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शनिवार, 29 मई 2010

नवगीत: सबकी साँसें...... --संजीव 'सलिल'












नवगीत:

सबकी साँसें...

संजीव 'सलिल'
*










क़ैद हुईं बुद्धू-बक्से में सबकी साँसें.....
*
नहीं धूप से अब है नाता.
नहीं धूल का साथ सुहाता.
नहीं हवा के संग झूमता-
नहीं 'सलिल' में डूब तैरता.
समय-पूर्व ही बच्चा भरता
बड़ी उसाँसें.
क़ैद हुईं बुद्धू-बक्से में
सबकी साँसें.....
*











नहीं पहलवानी, ना कसरत.
नहीं निगहबानी, ना हसरत.
नहीं मिलन-बिछुड़न, गत-आगत-
गलतबयानी, काम न फुरसत.
बुढ़ा रहा है यौवन
झुलस रही हैं आसें.
क़ैद हुईं बुद्धू-बक्से में
सबकी साँसें.....
*










नहीं जरूरत रही हमारी.
नहीं सुन रहा कोई कहानी.
नहीं सुबह, ना शाम सुहानी.
नहीं साथ दे काया-बानी.
साँसें-आसें घेर बुढ़ापे
को, मिल फांसें.
क़ैद हुईं बुद्धू-बक्से में
सबकी साँसें.....
*











खेलो-कूदो, धूम मचाओ,
दिन भर, जी भर नाचो-गाओ.
एक कमा, दस लो उधार फिर-
क़र्ज़ चुकाओ, कुछ न बचाओ.
रिश्ते-नाते भूल, रोज
दे-पाओ झाँसें.
क़ैद हुईं बुद्धू-बक्से में
सबकी साँसें.....
*****
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम