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रविवार, 31 दिसंबर 2017

navgeet

नवगीत:
एक दिन क्यों?
*
एक दिन क्यों?
हर दिवस को
साल नूतन तुम समझना
*
सुबह जगना
आँख मलना
पैर धरती पर जमाना
गिर पड़ो तो मुस्कुराना
उठ खड़े हो
लक्ष्य पाना।
कोई रोके
कोई टोके, मत उलझना।
*
हो पड़ोसी 
गिद्ध-कौआ
तो न सोना, जगे रहना 
सरहदोँ पर डटे रहना
ध्वजा अपनी
झुक न जाए.
जान लेना 
जाँ न देना, झट सुलझना.
....


नववर्ष गीत गुच्छ

एक रचना
*
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
देश दिनों से खड़ा हुआ है,
जो जैसा है अड़ा हुआ है,
किसे फ़िक्र जनहित का पेड़ा-
बसा रहा है, सड़ा हुआ है।
चचा-भतीजा ताल ठोंकते,
पिता-पुत्र ज्यों श्वान भौंकते,
कोई काट न ले तुझको भी-
इसीलिए
कहता हूँ-
रुक जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
वादे जुमले बन जाते हैं,
घपले सारे धुल जाते हैं,
लोकतंत्र के मूल्य स्वार्थ की-
दीमक खाती, घुन जाते हैं।
मौनी बाबा बोल रहे हैं
पप्पू जहँ-तहँ डोल रहे हैं
गाल बजाते जब-तब लालू
मत टकराना
बच जा झुक जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
एक आदमी एक न पाता,
दूजा लाख-करोड़ जुटाता,
मार रही मरते को दुनिया-
पिटता रोये, नहीं सुहाता।
हुई देर, अंधेर यहाँ है,
रही अनसुनी टेर यहाँ है,
शुद्ध दलाली, न्याय कहाँ है?
जलने से
पहले मत
बुझ जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
**३१.१२.२०१६**
*
नवगीत 
समय वृक्ष है 
*
समय वृक्ष है 
सूखा पत्ता एक झरेगा
आँखें मूँदे.
नव पल्लव तब
एक उगेगा
आँखे खोले.
*
कहो अशुभ या
शुभ बोलो
कुछ फर्क नहीं है.
चिरजीवी होने का
कोई अर्क नहीं है.
कितने हुए?
होएँगे कितने?
कौन बताये?
किसका कितना वजन?
तराजू कोई न तोले.
ठोस दिख रहे
लेकिन हैं
भीतर से पोले.
नव पल्लव
किस तरह उगेगा
आँखें खोले?
*
वाम-अवाम
न एक साथ
मिल रह सकते हैं.
काम-अकाम
न एक साथ
खिल-दह सकते हैं.
पूरब-पश्चिम
उत्तर-दक्षिण
ऊपर-नीचे
कर परिक्रमा
नव संकल्प
अमिय नित घोले.
श्रेष्ठ वही जो
श्रम-सीकर की
जय-जय बोले.
बिन प्रयास
किस तरह कर्मफल
आँखें खोले?
*
जाग,
छेड़ दे, राग नया
चुप से क्या हासिल?
आग
न बुझने देना
तू मत होना गाफिल.
आते-जाते रहें
साल-दर-साल
नए कुछ.
कौन जानता
समय-चक्र
दे हिम या शोले ?
नोट बंद हों या जारी
नव आशा बो ले.
उसे दिखेगी उषा
जाग जो
आँखें खोले
***
३१-१२-२०१६
*
एक रचना 
साल निराला हो 
*
बहुत हो चुके 
होएंगे भी 
पर यह साल निराला हो
*
सुख पीड़ा के आँसू पोंछे
हर्ष दर्द से गले मिले
जिनसे शिकवे रहे उम्र भर
उन्हें न तिल भर रहें गिले
मुखर हो सकें वही वैखरी
जिसके लब थे रहे सिले
जिनके पद तल
सत्ता उनके
उर में कंठी माला हो
बहुत हो चुके
होएंगे भी
पर यह साल निराला हो
*
पग-ठोकर में रहे मित्रता
काँटा साझा साखी हो
शाख-गगन के बीच सेतु बन
भोर-साँझ नव पाखी हो
शासक और विपक्षी के कर
संसद में अब राखी हो
अबला सबला बने
अनय जब मिले
आँख में ज्वाला हो
बहुत हो चुके
होएंगे भी
पर यह साल निराला हो
*
मानक तोड़ पुराने नव रच
जो कह चुके, न वह कह कवि बच
बाँध न रचना को नियमों में
दिल की, मन की बातें कह सच
नचा समय को हँस छिन्गुली पर
रे सत्ता! जनमत सुन कर नच
समता-सुरा
पिलानेवाली
बाला हो, मधुशाला हो
बहुत हो चुके
होएंगे भी
पर यह साल निराला हो
*
३१-१२-२०१५ 
*
नवगीत
*
काम न काज

जुबानी खर्चा

नये वर्ष का कोरा पर्चा
*
कल सा सूरज उगे आज भी

झूठा सच को ठगे आज भी

सरहद पर गोलीबारी है

वक्ष रक्त से सने आज भी

किन्तु सियासत कहे करेंगे

अब हम प्रेम

भाव की अर्चा
*
अपना खून खून है भैया

औरों का पानी रे दैया!

दल दलबंदी के मारे हैं

डूबे लोकतंत्र की नैया

लिये ले रहा जान प्रशासन

संसद करती

केवल चर्चा
*
मत रोओ, तस्वीर बदल दो

पैर तले दुःख-पीर मसल दो

कृत्रिम संवेदन नेता के

लौटा, थोड़ी सीख असल दो

सरकारों पर निर्भर मत हो

पायें आम से

खास अनर्चा

**३१.१२.२०१५**
*
गीत
सूरज उगायें
*
चलो! हम सूरज उगायें...

सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरितिमा मिल हम उगायें....

विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुंदर रचें हम-
सभी सब के काम आयें...

लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?
सोच यह जीवन जियें हम।
हाथ-हाथों से मिलायें...

आत्म में विश्वात्म देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवायें...

तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सुनेंगे।
नाद अनहद गूँजता जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...
*******२४-१२-२०१४ ********
*
नवगीत:
संजीव
.
कुण्डी खटकी
उठ खोल द्वार
है नया साल
कर द्वारचार
.
छोडो खटिया
कोशिश बिटिया
थोड़ा तो खुद को
लो सँवार
.
श्रम साला
करता अगवानी
मुस्का चहरे पर
ला निखार
.
पग द्वय बाबुल
मंज़िल मैया
देते आशिष
पल-पल हजार
.
२३-१२-२०१४
*
नवगीत:
नए साल 
मत हिचक 
बता दे क्या होगा? 

सियासती गुटबाजी
क्या रंग लाएगी?
'देश एक' की नीति
कभी फल पायेगी?
धारा तीन सौ सत्तर
बनी रहेगी क्या?
गयी हटायी
तो क्या
घटनाक्रम होगा?
.
काशी, मथुरा, अवध
विवाद मिटेंगे क्या?
नक्सलवादी
तज विद्रोह
हटेंगे क्या?
पूर्वांचल में
अमन-चैन का
क्या होगा?
.
धर्म भाव
कर्तव्य कभी
बन पायेगा?
मानवता की
मानव जय
गुंजायेगा?
मंगल छू
भू के मंगल
का क्या होगा?
*

*
नवगीतः
.
काल चक्र का
महाकाल के भक्त
करो अगवानी
.
तपूँ , जड़ाऊँ या बरसूँ
नाखुश होंगे बहुतेरे
शोर-शांति
चाहो ना चाहो
तुम्हें रहेंगे घेरे
तुम लड़कर जय वरना
चाहे सूखा हो या पानी
बहा पसीना
मेहनत कर
करना मेरी अगवानी
.
चलो, गिरो उठ बढ़ो
शूल कितने ही आँख तरेरे
बाधा दें या
रहें सहायक
दिन-निशि, साँझ-सवेरे
कदम-हाथ गर रहे साथ
कर लेंगे धरती धानी
कलम उठाकर
करें शब्द के भक्त
मेरी अगवानी
.
शिकवे गिले शिकायत
कर हल होती नहीं समस्या
सतत साधना
से ही होती
हरदम पूर्ण तपस्या
स्वार्थ तजो, सर्वार्थ साधने
बोलो मीठी बानी
फिर जेपी-अन्ना
बनकर तुम करो
मेरी अगवानी
.
३१.१२.२०१४
*
नवगीत:
संजीव
.
बहुत-बहुत आभार तुम्हारा
ओ जाते मेहमान!
.
पल-पल तुमने
साथ निभाया
कभी रुलाया
कभी हँसाया
फिसल गिरे, आ तुरत उठाया
पीठ ठोंक
उत्साह बढ़ाया
दूर किया हँस कष्ट हमारा
मुरझाते मेहमान
.
भूल न तुमको
पायेंगे हम
गीत तुम्हारे
गायेंगे हम
सच्ची बोलो कभी तुम्हें भी
याद तनिक क्या
आयेंगे हम?
याद मधुर बन, बनो सहारा
मुस्काते मेहमान
.
तुम समिधा हो
काल यज्ञ की
तुम ही थाती
हो भविष्य की
तुमसे लेकर सतत प्रेरणा
मन:स्थिति गढ़
हम हविष्य की
'सलिल' करेंगे नहीं किनारा
मनभाते मेहमान
.
३१-१२-२०१४
*
नव वर्ष पर नवगीत
*
महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
*
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है.
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो.
निज मन का
छायांकन कर लो.
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
*
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
*
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब.
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
*
खाली हाथ?
न रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
*********************
३१.१२.२०१७
*
नये साल का गीत
संजीव 'सलिल'
*
कुछ ऐसा हो साल नया,
जैसा अब तक नहीं हुआ.
अमराई में मैना संग
झूमे-गाये फाग सुआ...
*
बम्बुलिया की छेड़े तान.
रात-रातभर जाग किसान.
कोई खेत न उजड़ा हो-
सूना मिले न कोई मचान.
प्यासा खुसरो रहे नहीं
गैल-गैल में मिले कुआ...
*
पनघट पर पैंजनी बजे,
बीर दिखे, भौजाई लजे.
चौपालों पर झाँझ बजा-
दास कबीरा राम भजे.
तजें सियासत राम-रहीम
देख न देखें कोई खुआ...
*
स्वर्ग करे भू का गुणगान.
मनुज देव से अधिक महान.
रसनिधि पा रसलीन 'सलिल'
हो अपना यह हिंदुस्तान.
हर दिल हो रसखान रहे
हरेक हाथ में मालपुआ...
*****
३१-१२-२०१०
*