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गुरुवार, 2 जुलाई 2015

munh par doha: sanjiv

दोहा के रंग मुँह के संग
संजीव
*













मुँह देखी जो बोलता, उसे न मानें मीत
मुँह पर सच कहना 'सलिल', उत्तम जीवन-रीत
*
जो जैसा है कीजिए, वैसा ही स्वीकार
मुँह न बनायें देखकर, दूरी बने दरार
*
मुँह दर्पण पर दिख रहा, मन में छिपा विचार
दर्पण में मुँह देखकर, कर सच को स्वीकार
*
मत जाएँ मुँह मोड़कर, रिश्ते रखिए जोड़
एक  साथ मिल जीतिए, हर विपदा कर होड़
*
लाल हुआ मुँह क्रोध से, बिगड़े सारे काज
सौ-सौ खिले गुलाब जब, आयी तुमको लाज
*
मुँह मयंक पर हो गया, मन चकोर कुर्बान
नेह चाँदनी देखकर, सपने हुए जवान
*
प्रीत अगर हो दोमुँही, तत्क्षण करिये दूर
सूर रहे जो प्रीत में, बने महाकवि सूर
*
मुँह मोड़े जो विपद में, उससे मुँह ले फेर
गलती तुरत सुधारिये, पल भर करें न देर
*
मुँह में पानी आये तो, करें नियंत्रण आप
मुँह हाँडी में डालकर, नहीं कीजिए पाप
*
मुँह बाये नेता हुए, घपलों के पर्याय
पत्रकार नित खोलते, सौदों के अध्याय
*
मुँह में पानी तक नहीं, गया, सुनो भगवान
ताक रहे मुँह भक्तगण, सुन भी लो श्रीमान!
*
मुँह जूठा कर उठ गये, क्यों? क्या कहिए बात
फुला रहे बेबात मुँह, पहुँचाकर आघात
*
गये मौत के मुँह समा, हँस सीमा पर धीर
छिपा रहे मुँह भीत हो, नेता भाषणवीर
*
मुँह न खोलना यदि नहीं, सत्य बात हो ज्ञात
मुँह खुलवाना हो नहीं, सत्य कहीं अज्ञात
*
रगड़ रहे मुँह-मुँह मिला, अधिक- करें कम नृत्य
ताली लोग बजा रहे, देख अलज्जित कृत्य
*
फाड़ रहे मुँह देखकर, उत्सुक कन्या पक्ष
उतर गया मुँह जब सुना, आप नहीं समकक्ष
 
***  




शुक्रवार, 29 मई 2015

doha salila: sanjiv

दोहा सलिला:
दोहे का रंग मुँह के संग
संजीव
*
दोहे के मुँह मत लगें, पल में देगा मात
मुँह-दर्पण से जान ले, किसकी क्या है जात?
*
मुँह की खाते हैं सदा, अहंकार मद लोभ
मुँहफट को सहना पड़े, असफलता दुःख क्षोभ
*
मुँहजोरी से उपजता, दोनों ओर तनाव
श्रोता-वक्ता में नहीं, शेष रहे सद्भाव
*
मुँह-देखी कहिए नहीं, सुनना भी है दोष
जहाँ-तहाँ मुँह मारता, जो- खोता संतोष
*
मुँह पर करिए बात तो, मिट सकते मतभेद
बात पीठ पीछे करें, बढ़ बनते मनभेद
*
मुँह दिखलाना ही नहीं, होता है पर्याप्त
हाथ बटायें साथ मिल, तब मंजिल हो प्राप्त
*
मुँह-माँगा वरदान पा, तापस करता भोग
लोभ मोह माया अहं, क्रोध ग्रसे बन रोग
*
आपद-विपदा में गये, यार-दोस्त मुँह मोड़
उनको कर मजबूत मन, तत्क्षण दें हँस छोड़
*
मददगार का हम करें, किस मुँह से आभार?
मदद अन्य जन की करें, सुख पाये संसार
*
जो मुँहदेखी कह रहे, उन्हें न मानें मीत
दुर्दिन में तज जायेंगे, यह दुनिया की रीत
*
बेहतर है मुँह में रखो, अपने 'सलिल' लगाम
बड़बोलापन हानिप्रद, रहें विधाता वाम
*
छिपा रहे मुँह आप क्यों?, करें न काज अकाज
सच को यदि स्वीकार लें, रहे शांति का राज
*
बैठ गये मुँह फुलाकर, कान्हा करें न बात
राधा जी मुस्का रहीं, मार-मार कर पात
*
मुँह में पानी आ रहा, माखन-मिसरी देख
मैया कब जाएँ कहीं, करे कन्हैया लेख
*
मुँह  की खाकर लौटते, दुश्मन सरहद छोड़
भारतीय सैनिक करें, जांबाजी की होड़
*
दस मुँह भी काले हुए, मति न रही यदि शुद्ध
काले मुँह उजले हुए, मानस अगर प्रबुद्ध
*
गये उठा मुँह जब कहीं, तभी हुआ उपहास
आमंत्रित हो जाइए, स्वागत हो सायास
*
सीता का मुँह लाल लख, आये रघुकुलनाथ
'धनुष-भंग कर एक हों', मना रहीं नत माथ
*
मुँह महीप से महल पर, अँखियाँ पहरेदार
बली-कली पर कटु-मृदुल, करते वार-प्रहार
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