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शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

कुण्डलिया

कार्यशाला:
एक कुण्डलिया : दो कवि
तन को सहलाने लगी, मदमाती सी धूप
सरदी हंटर मारती, हवा फटकती सूप -शशि पुरवार

हवा फटकती सूप, टपकती नाक सर्द हो
हँसती ऊषा कहे, मर्द को नहीं दर्द हो
छोड़ रजाई बँधा, रहा है हिम्मत मन को
लगे चंद्र सा, सूर्य निहारे जब निज तन को - संजीव
***  

मंगलवार, 13 जनवरी 2015

navgeet: sanjiv

अनुभूति अंतरजाल पत्रिका के संक्रांति अंक में प्रकाशित नवगीत:
 संजीव