गीत:
एक समुन्दर दो पतवार...
संजीव 'सलिल'
*

एक समुन्दर दो पतवार,
तज मत हिम्मत होगा पार...
*
विधि की रचना एक पहेली,
लगे कठिन, हो सहज सहेली.
कोई रो-पछताकर झेले,
और किसी ने हँसकर झेली.
शांत सलिल के नीचे रहती-
है लहरों की ठेला-ठेली.
गिनने की कोशिश मत करना
बाधाएँ हैं अपरम्पार...
*
हरि ही बनकर बदरी छाये,
सूरज मंद मगर मुस्काये.
किसकी हिम्मत राह रोक ले-
चमक रास्ता फिर दिखलाये.
उठ पतवार थाम ले नाविक
कोशिश नैया पार लगाये.
तूफानों की फ़िक्र न करना
पायेगा अति शीघ्र किनार...
*
हर विष को अमृत सम पीते.
हर संकट हिम्मत से जीते.
दुनिया उउके गुण गये जो-
पीर सहे चुप आँसू पीते..
उसे शेष पाना है केवल-
जिसके कर हैं खाली-रीते.
और न कोई भी कर सकता
कर रे मन अपना उद्धार...
*
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
९४२५१८३२४४
एक समुन्दर दो पतवार...
संजीव 'सलिल'
*

एक समुन्दर दो पतवार,
तज मत हिम्मत होगा पार...
*
विधि की रचना एक पहेली,
लगे कठिन, हो सहज सहेली.
कोई रो-पछताकर झेले,
और किसी ने हँसकर झेली.
शांत सलिल के नीचे रहती-
है लहरों की ठेला-ठेली.
गिनने की कोशिश मत करना
बाधाएँ हैं अपरम्पार...
*
हरि ही बनकर बदरी छाये,
सूरज मंद मगर मुस्काये.
किसकी हिम्मत राह रोक ले-
चमक रास्ता फिर दिखलाये.
उठ पतवार थाम ले नाविक
कोशिश नैया पार लगाये.
तूफानों की फ़िक्र न करना
पायेगा अति शीघ्र किनार...
*
हर विष को अमृत सम पीते.
हर संकट हिम्मत से जीते.
दुनिया उउके गुण गये जो-
पीर सहे चुप आँसू पीते..
उसे शेष पाना है केवल-
जिसके कर हैं खाली-रीते.
और न कोई भी कर सकता
कर रे मन अपना उद्धार...
*
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
९४२५१८३२४४