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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

geet:

गीत:

एक जुट प्रहार हो 
घना जो अन्धकार हो 
*
गूंजती पुकार हो 
बह रही बयार हो 
घेर ले तिमिर घना 
कदम-कदम पे खार हो 
हौसला चुके नहीं 
शीश भी झुके नहीं 
बाँध मुट्ठियाँ बढ़ो 
घना जो अन्धकार हो 
*
नित नया निखार हो 
भूल का सुधार हो
काल के भी भाल पर 
कोशिशी प्रहार हो 
दुश्मनों से जूझना 
प्रश्न पूछ-बूझना 
दाँव-पेंच-युक्तियाँ 
एक पर हजार हो
घना जो अन्धकार हो 
*
हार की भी हार हो 
प्यार को भी प्यार हो 
प्राणदीप लो जला 
सिंगार का सिंगार हो 
गरल कंठ धारकर
मौत को भी मारकर 
ज़िंदगी की बंदगी 
विहँस बार-बार हो 
घना जो अन्धकार हो 
*