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रविवार, 16 अगस्त 2009

नवगीत: आचार्य संजीव 'सलिल'

गीत ३

मगरमचछ सरपंच
मछलियाँ घेरे में
फंसे कबूतर आज
बाज के फेरे में...

सोनचिरैया विकल
न कोयल कूक रही
हिरनी नाहर देख
न भागी, मूक रही
जुड़े पाप ग्रह सभी
कुण्डली मेरे में...

गोली अमरीकी
बोली अंगरेजी है
ऊपर चढ़ क्यों
तोडी स्वयं नसेनी है?
सन्नाटा छाया
जनतंत्री डेरे में...

हँसिया फसलें
अपने घर में भरता है
घोड़ा-माली
हरी घास ख़ुद चरता है
शोले सुलगे हैं
कपास के डेरे में...

*****

बुधवार, 6 मई 2009

नव गीत: आचार्य संजीव 'सलिल'

मगरमच्छ सरपंच
मछलियाँ घेरे में
फंसे कबूतर आज
बाज के फेरे में...


सोनचिरैया विकल
न कोयल कूक रही
हिरनी नाहर देख
न भागी, मूक रही
जुड़े पाप ग्रह सभी
कुण्डली मेरे में...


गोली अमरीकी
बोली अंगरेजी है
ऊपर चढ़ क्यों
तोडी स्वयं नसेनी है?
सन्नाटा छाया
जनतंत्री डेरे में...


हँसिया फसलें
अपने घर में भरता है
घोड़ा-माली
हरी घास ख़ुद
चरता है
शोले सुलगे हैं
कपास के डेरे में...
*****