दोहा ग़ज़ल :
संजीव
*
जमा निगाहें लक्ष्य पर, बन जा सलिल उकाब।
पैर जमीं पर जमाकर, देख गगन की आब।।
हूँ तो मैं खोले हुए, पढ़ता नहीं किताब।
आनंदित मन-प्राण पा, सूखा हुआ गुलाब।।
गिनती की साँसें मिलीं, रखना तनिक हिसाब।
किसे पता कहना पड़े, कब अलविदा जनाब।।
दकियनूसी हुए गर, पिया नारियल-डाब।
प्रगतिशील पी कोल्ड्रिंक, करते गला ख़राब।।
किसने लब से छू दिया, पानी हुआ शराब।
बढ़कर थामा हाथ तो, टूट गया झट ख्वाब।।
सच्चाई छिपती नहीं, ओढ़ें लाख नकाब।
उम्र न छिपती बाल पर, मलकर 'सलिल' खिजाब।।
नेह निनादित नर्मदा, प्रमुदित मन पंजाब।
सलिल-प्रीत गोदावरी, साबरमती चनाब।।
***
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
संजीव
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जमा निगाहें लक्ष्य पर, बन जा सलिल उकाब।
पैर जमीं पर जमाकर, देख गगन की आब।।
हूँ तो मैं खोले हुए, पढ़ता नहीं किताब।
आनंदित मन-प्राण पा, सूखा हुआ गुलाब।।
गिनती की साँसें मिलीं, रखना तनिक हिसाब।
किसे पता कहना पड़े, कब अलविदा जनाब।।
दकियनूसी हुए गर, पिया नारियल-डाब।
प्रगतिशील पी कोल्ड्रिंक, करते गला ख़राब।।
किसने लब से छू दिया, पानी हुआ शराब।
बढ़कर थामा हाथ तो, टूट गया झट ख्वाब।।
सच्चाई छिपती नहीं, ओढ़ें लाख नकाब।
उम्र न छिपती बाल पर, मलकर 'सलिल' खिजाब।।
नेह निनादित नर्मदा, प्रमुदित मन पंजाब।
सलिल-प्रीत गोदावरी, साबरमती चनाब।।
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in