विचारोत्तेजक लेख:
इस्लाम : एक वैदिक धर्म
प्रकाश गोविन्द
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वेद सार्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ हैं तथा वैदिक
आचरणों से परे न तो कोई अराधना विधि है और न प्रभु तक पहुँचने का मार्ग !
क्षेत्र विशेष तथा समयानुसार इसमें स्वाभाविक परिवर्तन तो होते रहे हैं
परन्तु मूल वेद ही रहे ! अनेकानेक विद्वानों के अनुसार 'इस्लाम' भी वैदिक
पद्धति पर ही आधारित है !
संस्कृत भाषा में 'मख' का अर्थ
पूजा की अग्नि होता है सभी जानते हैं कि इस्लाम के आने से पहले समस्त
पश्चिम में अग्नि-पूजा का चलन था ! 'मख' इस बात का सूचक है कि वहां एक
विशिष्ट अग्नि-मंदिर था ! 'मक्का-मदीना' वास्तव में 'मख-मेदिनी' अर्थात
यज्ञं की भूमि का सूचक है !
इस्लाम धर्म के अनुयायी सामान्य रूप से विस्मयादिबोधक अव्यय एवं आराधना के लिए 'या अल्लाह
(अल्ल: )
का प्रयोग करते हैं ! यह शब्द भी विशुद्ध रूप से संस्कृत मूल का है !
संस्कृत में अल्ल: , अवकः और अन्बः पर्यायवाची हैं और इनका अर्थ माता
अथवा देवी से होता है ! माँ दुर्गा का आवाह्न करते समय 'अल्ल :' का प्रयोग
किया जाता है ! अतः 'अल्लाह' शब्द इस्लाम में पुरातनकाल से संस्कृत से
ज्यों का त्यों ग्रहण कर प्रयोग में लाया गया !
मुस्लिम में माह 'रबी' सूर्य के
द्योतक 'रवि' का अपभ्रंश लगता है क्योंकि संस्कृत का 'व' प्राकृत में
'ब' में परिवर्तित हो जाता है !
यह
आश्चर्यजनक समानता है कि अधिकाँश मुस्लिम त्यौहार शुक्ल पक्ष की एकादशी को
मनाये जाते हैं, जो एकादशी के पुरातन वैदिक महत्त्व का द्योतक है !
इसी प्रकार संस्कृत में 'ईड ' का
अर्थ पूजन है ! पूजा से आनंद जन्मता है ! आनंदोत्सव के रूप में इस्लाम का
शब्द 'ईद' विशुद्ध रूप से संस्कृत का ही है !
हिन्दू धर्म में राशियों का विवरण है !
एक राशि 'मेष' है, जिसका सम्बन्ध मेमने (भेड़) से है ! पुराने समय में जब
सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता था, तो नवीन वर्ष का आरम्भ होता था ! इस
अवसर पर मांस-भोजन का प्रचलन था ! लोग ऐसा करके अपनी ख़ुशी प्रकट करते थे !
'बकरी- ईद' का उदभव भी इसी तरह हुआ होगा !
ईदगाह भी इसी तरह सामने आया
होगा ! जहाँ तक नमाज़ का सवाल है, वह संस्कृत की दो धातुएं 'नम' और 'यज' से
व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ झुकना तथा पूजा करना है !
रमजान के महीने को अरबी
भाषा में 'सियाम' भी कहा जाता है ! 'सियाम' शब्द 'सौम' से बना है, जिसका
अर्थ है - रुक जाना अर्थात एक विशेष अवधि तक के लिए खाने-पीने एवं स्त्री
प्रसंग में रुक जाना !
प्रार्थना करने से पहले शरीर के
पांच भागों की स्वच्छता मुस्लिमों के लिए अनिवार्य है ! यह विधान भी 'शरीर
शुद्धयर्थ पंचांगन्यास' से ही व्यत्पन्न स्पष्ट होता है !
इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार उनके अनुयायिओं के लिए पांच फ़र्ज़ हैं --
1- तौहीद - (एक ईश्वर और अंतिम पैगम्बर पर ईमान)
2- नमाज़ - (उपासना)
3- रोजा - (उपवास)
4- ज़कात - (सात्विक दान)
5- हज - (तीर्थाटन)
इससे प्रतीत होता है कि मूलाधार एक ही है, सिर्फ पूजाविधि परिवर्तित है
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