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सोमवार, 24 सितंबर 2012

दोहा सलिला: गले मिलें दोहा यमक -संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
गले मिलें दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
जड़ तक हम लौटें मगर, जड़ न कभी हों राम.
चेतनता को दूर कर, भाग्य न करना वाम..
*
तना रहे जो तना सा, तूफां जाता झेल.
डाल- डाल फल-फूल हँस, लखे भाग्य का खेल..
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फूल न ज्यादा जोड़कर, कहे फूल दे गंध.
झर जाना है एक दिन, तब तक लुटा सुगंध..
*
हुई अपर्णा शाख जब, देख अपर्णा मौन.
बौराई- बौरा मिलें, इसका बौरा कौन??
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सृजन-साधना का सु-फल, फल पा हर्षा वृक्ष.
सका साध ना बाँटकर, हुआ संत समकक्ष..
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व्यथित कली तजकर कली, करती मिली विलाप.
'त्याग बेकली', भ्रमर ने कहा, ' न मिलना पाप..'
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खिल-खिल हँसती प्रेयसी, देख पिया को पास.
खिल-खिल पड़ती कली लख, भ्रमर बुझाता प्यास..
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अधर न रहकर अधर पर, टिकी बाँसुरी भीत.
साँस-उसाँस मिलीं गले, सुर से गूँजा गीत.. 
*
सर गम को कर कोशिशें, सुर-सरगम को साध.
हुईं सफल उत्साह वर, खुशियाँ बाँट अगाध..
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
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