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रविवार, 12 फ़रवरी 2023

पुस्तक विमोचन, संगीता भारद्वाज, नवनीता चौरसिया, अस्मिता 'शैली' , जयंत भारद्वाज

पुस्तक विमोचन वक्तव्य 
यादों के पलाश तथा यात्राओं की तलाश - डॉ. संगीता भारद्वाज। 
मन नवनीत - नवनीता चौरसिया 
सृजन के सोपान - अस्मिता 'शैली' 
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ॐ अनाहद नाद, चित्र गुप्त जो चित्त में।
वही वर्ण बन व्याप्त, होता सदा कवित्त में।।
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कलकल-कलरव व्याप, करे शारदा वंदना। 
कण-कण में है आप, दीप ज्योति कर साधना।।।
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'तरुण' अरुण 'पाथेय', 'श्री वास्तव' में लुटाता। 
नर के मध्य 'सुरेश', कलाकार की कला सम।।
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पाकर 'चंद्रा' छाँव, 'भगवत' होती 'तनूजा'।।
काव्य-कला के गाँव, हो 'जयंत' हर नव सृजन।।
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जीव तभी 'संजीव', जब 'प्रवीण' हो 'मुसाफिर'। 
प्रगटे करुणासींव, बिंदु-शब्द में आप ही।।
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'संगीता' हर श्वास, 'नवनीता' हो आस हर। 
करे 'अस्मिता' रास, 'शैली' 'पथिक' 'मधुर' चुने।।
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जब जब शत आकर, निराकार 'अन्विता' ले।  
तब सपने साकार, हो 'मौली' सम साथ हों।।
जीवन रेवा तीर,'यादें बने पलाश' जब। 
दहकें दे सुख-पीर, बिछुड़े-बीते-यादकर।।
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करते रहें 'तलाश, यात्राओं की' जो सतत। 
वे बाँधें भुज-पाश, प्रकृति-सुंदरी की छटा।।
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होता 'मन नवनीत' जब, तन हो जब चट्टान। 
तब रस-निधि रस-लीन हो, आत्म बने रस-खान।। 
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पाए परमानंद, चढ़े सृजन सोपान जो।
पल पल आनंदकंद, रहें सदा उस पर सदय।।
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सृजन 'त्रिवेणी' आज, 'कला वीथिका' में बहे। 
धन्य सार्थक काज, जो अवगाहे वह कहे।।  
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बिंदु-लकीर न भिन्न, हैं अभिन्न तन-आत्म सम। 
शब्दोच्चार अभिन्न, परापरा इनमें निहित।। 
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रचना-रचनाकार, सृष्टि-ब्रह्म सम एक हैं।  
दिखते रूप हजार, कोई गिन सकता नहीं।।
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हर रेखा में ताल, बिंदु बिंदु में नाद है।
सचमुच किया कमाल, वाह वाह शैली गजब।।
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शैली के संकेत, सोपानों पर सृजन के। 
अंतर्मन अनिकेत, देख सराहें मुग्ध सब।।
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खाता मिसरी घोल, कान्हा मन नवनीत ले।
वृत्ति रही है बोल, नवनीता की विनोदी।।
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यादें देतीं साथ, तब जब जब खिलें पलाश।
मौलि शुभागत हाथ, मन जयंत हो बाँधता।।
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बढ़ते पैर तलाश, यात्राओं की जब करें।
यादें हों भुजपाश, मंज़िल मिलकर नहिं मिले।।
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पद्य-गद्य अरु चित्र, त्रिदल त्रिवेणी त्रिनेत्री। 
त्रिपुर त्रिकाल त्रिमित्र, ताप दोष पावक त्रयी।।
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जोड़ तीन संयोग, तीन भगिनियाँ त्रिदेवी। 
शुभ सारस्वत योग, तीन राम ज्यों हों वरद।  
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दिन अंबर ले नाप, चार दिशा सम पुस्तकें। 
करें अभय हर ताप, मन पर देकर दस्तकें।।
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वेद धाम युग पीठ, आश्रम वर्ण विकार भी। 
सब जानें हैं चार, चतुरानन को कर नमन।।
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ग्यारह रुद्र पधार, तिथि ग्यारह एकादशी। 
दे आशीष निहार, कहें पञ्च अमृत पियो।।
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हुए मंच आसीन, पाँच अतिथि सुर पाँच ज्यों। 
यज्ञ प्राण नद तत्व, गव्य भूत शर पाँच ही।। 
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ग्यारह दो तेईस, नौ शुभांक दे पूर्णता। 
पूजें मातृ मनीश, भक्ति नंद निधि रत्न ग्रह।।
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चढ़ें सृजन सोपान, फागुन सावन सम लगे। 
यादें तान वितान, रंग पलाशी बिखेरें।।
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खुद की करें तलाश, यात्राओं में हम सभी।
पाकर मन नवनीत, आह्लादित हों कान्ह सम।। 
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बुधवार, 8 अप्रैल 2009

साहित्य समाचार : पुस्तक विमोचन

समीर लाल की काव्य कृति 'बिखरे मोती विमोचित
'दिल की गहराई से निकली और ईमानदारी से कही गयी कविता ही असली कविता' - संजीव 'सलिल'
जबलपुर। सनातन सलिला नर्मदा के तट पर स्थित संस्कारधानी के सपूत अंतर्जाल के सुपरिचित ब्लोगर कनाडा निवासी श्री समीर लाल 'उड़नतश्तरी' की सद्य प्रकाशित प्रथम काव्य कृति 'बिखरे मोती' का विमोचन ४ अप्रैल को होटल सत्य अशोका के चाणक्य सभागार में दिव्य नर्मदा पत्रिका के सम्पादक आचार्य संजीव 'सलिल' के कर कमलों से संपन्न हुआ. इस अवसर पर इलाहांबाद से पधारे श्री प्रमेन्द्र 'महाशक्ति' तथा सर्व श्री, ताराचन्द्र गुप्ता प्रतिनिनिधि हरी भूमि दैनिक, , डूबे जी कार्टूनिस्ट, गिरिश बिल्लोरे, संजय तिवारी संजू, बवाल, विवेक रंजन श्रीवास्तव, आनन्द कृष्ण, महेन्द्र मिश्रा 'समयचक्र' सहभागी हुए.


कृति का विमोचन करते हुए श्री सलिल ने 'बिखरे मोती' के कविताओं के वैशित्य पर प्रकाश डालते हुए इन्हें 'बेहद ईमानदारी और अंतरंगता से कही गयी कविता बताया। उन्होंने शाब्दिक लफ्फाजी, भाषिक आडम्बर तथा शिपिक भ्रमजाल को खुद पर हावी न होने देने के लिए कृतिकार श्री समीर को बधाई देते हुए कहा- 'दिल की गहराई से निकली और ईमानदारी से कही गयी कविता ही असली कविता होती है।' कवि समीर द्वारा अपनी माँ को यह कृति समर्पित किये जाने को उन्होंने भारतीय संस्कारों का प्रभाव बताया तथा इस सारस्वत अनुष्ठान की सफलता की कामना की तथा कहा-

'बिखरे मोती' साथ ले, आये लाल-बवाल।

काव्य-सलिल में स्नान कर, हम सब हुए निहाल।

हम सब हुए निहाल, सुहानी साँझ रसमयी।

मिले ह्रदय से ह्रदय, नेह नर्मदा बह गयी।

थे विवेक आनंद गिरीश प्रमेन्द्र तिवारी।

बिन डूबे डूबे महेंद्र सुन रचना प्यारी.

पहली पुस्तक लेखक के लिए एक अद्‍भुत घटना होती है- समीर लाल

विमोचन के पश्चात् विचार व्यक्त करते हुए श्री समीर ने अपनी माताजी का स्मरण किया। अल्प समयी प्रवास में शीघ्रता से किये गए इस आयोजन के सभी सहयोगियों और सहभागियों से अंतर्जालीय चिटठा जगत में जुड़ने और प्रभावी भूमिका निभाने की अपेक्षा करते हुए समीर जी ने चयनित कविताओं का पाठ किया. श्री सलिल तथा श्री विवेक रंजन माता के विछोह को जीवन का दारुण दुःख बताते हुए समीर जी के साथ माता के विछोह की यादों को साँझा किया. समीर जी ने आकर्षक कलेवर में इस संकलन को प्रकाशित करने के लिए सर्वश्री पंकज सुबीर, रमेश हटीला जी, बैगाणी बंधुओं का विशेष आभार व्यक्त किया।

वातावरण को पुनः सहज बनाते हुए श्री गिरीश बिल्लोरे ने नगर के चिट्ठाकारों के नियमित मिलन का प्रस्ताव किया जिसका सभी ने समर्थन किया। सारगर्भित विचार विनिमय तथा पारिवारिक वातावरण में काव्य पाठ के पश्चात् पारिवारिक वातावरण में रात्रि-भोज के साथ इस आत्मीय कार्यक्रम का समापन हुआ.

रविवार, 5 अप्रैल 2009

साहित्य समाचार : 'शर्म इनको मगर नहीं आती विमोचित"

साहित्य समाचार : 'शर्म इनको मगर नहीं आती' विमोचित
जबलपुर। प्रसिद्द साहित्यकार-पत्रकार साज जबलपुरी के व्यंग लेख संग्रह 'शर्म इनको मगर नहीं आती' का विमोचन अप्रैल २००८ को स्थनीय अरिहंत पैलेस होटल में श्री शशिधर डिमरी, वरिष्ठ महाप्रबंधक आयुध निर्माणी खमरिया के कर कमलों से संपन्न हुआ। श्री एम्. एस. बहोरिया 'अनीस' के संचालन में संपन्न कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्यकारों ने साज जी को बधाई दी। विमोचित कृति की समीक्षा करते हुए डॉ. श्रीमती जगिंदर गुजराल ने साज की पैनी दृष्टि और चुटीली शैली की सराहना की। सर्व श्री अंश्लाल पंद्रे, विजय नेमा 'अनुज' तथा गीता 'गीत' ने सक्रियता से कार्यक्रम को सफल बनाया।
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