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रविवार, 18 नवंबर 2012

श्रृद्धांजलि: हिंदुत्व-केसरी नहीं रहा... संजीव 'सलिल'

श्रृद्धांजलि: बाल ठाकरे



हिंदुत्व-केसरी नहीं रहा...
संजीव 'सलिल'
*
कर जोड़ो शीश झुकाओ रे!
महाराष्ट्र-केसरी नहीं रहा...
***
वह वह नेता जन-मन को प्रिय था,
वह मजदूरों में सक्रिय था।
उसके रहते कुछ कदम थमे-
आतंकवाद कुछ निष्क्रिय  था।।
अब सम्हलो, चेतो, जागो रे!
महाराष्ट्र-केसरी नहीं रहा,
हिंदुत्व-केसरी नहीं रहा...
***
वह शिव सेना का नायक था,
वह व्यंग्यचित्र-शर धारक था।
हर शब्द तीक्ष्ण शर मारक था-
चिर-कुंठित का उद्धारक था।।
था प्रखर-मुखर, सर्वोच्च शिखर-
कार्टून-केसरी नहीं रहा,
हिंदुत्व-केसरी नहीं रहा...
***
सरकारों का निर्माता था,
मुम्बई का भाग्य-विधाता था।
धर्मांध सियासत का अरि था-
मजहबी रोग का त्राता था।।
निज गौरव के प्रति जागरूक
इंसान-केसरी नहीं रहा,
हिंदुत्व केसरी नहीं रहा...
***
उसके इंगित पर शिव सैनिक ,
तूफानों से टकराते थे।
उसकी दहाड़ सुन दिल्लीपति-
संकुचाते थे, शर्माते थे।।
मुंबई का बेटा! भूमि-पुत्र!!
बलिदान-केसरी नहीं रहा,
हिंदुत्व केसरी नहीं रहा...
***
उसने सत्ता को ठुकराया,
पद-मोह न बाँध उसे पाया।
उन चुरुट दबाये अधरों का-
चीता सा दिल था सरमाया।।
दुर्बल काया, दृढ़ अंतर्मन-
अरमान-केसरी नहीं रहा,
हिंदुत्व केसरी नहीं रहा...
***

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