नवगीत:
संजीव 'सलिल'
दवा ज़हर की
सिर्फ ज़हर है...
*
विश्वासों को
तजकर दुनिया
सीख-सिखाती तर्क.
भुला रही
असली नकली में
कैसा, क्या है फर्क?
अमृत सागर सुखा
पूछती कहाँ खो गयी
हर्ष-लहर है...
*
राष्ट्र भूलकर
महाराष्ट्र की
चिंता करता राज.
असल नहीं, अब
हमें असल से
ज्यादा प्यारा ब्याज.
प्रकृति पुत्र है,
प्रकृति का शोषक
ढाता रोज कहर है....
*
दुनिया पूज रही
हिंदी को.
हमें न तनिक सुहाती.
परदेशी भाषा
अन्ग्रेज़ी हमको
'सलिल' लुभाती.
लिखीं हजारों गजल
न लेकिन हमको
ज्ञात बहर है...
*****************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
hindi song लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
hindi song लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शनिवार, 14 नवंबर 2009
नवगीत: संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
-acharya sanjiv 'salil',
geet,
hindi song,
navgeet

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009
नवगीत: हिंद और/ हिंदी की जय हो... संजीव 'सलिल'
नवगीत:
संजीव 'सलिल'
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
जनगण-मन की
अभिलाषा है.
हिंदी भावी
जगभाषा है.
शत-शत रूप
देश में प्रचलित.
बोल हो रहा
जन-जन प्रमुदित.
ईर्ष्या, डाह, बैर
मत बोलो.
गर्व सहित
बोलो निर्भय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
ध्वनि विज्ञानं
समाहित इसमें.
जन-अनुभूति
प्रवाहित इसमें.
श्रुति-स्मृति की
गहे विरासत.
अलंकार, रस,
छंद, सुभाषित.
नेह-प्रेम का
अमृत घोलो.
शब्द-शक्तिमय
वाक् अजय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
शब्द-सम्पदा
तत्सम-तद्भव.
भाव-व्यंजना
अद्भुत-अभिनव.
कारक-कर्तामय
जनवाणी.
कर्म-क्रिया कर
हो कल्याणी.
जो भी बोलो
पहले तौलो.
जगवाणी बोलो
रसमय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
**************
संजीव 'सलिल'
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
जनगण-मन की
अभिलाषा है.
हिंदी भावी
जगभाषा है.
शत-शत रूप
देश में प्रचलित.
बोल हो रहा
जन-जन प्रमुदित.
ईर्ष्या, डाह, बैर
मत बोलो.
गर्व सहित
बोलो निर्भय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
ध्वनि विज्ञानं
समाहित इसमें.
जन-अनुभूति
प्रवाहित इसमें.
श्रुति-स्मृति की
गहे विरासत.
अलंकार, रस,
छंद, सुभाषित.
नेह-प्रेम का
अमृत घोलो.
शब्द-शक्तिमय
वाक् अजय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
शब्द-सम्पदा
तत्सम-तद्भव.
भाव-व्यंजना
अद्भुत-अभिनव.
कारक-कर्तामय
जनवाणी.
कर्म-क्रिया कर
हो कल्याणी.
जो भी बोलो
पहले तौलो.
जगवाणी बोलो
रसमय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
**************
चिप्पियाँ Labels:
-acharya sanjiv 'salil',
Contemporary Hindi Poetry,
geet,
hindee,
hindi song,
navgeet
सदस्यता लें
संदेश (Atom)