मुक्तक : अग्नि
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अग्नि न मन की बुझने देना, रखो जला,
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अग्नि न खोती चैन निरर्थक सपनों में।
अग्नि सलिल शीतल को पल में वाष्प करे-
अग्नि न होती क़ैद जगत के नपनों में।।
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अग्नि न दैत्य, न दैव, सलिल को मीत लगे,
अग्नि न माया जाल, सनातन गीत सगे।
अग्नि दीप्ति से दीपित होते सचर-अचर-
अग्नि आत्म-परमात्म पुरातन प्रीत पगे।।*