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बुधवार, 1 दिसंबर 2021

Saraswati Prayer

Saraswati Prayer
Acharya Sanjiv Verma 'Salil'
*
O the Origin of Knowledge, Art and wisdom.
We welcome, bless us, please do come.
ज्ञान कला मति की उद्गम हे!
स्वागत दो आशीष हमें आ। 
You are the root of love and affection.
You are the key of all creative action.
तुम्हीं मूल हो स्नेह-प्यार की 
कुंजी हो तुम सृजन कार्य की।  
O lotus eyed, lotus faced, lotus seated mother.
Inspire us all to live joyfully with each other.
हे कमलाक्षी! पद्ममुखी!, कमलासनी मैया 
प्रेरित कर सानंद रह सकें साथ-साथ हम।  
We worship your divinity, bow our heads.
O Mother! help us to keep high heads.
हम पूजें दिव्यता तुम्हारी, शीश नवाए 
हे माँ! रो सहायक; हों हम शीश उठाए।  
Fill our hearts with all good feelings.
Let us be honest in all our dealings.
भरो हमारे ह्रदयों में भावना मधुर माँ। 
हम हों निष्ठावान सभी अपने कार्यों में। 
*



बुधवार, 3 जनवरी 2018

pustak mela dehli men- sanjiv verma

दिल्ली पुस्तक मेले में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
* दिनाँक ९ जनवरी: जबलपुर से प्रस्थान गोंडवाना एक्सप्रेस बी - ५७, शाम १५.० बजे।
* दिनाँक १० जनवरी: प्रात : ६ बजे हज़रत निज़ामुद्दीन, दिल्ली । श्री हरेराम नेमा समीप द्वारा सम्पादित 'समकालीन ग़ज़लकार: एक अध्ययन खंड २ ' संकलन के लोकार्पण कार्यक्रम [१२ ए स्टाल नंबर १००-१०१ भावना प्रकाशन] में सहभागिता।
* दिनाँक ११ जनवरी: श्री ॐ प्रकाश शुक्ल रचित काव्य संग्रह 'गाँधी और उनके बाद' के विमोचन समारोह में सहभागिता।
* दिनाँक १२ जनवरी: डॉ. भावना शुक्ल लिखित 'साहित्य साधक और साहित्य दृष्टि' तथा 'सोच के दायरे' के विमोचन समारोह में सहभागिता [१२ ए स्टाल नंबर १००-१०१ भावना प्रकाशन] में सहभागिता।
* दिनाँक १३ जनवरी: कविता कोष लोक रंग में सहभागिता शाम ६ बजे, हाल १२ लेखक मंच। (बुंदेली, छतीसगढ़ी, मालवी, राजस्थानी)
* दिनाँक १४ जनवरी: श्री योगराज प्रभाकर द्वारा सम्पादित लघु कथा पत्रिका के विमोचन समारोह में सहभागिता, १२ नंबर ११ बजे से ४ बजे।
* दिनाँक १५ जनवरी: भाषा सहोदरी के लघुकथा सम्मेलन में संबोधन- हंसराज कोलेज नई दिल्ली.
संपर्क क्रांति एक्सप्रेस १७.२५ से निज़ामुद्दीन से वापिसी।
मेरा संपर्क ७९९९५५९६१८ या ९४२५१८३२४४ होगा।
* मेरे कार्यक्रम की जानकारी श्री ओमप्रकाश शुक्ल ९७१७६३४६३१ / ९६५४४७७१२ या श्री ॐ प्रकाश यति ९९९९०७५९४२ / ९४१०४७६१९३ से प्राप्त की जा सकेगी। 
(दत्त भवन, न्यू अशोक नगर मेट्रो स्टेशन, नई दिल्ली ११००९६)

मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

critic: aamacho bastar novel -sanjiv verma 'salil'

कृति चर्चा:
अबूझे को बूझता स्वर : ''आमचो बस्तर''
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
(कृति विवरण: आमचो बस्तर, उपन्यास, राजीव रंजन प्रसाद, डिमाई आकार, बहुरंगा पेपरबैक  आवरण, पृष्ठ ४१४, २९५ रु., यश पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
*
Rajeev Ranjan Prasad's profile photo                  

                  आमचो बस्तर देश के उस भाग के गतागत पर केन्द्रित औपन्यासिक कृति है जिसे  बस्तर कहा जाता है, जिसका एक भाग अबूझमाड़ आज भी सहजगम्य नहीं है और जो नक्सलवाद की विभीषिका से सतत जूझ रहा है। रूढ़ अर्थों में इसे उपन्यास कहने से परहेज किया जा सकता है क्योंकि यह उपन्यास के कलेवर में अतीत का आकलन, वर्त्तमान का निर्माण तथा भावी के नियोजन की त्रिमुखी यात्रा एक साथ कराता है। इस कृति में उपन्यास, कहानियां, लघुकथाएं, वार्ता प्रसंग, रिपोर्ताज, यात्रा वृत्त, लोकजीवन, जन संस्कृति  तथा चिंतन के ९ पक्ष इस तरह सम्मिलित हैं कि पाठक पूरी तरह कथा का पात्र हो जाता है। हमारे पुराण साहित्य की तरह यह ग्रन्थ भी वास्तविकताओं का व्यक्तिपरक या घटनापरक वर्णन करते समय मानव मूल्यों, आदर्शों, भूलों आदि का तटस्थ भाव से आकलन ही नहीं करता है अपितु अँधेरे की सघनता से भयभीत हुए बिना प्रकाश की प्राप्ति के प्रति आश्वस्ति का भाव भी जगाता है।

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पश्चात् बस्तर तथा छत्तीसगढ़ के अन्य अंचलों के बारे में लिखने की होड़ सी लग गयी है। अधिकांश कृतियों में अपुष्ट अतिरेकी भावनात्मक लिजलिजाहट से बोझिल अपचनीय कथ्य, अप्रामाणिक तथ्य, विधा की न्यून समझ तथा भाषा की त्रुटियों से उन्हें पढ़ना किसी सजा की तरह लगता रहा है। आमचो बस्तर का वाचन पूर्वानुभवों के सर्वथा विपरीत प्रामाणिकता, रोचकता, मौलिकता, उद्देश्यपरकता तथा नव दृष्टि से परिपूर्ण होने के कारण सुखद ही नहीं अपनत्व से भरा भी लगा।

लगभग ४० वर्ष पूर्व इस अंचल को देखने-घूमने की सुखद स्मृतियों के श्यामल-उज्जवल पक्ष कुछ पूर्व विदित होने पर भी यथेष्ठ नयी जानकारियाँ मिलीं। देखे जा चुके स्थलों को उपन्यासकार की नवोन्मेषी दृष्टि से देखने पर पुनः देखने की इच्छा जागृत होना कृति की सफलता है। अतीत के गौरव-गान के साथ-साथ त्रासदियों के कारकों का विश्लेषण, आम आदमी के नज़रिए से घटनाओं को समझने और चक्रव्यूहों को बूझने का लेखकीय कौशल राजीव रंजन का वैशिष्ट्य है।




राजतन्त्र से प्रजातंत्र तक की यात्रा में लोकमानस के साथ सत्ताधीशों के खिलवाड़, पद-मोह के कारण देश के हितों की अदेखी, मूल निवासियों का सतत शोषण, कुंठित और आक्रोशित जन-मन के विद्रोह को बगावत कह कर कुचलने के कुप्रयास, भूलों से कुछ न सीखने की जिद, अपनों की तुलना में परायों पर भरोसा, अपनों द्वारा विश्वासघात और सबसे ऊपर आमजनों की लोक हितैषी कालजयी जिजीविषा - राजीव जी की नवोन्मेषी दृष्टि इन तानों-बानों से ऐसा कथा सूत्र बुनते हैं जो पाठक को सिर्फ बाँधे नहीं रखता अपितु प्रत्यक्षदर्शी की तरह घटनाओं का सहभागी होने की प्रतीति कराते हैं।

बस्तर में नक्सलवाद का नासूर पैदा करनेवाले राजनेताओं और प्रशासकों को यह कृति परोक्षतः ही सही कटघरे में खड़ा करती है। पद-मद में लोकनायक प्रवीरचंद्र भंजदेव को गोलियों से भून्जकर जन-आस्था का क़त्ल करनेवाले काल की अदालत में दोषी हैं- इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि देश की आजादी के समय हैदराबाद और कुछ अन्य रियासतें अपना भारत में सम्मिलन के विरोध में थीं। प्रवीरचंद्र जी को बस्तर को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्ज मांगने के लिए मनाने का प्रयास किया गया। उनहोंने न केवल प्रस्ताव ठुकराया अपितु अपने मित्र प्रसिद्ध  साहित्यकार  स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलाहरीवी' के माध्यम से द्वारिका प्रसाद मिश्र को सन्देश भिजवाया ताकि नेहरु-पटेल आदि को अवगत कराया जा सके। फलतः राजाओं का कुचक्र विफल हुआ। यही मिश्र मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हुए तो भंजदेव को अकारण राजनैतिक स्वार्थ वश गोलियों का शिकार बनवा दिया। केर-बेर का संग यह की कलेक्टर के रूप में भंजदेव की लोकमान्यता को अपने अहंकार पर चोट माननेवाले नरोन्हा ने कमिश्नर के रूप में सरकार को भ्रामक और गलत जानकारियां देकर गुमराह किया। जनश्रुति यह भी है कि इस षड्यंत्र में सहभागी निम्नताम से उच्चतम पदों पर आसीन हर एक को कुछ समय के भीतर नियति ने दण्डित किया, कोई भी सुखी नहीं रह सका।

प्रशंसनीय है कि लेखक व्यक्तिगत सोच को परे रखकर निष्पक्ष-तटस्थ भाव से कथा कहा सका है। बस्तर निवासी होने पर भी वे पूर्वाग्रह या दुराग्रह से मुक्त होकर पूरी सहजता से कथ्य को सामने ला सके हैं। वस्तुतः युवा उपन्यासकार अपनी प्रौढ़ दृष्टि और संतुलित विवेचन के लिए साधुवाद का पात्र है।

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२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष: ९४२५१ ८३२४४  

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

kriti charcha: O geet ke garun -sanjiv verma 'salil'




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सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

 दोहा सलिला:                                                                                          
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दीवाली के संग : दोहा का रंग                                                                                                            

संजीव 'सलिल'
*
सरहद पर दे कटा सर, हद अरि करे न  पार.
राष्ट्र-दीप पर हो 'सलिल', प्राण-दीप बलिहार..
*
आपद-विपदाग्रस्त को, 'सलिल' न जाना भूल.
दो दीपक रख आ वहाँ, ले अँजुरी भर फूल..
*
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??
*
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
*
दीप जला, जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
दीप बुझा, चुप फेंकना, कर्म क्रूर-अक्रूर..
*
चलते रहना ही सफर, रुकना काम-अकाम.
जलते रहना ज़िंदगी, बुझना पूर्ण विराम.
*
सूरज की किरणें करें नवजीवन संचार.
दीपक की किरणें करें, धरती का सिंगार..
*
मन देहरी ने वर लिये, जगमग दोहा-दीप.
तन ड्योढ़ी पर धर दिये, गुपचुप आँगन लीप..
*
करे प्रार्थना, वंदना, प्रेयर, सबद, अजान.
रसनिधि है रसलीन या, दीपक है रसखान..
*
मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.
दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..
*
मद्यप परवाना नहीं, समझ सका यह बात.
साक़ी लौ ले उजाला, लाई मरण-सौगात..
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com








शुक्रवार, 25 जून 2010

हाइकु का रंग मैथिली के सँग --- संजीव 'सलिल'

हाइकु का रंग मैथिली के सँग
संजीव 'सलिल'





 










स्नेह करब
की सगर दुनिया
देवक श्रृष्टि

प्रेमक संग
मिलु सब संग ज्यों
की नफरत


पान मखान
मधुबनी पेंटिंग
अछिए शान

सम्पूर्ण क्रान्ति
जय प्रकाश बाबू
बिसरी गेल
चले आज
विकासक बयार
नीक धारणा

चलि परल
विकासक रस्ता
तS बिहारी बाबू

*
चलय  आज
विकासक बयार
नीक धारणा
*

शनिवार, 12 जून 2010

कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना का भावानुवाद: ---संजीव 'सलिल'

कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना का भावानुवाद:
संजीव 'सलिल'
*

















 
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रुद्ध अगर पाओ कभी, प्रभु! तोड़ो हृद -द्वार.
कभी लौटना तुम नहीं, विनय करो स्वीकार..
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मन-वीणा-झंकार में, अगर न हो तव नाम.
कभी लौटना हरि! नहीं, लेना वीणा थाम..
*
सुन न सकूँ आवाज़ तव, गर मैं निद्रा-ग्रस्त.
कभी लौटना प्रभु! नहीं, रहे शीश पर हस्त..
*
हृद-आसन पर गर मिले, अन्य कभी आसीन.
कभी लौटना प्रिय! नहीं, करना निज-आधीन..

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com
Acharya Sanjiv Salil

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