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शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

विचारोत्तेजक लेख: इस्लाम : एक वैदिक धर्म प्रकाश गोविन्द

विचारोत्तेजक लेख:
इस्लाम : एक वैदिक धर्म 
 
प्रकाश गोविन्द
*   
वेद सार्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ हैं तथा वैदिक आचरणों से परे न तो कोई अराधना विधि है और न प्रभु तक पहुँचने का मार्ग ! क्षेत्र विशेष तथा समयानुसार इसमें स्वाभाविक परिवर्तन तो होते रहे हैं परन्तु मूल वेद ही रहे ! अनेकानेक विद्वानों के अनुसार 'इस्लाम' भी वैदिक पद्धति पर ही आधारित है ! 

संस्कृत भाषा में 'मख' का अर्थ पूजा की अग्नि होता है सभी जानते हैं कि इस्लाम के आने से पहले समस्त पश्चिम में अग्नि-पूजा का चलन था ! 'मख' इस बात का सूचक है कि  वहां एक विशिष्ट अग्नि-मंदिर था ! 'मक्का-मदीना' वास्तव में 'मख-मेदिनी' अर्थात यज्ञं की भूमि का सूचक है ! 

इस्लाम धर्म के अनुयायी सामान्य रूप से विस्मयादिबोधक अव्यय एवं आराधना के लिए 'या अल्लाह 
(अल्ल: ) का प्रयोग करते हैं ! यह शब्द भी विशुद्ध रूप से संस्कृत मूल का है ! संस्कृत में अल्ल: , अवकः  और अन्बः  पर्यायवाची हैं और इनका अर्थ माता अथवा देवी से होता है ! माँ दुर्गा का आवाह्न  करते समय 'अल्ल :' का प्रयोग किया जाता है ! अतः 'अल्लाह' शब्द इस्लाम में पुरातनकाल से संस्कृत से ज्यों का त्यों ग्रहण कर प्रयोग में लाया गया ! 

मुस्लिम में माह 'रबी' सूर्य के द्योतक  'रवि' का अपभ्रंश लगता है क्योंकि संस्कृत का 'व'  प्राकृत में 'ब' में परिवर्तित हो जाता है ! 

यह आश्चर्यजनक समानता है कि अधिकाँश मुस्लिम त्यौहार शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाये जाते हैं, जो एकादशी के पुरातन वैदिक महत्त्व का द्योतक है ! 
इसी प्रकार संस्कृत में 'ईड ' का अर्थ पूजन है ! पूजा से आनंद जन्मता है ! आनंदोत्सव के रूप में इस्लाम का शब्द 'ईद' विशुद्ध रूप से संस्कृत का ही है ! 

हिन्दू धर्म में राशियों का विवरण है ! एक राशि 'मेष' है, जिसका सम्बन्ध मेमने (भेड़) से है !  पुराने समय में जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता था, तो नवीन वर्ष का आरम्भ होता था ! इस अवसर पर मांस-भोजन का प्रचलन था ! लोग ऐसा करके अपनी ख़ुशी प्रकट करते थे ! 'बकरी- ईद' का उदभव भी इसी तरह हुआ होगा ! 

ईदगाह भी इसी तरह सामने आया होगा ! जहाँ तक नमाज़ का सवाल है, वह संस्कृत की दो धातुएं 'नम' और  'यज' से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ झुकना तथा पूजा करना है ! 

रमजान के महीने को अरबी भाषा में 'सियाम' भी कहा जाता है ! 'सियाम' शब्द  'सौम' से बना है, जिसका अर्थ है - रुक जाना अर्थात एक विशेष अवधि तक के लिए खाने-पीने एवं स्त्री प्रसंग में रुक जाना !      

प्रार्थना करने से पहले शरीर के पांच भागों की स्वच्छता मुस्लिमों के लिए अनिवार्य है ! यह विधान भी 'शरीर शुद्धयर्थ पंचांगन्यास' से ही व्यत्पन्न स्पष्ट होता है ! 

इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार उनके अनुयायिओं के लिए पांच फ़र्ज़ हैं --
1- तौहीद - (एक ईश्वर और अंतिम पैगम्बर पर ईमान)
2- नमाज़ - (उपासना) 
3- रोजा - (उपवास) 
4- ज़कात - (सात्विक दान) 
5- हज - (तीर्थाटन)  

इससे प्रतीत होता है कि मूलाधार एक ही है, सिर्फ पूजाविधि परिवर्तित है   


प्रस्तुति -