दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 5 सितंबर 2012
सामयिक आलेख: 'शिक्षक दिवस' -शेषधर तिवारी
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शनिवार, 14 जुलाई 2012
मुक्तिका: बात अंतःकरण की शेष धर तिवारी
मुक्तिका:
बात अंतःकरण की
शेष धर तिवारी
*
बात अंतःकरण की स्वीकार कर लूं
और थोड़ी देर तक मनुहार कर लूं
कौन जाने कल मुझे तुम भूल जाओ
आज तो जी भर तुम्हे मैं प्यार कर लूं
बुद्धि मेरी, जो समझ पायी न तुमको
आज उसके साथ दुर्व्यवहार कर लूं
मत परोसो अब मुझे सपने सलोने
मैं किसी से तो उचित व्यवहार कर लूं
आँसुओं को व्यर्थ मैं कब तक बहाऊँ
क्यूँ न पीकर मैं उन्हें अब हार कर लूं
शब्द जिह्वा पर युगों से हैं तड़पते
दे सहज वाणी उन्हें साकार कर लूं
एक शाश्वत सत्य को समझा न पाया
इस अपाहिज झूंठ का प्रतिकार कर लूं
"प्यार तो बस आत्मघाती रोग सा है"
मैं इसे ही अब सफल हथियार कर लूं
दण्ड अपने आपको मैं दे सकूं तो
आत्मा को सत्य के अनुसार कर लूं
सत्य जागा नीद से अंगडाइयां ले
झूठ का मैं भी न क्यूँ व्यापार कर लूं
और सह सकता नही मैं, सोचता हूँ
रेशमी आगोश का आसार कर लूं
********
बात अंतःकरण की
शेष धर तिवारी
*
बात अंतःकरण की स्वीकार कर लूं
और थोड़ी देर तक मनुहार कर लूं
कौन जाने कल मुझे तुम भूल जाओ
आज तो जी भर तुम्हे मैं प्यार कर लूं
बुद्धि मेरी, जो समझ पायी न तुमको
आज उसके साथ दुर्व्यवहार कर लूं
मत परोसो अब मुझे सपने सलोने
मैं किसी से तो उचित व्यवहार कर लूं
आँसुओं को व्यर्थ मैं कब तक बहाऊँ
क्यूँ न पीकर मैं उन्हें अब हार कर लूं
शब्द जिह्वा पर युगों से हैं तड़पते
दे सहज वाणी उन्हें साकार कर लूं
एक शाश्वत सत्य को समझा न पाया
इस अपाहिज झूंठ का प्रतिकार कर लूं
"प्यार तो बस आत्मघाती रोग सा है"
मैं इसे ही अब सफल हथियार कर लूं
दण्ड अपने आपको मैं दे सकूं तो
आत्मा को सत्य के अनुसार कर लूं
सत्य जागा नीद से अंगडाइयां ले
झूठ का मैं भी न क्यूँ व्यापार कर लूं
और सह सकता नही मैं, सोचता हूँ
रेशमी आगोश का आसार कर लूं
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