कुल पेज दृश्य

श्लोकानुवाद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
श्लोकानुवाद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

एकदा जबलपुरे जीवन सूत्र

एकदा जबलपुरे
जीवन सूत्र
*
श्लोक:
"विषभारसहस्रेण गर्वं नाऽऽयाति वासुकिः।
वृश्चिको बिन्दुमात्रेण ऊर्ध्वं वहति कण्टकम्।।"
*
दोहानुवाद:
अतुलित विष गह वासुकी, गर्व न कर चुपचाप।
ज़हर-बूँद बिच्छू लिए, डंक उठाए नाप।।
*
अर्थ:
वासुकी बिच्छू की तुलना में हजार गुना अधिक ज़हर होने पर भी गर्व नहीं करता। बिच्छू ज़हर की एक बूँद का प्रदर्शन डंक ऊपर उठा कर करता है।
*
कहावत: थोथा चना बाजे घना
*
भावार्थ: ऐश्वर्यवान अपनी प्रचुर संपदा का भी प्रदर्शन नहीं करते जबकि नवधनाढ्य अल्प संपत्ति होते ही उसका भोंडा प्रदर्शन करते हैं।
*