कुल पेज दृश्य

jyotish लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
jyotish लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 7 अगस्त 2019

ज्योतिष / वास्तु जन्म लग्न, रोग और भोजन पात्र

ज्योतिष / वास्तु 
जन्म लग्न, रोग और भोजन पात्र -
मेष, सिंह, वृश्चिक लग्न- ताँबे के बर्तन पित्त, गुरदा, ह्रदय, श्रम भगंदर, यक्ष्मा आदि रोगों से बचायेंगे।
मिथुन, कन्या, धनु, मीन लग्न- स्टील के बर्तनों से अनिद्रा, गठिया, जोड़ दर्द, तनाव, अम्लता, आंत्र दोष की संभावना। कांसे के बर्तन लाभदायक।
वृष, कर्क, तुला लग्न - स्टील के बर्तनों से आँख, कान, गले, श्वास, मस्तिष्क संबंधी रोग हो सकते हैं। चाँदी - पीतल मिश्र धातु का प्रयोग लाभप्रद। 
मकर लग्न - किसी धातु के साथ लकड़ी के पात्र का प्रयोग वायु दोष, चर्म रोग, तिल्ली, उर्वरता, स्मरण शक्ति हेतु फायदे मन्द।
कुम्भ लग्न - स्टील पात्र लाभप्रद, मिट्टी के पात्र में केवड़ा मिला जल लाभदायक।
***

शनिवार, 1 नवंबर 2014

jyotish: ratn kab aur kyon? -neena sharma

ज्योतिष:
आज कुछ मित्रो ने रत्न  के विषय में पुछा था। मै  यहां बताना चाहूंगी  की रत्न ऐसे ही नहीं पहने जा सकते उनको पहनने के लिए  योग्य ज्योतिष का पंडित का होना आवशयक  है आज कल बहुत से नकली रत्न भी भरे पड़े हैं  बहूत सावधानी  बरतनी चाहिए आपने  जो कहा की  कुछ मित्रो ने  पहने  और उनको हानि पहुंचीं  है इसलिए मैं आप को बता रही हूँ  परन्तु तब भी आप को कुंडली के हिसाब से पेहनंना पड़ेगा  लेकिन देखना  होगा की आपके लिए क्या सही है ? आपकी राशि और भाग्य रत्न..---
हमारे जीवन में नौ रत्नों का बहुत महत्व है. इनको धारण करने से हम अपने भाग्य के रास्ते की बाधा को काफी हद तक दूर करने में सक्षम हो सकते है.हमारी जन्म राशि और लग्न, अपने अन्दर सभी तरह के गुण-दोषों को लिए हुये है, जैसे आयु से सम्बंधित, स्वास्थ्य से इसका गहरा संबंध है.धन का यह प्रतिनिधित्व करती है. यश प्राप्ति में सहायक व काम धंधे की परिचायक, हमारा आचार-व्यवहार तथा विचारों का आदान प्रदान, इन सभी व्यापक गुणों की दृष्टि में रखते हुये हमें राशि(लग्न) से सम्बंधित रत्न धारण करना चाहिए राशि से सम्बंधित रत्न को मुख्य रत्न कहते है. कुछ रत्न ऐसे है, जो हमारे कष्टों का निवारण करते है. और कुछ रत्न ऐसे है, जो हमे कष्ट पंहुचाते है. यह जान लेना अति आवश्यक है कि आप जिस रत्न को धारण करने जा रहे है, कंहीं वह आपके लिए कष्टकारी तो नहीं? हम आपको सभी बारह राशियों(लग्न) के रत्नों के बारे में जानकारी देंगे कि कौन व्यक्ति अपनी राशि व लग्न के अनुसार कौन कौन से रत्न धारण कर सकता है.

अब हम माणिक्य रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......
मेष राशि :-- मेष राशि मंगल की राशि है. मेष राशि का व्यक्ति बुद्धि बल प्राप्त करने आत्मोन्नति, सन्तान सुख, प्रसिद्धि, राज्य कृपा के लिए माणिक्य धारण कर सकता है. सूर्य की महादशा में माणिक्य श्रेष्ठ फलदायक होता है.
वृष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि यह रत्न वृष राशि के व्यक्ति के लिए सूर्य की महादशा, अंतर्दशा आदि गोचर में अशुभ फल देगा.
मिथुन राशि :-- मिथुन राशि के व्यक्ति को माणिक्य रत्न सिर्फ सूर्य की दशा में ही धारण करना चाहिए वैसे कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.
कर्क राशि :- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए. यह धन के अभाव को दूर करने में सहायक होगा. तथा आंखों के कष्ट में भी लाभकारी होगा.
सिंह राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य अवश्य धारण करना चाहिए. शुभ फलदायक होगा. इस राशि वाले को जीवन भर माणिक्य लाभ ही लाभ प्रदान करेगा. इसे धारण करने से शत्रुओ पर विजय भी मिलती है. व मानसिक संतुलन बना रहता है. शारीरिक स्वास्थ तथा आत्मबल मिलता है.
कन्या राशि :-- उस राशि वालो को माणिक्य सदैव हानिकारक व कष्टकारी होगा. भयंकर दुर्घटना व नेत्र विकार से पीड़ित होने की संभावना बनी रहेगी.
तुला राशि :-- इस राशि वाले को केवल सूर्य की दशा में ही माणिक्य धारण करना चाहिए, जो कि लाभ के लिए शुभ होगा.
वृश्चिक राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य धारण करना चाहिए क्योंकि यह राशि मंगल की है अत: धारण करने से राज्य कृपा, प्रतिष्ठा, नौकरी में सफलता प्राप्त होगी.
धनु राशि :-- इस राशि वाले को माणिक्य धारण करना शुभ होगा यह भाग्य की वृद्धि में सहायक होगा.
मकर राशि :-- इस राशि वाले को भूल कर भी मानिक्या नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि यह उसे शारीरिक कष्ट, रोग दुर्घटना आदि परेशानी दे सकता है.
कुम्भ राशि :-- ऐसे व्यक्ति को माणिक्य पहनना तो क्या इससे दूर दूर रहना चाहिए. वरना भारी हानि करेगा. पति या पत्नी दोनों के लिए हानिकारक रहेगा.
मीन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति माणिक्य अपनी दशा सूर्य की दशा में धारण कर सकते है. जो रोगों से छुटकारा दिलवाने में सहायक सिद्ध होगा .......कुम्भ राशि :-- इस राशि के लोग नीलम धारण कर लाभ उठा सकते है. धन में वृद्धि करेगा. आंखों के दोषों का शमन करेगा. व्यय को कम करेगा. स्नायुओं को बल देगा. टांगो तथा पांवों को भी बल देगा. पुत्र की आयु में वृद्धि करेगा. पुत्र का भाग्य बढ़ाएगा.

मीन राशि :-- इस राशि के लोगो को नीलम रत्न नहीं धारण करना चाहिए. आंखों के रोगों को बढ़ाएगा. धन लाभ में कठिनाइयां उत्पन्न करेगा. स्वास्थ्य में भी हानि करेगा...

गोमेद और लहसुनिया (राहू एवं केतु रत्न)

गोमेद और लहसुनिया के रत्न को अपनी कुण्डली किसी विद्वान ज्योतिषी को दिखा कर परामर्श लेकर धारण करना अनिवार्य होता है. या इनकी दशाएँ आने पर परामर्श से पहन सकते है. क्योंकि यह दोनों छाया ग्रह के रूप में माने जाते है. वैसे राहू का गोमेद है तथा केतु का रत्न लहसुनियां है राहू ग्रह शनि की प्रवृति रखता है. और केतु ग्रह मंगल की प्रवृति के समान होता है. यह जरूरी नहीं कि यह दोनों कष्टकारी फल दें, शुभ फल भी प्राप्त हो सकते है. यह दोनों रत्न कोई भी और किसी भी राशि का व्यक्ति परामर्श कर के धारण कर सकता है. और उसे लाभ भी होगा....अlब हम मोती रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......
मेष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति यदि मोती धारण करते है तो उन्हें मानसिक शान्ति, विद्या सुख, गृह सुख और मातृ सुख का भरपूर लाभ मिलता है. यदि मोती को मंगल के रत्न मूंगा के साथ धारण किया जाये तो विशेष धन का लाभ होने लगता है.
वृष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को मोती कभी भी धारण नहीं करना चाहिए. यह शुभ फलदायक नहीं है.
मिथुन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को विशेष परिस्थितियों में मोती धारण करना लाभदायक हो सकता है. चन्द्रमा की दशा में मोती धारण करे तो उन्हें आर्थिक लाभ हो सकता है. मिथुन के लिए चन्द्रमा अशुभ भी है. इसे किसी ज्योतिषी से परामर्श करके धारण करें.
कर्क राशि :- इस राशि के व्यक्ति के लिए मोती अति शुभ कारक रहेगा. मोती धारण करने से स्वास्थ्य तथा आर्थिक पहलू पर नियंत्रण रहेगा. इनके जीवन में विनम्रता बनाए रखने में सक्षम होगा. आर्थिक दृष्टिकोण से लाभकारी होगा.
सिंह राशि :-- इस राशि का व्यक्ति मोती धारण कर सकता है. आंखों के रोगों को दूर करेगा. रक्त सम्बंधित रोगों को दूर करेगा. धन में वृद्धि करेगा. पिता को मानसिक शान्ति प्रदान करेगा. नींद अच्छी आएगी. पुत्र को मृत्यु से बचायेगा.
कन्या राशि :-- इस राशि व्यक्ति यदि मोती धारण करे तो आर्थिक लाभ, यश प्राप्ति, सन्तान का सुख प्राप्त होगा. तथा कल्याणकारी साबित होगा.
तुला राशि :-- इस राशि के व्यक्ति के लिए मोती धारण करना शुभ्ताथा लाभकारी भी है. मोती धारण करने से राज्य कृपा, अचानक धन प्राप्त, यश, पद-प्रतिष्ठा तथा समाज का गौरव प्राप्त होगा.
वृश्चिक राशि :-- इस राशि वालो के लिए मोती धारण करना अति लाभकारी है. इसके प्रभाव से चमत्कारिक रूप से भाग्य में उन्नति, धार्मिक भावना प्रबल होगी. जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह सुख का अनुभव करेगा.
धनु राशि :-- मोती धारण करना इस राशि वालो के लिए अति अशुभ होगा. इसका कारण मोती चन्द्रमा के बल को बढ़ाएगा जी इस राशि वालो के लिए हानि कारक सिद्ध होगा.
मकर राशि :-- इस राशि वालो के लिए अपने जीवन काल में मोती कभी भी धारण नहीं करना चाहिए. स्वास्थ्य हानि तथा पति- पत्नी में वैमनस्यता बढ़ेगी.
कुम्भ राशि :-- इस राशि के लोगों को मोती धारण नहीं करना चाहिए क्योंकि यह धन, यश, संपत्ति को नष्ट करेगा. अचानक शत्रु बढ़ेगे---मीन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को मोती अवश्य धारण करना चाहिए वह उसे सदैव यश प्रदान करेगा. बुद्धि लाभ, भाग्य उदय, विद्या की प्राप्ति, पुत्र के सुख की प्राप्ति व अन्य चमत्कारी लाभ देगा...............
अब हम मूंगा रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......
मेष राशि :-- इस राशि वाले व्यक्तिओं के लिए मूंगा सदैव लाभकारी व शुभदायक है. क्योंकि मूंगा रत्न इस राशि का रत्न है. मंगल इस राशि का स्वामी भी है. इससे इनकी आयु में वृद्धि, स्वास्थ्य में उन्नति तथा यश की प्राप्ति होगी.
वृष राशि :-- इस राशि के लिए मूंगा रत्न कष्टकारी होगा. इस राशि वालो को इसको पहनने की कल्पना भी नहीं करनी चाहिए.
मिथुन राशि :-- इस राशि वालो को मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए. क्योंकि इस राशि वालो को मूंगा रत्न रोगों की उत्पत्ति करेगा इसका प्रभाव उलटा पड़ेगा.
कर्क राशि :- इस राशि वालो को मूंगा धारण करना अत्यंत शुभ फलदायी होगा. यदि इस राशि वाले लोग मोती और मूंगा एक साथ धारण करे तो उन्हें सन्तान का सुख, यश, मान और प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी. सभी कुछ प्राप्त करेगा.
सिंह राशि :-- मूंगा इस राशि वाले व्यक्तियों के लिए अति उत्तम है. इसके धारण करने से मानसिक शान्ति, घर तथा भूमि लाभ, धन लाभ, यश की प्राप्ति होती है. उसका भाग्य उज्जवल होता है. शुभ राज योग कारक माना जाता है यदि मूंगा रत्न माणिक्य के साथ धारण करे तो आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होने लगता है. मंगल और सूर्य दशा में अत्यंत लाभकारी होता है..
कन्या राशि :-- इस राशि वालो को मूंगा रत्न बहुत अधिक हानिकारक है. दुर्घटनाये, कष्ट देगा. छोटे भाइयो को कष्ट देने में प्रबल होगा. मृत्यु का बुलावा होगा.
तुला राशि :-- इस राशि वालो को मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए आयु को ख़तरा होने की संभावनाए बड सकती है. अचानक दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है.
वृश्चिक राशि :-- इस राशि वाले व्यक्तियों के लिए मूंगा धारण करना सुख-समृद्धि कारक तथा कल्याणकारी है.इसको धारण करने से निश्चय ही व्यक्ति की आयु में वृद्धि, स्वास्थ्य में उन्नति, तथा यश की प्राप्ति होगी.आशा से भी अधिक सुखो को भोगेगा.
धनु राशि :-- इस राशि वाले मूंगा रत्न धारण करके सुख, यश, धन, समृद्धि, भाग्य में उन्नति तहा सामाजिक प्रतिष्ठा आदि की प्राप्ति गोगी. सन्तान सुख के लिए उत्तम रहेगा.
मकर राशि :-- यदि इस राशि का व्यक्ति मूंगा रत्न धारण करे तो उसे जमीन जायदाद, वाहन, घर, धन की प्राप्ति, तथा माता का विशेष सुख प्राप्त होगा.
कुम्भ राशि :-- इस राशि वालो को मूंगा रत्न धारण करना वर्जित अर्थात बिलकुल मना है. हानि कारक रहेगा.छोटे भाई एवं बहनों के लिए कष्टकारी तथा सन्तान के सुख में कमी करेगा. शारीरिक कष्ट भी हो सकते है.---तुला राशि :-- इस राशि वालो के लिए शनि राजयोगकारक है. नीलम रत्न धारण करने से धन, पदवी,सुख सभी में वृद्धि करेगा. निम्न स्तर के लोगो से प्यार प्राप्त होगा. आयु तथा स्वास्थ्य में वृद्धि करेगा. माता को धनादि की प्राप्ति होगी. और पिता का स्वास्थ्य व धन ठीक रखेगा.

वृश्चिक राशि :-- इस राशि के लोग शनि की दशा में परामर्श के द्वारा नीलम रत्न धारण कर सकते है. परन्तु नीलम धन की विशेष वृद्धि नहीं करेगा. लेकिन भूमि में वृद्धि होगी. मित्रों से लाभ हो सकता है. छोटी बहनों और भाइयों को सुख तथा धन प्राप्त हो सकता है.

धनु राशि :-- इस राशि के लोगो को नीलम रत्न धारण करना शुभकर नहीं होगा. बहन-भाइयों की आयु को क्षीण करेगा. तथा शत्रु अधिक पैदा होंगे.

मकर राशि :-- इस राशि के लोगो के लिए नीलम रत्न धारण करना अत्यंत शुभ होगा.इनके स्वास्थ्य, धन, आयु, विद्या में वृद्धि करेगा. वाणी में सुधार होगा. टांगो के रोगों का शमन होगा. वायु से उत्पन्न रोगों को दूर परेगा.----मिथुन राशि :-- इस राशि के लोग भी नीलम रत्न धारण कर सकते है. वो भी शनि की दशा में.. धन और भाग्य में वृद्धि करेगा. तथा धर्म में रूचि उत्पन्न करेगा.

कर्क राशि :- इस राशि वालो के लिए शनि अशुभ ग्रह है. इसका रत्न कदापि धारण नहीं करना चाहिए. आयु को क्षीण करेगा. धन के क्षेत्र में कष्ट तथा हानि देगा. साझेदारी के कार्यों में दुखदायी होगा.पति पत्नी में अलगाव पैदा करेगा. पति या पत्नी के लिए कष्टकारी भी सिद्ध होगा.

सिंह राशि :-- इस राशि के लोगो को नीलम रत्न नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि इस धारण करने से शत्रु सिर उठाएँगे. धन की कमी रहेगी. पति या पत्नी की आयु के लिए कष्टकारी होगा. पेट तथा अंतड़ियों से सम्बंधित रोग उत्पन्न होंगे.

कन्या राशि :-- इस राशि वालो को नीलम रत्न धारण करने के लिए ज्योतिषी से परामर्श लेना अति आवश्यक है. यदि नीलम रत्न धारण करेंगे तो स्वास्थ्य की हानि करेगा. और बच्चो से वैमनस्यता रहेगी.शत्रु हावी होने लगते है. पेट से सम्बंधित रोग देगा--मीन राशि :-- इस राशि के लोगों के लिए सदैव ही लाभकारी होगा. यदि मूंगा रत्न पुखराज रत्न के साथ धारण करे तो भाग्य में उन्नति, धन प्राप्ति, परिवार को सुख देगा..........

अब हम पन्ना, रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......

मेष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को पन्ना रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.यदि इस राशि का व्यक्ति पन्ना धारण करता है तो यह बुध ग्रह के बुरे प्रभाव को बढ़ा देगा, और अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ेगा.

वृष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति पन्ना रत्न धारण कर सकते है.इसे धारण करने से सुख-समृद्धि, धन, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा तथा सन्तान सुख की प्राप्ति होती है.और विद्या के लिए अति शुभ है. भाग्य में उन्नति और लाभकारी फल देता है.

मिथुन राशि :-- इस राशि वालों को पन्ना रत्न धारण करना अति शुभ है. इसे धारण करने से मानसिक शान्ति, माता का सुख, शारीरिक सुख की प्राप्ति होती है. तथा वाहन आदि के सुख का भी द्योतक है. अत: यह लाभकारी तथा शुभ है. पन्ना पहनने से मिर्गी के दौरे भी नहीं पड़ते है.

कर्क राशि :- इस राशि वाले को पन्ना धारण करना अति अमंगलकारी है. पन्ना रत्न धारण करने से भाइयो के सुख में कमी, माता से कष्ट, निश्चय ही अशुभ फल की प्राप्ति होती है.

सिंह राशि :-- इस राशि वालो को पन्ना रत्न धारण करना अति कल्याणकारी सिद्ध होगा. यह इन्हें आर्थिक लाभ, व्यवसाय में लाभ व सफलता, सन्तान सुख और प्रतिष्ठा देगा.  ---वृष राशि :-- इस राशि वालो को शनि रत्न नीलम शुभ फलदायक होगा.यह रत्न धारण करने से धन मान और भाग्य की वृद्धि होगी.छोटे भाई की आयु में वृद्धि करेगा. पिता की आयु और स्वास्थ्य में वृद्धि करेगा. आपके स्नायुओं को मजबूत करेगा. राज्य से कृपा प्रदान होगी. उच्चाधिकारियों से लाभ प्रदान करवाएगा. इस राशि वाले इसे हीरा के साथ भी धारण कर सकते है अति लाभदायक सिद्ध होगा.----आपकी राशि और भाग्य रत्न..---
हमारे जीवन में नौ रत्नों का बहुत महत्व है. इनको धारण करने से हम अपने भाग्य के रास्ते की बाधा को काफी हद तक दूर करने में सक्षम हो सकते है.हमारी जन्म राशि और लग्न, अपने अन्दर सभी तरह के गुण-दोषों को लिए हुये है, जैसे आयु से सम्बंधित, स्वास्थ्य से इसका गहरा संबंध है.धन का यह प्रतिनिधित्व करती है. यश प्राप्ति में सहायक व काम धंधे की परिचायक, हमारा आचार-व्यवहार तथा विचारों का आदान प्रदान, इन सभी व्यापक गुणों की दृष्टि में रखते हुये हमें राशि(लग्न) से सम्बंधित रत्न धारण करना चाहिए राशि से सम्बंधित रत्न को मुख्य रत्न कहते है. कुछ रत्न ऐसे है, जो हमारे कष्टों का निवारण करते है. और कुछ रत्न ऐसे है, जो हमे कष्ट पंहुचाते है. यह जान लेना अति आवश्यक है कि आप जिस रत्न को धारण करने जा रहे है, कंहीं वह आपके लिए कष्टकारी तो नहीं? हम आपको सभी बारह राशियों(लग्न) के रत्नों के बारे में जानकारी देंगे कि कौन व्यक्ति अपनी राशि व लग्न के अनुसार कौन कौन से रत्न धारण कर सकता है.

अब हम माणिक्य रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......
मेष राशि :-- मेष राशि मंगल की राशि है. मेष राशि का व्यक्ति बुद्धि बल प्राप्त करने आत्मोन्नति, सन्तान सुख, प्रसिद्धि, राज्य कृपा के लिए माणिक्य धारण कर सकता है. सूर्य की महादशा में माणिक्य श्रेष्ठ फलदायक होता है.
वृष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि यह रत्न वृष राशि के व्यक्ति के लिए सूर्य की महादशा, अंतर्दशा आदि गोचर में अशुभ फल देगा.
मिथुन राशि :-- मिथुन राशि के व्यक्ति को माणिक्य रत्न सिर्फ सूर्य की दशा में ही धारण करना चाहिए वैसे कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.
कर्क राशि :- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए. यह धन के अभाव को दूर करने में सहायक होगा. तथा आंखों के कष्ट में भी लाभकारी होगा.
सिंह राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य अवश्य धारण करना चाहिए. शुभ फलदायक होगा. इस राशि वाले को जीवन भर माणिक्य लाभ ही लाभ प्रदान करेगा. इसे धारण करने से शत्रुओ पर विजय भी मिलती है. व मानसिक संतुलन बना रहता है. शारीरिक स्वास्थ तथा आत्मबल मिलता है.---कन्या राशि :-- उस राशि वालो को माणिक्य सदैव हानिकारक व कष्टकारी होगा. भयंकर दुर्घटना व नेत्र विकार से पीड़ित होने की संभावना बनी रहेगी.
तुला राशि :-- इस राशि वाले को केवल सूर्य की दशा में ही माणिक्य धारण करना चाहिए, जो कि लाभ के लिए शुभ होगा.
वृश्चिक राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य धारण करना चाहिए क्योंकि यह राशि मंगल की है अत: धारण करने से राज्य कृपा, प्रतिष्ठा, नौकरी में सफलता प्राप्त होगी.
धनु राशि :-- इस राशि वाले को माणिक्य धारण करना शुभ होगा यह भाग्य की वृद्धि में सहायक होगा.
मकर राशि :-- इस राशि वाले को भूल कर भी मानिक्या नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि यह उसे शारीरिक कष्ट, रोग दुर्घटना आदि परेशानी दे सकता है.
कुम्भ राशि :-- ऐसे व्यक्ति को माणिक्य पहनना तो क्या इससे दूर दूर रहना चाहिए. वरना भारी हानि करेगा. पति या पत्नी दोनों के लिए हानिकारक रहेगा.
मीन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति माणिक्य अपनी दशा सूर्य की दशा में धारण कर सकते है. जो रोगों से छुटकारा दिलवाने में सहायक सिद्ध होगा .......
कन्या राशि :-- इस राशि वाले लो पन्ना रत्न धारण करना चमत्कारी रूप से लाभकारी सिद्ध होगा. इसके धारण करने से आयु में वृद्धि, शारीरिक सुख, कर्म, व्यवसाय, राज्य कृपा, प्रतिष्ठा और पिता को सुख प्राप्त होगा. भाग्य में कई अवसर उन्नति के आते रहेंगे.

तुला राशि :-- इस राशि के व्यक्ति के लिए पन्ना रत्न धारण करना शुभ माना जाता है. इसे धारण करने से भाग्य में उंनती के अवसर बार बार मिलेंगे. धर्म के प्रति आस्था बढ़ती है. धन की प्राप्ति सरलता से होगी. यदि पन्ना को हीरे के साथ लगा कर इस राशि के लोग धारण करे तो चमत्कारी लाभ प्राप्त होगा.

वृश्चिक राशि :-- इस राशि के लोगो को पन्ना रत्न किसी विद्वान ज्योतिषी से परामर्श करके धारण करना चाहिए. पर बुध की सिर्फ महादशा में ही धारण कर सकते है. सोच समझ कर और कुण्डली को दिखा कर ही इसे धारण करे.

धनु राशि :-- इस राशि वालो को कभी भी पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. क्योंकि पन्ना धारण करने से व्यक्ति में दुषिता आती है.जो कि कष्टकारी साबित होता है.

मकर राशि :-- इस राशि वालो को पन्ना धारण करना सदा ही लाभकारी सिद्ध होगा.पन्ना रत्न यदि नीलम के साथ या चाहे तो अकेला पन्ना रत्न भी धारण कर सकते है. इसे धारण करने से भाग्यवर्धक, यश, शारीरिक सुख की प्राप्ति होगी.

कुम्भ राशि :-- इस राशि के लोग पन्ना रत्न धारण कर सकते है. जो इनके लिए फलदायी होगा. पन्ना रत्न को हीरा या नीलम के साथ भी धारण कर सकते है.इससे शारीरिक सुख, आर्थिक लाभ तथा सन्तान के सुख की प्राप्ति होगी. मन में स्थिरता और शान्ति प्राप्त होगी.

मीन राशि :-- मीन राशि के व्यक्ति केवल बुध की दशा में ही पन्ना रत्न धारण कर सकते है. जो इन्हें आर्थिक दृष्टि से लाभ करेगा और माता के सुख का भी लाभ प्राप्त होगा.....मेष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को पुखराज रत्न धारण करना अति शुभ होगा. पुखराज धारण करने से भाग्य में वृद्धि होगी. बल, बुद्धि, विद्या तथा ज्ञान की प्राप्ति होगी. कल्याणकारी होगा. समृद्धि देने वाला होगा.

वृष राशि :-- इस राशि के लोगो के लिए पुखराज रत्न धारण करना अमंगलकारी है. इसे भूल कर भी ना पहने. परामर्श करके धारण करना चाहिए.

मिथुन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति केवल वृहस्पति की दशा में ही पुखराज रत्न धारण कर सकते है. धारण करने से पहले किसी विद्वान ज्योतिषी से प्रानार्ष करना अनिवार्य है.

कर्क राशि :- इस राशि के लोगो के लिए पुखराज धारण करना अति उत्तम होगा. इसे धारण करने से आर्थिक लाभ तथा ज्ञान में प्रचुर वृद्धि होगी. पिता तथा सन्तान के सुख की प्राप्ति होती है. यदि मोती और पुखराज दोनों पहने तो चमत्कारी लाभ होगा.

सिंह राशि :-- इस राशि के लोगो के लिए पुखराज रत्न पहनना अति कल्याणकारी सिद्ध होगा. सन्तान का सुख प्राप्त होगा. विदेश में व्यापार से लाभ होगा.

कन्या राशि :-- इस राशि वालो को पुखराज रत्न धारण नहीं करना चाहिए. क्योंकि धारण करने से आर्थिक कष्ट उत्पन्न करेगा.

तुला राशि :-- इस राशि वालो के लोगो के लिए पुखराज रत्न अति अशुभ माना गया है. पुखराज धारण करने से रोग बढ़ेंगे. शत्रु हावी होंगे, भाई बहन के सुखो में कमी होगी तथा मानसिक चिंता परेशान करेगी.

वृश्चिक राशि :-- इस राशि वालो के लिए पुखराज रत्न शुभ अत्यंत समृद्धिदायक तथा खुशियाँ प्रदान करने वाला होगा. पुत्रों को उन्नति देगा. राज्य कृपा तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि करेगा. पुत्रों को नाम, प्रतिष्ठा, यश प्राप्त होगा. इस राशि वालों को पुखराज जीवन भर धारण करना चाहिए.

धनु राशि :-- इस राशि वालों के लिए पुखराज रत्न सबसे श्रेष्ठ माना गया है. इसे धारण करने से शारीरिक सुख की प्राप्ति, वाहन सुख, माँ का सुख, तथा सभी प्रकार के आर्थिक लाभ प्राप्त होंगे. इस राशि वाले लोगो को पुखराज आजीवन धारण करना चाहिए. जो कि लाभकारी सिद्ध होगा.

मकर राशि :-- इस राशि के लोगो के लिए पुखराज रत्न अशुभ होगा कभी भी पुखराज ना धारण करे. इसके कारण शारीरिक कष्ट, पिता को कष्ट, तथा रोगों को बढ़ाएगा. जीवन में कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.

कुम्भ राशि :-- इस राशि वालों लो पुखराज रत्न ज्योतिषी से परामर्श करके ही धारण करना चाहिए. कुछ रत्न विशेषज्ञ इस राशि वालों को पुखराज रत्न धन हेतु भी पहनाते है कई बार लाभ देता है किन्तु शारीरिक कष्ट की उत्पत्ति कर देगा.

मीन राशि :-- इस राशि वाले लोगो के लिए पुखराज रत्न आजीवन धारण करना चाहिए. इनके लिए शुभ तथा कल्याणकारी माना जाता है. धन-समृद्धि में वृद्धि करेगा. स्वास्थ्य ठीक रखेगा. विद्या बुद्धि में उन्नति देगा. पति या पत्नी के लिए शुभकारी होगा. राज्य कृपा प्राप्त होगी. उच्च पद प्राप्त होने की संभावना बड़ेगी. सभी मनोकामना पूर्ण होती है......

अब हम हीरा, रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......

मेष राशि :-- इस राशि के व्यक्तिओं को हीरा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए. क्योंकि इसे धारण करने से धन तथा साझेदारी के कार्यों में कष्टकारी तथा आयु की कमी होगी. पति – पत्नी में अलगाव पैदा करेगा तथा वाणी में विकार पैदा करेगा, व्यभिचारी बनायेगा.

वृष राशि :-- इस राशि वाले व्यक्ति को हीरा रत्न शुभकारी सिद्ध होगा. स्वास्थ्य की वृद्धि करेगा. आयु वृद्धि के लिए शुभ होगा. स्त्री या पति के स्वास्थ्य में सुधार होगा. ऋण को कम करने में सहायक होगा. शत्रु बाधा कम होगी. भोग विलास की सामग्री देगा. आंखों की बीमारीओं का शमन करेगा.

मिथुन राशि :-- इस राशि के लोगो को हीरा रत्न धारण करने से धन और भाग्य की वृद्धि होगी. बुद्धि में वृद्धि करेगा. भोग विलास, रति की प्राप्ति, पुत्र की वृद्धि करेगा. स्वास्थ्य में सुधार करेगा. समृद्धिदायक साबित होगा.

कर्क राशि :- इस राशि के लीगी को हीरा रत्न धारण नहीं करना चाहिए. इसे धारण करने से माता तथा पिता की आयु व स्वास्थ्य को क्षीण करेगा. खून से सम्बंधित रोग पैदा करेगा. पत्नी या पति से वैमनस्यता बढ़ाएगा. अपयश देगा.

सिंह राशि :-- इस राशि के लोगो को हीरा रत्न नहीं धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से राज्य से सम्बंधित लोगो से अपमानित होना पड़ सकता है. बहनों के लिए कष्टकारी हो सकता है. स्त्रियों से वैमनस्यता बढ़ाएगा. स्वास्थ्य हानि करेगा.

कन्या राशि :-- इस राशि के लोगो को हीरा रत्न धारण करने से भाग्य में वृद्धि होगी. राज्य कृपा प्राप्त होगी. धन की विशेष वृद्धि देगा. गायन शक्ति में वृद्धि होगी. रोगों का शमन करेगा. विद्या में उन्नति प्राप्त होगी.----तुला राशि :-- इस राशिरत्न कब और क्यों? 
नीना शर्मा 


 रत्न आपको कुंडली के हिसाब से पहनंनाहोगा।हमारे जीवन में नौ रत्नों का बहुत महत्व है. इनको धारण कर हम अपने भाग्य के रास्ते की बाधा को काफी हद तक दूर कर  सकते है.हमारी जन्म राशि और लग्न, अपने अन्दर सभी तरह के गुण-दोषों को लिए हुये है, जैसे आयु से सम्बंधित, स्वास्थ्य से इसका गहरा संबंध है.धन का यह प्रतिनिधित्व करती है. यश प्राप्ति में सहायक व काम धंधे की परिचायक, हमारा आचार-व्यवहार तथा विचारों का आदान प्रदान, इन सभी व्यापक गुणों की दृष्टि में रखते हुये हमें राशि(लग्न) से सम्बंधित रत्न धारण करना चाहिए राशि से सम्बंधित रत्न को मुख्य रत्न कहते है. कुछ रत्न ऐसे है, जो हमारे कष्टों का निवारण करते है. और कुछ रत्न ऐसे है, जो हमे कष्ट पंहुचाते है. यह जान लेना अति आवश्यक है कि आप जिस रत्न को धारण करने जा रहे है, कंहीं वह आपके लिए कष्टकारी तो नहीं? हम आपको सभी बारह राशियों(लग्न) के रत्नों के बारे में जानकारी देंगे कि कौन व्यक्ति अपनी राशि व लग्न के अनुसार कौन कौन से रत्न धारण कर सकता है.
अब हम माणिक्य रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......
मेष राशि :-- मेष राशि मंगल की राशि है. मेष राशि का व्यक्ति बुद्धि बल प्राप्त करने आत्मोन्नति, सन्तान सुख, प्रसिद्धि, राज्य कृपा के लिए माणिक्य धारण कर सकता है. सूर्य की महादशा में माणिक्य श्रेष्ठ फलदायक होता है.
वृष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि यह रत्न वृष राशि के व्यक्ति के लिए सूर्य की महादशा, अंतर्दशा आदि गोचर में अशुभ फल देगा.
मिथुन राशि :-- मिथुन राशि के व्यक्ति को माणिक्य रत्न सिर्फ सूर्य की दशा में ही धारण करना चाहिए वैसे कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.
कर्क राशि :- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए. यह धन के अभाव को दूर करने में सहायक होगा. तथा आंखों के कष्ट में भी लाभकारी होगा.
सिंह राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य अवश्य धारण करना चाहिए. शुभ फलदायक होगा. इस राशि वाले को जीवन भर माणिक्य लाभ ही लाभ प्रदान करेगा. इसे धारण करने से शत्रुओ पर विजय भी मिलती है. व मानसिक संतुलन बना रहता है. शारीरिक स्वास्थ तथा आत्मबल मिलता है.
कन्या राशि :-- उस राशि वालो को माणिक्य सदैव हानिकारक व कष्टकारी होगा. भयंकर दुर्घटना व नेत्र विकार से पीड़ित होने की संभावना बनी रहेगी.
तुला राशि :-- इस राशि वाले को केवल सूर्य की दशा में ही माणिक्य धारण करना चाहिए, जो कि लाभ के लिए शुभ होगा.
वृश्चिक राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य धारण करना चाहिए क्योंकि यह राशि मंगल की है अत: धारण करने से राज्य कृपा, प्रतिष्ठा, नौकरी में सफलता प्राप्त होगी.
धनु राशि :-- इस राशि वाले को माणिक्य धारण करना शुभ होगा यह भाग्य की वृद्धि में सहायक होगा.
मकर राशि :-- इस राशि वाले को भूल कर भी मानिक्या नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि यह उसे शारीरिक कष्ट, रोग दुर्घटना आदि परेशानी दे सकता है.
कुम्भ राशि :-- ऐसे व्यक्ति को माणिक्य पहनना तो क्या इससे दूर दूर रहना चाहिए. वरना भारी हानि करेगा. पति या पत्नी दोनों के लिए हानिकारक रहेगा.
मीन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति माणिक्य अपनी दशा सूर्य की दशा में धारण कर सकते है. जो रोगों से छुटकारा दिलवाने में सहायक सिद्ध होगा .......कुम्भ राशि :-- इस राशि के लोग नीलम धारण कर लाभ उठा सकते है. धन में वृद्धि करेगा. आंखों के दोषों का शमन करेगा. व्यय को कम करेगा. स्नायुओं को बल देगा. टांगो तथा पांवों को भी बल देगा. पुत्र की आयु में वृद्धि करेगा. पुत्र का भाग्य बढ़ाएगा.

मीन राशि :-- इस राशि के लोगो को नीलम रत्न नहीं धारण करना चाहिए. आंखों के रोगों को बढ़ाएगा. धन लाभ में कठिनाइयां उत्पन्न करेगा. स्वास्थ्य में भी हानि करेगा...
गोमेद और लहसुनिया (राहू एवं केतु रत्न)
गोमेद और लहसुनिया के रत्न को अपनी कुण्डली किसी विद्वान ज्योतिषी को दिखा कर परामर्श लेकर धारण करना अनिवार्य होता है. या इनकी दशाएँ आने पर परामर्श से पहन सकते है. क्योंकि यह दोनों छाया ग्रह के रूप में माने जाते है. वैसे राहू का गोमेद है तथा केतु का रत्न लहसुनियां है राहू ग्रह शनि की प्रवृति रखता है. और केतु ग्रह मंगल की प्रवृति के समान होता है. यह जरूरी नहीं कि यह दोनों कष्टकारी फल दें, शुभ फल भी प्राप्त हो सकते है. यह दोनों रत्न कोई भी और किसी भी राशि का व्यक्ति परामर्श कर के धारण कर सकता है. और उसे लाभ भी होगा....अlब हम मोती रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......
मेष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति यदि मोती धारण करते है तो उन्हें मानसिक शान्ति, विद्या सुख, गृह सुख और मातृ सुख का भरपूर लाभ मिलता है. यदि मोती को मंगल के रत्न मूंगा के साथ धारण किया जाये तो विशेष धन का लाभ होने लगता है.
वृष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को मोती कभी भी धारण नहीं करना चाहिए. यह शुभ फलदायक नहीं है.
मिथुन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को विशेष परिस्थितियों में मोती धारण करना लाभदायक हो सकता है. चन्द्रमा की दशा में मोती धारण करे तो उन्हें आर्थिक लाभ हो सकता है. मिथुन के लिए चन्द्रमा अशुभ भी है. इसे किसी ज्योतिषी से परामर्श करके धारण करें.
कर्क राशि :- इस राशि के व्यक्ति के लिए मोती अति शुभ कारक रहेगा. मोती धारण करने से स्वास्थ्य तथा आर्थिक पहलू पर नियंत्रण रहेगा. इनके जीवन में विनम्रता बनाए रखने में सक्षम होगा. आर्थिक दृष्टिकोण से लाभकारी होगा.
सिंह राशि :-- इस राशि का व्यक्ति मोती धारण कर सकता है. आंखों के रोगों को दूर करेगा. रक्त सम्बंधित रोगों को दूर करेगा. धन में वृद्धि करेगा. पिता को मानसिक शान्ति प्रदान करेगा. नींद अच्छी आएगी. पुत्र को मृत्यु से बचायेगा.
कन्या राशि :-- इस राशि व्यक्ति यदि मोती धारण करे तो आर्थिक लाभ, यश प्राप्ति, सन्तान का सुख प्राप्त होगा. तथा कल्याणकारी साबित होगा.
तुला राशि :-- इस राशि के व्यक्ति के लिए मोती धारण करना शुभ्ताथा लाभकारी भी है. मोती धारण करने से राज्य कृपा, अचानक धन प्राप्त, यश, पद-प्रतिष्ठा तथा समाज का गौरव प्राप्त होगा.
वृश्चिक राशि :-- इस राशि वालो के लिए मोती धारण करना अति लाभकारी है. इसके प्रभाव से चमत्कारिक रूप से भाग्य में उन्नति, धार्मिक भावना प्रबल होगी. जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह सुख का अनुभव करेगा.
धनु राशि :-- मोती धारण करना इस राशि वालो के लिए अति अशुभ होगा. इसका कारण मोती चन्द्रमा के बल को बढ़ाएगा जी इस राशि वालो के लिए हानि कारक सिद्ध होगा.
मकर राशि :-- इस राशि वालो के लिए अपने जीवन काल में मोती कभी भी धारण नहीं करना चाहिए. स्वास्थ्य हानि तथा पति- पत्नी में वैमनस्यता बढ़ेगी.
कुम्भ राशि :-- इस राशि के लोगों को मोती धारण नहीं करना चाहिए क्योंकि यह धन, यश, संपत्ति को नष्ट करेगा. अचानक शत्रु बढ़ेगे---मीन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को मोती अवश्य धारण करना चाहिए वह उसे सदैव यश प्रदान करेगा. बुद्धि लाभ, भाग्य उदय, विद्या की प्राप्ति, पुत्र के सुख की प्राप्ति व अन्य चमत्कारी लाभ देगा...............
अब हम मूंगा रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......
मेष राशि :-- इस राशि वाले व्यक्तिओं के लिए मूंगा सदैव लाभकारी व शुभदायक है. क्योंकि मूंगा रत्न इस राशि का रत्न है. मंगल इस राशि का स्वामी भी है. इससे इनकी आयु में वृद्धि, स्वास्थ्य में उन्नति तथा यश की प्राप्ति होगी.
वृष राशि :-- इस राशि के लिए मूंगा रत्न कष्टकारी होगा. इस राशि वालो को इसको पहनने की कल्पना भी नहीं करनी चाहिए.
मिथुन राशि :-- इस राशि वालो को मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए. क्योंकि इस राशि वालो को मूंगा रत्न रोगों की उत्पत्ति करेगा इसका प्रभाव उलटा पड़ेगा.
कर्क राशि :- इस राशि वालो को मूंगा धारण करना अत्यंत शुभ फलदायी होगा. यदि इस राशि वाले लोग मोती और मूंगा एक साथ धारण करे तो उन्हें सन्तान का सुख, यश, मान और प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी. सभी कुछ प्राप्त करेगा.
सिंह राशि :-- मूंगा इस राशि वाले व्यक्तियों के लिए अति उत्तम है. इसके धारण करने से मानसिक शान्ति, घर तथा भूमि लाभ, धन लाभ, यश की प्राप्ति होती है. उसका भाग्य उज्जवल होता है. शुभ राज योग कारक माना जाता है यदि मूंगा रत्न माणिक्य के साथ धारण करे तो आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होने लगता है. मंगल और सूर्य दशा में अत्यंत लाभकारी होता है..
कन्या राशि :-- इस राशि वालो को मूंगा रत्न बहुत अधिक हानिकारक है. दुर्घटनाये, कष्ट देगा. छोटे भाइयो को कष्ट देने में प्रबल होगा. मृत्यु का बुलावा होगा.
तुला राशि :-- इस राशि वालो को मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए आयु को ख़तरा होने की संभावनाए बड सकती है. अचानक दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है.
वृश्चिक राशि :-- इस राशि वाले व्यक्तियों के लिए मूंगा धारण करना सुख-समृद्धि कारक तथा कल्याणकारी है.इसको धारण करने से निश्चय ही व्यक्ति की आयु में वृद्धि, स्वास्थ्य में उन्नति, तथा यश की प्राप्ति होगी.आशा से भी अधिक सुखो को भोगेगा.
धनु राशि :-- इस राशि वाले मूंगा रत्न धारण करके सुख, यश, धन, समृद्धि, भाग्य में उन्नति तहा सामाजिक प्रतिष्ठा आदि की प्राप्ति गोगी. सन्तान सुख के लिए उत्तम रहेगा.
मकर राशि :-- यदि इस राशि का व्यक्ति मूंगा रत्न धारण करे तो उसे जमीन जायदाद, वाहन, घर, धन की प्राप्ति, तथा माता का विशेष सुख प्राप्त होगा.
कुम्भ राशि :-- इस राशि वालो को मूंगा रत्न धारण करना वर्जित अर्थात बिलकुल मना है. हानि कारक रहेगा.छोटे भाई एवं बहनों के लिए कष्टकारी तथा सन्तान के सुख में कमी करेगा. शारीरिक कष्ट भी हो सकते है.---तुला राशि :-- इस राशि वालो के लिए शनि राजयोगकारक है. नीलम रत्न धारण करने से धन, पदवी,सुख सभी में वृद्धि करेगा. निम्न स्तर के लोगो से प्यार प्राप्त होगा. आयु तथा स्वास्थ्य में वृद्धि करेगा. माता को धनादि की प्राप्ति होगी. और पिता का स्वास्थ्य व धन ठीक रखेगा.

वृश्चिक राशि :-- इस राशि के लोग शनि की दशा में परामर्श के द्वारा नीलम रत्न धारण कर सकते है. परन्तु नीलम धन की विशेष वृद्धि नहीं करेगा. लेकिन भूमि में वृद्धि होगी. मित्रों से लाभ हो सकता है. छोटी बहनों और भाइयों को सुख तथा धन प्राप्त हो सकता है.

धनु राशि :-- इस राशि के लोगो को नीलम रत्न धारण करना शुभकर नहीं होगा. बहन-भाइयों की आयु को क्षीण करेगा. तथा शत्रु अधिक पैदा होंगे.
मकर राशि :-- इस राशि के लोगो के लिए नीलम रत्न धारण करना अत्यंत शुभ होगा.इनके स्वास्थ्य, धन, आयु, विद्या में वृद्धि करेगा. वाणी में सुधार होगा. टांगो के रोगों का शमन होगा. वायु से उत्पन्न रोगों को दूर परेगा.----मिथुन राशि :-- इस राशि के लोग भी नीलम रत्न धारण कर सकते है. वो भी शनि की दशा में.. धन और भाग्य में वृद्धि करेगा. तथा धर्म में रूचि उत्पन्न करेगा.
कर्क राशि :- इस राशि वालो के लिए शनि अशुभ ग्रह है. इसका रत्न कदापि धारण नहीं करना चाहिए. आयु को क्षीण करेगा. धन के क्षेत्र में कष्ट तथा हानि देगा. साझेदारी के कार्यों में दुखदायी होगा.पति पत्नी में अलगाव पैदा करेगा. पति या पत्नी के लिए कष्टकारी भी सिद्ध होगा.
सिंह राशि :-- इस राशि के लोगो को नीलम रत्न नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि इस धारण करने से शत्रु सिर उठाएँगे. धन की कमी रहेगी. पति या पत्नी की आयु के लिए कष्टकारी होगा. पेट तथा अंतड़ियों से सम्बंधित रोग उत्पन्न होंगे.
कन्या राशि :-- इस राशि वालो को नीलम रत्न धारण करने के लिए ज्योतिषी से परामर्श लेना अति आवश्यक है. यदि नीलम रत्न धारण करेंगे तो स्वास्थ्य की हानि करेगा. और बच्चो से वैमनस्यता रहेगी.शत्रु हावी होने लगते है. पेट से सम्बंधित रोग देगा--मीन राशि :-- इस राशि के लोगों के लिए सदैव ही लाभकारी होगा. यदि मूंगा रत्न पुखराज रत्न के साथ धारण करे तो भाग्य में उन्नति, धन प्राप्ति, परिवार को सुख देगा..........
अब हम पन्ना, रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......
मेष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को पन्ना रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.यदि इस राशि का व्यक्ति पन्ना धारण करता है तो यह बुध ग्रह के बुरे प्रभाव को बढ़ा देगा, और अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ेगा.
वृष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति पन्ना रत्न धारण कर सकते है.इसे धारण करने से सुख-समृद्धि, धन, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा तथा सन्तान सुख की प्राप्ति होती है.और विद्या के लिए अति शुभ है. भाग्य में उन्नति और लाभकारी फल देता है.
मिथुन राशि :-- इस राशि वालों को पन्ना रत्न धारण करना अति शुभ है. इसे धारण करने से मानसिक शान्ति, माता का सुख, शारीरिक सुख की प्राप्ति होती है. तथा वाहन आदि के सुख का भी द्योतक है. अत: यह लाभकारी तथा शुभ है. पन्ना पहनने से मिर्गी के दौरे भी नहीं पड़ते है.
कर्क राशि :- इस राशि वाले को पन्ना धारण करना अति अमंगलकारी है. पन्ना रत्न धारण करने से भाइयो के सुख में कमी, माता से कष्ट, निश्चय ही अशुभ फल की प्राप्ति होती है.
सिंह राशि :-- इस राशि वालो को पन्ना रत्न धारण करना अति कल्याणकारी सिद्ध होगा. यह इन्हें आर्थिक लाभ, व्यवसाय में लाभ व सफलता, सन्तान सुख और प्रतिष्ठा देगा. ---वृष राशि :-- इस राशि वालो को शनि रत्न नीलम शुभ फलदायक होगा.यह रत्न धारण करने से धन मान और भाग्य की वृद्धि होगी.छोटे भाई की आयु में वृद्धि करेगा. पिता की आयु और स्वास्थ्य में वृद्धि करेगा. आपके स्नायुओं को मजबूत करेगा. राज्य से कृपा प्रदान होगी. उच्चाधिकारियों से लाभ प्रदान करवाएगा. इस राशि वाले इसे हीरा के साथ भी धारण कर सकते है अति लाभदायक सिद्ध होगा.----आपकी राशि और भाग्य रत्न..---
हमारे जीवन में नौ रत्नों का बहुत महत्व है. इनको धारण करने से हम अपने भाग्य के रास्ते की बाधा को काफी हद तक दूर करने में सक्षम हो सकते है.हमारी जन्म राशि और लग्न, अपने अन्दर सभी तरह के गुण-दोषों को लिए हुये है, जैसे आयु से सम्बंधित, स्वास्थ्य से इसका गहरा संबंध है.धन का यह प्रतिनिधित्व करती है. यश प्राप्ति में सहायक व काम धंधे की परिचायक, हमारा आचार-व्यवहार तथा विचारों का आदान प्रदान, इन सभी व्यापक गुणों की दृष्टि में रखते हुये हमें राशि(लग्न) से सम्बंधित रत्न धारण करना चाहिए राशि से सम्बंधित रत्न को मुख्य रत्न कहते है. कुछ रत्न ऐसे है, जो हमारे कष्टों का निवारण करते है. और कुछ रत्न ऐसे है, जो हमे कष्ट पंहुचाते है. यह जान लेना अति आवश्यक है कि आप जिस रत्न को धारण करने जा रहे है, कंहीं वह आपके लिए कष्टकारी तो नहीं? हम आपको सभी बारह राशियों(लग्न) के रत्नों के बारे में जानकारी देंगे कि कौन व्यक्ति अपनी राशि व लग्न के अनुसार कौन कौन से रत्न धारण कर सकता है.

अब हम माणिक्य रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......
मेष राशि :-- मेष राशि मंगल की राशि है. मेष राशि का व्यक्ति बुद्धि बल प्राप्त करने आत्मोन्नति, सन्तान सुख, प्रसिद्धि, राज्य कृपा के लिए माणिक्य धारण कर सकता है. सूर्य की महादशा में माणिक्य श्रेष्ठ फलदायक होता है.
वृष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि यह रत्न वृष राशि के व्यक्ति के लिए सूर्य की महादशा, अंतर्दशा आदि गोचर में अशुभ फल देगा.
मिथुन राशि :-- मिथुन राशि के व्यक्ति को माणिक्य रत्न सिर्फ सूर्य की दशा में ही धारण करना चाहिए वैसे कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.
कर्क राशि :- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए. यह धन के अभाव को दूर करने में सहायक होगा. तथा आंखों के कष्ट में भी लाभकारी होगा.
सिंह राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य अवश्य धारण करना चाहिए. शुभ फलदायक होगा. इस राशि वाले को जीवन भर माणिक्य लाभ ही लाभ प्रदान करेगा. इसे धारण करने से शत्रुओ पर विजय भी मिलती है. व मानसिक संतुलन बना रहता है. शारीरिक स्वास्थ तथा आत्मबल मिलता है.---कन्या राशि :-- उस राशि वालो को माणिक्य सदैव हानिकारक व कष्टकारी होगा. भयंकर दुर्घटना व नेत्र विकार से पीड़ित होने की संभावना बनी रहेगी.
तुला राशि :-- इस राशि वाले को केवल सूर्य की दशा में ही माणिक्य धारण करना चाहिए, जो कि लाभ के लिए शुभ होगा.
वृश्चिक राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य धारण करना चाहिए क्योंकि यह राशि मंगल की है अत: धारण करने से राज्य कृपा, प्रतिष्ठा, नौकरी में सफलता प्राप्त होगी.
धनु राशि :-- इस राशि वाले को माणिक्य धारण करना शुभ होगा यह भाग्य की वृद्धि में सहायक होगा.
मकर राशि :-- इस राशि वाले को भूल कर भी मानिक्या नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि यह उसे शारीरिक कष्ट, रोग दुर्घटना आदि परेशानी दे सकता है.
कुम्भ राशि :-- ऐसे व्यक्ति को माणिक्य पहनना तो क्या इससे दूर दूर रहना चाहिए. वरना भारी हानि करेगा. पति या पत्नी दोनों के लिए हानिकारक रहेगा.
मीन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति माणिक्य अपनी दशा सूर्य की दशा में धारण कर सकते है. जो रोगों से छुटकारा दिलवाने में सहायक सिद्ध होगा .......
कन्या राशि :-- इस राशि वाले लो पन्ना रत्न धारण करना चमत्कारी रूप से लाभकारी सिद्ध होगा. इसके धारण करने से आयु में वृद्धि, शारीरिक सुख, कर्म, व्यवसाय, राज्य कृपा, प्रतिष्ठा और पिता को सुख प्राप्त होगा. भाग्य में कई अवसर उन्नति के आते रहेंगे.

तुला राशि :-- इस राशि के व्यक्ति के लिए पन्ना रत्न धारण करना शुभ माना जाता है. इसे धारण करने से भाग्य में उंनती के अवसर बार बार मिलेंगे. धर्म के प्रति आस्था बढ़ती है. धन की प्राप्ति सरलता से होगी. यदि पन्ना को हीरे के साथ लगा कर इस राशि के लोग धारण करे तो चमत्कारी लाभ प्राप्त होगा.
वृश्चिक राशि :-- इस राशि के लोगो को पन्ना रत्न किसी विद्वान ज्योतिषी से परामर्श करके धारण करना चाहिए. पर बुध की सिर्फ महादशा में ही धारण कर सकते है. सोच समझ कर और कुण्डली को दिखा कर ही इसे धारण करे.
धनु राशि :-- इस राशि वालो को कभी भी पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. क्योंकि पन्ना धारण करने से व्यक्ति में दुषिता आती है.जो कि कष्टकारी साबित होता है.
मकर राशि :-- इस राशि वालो को पन्ना धारण करना सदा ही लाभकारी सिद्ध होगा.पन्ना रत्न यदि नीलम के साथ या चाहे तो अकेला पन्ना रत्न भी धारण कर सकते है. इसे धारण करने से भाग्यवर्धक, यश, शारीरिक सुख की प्राप्ति होगी.
कुम्भ राशि :-- इस राशि के लोग पन्ना रत्न धारण कर सकते है. जो इनके लिए फलदायी होगा. पन्ना रत्न को हीरा या नीलम के साथ भी धारण कर सकते है.इससे शारीरिक सुख, आर्थिक लाभ तथा सन्तान के सुख की प्राप्ति होगी. मन में स्थिरता और शान्ति प्राप्त होगी.
मीन राशि :-- मीन राशि के व्यक्ति केवल बुध की दशा में ही पन्ना रत्न धारण कर सकते है. जो इन्हें आर्थिक दृष्टि से लाभ करेगा और माता के सुख का भी लाभ प्राप्त होगा.....मेष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को पुखराज रत्न धारण करना अति शुभ होगा. पुखराज धारण करने से भाग्य में वृद्धि होगी. बल, बुद्धि, विद्या तथा ज्ञान की प्राप्ति होगी. कल्याणकारी होगा. समृद्धि देने वाला होगा.
वृष राशि :-- इस राशि के लोगो के लिए पुखराज रत्न धारण करना अमंगलकारी है. इसे भूल कर भी ना पहने. परामर्श करके धारण करना चाहिए.
मिथुन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति केवल वृहस्पति की दशा में ही पुखराज रत्न धारण कर सकते है. धारण करने से पहले किसी विद्वान ज्योतिषी से प्रानार्ष करना अनिवार्य है.
कर्क राशि :- इस राशि के लोगो के लिए पुखराज धारण करना अति उत्तम होगा. इसे धारण करने से आर्थिक लाभ तथा ज्ञान में प्रचुर वृद्धि होगी. पिता तथा सन्तान के सुख की प्राप्ति होती है. यदि मोती और पुखराज दोनों पहने तो चमत्कारी लाभ होगा.
सिंह राशि :-- इस राशि के लोगो के लिए पुखराज रत्न पहनना अति कल्याणकारी सिद्ध होगा. सन्तान का सुख प्राप्त होगा. विदेश में व्यापार से लाभ होगा.
कन्या राशि :-- इस राशि वालो को पुखराज रत्न धारण नहीं करना चाहिए. क्योंकि धारण करने से आर्थिक कष्ट उत्पन्न करेगा.
तुला राशि :-- इस राशि वालो के लोगो के लिए पुखराज रत्न अति अशुभ माना गया है. पुखराज धारण करने से रोग बढ़ेंगे. शत्रु हावी होंगे, भाई बहन के सुखो में कमी होगी तथा मानसिक चिंता परेशान करेगी.
वृश्चिक राशि :-- इस राशि वालो के लिए पुखराज रत्न शुभ अत्यंत समृद्धिदायक तथा खुशियाँ प्रदान करने वाला होगा. पुत्रों को उन्नति देगा. राज्य कृपा तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि करेगा. पुत्रों को नाम, प्रतिष्ठा, यश प्राप्त होगा. इस राशि वालों को पुखराज जीवन भर धारण करना चाहिए.
धनु राशि :-- इस राशि वालों के लिए पुखराज रत्न सबसे श्रेष्ठ माना गया है. इसे धारण करने से शारीरिक सुख की प्राप्ति, वाहन सुख, माँ का सुख, तथा सभी प्रकार के आर्थिक लाभ प्राप्त होंगे. इस राशि वाले लोगो को पुखराज आजीवन धारण करना चाहिए. जो कि लाभकारी सिद्ध होगा.
मकर राशि :-- इस राशि के लोगो के लिए पुखराज रत्न अशुभ होगा कभी भी पुखराज ना धारण करे. इसके कारण शारीरिक कष्ट, पिता को कष्ट, तथा रोगों को बढ़ाएगा. जीवन में कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.
कुम्भ राशि :-- इस राशि वालों लो पुखराज रत्न ज्योतिषी से परामर्श करके ही धारण करना चाहिए. कुछ रत्न विशेषज्ञ इस राशि वालों को पुखराज रत्न धन हेतु भी पहनाते है कई बार लाभ देता है किन्तु शारीरिक कष्ट की उत्पत्ति कर देगा.
मीन राशि :-- इस राशि वाले लोगो के लिए पुखराज रत्न आजीवन धारण करना चाहिए. इनके लिए शुभ तथा कल्याणकारी माना जाता है. धन-समृद्धि में वृद्धि करेगा. स्वास्थ्य ठीक रखेगा. विद्या बुद्धि में उन्नति देगा. पति या पत्नी के लिए शुभकारी होगा. राज्य कृपा प्राप्त होगी. उच्च पद प्राप्त होने की संभावना बड़ेगी. सभी मनोकामना पूर्ण होती है......
अब हम हीरा, रत्न के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे......
मेष राशि :-- इस राशि के व्यक्तिओं को हीरा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए. क्योंकि इसे धारण करने से धन तथा साझेदारी के कार्यों में कष्टकारी तथा आयु की कमी होगी. पति – पत्नी में अलगाव पैदा करेगा तथा वाणी में विकार पैदा करेगा, व्यभिचारी बनायेगा.
वृष राशि :-- इस राशि वाले व्यक्ति को हीरा रत्न शुभकारी सिद्ध होगा. स्वास्थ्य की वृद्धि करेगा. आयु वृद्धि के लिए शुभ होगा. स्त्री या पति के स्वास्थ्य में सुधार होगा. ऋण को कम करने में सहायक होगा. शत्रु बाधा कम होगी. भोग विलास की सामग्री देगा. आंखों की बीमारीओं का शमन करेगा.
मिथुन राशि :-- इस राशि के लोगो को हीरा रत्न धारण करने से धन और भाग्य की वृद्धि होगी. बुद्धि में वृद्धि करेगा. भोग विलास, रति की प्राप्ति, पुत्र की वृद्धि करेगा. स्वास्थ्य में सुधार करेगा. समृद्धिदायक साबित होगा.
कर्क राशि :- इस राशि के लीगी को हीरा रत्न धारण नहीं करना चाहिए. इसे धारण करने से माता तथा पिता की आयु व स्वास्थ्य को क्षीण करेगा. खून से सम्बंधित रोग पैदा करेगा. पत्नी या पति से वैमनस्यता बढ़ाएगा. अपयश देगा.
सिंह राशि :-- इस राशि के लोगो को हीरा रत्न नहीं धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से राज्य से सम्बंधित लोगो से अपमानित होना पड़ सकता है. बहनों के लिए कष्टकारी हो सकता है. स्त्रियों से वैमनस्यता बढ़ाएगा. स्वास्थ्य हानि करेगा.
कन्या राशि :-- इस राशि के लोगो को हीरा रत्न धारण करने से भाग्य में वृद्धि होगी. राज्य कृपा प्राप्त होगी. धन की विशेष वृद्धि देगा. गायन शक्ति में वृद्धि होगी. रोगों का शमन करेगा. विद्या में उन्नति प्राप्त होगी.

शनिवार, 18 अक्टूबर 2014

lekh: bharteey falit vidyayen:

अंध श्रद्धा और अंध आलोचना के शिकंजे में भारतीय फलित विद्याएँ 

भारतीय फलित विद्याओं (ज्योतषशास्त्र, सामुद्रिकी, हस्तरेखा विज्ञान, अंक ज्योतिष आदि) तथा धार्मिक अनुष्ठानों (व्रत, कथा, हवन, जाप, यज्ञ आदि) के औचित्य, उपादेयता तथा प्रामाणिकता पर प्रायः प्रश्नचिन्ह लगाये जाते हैं. इनपर अंधश्रद्धा रखनेवाले और इनकी अंध आलोचना रखनेवाले दोनों हीं विषयों के व्यवस्थित अध्ययन, अन्वेषणों तथा उन्नयन में बाधक हैं. शासन और प्रशासन में भी इन दो वर्गों के ही लोग हैं. फलतः इन विषयों के प्रति तटस्थ-संतुलित दृष्टि रखकर शोध को प्रोत्साहित न किये जाने के कारण इनका भविष्य खतरे में है. 

हमारे साथ दुहरी विडम्बना है 

१. हमारे ग्रंथागार और विद्वान सदियों तक नष्ट किये गए. बचे हुए कभी एक साथ मिल कर खोये को दुबारा पाने की कोशिश न कर सके. बचे ग्रंथों को जन्मना ब्राम्हण होने के कारण जिन्होंने पढ़ा वे विद्वान न होने के कारण वर्णित के वैज्ञानिक आधार नहीं समझ सके और उसे ईश्वरीय चमत्कार बताकर पेट पालते रहे. उन्होंने ग्रन्थ तो बचाये पर विद्या के प्रति अन्धविश्वास को बढ़ाया। फलतः अंधविरोध पैदा हुआ जो अब भी विषयों के व्यवस्थित अध्ययन में बाधक है. 

२. हमारे ग्रंथों को विदेशों में ले जाकर उनके अनुवाद कर उन्हें समझ गया और उस आधार पर लगातार प्रयोग कर विज्ञान का विकास कर पूरा श्रेय विदेशी ले गये. अब पश्चिमी शिक्षा प्रणाली से पढ़े और उस का अनुसरण कर रहे हमारे देशवासियों को पश्चिम का सब सही और पूर्व का सब गलत लगता है. लार्ड मैकाले ने ब्रिटेन की संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन पर हुई बहस में जो अपन लक्ष्य बताया था, वह पूर्ण हुआ है. 
इन दोनों विडम्बनाओं के बीच भारतीय पद्धति से किसी भी विषय का अध्ययन, उसमें परिवर्तन, परिणामों की जाँच और परिवर्धन असीम धैर्य, समय, धन लगाने से ही संभव है. 

अब आवश्यक है दृष्टि सिर्फ अपने विषय पर केंद्रित रहे, न प्रशंसा से फूलकर कुप्पा हों, न अंध आलोचना से घबरा या क्रुद्ध होकर उत्तर दें. इनमें शक्ति का अपव्यय करने के स्थान पर सिर्फ और सिर्फ विषय पर केंद्रित हों.

संभव हो तो राष्ट्रीय महत्व के बिन्दुओं जैसे घुसपैठ, सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा (भूकंप, तूफान. अकाल, महत्वपूर्ण प्रयोगों की सफलता-असफलता) आदि पर पर्याप्त समयपूर्व अनुमान दें तो उनके सत्य प्रमाणित होने पर आशंकाओं का समाधान होगा। ऐसे अनुमान और उनकी सत्यता पर शीर्ष नेताओं, अधिकारियों-वैज्ञानिकों-विद्वानों को व्यक्तिगत रूप से अवगत करायें तो इस विद्या के विधिवत अध्ययन हेतु व्यवस्था की मांग की जा सकेगी।  

रविवार, 3 अगस्त 2014

lekh: kundali men mangal dosh: abhilasha


कुंडली में मंगल दोष 
अभिलाषा 
*
मंगल-दोष एक प्रमुख दोष माना जाता रहा है हमारे कुंडली के दोषों में.आजकल के शादी-बयाह में इसकी प्रमुखता देखि जा रही है,पर इस दोष के बहुत सारे परिहार भी है.ऐसा माना जाता रहा है की मांगलिक'दोषयुक्त कुंडली का मिलान मांगलिक-दोषयुक्त' कुंडली से ही बैठना चाहिए,या ऐसे कहना चाहिए की मांगलिक वर की शादी मांगलिक वधु से होनी चाहिए,पर ये कुछ मायनो में गलत है,कई बार ऐसा करने से ये दोष दुगना हो जाता है जिसके फलस्वरूप वर-वधु का जीवन कष्टमय हो जाता है.अत्तः यहाँ कुछ बातें ध्यान देने योग्य हो जाती है जैसे की अगर वर-वधु की उमर अगर ३० वर्ष से अधिक हो 'या' जिस स्थान पर वर या वधु का मंगल स्थित हो उसी स्थान पर दुसरे के कुंडली में शनि-राहु-केतु या' सूर्य हो तो भी मंगल-दोष विचारनीय नहीं रह जाता अगर दूसरी कुंडली मंगल-दोषयुक्त न भी हो तो.या वर-वधु के गुण-मिलान में गुंणों की संख्या ३० से उपर आती है तो भी मंगल-दोष विचारनीय नहीं रह जाता.
ये तो थी परिहार की बात,इसके अलावा अगर ये स्थिति भी न हो अर्थात कुंडली के योगों के द्वारा अगर परिहार संभव न हो तो इसके कुछ उपाए है जिसके की करने के बाद मंगल-दोष' को बहुत हद तक कम किया जा सकता है,जैसे की कुम्भ-विवाह,विष्णु-विवाह और अश्वाथा-विवाह.'अर्थात अगर ऐसे जातको के विवाह से पहले जिसमे किसी एक की कुंडली जो की मांगलिक'दोषयुक्त हो उसका विवाह इन पद्धतियों में से किसी एक से कर के पुनः फिर उसका विवाह गैर-मांगलिक'दोषयुक्त कुंडली वाले के साथ किया जा सकता है.कुम्भ-विवाह' में वर या वधु की शादी एक घड़े के साथ कर दी जाती है और उसके पश्चात उस घड़े को तोड़ दिया जाता है.उसी प्रकार अश्वाथा-विवाह' में में वर या वधु की शादी एक केले के पेड़ के साथ कर दी जाती है और उसके पश्चात उस पेड़ को काट दिय जाता है.विष्णु-विवाह में वधु की शादी विष्णु-जी की प्रतिमा से की जाती है ,फिर उसका विवाह जिस वर से उसकी शादी तय हो उससे कर देनी चाहिए.
इसके अलावा और भी कुछ बातें ध्यान देने योग्य है जैसे की अगर वर-वधु' दोनों की कुण्डलियाँ मांगलिक'दोषयुक्त हो पर किसी एक का मंगल 'उ़च्च' का और दुसरे का ‘नीच’ का हो तो भी विवाह नहीं होना चाहिए.या दोनों की कुण्डलियाँ मांगलिक'दोषयुक्त न हो पर किसी एक का मंगल 29' डिग्री से ०' डिग्री के बीच का हो तो भी मंगल-दोष' बहुत हद्द तक प्रभावहीन हो जाता है.
अतः मेरे विचार से विवाह के समय इन बातों को विचार में रख के हम आने वाले भविष्य को सुखमय बना सकते है.

शनिवार, 31 मई 2014

kundali milan men gan vichar: sanjiv

लेख: 
कुंडली मिलान में गण-विचार
संजीव 
*








वैवाहिक संबंध की चर्चा होने पर लड़का-लड़की की कुंडली मिलान की परंपरा भारत में है. कुंडली में वर्ण का १, वश्य के २, तारा के ३, योनि के ४, गृह मैटरर के ५, गण के ६, भकूट के ७ तथा नाड़ी के ८ कुल ३६ गुण होते हैं.जितने अधिक गुण मिलें विवाह उतना अधिक सुखद माना जाता है. इसके अतिरिक्त मंगल दोष का भी  विचार किया जाता है. 

कुंडली मिलान में 'गण' के ६ अंक होते हैं. गण से आशय मन:स्थिति या मिजाज (टेम्परामेन्ट) के तालमेल से हैं. गण अनुकूल हो तो दोनों में उत्तम सामंजस्य और समन्वय उत्तम होने तथा गण न मिले तो शेष सब अनुकूल होने पर भी अकारण वैचारिक टकराव और मानसिक क्लेश होने की आशंका की जाती है. दैनंदिन जीवन में छोटी-छोटी बातों में हर समय एक-दूसरे की सहमति लेना या एक-दूसरे से सहमत होना संभव नहीं होता,  दूसरे को सहजता से न ले सके और टकराव हो तो पूरे परिवार की मानसिक शांति नष्ट होती है। गण भावी पति-पत्नी के वैचारिक साम्य और सहिष्णुता को इंगित करते हैं 

ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थ कल्पद्रुम के अनुसार निम्न २ स्थितियों में गण दोष को महत्त्वहीन कहा गया है:

१. 'रक्षो गणः पुमान स्याचेत्कान्या भवन्ति मानवी । केपिछान्ति तदोद्वाहम व्यस्तम कोपोह नेछति ।।' 

अर्थात जब जातक का कृतिका, रोहिणी, स्वाति, मघा, उत्तराफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढा नक्षत्रों में जन्म हुआ हो।

        २. 'कृतिका रोहिणी स्वामी मघा चोत्त्राफल्गुनी । पूर्वाषाढेत्तराषाढे न क्वचिद गुण दोषः ।।'

अर्थात जब वर-कन्या के राशि स्वामियों अथवा नवांश के स्वामियों में मैत्री हो।

      गण को ३ वर्गों 1-देवगण, 2-नर गण, 3-राक्षस गण में बाँटा गया है। गण मिलान ३ स्थितियाँ हो सकती हैं:

1. वर-कन्या दोनों समान गण के हों तो सामंजस्य व समन्वय उत्तम होता है. 

2. वर-कन्या देव-नर हों तो सामंजस्य संतोषप्रद होता है ।

३. वर-कन्या देव-राक्षस हो तो सामंजस्य न्यून होने के कारण पारस्परिक टकराव होता है ।

शारंगीय के अनुसार; वर राक्षस गण का और कन्या मनुष्य गण की हो तो विवाह उचित होगा। इसके विपरीत वर मनुष्य गण का एवं कन्या राक्षस गण की हो तो विवाह उचित नहीं अर्थात सामंजस्य नहीं होगा। 

सर्व विदित है कि देव सद्गुणी किन्तु विलासी, नर या मानव परिश्रमी तथा संयमी एवं असुर या राक्षस दुर्गुणी, क्रोधी तथा अपनी इच्छा अन्यों पर थोपनेवाले होते हैं।  

भारत में सामान्यतः पुरुषप्रधान परिवार हैं अर्थात पत्नी सामान्यतः पति की अनुगामिनी होती है। युवा अपनी पसंद से विवाह करें या अभिभावक तय करें दोनों स्थितियों में वर-वधु के जीवन के सभी पहलू एक दूसरे को विदित नहीं हो पाते गण मिलान अज्ञात पहलुओं का संकेत कर सकता है गण को कब-कितना महत्त्व देना है यह उक्त दोनों तथ्यों तथा वर-वधु के स्वभाव, गुणों, शैक्षिक-सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में विचारकर तय करना चाहिए। 

   
***


शनिवार, 4 मई 2013

jyotish seekhen:

ज्योतिष ज्ञान



ज्योतिष को मुख्यता २ भागो में बाटा गया है सिद्धांत व फलित ज्योतिष ज्योतिष का वह भाग जिसमे ग्रह नक्षत्र आदि की गतियो का अवलोकन किया जाता है सिद्धांत या गणित के नाम से जाना जाता है फलित वह भाग है जिसके द्वारा ग्रह की विशेष स्तिथि को देख कर बताया जाता है की उस स्तिथि का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा
जातक –
अधिकतर ज्योतिष की किताबो में ये शब्द आपने देखा व पढ़ा गया है जातक शब्द व्यक्ति विशेष के लिए आता है जिसकी ज्योतिष के अधार पर गड़ना कर फलित करने की कोशिश की जाती है अर्थात वो व्यक्ति स्वयं भी हो सकता है या जिसका ज्योतिषीय विधि से विचार किया जा रहा है
पत्री –
ग्रहों की विशेष स्थिति को एक कागज पर विशेष आकृति में बनाना जिससे समय समय पर अलग अलग स्तिथि वश विचार किया जा सके पत्री कही जाती है सूक्ष्म पत्री में ग्रह की स्तिथि ही दी जाती है जबकि पूर्ण पत्रियो में ग्रह गडना के साथ साथ दशा अंतरदशा ग्रहों के शुभ अशुभ फल व जन्मदिन का पंचाग भी दिया जाता है
सम्वंतसर –
ई० काल श्री क्राइस्ट के जन्म से माना जाता है जिसका २०१० व वर्ष चल रहा है क्राइस्ट के जन्म के ३१०१ वर्ष पूर्व ही कलियुग शुरू हो चुका था वास्तविक कलियुग का आरंभ १८ फरबरी ३१०२ बी०सी० की अर्ध रात्रि को हुआ था ज्योतिष गडना के अनुसार ७ ग्रह मेष राशि में थे इसका ज्योतिष गणित में विशेष महत्व है
क्राइस्ट के जन्म के ५७ वर्ष पहले उज्जैन में विक्रमादित्य नाम के प्रतापी राजा हुए है स्कंध पुराण में लिखा गया है कि कलियुग के लगभग ३००० वर्ष बीत जाने पर विक्रमादित्य नामक राजा हुआ जिसके नाम से ही विक्रमी संवत जाना जाता है यही कारण है कि चल रहे इस्वी साल में ५७ और जोड़ दिया जाये तो वह विक्रमी सम्वत बन जाता है
क्राइस्ट के जन्म के ७८ वर्ष के बाद शालिवाहन नामक राजा हुए है जिनके नाम पर ही शक संवत का प्राम्भ हुआ अर्थात इस्वी साल में ७८ और घटा दिया जाये तो वह शक सम्वत बन जाता है

पंचांग –
पंचांग का अर्थ ही ५ अंगों का समूह है पंचाग में तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण आते है ज्योतिष का पूर्ण पंचाग सूर्य और चन्द्रमा की गति पर निर्भर करता है

तिथि –
सूर्य और चन्द्रमा के अंशो के अंतर से तिथियो का चयन किया जाता है तिथिया दो प्रकार की होती है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की तिथिया –



राशि –
प्रथ्वी जब सूर्य के चारो तरफ चक्कर लगाती है तो एक गोलाकार परिभ्रमण बन जाता है इस ३६० अंश के परिभ्रमण को गडना की सुगमता हेतु १२ भागो में विभक्त किया गया था लेकिन अनुभवों से ये पाया गया की इन १२ भागो की आपने एक अलग पहचान भी है जब भी कोई ग्रंह इन अलग अलग भागो में जाता है तो उसका अलग ही प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है
जिस प्रकार यदि कोई मनुष्य पहेली बार किसी मार्ग पर जाता है तो अपनी वापसी के लिए कुछ स्थान को अपने ध्यान का केंद्र बना लेता है जिससे वो याद रख सके की इससे मार्ग से आये थे उसी तरह पूर्व के ज्योतिषविदो ने राशियों को अलग अलग तारा मंडलों के स्थान के अधार पर निर्धारित कर दिया था जिससे यह ज्ञात किया जा सके कि कौन सा ग्रह कब और किस तारा मंडल की तरफ को जा रहा है इन तारा मंडल के विशेष समूह को ३० – ३० अंश में विभक्त कर अलग अलग नाम दे दिये गए जिनको आजकल लोग राशि कहते है



उत्तर भारत की ज्योतिष की समस्त पत्रीयो में राशि के स्थान पर ऊपर दिए गये राशि अंको का ही प्रयोग किया जाता है ये अंक किसी भी पत्री में भाव को प्रदर्शित नहीं करते ये संबधित राशि को ही दर्शाते है जो की ऊपर बताइ गई है बहुत से नए ज्योतिष के विद्यार्थी राशि अंक को ही जातक की कुंडली का भाव समझते है जिस कारण उनके द्वारा किया गया फलित निष्प्रभावी हो जाता है
ज्योतिष में ९ ग्रहों सूर्य चन्द्रमा मंगल राहू गुरु शनि बुध केतु और शुक्र को ही विशेष महत्व दिया गया है राशियों के स्वामी और उनका सम्बन्ध कुछ इस प्रकार है


वार –
दैनिक रूप से हम लोग प्रतिदिन एक न एक दिन के नाम को जानते है जैसेकि रविवार सोमवार आदि लेकिन ये दिन एक क्रम में ही क्यों होते है क्यों सोमवार के बाद मंगल ही आता है शुक्र ही क्यों नहीं आ जाता इसका एक विशेष गणित निर्धारित है
गणितीय आधार पर सबसे दूर शनि को बताया गया है इसकी दूरी ८८ करोड मील से कुछ ऊपर ही आकी गई है अतः शनि एक परिक्रमाँ १०७५९ दिनों में पूरा कर पता है यह अवधि ३० वर्ष के बराबर होती है शनि से कम दूरी पर गुरु (ब्रहस्पति) ४८ करोड मील दूर है इस कारण ये परिक्रमा ४३३२ दिन या १२ वर्ष में पूरी करता है गुरु से कम दूरी पर मंगल जो १४ करोड मील से कुछ अधिक है इसलिए ६८६ दिनों में परिक्रमा पूरी करता है मंगल से कम दूरी इस प्रथ्वी की है जो ९ करोड मील पर है चुकी प्रथ्वी को चलायेमान नहीं मानते इस लिए यह स्थान सूर्य को दिया गया है इससे कम दूरी पर शुक्र है जो ६ करोड मील से कुछ अधिक है इस कारण ये २२४ दिन में परिक्रमा पूरी करता है शुक्र से भी कम दूरी पर बुध जो ३.५ करोड मील पर है ये ८७ दिन में अपनी परिरकमा पूरी करता है सबसे कम दूरी पर चन्द्रमा है जो लगभग २.५ लाख मील पर है ये २७ दिन में अपना परिक्रमा का काल पूरा करता है
यदि इन ग्रहों को उनके दूरवर्ती क्रम में लिखा जाये तो शनि गुरु मंगल सूर्य शुक्र बुध व चन्द्रमा आते है अहोरात्रि एक दिन और रात के युग्म को कहा जाता है अहोरात्रि में यदि अ और त्रि का विलोप कर दिया जाये तो उसको होरा कहा जाता है १ अहोरात्रि में २४ होरा होते है जिसे अग्रेजी के HOUR शब्द की संज्ञा दी गयी है
प्रलय के अंत के बाद सूर्य का उदय होता है उसके ही प्रकाश में पुन सृष्टि का जन्म होता है इसलिए पहेला होरा सूर्य का ही माना गया है उसके बाद शुक्र के बाद बुध के बाद चंद्र के बाद शनि के बाद गुरु के बाद मंगल फिर ये ही क्रम बार बार चलता है इस क्रम में २४ होरा के बाद फिर चन्द्र का होरा आता है


इस क्रम के चलते ही ठीक २४ घंटे या होरा के बाद यदि आज सूर्योदय पर रविवार है तो २४ घंटे बाद चन्द्र वार = सोमवार पड़ेगा ! उस क्रम को ध्यान में रखते हुए वार का नामांकन किया गया है

नक्षत्र –
अनेक तारो के विशिष्ट आक्रति वाले पुंज को नक्षत्र कहा जाता है आकाश में जो असंख्या तारा मंडल जो दिखाई पड़ते है वे ही नक्षत्र कहे जाते है ज्योतिष में नक्षत्र का एक विशेष स्थान है इस सम्पूर्ण आकाश को २७ नक्षत्रो में बाटा गया है प्रत्येक भाग को एक नाम दिया गया है जिनके नाम व स्वामी निम्न प्रकार है



नक्षत्र और राशि का सम्बन्ध -
गणितीय अधार पर एक नक्षत्र १३ अंश २० मिनिट का होता है तथा प्रत्येक नक्षत्र के ४ चरण होते है इस प्रकार हर नक्षत्र का प्रत्येक चरण ३ अंश २० मिनिट का होता है इस प्रकार नक्षत्रो को राशियों के साथ निम्नवत रखा गया है



नक्षत्रो की संज्ञा –
ज्योतिष में नक्षत्रो को मूल, पंचक, ध्रुव, चर, मिश्र, अधोमुख, उधर्व्मुख, दंध व त्रियाद्य्मुख नामो से जाना जाता है

मूल नक्षत्र –
अश्वनी, मघा, मूल, अश्लेषा ज्येष्ठा व रेवती ये ६ एसे नक्षत्र को मूल नक्षत्रो में गिना जाता है इन नक्षत्रो में होने वाले बच्चो को मूल संज्ञा में ही कहा जाता है २७ दिन के बाद ये नक्षत्र पुन आता है तब मूल की शांति कराई जाती है ज्येष्ठा और मूल को गणङात मूल की व अश्लेषा को सर्प मूल की संज्ञा दी गयी है

पंचक –
घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती ये ५ नक्षत्र पंचक कहे जाते है इनमे किये गए कार्य सिद्ध नहीं होते है

ध्रुव –
उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रेवती ये ४ नक्षत्र ध्रुव संज्ञक बताये गए है

चर –
स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण और शतभिषा ये ४ नक्षत्र चर संज्ञक है

लघु व मिश्र –
हस्त, अश्वनी व पुष्य नक्षत्र लघु संज्ञक है विशाखा और कृतिका को मिश्र संज्ञक नक्षत्र माना गया है

अधोमुख –
मूल अश्लेषा विशाखा कृतिका पूर्वाफाल्गुनी पूर्वाषाढ़ा पूर्वाभाद्रपद भरणी और मघा ये ९ नक्षत्र आते है इनमे कुआ बाबडी मकान की नीव आदि का कार्य का आरंभ करना शुभ माना गया है

उधर्वमुख –
आद्रा पुष्य श्रवण घनिष्ठा और शतभिषा ये नक्षत्र उधर्वमुख संज्ञक नक्षत्र है

दंद –
यदि रविवार को भरणी सोमवार को चित्रा मंगलवार को उत्तराषाढ़ा बुधवार को घनिष्ठा गुरुवार को उत्तराफाल्गुनी शुक्रवार को ज्येष्ठा और शनिवार को रेवती तो उस युग्म से बने योग को दंद संज्ञक नक्षत्र कहा जाता है

त्रियाद्य्मुख –
अनुराधा हस्त स्वाति पुनर्वसु ज्येष्ठा और अश्वनी को त्रियाद्य्मुख संज्ञक नक्षत्र कहा जाता है

ज्योतिष में माह का नाम –
मुख्यता उजाले पक्ष को शुक्ल पक्ष और अधेरे पक्ष को कृष्ण पक्ष कहा जाता है दोनों पक्षों को जोड़ कर एक माह का निर्धारण किया जाता है इसी प्रकार १२ चन्द्र मास का एक वर्ष होता है जिसके नाम इस प्रकार है



ऊपर बताये गए माह के नाम भी एक विशेष कारण से ही रखे गए है जिस मास की पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र पड़ता है उस मास का नाम चेत माना गया है उसी क्रम में जिस मास की पूर्णिमा को विशाखा नक्षत्र आता है वह वैशाख ही होता है

पंचांग का अध्यन –
जैसा की आपको पूर्व में ही बताया है की पंचांग के ५ अंग होते है तिथि वार नक्षत्र योग करण ! तिथि सूर्य से चंद्रमा के अंशो के बीच के अंतर से निकली जाती है यदि सूर्य से चन्द्रमा के बीच की दूरी का अंतर १८० अंश से कम है तो वह शुक्ल पक्ष की तिथि होती है जब सूर्य से चन्द्रमा के बीच का अंतर १८० अंश से ज्यादा होता है तो वह कृष्ण पक्ष की तिथि होती है

उ० १ - मान ले यदि सूर्य सिंह राशि में १० अंश पर है और चन्द्रमा तुला में १५ अंश पर है
सूर्य के कुल अंश = १२० + १० = १३० (तालिका ०२ से)
चन्द्रमा के कुल अंश = १८० + १५ = १९५ (तालिका ०२ से)
चन्द्रमा से सूर्य का अंतर = १९५ – १३० = ६५ = शुक्ल पक्ष की ६ षष्ठी (तालिका ०१ से)

उ० २ – मान ले यदि सूर्य मिथुन राशि में १२ अंश पर और चन्द्रमा मीन राशि में १० अंश पर है
सूर्य के कुल अंश = ६० + १२ = ७२ (तालिका ०२ से)
चन्द्रमा के कुल अंश = ३३० + १० = ३४० (तालिका ०२ से)
चन्द्रमा से सूर्य का अंतर = ३४० – ७२ = २६८
चुकी यह मान १८० से ज्यादा है इसलिए २६८ – १८० = ८८ कृष्ण पक्ष ८ अष्टमी (तालिका ०१ से)

उ० ३ – मान ले यदि सूर्य तुला राशि में १७ अंश पर और चन्द्रमा कर्क में १२ अंश पर है
सूर्य के कुल अंश = १८० + १७ = १९७ (तालिका ०२ से)
चन्द्रमा के कुल अंश = ९० + १२ = १०२ (तालिका ०२ से)
चन्द्रमा से सूर्य का अंतर = १०२ – १९७ = - ९५ चुकी मान – में है इसलिए
चन्द्रमा से सूर्य का अंतर = -९५ + ३६० = २६५
चुकी यह मान १८० से ज्यादा है इसलिए २६५ – १८० = ८५ कृष्ण पक्ष ८ अष्टमी (तालिका ०१ से)

तिथियों की संज्ञा –तिथियो को ५ अलग अलग समूह में रखा गया है –


अमावस्या –
अमावस्या को ३ संज्ञाओ के रूप में जाना जाता है –
सिनी वाली – प्रातकाल से रात्रि तक की पूर्ण अमावस्या को
दर्श – चतुर्दशी तिथि से संलग्न अमावस्या को
कुहू – प्रतिपदा से युक्त अमावस्या को

कुछ तिथिया वार के साथ मिलकर अशुभ फल देने वाली होती है तथा कुछ को सिद्ध तिथि कहा जाता है जिनमें समस्त कार्य सिद्ध हो जाते है



दग्ध विष और हुतासन को अशुभ फल देने वाली तिथि ही कहा गया है
वार के विषय में विस्तार से तालिका ०४ के अनुक्रम में पूर्व में ही बताया जा चुका है


नक्षत्र –
नक्षत्र के बारे में पूर्व में ही बताया जा चुका है नक्षत्र की गडना के लिए तालिका १० से चन्द्रमा की स्तिथि ही उस समय के नक्षत्र को प्रदर्शित करती है

उ० ४ यदि मान ले की चन्द्रमा कन्या में १७ अंश पर है तो तालिका १० से हस्त नक्षत्र कन्या में १० अंश से २३.२० अंश तक होता है चुकी चन्द्रमा १७ अंश का है इसलिए संगत अवधि में हस्त नक्षत्र होगा

योग –
सूर्य और चन्द्रमा के मान को जोड़ कर तालिका १० से प्राप्त स्तिथि के अधार योग को ज्ञात किया जा सकता है

पूर्व में दिए गए उ० १ के अनुसार –
सूर्य के कुल अंश = १२० + १० = १३० (तालिका ०२ से)
चन्द्रमा के कुल अंश = १८० + १५ = १९५ (तालिका ०२ से)
सूर्य व चन्द्र का योग = १९४ + १३० = ३२४
तालिका २ के अनुसार ३२४ कुम्भ राशि में आता है अत तालिका १० व ०३ से ब्रह्म योग बनता है

पूर्व के दिए गए उ० २ के अनुसार –
सूर्य के कुल अंश = ६० + १२ = ७२ (तालिका ०२ से)
चन्द्रमा के कुल अंश = ३३० + १० = ३४० (तालिका ०२ से)
सूर्य व चन्द्र का योग = ७२ + ३४० = ४१२ चुकी यह ३६० से ज्यादा है
अतः ४१२ - ३६० =५२
तालिका २ के अनुसार ५२ वृषभ राशि में आता है अत तालिका १० व ०३ से सौभाग्य योग बनता है

करण –
तिथि के आधे भाग को कारण कहा जाता है प्रत्येक तिथि का मान १२ अंश अर्थात २४ होरा या घंटे होता है इसमें पूर्वार्ध के १२ घंटे या होरा का एक करण तथा उतरार्ध के १२ घंटे या होरा का एक करण होता है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में ३० तिथिया होती है तिथि व पक्ष के आधार पर करण का निर्धरण निम्न प्रकार है



पंचांग में भद्रा का भी उल्लेख मिलता है विष्टि करण को भद्रा कहा जाता है भद्रा में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है

गुरुवार, 14 मई 2009

शब्द-सलिला: ब्रहस्पति - अजित वडनेरकर

प्रा चीन भारतीय मनीषियों ने खगोलिकी पर बहुत चिन्तन किया था। ग्रह-नक्षत्रों, उनकी गतियों, ग्रहणों और उसके मानव जीवन पर प्रभावों के बारे में वे लगातार सोचते थे। खगोल संबंधी भारतीय ज्ञान फारस होते हुए अरब पहुंचा और फिर वहां से यूनानी, ग्रीक और रोमन समाज तक पहुंचा। हालांकि ज्ञान के आदान-प्रदान का यह सिलसिला दोनो तरफ से था। सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह का नाम गुरु है। इसे बृहस्पति भी कहते हैं जिसका अंग्रेजी नाम है जुपिटर। सप्ताह के सात दिनों में एक गुरु का होता है इसीलिए उसे गुरुवार कहते हैं। गुरु शब्द में ही गुरुता का भाव है। गुरु शब्द की व्युत्पत्ति भी ग्र या गृ जैसी प्राचीन भारोपीय ध्वनियों से मानी जा सकती है जिनमें पकड़ने या लपकने का भाव रहा। गौर करें गुरु में समाहित बड़ा , प्रचंड, तीव्र जैसे भावों पर। हिन्दी में आकर्षण का अर्थ होता है खिंचाव। ग्रह् का अर्थ भी खिंचाव ही है, इससे ही ग्रहण बना है। घर के अर्थ में ग्रह या गृह भी इसी मूल के हैं। ध्यान दें कि गृहस्थी और घर में जो खिंचाव और आकर्षण है जिसकी वजह से लोग दूर जाना पसंद नहीं करते। ग्रहों – खगोलीय पिंडों की खिंचाव शक्ति के लिए भी गुरुत्वीय बल शब्द प्रचलित है जिसे अंग्रेजी में ग्रैविटी कहते हैं जो इसी मूल से उपजा है। फारसी का एक शब्द है बिरजिस जिसका अभिप्राय तारामंडल के सर्वाधिक चमकीले तारे गुरु से ही है। यह इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है और बृहस्पति से बना है। संस्कृत में बृह् धातु है जिसमें उगना, बढ़ना, फैलना जैसे भाव हैं। आकार और फैलाव के संदर्भ में इससे ही बना है बृहत् (वृहद) शब्द जो बृह+अति के मेल से बना है। इसका मतलब होता है विस्तृत, प्रशस्त, प्रचुर, शक्तिशाली, चौड़ा, विशाल, स्थूल आदि। बृहत्तर शब्द भी इससे ही बना है। संस्कृत में इसके वृह, वृहत् और वृहस्पति, वृहत्तर जैसे रूप भी हैं जो हिन्दी में भी प्रचलित हैं। ऋषि-मुनियों ने गुरु के अत्यधिक प्रकाशमान होने से "..संस्कृत में बृह् धातु है जिसमें उगना, बढ़ना, फैलना जैसे भाव हैं.." उसके बड़े आकार की कल्पना की और उसे बृहस्पति कहा। पुराणों में बृहस्पति को देवताओं का गुरु भी कहा गया है। बृहस् ही ईरानी के प्राचीन रुपों में बिरहिस हुआ और फिर बिरजिस बना। वाजिदअली शाह के शहजादे का नाम बिरजिस कद्र था। बृहस्पति के बड़े आकार, उसकी द्युति अर्थात चमक ही इसके अंग्रेजी नाम जुपिटर के मूल में हैं। भाषाविज्ञानियों ने इसे प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार का शब्द माना है। यह दो धातुओ के मेल से बना है। द्युस dyeu + पेटर peter = जुपिटर Jupiter जिसका मतलब होता है देवताओं के पिता जो बृहस्पति में निहित देवताओं के गुरु वाले भाव का ही विस्तार है। ग्रीक पुराकथाओं में जिऊस का उल्लेख है जो देवताओं का पिता था। प्राचीन भारोपीय धातु dyeu की संस्कृत धातु दिव् से समानता देखें जिसमें चमक, उज्जवलता, कांति, उजाला जैसे भाव हैं। इसी तरह पेटर की पितृ से। प्राचीनकाल से ही मनुष्य ने चमक, प्रकाश द्युति में ही देवताओं की कल्पना की है। सो द्युस-पेटर में जुपिटर अर्थात बृहस्पति का भाव स्पष्ट है। दिव् से ही बना है दिवस अर्थात दिन या दिवाकर यानी सूर्य। दिव् का एक अर्थ स्वर्ग भी होता है क्योंकि यह लोक हमेशा प्रकाशमान होता है। इन्द्र का एक नाम दिवस्पति भी है। जिसकी वजह से लोग दूर जाना पसंद नहीं करते। ग्रहों – खगोलीय पिंडों की खिंचाव शक्ति के लिए भी गुरुत्वीय बल शब्द प्रचलित है जिसे अंग्रेजी में ग्रैविटी कहते हैं जो इसी मूल से उपजा है। फारसी का एक शब्द है बिरजिस जिसका अभिप्राय तारामंडल के सर्वाधिक चमकीले तारे गुरु से ही है। यह इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है और बृहस्पति से बना है। संस्कृत में बृह् धातु है जिसमें उगना, बढ़ना, फैलना जैसे भाव हैं। आकार और फैलाव के संदर्भ में इससे ही बना है बृहत् (वृहद) शब्द जो बृह+अति के मेल से बना है। इसका मतलब होता है विस्तृत, प्रशस्त, प्रचुर, शक्तिशाली, चौड़ा, विशाल, स्थूल आदि। बृहत्तर शब्द भी इससे ही बना है। संस्कृत में इसके वृह, वृहत् और वृहस्पति, वृहत्तर जैसे रूप भी हैं जो हिन्दी में भी प्रचलित हैं। ऋषि-मुनियों ने गुरु के अत्यधिक प्रकाशमान होने से "..संस्कृत में बृह् धातु है जिसमें उगना, बढ़ना, फैलना जैसे भाव हैं.." उसके बड़े आकार की कल्पना की और उसे बृहस्पति कहा। पुराणों में बृहस्पति को देवताओं का गुरु भी कहा गया है। बृहस् ही ईरानी के प्राचीन रुपों में बिरहिस हुआ और फिर बिरजिस बना। वाजिदअली शाह के शहजादे का नाम बिरजिस कद्र था। बृहस्पति के बड़े आकार, उसकी द्युति अर्थात चमक ही इसके अंग्रेजी नाम जुपिटर के मूल में हैं। भाषाविज्ञानियों ने इसे प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार का शब्द माना है। यह दो धातुओ के मेल से बना है। द्युस dyeu + पेटर peter = जुपिटर Jupiter जिसका मतलब होता है देवताओं के पिता जो बृहस्पति में निहित देवताओं के गुरु वाले भाव का ही विस्तार है। ग्रीक पुराकथाओं में जिऊस का उल्लेख है जो देवताओं का पिता था। प्राचीन भारोपीय धातु dyeu की संस्कृत धातु दिव् से समानता देखें जिसमें चमक, उज्जवलता, कांति, उजाला जैसे भाव हैं। इसी तरह पेटर की पितृ से। प्राचीनकाल से ही मनुष्य ने चमक, प्रकाश द्युति में ही देवताओं की कल्पना की है। सो द्युस-पेटर में जुपिटर अर्थात बृहस्पति का भाव स्पष्ट है। दिव् से ही बना है दिवस अर्थात दिन या दिवाकर यानी सूर्य। दिव् का एक अर्थ स्वर्ग भी होता है क्योंकि यह लोक हमेशा प्रकाशमान होता है। इन्द्र का एक नाम दिवस्पति भी है।