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गुरुवार, 30 अक्टूबर 2014

navgeet:

नवगीत:

राष्ट्रलक्ष्मी!
श्रम सीकर है
तुम्हें समर्पित

खेत, फसल, खलिहान
प्रणत है
अभियन्ता, तकनीक
विनत है

बाँध-कारखाने
नव तीरथ
हुए समर्पित 

कण-कण, तृण-तृण
बिंदु-सिंधु भी
भू नभ सलिला
दिशा, इंदु भी

सुख-समृद्धि हित
कर-पग, मन-तन
समय समर्पित

पंछी कलरव
सुबह दुपहरी
संध्या रजनी
कोशिश ठहरी

आसें-श्वासें
झूमें-खांसें
अभय समर्पित

शैशव-बचपन
यौवन सपने
महल-झोपड़ी
मानक नापने
 
सूरज-चंदा
पटका-बेंदा
मिलन समर्पित

रविवार, 19 जून 2011

घनाक्षरी छंद : राजनीति का अखाड़ा..... --संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी छंद :
राजनीति का अखाड़ा.....
संजीव 'सलिल'
*
अपनी भी कहें कुछ, औरों की भी सुनें कुछ, बात-बात में न बात, अपनी चलाइए.
कोई दूर जाए  गर, कोई रूठ जाए गर, नेह-प्रेम बात कर, उसको मनाइए.
बेटी हो, जमाई हो  या, बेटा-बहू, नाती-पोते, भूल से भी भूलकर, शीश न चढ़ाइए.
दूसरों से जैसा चाहें, वैसा व्यवहार करें, राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइए..
*
एक देश अपना है, माटी अपनी है एक, भिन्नता का भाव कोई, मन में न लाइए.
भारत की, भारती की, आरती उतारकर, हथेली पे जान धरें, शीश भी चढ़ाइए..
भाषा-भूषा, जात-पांत,वाद-पंथ कोई भी हो, हाथ मिला, गले मिलें, दूरियाँ मिटाइए.
पक्ष या विपक्ष में हों, राष्ट्र-हित सर्वोपरि, राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइए..
**
सुख-दुःख, धूप-छाँव, आते-जाते जिंदगी में, डरिए न धैर्य धर, बढ़ते ही जाइये.
संकटों में, कंटकों में, एक-एक पग रख, कठिनाई सीढ़ी पर, चढ़ते ही जाइये..
रसलीन, रसनिधि, रसखान बनें आप, श्वास-श्वास महाकाव्य, पढ़ते ही जाइये.
शारदा की सेवा करें, लक्ष्मी मैया! मेवा वरें, शक्ति-साधना का पंथ, गढ़ते ही जाइये..
***