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शनिवार, 19 जनवरी 2013

रोचक रचना: ... क्लिक करूँ राहुल उपाध्याय

रोचक रचना:
... क्लिक करूँ
राहुल उपाध्याय
*
हे भगवन!
इतनी बड़ी दुनिया में
किस आईकॉन पे मैं क्लिक करूँ
ताकि हम और तुम क्लिक हो सकें
युगों-युगों के बंधन तोड़ के
एक दूसरे से जुड़ सकें


कैसे मैं खूद को रिबूट करूँ
ताकि सारे विकार मिट जाए
केश सारा क्लियर हो जाए
मन के पूर्वाग्रह छट जाए


ये दुनिया तेरी
ये सिस्टम तेरा
फिर क्यूँ न एक
विज़न भी हो
पाप हो तो
पॉप-अप भी हो
सपोर्ट का
कोई नम्बर भी हो
ऑनलाईन हो
ऑफ़लाईन हो
हेल्प का कोई प्रोविज़न भी हो


यूँ बार-बार
हमें रिसाईकल न कर
मोटा-पतला-छोटा न कर
जो हो गया सो हो गया
यूँ बार-बार
हमें दफ़ा न कर
काम क्या है
प्रयोजन क्या है
कुछ तो हमें बताया भी कर
*
Rahul Upadhyaya <upadhyaya@yahoo.com>

13 जनवरी 2013
सिएटल । 513-341-6798

==================
आईकॉन = icon
क्लिक = click
रिबूट = reboot
केश = cache
क्लियर = clear
सिस्टम = system
विज़न = vision
पॉप-अप = pop-up
सपोर्ट = support
ऑनलाईन = online
ऑफ़लाईन = offline
हेल्प = help
प्रोविज़न = provision
रिसाईकल = recycle
A picture may be worth a thousand words. But mere words can inspire millions

रविवार, 29 जनवरी 2012

कविता: ४ इंच की स्क्रीन --राहुल उपाध्याय

मुझको यह कविता रुची :




४ इंच की स्क्रीन 
राहुल उपाध्याय
*
पूरे रास्ते भर
वाईपर में फ़ँसा
मेपल का पत्ता
फ़ड़फ़ड़ाता रहा
और उसके कान पे जूँ तक न रेंगी

उसकी निगाहें गड़ी थीं
फोन पर
ट्रैफ़िक पर
रेडियों के बजते शोर पर
और हाथ में पकड़े स्टारबक्स के घोल पर

आज की दुनिया में
संसार की कोई भी ऐसी चीज़ नहीं
जो प्रकृति की कृति हो
और इंसान को अपनी और मोड़ सके
उसे खुद से जोड़ सके

पहले हम तारों से रिश्ता जोड़ते थे
उनकी संरचना में भालू-बर्तन खोजते थे

फिर एक ऐसा वक्त आया कि
हम तारों को छोड़ चाँद पे उतर आए
आज अमावस है, चार दिन बाद चतुर्थी,
उसके एक हफ़्ते बाद एकादशी, और फिर पूर्णिमा
उसी के उतार-चढ़ाव के साथ
हम तीज-त्यौहार-पर्व मना लिया करते थे

लेकिन फिर एक ऐसा भी दौर आया
कि शाम ढलते ही सब
टी-वी के सामने बैठ
किसी काल्पनिक परिवार के सुख-दु:ख
उतार-चढ़ाव में रमने लगे
उन्हीं के साथ हा-हा, ही-ही करने लगे

अब टी-वी भी बहुत दूर की चीज़ हो गयी है
रिमोट से चलते-चलते खुद ही रिमोट हो गई है

आज 
रिमोट से छोटी
हथेली से चिपकी
4 ईंच की स्क्रीन में ही हमारी दुनिया सिमट कर रह गयी है
अगर आप 4 ईंच की स्क्रीन में खुद को घुसोड़ सके तो आप का अस्तित्व है, 
वरना आप का होना न होना कोई मायने नहीं रखता है

पाँच घर छोड़ कर रहने वाला यह नहीं जानता कि आप दस दिन से गायब है
लेकिन उसे पूरी जानकारी है कि 
आठ हज़ार मील की दूरी पर 
उसकी मौसी के बेटे की 
कुछ मिनट पहले कॉलेज जाते वक़्त बस छूट गई है

वे आपके सामने से निकल जाएंगे
लेकिन आपको पहचानेगे नहीं
उनसे बात करनी हो तो
आवाज़ देने से काम नहीं चलेगा
ट्वीट करना होगा
क्योंकि वे कान में प्लग लगाए 
पहले ही बहरे हो चुके हैं 

Rahul Upadhyaya  upadhyaya@yahoo.com
सिएटल । 513-341-6798
28 जनवरी 2012
====================
वाईपर = wiper
मेपल = maple
स्टारबक्स = starbucks
रिमोट = remote
ट्वीट = Tweet
A picture may be worth a thousand words. But mere words can inspire millions