सॉनेट
वह
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हमने उसे नहीं पहचाना।
गिला न शिकवा करता है वह।
रूप; रंग; आकार न जाना।।
करे परवरिश हम सबकी वह।।
लिया हमेशा सब कुछ उससे।
दिया न कुछ भी वापिस उसको।
उसकी करें शिकायत किससे?
उसका प्रतिनिधि मानें किसको?
कब भेजे?; कब हमें बुला ले?
क्यों भेजा है हमें जगत में?
कारण कुछ तो कभी बता दे।
मिले न क्यों वह कभी प्रगट में?
करे किसी से नहीं अदावत।
नहीं किसी से करे सखावत।।
•••
सॉनेट
अधिनायक
•
पत्थर दिल होता अधिनायक।
आत्ममुग्ध, चमचा-शरणागत।
देख न पाता विपदा आगत।।
निज मुख निज महिमा अभिभाषक।।
जन की बात न सुनता, बहरा।
मन की बात कहे मनमानी।
भूला मिट जाता अभिमानी।।
जनमत विस्मृत किया ककहरा।।
तंत्र न जन का, दल का प्यारा।
समझ रहा है मैदां मारा।
देख न पाता, लोक न हारा।।
हो उदार, जनमत पहचाने।
सब हों साथ, नहीं क्यों ठाने।
दल न, देश के पढ़े तराने।।
१९-२-२०२२
•••
शिव भजन
भज मन महाकाल प्रभु निशदिन।।
*
मनोकामना पूर्ण करें हर, हर भव बाधा सारी।
सच्चे मन से भज महेश को, विपद हरें त्रिपुरारी।।
कल पर टाल न मूरख, कर ले
श्वाश श्वास प्रभु सुमिरन।
भज मन महाकाल प्रभु निशदिन।।
*
महाप्राण हैं महाकाल खुद पिएँ हलाहल हँसकर।
शंका हरते भोले शंकर, बंधन काटें फँसकर।।
कोशिश डमरू बजा करो रे शिव शंभू सँग नर्तन।
भज मन महाकाल प्रभु निशदिन।
*
मोह सर्प से कंठ सजा, पर मन वैराग बसाएँ।
'सलिल'-धार जग प्यास बुझाने, जग की सतत बहाएँ।।
हर हर महादेव जयकारा लगा नित्य ही अनगिन।
भज मन महाकाल प्रभु निशदिन।।
१९-२-२०२१
***
दोहा सलिला
रूप नाम लीला सुनें, पढ़ें गुनें कह नित्य।
मन को शिव में लगाकर, करिए मनन अनित्य।।
*
महादेव शिव शंभु के, नामों का कर जाप।
आप कीर्तन कीजिए, सहज मिटेंगे पाप।।
*
सुनें ईश महिमा सु-जन, हर दिन पाएं पुण्य।
श्रवण सुपावन करे मन, काम न आते पण्य।।
*
पालन संयम-नियम का, तप ईश्वर का ध्यान।
करते हैं एकांत में, निरभिमान मतिमान।।
*
निष्फल निष्कल लिंग हर, जगत पूज्य संप्राण।
निराकार साकार हो, करें कष्ट से त्राण।।
१९-२-२०१८
***
दोहा सलिला
*
मधुशाला है यह जगत, मधुबाला है श्वास
वैलेंटाइन साधना, जीवन है मधुमास
*
धूप सुयश मिथलेश का, धूप सिया का रूप
याचक रघुवर दान पा, हर्षित हो हैं भूप
१९-२-२०१७
***
ककुभ / कुकुभ
संजीव
*
(छंद विधान: १६ - १४, पदांत में २ गुरु)
*
यति रख सोलह-चौदह पर कवि, दो गुरु आखिर में भाया
ककुभ छंद मात्रात्मक द्विपदिक, नाम छंद ने शुभ पाया
*
देश-भक्ति की दिव्य विरासत, भूले मौज करें नेता
बीच धार मल्लाह छेदकर, नौका खुदी डुबा देता
*
आशिको-माशूक के किस्से, सुन-सुनाते उमर बीती.
श्वास मटकी गह नहीं पायी, गिरी चटकी सिसक रीती.
*
जीवन पथ पर चलते जाना, तब ही मंज़िल मिल पाये
फूलों जैसे खिलते जाना, तब ही तितली मँडराये
हो संजीव सलिल निर्मल बह, जग की तृष्णा हर पाये
शत-शत दीप जलें जब मिलकर, तब दीवाली मन पाये
*
(ककुभ = वीणा का मुड़ा हुआ भाग, अर्जुन का वृक्ष)
***
सामयिक दोहे
*
जो रणछोड़ हुए उन्हें, दिया न हमने त्याग
किया श्रेष्ठता से सदा, युग-युग तक अनुराग।
*
मैडम को अवसर मिला, नहीं गयीं क्या भाग?
त्यागा था पद अटल ने, किया नहीं अनुराग।
*
शास्त्री जी ने भी किया, पद से तनिक न मोह
लक्ष्य हेतु पद छोड़ना, नहिं अपराध न द्रोह।
*
केर-बेर ने मिलाये, स्वार्थ हेतु जब हाथ
छोड़ा जिसने पद विहँस, क्यों न उठाये माथ?
*
करते हैं बदलाव की, जब-जब भी हम बात
पूर्व मानकों से करें, मूल्यांकन क्यों तात?
*
विष को विष ही मारता, शूल निकाले शूल
समय न वह जब शूल ले, आप दीजिये फूल
*
सहन असहमति को नहीं, करते जब हम-आप
तज सहिष्णुता को 'सलिल', करें व्यर्थ संताप
१९-२-२०१४
***
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 19 फ़रवरी 2022
सॉनेट, भजन, शिव, शंकर, दोहे, छंद ककुभ,
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021
ककुभ / कुकुभ
ककुभ / कुकुभ
संजीव
*
(छंद विधान: १६ - १४, पदांत में २ गुरु)
*
यति रख सोलह-चौदह पर कवि, दो गुरु आखिर में भाया
ककुभ छंद मात्रात्मक द्विपदिक, नाम छंद ने शुभ पाया
*
देश-भक्ति की दिव्य विरासत, भूले मौज करें नेता
बीच धार मल्लाह छेदकर, नौका खुदी डुबा देता
*
आशिको-माशूक के किस्से, सुन-सुनाते उमर बीती.
श्वास मटकी गह नहीं पायी, गिरी चटकी सिसक रीती.
*
जीवन पथ पर चलते जाना, तब ही मंज़िल मिल पाये
फूलों जैसे खिलते जाना, तब ही तितली मँडराये
हो संजीव सलिल निर्मल बह, जग की तृष्णा हर पाये
शत-शत दीप जलें जब मिलकर, तब दीवाली मन पाये
*
(ककुभ = वीणा का मुड़ा हुआ भाग, अर्जुन का वृक्ष)
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, ककुभ, कीर्ति, घनाक्षरी, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, मधुभार, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
१९-२-२०१४
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'
बुधवार, 20 फ़रवरी 2019
छंद ककुभ
ककुभ / कुकुभ
संजीव
*
(छंद विधान: १६ - १४, पदांत में २ गुरु)
*
यति रख सोलह-चौदह पर कवि, दो गुरु आखिर में भाया
ककुभ छंद मात्रात्मक द्विपदिक, नाम छंद ने शुभ पाया
*
देश-भक्ति की दिव्य विरासत, भूले मौज करें नेता
बीच धार मल्लाह छेदकर, नौका खुदी डुबा देता
*
आशिको-माशूक के किस्से, सुन-सुनाते उमर बीती.
श्वास मटकी गह नहीं पायी, गिरी चटकी सिसक रीती.
*
जीवन पथ पर चलते जाना, तब ही मंज़िल मिल पाये
फूलों जैसे खिलते जाना, तब ही तितली मँडराये
हो संजीव सलिल निर्मल बह, जग की तृष्णा हर पाये
शत-शत दीप जलें जब मिलकर, तब दीवाली मन पाये
*
संजीव
*
(छंद विधान: १६ - १४, पदांत में २ गुरु)
*
यति रख सोलह-चौदह पर कवि, दो गुरु आखिर में भाया
ककुभ छंद मात्रात्मक द्विपदिक, नाम छंद ने शुभ पाया
*
देश-भक्ति की दिव्य विरासत, भूले मौज करें नेता
बीच धार मल्लाह छेदकर, नौका खुदी डुबा देता
*
आशिको-माशूक के किस्से, सुन-सुनाते उमर बीती.
श्वास मटकी गह नहीं पायी, गिरी चटकी सिसक रीती.
*
जीवन पथ पर चलते जाना, तब ही मंज़िल मिल पाये
फूलों जैसे खिलते जाना, तब ही तितली मँडराये
हो संजीव सलिल निर्मल बह, जग की तृष्णा हर पाये
शत-शत दीप जलें जब मिलकर, तब दीवाली मन पाये
*
१९-२-२०१४
(ककुभ = वीणा का मुड़ा हुआ भाग, अर्जुन का वृक्ष)
(ककुभ = वीणा का मुड़ा हुआ भाग, अर्जुन का वृक्ष)
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, ककुभ, कीर्ति, घनाक्षरी, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, मधुभार, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
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