ए.,पी एच.डी.(हिंदी साहित्य)
आत्मजा- स्वर्गीया  नागमती देवी - स्वर्गीय जगदीश प्रसाद। 
जीवन साथी- श्री मयंक नाथ।  
प्रकाशित पुस्तकें- काव्य संग्रह: प्रश्न चिह्न, ग़ज़ल संग्रह: धड़कते दिल की खामोशी।
संपर्क- स्नेह-संगीत, भव तारिणी पथ, मनई टांड, धनबाद८ २६००१, झारखण्ड।  
चलभाष- ९४३११६८९१८  
ई मेल- sangitanath.sneh@gmail.com 
*


मुक्तक

चंद्र यान को मिली सफलता,इसरो ने इतिहास रचा। 
चंद्र भूमि पर गाड़ तिरंगा, हँसा विश्व में धूम मचा।।
भारत के वैज्ञानिक चमके, विश्व पटल पर बन दिनकर- 
यह प्रज्ञान विजय उत्सव है, गौरव से मस्तक ऊँचा।

देख पराक्रम विक्रम का, जग सारा हैरान हुआ। 
दूर व्योम पर चमक उठा जब, शिव शक्ति अभिज्ञान मिला।।
धैर्य परिश्रम प्रज्ञा संयम, लक्ष्य प्राप्ति के संसाधन- 
स्वप्न हुआ साकार देश का, सफल वृहत अभियान हुआ।। 

रोवर ने जलवा दिखलाया, औ मेधा ने बाजी मारी। 
चाँद पर लैंडर टहल रहा है, सूरज जाने की तैयारी।। 
आज मनीषा भारत की नव ,गढ़ने फिर आयाम चली- 
अमर तिरंगा हुआ चाँद पर, गगनयान की अब बारी।
***

संगीता भारद्वाज डॉ.  भोपाल, मध्यप्रदेश   

जन्म- २०  अगस्त १९६७, जबलपुर।  
आत्मजा-  श्रीमती हेमलता - ब्रह्मलीन जवाहरलाल "तरुण" डॉ.  प्रोफेसर। 
जीवनसाथी-   श्री जयंत भारद्वाज, सहायक महाप्रबंधक भारतीय स्टेट बैंक, चित्रकार, मिमिक्री, रंगकर्मी, दूरदर्शन, फिल्म कलाकार। 
शिक्षा   एम. ए.( हिंदी साहित्य, स्वर्ण पदक) मानकुँवरबाई कॉलेज जबलपुर मध्य प्रदेश, पी-एच. डी. जबलपुर परिक्षेत्र की राष्ट्रीय काव्यधारा ।  
प्रकाशित कृतियाँ- यात्राओं की तलाश, यात्रा वृतांत, यादों के पलाश।       
संपर्क- फ्लैट ए डी १६, भूमिका रेसीडेंसी, शिर्डी पुरम कोलार भोपाल ४६२०४२ मध्य प्रदेश।  
चलभाष- ८८८९५५८८८५   
ईमेल-  sangeetabharadwaj180@gmail.com
*

चंद्रारोहण पर दोहे 

इसरो जग में कर रहा, नित्य करे संधान।
अथक प्रयास हुए सफल, मिली नई पहचान।।

धन्य धन्य माँ भारती, जयी विश्व विज्ञान।
चंद्रभूमि पर लैंsडर, हुआ सफल अभियान।।

बरसों से मन में पली, राखी बाँधूँ आस। 
धरती पहुँची चाँद पर, अब भाई के पास।

रक्षा बंधन पर्व है, सचमुच बेहद खास।
नतमस्तक दुनिया सकल, बना नया इतिहास।।

प्रेषित करता चाँद से, चित्र नए प्रज्ञान।
मिली अनोखी संपदा, देश करे अभिमान।।

दक्षिणी ध्रुव अब चाँद का, है 'शिव-शक्ति' पुनीत।
ध्वज तिरंगी फहरती, शुभ नव निर्मित रीत।।

सोमनाथ ने चाँद को, रखा शीश पर आज।
कथा पुरातन हो गई, नूतन हमको नाज।।

भारत-जुड़ गर्वित हुआ,  नया रूपहला चाँद।
विक्रम विक्रम दिखाए, अंतरिक्ष को फाँद।।

एक सूत्र में हम सफल, 'चंद्र विजय अभियान'।।
हिंदी जगवाणी बने, जय-जय हिंदुस्तान।।
***

* संदीप धीमान, हरिद्वार                          


जन्म- १ मार्च १९७६, हरिद्वार ।  
संप्रति-  फार्मासिस्ट,  स्वास्थ विभाग।
संपर्क- 
*


ज्ञान और विज्ञान संग
पहुँचे चंद्रयान  संग
इसरो के ज्ञाताओं ने
बिखेरे बहुआयाम रंग।

देश, सपेरों का बताने वाले 
भावहीन दिखाने वाले 
वो लगा टकटकी देख रहे 
नये भारत के ज्ञान  रंग।

मोहन ने जग मोहन लिया
चन्दा को भी टोह लिया,
भ्रम मिटा कर जग के सारे
जीत गए  विज्ञान जंग।

शिखर सफलता के पहुँचाया 
इसरो का डंका  बजवाया,
चन्द्रमा की धरती पर जाकर
तिरंगा भारत का  फहराया।

करें सम्मान पूरा विश्व
कृतार्थ तुम्हारा पूरा भारत,
शीश आज  सम्मान से उठा
हैं कृतज्ञ हम सभी संग।
***

- संजीव वर्मा 'सलिल',जबलपुर २०.०८.१९५२/९४२५१ ८३२४४ 

चलें चाँद की ओर २ 

शन्नो जी! आमंत्रण आएँ, चलें आप भी साथ
इस दल का हो या उस दल का; नेता का ले नाम
मनमानी करते हैं हम सब चलें उठाकर माथ
डरते नहीं पुलिस से लाठी का न यहाँ कुछ काम

घरवाली थी चंद्रमुखी अब सूर्यमुखी विकराल
सात सात जन्मों को बाँधे इसीलिए हम भाग
चले चाँद की ओर बजाए घर पर बैठी गाल
फुर्र हो रहे हम वह चाहे जितनी उगले आग

बहुत घूम-रह लीं विदेश में, अब लंदन दें छोड़ 
चलें मून शिव-शक्ति वहीं पर छान रहे हैं भाँग 
जल्दी करिए जाने वालों में मचना है होड़ 
छह के कंधे पर छह बैठें, नहीं अड़ाएँ टाँग 

चलें व्यंजना के सब साथी व्यंजन लाएँ खूब 
खाकर अमिधा और लक्षणा में गपियाएँ डूब 
***    
सॉनेट
इसरो
इस रो में कोई नहीं,
इसरो जैसा अन्य है,
जिस रो में इसरो खड़ा,
वह रो सिर्फ अनन्य है।

चंदा मामा दूर के,
अब लगते हैं पास के,
टूरा-टूरी टूर पे,
जाएँ लब पर हास ले।

धरती रक्षा-सूत्र ले,
भेजे चंदा बंधु को,
विक्रम उतरा आस ले,
लिए भू पर मृदा को।

जय जय जय तकनीक की।
भारत माँ की जीत की।।
२३-८-२०२३
•••
सॉनेट
सुनो परिंदो!
सुनो परिंदो! भरो उड़ानें,
नील गगन तक रहो न सीमित,
पा सकते जो भी हम ठानें,
तकनीकों से होकर बीमित।

सुनो परिंदो! सपने देखो,
कोशिश कर साकार भी करो,
सफल न हो तो त्रुटियाँ लेखो,
गलती का परिहार भी करो।

सुनो परिंदो! चंद्र पर चलो,
कलरव कर सूनापन हर लें,
सपना बनकर नयन में पलो,
कल रव कर नवजीवन वर दें।

किलकिल करो न कभी परिंदो!
हिलमिल रहना सभी परिंदो।
२५-८-२०२३
•••
मैया! मैं तो चंद्र खिलौना लैंहौं।
गुड्डा-गुड़िया तनिक नें भावें, रॉकेट एक मँगैहौं।
कालिंदी के तीर नें जैहों, इसरो मोय पठैहौं।
ग्वाल-बाल मिल तंग करत हैं, ऑर्बिट में पहुँचैहौं।
बरसानेवारी राधा खों, लैंडर में ले जैहौं।
रोवर बैठ चंद्र पै मैया! डेली रास रचैहौं।।
३०-८-२०२३
भारत

यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है 
कर दें सभी मिल देश का, निर्माण नव अभियान है 
गुणयुक्त हो अभियांत्रिकी, श्रम-कोशिशों का गान है 
परियोजना त्रुटिमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है

तकनीक
नवरीत भी, नवगीत भी, संगीत भी तकनीक है 
कुछ प्यार है, कुछ हार है, कुछ जीत भी तकनीक है 
गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी तकनीक है 
श्रम-मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है 
*
हाइकु
*
भारत बना
प्रगति का पर्याय
चंद्र पर जा।
*
इसरो लिखे
नवल इतिहास
पुरुषार्थ का।
*
त्रुटिविहीन
तकनीक व शिल्प
अनुकरणीय।
*
हुईं निराश
चंद्र मुख निरख
चंद्रमुखियाँ।
*
चढ़ाया जल
चंद्र पर सदियों
खोजे प्रज्ञान।
*
मून पर जा
मनाएँ हनीमून
रईसजादे।
*
चंद्र बिसार
भू का कर मंगल
छोड़ दंगल।
*
चंद्र विजय
वामन से विराट
होने की कथा।
११-१०-२०२३
*
मुक्तक
*
चंद्र तल पर जा करेंगे क्या भला?
कर न जो पाए धरा का कुछ भला।
लड़ रहे; लड़ते रहे, लड़ते रहेंगे-
चंद्र पूछे आ रहे हो क्यों भला?
*
पहुँच चंद्र पर मानव करे लड़ाई।
वस्तु पराई ही क्यों इसको भाई?
जो पा लेता चाहत उसकी कम हो-
जो न मिले वह पाने जुगत भिड़ाई।।
*
बिन हवा दीपक न चंदा पर जलेगा।
दिवाली त्योहार कह कैसे मनेगा?
नहीं होली और ना राखी बँधेगी-
छोड़ धरती चाँद पर कैसे जिएगा?
११-१०-२०२३
***
* संतोष नेमा, जबलपुर 

जन्म- १५.०७.१९६१। 
आत्मज- स्व.श्री देवीचरण जी नेमा। 
शिक्षा- बी. काम.,एल-एल.बी. । 
संप्रति- सेवानिवृत्त पोस्ट मास्टर।
प्रकाशित कृतियाँ- आरती संग्रह, भजन: देवी नमन, गीत: सपनों के गाँव में,  कृष्ण भजन: तुम सूना यह संसार। 
संपर्क- ७८ अमनदीप, आलोक नगर, अधारताल, जबलपुर ४८२००४। 
चलभाष- ९३००१ ०१७९९  
*

दोहे  
जय जय जय माँ भारती, धन्य धन्य विज्ञान
उतरा लेंडर चाँद पर, सफल सोम अभियान

एक नया इतिहास रच, खूब बढ़ाया मान
दुनिया में सब कर रहे, भारत का गुणगान

भारत की सरकार ने, खूब बढ़ाया जोश
देकर वांछित धन उन्हें, लेकर निर्णय ठोस

चंद्रयान की सिद्धि अब, बढ़ा रही विस्वास
नया मिशन आदित्य का, जगा रहा नव आस

इसरो की अब विश्व में, अलग बनी पहचान
उसके अथक प्रयास से, सफल कई अभियान

भू-बन्धन स्वीकार कर, रखी बहिन की लाज
रक्षाबंधन पर सभी, बहुत करें हम नाज़

भेज रहा है चांद से, तस्वीरें प्रज्ञान
खनिज,गैस भंडार के, नित्य नए संधान।।

दक्षिण ध्रुव पर चाँद भी, ताक रहा था राह
नीरसता भी दूर हो, ऐसी उसकी चाह

कहते मोदी आजकल, चाँद न हमसे दूर
हुआ सिमटकर फासला, इसका बस इक टूर

इस दुनिया को था नहीं, भारत पर विश्वास
नतमस्तक है आज वह,दे ख नया इतिहास

चूम रहा है चंद्र-मुख, अपना भारत देश
गर्वित है संतोष भी, देख नया परिवेश
मुक्तक 
वर्षों की तपस्या का परिणाम आ गया
वैज्ञानिकों का जोश आज काम  आ गया
अंतरिक्ष में भारत की ताकत भी देख लो
चंद्रमा की सतह पर भारत का मक़ाम आ गया
***

संतोष  शुक्ला डॉ., लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश 

जन्म- १५ अगस्त १९४२, लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश। 
आत्मजा- स्मृति शेष सौभाग्यवती- ब्रज नारायण त्रिवेदी। 
जीवन साथी- स्मृति शेष विजय कृष्ण शुक्ला।   
एम.ए.द्वय (संस्कृत, हिन्दी), विद्यावाचस्पति (संस्कृत)। 
निवास स्थान- गुरुदेव भवन ५८, कृपया पुरी, मथुरा, उत्तर प्रदेश।  
प्रकाशित पुस्तकें- काव्य कालिंदी, खुशियों की सौग़ात (दोहा सतसई), छंद सोरठा ख़ास (हिंदी की प्रथम सोरठा सतसई)।
*

चन्द्रयान-तीन अभियान 
सकुशल पूरा हो गया
इसरो संग जीता विज्ञान  
देश गौरवान्वित हो गया

हम करते हैं अभिमान 
जो वैज्ञानिक इसरो के
करते उनका गौरवगान 
जलते कभी न दूसरों से

चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर
जो अगम अभी तक था
रोवर ले जाकर चंदा पर
तिरंगा अपना शोभित था

कलियुग ना ये कल युग है
सकल अभियांत्रिक युग है
***

मिला बहुत आनंद, पहुँच चाँद की चाँद पर। 
लिख दूँ सुन्दर छंद, लहरती देश  ध्वजा पर।
*
बचपन की थी बात,चन्दा मामा दूर के। 
बदल गए हालात तिरंगा अब फहर गया।।
बढ़ा देश का मान,सभी देखते रह गए।
वैज्ञानिक सम्मान,करती   जनता देश की।।
***
*   सत्य देव प्रसाद द्विवेदी 

चंद्र यान को मिली सफलता,इसरो ने इतिहास रचा,
चंद्र भूमि पर गाड़ तिरंगा,दिया विश्व में धूम मचा।
भारत के वैज्ञानिक चमके, विश्व पटल पर बन दिनकर, 
यह प्रज्ञान विजय उत्सव है,गौरव से मस्तक ऊँचा।

देख पराक्रम विक्रम का,जग सारा हैरान हुआ,
दूर व्योम पर चमक उठा जब,शिव शक्ति अभिज्ञान मिला।
धैर्य परिश्रम प्रज्ञा संयम,लक्ष प्राप्ति के संसाधन,
स्वप्न हुआ साकार देश का,सफल वृहत अभिज्ञान हुआ।

रोवर ने जलवा दिखलाया,औ मेधा ने बाजी मारी,
चाँद पर लैंडर टहल रहा है,सूरज की है तैयारी।
आज मनीषा भारत की नव,गढ़ने फिर आयाम चली,
अमर तिरंगा हुआ चाँद पर,गगनयान की अब बारी।
***
* संदीप धीमान, हरिद्वार ०१.०३.१९७६/९७५९८ ३८९७१ 



***
समराज चौहान, कार्बी आंग्लांग, असम असमी 


कवि एवं नवोदित लेखक। 
संकलित पुस्तक असम के पाठ्यक्रम में शामिल। 
संपर्क- जिला-कार्बी आंग्लांग,असम।
चलभाष- ६००००५९२८२

আজি চন্দ্র উন্মোচিত হৈছে। 

আমি যিটো চন্দ্ৰক প্ৰায়ে 
মামা বুলি মাতিছিলোঁ। 
বিভিন্ন ধৰণৰ বৰ্ণনা কৰিছিলোঁ,
আগতে আমি জ্যেষ্ঠসকলৰ পৰা চন্দ্ৰৰ কাহিনী শুনিছিলোঁ।
আমি আজি নিজকে তাত দেখি গৌৰৱ অনুভৱ কৰিছোঁ।
সেই চন্দ্ৰটো  আজি নতুন ৰুপত উন্মোচিত হৈছে।
এই ভ্ৰমণ সমগ্ৰ মানৱ জাতিৰ বাবে....
নহয় কেৱল আমাৰ বাবে.... ইয়াৰ দ্বাৰা সকলোৰে উপকাৰ হ’ব।
এটো কেৱল ভাৰতৰ মিছন নহয়... 
আছিল সমগ্ৰ মানৱ জাতিৰ মিছন।
আজি চন্দ্রয়ান-3 এই দৃশ্য সমগ্ৰ বিশ্বক দেখুৱাইছে।

- সমৰাজ চৌহান, কাৰবি আংলং, অসম।

हिंदी लिप्यंतरण-

आजी चन्द्र उन्मोचित हैसे   असमी 

आमी जिटू चन्द्रक प्रायः
मामा बूलि मातिसिलों। 
विभिन्न धरनर वर्णना करिसिलों। 
आगते आमी ज्यष्टसकलर परा चन्द्र काहिनी सुनिसिलो। 
आजी आमी निजके तात देखी गौरव अनुभव करिसो। 
सेई चन्द्रटो आजी नतून रुपत उन्मोचित हैसे। 
एई भ्रमण समग्र मानव जातिर बाबे... नहय केवल आमार बाबे।
ईयार द्वारा सकलोरे उपकार हब। 
ईटो केवल भारतर मिशन नहय... 
आसिल समग्र मानव जातिर मिशन। 
आजी चंद्रयान-3 एई दृश्य समग्र विश्वक देखुवाइसे।
***

* सरला वर्मा,  (छत्तीसगढ़ी), भोपाल मध्य प्रदेश 

जन्म : २ जून १९५७ बसना, जिला महासमुंद छत्तीसगढ़। 
शिक्षा, एम.ए.(समाजशास्त्र)।
माताजी- स्व. यशोदा देवी श्रीवास्तव । 
पिताजी- स्व. महावीर प्रसाद श्रीवास्तव।  
जीवनसाथी - श्री सुशील वर्मा । 
प्रकाशित कृति - जीतने की जिद काव्य संग्रह। 
संपर्क - ४५६ एचआई जी, ई ७ मालती हॉस्पिटल के पीछे, अरेरा कॉलोनी, भोपाल ४६२०१६ (मध्य प्रदेश)
चलभाष - ९७७०६ ७७४५३ । 
***

चंद्र विजय अभियान
(छत्तीसगढ़ी)
*
कतक बखानौ, मोर तिरंगा 
चंद्रयान हर पहुंचिस।  
हार गे दुनिया, मोर देश ले 
देख के होवे अचंभित 
तीन रंग के हावे तिरंगा,
चंद्रयान घालो तीन
तीन देवता करें सवारी,
आशीष देवथें, पारी पारी
ब्रह्मा विष्णु महेश यान में,
चंदा के घर पहुना
बड़भागी विक्रम के पराक्रम ला,,,
कर डरिन दुगना तिगुना
देख भरतीया यान ला मामा,
स्वागत में ठाँड़े हे
आनी बानी के सुंदर फोटू,
मिशन यान में डारे हे। 
ज्ञान विज्ञान में मोर देश के 
नहीं है ,कोई सानी
रूस अमेरिका  करतब देखके  
होवथे, पानी पानी
धन्य धन्य इसरो के करथो
अबड बधाई तोला देथो
भारत देश के माटी ला में,
बंदो   मस्तक तिलक लगाथो
इसरो के गौरव गाथा में,
जयति जय जय सफल मनाथो
----------------------------

सरिता सुराणा, हैदराबाद 

जन्म- ५ जुलाई १९६६, राजस्थान, भारत। 
शिक्षा- बी. ए. , राजस्थान यूनिवर्सिटी, जयपुर।  
प्रकाशित कृति: 'मां की ममता' कहानी-संग्रह। 
संप्रति- स्वतंत्र पत्रकार, सम्पादक, लेखिका, ब्लॉगर, मंच संचालिका, समाज सेविका, गृह स्वामिनी। पूर्व उप संपादक हिन्दी मिलाप दैनिक हैदराबाद,  पूर्व फीचर एडिटर शुभ लाभ दैनिक, हैदराबाद। संस्थापिका  साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, हैदराबाद, प्रदेशाध्यक्ष  अंतरराष्ट्रीय संस्था विश्व भाषा अकादमी, तेलंगाना इकाई, संयुक्त सचिव, राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन इंडिया, तेलंगाना इकाई, महिला विभाग (WAJA INDIA), ऑल इंडिया जैन जर्नलिस्ट एसोसिएशन, मुम्बई की मानद सदस्य  (IIJJA).
लेखन विधा-  कहानी, व्यंग्य, लघुकथा, निबन्ध, संस्मरण, कविता, पत्र-लेखन एवं समीक्षा आदि।
संपर्क- २०१ श्री शुभकारा हैवन, प्लॉट १-१८-४६/५, एम. ई. एस. कॉलोनी, सिकंदराबाद ५०००१५, हैदराबाद, तेलंगाना। 
चलभाष- ९१७७६ १९१८१
ई मेल- : sarrita5712@gmail.com 
*
चंद्रयान हमारा अभिमान
अभी जो सफल हुआ चंद्रयान है
हम सबका गर्व और अभिमान है।
ये जो विक्रम और प्रज्ञान का संधान है
वैज्ञानिकों के सतत परिश्रम का परिणाम है।
डॉक्टर विक्रम साराभाई का सपना था जो
प्रोफेसर सतीश धवन की थी विशेष आराधना
डॉक्टर रामचन्द्र राव ने विकसित किया जीएसएलवी
डॉक्टर कृष्ण स्वामी ने भास्कर-१और भास्कर-२ 
उपग्रह परियोजनाओं का किया निर्देशन
जी माधवन नायर ने चंद्रयान-१ की, की थी शुरुआत
मंगल यान मिशन लाॅन्च किया डॉ के राधाकृष्णन ने
आईआरएनएसएस और गगन 
विकसित किया ए एस किरण कुमार ने
जीएसएलवी उड़ान, पूर्ण मिशन योजना और
मिशन डिजाइन को सफल बनाया के सिवन ने
डॉक्टर एस. सोमनाथ ने फहराया जीत का तिरंगा
उतार दिया दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-३ को 
खुशी से झूम उठा उस दिन पूरा देश
रचा एक नया इतिहास इसरो ने
देखी भारत की ताकत पूरी दुनिया ने
गूंज उठा आकाश! जय इसरो! जय भारत के नारों से।
मनवाया जीत का लोहा हमारे वैज्ञानिकों ने।।
***

* सरोज गुप्ता (डॉ.), (बुन्देली), सागर मध्य प्रदेश 

जन्म- २० जुलाई १९६३। 
संप्रति- अध्यक्ष हिन्दी विभाग, पं. दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, सागर, म. प्र.। 
*

चन्द्रयान -3 विक्रम की हठ  में

मोय जानेंं मम्मा के पास 

मचल रओ है विक्रम, कर रओ खूबईं प्रयास,
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
धरती मताई नें ऐंनईं समझाऔ,
लल्ला जिन जाओ हम हैंई से दिखात।
थरिया में पानूं भरकें खूबईं बहलाव ,
तनक भओ सांत पै,फिरकऊं मचल जात।
 कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
 
उन्नईस में जाकें,तनक भटक हतौ गओ ,
तबईं सें मिलजुल कें जुगाड़े फिट कर रओ।
दिल्ली में जाकें मिलौ , मोदी चौकीदार सें,
उन्नें खूब दिलासा दई, मूड़ पै हाथ फेरौ।
भारत जा दुनिया कौ है सरताज,
 कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।

फिर का कइये, ईनें तो सब रोरा जुटा लओ , 
इसरो की बड्डी टीम से बतकाव कर रओ।
दक्षिणी ध्रुव खों छूबे की कोशिश करन लगौ,
दो हजार चार में कलाम साब नें देखौ तौ सपनों।
सपनों सच करकें बढ़ाई भारत की शान
 कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।

तेईस तारीख खों पौंच कें,कैसौ मटक रओ,
अम्मा की राखी दै कें, मिठाई ख्वा रओ।
चंदा मम्मा ने विक्रम खों भरलव अंकवार,
तिरंगा फहराकें दुनिया में पै ली बार।
 इंतजार भओ खत्म बड़ी देश की शान।
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।

मचल रओ है विक्रम, कर रओ खूबईं प्रयास,
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।   
***
विक्रम और मामा चांद-चंद्रयान-3

चलो चांद पर हम सब घूमें,
 वहां की माटी जाकर चूमें।
कहते थे चन्दा मामा दूर के , 
खाओ लडडू मोतीचूर के।
अब तो चन्दा मामा पास है,
 भाई विक्रम उसके साथ है।
 ऋषि मुनियों की कल्पना,
 अब ले रही है आकार।
 धरती मां की साधना,
 तिरंगा फहराकर हुई साकार।
 
 मां ने कहा था विक्रम!
 मामा के आंगन में हौले-हौले पांव रखना।
 फिर पूछकर कुशल क्षेम, मेरी बात कहना।
 सौंप देना रक्षा सूत्र मामा के हाथ।
 जैसे ही विक्रम ने मामा चांद को छुआ ,
 प्यार से गले में हाथ, डाल कर मिला।
 अंकित किए पदचिन्ह, छुए पैर मामा के, 
देखकर मामा को ,मां के सुनाये हालचाल।
मैया से की अपनी जिद पर हंसा कई बार ।
मां ने भी खूब बहलाया ,थाली में चांद दिखाया।

पर मैं नहीं माना, अपनी क्षमता से ,
करता रहा खूब खूब प्रयास।
देखो खड़ा हूं आपके पास।
पिछली बार असफल रहा,
सबक लेकर और आगे बढता रहा।
आ गया हूं मामा,अब खूब घूमूंगा।,
राखी का त्यौहार झूम झूम मनाऊंगा।
मां ने भेजी है मिठाई और राखी प्यार से,
विक्रम की बात सुन मामा हुए विह्वल 
खायी खूब मिठाई, बैठकर निकट,
ऋषि मुनियों के ज्ञान विज्ञान पर करते रहे बहस।

जीता है अध्यात्म और विज्ञान, 
बात बार बार मामा ने दुहराई,
विक्रम मैं देता हूं अपनी बहिन की दुहाई।
भारत विश्वविजयी बनकर रहेगा ,
अमर था, अमर है और अमर रहेगा ।
धरती अम्बर सूरज चांद के रिश्ते नये नहीं,
सनातन से हम सब एक है,बस मिलते नहीं।
अब हुई नयी शुरुआत तो,
नये नये अभियान बताऊंगा ।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ग्रह नक्षत्रों से मिलाऊंगा।
मामा मैं खूब घूमा हूं ,पूरी दुनिया से मिला हूं
पर आज तुझ से मिल कर मजा आ गया।
ऐसा लग रहा जैसे पूरी दुनिया पर छा गया।
*

चंद्रयान,,,3,,,
भारत जग का बना सहारा।
सफल हुआ अभियान हमारा।।
चंद्रयान से शान बढ़ी है।
भारत मां की आन बढ़ी है।।*
दक्षिण ध्रुव पर हम जा पहुंचे।
जहां  तिरंगा अब लहराये।।
कैसे पहुंचा हमने देखा।
इतिहासों में लिखा ये लेखा।।*
भारत वासी खुशी मनाए।
गीत देश के हमने गाए।।
विश्व में चमका नाम हमारा।
भारत जग का बना सहारा।।*
पिक्चर आने लगी चांद से।
दूर हुई हर कमी चांद से।।
पानी का होना कैसा है।
हाल वहां का क्या कैसा है।।*
सूरज को समझेंगे अब हम।
अन्य हाल जानेंगे अब हम।।
विश्व को कुछ हम दे पायेंगे।
चंदा कैसा है जानेंगे।।*
एक नया इतिहास रचा है।
भारत मां का मान बढा‌ है।।
सफल हुआ अभियान हमारा।
भारत विश्व का बना सहारा।।*
***
सरोज गुप्ता डॉ.  सागर 
सरोज गुप्ता (डॉ.)

20/07/1963
[14:59, 30/8/2023] सरोज गुप्ता डॉ. सागर Gupta: चन्द्रयान -3 विक्रम की हठ बुन्देली में

मोय जानेंं मम्मा के पास 

मचल रओ है विक्रम, कर रओ खूबईं प्रयास,
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
धरती मताई नें ऐंनईं समझाऔ,
लल्ला जिन जाओ हम हैंई से दिखात।
थरिया में पानूं भरकें खूबईं बहलाव ,
तनक भओ सांत पै,फिरकऊं मचल जात।
 कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
 
उन्नईस में जाकें,तनक भटक हतौ गओ ,
तबईं सें मिलजुल कें जुगाड़े फिट कर रओ।
दिल्ली में जाकें मिलौ , मोदी चौकीदार सें,
उन्नें खूब दिलासा दई, मूड़ पै हाथ फेरौ।
भारत जा दुनिया कौ है सरताज,
 कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।

फिर का कइये, ईनें तो सब रोरा जुटा लओ , 
इसरो की बड्डी टीम से बतकाव कर रओ।
दक्षिणी ध्रुव खों छूबे की कोशिश करन लगौ,
दो हजार चार में कलाम साब नें देखौ तौ सपनों।
सपनों सच करकें बढ़ाई भारत की शान
 कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।

तेईस तारीख खों पौंच कें,कैसौ मटक रओ,
अम्मा की राखी दै कें, मिठाई ख्वा रओ।
चंदा मम्मा ने विक्रम खों भरलव अंकवार,
तिरंगा फहराकें दुनिया में पै ली बार।
 इंतजार भओ खत्म बड़ी देश की शान।
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।

मचल रओ है विक्रम, कर रओ खूबईं प्रयास,
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
   *प्रोफेसर डॉ सरोज गुप्ता,
अध्यक्ष हिन्दी विभाग,
 पं दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय सागर म प्र*
[14:59, 30/8/2023] सरोज गुप्ता डॉ. सागर Gupta: विक्रम और मामा चांद-चंद्रयान-3

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