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सोमवार, 26 अक्टूबर 2015

utpreksha ke prakar

अलंकार सलिला: २४
उत्प्रेक्षा के प्रकार
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उत्प्रेक्षा के ३ भेद (प्रकार) होते हैं- १. वस्तूत्प्रेक्षा, २. हेतूत्प्रेक्षा तथा ३. फलोत्प्रेक्षा।








१. वस्तूत्प्रेक्षा: जब एक वस्तु या व्यक्ति में दूसरी वस्तु की सम्भावना (उपस्थिति की अभिव्यक्ति) की जाती है तब वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

उदाहरण:

१. हरखि ह्रदय दशरथ-पुर आई। जनु गृह-दशा दुःसह दुखदाई।।

यहाँ अयोध्या की दुस्सह गृह-दशा में सरस्वती की सम्भावना की गयी है।

२. लखन मंजु मुनिमंडली, मध्य सीय-रघुचंद।
ज्ञान-सभा जनु तनु धरे, भगति सच्चिदानंद।।

यहाँ मुनि-मंडली में ज्ञान सभा की, सीता में भक्ति की और राम में सच्चिदानंद की संभावना की गयी है।

३. प्रात-समय उठि सोवत हरि को, बदन उघार् यो नंद।
स्वच्छ सेज में ते मुख निकस्यो, गयो तिमिर मिटि मंद।।
मानो मथि पय सिंधु फेन फटि, दरिस दिखायो चंद।

यहाँ स्वच्छ शैया में क्षीर-सागर की,चद्दर में फेन की और कृष्ण-मुख में शांद्रमा की संभावना की गयी है। देवों द्वारा सागर-मंथन करने पर जैसे चन्द्रमा निकला वैसे ही नन्द द्वारा सफ़ेद चद्दर हटाने से श्री कृष्ण का मुख दिखाई दिया।

४. नारी में दुर्गा दिखी, किया तुरंत प्रणाम।
नाम रखो तुम कह रहीं, देखे 'सलिल' अनाम।।

५. केश-लट में
सरसराती हुई
नागिन दिखी।

२. हेतूत्प्रेक्षा: जब अहेतु में हेतु की सम्भावना की जाती है अर्थात जब उसे कारण मान लिया जाता है जो वस्तुत: कारण नहीं होता तब हेतूत्प्रेक्षा अलंकारहोता है।

उदाहरण:

१. अरुण भये कोमल चरण भुवि चलिबें ते मानु।

कोमल चरण मानो पृथ्वी पर चलने से लाल (सूरज की तरह) हो गए। चरण प्राकृतिक रूप से लाल होने पर भी धरती पर चलने से लाल होने कीकी संभावना की गयी है अर्थात जो कारण नहीं है उसे कारण कहा गया है।

२. मुख सम नहिं याते मनों चंदहि छाया छाय।

मानो चंद्रमा मुख के समान नहीं है, इसलिए उसे कालिमा छाये रहती है। चंद्रमा पर कालिमा छाये राख्ने का कारण उसका मुख-समान न होना नहीं है किन्तु कहा गया है।

३. मुख सम नहिं यातें कमल मनु जल रह्यो छिपाइ।

जल में कमल के छिपने का कारण उसका मुख के समान न होना नहीं होने पर भी मान लिया गया है। इसलिए हेतूत्प्रेक्षा है।

४. सोवत सीतानाथ के, भृगु मुनि दीनी लात।
भृगुकुल-पति की गति हरी, मनो सुमिरि वह बात।।

५. अकस्मात् साहित्य के, लौटाते ईनाम।
सामाजिक टकराव का, कहते हैं परिणाम।।

३. फलोत्प्रेक्षा: जो उद्देश्य परिणाम या फल न हो किन्तु मान लिया किन्तु मान लिया जाए तो फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है। अफल में फल की सम्भावना फलोत्प्रेक्षा अलंकार है।

१. तव पद समता को कमल, जल-सेवत एक पाँव
तुम्हारे चरणों की समता पाने के लिए कमल एक पैर (कमल नाल) पर खड़ा होकर जल की सेवा कर रहा है।कमल नाल पर खिले कमल का उद्देश्य तप कर चरणों की समानता पाना न होने पर भी मान लिया गया है, इसलिए फलोत्प्रेक्षा है।

२. रोज अन्हात है छीरधि में ससि, तव मुख की समता लहिवे को।

३. शिव से समता के लिये, दुर्गा रखे त्रिनेत्र ।

४. लड़ें चुनाव
जनसेवा के हेतु
नेता औ' दल।

५. नक्सलवाद
गरीब जनता का
रण निनाद
शासन के विरुद्ध,
विषमता मिटाने।
*
फलोत्प्रेक्षा और हेतूत्प्रेक्षा में अंतर:

काव्य में वर्णित कार्य या क्रिया किस उद्देश्य से करी जा रही है? इस प्रश्न का उत्तर मिले तो फलोत्प्रेक्षा अलंकार होगा अन्यथा हेतूत्प्रेक्षा।

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बुधवार, 21 अक्टूबर 2015

urpteksha alankar ke prakar

अलंकार सलिला २३ : उत्प्रेक्षा अलंकार *
* जब होते दो वस्तु में, एक सदृश गुण-धर्म एक लगे दूजी सदृश, उत्प्रेक्षा का मर्म इसमें उसकी कल्पना, उत्प्रेक्षा का मूल. जनु मनु बहुधा जानिए, है पहचान, न भूल.. जो है उसमें- जो नहीं, वह संभावित देख. जानो-मानो से करे, उत्प्रेक्षा उल्लेख.. जब दो वस्तुओं में किसी समान धर्म(गुण) होने के कारण एक में दूसरे के होने की सम्भावना की जाए तब वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है. सम्भावना व्यक्त करने के लिये किसी वाचक शब्द यथा मानो, मनो, मनु, मनहुँ, जानो, जनु, जैसा, सा, सम आदि का उपयोग किया जाता है. उत्प्रेक्षा का अर्थ कल्पना या सम्भावना है. जब दो वस्तुओं में भिन्नता रहते हुए भी उपमेय में उपमान की कल्पना की जाये या उपमेय के उपमान के सदृश्य होने की सम्भावना व्यक्त की जाये तो उत्प्रेक्षा अलंकार होता है. कल्पना या सम्भावना की अभिव्यक्ति हेतु जनु, जानो, मनु, मनहु, मानहु, मानो, जिमी, जैसे, इव, आदि कल्पनासूचक शब्दों का प्रयोग होता है.. उदाहरण: १. चारू कपोल, लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए. लट लटकनि मनु मत्त मधुप-गन मादक मधुहिं पिए.. यहाँ श्रीकृष्ण के मुख पर झूलती हुई लटों (प्रस्तुत) में मत्त मधुप (अप्रस्तुत) की कल्पना (संभावना) किये जाने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है. २. फूले कांस सकल महि छाई. जनु वर्षा कृत प्रकट बुढाई.. यहाँ फूले हुए कांस (उपमेय) में वर्षा के श्वेत्केश (उपमान) की सम्भावना की गयी है. ३. फूले हैं कुमुद, फूली मालती सघन वन. फूली रहे तारे मानो मोती अनगन हैं.. ४. मानहु जगत क्षीर-सागर मगन है.. ५. झुके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाए. ६. मनु आतप बारन तीर कों, सिमिटि सबै छाये रहत. ७. मनु दृग धारि अनेक जमुन निरखत ब्रज शोभा. ८. तमकि धरहिं धनु मूढ़ नृप, उठे न चलहिं लजाइ. मनहुँ पाइ भट बाहुबल, अधिक-अधिक गुरुवाइ.. ९. लखियत राधा बदन मनु विमल सरद राकेस. १०. कहती हुए उत्तरा के नेत्र जल से भर गए. हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए.. ११. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने लगा. मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा.. १२. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये. झुके कूल सों जल परसन हित मनहु सुहाए.. १३. नित्य नहाता है चन्द्र क्षीर-सागर में. सुन्दरि! मानो तुम्हारे मुख की समता के लिए. १४. भूमि जीव संकुल रहे, गए सरद ऋतु पाइ. सद्गुरु मिले जाहि जिमि, संसय-भ्रम समुदाइ.. १५. रिश्ता दुनियाँ में जैसे व्यापार हो गया। बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।। -श्यामल सुमन १६. नाना रंगी जलद नभ में दीखते हैं अनूठे योधा मानो विविध रंग के वस्त्र धारे हुए हैं १७. अति कटु बचन कहति कैकेई, मानहु लोन जरे पर देई १८. दूरदर्शनी बहस ज्यों बच्चे करते शोर 'सलिल' न दें परिणाम ज्यों, बंजर भूमि कठोर

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