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शनिवार, 3 अगस्त 2019

व्यंग्य लेखांश : ‘भगत की गत’ हरिशंकर परसाई

व्यंग्य लेखांश :
‘भगत की गत’ 
हरिशंकर परसाई जी 
*
...एक भगत ने मरने के बाद भगवान के पास जाकर स्वर्ग की डिमांड की, फिर क्या हुआ ......
प्रभु ने कहा- तुमने ऐसा क्या किया है, जो तुम्हें स्वर्ग मिले?
भगतजी को इस प्रश्न से चोट लगी। जिसके लिए इतना किया, वही पूछता है कि तुमने ऐसा क्या किया! भगवान पर क्रोध करने से क्या फायदा- यह सोचकर भगतजी गुस्सा पी गये। दीनभव से बोले- मैं रोज आपका भजन करता रहा।
भगवान ने पूछा- लेकिन लाउड-स्पीकर क्यों लगाते थे?
भगतजी सहज भव से बोले- उधर सभी लाउड-स्पीकर लगाते हैं। सिनेमावाले, मिठाईवाले, काजल बेचने वाले- सभी उसका उपयोग करते हैं, तो मैंने भी कर लिया।
भगवान ने कहा- वे तो अपनी चीज का विज्ञापन करते हैं। तुम क्या मेरा विज्ञापन करते थे? मैं क्या कोई बिकाऊ माल हूं।
भगतजी सन्न रह गये। सोचा, भगवान होकर कैसी बातें करते हैं।
भगवान ने पूछा- मुझे तुम अन्तर्यामी मानते हो न?
भगतजी बोले- जी हां!
भगवान ने कहा- फिर अन्तर्यामी को सुनाने के लिए लाउड-स्पीकर क्यों लगाते थे? क्या मैं बहरा हूं? यहां सब देवता मेरी हंसी उड़ाते हैं। मेरी पत्नी मजाक करती है कि यह भगत तुम्हें बहरा समझता है।
भगतजी जवाब नहीं दे सके।
भगवान को और गुस्सा आया। वे कहने लगे- तुमने कई साल तक सारे मुहल्ले के लोगों को तंग किया। तुम्हारे कोलाहल के मारे वे न काम कर सकते थे, न चैन से बैठ सकते थे और न सो सकते थे। उनमें से आधे तो मुझसे घृणा करने लगे हैं। सोचते हैं, अगर भगवान न होता तो यह भगत इतना हल्ला न मचाता। तुमने मुझे कितना बदनाम किया है!
भगत ने साहस बटोरकर कहा- भगवान आपका नाम लोंगों के कानों में जाता था, यह तो उनके लिए अच्छा ही था। उन्हें अनायास पुण्य मिल जाता था।
भगवान को भगत की मूर्खता पर तरस आया। बोले- पता नहीं यह परंपरा कैसे चली कि भक्त का मूर्ख होना जरूरी है। और किसने तुमसे कहा कि मैं चापलूसी पसंद करता हूं? तुम क्या यह समझते हो कि तुम मेरी स्तुति करोगे तो मैं किसी बेवकूफ अफसर की तरह खुश हो जाऊंगा? मैं इतना बेवकूफ नहीं हूं भगतजी कि तुम जैसे मूर्ख मुझे चला लें। मैं चापलूसी से खुश नहीं होता कर्म देखता हूं।
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टीप: वे भगवान् अवश्य कर्मदेव चित्रगुप्त रहे होंगे.

बुधवार, 23 जुलाई 2014

parasaeenama


परसाईनामा :

हरिशंकर परसाई अपनी मिसाल आप, न भूतो न भविष्यति  …

ताली पीटना 

महावीर और बुद्ध ऐसे संत हुए, जिन्होने कहा - ''सोचो। शंका करो। प्रश्न करो। तब सत्य को पहचानो। जरूरी नहीं कि वही शाश्वत सत्य है, जो कभी किसीने लिख दिया था।''

ये संत वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न थे और जब तक इन संतोंके विचारों का प्रभाव रहा तब तक विज्ञान की उन्नति भारतमें हुई। भौतिक और रासायनिक विज्ञान की शोध हुई। चिकित्सा विज्ञान की शोध हुई। नागार्जुन हुए, बाणभट्ट हुए। 

इसके बाद लगभग डेढ़ शताब्दी में भारतके बड़े से बड़े दिमागने यही काम किया कि सोचते रहे - ईश्वर एक हैं या दो हैं, या अनेक हैं। हैं तो सूक्ष्म हैं या स्थूल। आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है। इसके साथ ही केवल काव्य रचना। विज्ञान नदारद। 

गल्ला कम तौलेंगे, मगर द्वैतवाद, अद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद, मुक्ति और पुनर्जन्म के बारे में बड़े परेशान रहेंगे। कपड़ा कम नापेंगे, दाम ज्यादा लेंगे, पर पंच आभूषण के बारे में बड़े जाग्रत रहेंगे।

झूठे आध्यात्म ने इस देश को दुनिया में तारीफ दिलवाई, पर मनुष्य को मारा और हर डाला..


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