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बुधवार, 22 अगस्त 2012

मुक्तिका: अपने चेहरे -संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
अपने चेहरे
संजीव 'सलिल'
*
जिन चेहरों में अपने चेहरे.
उनको देते देखा पहरे.

कृत्रिम गूँगे, अंधे, लंगड़े -
'सलिल' कभी थे नकली बहरे.

हमने जब ऊँचाई नापी,
देख रहे वे कितने गहरे.

कलकल बहती लहरों से वे
पूछें तट पर कितना ठहरे.

दिखे चमकता जब भी सूरज
कहें न तुम सँग बादल घहरे.

दिल चट्टान 'सलिल' का देखा-
कहा: न तुम अब तक क्यों लहरे?
*****
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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