श्री सरस्वती नाम स्तोत्र (जैन मत)
सरस्वत्या: प्रसादेन काव्यं कुर्वन्तु मानवा
तस्मान्निश्चल भावेन पूज्यनीय सरस्वती
श्री सर्वज्ञ मुखोत्पन्ना भारती बहुभाषिणी
अज्ञान तिमिरं हन्ति विद्या बहु विकासिनि
सरस्वती मया दृष्टा दिव्या कमल लोचना
हंस स्कंध समारूढ़ा, वीणा पुस्तक धारिणी
प्रथमं भारती नाम, द्वितीयं तु सरस्वती
तृतीयं शारदा देवी, चतुर्थं हंसगामिनी
पंचमं विदुषी माता, षष्ठं वाणीश्वरी तथा
कुमारी सप्तमं [प्रोक्तं , अष्टम ब्रह्मचारिणी
नवमं च जगन्माता , दशमं ब्रह्मिणी तथा
एकादशं तु ब्रह्माणी, द्वादशं वरदा भवेत्
वाणी त्रयोदशं नाम, भाषा चैव चतुर्दशम
पंचदशं तु श्रुतदेवी , षोड़शं गोर्निगघते
एतानि श्रुतनामानि , प्रातरुत्थाय य: पठेत
तस्य संतुष्याति माता, शारदा वरदा भवेत्
सरस्वती नमस्तुभ्यं , वरदे कामरूपिणी
विद्यारंभ करिष्यामि , सिद्धिर्भवन्तु मे सदा
(श्रावकों हेतु नित्य पटरसी )
आभार - मनोरमा जैन 'पाखी'
*
माँ शारदे
सुनीता सिंह, लख़नऊ
*
हे वेद, विद्या दायिनी! शुभदा रमा, सौदामिनी!
कुमुदी परा सुरपूजिता! सुर वन्दिता वर दायिनी!
हे शिवानुजा हंस वाहिनी!
माँ शारदे! तुझको नमन है।
बुद्धिदात्री भुवनेश्वरी, शतरूपिणी वागीश्वरी!
महाभद्रा हंसानना, सुरसती वीणा वादिनी!
हे निरंजना शुभ सुवासिनी!
माँ शारदे! तुझको नमन है।
तेज बुद्धि प्रबल प्रखरता, ओज वाणी में निखरता।
मूढ़ता का तम बिखरता, वचन मधु सदृश सँवरता।
आशीष मांगे ये चमन है।
माँ शारदे! तुझको नमन है॥
संत्रास की हैं त्राहियाँ, बिखराव की हैं वादियाँ।
विद्वेष की संक्रांतियां, विचलित हुई विश्रांतियाँ।
संत्राण का करना शमन है॥
माँ शारदे! तुझको नमन है॥
देश की रज स्वर्ण कर दे, भाल आभा ओज भर दे।
श्रृंग सा उत्तुंग कर दे, जोश की अनमिट लहर दे।
ये प्राण करते आचमन हैं॥
माँ शारदे! तुझको नमन है॥
*
सरस्वत्या: प्रसादेन काव्यं कुर्वन्तु मानवा
तस्मान्निश्चल भावेन पूज्यनीय सरस्वती
श्री सर्वज्ञ मुखोत्पन्ना भारती बहुभाषिणी
अज्ञान तिमिरं हन्ति विद्या बहु विकासिनि
सरस्वती मया दृष्टा दिव्या कमल लोचना
हंस स्कंध समारूढ़ा, वीणा पुस्तक धारिणी
प्रथमं भारती नाम, द्वितीयं तु सरस्वती
तृतीयं शारदा देवी, चतुर्थं हंसगामिनी
पंचमं विदुषी माता, षष्ठं वाणीश्वरी तथा
कुमारी सप्तमं [प्रोक्तं , अष्टम ब्रह्मचारिणी
नवमं च जगन्माता , दशमं ब्रह्मिणी तथा
एकादशं तु ब्रह्माणी, द्वादशं वरदा भवेत्
वाणी त्रयोदशं नाम, भाषा चैव चतुर्दशम
पंचदशं तु श्रुतदेवी , षोड़शं गोर्निगघते
एतानि श्रुतनामानि , प्रातरुत्थाय य: पठेत
तस्य संतुष्याति माता, शारदा वरदा भवेत्
सरस्वती नमस्तुभ्यं , वरदे कामरूपिणी
विद्यारंभ करिष्यामि , सिद्धिर्भवन्तु मे सदा
(श्रावकों हेतु नित्य पटरसी )
आभार - मनोरमा जैन 'पाखी'
*
माँ शारदे
सुनीता सिंह, लख़नऊ
*
हे वेद, विद्या दायिनी! शुभदा रमा, सौदामिनी!
कुमुदी परा सुरपूजिता! सुर वन्दिता वर दायिनी!
हे शिवानुजा हंस वाहिनी!
माँ शारदे! तुझको नमन है।
बुद्धिदात्री भुवनेश्वरी, शतरूपिणी वागीश्वरी!
महाभद्रा हंसानना, सुरसती वीणा वादिनी!
हे निरंजना शुभ सुवासिनी!
माँ शारदे! तुझको नमन है।
तेज बुद्धि प्रबल प्रखरता, ओज वाणी में निखरता।
मूढ़ता का तम बिखरता, वचन मधु सदृश सँवरता।
आशीष मांगे ये चमन है।
माँ शारदे! तुझको नमन है॥
संत्रास की हैं त्राहियाँ, बिखराव की हैं वादियाँ।
विद्वेष की संक्रांतियां, विचलित हुई विश्रांतियाँ।
संत्राण का करना शमन है॥
माँ शारदे! तुझको नमन है॥
देश की रज स्वर्ण कर दे, भाल आभा ओज भर दे।
श्रृंग सा उत्तुंग कर दे, जोश की अनमिट लहर दे।
ये प्राण करते आचमन हैं॥
माँ शारदे! तुझको नमन है॥
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सरस्वती-वंदना
भागवतशरण झा 'अनिमेष '
भागवतशरण झा 'अनिमेष '
शारदे , अब तो कृपा करो
मन का काँच करो अब कंचन
कोमल भाव भरो
शारदे , अब तो कृपा करो।
मन का काँच करो अब कंचन
कोमल भाव भरो
शारदे , अब तो कृपा करो।
मन का कलुष दूर हो क्षण में
सहज प्रेम उमड़े जन-गण में
रहे निरापद सत्य सृजन में
नवोल्लास ज्यों संतशरण में
सहज सरलता साथ न छोड़े
बारम्बार ढरो
सहज प्रेम उमड़े जन-गण में
रहे निरापद सत्य सृजन में
नवोल्लास ज्यों संतशरण में
सहज सरलता साथ न छोड़े
बारम्बार ढरो
दिन है फिर भी अन्धकार है
ताल ठोकता दुराचार है
करुणाकलित चित्र जीवन के
आज शिखर पर अहंकार है
नवोत्कर्ष हर्ष दो जननी
जग-दुख-दोष हरो
ताल ठोकता दुराचार है
करुणाकलित चित्र जीवन के
आज शिखर पर अहंकार है
नवोत्कर्ष हर्ष दो जननी
जग-दुख-दोष हरो
कवि अनिमेष भागवत मन में
सदा बिराजे छनन-छनन - से
चिंतन-मनन-सृजन-सुख छलके
खनके खुशहाली जीवन में
संशय -विषय-विहग उड़ जाए
नव निर्माण वरो
शारदे ! अब तो कृपा करो।
( वसंतपंचमी , 2011 )
सदा बिराजे छनन-छनन - से
चिंतन-मनन-सृजन-सुख छलके
खनके खुशहाली जीवन में
संशय -विषय-विहग उड़ जाए
नव निर्माण वरो
शारदे ! अब तो कृपा करो।
( वसंतपंचमी , 2011 )
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