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रविवार, 30 जून 2013

science: manav kloning dr. deepti gupta

विज्ञान सलिला :
मानव क्लोनिंग
डॉ. दीप्ति गुप्ता 
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मनुष्य बहुत कुछ करना  चाहता है,  कर्म भी करता है भरसक प्रयास  भी  करता है लेकिन  कुछ काम हो पाते हैं और शेष नहीं हो पाते! जैसे  अनेक समृद्ध व संपन्न होने का प्रयास  करते है लेकिन  नहीं हो पाते! जो बिज़नेस करना चाहता  है, वह उसमें असफल होकर अध्यापक बन जाता है, जो संगीतज्ञ  बनना चाहताहै, वह डाक्टर बन जाता है, तमाम आई.पी. एस. अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी  अपनी  अफसरी छोडकर विश्वविद्यालय  प्रोफैसर बने! जिससे सिद्ध होता है कि ईश्वरेच्छा सर्वोपरि है!  इसी प्रकार, बहुत से जोड़े चाहते हुए भी  माता-पिता  ही नहीं बन पाते !

‘क्लोन’शब्द प्राचीन ग्रीक शब्द Klon, twig से व्युत्पन्न हुआ जो पेड़ की शाख से  नया पौधा पैदा किया जाने की प्रकिया के लिए प्रयुक्त किया जाता था! धीरे-धीरे यह शब्दकोष में सामान्य सन्दर्भ में प्रयुक्त होने लगा! ‘ईव’ सबसे पहली मानव क्लोन थी! जब वह जन्मी तो, उसने अपने साथ  वैज्ञानिक और राजनीतिक बहस को भी जन्म दिया! इस विषय पर आगे बढ़ने से पहले हमें मानव क्लोनिंग  को एक बार अच्छी तरह समझ लेना चाहिए! समान जीवो को उत्पन्न करने की  प्रक्रिया ‘प्रतिरूपण’ (क्लोनिंग) कहलाती है अर्थात प्रतिरूपण (क्लोनिंग) आनुवांशिक रूप से ‘समान दिखने’ वाले  प्राणियों को जन्म देने वाली ऐसी प्रकिया है जो विभिन्न जीवों से खास प्रक्रिया से प्रजनन करने पर घटित होती है! जैसे फोटोकापी मशीन से अनेक छायाप्रतियां बना लेते हैं उसी तरह  डी.एन.ए. खंडों (Molecular cloning) और कोशिकाओं (Cell Cloning) के भी प्रतिरूप बनाए जाते हैं!  बायोटेक्नोलौजी में  डी.एन.ए. खण्डों  के  प्रतिरूपण  की प्रक्रिया को  ‘क्लोनिंग’  कहते हैं ! यह टर्म किसी भी चीज़ की अनेक  प्रतिरूप (से डिजिटल मिडिया) बनाने  के लिए भी  प्रयुक्त होता है !
 
'प्रतिरूपण'   की  पद्धति - 

          जेनेटिक तौर पर अभिन्न पशुओं के निर्माण के लिए प्रजननीय प्रतिरूपण आमतौर पर "दैहिक कोशिका परमाणु हस्तांतरण" (SCNT = Somatic-cell nuclear transfer) का प्रयोग करता है !  इस प्रक्रिया में एक 'दाता (Donar) वयस्क कोशिका' (दैहिक कोशिका) से किसी नाभिक-विहीन अण्डे में नाभिक (nucleus) का स्थानांतरण  शामिल करना होता है !  यदि अण्डा सामान्य रूप से विभाजित हो जाए, तो इसे   'प्रतिनिधि  माँ ' (surrogate mother) के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है ! फिर धीर-धीरे  उसका विकास होता जाता है !

       इस प्रकार के प्रतिरूप पूर्णतः समरूप नहीं होते क्योंकि दैहिक कोशिका के नाभिक डी.एन.ए में कुछ परिवर्तन हो सकते हैं !  किन्ही  विशेष कारणों से वे  अलग भी  दिख  सकते हैं !   surrogate माँ के हार्मोनल प्रभाव भी  इसका एक कारण माना जाता है ! यूं तो स्वाभाविक रूप से पैदा हुए  जुडवां बच्चो के भी उँगलियों के निशान भिन्न  होते है , स्वभाव अलग होते हैं, रंग फर्क  होते हैं !

             हाँलाकि  १९९७ तक  प्रतिरूपण साइंस फिक्शन की चीज़  था ! लेकिन  जब ब्रिटिश शोधकर्ता ने ‘डौली’ नामकी  भेड का क्लोन  प्रस्तुत किया (जो २७७ बार प्रयास करने के बाद सफल हुआ और डौली का जन्म हो पाया) तो तब से जानवरों - बंदर, बिल्ली, चूहे आदि पर  इस प्रक्रिया के  प्रयोग किए गए !  वैज्ञानिको  ने  मानव प्रतिरूपण का अधिक स्वागत नहीं किया  क्योकि  बच्चे के बड़े होने पर, उसके कुछ  नकारात्मक परिणाम सामने आए ! इसके आलावा, दस में से एक या दो भ्रूण ही सफलतापूर्वक विकसित  हो पाते हैं ! जानवरों पर किए  गए प्रयोगों से सामने आया कि २५  से ३० प्रतिशत जानवरों में  अस्वभाविकतएं आ जाती हैं ! इस दृष्टि से क्लोनिंग  खतरनाक है !
        वस्तुत; क्लोनिंग प्रतिरूपण के कुछ  ही सफल प्रयोगों पर हम खुश हो जाते है लेकिन यह  ध्यान देने योग्य बात है कि बड़ी संख्या में अनेक प्रयास  असफल ही रह जाते हैं ! जो सफल होते हैं उनमें बाद में  कोई  प्राणी बड़ा होता जाता है, उसकी अनेक शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी सामने आने लगती हैं ! अब तक जानवरों के जो प्रतिरूपण बनाए गए उनसे निम्नलिखित समस्याएं
 सामने आई  -
१)       परिणाम असफल रहे ! यह प्रतिशत ०.१ से ३ तक ही रहा ! मतलब कि यदि १००० प्रयास  किए गए तो उनमें ३०   प्रतिरूपण ही सफल हुए ! क्यों ?
   *    नाभिक-विहीन अण्डे  और स्थानांतरित नाभिक (nucleus)  में   अनुकूलता (compatibility) न बैठ पाना  !
 
   *   अंडे का विभाजित न होना और विकसित  होने में बाधा  आना !
           *   प्रतिनिधि (Surrogate )  माँ के गर्भाशय में अंडे को स्थापित करने पर , स्थापन का असफल हो जाना
 
       *  बाद के विकास  काल में समस्याएं आना !


 २) जो  जानवर  जीवित रहे वे आकार में सामान्य से  काफी बड़े थे ! वैज्ञानिको ने इसे "Large Offspring Syndrome" (LOS) के नाम से अभिहित किया ! इसी  तरह उनके ऊपरी आकार ही नहीं अपितु, शिशु जानवरों के अंदर के अंग भी विशाल आकार के पाए गए ! जिसके करण उन्हें साँस लेने, रक्त संचालन व  अन्य समस्याएं हुई ! लेकिन ऐसा  हमेशा  नहीं भी घटता है ! कुछ  क्लोन प्राणियों की किडनी  और मस्तिष्क के आकार विकृत पाए गए तथा  इम्यून सिस्टम भी  अशक्त  था ! 

३)    जींस के (एक्सप्रेशन) प्रस्तुति सिस्टम का  असामान्य होना भी सामने आया ! यद्यपि क्लोन मौलिक  देहधारियो जैसे ही दिखते है और उनका डी एन ए  sequences क्रम भी समान होता है ! लेकिन वे सही समय पर सही जींस को  प्रस्तुत कर पाते हैं ? यह सोचने का विषय है !
४ )     Telomeric विभिन्नताएँ - जब कोशिका या कोशाणु (cells )विभाजित होते हैं तो, गुण सूत्र (chromosomes) छोटे होते जाते हैं! क्योकि डी.एन.ए क्रम (sequences) गुण सूत्रों के दोनों ओर- जो टेलोमियर्स – कहलाते हैं वे हर बार डी.एन.ए के प्रतिरूपण प्रक्रिया के तहत लम्बाई में सिकुडते जाते हैं !  प्राणी उम्र में जितना बड़ा होगा टेलीमियर्स उतने ही छोटे होगें ! यह उम्रदर प्राणियों के साथ एक सहज प्रक्रिया है ! ये भी समस्या का विषय निकला !

           इन कारणों से विश्व के वैज्ञानिक मानव प्रतिरूपण के पक्ष में नहीं  हैं! वैसे भी कहा यह जाता है कि इस तरह बच्चा प्राप्त करने कि प्रक्रिया उन लोगों के लिए सामने  लाई  गई, जो चाहते हुए भी माता-पिता  नहीं बन पाते! 

अब आप खुद  ही सोचिए कि  ईश्वर  प्रदत्त  मानव  ज्यादा बेहतर कि इस तरह के कृत्रिम विधि से पैदा  मानव..... जिनमे तमाम विकृतियां अधिक और सामान्य - स्वस्थ शरीर  कम मिलेगे ! प्रकति पर विजय प्राप्त करने के नतीजे अभी केदारनाथ-बद्रीनाथ की प्रलय में देख ही लिए हैं ! आने वाले समय में ९० प्रतिशत  विकृत शरीर, विकृत मनों-मस्तिष्क वाले अक्षम मनुष्य  और देखने को मिलेगें  ! इसलिए प्रकृति  के खिलाफ जाना   श्रेयस्कर  नहीं ! प्रकृति यानी ईश्वर का प्रतिरूप - उसके  अनुरूप ही अपने को ढाल कर चलना  चहिए  क्योंकि  हम उसका सहज- स्वाभाविक हिस्सा है !
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