गीत:
एक जुट प्रहार हो
घना जो अन्धकार हो
*
गूंजती पुकार हो
बह रही बयार हो
घेर ले तिमिर घना
कदम-कदम पे खार हो
हौसला चुके नहीं
शीश भी झुके नहीं
बाँध मुट्ठियाँ बढ़ो
घना जो अन्धकार हो
*
नित नया निखार हो
भूल का सुधार हो
काल के भी भाल पर
कोशिशी प्रहार हो
दुश्मनों से जूझना
प्रश्न पूछ-बूझना
दाँव-पेंच-युक्तियाँ
एक पर हजार हो
घना जो अन्धकार हो
*
हार की भी हार हो
प्यार को भी प्यार हो
प्राणदीप लो जला
सिंगार का सिंगार हो
गरल कंठ धारकर
मौत को भी मारकर
ज़िंदगी की बंदगी
विहँस बार-बार हो
घना जो अन्धकार हो
*