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शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

निकाह, मुसलमान, इस्लाम

इस्लाम में निकाह
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इस्लाम धर्म के धार्मिक और सांस्कृतिक नियमों के संदर्भ में समझा जा सकता है। इस्लाम में निकाह (शादी) के लिए कुछ स्पष्ट सीमाएं और नियम निर्धारित किए गए हैं। कुरान और हदीस के अनुसार, निकट संबंधियों (महिरम) के साथ शादी हराम (निषिद्ध) है। इसमें मां, बहन, बेटी, चाची, मामी, मौसी आदि शामिल हैं।

कारण:
1. कुरान का आदेश:
इस्लामिक धर्मग्रंथ कुरान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि निकट रिश्तेदारों से शादी करना हराम है।
उदाहरण: सूरह अन-निसा (4:23) में अल्लाह ने बताया है कि किन-किन रिश्तों के साथ शादी निषिद्ध है।

2. जैविक और सामाजिक कारण:
निकट संबंधियों के साथ विवाह से जैविक रूप से बच्चों में आनुवंशिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, यह परिवार की सामाजिक संरचना और नैतिक मूल्यों को कमजोर कर सकता है।

3. सामाजिक और नैतिकता:
इस्लाम एक समाज को नैतिक और व्यवस्थित रूप से चलाने पर जोर देता है। निकट रिश्तेदारों से शादी करने पर पारिवारिक रिश्ते बिगड़ सकते हैं और समाज में असंतोष उत्पन्न हो सकता है।
इस्लाम के अलावा भी, लगभग सभी धर्मों और सभ्यताओं में इस प्रकार के विवाह को अनुचित और अनैतिक माना गया है। इसका उद्देश्य परिवार और समाज की एकता और पवित्रता बनाए रखना है।

निष्कर्ष:
इस्लाम के अनुसार, मां, बहन और बेटी जैसे महिरम रिश्तों से शादी हराम और अनुचित है। इसे धार्मिक, नैतिक और जैविक कारणों से मना किया गया है।
००० 

शनिवार, 5 सितंबर 2015

navgeet

नवगीत:
संजीव 
*
वाजिब है 
वे करें शिकायत 
भेदभाव की आपसे
*
दर्जा सबसे अलग दे दिया
चार-चार शादी कर लें.
पा तालीम मजहबी खुद ही
अपनी बर्बादी वर लें.
अलस् सवेरे माइक गूँजे
रब की नींद हराम करें-
अपनी दुख्तर जिन्हें न देते
उनकी दुख्तर खुद ले लें.
फ़र्ज़ भूल दफ़्तर से भागें
कहें इबादत ही मजहब।
कट्टरता-आतंकवाद से
खुश हो सकता कैसे रब?
बिसरा दी
सूफी परंपरा
बदतर फतवे खाप से.
वाजिब है
वे करें शिकायत
भेदभाव की आपसे
*
भारत माँ की जय से दूरी
दें न सलामी झंडे को.
दहशतगर्दों से डरते हैं
तोड़ न पाते डंडे को.
औरत को कहते जो जूती
दें तलाक जब जी चाहे-
मिटा रहे इतिहास समूचा
बजा सलामी गुंडे को.
रिश्ता नहीं अदब से बाकी
वे आदाब करें कैसे?
अपनों का ही सर कटवाते
देकर मुट्ठी भर पैसे।
शासन गोवध
नहीं रोकता
नहीं बचाता पाप से
वाजिब है
वे करें शिकायत
भेदभाव की आपसे
*
दो कानून बनाये हैं क्यों?
अलग उन्हें क्यों जानते?
उनकी बिटियों को बहुएँ
हम कहें नहीं क्यों मानते?
दिये जला, वे होली खेलें
हम न मनाते ईद कभी-
मिटें सभी अंतर से अंतर
ज़िद नहीं क्यों ठानते?
वे बसते पूरे भारत में
हम चलकर कश्मीर बसें।
गिले भुलाकर गले मिलें
हँसकर बाँहों में बाँध-गसें।
एक नहीं हम
नज़र मिलायें
कैसे अपने आपसे?
वाजिब है
वे करें शिकायत
भेदभाव की आपसे
*
(उपराष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी द्वारा मुस्लिमों से भेदभाव की शिकायत पर)