नवगीत:
ब्रजेश श्रीवास्तव
(नवगीत महोत्सव लखनऊ में वरिष्ठ नवगीतकार श्री ब्रजेश श्रीवास्तव, ग्वालियर से उनका नवगीत संग्रह 'बाँसों के झुरमुट से' प्राप्त हुआ. प्रस्तुत है उनका एक नवगीत)
*
देखते ही देखते बिटिया
सयानी हो गई
उच्च शिक्षा प्राप्त कर वह
नौकरी करने चली
कल तलक थी साथ में
अब कर्म पथ वरने चली
कौन विषपायी यहाँ
बिटिया भवानी हो गई
ब्याह दी निज घर बसाने
छोड़ बाबुल को चली
सरल सरिता सी समंदर
से गले मिलने चली
मायके आती कभी
बिटिया कहानी हो गई
माँ-पिता को याद आता
भाइयों संग खेलना
कभी उनसे झगड़ पड़ना
किन्तु संग-संग जेवना
छोड़ गुड़िया को यहाँ
बिटिया निशानी हो गई
***
ब्रजेश श्रीवास्तव
(नवगीत महोत्सव लखनऊ में वरिष्ठ नवगीतकार श्री ब्रजेश श्रीवास्तव, ग्वालियर से उनका नवगीत संग्रह 'बाँसों के झुरमुट से' प्राप्त हुआ. प्रस्तुत है उनका एक नवगीत)
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देखते ही देखते बिटिया
सयानी हो गई
उच्च शिक्षा प्राप्त कर वह
नौकरी करने चली
कल तलक थी साथ में
अब कर्म पथ वरने चली
कौन विषपायी यहाँ
बिटिया भवानी हो गई
ब्याह दी निज घर बसाने
छोड़ बाबुल को चली
सरल सरिता सी समंदर
से गले मिलने चली
मायके आती कभी
बिटिया कहानी हो गई
माँ-पिता को याद आता
भाइयों संग खेलना
कभी उनसे झगड़ पड़ना
किन्तु संग-संग जेवना
छोड़ गुड़िया को यहाँ
बिटिया निशानी हो गई
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