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सोमवार, 1 अगस्त 2011

कजरी गीत: श्री गणेश वंदना --- संजीव 'सलिल'


















श्री गणेश वंदना
संजीव 'सलिल'
*
कजरी गीत:१
भोला-भोला गणपति बिसरत नहीं, गौरा के लाला रे भोला.
भोला-भोला सुमिरत टेर रहे हम, दरसन दे दो रे भोला.
भोला-भोला नन्दी सेर मूस पर चढ़कर आओ रे भोला.
भोला-भोला कहाँ गजानन बिलमे, कहाँ षडानन रे भोला.
भोला-भोला ऋद्धि-सिद्धि-स्वामी संग, आके न जाओ रे भोला.
भोला-भोला भ्रस्ट असुर नेतागण, गणपति मारें रे भोला.
भोला-भोला मोदक थाल धरे, कर ग्रहण विराजो रे भोला.
*
कजरी गीत:२
हरि-हरि जय गनेस के चरना, दीन के दानी रे हरि.
हरि-हरि मंगलमूर्ति गजानन, महिमा बखानी रे हरि.
हरि-हरि विद्या-बुद्धि प्रदाता, युक्ति के ज्ञानी रे हरि.
हरि-हरि ध्यान धरूँ नित तुमरो, कथा सुहानी रे हरि.
हरि-हरि मार रही मँहगाई, कठिन निभानी रे हरि.
हरि-हरि चरण पखार तरे, यह 'सलिल' सा प्राणी रे हरि.
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रविवार, 6 मार्च 2011

दोहा सलिला: फागुन में बौरा गये... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:                                                                         

फागुन में बौरा गये...

संजीव 'सलिल'
*
फागुन में बौरा गये, भाँग पिये बिन आम.
मैना फगुआ गा रही, परदेसी के नाम..

हो ली, होती, होएगी, होली पर हुडदंग.
चढ़ा-चला गोली रहे, कहीं जंग, कहीं भंग..

उषा गाल पर मल रहा, दिनकर लाल गुलाल.                                            
चन्द्र न अवसर पा सका, मन में मिला मलाल..

चढ़ा भवानी भवानी, भोले के संग मस्त.
एक हस्त में एक है, दूजी दूजे हस्त..                                                                          

पड़ा भंग में रंग तो, हुआ रंग में भंग.
या तो सब या एक भी, नहीं रहा बदरंग..

सुन होरी के हुरहुरे, समझदार मुस्कांय.
मौन नासमझ रिसाते, मूरख लड़ मर जांय..

श्यामा के गौरांग पर, चढ़े अनेकों रंग.
थकी गोपियाँ श्याम पर चढ़ा न दूजा रंग..

हुए बाँवरे साँवरे, जा बरसाने आज.
बरसाने जब रंग लगीं, गोरी तजकर लाज..

अगन-लगन है नेह की, सचमुच 'सलिल' विचित्र.
धारा में राधा लखें, मनबसिया का चित्र..

कहीं जीत में हार है, कहीं हार में जीत.
रीत अनूठी प्रीत की, ज्यों गारी के गीत..

माँग भरो यह माँग सुन, गये चौकड़ी भूल.
हुरयारों को लग रहे, आज फूल भी शूल..

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