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गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

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नवगीत:
संजीव
*
साँप-सँपेरे
करें सियासत
.
हर चुनाव है नागपंचमी
बीन बज रही, बजे चंग भी
नागिन मोहे, कभी डराये
स्नेह लापता, छोड़ी जंग भी
कहीं हो रही
लूट-बगावत
.
नाचे बंदर, नचा मदारी
पण्डे-झंडे लाये भिखारी
कथनी-करनी में अंतर है
जनता, थोड़ा सबक सिखा री!
क्षणिक मित्रता
अधिक अदावत
.
खेलें दोनों ओर जुआरी
झूठे दावे, छद्म अदा री
जीतें तो बन जाए टपरिया
साथ मंज़िला भव्य अटारी
भृष्ट आचरण
कहें रवायत
.  

बुधवार, 29 अक्टूबर 2014

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नवगीत:

आओ रे!
मतदान करो

भारत भाग्य विधाता हो
तुम शासन-निर्माता हो
संसद-सांसद-त्राता हो

हमें चुनो
फिर जियो-मरो
कैसे भी
मतदान करो

तूफां-बाढ़-अकाल सहो
सीने पर गोलियाँ गहो 
भूकंपों में घिरो-ढहो

मेलों में
दे जान तरो
लेकिन तुम
मतदान करो

लालटेन, हाथी, पंजा
साड़ी, दाढ़ी या गंजा
कान, भेंगा या कंजा

नेता करनी
आप भरो
लुटो-पिटो
मतदान करो

पाँच साल क्यों देखो राह
जब चाहो हो जाओ तबाह
बर्बादी को मिले पनाह

दल-दलदल में
फँसो-घिरो
रुपये लो
मतदान करो

नाग, साँप, बिच्छू कर जोड़
गुंडे-ठग आये घर छोड़
केर-बेर में है गठजोड़

मत सुधार की
आस धरो
टैक्स भरो
मतदान करो 

***
(कश्मीर तथा अन्य राज्यों में चुनाव की खबर पर )