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शुक्रवार, 18 जून 2021

शारद वंदन

शारद वंदन
*
शारद मैया शस्त्र उठाओ,
हंस छोड़ सिंह पर सज आओ...
सीमा पर दुश्मन आया है, ले हथियार रहा ललकार।
वीणा पर हो राग भैरवी, भैरव जाग भरें हुंकार।।
रुद्र बने हर सैनिक अपना, चौंसठ योगिनी खप्पर ले।
पिएँ शत्रु का रक्त तृप्त हो,
गुँजा जयघोषों से जग दें।।
नव दुर्गे! सैनिक बन जाओ
शारद मैया! शस्त्र उठाओ...
एक वार दो को मारे फिर, मरे तीसरा दहशत से।
दुनिया को लड़ मुक्त कराओ, चीनी दनुजों के भय से।।
जाप महामृत्युंजय का कर, हस्त सुमिरनी हाे अविचल।
शंखघोष कर वक्ष चीर दो,
भूलुंठित हों अरि के दल।।
रणचंडी दस दिश थर्राओ,
शारद मैया शस्त्र उठाओ...
कोरोना दाता यह राक्षस,
मानवता का शत्रु बना।
हिमगिरि पर अब शांति-शत्रु संग, शांति-सुतों का समर ठना।।
भरत कनिष्क समुद्रगुप्त दुर्गा राणा लछमीबाई।
चेन्नम्मा ललिता हमीद सेंखों सा शौर्य जगा माई।।
घुस दुश्मन के किले ढहाओ,
शारद मैया! शस्त्र उठाओ...
***

१७-६-२०२० 

रविवार, 28 जून 2020

शारद वंदन

शारद वंदन
*
बीना लेकर प्रगट हों, बीनावादिनी साथ
कृपा कोर कर हो सदय, रखो सीस पै हाथ

मोरी मति चकरानी है, ऐ मैया! मोए बचा लइयो
मो खों गैल भुलानी है, ऐ मैया! पार लगा दइयो

जनम-जनम की मैली चादर
रीती सत करमन की गागर
सदय नईं नटराज हो रए
दया नईँ कर रए नटनागर
प्रभु की कृपा करानी है, रमा-उमा लै आ जइयो

तनक न जानौं पूजन-वंदन
नईँ जुट रए अच्छत्-चंदन
प्रगट नें होते चित्रगुप्त जू
सदय नें होते गिरिजानंदन
दरसन की जिद ठानी है, ऐ मैया! दरस दिला दइयो

सारद! हंसबाहिनी माता
सकल भुवन तुमरे जस गाता
नीर-छीर मति दो ममतामई!
कलम लए कर रऔ जगराता
अलंकार रस छंद न जानूँ,  भगतें सुझा लिखा लइयो
*
संजीव
११-६-२०२०

शारद वंदन

शारद वंदन
🕉️
अमले! अर्पित नम्र प्रणाम

मन मंदिर में रहो प्रतिष्ठित
स्वीकारो माँ अक्षर-अक्षत
शब्द-सुमन शत सुरभि समर्पित
छंद अगरु ले आया तव सुत
विमले! मम हृद करो अकाम

ब्रह्माशीष गगन बरसाए
स्नेह सलिल से हरि नहलाए
कंकर में शंकर छवि भाए
रमा-उमा रस-राग सुहाए
धवले! सृजन करा अविराम

दस दिश तेरा यश गुंजाऊँ
हर ध्वनि में तुझको ही पाऊँ
पल पर भी तेरे मन भाऊँ
माँ! तव पग रज पा तर जाऊँ
सुमने! तव चाकर बेदाम
*
२४-६-२०२०

शारद वंदन

शारद वंदन
संजीव
🕉️
अक्षरस्वामिनी आप इष्ट, ईश्वरी उजालावाही,
ऊपर एकल ऐश्वर्यी ओ!, औसरदाई अंबे।
अ: कर कृपा कविता करवा, छंद सिखा जगदंबे!!
*
सलिल करे अभिषेक धन्य हो, मैया! चरण पखार।
हृदयानंदित बसा मातु छवि, आप पधारें द्वार।।

हंसवाहिनी! स्वर-सरगम दे, कीर्ति-कथा कह पाऊँ।
तार बनूँ वीणा का शारद!, तुम छेड़ो तर जाऊँ।।

निर्मलवसने! मीनाक्षी हे! पद्माननी दयाकर।
ममतामयी! मृदुल अनुकंपा कर सुत को अपनाकर।।

ढाई आखर पोथी पढ़कर भाव साधना साधूँ।
रास-लास आवास हृदय को करें, तुम्हें आराधूँ।।

ध्यान धरूँ नित नयन मूँदकर, रूप अरूप निहारूँ।
सुध-बुध खोकर विश्वमोहिनी अपलक खुद को वारूँ।।

विधि-हरि-हर की कृपा मिले, हर चित्र गुप्त चुप देखूँ।
जो न अन्य को दिखे, वही लख, अक्षर-अक्षर लेखूँ।।

भवसागर तर आ पाए सुत, अहं भूल तव द्वार।
अविचल मति दे मैया मोरी शब्द ब्रह्म-सरकार।।

नमन स्वीकार ले, कृपा कर तार दे।
बिसर अपराध मम, जननि अँकवार ले।।

शारद वंदन आशाकिरण छंद

शारद वंदन
(मात्रिक लौकिक जातीय
वर्णिक सुप्रतिष्ठा जातीय
नवाविष्कृत आशाकिरण छंद)
सूत्र - त ल ल।
*
मैया नमन
चाहूँ अमन...
   ऊषा विहँस
   आ सूर्य सँग
   आकाश रँग
   गाए यमन...
पंछी हुलस
बोलें सरस
झूमे धरणि
नाचे गगन...
   माँ! हो सदय
   संतान पर
   दो भक्ति निज
   होऊँ मगन...
माते! दरश
दे आज अब
दीदार बिन
माने न मन...
   वीणा मधुर
   गूँजे सतत
   आनंदमय
   हो शांत मन...
*
२५-६-२०२०