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मंगलवार, 28 अगस्त 2012

कविता: आभास बीनू भटनागर

कविता: 


      आभास

     

      बीनू भटनागर
     
      सूखे सूखे होंट,
      बाट निहारती पलकें
      कुछ आभास,
      कोई आहट,
      गूँजा है कंही,
      कोई प्रेम गीत।
     
      मै खो गई,
      सपनों के झुरमट मे,
      वीणा की झंकार,
      दूर बजी बंसी,
      गरजे बादल,
      बिजुरी चमकी,
      तन दहका,
      मन महका,
      पायल खनकी,
      काजल  बिखरा,
      अहसास तुम्हारे आने का,
      पाने से ज़्यादा सुन्दर है।
     
      चितचोर छुपा है,
      दूर कंही,
      सपनों मे जिसको देखा था,
      अहसास नया,
      आभास नया,
      पर ना पाना चाहूँ उसको,
      बस,
      दूर खड़ी महसूस करूँ
      अपने मन के,
      मधुसूदन को।
     
binu.bhatnagar@gmail.com
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शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

गीत: प्रेम कविता... संजीव 'सलिल'

गीत:
प्रेम कविता...
संजीव 'सलिल'
*
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*
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
प्रेम कविता को लिखा जाता नहीं है.
प्रेम होता है किया जाता नहीं है..
जन्मते ही सुत जननि से प्रेम करता-
कहो क्या यह प्रेम का नाता नहीं है?.
कृष्ण ने जो यशोदा के साथ पाला
प्रेम की पोथी का उद्गाता वही है.
सिर्फ दैहिक मिलन को जो प्रेम कहते
प्रेममय गोपाल भी
क्या दिख सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
प्रेम से हो क्षेम?, आवश्यक नहीं है.
प्रेम में हो त्याग, अंतिम सच यही है..
भगत ने, आजाद ने जो प्रेम पाला.
ज़िंदगी कुर्बान की, देकर उजाला.
कहो मीरां की करोगे याद क्या तुम
प्रेम में हो मस्त पीती गरल-प्याला.
और वह राधा सुमिरती श्याम को जो
प्रेम क्या उसका कभी
कुछ चुक सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
अपर्णा के प्रेम को तुम जान पाये?
सिया के प्रिय-क्षेम को अनुमान पाये?
नर्मदा ने प्रेम-वश मेकल तजा था-
प्रेम कैकेयी का कुछ पहचान पाये?.
पद्मिनी ने प्रेम-हित जौहर वरा था.
शत्रुओं ने भी वहाँ थे सिर झुकाए.
प्रेम टूटी कलम का मोहताज क्यों हो?
प्रेम कब रोके किसी के
रुक सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
http://divyanarmada.blogspot.com