मुक्तक:
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जागे बहुत चलो अब सोएँ 
किसका कितना रोना रोएँ?
पाए जोड़े की क्या चिंता?
खुद को पाएँ, पाया खोएँ 
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अभी न जाता,अभी न रोएँ 
नाहक नैना नहीं भिगोएँ 
अधरों पर मुस्कान सजाकर 
स्वप्न देखी जब भी सोएँ 
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जिसने सपने में देखा, उसने ही पाया 
जिसने पाया, स्वप्न मानकर तुरत भुलाया 
भुला रहा जो, याद उसी को फिर-फिर आया 
आया बाँहों-चाहों में जो वह मन भाया   
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पल-पल नया जन्म होता है, क्षण-क्षण करे मृत्यु आलिंगन 
सीधी रेखा में पग रखकर, बढ़े सदा यह सलिल अकिंचन 
दें आशीष 'फेस' जब भी यम, 'बुक' में दर्ज करें हो उज्जवल 
'सलिल' सींच कुछ पौधे कर दे, तनिक सुवासित कविता उपवन
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salil.sanjiv@gmail.com 
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#हिंदी_ब्लॉगर
 
