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मंगलवार, 6 सितंबर 2016

dopadi-doha

दोपदी
*
अब न ललक फूल की बाकी रही
आदमी fool हो गया शायद
*
फूल कर कुप्पा प्रशंसा से हुए
सु-मन ने काँटा चुभा पिचका दिया
*
*
दोहा सलिला
*
गौ भाषा को दोह ले, दोहा दुग्ध समान
गागर में सागर भरे, पढ़-समझें मतिमान
*
बात मर्म की कह रहा, सुनिये धरकर धीर
शाह भिखारी ही मिले, मिले अमीर फ़क़ीर
*
पैर उठाये है 'सलिल', जब तक सर का भार
सर अकड़ा है गर्व से, सर पर सर बलिहार
*
रूप चन्द्र का निरखकर, सविता क्यों सन्तप्त?
दर्शन राम किशोर के, कर हो जाए तृप्त
*
लता विटप तरु धन्य हैं, प्रीत करें मिथिलेश
सींच 'सलिल' कर दूर दें, मन में व्यथा अशेष
*
तुम रखते ही हो नहीं, सूखा हुआ गुलाब
इसीलिये भारी लगे, तुम्हें किताब जनाब
*
दूर न दर्शन रह गये, मोबाइल में देख
अब उर में खिंचती नहीं, है यादों की रेख
*
क्या जवाब दूँ बतायें, नहीं रहा कुछ सूझ
मौन हुई मति क्यों कहें, बात न आती बूझ
*
मौन न हों मति सोचकर, दोहा लिख लें एक
मन से मन की बात हो, दोहे में सविवेक
*
६.९.२०१६

सोमवार, 20 जून 2016

dwipadiyan

एक रचना 
*
प्रभु जी! हम जनता, तुम नेता
हम हारे, तुम भए विजेता।। 

प्रभु जी! सत्ता तुमरी चेरी  
हमें यातना-पीर घनेरी ।। 

प्रभु जी! तुम घपला-घोटाला   
हमखों मुस्किल भयो निवाला।।

प्रभु जी! तुम छत्तीसी छाती   
तुम दुलहा, हम महज घराती।।

प्रभु जी! तुम जुमला हम ताली 
भरी तिजोरी, जेबें खाली।।

प्रभु जी! हाथी, हँसिया, पंजा 
कंघी बाँटें, कर खें गंजा।।

प्रभु जी! भोग और हम अनशन   
लेंय खनाखन, देंय दनादन।।

प्रभु जी! मधुवन, हम तरु सूखा  
तुम हलुआ, हम रोटा रूखा।।

प्रभु जी! वक्ता, हम हैं श्रोता 
कटे सुपारी, काट सरोता।।
(रैदास से क्षमा प्रार्थना सहित)
​***
२०-११-२०१५ 
चित्रकूट एक्सप्रेस, उन्नाव-कानपूर