अलंकार सलिला ३७ 
वीप्सा अलंकार 
*
*
कविता है सार्थक वही, जिसका भाव स्वभाव।
वीप्सा घृणा-विरक्ति है, जिससे कठिन निभाव।।
अलंकार वीप्सा वहाँ, जहाँ घृणा-वैराग।
घृणा हरे सुख-चैन भी, भर जीवन में आग।।
जहाँ शब्द की पुनरुक्ति द्वारा घृणा या विरक्ति के भाव की अभिव्यक्ति की जाती है वहाँ वीप्सा अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. शिव शिव शिव कहते हो यह क्या?
    ऐसा फिर मत कहना। 
    राम राम यह बात भूलकर,
    मित्र कभी मत गहना।।        
२. राम राम यह कैसी दुनिया?
    कैसी तेरी माया?
    जिसने पाया उसने खोया,
    जिसने खोया पाया।।
३. चिता जलाकर पिता की, हाय-हाय मैं दीन।
    नहा नर्मदा में हुआ, यादों में तल्लीन।।
४  उठा लो ये दुनिया, जला दो ये दुनिया,
    तुम्हारी है तुम ही सम्हालो ये दुनिया।
    ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?
    ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?'
५. मेरे मौला, प्यारे मौला, मेरे मौला...
    मेरे मौला बुला ले मदीने मुझे,
    मेरे मौला बुला ले मदीने मुझे।
६. नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे ढूँढूँ रे सँवरिया!
   
    पिया-पिया  रटते मैं तो हो गयी रे बँवरिया!!
७. मारो-मारो मार भगाओ आतंकी यमदूतों को। 
    घाट मौत के तुरत उतारो दया न कर अरिपूतों को।।
वीप्सा में शब्दों के दोहराव से घृणा या वैराग्य के भावों की सघनता दृष्टव्य है.
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कविता है सार्थक वही, जिसका भाव स्वभाव।
वीप्सा घृणा-विरक्ति है, जिससे कठिन निभाव।।
अलंकार वीप्सा वहाँ, जहाँ घृणा-वैराग।
घृणा हरे सुख-चैन भी, भर जीवन में आग।।
जहाँ शब्द की पुनरुक्ति द्वारा घृणा या विरक्ति के भाव की अभिव्यक्ति की जाती है वहाँ वीप्सा अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. शिव शिव शिव कहते हो यह क्या?
    ऐसा फिर मत कहना। 
    राम राम यह बात भूलकर,
    मित्र कभी मत गहना।।        
२. राम राम यह कैसी दुनिया?
    कैसी तेरी माया?
    जिसने पाया उसने खोया,
    जिसने खोया पाया।।
३. चिता जलाकर पिता की, हाय-हाय मैं दीन।
    नहा नर्मदा में हुआ, यादों में तल्लीन।।
४  उठा लो ये दुनिया, जला दो ये दुनिया,
    तुम्हारी है तुम ही सम्हालो ये दुनिया।
    ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?
    ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?'
५. मेरे मौला, प्यारे मौला, मेरे मौला...
    मेरे मौला बुला ले मदीने मुझे,
    मेरे मौला बुला ले मदीने मुझे।
६. नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे ढूँढूँ रे सँवरिया!
    पिया-पिया  रटते मैं तो हो गयी रे बँवरिया!!
७. मारो-मारो मार भगाओ आतंकी यमदूतों को। 
    घाट मौत के तुरत उतारो दया न कर अरिपूतों को।।
वीप्सा में शब्दों के दोहराव से घृणा या वैराग्य के भावों की सघनता दृष्टव्य है.
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