कुल पेज दृश्य

स्वास्थ्य लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
स्वास्थ्य लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

स्वास्थ्य, लिंग उत्तेजन, होमिओपैथी, आयुर्वेद

स्वास्थ्य सलिला :

= लिंगोत्तेजन (इरेक्शन)

होमिओपैथी-
1. Lycopodium 1M, 6 drops at 4 pm सप्ताह में 1 बार, 2. Conium 1M, 6 drops at bed time 4 days after Lycopodium, , सप्ताह में एक बार, 3. ADEL 36 drops, 20 drops 3 ti रद्द कटmes in 1/4 cup of water 6 माह तक सेवन करें।

आयुर्वेदिक-
सोधित कौंच बीज का पावडर 100 ग्राम, सफेद मूसली पावडर 50 ग्राम, अश्वगंधा पावडर 100 ग्राम, शतावरी 50 ग्राम। एक साथ मिलाकर रख लें और स्वाद के लिए 50 ग्राम कुंजा मिश्री पीस कर मिला लें। प्रतिदिन 1 बड़ा चम्मच सुबह व रात को दूध /पानी के साथ 6 माह तक सेवन करें।
***

मंगलवार, 10 जून 2025

जून १०, पोयम, सरस्वती, दोहे, पानी, लहसुन, स्वास्थ्य, फुलबगिया, पूर्णिका

सलिल सृजन जून १०
*
पूर्णिका : फुलबगिया 
हो आनंदित आप, फुलबगिया में घूमिए। 
सुमन सुमन में व्याप, पवन झुलाए झूमिए।। 
भँवरा ख्वाब हसीन, दिखा रहा है कली को।   
मादक महुआ मौन, कहे बाँह भर चूमिए।। 
.
'लिव इन' का है दौर, पल-पल नाते बदलते। 
सुबह किसी के आप, शाम किसी के हो लिए।। 
.
रहे बाँह में एक, और चाह में दूसरा। 
नजर तीसरा खोज, कहे शीघ्र फ्री होइए।। 
फुलबगिया गमगीन, देख बिक रही प्रीत को।   
प्रेम न पूजा आज, एक-दूसरे हित जिए।।    
००० 
Particle
*
O tiny particle! You are really Great.
Are very heavy but without weight.
What is the size?, knowbody know.
From where you come?, where you go.
No caste, no cult, no religion, no race.
Still not loose, always win the race.
O little particle! nobody can destroy.
Nobody can sell, nobody can buy.
You are the ultimate root of universe.
You never bother fate favour or adverse.
world say your are the samllest.
But to me you are the biggest.
10-6-2022
***
मुक्तक
ले लेती है जिंदों की भी अनजाने ही जान मोहब्बत।
दे देती हैं मुर्दों को भी अनजाने ही जान मोहब्बत।।
मरुथल में भी फूल खिलाती, पत्थर फोड़ बहाती झरना-
यही जीव संजीव बनाती, फिर भी क्यों अनजान मोहब्बत।।...
१०-६-२०२१
***
सरस्वती वंदना
*
भोर भई पट खोल सुरसती
दरसन दे महतारी।
हात जोड़ ठाँड़े हैं सुर-नर
अकल देओ माँ! माँग रए वर
मौन न रह कुछ बोल सुरसती
काहे सुधी बिसारी?
ध्वनि-धुन, स्वर-सुर, वाक् देओ माँ!
मति गति-यति, लय-ताल, छंद गा
विधि-हरि-हर ने रमा-उमा सँग
तोरे भए पुजारी
नेह नरमदा की कलकल तू
पंछी गुंजाते कलरव तू
लोरी, बम्बुलिया, आल्हा तू
मैया! महिमा न्यारी
***
एक रचना
*
अरुण अर्णव लाल-नीला
अहम् तज मन रहे ढीला
स्वार्थ करता लाल-पीला
छंद लिखता नयन गीला
संतुलन चाबी, न ताला
बिना पेंदी का पतीला
नमन मीनाक्षी सुवाचा
गगन में अरविंद साँचा
मुकुल मन ने कथ्य बाँचा
कर रहा जग तीन-पाँचा
मंजरी सज्जित भुआला
पुनीता है शक्ति वर ले
विनीता मति भक्ति वर ले
युक्तिपूर्वक जिंदगी जी
मुक्ति कर कुछ कर्म वर ले
काल का सब जग निवाला
८-६-२०२०
***
वंदना
*
शारद मैया! कैंया लेओ
पल पल करता मन कुछ खटपट
चाहे सुख मिल जाए झटपट
भोला चंचल भाव अँजोरूँ
हूँ संतान तुम्हारी नटखट
आपन किरपा दैया! देओ
शारद मैया! कैंया लेओ
मो खों अच्छर ग्यान करा दे
परमशक्ति सें माँ मिलवा दे
इकनी एक, अनादि अजर 'अ'
दिक् अंबर मैया! पहना दे
किरपा पर कें नीचें सेओ
शारद मैया! कैंया लेओ
अँगुली थामो, राह दिखाओ
कंठ बिराजो, हृदै समाओ
सुर-सरगम-स्वर दे प्रसाद माँ
मत मोखों जादा अजमाओ
नाव 'सलिल' की भव में खेओ
शारद मैया! कैंया लेओ
९-६-२०२०
***
श्वास शारदा माँ बसीं, हैं प्रयास में शक्ति
आस लक्ष्मी माँ मिलीं, कर मन नवधा भक्ति
त्रिगुणा प्रकृति नमन स्वीकारो,
तीन देव की जय बोलो
तीन काल का आत्म मुसाफिर,
कर्म-धर्म मति से तोलो
नमन करो स्वीकार शारदे! नमन करो स्वीकार
सब कुछ तुम पर वार शारदे आया तेरे द्वार
तुम आद्या हो, तुम अनंत हो
तुम्हीं अंत मेरी माता
ध्यान तुम्हारे में खोता जो, वही आप को पा पाता
पाती मन की कोरी इस पर, ॐ लिखूँ झट सिखला दो
सलिल बिंदु हो नेह नर्मदा, झलक पुनीता विख्याता
ग्यान तारिका! कला साधिका!
मन मुकुलित पुष्पा दो माँ!
'मावस को कर शरत् पूर्णिमा,
मैया! वरदा प्रख्याता
शुभदा सुखदा मातु वर्मदा,
देवि धर्मदा जगजननी
वीणा झंकृत कर दो मन की,
जीवन अर्पित हे प्राता
जड़ है जीव करो संजीवित, चेतन हो सत् जान सके
शिव-सुंदर का चित्र गुप्त लख
रहे सदा तुमको ध्याता
१०-६-२०२०
***
क्षणिका
क्यों पूछते हो
राह यह जाती कहाँ है?
आदमी जाते हैं नादां
रास्ते जाते नहीं हैं।*
दिशाएँ दीवार,
छत है आसमान
बेदरो-दीवार
कहिए कौन है?
१०-६-२०१९
***
दोहे पानीदार
पानी तो अनमोल है, मत कह तू बेमोल।
कंठ सूखते ही तुझे, पता लगेगा मोल।।
*
वर्षा-जल संग्रहण कर, बुझे ग्रीष्म में प्यास।
बहा निरर्थक क्यों सहो, रे मानव संत्रास।।
*
सलिल' नीर जल अंबु बिन, कैसे हो आनंद।
कलकल ध्वनि बिन कल कहाँ, कैसे गूँज छंद।।
*
लहर-लहर हँस हहरकर, बन-मिट दे संदेश।
पाया-खोया भूलकर, चिंता मत कर लेश।।
*
पानी मरे न आँख का, रखिए हर दम ध्यान।
सूखे पानी आँख का, यदि कर तुरत निदान।।
*
10.6.2018
***
स्वास्थ्य सलिला
कुछ नुस्खे: छोटे लहसुन के बड़े फायदे.......
___________________________________________________
(इन बीमारियों में है रामबाण)
लहसुन सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर के लिए एक औषधी की तरह भी काम करता है।इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी पाए जाते हैं। लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। भोजन में किसी भी तरह इसका सेवन करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है आज हम बताने जा रहे हैं आपको औषधिय गुण से भरपूर लहसुन के कुछ ऐसे ही नुस्खों के बारे में जो नीचे लिखी स्वास्थ्य समस्याओं में रामबाण है।
1-- 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने और आठ-दस लहसुन की कुली डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। जब लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें और बोतल में भर दें। इस तेल को गुनगुना कर इसकी मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।
2-- लहसुन की एक कली छीलकर सुबह एक गिलास पानी से निगल लेने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।साथ ही ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।
3-- लहसुन डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है। यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में कारगर साबित होता है।
4-- खांसी और टीबी में लहसुन बेहद फायदेमंद है। लहसुन के रस की कुछ बूंदे रुई पर डालकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है।
5-- लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली लीटर दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।
6-- लहसुन की दो कलियों को पीसकर उसमें और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बना ले इसे सिर्फ मुहांसों पर लगाएं। मुहांसे साफ हो जाएंगे।
7-- लहसुन की दो कलियां पीसकर एक गिलास दूध में उबाल लें और ठंडा करके सुबह शाम कुछ दिन पीएं दिल से संबंधित बीमारियों में आराम मिलता है।
8-- लहसुन के नियमित सेवन से पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है।
9-- नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर नियमित रहता है। एसीडिटी और गैस्टिक ट्रबल में भी इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। दिल की बीमारियों के साथ यह तनाव को भी नियंत्रित करती है।
10-- लहसुन की 5 कलियों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें और उसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह -शाम सेवन करें। इस उपाय को करने से सफेद बाल काले हो जाएंगे।
11- यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।
12- जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है।
13- लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है।
लहसुन की बदबू-
अगर आपको लहसुन की गंध पसंद नहीं है कारण मुंह से बदबू आती है। मगर लहसुन खाना भी जरूरी है तो रोजमर्रा के लिये आप लहसुन को छीलकर या पीसकर दही में मिलाकर खाये तो आपके मुंह से बदबू नहीं आयेगी। लहसुन खाने के बाद इसकी बदबू से बचना है तो जरा सा गुड़ और सूखा धनिया मिलाकर मुंह में डालकर चूसें कुछ देर तक, बदबू बिल्कुल निकल जायेगी।
***
दोहा सलिला
बिन नागा सूरज उगे सुबह ढले हर शाम.
यत्न सतत करते रहें, बिना रुके निष्काम..
***
अंतिम पल तक दिये से, तिमिर न पाता जीत.
सफर साँस का इस तरह, पूर्ण करें हम मीत..
***
संयम तज हम बजायें, व्यर्थ न अपने गाल.
बन संतोषी हों सुखी, रखकर उन्नत भाल..
***
ढाई आखर पढ़े बिन पढ़े, तज अद्वैत वर द्वैत.
मैं-तुम मिटे, बचे हम ही हम, जब-जब खेले बैत..
***
जीत हार में, हार जीत में, पायी हुआ कमाल.
सलिल'-साधना सफल हो सके, सबकी अबकी साल..
***
दूर क्षितिज को ताकती, रहकर मौन निगाह.
धरे हाथ पर हाथ हम, देखें काल-प्रवाह..
१०.६.२०१०
***

गुरुवार, 22 मई 2025

मई २२, सॉनेट, मिर्च, बुंदेली ग़ज़ल, नेपाल भूकंप, स्वास्थ्य, मुक्तिका, नवगीत

सलिल सृजन मई २२
*
सॉनेट
द्रोण
*
द्रोण छल कर पल रहे थे,
दास सत्ता मानती थी,
हमेशा अपमानती थी।
ऊगते दिख; ढल रहे थे।
पुत्र से मिथ्या कहा था,
शिष्य का काटा अँगूठा,
अहं पाला निरा झूठा।
ज्ञान बिसरा मन दहा था।
चक्रव्यूह कलंक गाथा
सत्पुरुष का झुका माथा
मोह सुत का उर बसा था।
शत्रु पर विश्वास गलती
बात पूरी सुन; न समझी
हुए विचलित मौत आई।
***
मिर्ची लगी तो .....?
मिर्च को आयुर्वेद में कुमऋचा के नाम से भी जाना जाता है। गुणों में लाल मिर्च और हरी मिर्च में कोई अंतर नहीं होता। आयुर्वेदिक मतानुसार लालमिर्च अग्निदीपक, दाहजनक, कफनाशक तथा अजीर्ण, विषूचिका, दारुणवृण, तंद्रा, मोह, प्रलाप, स्वरभेद और अरुचि को दूर करने वाली होती है।
आत्रेयसंहिता के अनुसार, "जिसकी देखने की, सुनने की ओर बोलने की शक्ति नष्ट हो गई हो, जिसकी नाड़ी भी डूब गई हो ऐसे सन्निपात के रोगी को मृत्यु के मुख में से छुड़ा कर मिर्ची जीवन दान देती है।"
हैजा में मिर्च के चूर्ण का आश्चर्यजनक लाभ लगभग सभी लोगों को पता है। दाढ़ के दर्द में मिर्ची का तेल उत्तम काम करता है। मिर्ची अफरा को भी नष्ट करती है। देशी चिकित्सक टायफस ज्वर, पार्यायिक ज्वर, जलोदर, गठिया, अजीर्ण और हैजे में इसका उपयोग करते हैं।
यूनानी मत के अनुसार मिर्ची कड़वी, चरपरी, कफ निस्सारक, मस्तिष्क की शिकायतों को दूर करनेवाली, स्नायविक वेदना में लाभदायक, पित्त को बढ़ाने वाली और गुदा स्थान सें जलन करनेवाली होती है।
मिर्च के तीखेपन से मिर्च के नुकसान तय होते हैं जैसे कश्मीरी मिर्च कम तिक्त होती है इसलिए ज्यादा खाई जा सकती है। शिमला मिर्च की सब्जी से हानि नहीं है क्योंकि उसमें तीखापन नहीं है। काली मिर्च से कई फायदे होते हैं। अधिक तीखी और ज्यादा खाने से मिर्च से अनेक बीमारियाँ होती हैं।
***
मुक्तिका:
आए हो
*
बहुत दिनों में मुझसे मिलने आए हो.
यह जाहिर है तनिक भुला न पाए हो..
मुझे भरोसा था-है, बिछुड़ मिलेंगे हम.
नाहक ही जा दूर व्यर्थ पछताए हो..
खलिश शूल की जो हँसकर सह लेती है.
उसी शाख पर फूल देख मुस्काए हो..
अस्त हुए बिन सूरज कैसे पुनः उगे?
जब समझे तब खुद से खुद शर्माए हो..
पूरी तरह किसी को कब किसने समझा?
समझ रहे यह सोच-सोच भरमाए हो..
ढाई आखर पढ़ बाकी पोथी भूली.
जब तब ही उजली चादर तह पाए हो..
स्नेह-'सलिल' में अवगाहो तो बात बने.
नेह नर्मदा कब से नहीं नहाए हो..
२२-५-२०११
***
मुक्तिका:
चाह में
*
नील नभ को समेटूँ निज बाँह में.
जी रहा हूँ आज तक इस चाह में..
पड़ोसी को कभी काना कर सके.
हुआ अंधा पाक दुर्मति-डाह में..
मंजिलें कब तक रहेंगी दूर यों?
बनेंगी साथी कभी तो राह में..
प्यार की गहराई मिलने में नहीं.
हुआ है अहसास बिछुड़न-आह में..
काट जंगल, खोद पर्वत, पूर सर.
किस तरह सुस्ता सकेंगे छाँह में?
रोज रुसवा हो रहा सच देखकर.
जल रहा टेसू सा हर दिल दाह में..
रो रही है खून के आँसू धरा.
आग बरसी अब के सावन माह में..
काश भिक्षुक मन पले पल भर 'सलिल'
देख पाये सकल दुनिया शाह में..
देख ऊँचाई न बौराओ 'सलिल'
दूब सम जम जाओ गहरी थाह में..
२२-५-२०११
***
बुंदेली ग़ज़ल
*
१.बात नें करियो
*
बात नें करियो तनातनी की.
चाल नें चलियो ठनाठनी की..
होस जोस मां गंवा नें दइयो
बाँह नें गहियो हनाहनी की..
जड़ जमीन मां हों बरगद सी
जी न जिंदगी बना-बनी की..
घर नें बोलियों तें मकान सें
अगर न बोली धना-धनी की..
सरहद पे दुसमन सें कहियो
रीत हमारी दना-दनी की..
================
२ बखत बदल गओ
*
बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।
सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।
*
लतियाउत तें कल लों जिनखों
बे नेतन सें हात जुरा रए।।
*
पाँव कबर मां लटकाए हैं
कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।
*
पान तमाखू गुटका खा खें
भरी जवानी गाल झुरा रए।।
*
झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें
सांच कई तेन अश्रु ढुरा रए।।
*
३ मंजिल की सौं...
*
मंजिल की सौं, जी भर खेल
ऊँच-नीच, सुख-दुःख. हँस झेल
रूठें तो सें यार अगर
करो खुसामद मल कहें तेल
यादों की बारात चली
नाते भए हैं नाक-नकेल
आस-प्यास के दो कैदी
कार रए साँसों की जेल
मेहनतकश खों सोभा दें
बहा पसीना रेलमपेल
*
४ काय रिसा रए
*
काय रिसा रए कछु तो बोलो
दिल की बंद किवरिया खोलो
कबहुँ न लौटे गोली-बोली
कओ बाद में पैले तोलो
ढाई आखर की चादर खों
अँखियन के पानी सें धो लो
मिहनत धागा, कोसिस मोती
हार सफलता का मिल पो लो
तनकउ बोझा रए न दिल पे
मुस्काबे के पैले रो लो
=============
५ बात करो ..
*
बात करो जय राम-राम कह।
अपनी कह औरन की सुन-सह।।
मन खों रखियों आपन बस मां।
मत लालच मां बरबस दह-बह।।
की की की सें का-का कहिए?
कडवा बिसरा, कछु मीठो गह।।
रिश्ते-नाते मन की चादर।
ढाई आखर सें धोकर-तह।।
संयम-गढ़ पै कोसिस झंडा
फहरा, माटी जैसो मत ढह।।
खैंच लगाम दोउ हातन सें
आफत घुड़वा चढ़ मंजिल गह।।
दिल दैबें खेन पैले दिलवर
दिल में दिलवर खें दिल बन रह।।
***
वह एक है, हम एक हों रस-छंद की तरह
करिए विमर्श नित्य परमानंद की तरह
जात क्या? औकात क्या? सच गुप्त चित्त में
आत्म में परमात्म ब्रह्मानंद की़ तरह
व्योम में राकेश औ' दिनेश साथ-साथ
बिखेरते उजास काव्यानंद की तरह
काया नहीं कायस्थ है निज आत्म तत्व ही
वह एक है, हम एक हैं आनंद की तरह
जो मातृशक्ति है उसे भी पूजिए हुजूर
बिन शक्ति शक्तिवान निरानंद की तरह
***
कविता की जय
हिंदीप्रेमी कलमकार मिल कविता की जय बोल रहे
दिल से दिल के बीच बनाकर पुल नित नव रस घोल रहे
सुख-दुख धूप-छाँव सम आते-जाते, पूछ सवाल रहे
शब्द-पुजारी क्या तुम खुद को कर्म तुला में तोल रहे?
को विद? है विद्वान कौन? यह कोविद उन्निस पूछ रहा
काहे को रोना?, कोरोना कहे न बाकी झोल रहे
खुद ही खुद का कर खयाल, घर में रह अमन-चैन से तू
सुरा हेतु मत दौड़ लगा तू, नहीं ढोल में पोल रहे
अनुशासित परउपकारी बन, कर सहायता निर्बल की
सज नहीं जो रहा 'सलिल' उसका तो बिस्तर गोल रहे
२२-५-२०२०
***
नवगीत:
.
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
पर्वत, घाटी या मैदान
सभी जगह मानव हैरान
क्रंदन-रुदन न रुकता है
जागा क्या कोई शैतान?
विधना हमसे क्यों रूठा?
क्या करुणासागर झूठा?
किया भरोसा क्या नाहक
पल भर में ऐसे टूटा?
डँसते सर्पों से सवाल
बार-बार फुँफकार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
कभी नहीं मारे भूकंप
कभी नहीं हांरे भूकंप
एक प्राकृतिक घटना है
दोष न स्वीकारे भूकंप
दोषपूर्ण निर्माण किये
मानव ने खुद प्राण दिए
वन काटे, पर्वत खोदे
खुद ही खुद के प्राण लिये
प्रकृति के अनुकूल जिओ
मात्र एक उपचार
.
नींव कूटकर खूब भरो
हर कोना मजबूत करो
अलग न कोई भाग रहे
एकरूपता सदा धरो
जड़ मत हो घबराहट से
बिन सोचे ही मत दौड़ो
द्वार-पलंग नीचे छिपकर
राह काल की भी मोड़ो
फैलाता अफवाह जो
उसको दो फटकार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
बिजली-अग्नि बुझाओ तुरत
मिले चिकित्सा करो जुगत
दीवारों से लग मत सो
रहो खुले में, वरो सुगत
तोड़ो हर कमजोर भवन
मलबा तनिक न रहे अगन
बैठो जा मैदानों में
हिम्मत देने करो जतन
दूर करो सब दूरियाँ
गले लगा दो प्यार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
***
नवगीत:
.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
वसुधा मैया भईं कुपित
डोल गईं चट्टानें.
किसमें बूता
धरती कब
काँपेगी अनुमाने?
देख-देख भूडोल
चकित क्यों?
सीखें रहना साथ.
अनसमझा भूकम्प न हो अब
मानवता का काल.
पृथ्वी पर भूचाल
हुए, हो रहे, सदा होएंगे.
हम जीना सीखेंगे या
हो नष्ट बिलख रोएँगे?
जीवन शैली गलत हमारी
करे प्रकृति से बैर.
रहें सुरक्षित पशु-पक्षी, तरु
नहीं हमारी खैर.
जैसी करनी
वैसी भरनी
फूट रहा है माथ.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
टैक्टानिक हलचल को समझें
हटें-मिलें भू-प्लेटें.
ऊर्जा विपुल
मुक्त हो फैले
भवन तोड़, भू मेटें.
रहे लचीला
तरु ना टूटे
अड़ियल भवन चटकता.
नींव न जो
मजबूत रखे
वह जीवन-शैली खोती.
उठी अकेली जो
ऊँची मीनार
भग्न हो रोती.
वन हरिया दें, रुके भूस्खलन
कम हो तभी विनाश।
बंधन हो मजबूत, न ढीले
रहें हमारे पाश.
छूट न पायें
कसकर थामें
'सलिल' हाथ में हाथ
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
***
हाइकु सलिला:
.
सागर माथा
नत हुआ आज फिर
देख विनाश.
.
झुक गया है
गर्वित एवरेस्ट
खोखली नीव
.
मनमानी से
मानव पराजित
मिटे निर्माण
.
अब भी चेतो
न करो छेड़छाड़
प्रकृति संग
.
न काटो वृक्ष
मत खोदो पहाड़
कम हो नाश
.
न हो हताश
करें नव निर्माण
हाथ मिलाएं.
.
पोंछने अश्रु
पीड़ितों के चलिए
न छोड़ें कमी
.....
जबलपुर भूकंप की बरसी पर
दोहा गीत :
करो सामना
*
जब-जब कंपित भू हुई
हिली आस्था-नीव
आर्तनाद सुनते रहे
बेबस करुणासींव
न हारो करो सामना
पूर्ण हो तभी कामना
*
ध्वस्त हुए वे ही भवन
जो अशक्त-कमजोर
तोड़-बनायें फिर उन्हें
करें परिश्रम घोर
सुरक्षित रहे जिंदगी
प्रेम से करो बन्दगी
*
संरचना भूगर्भ की
प्लेट दानवाकार
ऊपर-नीचे चढ़-उतर
पैदा करें दरार
रगड़-टक्कर होती है
धरा धीरज खोती है
*
वर्तुल ऊर्जा के प्रबल
करें सतत आघात
तरु झुक बचते, पर भवन
अकड़ पा रहे मात
करें गिर घायल सबको
याद कर सको न रब को
*
बस्ती उजड़ मसान बन
हुईं प्रेत का वास
बसती पीड़ा श्वास में
त्रास ग्रस्त है आस
न लेकिन हारेंगे हम
मिटा देंगे सारे गम
*
कुर्सी, सिल, दीवार पर
बैंड बनायें तीन
ईंट-जोड़ मजबूत हो
कोने रहें न क्षीण
लचीली छड़ें लगाओ
बीम-कोलम बनवाओ
*
दीवारों में फंसायें
चौखट काफी दूर
ईंट-जुड़ाई तब टिके
जब सींचें भरपूर
रैक-अलमारी लायें
न पल्ले बिना लगायें
*
शीश किनारों से लगा
नहीं सोइए आप
दीवारें गिर दबा दें
आप न पायें भाँप
न घबरा भीड़ लगायें
सजग हो जान बचायें
*
मेज-पलंग नीचे छिपें
प्रथम बचाएं शीश
बच्चों को लें ढांक ज्यों
हुए सहायक ईश
वृद्ध को साथ लाइए
ईश-आशीष पाइए
१३-५-२०१५
***
नवगीत:
.
जो हुआ सो हुआ
.
बाँध लो मुट्ठियाँ
चल पड़ो रख कदम
जो गये, वे गये
किन्तु बाकी हैं हम
है शपथ ईश की
आँख करना न नम
नीलकण्ठित बनो
पी सको सकल गम
वृक्ष कोशिश बने
हो सफलता सुआ
.
हो चुका पूर्व में
यह नहीं है प्रथम
राह कष्टों भरी
कोशिशें हों न कम
शेष साहस अभी
है बहुत हममें दम
सूर्य हैं सच कहें
हम मिटायेंगे तम
उठ बढ़ें, जय वरें
छोड़कर हर खुआ
.
चाहते क्यों रहें
देव का हम करम?
पालते क्यों रहें
व्यर्थ मन में भरम?
श्रम करें तज शरम
साथ रहना धरम
लोक अपना बनाएंगे
फिर श्रेष्ठ हम
गन्स जल स्वेद है
माथ से जो चुआ
मंगलवार, २८ अप्रैल २०१५
***
नवगीत:
.
धरती काँपी,
नभ थर्राया
महाकाल का नर्तन
.
विलग हुए भूखंड तपिश साँसों की
सही न जाती
भुज भेंटे कंपित हो भूतल
भू की फटती छाती
कहाँ भू-सुता मातृ-गोद में
जा जो पीर मिटा दे
नहीं रहे नृप जो निज पीड़ा
सहकर धीर धरा दें
योगिनियाँ बनकर
इमारतें करें
चेतना-कर्तन
धरती काँपी,
नभ थर्राया
महाकाल का नर्तन
.
पवन व्यथित नभ आर्तनाद कर
आँसू धार बहायें
देख मौत का तांडव चुप
पशु-पक्षी धैर्य धरायें
ध्वंस पीठिका निर्माणों की,
बना जयी होना है
ममता, संता, सक्षमता के
बीज अगिन बोना है
श्वास-आस-विश्वास ले बढ़े
हास, न बचे विखंडन
सोमवार, २७ अप्रैल २०१५
***
दोहा सलिला:
.
रूठे थे केदार अब, रूठे पशुपतिनाथ
वसुधा को चूनर हरी, उढ़ा नवाओ माथ
.
कामाख्या मंदिर गिरा, है प्रकृति का कोप
शांत करें अनगिन तरु, हम मिलकर दें रोप
.
भूगर्भीय असंतुलन, करता सदा विनाश
हट संवेदी क्षेत्र से, काटें यम का पाश
.
तोड़ पुरानी इमारतें, जर्जर भवन अनेक
करे नये निर्माण दृढ़, जाग्रत रखें विवेक
.
गिरि-घाटी में सघन वन, जीवन रक्षक जान
नगर बसायें हम विपुल, जिनमें हों मैदान
.
नष्ट न हों भूकम्प में, अपने नव निर्माण
सीखें वह तकनीक सब, भवन रहें संप्राण
.
किस शक्ति के कहाँ पर, आ सकते भूडोल
ज्ञात, न फिर भी सजग हम, रहे किताबें खोल
.
भार वहन क्षमता कहाँ-कितनी लें हम जाँच
तदनसार निर्माण कर, प्रकृति पुस्तिका बाँच
***
नवगीत:
.
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
भूगर्भी चट्टानें सरकेँ,
कांपे धरती.
ऊर्जा निकले, पड़ें दरारें
उखड़े पपड़ी
हिलें इमारत, छोड़ दीवारें
ईंटें गिरतीं
कोने फटते, हिल मीनारें
भू से मिलतीं
आफत बिना बुलाये आये
आँख दिखाये
सावधान हो हर उपाय कर
जान बचायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
द्वार, पलंग तले छिप जाएँ
शीश बचायें
तकिया से सर ढाँकें
घर से बाहर जाएँ
दीवारों से दूर रहें
मैदां अपनाएँ
वाहन में हों तुरत रोक
बाहर हो जाएँ
बिजली बंद करें, मत कोई
यंत्र चलायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
बाद बड़े झटकों के कुछ
छोटे आते हैं
दिवस पाँच से सात
धरा को थर्राते हैं
कम क्षतिग्रस्त भाग जो उनकी
करें मरम्मत
जर्जर हिस्सों को तोड़ें यह
अतिआवश्यक
जो त्रुटिपूर्ण भवन उनको
फिर गिरा बनायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
है अभिशाप इसे वरदान
बना सकते हैं
हटा पुरा निर्माण, नव नगर
गढ़ सकते हैं.
जलस्तर ऊपर उठता है
खनिज निकलते
भू संरचना नवल देख
अरमान मचलते
आँसू पीकर मुस्कानों की
फसल उगायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
२२-५-२०१७
***
गीत
*
पूजन से
पापों का क्षय
हो पाता तो
सारे पापी
देव पूजकर तर जाते।
गुप्त न रहता चित्र
मनुज के कर्मों का
गीतकार
नित हत्यारों के गुण गाते ।
*
कर्मयोग की सीख, न अर्जुन को मिलती
सूर्य न करता मेहनत, साँझ नहीं ढलती।
बाँझ न होती नींव, न दबकर चुप रहती-
महक बिखेर न कली, भ्रमर खातिर खिलती।
सृजन अगर
तापों का भय
हर पाता तो,
सारे सर्जक
निहित सर्जना
घर लाते।
*
स्वेद न गंगा-जल सम, पूजा गया अगर
दौलत देख प्रेम भी, भूला गया अगर।
वादों को 'जुमला' कह, जन विश्वास-छला
लोकतंत्र की मीन निगल, जन-द्रोह-मगर
पूछेगा
जनप्रतिनिधि
आम जनों जैसा
रहन-सहन, आचरण
नहीं क्यों अपनाते?
*
संसद आकर स्नान, कुम्भ में क्यों न करे?
मतभेदों को सलिल-धार में क्यों न तजे?
पेशवाई में 'कल' की 'कल' को 'आज' वरे-
ख़ास न क्यों वह जो जनगण की पीर हरे?
प्रश्नों के उत्तर
विधायिका
खोजे तो
विनत प्रशासक
नागरिकों के दर जाते
***
२२.५.२०१६
मुक्तिका
*
घुलें-मिल, बनें हम
न मैं-तुम, रहें अब
.
कहो तुम, सुनें हम
मिटें दूरियाँ सब
.
सभी सच, सुनें हम
न कोई नबी-रब
.
बढ़ो तुम, बढ़ें हम
मिलें मंज़िलें तब
.
लिखो तुम, पढ़ें हम
रहें चुप, सुनें जब
.
सिया-सत वरें हम
सियासत अजब ढब
.
बराबर हुए हम
छिना मत, नहीं दब
.
[दस मात्रिक दैशिक छन्द,
मापनी- १२ ११ १२११,
रुक्न- फऊलुन फऊलुन]
१०-५-२०१६, हरदोई
***
नवगीत:
प्रयासों की अस्थियों पर
*
प्रयासों की अस्थियों पर
सुसाधन के मांस बिन
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
*
सांस का व्यापार
थमता अनथमा सा
आस हिमगिरि पर
निरंतर जलजला सा.
अंकुरों को
पान गुटखा लीलता नित-
मुँह छिपाता नीलकंठी
फलसफा सा.
ब्रांडेड मँहगी दवाई
अस्पताली भव्यताएँ
रोग को मुद्रा-तुला पर तौलती.
प्रयासों की अस्थियों पर
सुसाधन के मांस बिन
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
*
वीतरागी चिकित्सक को
रोग से लेना, न देना
कई दर्जन टेस्ट
सालों औषधि, राहत न देना.
त्रास के तूफ़ान में
बेबस मरीजों को खिलौना-
बना खेले निष्ठुरी
चाबे चबेना.
आँख पीड़ा-हताशा के
अनलिखे संवाद
पल-पल मौन रहकर बोलती.
प्रयासों की अस्थियों पर
सुसाधन के मांस बिन
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
२२-५-२०१५
***
मुक्तिका:
चाह में
*
नील नभ को समेटूँ निज बाँह में.
जी रहा हूँ आज तक इस चाह में..
पड़ोसी को कभी काना कर सके.
हुआ अंधा पाक दुर्मति-डाह में..
मंजिलें कब तक रहेंगी दूर यों?
बनेंगी साथी कभी तो राह में..
प्यार की गहराई मिलने में नहीं.
हुआ है अहसास बिछुड़न-आह में..
काट जंगल, खोद पर्वत, पूर सर.
किस तरह सुस्ता सकेंगे छाँह में?
रोज रुसवा हो रहा सच देखकर.
जल रहा टेसू सा हर दिल दाह में..
रो रही है खून के आँसू धरा.
आग बरसी अब के सावन माह में..
काश भिक्षुक मन पले पल भर 'सलिल'
देख पाये सकल दुनिया शाह में..
देख ऊँचाई न बौराओ 'सलिल'
दूब सम जम जाओ गहरी थाह में..
२२.५.२०११
***
मुक्तिका:
आए हो
*
बहुत दिनों में मुझसे मिलने आए हो.
यह जाहिर है तनिक भुला न पाये हो..
मुझे भरोसा था-है, बिछुड़ मिलेंगे हम.
नाहक ही जा दूर व्यर्थ पछताए हो..
खलिश शूल की जो हँसकर सह लेती है.
उसी शाख पर फूल देख मुस्काए हो..
अस्त हुए बिन सूरज कैसे पुनः उगे?
जब समझे तब खुद से खुद शर्माए हो..
पूरी तरह किसी को कब किसने समझा?
समझ रहे यह सोच-सोच भरमाए हो..
ढाई आखर पढ़ बाकी पोथी भूली.
जब तब ही उजली चादर तह पाए हो..
स्नेह-'सलिल' में अवगाहो तो बात बने.
नेह नर्मदा कब से नहीं नहाए हो..
***
स्वास्थ्य सलिला
*
रोज संतरा खाइए, किडनी रहे निरोग.
पथरी घुलकर निकलती, आप करें सुख-भोग..
*
सेवन से तरबूज के, मिले शक्ति-भंडार.
परा बैंगनी किरण का, करे यही प्रतिकार.
*
कब्ज़ मिटा सी विटामिन, देते हैं भरपूर.
रोज़ पपैया-गुआवा, जी भर खांय जरूर.
*
पौरुष ग्रंथिज रोग को, रखता तन से दूर.
रोज टमाटर खाइए, स्वाद रुचे भरपूर..
*
अजवाइन-जैतून का, तेल बढ़ाये आब.
बढ़ा हुआ घट जायेगा, 'सलिल' रक्त का दाब..
*
खा ब्रोकोली (गोभी) मूंगफली, बनिए सेहतमंद.
रक्त-शर्करा नियंत्रित , इंसुलीन हो बंद..
*
बड़ी आँत का कैंसर, उराघात से जूझ.
सेब किवी नित खाइए, खनिज विटामिन बूझ.
*
खा हिसाल-शहतूत फल, रोग भगाएँ आप.
प्रतिरोधक ताकत बढ़े, दूर रहेगा ताप..
*
अगर फेंफड़े में हुआ, हो कैंसर का कष्ट.
नारंगी गहरी हरी, सब्जी होती इष्ट.
*
बंधा गोभी से मिले, अल्सर में आराम.
ज़ख्म ठीक हो शीघ्र ही, यदि न विधाता वाम..
*
अगर दस्त-अतिसार से, आप हो रहे त्रस्त.
खाएं केला-सेब भी, पस्त न हों, हों मस्त..
*
नाशपातियाँ खाइए, कम हो कोलेस्ट्रोल.
धमनी में अवरोध का, है इलाज अनमोल..
(एवाकाडो = नाशपाती की तरह का ऊष्णकटिबंधीय फल)
*
अनन्नास खा-रस पियें, हड्डी हो मजबूत.
टूटी हड्डी शीघ्र जुड़, दे आराम अकूत..
*
याददाश्त गर दे दगा, बातें रहें न याद.
सेवन करिए शुक्ति का, समय न कर बर्बाद ..
(शुक्ति = सीप)
*
सर्दी-कोलेस्ट्रोल जब बढ़े, न हों हैरान.
लहसुन का सेवन करे, सस्ता-सुलभ निदान..
*
मिर्च खाइए तो रहे, बढ़ा हुआ कफ शांत.
ध्यान पेट का भी रखें, हो ना क्रुद्ध-अशांत..
*
गेहूँ चोकर खाइए, पत्ता गोभी संग.
वक्ष कैंसर में मिले, लाभ-आप हों दंग
*
करे नाक में दम दमा, 'सलिल' न हो आराम.
खा-छाती पर लगा लें, प्याज़ करें विश्राम..
*
संधिवात-गठिया करे, अगर आपको तंग.
मछली का सेवन करें, मन में जगे उमंग..
*
उदर कष्ट से मुक्ति हो, केला खाएं आप.
अदरक उबकाई मिटा, हरती है संताप..
*
मूत्राशय संक्रमण में, हों न आप हैरान.
क्रेनबैरी का रस पियें, आए जां में जान..
(क्रेनबैरी = करौंदा)
**
मछली-सेवन से 'सलिल', शीश-दर्द हो दूर.
दर्द और सूजन हरे, अदरक गुण भरपूर...
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हर ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
*
हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढ़े सुयोग..
*
नींद न आए-अनिद्रा, करे अगर हैरान.
शुद्ध शहद सेवन करें, देखें स्वप्न सुजान..
२२-५-२०१०
***

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

स्वास्थ्य, आयुर्वेद, कलौंजी,

स्वास्थ्य सलिला
कई मर्जों की दवाई कलौंजी
*
कलियुग की संजीवनी, मिल कलौंजी नाम।
चुटकी में पीड़ा हरे, मिटा रोग बिन दाम।।
★ सेवन विधि
कलौंजी के बीजों को खाया अथवा एक छोटा चम्मच कलौंजी को शहद में मिश्रित कर या पानी में कलौंजी उबाल-छानकर पिया जा सकता है। एक अन्य तरीका दूध में कलौंजी उबाल-ठंडा कार पीना भी है। कलौंजी को पीस (ग्राइंड) कर पानी तथा दूध के साथ इसका सेवन किया जा सकता है। कलौंजी को ब्रैड, पनीर तथा पेस्ट्रियों पर छिड़ककर भी खा सकते हैं।
◆ कलौंजी चिकित्सा निम्न रोगों को मिटाती है-
१. टाइप-२ मधुमेह (डायबिटीज):
प्रतिदिन २ ग्राम कलौंजी के सेवन से बढ़ा हुआ ग्लूकोज कम होता है। इंसुलिन रैजिस्टैंस घटती है, बीटा सैल की कार्यप्रणाली में वृद्धि होती है तथा ग्लाइकोसिलेटिड हीमोग्लोबिन में कमी आती है।
२. मिर्गी:
मिर्गी से पीड़ित बच्चों में कलौंजी के सत्व का सेवन दौरे को कम करता है।
३. उच्च रक्तचाप:
एक सौ मि.ग्रा. कलौंजी का सत्व दिन में दो बार सेवन करने से हाइपरटैंशन के मरीजों में ब्लड प्रैशर कम होता है। उच्च
रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) में एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में २ बार पीने से रक्तचाप सामान्य बना रहता है। २८ मि.ली. जैतून का तेल और एक चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर पूर शरीर पर मालिश आधे घंटे तक धूप में रहने से रक्तचाप में लाभ मिलता है। यह क्रिया हर तीसरे दिन एक महीने तक करना चाहिए।
४. गंजापन:
जली हुई कलौंजी को हेयर ऑइल में मिलाकर सिर पर रोज मालिश करने से गंजापन दूर होकर बाल उग आते हैं।
५. त्वचा के विकार:
कलौंजी के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर त्वचा पर मालिश करने से त्वचा के विकार नष्ट होते हैं।
६. लकवा:
कलौंजी का तेल एक चौथाई चम्मच की मात्रा में एक कप दूध के साथ कुछ महीने तक प्रतिदिन पीने और रोगग्रस्त अंगों पर कलौंजी के तेल से मालिश करने से लकवा रोग ठीक होता है।
७. कान की सूजन, बहरापन:
कलौंजी का तेल कान में डालने से कान की सूजन दूर होती है। इससे बहरापन में भी लाभ होता है।
८. सर्दी-जुकाम:
कलौंजी के बीजों को सेंककर और कपड़े में लपेटकर सूंघने तथा कलौंजी का तेल और जैतून का तेल बराबर मात्रा में नाक में टपकाने से सर्दी-जुकाम समाप्त होता है। आधा कप पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल व चौथाई चम्मच जैतून का तेल मिलाकर इतना उबालें कि पानी खत्म हो जाए और केवल तेल ही रह जाए। इसके बाद इसे छानकर २ बूँद तेल नाक में डालने से सर्दी-जुकाम ठीक होता है।
९. कलौंजी को पानी में उबालकर इसका सत्व पीने से अस्थमा में काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है।
१०. छींके:
कलौंजी और सूखे चने को एक साथ अच्छी तरह मसलकर किसी कपड़े में बाँधकर सूँघने से छींके आनी बंद हो जाती है।
११. पेट के कीडे़:
दस ग्राम कलौंजी पीसकर ३ चम्मच शहद के साथ रात सोते समय सेवन करने से पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
१२. प्रसव की पीड़ा:
कलौंजी का काढ़ा बनाकर सेवन करने से प्रसव-पीड़ा दूर होती है।
१३. पोलियो का रोग:
आधे कप गर्म पानी में एक चम्मच शहद व आधे चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय लेने से पोलियो ठीक होता है।
१४. मुँहासे:
सिरके में कलौंजी पीसकर रात को सोते समय पूरे चेहरे पर लगाएं और सुबह पानी से चेहरे को साफ करने से मुँहासे मिटते हैं।
१५. स्फूर्ति:
स्फूर्ति (रिवायटल) के लिए नांरगी के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर लेनेसे आलस्य और थकान मिटती है।
१६.. गठिया:
कलौंजी को रीठा के पत्तों के साथ काढ़ा बनाकर पीने से गठिया रोग समाप्त होता है।
१७. जोड़ों का दर्द:
एक चम्मच सिरका, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय पीने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है।
१८. नेत्ररोग:
आँखों की लाली, मोतियाबिन्द, आँखों से पानी का आना, आँखों की रोशनी कम होना आदि रोगों में एक कप गाजर का रस, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में २ बार सेवन करने से सभी नेत्र रोग ठीक होते हैं। आँखों के चारों ओर तथा पलकों पर कलौंजी का तेल रात को सोते समय लगाने से आँखों के रोग समाप्त होते हैं। नेत्र-रोगी को अचार, बैंगन, अंडा व मछली नहीं खाना चाहिए।
१९. स्नायुविक व मानसिक तनाव:
एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल डालकर रात को सोते समय पीने से स्नायुविक व मानसिक तनाव दूर होता है।
२०. गांठ:
कलौंजी का तेल गाँठों पर लगाने और एक चम्मच कलौंजी का तेल गर्म दूध में डालकर पीने से गाँठ नष्ट होती है।
२१. मलेरिया :
पिसी हुई कलौंजी आधा चम्मच और एक चम्मच शहद मिलाकर चाटने से मलेरिया का बुखार ठीक होता है।
२२. स्वप्नदोष:
यदि रात को नींद में अपने आप वीर्य निकले तो एक कप सेब के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में २ बार सेवन करें, स्वप्नदोष दूर होगा। प्रतिदिन कलौंजी के तेल की चार बूँद एक चम्मच नारियल तेल में मिलाकर सोते समय सिर में लगाने से भी स्वप्न दोष का रोग ठीक होता है। उपचार अवधि में नींबू का सेवन न करें।
२३. कब्ज:
चीनी ५ ग्राम, सोनामुखी ४ ग्राम, १ गिलास हल्का गर्म दूध और आधा चम्मच कलौंजी का तेल एक साथ मिलाकर रात को सोते समय पीने से कब्ज नष्ट होती है।
२४. खून की कमी:
एक कप पानी में ५० ग्राम हरा पुदीना उबाल लें और इस पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात को सोते समय सेवन करें। इससे २१ दिनों में खून की कमी दूर होती है। खट्टी वस्तुओं का उपयोग न करें।
२५. पेट दर्द:
पेट दर्द हो तो एक गिलास नींबू पानी में २ चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में २ बार पीएं। उपचार करते समय रोगी को बेसन की चीजे नहीं खानी चाहिए। या चुटकी भर नमक और आधे चम्मच कलौंजी के तेल को आधा गिलास हल्का गर्म
पानी मिलाकर पीने से पेट का दर्द ठीक होता है। या फिर 1 गिलास मौसमी के रस में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पेट का दर्द समाप्त होता है।
२६. सिर दर्द:
कलौंजी के तेल को ललाट से कानों तक अच्छी तरह मलनें और आधा चम्मच कलौंजी का तेल १ चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से सिर दर्द ठीक होता है।
कलौंजी खाने के साथ सिर पर कलौंजी का तेल और जैतून का तेल मिलाकर मालिश करें। इससे सिर दर्द में आराम मिलता है और सिर से सम्बंधित अन्य रोगों भी दूर होते हैं।
कलौंजी के बीजों को गर्म कर पीस लें, चूर्ण कपड़े में बाँधकर सूंघने से सिर का दर्द दूर होता है।
कलौंजी और काला जीरा बराबर मात्रा में लेकर पानी में पीस कर माथे पर लेप करें। सर्दी जनित सिर दर्द दूर होता है।
२७. उल्टी:
आधा चम्मच कलौंजी का तेल और आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर सुबह-शाम पीने से उल्टी बंद होती है।
२८. हार्निया:
तीन चम्मच करेले का रस और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात को सोते समय पीने से हार्निया रोग ठीक होता है।
२९. मिर्गी के दौरे:
एक कप गर्म पानी में २ चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से मिर्गी के दौरे ठीक होते हैं। मिर्गी के रोगी को ठंडी तासीर की चीजें अमरूद, केला, सीताफल आदि नहीं खाना चाहिए।
३०. पीलिया:
एक कप दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर प्रतिदिन २ बार सुबह खाली पेट और रात को सोते समय १ सप्ताह तक लेने से पीलिया ठीक होता है। पीलिया के रोगी को मसालेदार व खट्टा आहार वर्जित है।
३१. कैंसर:
एक गिलास अंगूर के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में ३ बार पीने से कैंसर का रोग ठीक होता है। इससे आँतों का कैंसर, ब्लड कैंसर व गले का कैंसर आदि में भी लाभ मिलता है। इस रोग में रोगी को औषधि देने के साथ ही एक किलो जौ के आटे में २ किलो गेहूँ का आटा मिलाकर रोटी-दलिया रोगी को देन। आलू, अरबी, बैंगन का सेवन न करें। कैंसर के रोगी को कलौंजी डालकर हलवा बनाकर खाना चाहिए।
३२. दाँत:
कलौंजी का तेल और लौंग का तेल १-१ बूंद मिलाकर दाँत व मसूढ़ों पर लगाने से दर्द ठीक होता है। आग में सेंधा नमक जलाकर बारीक पीस लें और इसमें २-४ बूंदे कलौंजी का तेल डालकर दाँत साफ करने से दाँत से साफ-स्वस्थ रहते हैं।
दाँतों में कीड़े लगना व खोखलापन: रात को सोते समय कलौंजी के तेल में रुई को भिगोकर खोखले दाँतोंमें रखने से कीड़े नष्ट होते हैं।
३३. नींद:
रात में सोने से पहले आधा चम्मच कलौंजी का तेल और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से नींद अच्छी आती है।
३४. मासिकधर्म:
कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से मासिकधर्म शुरू होता है। इससे गर्भपात होने की संभावना नहीं रहती है। मासिकधर्म कष्ट से आता हो तो कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मासिकस्राव का कष्ट दूर होता है और बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है।
कलौंजी का चूर्ण ३ ग्राम शहद मिलाकर चाटने से ऋतुस्राव की पीड़ा नष्ट होती है।
मासिकधर्म की अनियमितता में लगभग आधा से डेढ़ ग्राम की मात्रा में कलौंजी के चूर्ण का सेवन करने से मासिकधर्म नियमित समय पर आने लगता है।
यदि मासिकस्राव बंद हो गया हो और पेट में दर्द रहता हो तो एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पीना चाहिए। इससे बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है।
कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन २-३ बार सेवन करने से मासिकस्राव शुरू होता है।
३५. गर्भवती महिलाओं को वर्जित:
गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं कराना चाहिए क्योंकि इससे गर्भपात हो सकता है।
३६. स्तनों का आकार:
कलौंजी आधे से एक ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से स्तनों का आकार बढ़ता है और स्तन सुडौल बनते है।
३७. स्तनों में दूध:
कलौंजी की आधे से १ ग्राम की मात्रा प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से स्तनों में दूध बढ़ता है।
३८. चेहरे व हाथ-पैरों की सूजन:
कलौंजी पीसकर लेप करने से हाथ पैरों की सूजन दूर होती है।
३९. बाल लम्बे व घने:
५० ग्राम कलौंजी १ लीटर पानी में उबाल कर बाल धोने से लम्बे व घने होते हैं।
४०. बेरी-बेरी:
बेरी-बेरी रोग में कलौंजी को पीसकर हाथ-पैरों की सूजन पर लगाने से सूजन मिटती है।
४१. भूख का अधिक लगना:
५० ग्राम कलौंजी को सिरके में रात को भिगो दें, सवेरे पीसकर शहद में मिलाकर ४-५ ग्राम की मात्रा सेवन करें। इससे भूख कम होति है।
४२. नपुंसकता:
कलौंजी का तेल और जैतून का तेल मिलाकर पीने से नपुंसकता दूर होती है।
४३. खाज-खुजली:
५० ग्राम कलौंजी के बीजों के पीसकार १० ग्राम बिल्व के पत्तों का रस व १० ग्राम हल्दी मिलाकर लेप बना लें। यह लेप खाज-खुजली में प्रतिदिन लगाने से रोग ठीक होता है।
४४. नाड़ी का छूटना:
नाड़ी छूटने के लिए आधे से १ ग्राम कलौंजी पीसकर रोगी को देने से शरीर का ठंडापन दूर होकर नाड़ी की गति तेज होती है। इस रोग में आधे से १ ग्राम कलौंजी हर ६ घंटे पर लें और ठीक होने पर इसका प्रयोग बंद कर दें। कलौंजी को पीसकर लेप करने से नाड़ी की जलन व सूजन दूर होती है।
४५. हिचकी:
एक ग्राम पिसी कलौंजी शहद में मिलाकर चाटने से हिचकी बंद होती है। कलौंजी आधा से एक ग्राम की मठ्ठे के साथ प्रतिदिन ३-४बार सेवन से हिचकी दूर होती है। कलौंजी का चूर्ण ३ ग्राम मक्खन के साथ खाने या ३ ग्राम कलौंजी पीसकर दही के पानी में मिलाकर खाने से हिचकी ठीक होती है।
४६. स्मरण शक्ति:
लगभग २ ग्राम की मात्रा में कलौंजी को पीसकर २ ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
४७. पेट की गैस:
कलौंजी, जीरा और अजवाइन बराबर मात्रा में पीसकर एक चम्मच खाना खाने के बाद लेने से पेट की गैस नष्ट होती है।
४८. पेशाब की जलन:
२५० मिलीलीटर दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर होती है।
***

सोमवार, 1 जुलाई 2024

स्वास्थ्य सलिला, मुँह में छाले

स्वास्थ्य सलिला
मुँह में छाले होम्योपैथिक उपचार 
*

मुँह में छाले होना एक सामान्य बात है। ये देखने में भले ही छोटे हों किंतु खाना-पीना हराम कर सकते हैं। छालों को जल्दी दूर करनेऔर उन्हें दोबारा होने से रोकने में होम्योपैथिक दवाएँ कारगर साबित होती हैं। मुँह के छालों के साथ एक और परेशानी है 'बार-बार पुनरावृत्ति। पहला छाला पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाता और नए छाले पहले से ही होने लगते हैं। मुँह के छाले (एफ़्थस अल्सर या कैंकर सोर) मुँह के अंदर उथले, दर्दनाक घाव होते हैं। वे चमकीले लाल क्षेत्र से घिरे दर्दनाक सफ़ेद या पीले रंग के अल्सर के रूप में दिखाई देते हैं। मुँह का अल्सर श्लेष्म झिल्ली में एक घाव है। अल्सर का विकास जलन से शुरू होता है जिसके बाद लाल धब्बा बनता है जो बाद में अल्सर में बदल जाता है। वे खाने, पीने और बात करने में असहजता पैदा कर सकते हैं। वे गैर-संक्रामक और सौम्य प्रकृति के होते हैं। अल्सर के साथ हल्का से मध्यम बुखार हो सकता है। अल्सर से होने वाला दर्द आमतौर पर एक सप्ताह में कम हो जाता है, और अंतिम उपचार 2-3 दिनों के भीतर होता है। मुँह के छाले होठों के अंदर, गालों के अंदर, मसूड़ों की जड़ में, जीभ के नीचे, तालू पर या जीभ पर हो सकते हैं।

यरल , बैक्टीरियल, फंगल, परजीवी संपर्क, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, दाँतों, फिलिंग्स, क्राउन, डेन्चर, ब्रेसेस, मुँह के अंदरूनी हिस्से के तीखे किनारों से होने वाली चोट, जलन आदि छालों (अल्सर) का कारण बन सकती है। खुरदरा खाना खाने या पेन, टूथपिक या नाखून जैसी नुकीली चीजें मुँह में डालने से श्लेष्म झिल्ली में दरार से अल्सर विकसित हो सकता है। कोई खाद्य पदार्थ मुँह में अधिक देर तक रखना, तंबाकू -शराब आदि का सेवन भी छालों का कारण होता है। एंटीबायोटिक्स, दर्द निवारक, स्टेरॉयड, एनाल्जेसिक, एनएसएआईडी (गैर-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स) जैसी दवाओं के दुष्प्रभाव छालों के रूप में हो सकते हैं। विटामिन बी12 और आयरन की कमी से अल्सर हो सकता है। हर्पीज सिम्प्लेक्स वायरस (एचएसवी-1) भी छालों का कारण हो सकता है।
मुँह के छालों के लिए होम्योपैथिक औषधि

मुँह के छालों के लिए एलोपैथिक उपचार में दर्द प्रबंधन और अल्सर के उपचार का समय घटाना शामिल है। दर्द को कम करने के लिए खारे पानी, एंटीसेप्टिक तरल पदार्थ, बेकिंग सोडा या स्टेरॉयड का उपयोग किया जाता है। बायोकेमिक दवा समस्या के कारण का प्राकृतिक रूप से इलाज करती है। मुँह के छालों के लिए मर्क सोल और बोरेक्स सामान्य दवाएँ हैं। होम्योपैथी दवाएँ बिना किसी दुष्प्रभाव के मुंह के छालों को जल्दी ठीक करने में मदद करती हैं।
मर्क्युरियस सोलुबिलिस: मुंह के छालों के लिए शीर्ष दवा

मर्क्यूरियस सॉल्युबिलिस क्विकसिल्वर के ट्रिट्यूरेशन से प्राप्त होती है। यह शरीर के हर अंग और ऊतक पर एक शक्तिशाली प्रभाव दिखाता है। मर्क सोल अल्सर को तेजी से ठीक करता है, दर्द कम करता है और बार-बार छाले होने को रोकता है। मुँह में लार के साथ जलन, पीली श्लेष्म झिल्ली, जीभ-होंठों और गालों के अंदर लाल सूजन वाले किनारों के साथ छोटे, सपाट अल्सर, ठंडे पानी की इच्छा आदि लक्षणों में यह दवा उपयुक्त है।
बोरेक्स वेनेटा

यह बोरेक्स सोडियम बाइकार्बोनेट से प्राप्त एक दवा है। सोडियम बाइकार्बोनेट का उपयोग पेट में अत्यधिक एसिड के प्रभाव को बेअसर करने के लिए किया जाता रह है। होम्योपैथी में अल्सर जिन्हें छूने पर या खाने के दौरान खून बहता है, मुँह में सूखापन और तेजी से अल्सर बनना, गालों की अंदरूनी सतह अल्सर होने और बच्चों के मुँहमें अल्सर होने पर बोरेक्स दें।
नाइट्रिकम एसिडम

यह नाइट्रिक एसिड के ट्रिट्यूरेशन से प्राप्त एक दवा है। यह शरीर के उन निर्गम स्थलों (आउटलेट) पर जहाँ श्लेष्म झिल्ली त्वचा से मिलती है, छले होने पर यह उपयुक्त है। नरम तालू, गालों के भीतर और जीभ के किनारों पर अल्सर हो, जब पूरा मुँह अल्सर से ग्रस्त हो और दर्द बहुत अधिक हो तो इसका उपयोग करें।नाइट्रिक एसिड के लिए मुख्य संकेत अल्सर में चुभनेवाला दर्द है। श्लेष्म झिल्ली आसानी से कटने-सूजने और घाव होने, चबाने में कष्ट होने पर नाइट्रिक एसिड उपयुक्त है।
म्यूरेटिक एसिडम

म्यूरेटिक एसिडम का उपयोग मुँह में छालों के कारण छेद होने पर, अल्सर का आधार काला होने, गालों और तालू के अंदर अत्यधिक लालिमा होने पर, मुँह में बहुत अधिक सूखापन होने पर किया जाता है। लाल, सूजनवाले और दर्दनाक अल्सर एफ्थस स्टोमेटाइटिस के परिणामस्वरूप होते हैं।
कलियम आयोडियम

कलियम आयोडम का उपयोग मुँह की श्लेष्म झिल्ली में अनियमित छाले होने पर करें। वे ऐसे दिखते हैं जैसे कि उन पर दूधिया परत हो। मुँह की अल्सरेटिव स्थिति के साथ-साथ, प्रचुर मात्रा में लार आना, मुँह से दुर्गंध आना, मुँह में गर्मी, सूजन, सूखापन और कड़वाहट आदि इस दवा की आवश्यकता को इंगित करते हैं।
नैट्रम म्यूरिएटिकम

नैट्रम म्यूर मुंह के छालों के लिए एक दवा है जो ओरल थ्रश के साथ विकसित होते हैं। मुँह, होंठ और जीभ का सूखापन, तरल पदार्थों के प्रति संवेदनशीलता, मुँह में दर्द, भोजन या तरल पदार्थ के अल्सर को छूने पर जलन, जीभ, मसूड़ों और गालों पर छोटे-छोटे समूह वाले छाले, जलन के साथ मुँह से बहुत अधिक पानी जैसा लार होने पर नैट्रम मूर लाभ प्रद होती है।

***

बुधवार, 22 मई 2024

मई २२, स्वास्थ्य, आयुर्वेद, दोहे, मुक्तिका, नवगीत, भूकंप, आपदा, केदार, नेपाल, बुंदेली

सलिल सृजन मई २२
*
सॉनेट
द्रोण
*
द्रोण छल कर पल रहे थे,
दास सत्ता मानती थी,
हमेशा अपमानती थी।
ऊगते दिख; ढल रहे थे।
पुत्र से मिथ्या कहा था,
शिष्य का काटा अँगूठा,
अहं पाला निरा झूठा।
ज्ञान बिसरा मन दहा था।
चक्रव्यूह कलंक गाथा
सत्पुरुष का झुका माथा
मोह सुत का उर बसा था।
शत्रु पर विश्वास गलती
बात पूरी सुन; न समझी
हुए विचलित मौत आई।
***
मिर्ची लगी तो .....?
मिर्च को आयुर्वेद में कुमऋचा के नाम से भी जाना जाता है। गुणों में लाल मिर्च और हरी मिर्च में कोई अंतर नहीं होता। आयुर्वेदिक मतानुसार लालमिर्च अग्निदीपक, दाहजनक, कफनाशक तथा अजीर्ण, विषूचिका, दारुणवृण, तंद्रा, मोह, प्रलाप, स्वरभेद और अरुचि को दूर करने वाली होती है।
आत्रेयसंहिता के अनुसार, "जिसकी देखने की, सुनने की ओर बोलने की शक्ति नष्ट हो गई हो, जिसकी नाड़ी भी डूब गई हो ऐसे सन्निपात के रोगी को मृत्यु के मुख में से छुड़ा कर मिर्ची जीवन दान देती है।"
हैजा में मिर्च के चूर्ण का आश्चर्यजनक लाभ लगभग सभी लोगों को पता है। दाढ़ के दर्द में मिर्ची का तेल उत्तम काम करता है। मिर्ची अफरा को भी नष्ट करती है। देशी चिकित्सक टायफस ज्वर, पार्यायिक ज्वर, जलोदर, गठिया, अजीर्ण और हैजे में इसका उपयोग करते हैं।
यूनानी मत के अनुसार मिर्ची कड़वी, चरपरी, कफ निस्सारक, मस्तिष्क की शिकायतों को दूर करनेवाली, स्नायविक वेदना में लाभदायक, पित्त को बढ़ाने वाली और गुदा स्थान सें जलन करनेवाली होती है।
मिर्च के तीखेपन से मिर्च के नुकसान तय होते हैं जैसे कश्मीरी मिर्च कम तिक्त होती है इसलिए ज्यादा खाई जा सकती है। शिमला मिर्च की सब्जी से हानि नहीं है क्योंकि उसमें तीखापन नहीं है। काली मिर्च से कई फायदे होते हैं। अधिक तीखी और ज्यादा खाने से मिर्च से अनेक बीमारियाँ होती हैं।
***
मुक्तिका:
आए हो
*
बहुत दिनों में मुझसे मिलने आए हो.
यह जाहिर है तनिक भुला न पाए हो..
मुझे भरोसा था-है, बिछुड़ मिलेंगे हम.
नाहक ही जा दूर व्यर्थ पछताए हो..
खलिश शूल की जो हँसकर सह लेती है.
उसी शाख पर फूल देख मुस्काए हो..
अस्त हुए बिन सूरज कैसे पुनः उगे?
जब समझे तब खुद से खुद शर्माए हो..
पूरी तरह किसी को कब किसने समझा?
समझ रहे यह सोच-सोच भरमाए हो..
ढाई आखर पढ़ बाकी पोथी भूली.
जब तब ही उजली चादर तह पाए हो..
स्नेह-'सलिल' में अवगाहो तो बात बने.
नेह नर्मदा कब से नहीं नहाए हो..
२२-५-२०११
***
मुक्तिका:
चाह में
*
नील नभ को समेटूँ निज बाँह में.
जी रहा हूँ आज तक इस चाह में..
पड़ोसी को कभी काना कर सके.
हुआ अंधा पाक दुर्मति-डाह में..
मंजिलें कब तक रहेंगी दूर यों?
बनेंगी साथी कभी तो राह में..
प्यार की गहराई मिलने में नहीं.
हुआ है अहसास बिछुड़न-आह में..
काट जंगल, खोद पर्वत, पूर सर.
किस तरह सुस्ता सकेंगे छाँह में?
रोज रुसवा हो रहा सच देखकर.
जल रहा टेसू सा हर दिल दाह में..
रो रही है खून के आँसू धरा.
आग बरसी अब के सावन माह में..
काश भिक्षुक मन पले पल भर 'सलिल'
देख पाये सकल दुनिया शाह में..
देख ऊँचाई न बौराओ 'सलिल'
दूब सम जम जाओ गहरी थाह में..
२२-५-२०११
***
बुंदेली ग़ज़ल
*
१.बात नें करियो
*
बात नें करियो तनातनी की.
चाल नें चलियो ठनाठनी की..
होस जोस मां गंवा नें दइयो
बाँह नें गहियो हनाहनी की..
जड़ जमीन मां हों बरगद सी
जी न जिंदगी बना-बनी की..
घर नें बोलियों तें मकान सें
अगर न बोली धना-धनी की..
सरहद पे दुसमन सें कहियो
रीत हमारी दना-दनी की..
================
२ बखत बदल गओ
*
बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।
सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।
*
लतियाउत तें कल लों जिनखों
बे नेतन सें हात जुरा रए।।
*
पाँव कबर मां लटकाए हैं
कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।
*
पान तमाखू गुटका खा खें
भरी जवानी गाल झुरा रए।।
*
झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें
सांच कई तेन अश्रु ढुरा रए।।
*
३ मंजिल की सौं...
*
मंजिल की सौं, जी भर खेल
ऊँच-नीच, सुख-दुःख. हँस झेल
रूठें तो सें यार अगर
करो खुसामद मल कहें तेल
यादों की बारात चली
नाते भए हैं नाक-नकेल
आस-प्यास के दो कैदी
कार रए साँसों की जेल
मेहनतकश खों सोभा दें
बहा पसीना रेलमपेल
*
४ काय रिसा रए
*
काय रिसा रए कछु तो बोलो
दिल की बंद किवरिया खोलो
कबहुँ न लौटे गोली-बोली
कओ बाद में पैले तोलो
ढाई आखर की चादर खों
अँखियन के पानी सें धो लो
मिहनत धागा, कोसिस मोती
हार सफलता का मिल पो लो
तनकउ बोझा रए न दिल पे
मुस्काबे के पैले रो लो
=============
५ बात करो ..
*
बात करो जय राम-राम कह।
अपनी कह औरन की सुन-सह।।
मन खों रखियों आपन बस मां।
मत लालच मां बरबस दह-बह।।
की की की सें का-का कहिए?
कडवा बिसरा, कछु मीठो गह।।
रिश्ते-नाते मन की चादर।
ढाई आखर सें धोकर-तह।।
संयम-गढ़ पै कोसिस झंडा
फहरा, माटी जैसो मत ढह।।
खैंच लगाम दोउ हातन सें
आफत घुड़वा चढ़ मंजिल गह।।
दिल दैबें खेन पैले दिलवर
दिल में दिलवर खें दिल बन रह।।
***
वह एक है, हम एक हों रस-छंद की तरह
करिए विमर्श नित्य परमानंद की तरह
जात क्या? औकात क्या? सच गुप्त चित्त में
आत्म में परमात्म ब्रह्मानंद की़ तरह
व्योम में राकेश औ' दिनेश साथ-साथ
बिखेरते उजास काव्यानंद की तरह
काया नहीं कायस्थ है निज आत्म तत्व ही
वह एक है, हम एक हैं आनंद की तरह
जो मातृशक्ति है उसे भी पूजिए हुजूर
बिन शक्ति शक्तिवान निरानंद की तरह
***
कविता की जय
हिंदीप्रेमी कलमकार मिल कविता की जय बोल रहे
दिल से दिल के बीच बनाकर पुल नित नव रस घोल रहे
सुख-दुख धूप-छाँव सम आते-जाते, पूछ सवाल रहे
शब्द-पुजारी क्या तुम खुद को कर्म तुला में तोल रहे?
को विद? है विद्वान कौन? यह कोविद उन्निस पूछ रहा
काहे को रोना?, कोरोना कहे न बाकी झोल रहे
खुद ही खुद का कर खयाल, घर में रह अमन-चैन से तू
सुरा हेतु मत दौड़ लगा तू, नहीं ढोल में पोल रहे
अनुशासित परउपकारी बन, कर सहायता निर्बल की
सज नहीं जो रहा 'सलिल' उसका तो बिस्तर गोल रहे
२२-५-२०२०
***
नवगीत:
.
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
पर्वत, घाटी या मैदान
सभी जगह मानव हैरान
क्रंदन-रुदन न रुकता है
जागा क्या कोई शैतान?
विधना हमसे क्यों रूठा?
क्या करुणासागर झूठा?
किया भरोसा क्या नाहक
पल भर में ऐसे टूटा?
डँसते सर्पों से सवाल
बार-बार फुँफकार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
कभी नहीं मारे भूकंप
कभी नहीं हांरे भूकंप
एक प्राकृतिक घटना है
दोष न स्वीकारे भूकंप
दोषपूर्ण निर्माण किये
मानव ने खुद प्राण दिए
वन काटे, पर्वत खोदे
खुद ही खुद के प्राण लिये
प्रकृति के अनुकूल जिओ
मात्र एक उपचार
.
नींव कूटकर खूब भरो
हर कोना मजबूत करो
अलग न कोई भाग रहे
एकरूपता सदा धरो
जड़ मत हो घबराहट से
बिन सोचे ही मत दौड़ो
द्वार-पलंग नीचे छिपकर
राह काल की भी मोड़ो
फैलाता अफवाह जो
उसको दो फटकार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
बिजली-अग्नि बुझाओ तुरत
मिले चिकित्सा करो जुगत
दीवारों से लग मत सो
रहो खुले में, वरो सुगत
तोड़ो हर कमजोर भवन
मलबा तनिक न रहे अगन
बैठो जा मैदानों में
हिम्मत देने करो जतन
दूर करो सब दूरियाँ
गले लगा दो प्यार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
***
नवगीत:
.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
वसुधा मैया भईं कुपित
डोल गईं चट्टानें.
किसमें बूता
धरती कब
काँपेगी अनुमाने?
देख-देख भूडोल
चकित क्यों?
सीखें रहना साथ.
अनसमझा भूकम्प न हो अब
मानवता का काल.
पृथ्वी पर भूचाल
हुए, हो रहे, सदा होएंगे.
हम जीना सीखेंगे या
हो नष्ट बिलख रोएँगे?
जीवन शैली गलत हमारी
करे प्रकृति से बैर.
रहें सुरक्षित पशु-पक्षी, तरु
नहीं हमारी खैर.
जैसी करनी
वैसी भरनी
फूट रहा है माथ.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
टैक्टानिक हलचल को समझें
हटें-मिलें भू-प्लेटें.
ऊर्जा विपुल
मुक्त हो फैले
भवन तोड़, भू मेटें.
रहे लचीला
तरु ना टूटे
अड़ियल भवन चटकता.
नींव न जो
मजबूत रखे
वह जीवन-शैली खोती.
उठी अकेली जो
ऊँची मीनार
भग्न हो रोती.
वन हरिया दें, रुके भूस्खलन
कम हो तभी विनाश।
बंधन हो मजबूत, न ढीले
रहें हमारे पाश.
छूट न पायें
कसकर थामें
'सलिल' हाथ में हाथ
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
***
हाइकु सलिला:
संजीव
.
सागर माथा
नत हुआ आज फिर
देख विनाश.
.
झुक गया है
गर्वित एवरेस्ट
खोखली नीव
.
मनमानी से
मानव पराजित
मिटे निर्माण
.
अब भी चेतो
न करो छेड़छाड़
प्रकृति संग
.
न काटो वृक्ष
मत खोदो पहाड़
कम हो नाश
.
न हो हताश
करें नव निर्माण
हाथ मिलाएं.
.
पोंछने अश्रु
पीड़ितों के चलिए
न छोड़ें कमी
.....
जबलपुर भूकंप की बरसी पर
दोहा गीत :
करो सामना
*
जब-जब कंपित भू हुई
हिली आस्था-नीव
आर्तनाद सुनते रहे
बेबस करुणासींव
न हारो करो सामना
पूर्ण हो तभी कामना
*
ध्वस्त हुए वे ही भवन
जो अशक्त-कमजोर
तोड़-बनायें फिर उन्हें
करें परिश्रम घोर
सुरक्षित रहे जिंदगी
प्रेम से करो बन्दगी
*
संरचना भूगर्भ की
प्लेट दानवाकार
ऊपर-नीचे चढ़-उतर
पैदा करें दरार
रगड़-टक्कर होती है
धरा धीरज खोती है
*
वर्तुल ऊर्जा के प्रबल
करें सतत आघात
तरु झुक बचते, पर भवन
अकड़ पा रहे मात
करें गिर घायल सबको
याद कर सको न रब को
*
बस्ती उजड़ मसान बन
हुईं प्रेत का वास
बसती पीड़ा श्वास में
त्रास ग्रस्त है आस
न लेकिन हारेंगे हम
मिटा देंगे सारे गम
*
कुर्सी, सिल, दीवार पर
बैंड बनायें तीन
ईंट-जोड़ मजबूत हो
कोने रहें न क्षीण
लचीली छड़ें लगाओ
बीम-कोलम बनवाओ
*
दीवारों में फंसायें
चौखट काफी दूर
ईंट-जुड़ाई तब टिके
जब सींचें भरपूर
रैक-अलमारी लायें
न पल्ले बिना लगायें
*
शीश किनारों से लगा
नहीं सोइए आप
दीवारें गिर दबा दें
आप न पायें भाँप
न घबरा भीड़ लगायें
सजग हो जान बचायें
*
मेज-पलंग नीचे छिपें
प्रथम बचाएं शीश
बच्चों को लें ढांक ज्यों
हुए सहायक ईश
वृद्ध को साथ लाइए
ईश-आशीष पाइए
१३-५-२०१५
***
नवगीत:
.
जो हुआ सो हुआ
.
बाँध लो मुट्ठियाँ
चल पड़ो रख कदम
जो गये, वे गये
किन्तु बाकी हैं हम
है शपथ ईश की
आँख करना न नम
नीलकण्ठित बनो
पी सको सकल गम
वृक्ष कोशिश बने
हो सफलता सुआ
.
हो चुका पूर्व में
यह नहीं है प्रथम
राह कष्टों भरी
कोशिशें हों न कम
शेष साहस अभी
है बहुत हममें दम
सूर्य हैं सच कहें
हम मिटायेंगे तम
उठ बढ़ें, जय वरें
छोड़कर हर खुआ
.
चाहते क्यों रहें
देव का हम करम?
पालते क्यों रहें
व्यर्थ मन में भरम?
श्रम करें तज शरम
साथ रहना धरम
लोक अपना बनाएंगे
फिर श्रेष्ठ हम
गन्स जल स्वेद है
माथ से जो चुआ
मंगलवार, २८ अप्रैल २०१५
***
नवगीत:
.
धरती काँपी,
नभ थर्राया
महाकाल का नर्तन
.
विलग हुए भूखंड तपिश साँसों की
सही न जाती
भुज भेंटे कंपित हो भूतल
भू की फटती छाती
कहाँ भू-सुता मातृ-गोद में
जा जो पीर मिटा दे
नहीं रहे नृप जो निज पीड़ा
सहकर धीर धरा दें
योगिनियाँ बनकर
इमारतें करें
चेतना-कर्तन
धरती काँपी,
नभ थर्राया
महाकाल का नर्तन
.
पवन व्यथित नभ आर्तनाद कर
आँसू धार बहायें
देख मौत का तांडव चुप
पशु-पक्षी धैर्य धरायें
ध्वंस पीठिका निर्माणों की,
बना जयी होना है
ममता, संता, सक्षमता के
बीज अगिन बोना है
श्वास-आस-विश्वास ले बढ़े
हास, न बचे विखंडन
सोमवार, २७ अप्रैल २०१५
***
दोहा सलिला:
.
रूठे थे केदार अब, रूठे पशुपतिनाथ
वसुधा को चूनर हरी, उढ़ा नवाओ माथ
.
कामाख्या मंदिर गिरा, है प्रकृति का कोप
शांत करें अनगिन तरु, हम मिलकर दें रोप
.
भूगर्भीय असंतुलन, करता सदा विनाश
हट संवेदी क्षेत्र से, काटें यम का पाश
.
तोड़ पुरानी इमारतें, जर्जर भवन अनेक
करे नये निर्माण दृढ़, जाग्रत रखें विवेक
.
गिरि-घाटी में सघन वन, जीवन रक्षक जान
नगर बसायें हम विपुल, जिनमें हों मैदान
.
नष्ट न हों भूकम्प में, अपने नव निर्माण
सीखें वह तकनीक सब, भवन रहें संप्राण
.
किस शक्ति के कहाँ पर, आ सकते भूडोल
ज्ञात, न फिर भी सजग हम, रहे किताबें खोल
.
भार वहन क्षमता कहाँ-कितनी लें हम जाँच
तदनसार निर्माण कर, प्रकृति पुस्तिका बाँच
***
नवगीत:
.
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
भूगर्भी चट्टानें सरकेँ,
कांपे धरती.
ऊर्जा निकले, पड़ें दरारें
उखड़े पपड़ी
हिलें इमारत, छोड़ दीवारें
ईंटें गिरतीं
कोने फटते, हिल मीनारें
भू से मिलतीं
आफत बिना बुलाये आये
आँख दिखाये
सावधान हो हर उपाय कर
जान बचायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
द्वार, पलंग तले छिप जाएँ
शीश बचायें
तकिया से सर ढाँकें
घर से बाहर जाएँ
दीवारों से दूर रहें
मैदां अपनाएँ
वाहन में हों तुरत रोक
बाहर हो जाएँ
बिजली बंद करें, मत कोई
यंत्र चलायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
बाद बड़े झटकों के कुछ
छोटे आते हैं
दिवस पाँच से सात
धरा को थर्राते हैं
कम क्षतिग्रस्त भाग जो उनकी
करें मरम्मत
जर्जर हिस्सों को तोड़ें यह
अतिआवश्यक
जो त्रुटिपूर्ण भवन उनको
फिर गिरा बनायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
है अभिशाप इसे वरदान
बना सकते हैं
हटा पुरा निर्माण, नव नगर
गढ़ सकते हैं.
जलस्तर ऊपर उठता है
खनिज निकलते
भू संरचना नवल देख
अरमान मचलते
आँसू पीकर मुस्कानों की
फसल उगायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
२२-५-२०१७
***
गीत
*
पूजन से
पापों का क्षय
हो पाता तो
सारे पापी
देव पूजकर तर जाते।
गुप्त न रहता चित्र
मनुज के कर्मों का
गीतकार
नित हत्यारों के गुण गाते ।
*
कर्मयोग की सीख, न अर्जुन को मिलती
सूर्य न करता मेहनत, साँझ नहीं ढलती।
बाँझ न होती नींव, न दबकर चुप रहती-
महक बिखेर न कली, भ्रमर खातिर खिलती।
सृजन अगर
तापों का भय
हर पाता तो,
सारे सर्जक
निहित सर्जना
घर लाते।
*
स्वेद न गंगा-जल सम, पूजा गया अगर
दौलत देख प्रेम भी, भूला गया अगर।
वादों को 'जुमला' कह, जन विश्वास-छला
लोकतंत्र की मीन निगल, जन-द्रोह-मगर
पूछेगा
जनप्रतिनिधि
आम जनों जैसा
रहन-सहन, आचरण
नहीं क्यों अपनाते?
*
संसद आकर स्नान, कुम्भ में क्यों न करे?
मतभेदों को सलिल-धार में क्यों न तजे?
पेशवाई में 'कल' की 'कल' को 'आज' वरे-
ख़ास न क्यों वह जो जनगण की पीर हरे?
प्रश्नों के उत्तर
विधायिका
खोजे तो
विनत प्रशासक
नागरिकों के दर जाते
***
२२.५.२०१६
मुक्तिका
*
घुलें-मिल, बनें हम
न मैं-तुम, रहें अब
.
कहो तुम, सुनें हम
मिटें दूरियाँ सब
.
सभी सच, सुनें हम
न कोई नबी-रब
.
बढ़ो तुम, बढ़ें हम
मिलें मंज़िलें तब
.
लिखो तुम, पढ़ें हम
रहें चुप, सुनें जब
.
सिया-सत वरें हम
सियासत अजब ढब
.
बराबर हुए हम
छिना मत, नहीं दब
.
[दस मात्रिक दैशिक छन्द,
मापनी- १२ ११ १२११,
रुक्न- फऊलुन फऊलुन]
१०-५-२०१६, हरदोई
***
नवगीत:
प्रयासों की अस्थियों पर
*
प्रयासों की अस्थियों पर
सुसाधन के मांस बिन
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
*
सांस का व्यापार
थमता अनथमा सा
आस हिमगिरि पर
निरंतर जलजला सा.
अंकुरों को
पान गुटखा लीलता नित-
मुँह छिपाता नीलकंठी
फलसफा सा.
ब्रांडेड मँहगी दवाई
अस्पताली भव्यताएँ
रोग को मुद्रा-तुला पर तौलती.
प्रयासों की अस्थियों पर
सुसाधन के मांस बिन
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
*
वीतरागी चिकित्सक को
रोग से लेना, न देना
कई दर्जन टेस्ट
सालों औषधि, राहत न देना.
त्रास के तूफ़ान में
बेबस मरीजों को खिलौना-
बना खेले निष्ठुरी
चाबे चबेना.
आँख पीड़ा-हताशा के
अनलिखे संवाद
पल-पल मौन रहकर बोलती.
प्रयासों की अस्थियों पर
सुसाधन के मांस बिन
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
२२-५-२०१५
***
मुक्तिका:
चाह में
*
नील नभ को समेटूँ निज बाँह में.
जी रहा हूँ आज तक इस चाह में..

पड़ोसी को कभी काना कर सके.
हुआ अंधा पाक दुर्मति-डाह में..

मंजिलें कब तक रहेंगी दूर यों?
बनेंगी साथी कभी तो राह में..

प्यार की गहराई मिलने में नहीं.
हुआ है अहसास बिछुड़न-आह में..

काट जंगल, खोद पर्वत, पूर सर.
किस तरह सुस्ता सकेंगे छाँह में?

रोज रुसवा हो रहा सच देखकर.
जल रहा टेसू सा हर दिल दाह में..

रो रही है खून के आँसू धरा.
आग बरसी अब के सावन माह में..

काश भिक्षुक मन पले पल भर 'सलिल'
देख पाये सकल दुनिया शाह में..

देख ऊँचाई न बौराओ 'सलिल'
दूब सम जम जाओ गहरी थाह में..
२२.५.२०११
***
मुक्तिका:
आए हो
*
बहुत दिनों में मुझसे मिलने आए हो.
यह जाहिर है तनिक भुला न पाये हो..
मुझे भरोसा था-है, बिछुड़ मिलेंगे हम.
नाहक ही जा दूर व्यर्थ पछताए हो..
खलिश शूल की जो हँसकर सह लेती है.
उसी शाख पर फूल देख मुस्काए हो..
अस्त हुए बिन सूरज कैसे पुनः उगे?
जब समझे तब खुद से खुद शर्माए हो..
पूरी तरह किसी को कब किसने समझा?
समझ रहे यह सोच-सोच भरमाए हो..
ढाई आखर पढ़ बाकी पोथी भूली.
जब तब ही उजली चादर तह पाए हो..
स्नेह-'सलिल' में अवगाहो तो बात बने.
नेह नर्मदा कब से नहीं नहाए हो..
***
स्वास्थ्य सलिला
*
रोज संतरा खाइए, किडनी रहे निरोग.
पथरी घुलकर निकलती, आप करें सुख-भोग..
*
सेवन से तरबूज के, मिले शक्ति-भंडार.
परा बैंगनी किरण का, करे यही प्रतिकार.
*
कब्ज़ मिटा सी विटामिन, देते हैं भरपूर.
रोज़ पपैया-गुआवा, जी भर खांय जरूर.
*
पौरुष ग्रंथिज रोग को, रखता तन से दूर.
रोज टमाटर खाइए, स्वाद रुचे भरपूर..
*
अजवाइन-जैतून का, तेल बढ़ाये आब.
बढ़ा हुआ घट जायेगा, 'सलिल' रक्त का दाब..
*
खा ब्रोकोली (गोभी) मूंगफली, बनिए सेहतमंद.
रक्त-शर्करा नियंत्रित , इंसुलीन हो बंद..
*
बड़ी आँत का कैंसर, उराघात से जूझ.
सेब किवी नित खाइए, खनिज विटामिन बूझ.
*
खा हिसाल-शहतूत फल, रोग भगाएँ आप.
प्रतिरोधक ताकत बढ़े, दूर रहेगा ताप..
*
अगर फेंफड़े में हुआ, हो कैंसर का कष्ट.
नारंगी गहरी हरी, सब्जी होती इष्ट.
*
बंधा गोभी से मिले, अल्सर में आराम.
ज़ख्म ठीक हो शीघ्र ही, यदि न विधाता वाम..
*
अगर दस्त-अतिसार से, आप हो रहे त्रस्त.
खाएं केला-सेब भी, पस्त न हों, हों मस्त..
*
नाशपातियाँ खाइए, कम हो कोलेस्ट्रोल.
धमनी में अवरोध का, है इलाज अनमोल..
(एवाकाडो = नाशपाती की तरह का ऊष्णकटिबंधीय फल)
*
अनन्नास खा-रस पियें, हड्डी हो मजबूत.
टूटी हड्डी शीघ्र जुड़, दे आराम अकूत..
*
याददाश्त गर दे दगा, बातें रहें न याद.
सेवन करिए शुक्ति का, समय न कर बर्बाद ..
(शुक्ति = सीप)
*
सर्दी-कोलेस्ट्रोल जब बढ़े, न हों हैरान.
लहसुन का सेवन करे, सस्ता-सुलभ निदान..
*
मिर्च खाइए तो रहे, बढ़ा हुआ कफ शांत.
ध्यान पेट का भी रखें, हो ना क्रुद्ध-अशांत..
*
गेहूँ चोकर खाइए, पत्ता गोभी संग.
वक्ष कैंसर में मिले, लाभ-आप हों दंग
*
करे नाक में दम दमा, 'सलिल' न हो आराम.
खा-छाती पर लगा लें, प्याज़ करें विश्राम..
*
संधिवात-गठिया करे, अगर आपको तंग.
मछली का सेवन करें, मन में जगे उमंग..
*
उदर कष्ट से मुक्ति हो, केला खाएं आप.
अदरक उबकाई मिटा, हरती है संताप..
*
मूत्राशय संक्रमण में, हों न आप हैरान.
क्रेनबैरी का रस पियें, आए जां में जान..
(क्रेनबैरी = करौंदा)
**
मछली-सेवन से 'सलिल', शीश-दर्द हो दूर.
दर्द और सूजन हरे, अदरक गुण भरपूर...
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हर ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
*
हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढ़े सुयोग..
*
नींद न आए-अनिद्रा, करे अगर हैरान.
शुद्ध शहद सेवन करें, देखें स्वप्न सुजान..
२२-५-२०१०
***